13-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - गृहस्थ व्यवहार में रहते कमाल कर दिखानी है, श्रेष्टाचारी देवता बनने और बनाने की सेवा करनी है''


 

प्रश्नः-

राजाई के वर्से का अधिकार किन बच्चों को प्राप्त होता है?

उत्तर:-

जो बाप के समीप सम्बन्ध में आते हैं, अपनी चलन और आमदनी का पूरा-पूरा समाचार बाप को देते हैं।

ऐसे मातेले बच्चे ही राजाई के वर्से का अधिकार प्राप्त करते हैं।

जो बाप के आगे आते ही नहीं, अपना समाचार सुनाते ही नहीं, उन्हें राजाई का वर्सा मिल नहीं सकता।

वह हैं सौतेले बच्चे।

बाबा कहते बच्चे अपना पूरा-पूरा समाचार दो तो बाबा समझे यह क्या सर्विस कर रहे हैं।

बाबा बच्चों को हर हालत में ऊंच पद पाने का पुरुषार्थ कराते हैं।

 

गीत:-कौन आया मेरे मन के द्वारे...


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चे जानते हैं परमपिता परमात्मा शिव से हमारा क्या सम्बन्ध है?
    • परमपिता तो कहते ही हैं।
    • पतित-पावन अक्षर भी डाल दो।
    • दिल में है कि पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव से हमारा सम्बन्ध बाप का है।
    • बाप कहते हैं मैं बच्चों के सामने प्रत्यक्ष होता हूँ।
    • बाप बच्चों से ही रूहरिहान करते हैं, मिलते जुलते हैं।
    • जो बात समझाई जाती है वह फिर औरों को समझानी है।
  • अभी तुम जगत अम्बा और जगतपिता को भी जानते हो।
    • शिव को जगतपिता नहीं कहेंगे क्योंकि जगत में प्रजा है इसलिए कहा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा।
    • अम्बा सारे जगत की।
    • इससे सिद्ध हुआ वह रचयिता है।
    • यह भी समझ चाहिए।
    • मनुष्य तो सब परमात्मा को याद करते हैं, परन्तु जानते नहीं।
    • तुम अब परमपिता परमात्मा को, जगत अम्बा को, प्रजापिता ब्रह्मा को जानते हो।
    • उनकी आए सन्तान बने हो।
    • लौकिक माँ बाप तो सबको हैं।
    • उनको जगत अम्बा, जगतपिता नहीं कहेंगे।
    • जगत अम्बा जगतपिता होकर गये हैं।
    • इस समय फिर तुम आकर उनके बने हो फिर से हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट हो रही है।
  • तुम जानते हो हम अब बाप से वर्सा ले रहे हैं।
    • बाप है स्वर्ग स्थापन करने वाला, जिसमें लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
    • तुमको भी बादशाही मिली थी।
    • अब फिर से तुम ले रहे हो।
  • तो तुमको पूछना चाहिए परमपिता परमात्मा को जानते हो।
    • यह बात ऐसी है जो समझते हुए भी भूल जाते हैं।
    • अपने आपको भूल, मात-पिता को भूल वर्सा गँवा देते हैं।
  • यह है ही युद्ध-स्थल।
    • तुम इस समय माया पर जीत पाने के लिए युद्ध के मैदान पर खड़े हो।
    • जब तक अन्त न आये तो लड़ाई चलती रहेगी।
    • उस लड़ाई वाले भी जानते हैं, अगर हम चाहें तो सेकेण्ड में सबको उड़ा दें।
    • अभी तो एक दो को हथियार देते रहते हैं।
    • कर्जा देते रहते हैं।
    • अगर कोई मार दे तो कर्जा खत्म हो जायेगा।
  • बाबा भी अखबार पढ़ते हैं।
    • बच्चों को भी अखबार पढ़कर उससे सर्विस करनी चाहिए।
    • बाबा से पूछना चाहिए बाबा आप तो मालिक हो फिर रेडियो क्यों सुनते हो?
    • अब बच्चे मालिक तो शिवबाबा है, हमको कैसे पता पड़े कि वायुमण्डल क्या है!
    • कहाँ तक लड़ाई आदि के आसार हैं!
    • इस समय गपोड़े तो बहुत मारते हैं।
  • सदाचार कमेटियां आदि बनाते हैं।
    • उनको लिखना चाहिए यह दुनिया ही भ्रष्टाचारी है।
    • सदाचारी कोई कैसे हो सकता है।
    • भ्रष्टाचारी विकारी को कहा जाता है।
    • यह बातें तुम बच्चे ही जानते हो।
    • बच्चों में भी नम्बरवार हैं।
  • तुम सबसे पूछो कि परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?
    • जैसे क्रिश्चियन जानते हैं क्राइस्ट ने फलाने समय पर जन्म लिया।
    • अच्छा उनके आगे कौन थे?
    • लक्ष्मी-नारायण को राज्य किये कितना समय हुआ है।
    • इस समय आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले ही धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो गये हैं।
    • शास्त्रों में ही लाखों वर्ष कह दिया है।
    • अब तुम सुजाग हो गये हो फिर औरों को भी सुजाग करना है।
    • तुम जानते हो शिव हमारा बाप है।
    • प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा भी हमारे मम्मा-बाबा है।
  • फिर पूछा जाता है लक्ष्मी-नारायण को सतयुग का वर्सा कहाँ से मिला?
    • 5 हजार वर्ष हुआ, मिला था अब नहीं है, अब मिल रहा है।
    • अब हिस्ट्री रिपीट हो रही है।
  • अब सभी को बाप का सन्देश कैसे दें!
    • क्या घर-घर में ढिंढोरा पीटें!
    • अच्छा बोर्ड भी तुम लगा सकते हो, क्योंकि तुम हो मास्टर अविनाशी सर्जन।
  • परमपिता परमात्मा है निराकार।
    • अब यह तो कोई नहीं जानते कि शिवबाबा ने किसके शरीर में जन्म लिया!
    • ऐसे भी नहीं कह सकते कि कृष्ण के शरीर में प्रवेश कर जन्म लिया।
    • यह तो तुम नम्बरवार जानते हो कि वह हमारा परमपिता भी है और हमारा टीचर भी है।
    • हमको बहुत अच्छी शिक्षा दे रहे हैं।
  • बाबा फिर से कल्प के बाद आकर मिले हैं।
    • समझते हो पक्का-पक्का निश्चय भी है फिर घर जाते ही वह नशा उड़ जाता है।
    • घर गृहस्थ में रहते धन्धे-धोरी में रहते कहाँ तक नशा रहता है, यह तो जरूर बाप को लिखना चाहिए।
    • परन्तु बच्चे बाप को पूरा समाचार देते नहीं।
  • तुम बच्चे बाप को पूरा जानते हो तो बाप को भी तुम्हारा पूरा मालूम होना चाहिए।
    • जबकि वह तुम्हारा दादा है तो उनको तुम्हारी चलन और आमदनी का पूरा-पूरा मालूम होना चाहिए, तब तो मत देंगे।
    • तुम कहेंगे शिवबाबा तो अन्तर्यामी है, परन्तु यह ब्रह्मा कैसे जाने।
    • कोई तो बाबा के आगे आते ही नहीं हैं, इसलिए समझा जाता है यह सौतेले बच्चे हैं, तो राजाई का वर्सा नहीं पा सकेंगे।
    • अगर श्रीमत पर चलना है तो पूरा समाचार देना है।
    • बच्चे भी बाप का सब कुछ जान लेते हैं।
    • बाप को भी समाचार देना चाहिए।
  • यह है हमारा रूहानी गृहस्थ व्यवहार का सम्बन्ध।
    • यह है रूहानी ईश्वरीय परिवार।
    • सुप्रीम रूह से सभी आत्माओं का सम्बन्ध है ना।
  • सबसे यह प्रश्न पूछो कि तुम इन लक्ष्मी-नारायण को जानते हो, परमपिता परमात्मा को जानते हो?
    • तुम सतयुगी श्रेष्टाचारी देवी देवताओं को जानते हो?
    • तुम लिख सकते हो कि इन सब बातों को जानने से तुम श्रेष्टाचारी बन सकते हो, नहीं तो कदाचित नहीं बन सकते।
    • ऐसी-ऐसी सर्विस करने से तुम ऊंच पद पा सकते हो।
  • भ्रष्टाचारी को श्रेष्टाचारी बनाना-यह तुम्हारा धन्धा है।
    • तो क्यों नहीं बोर्ड लगाते हो!
    • स्त्री-पुरुष दोनों इस सर्विस पर हैं।
    • बाबा डायरेक्शन देते हैं परन्तु बच्चे फिर भूल जाते हैं, अपने ही धन्धे में लग जाते हैं।
    • सर्विस जो करनी है वह करते ही नहीं हैं।
    • न पूरा समाचार देते हैं, न बोर्ड लगाते हैं।
    • बोर्ड नहीं लगाया, सर्विस नहीं की तो समझेंगे देह-अभिमान बहुत है।
    • मुरली तो सब सुनते हैं।
    • बाबा क्या कहते हैं, अनेक मत मिलती हैं।
    • प्रदर्शनी के लिए बाबा कहते बच्चे गर्मी है तो पहाड़ी पर जाकर प्रबन्ध करो।
    • अब देखें कहाँ से समाचार आता है कि बाबा हम यह प्रबन्ध कर सकते हैं।
    • जानकारी है तो जाकर हाल वा धर्मशाला लेकर प्रबन्ध रचना है, तो बहुतों को सन्देश मिले।
    • यहाँ भी बोर्ड लगा हुआ हो ज्ञान सागर पतित-पावन निराकार परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
    • फिर जगत अम्बा और जगत पिता से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
    • वह क्या देंगे?
    • जरूर जगत का मालिक बनायेंगे।
    • बरोबर तुम अब बन रहे हो।
    • कल्प पहले भी बने थे।
    • तुम यह बोर्ड लिख दो तो फिर और सब प्रश्न ही खत्म हो जायेंगे।
    • लक्ष्मी-नारायण को यह विश्व के मालिकपने का वर्सा कैसे मिला?
    • पूछने वाला तो जरूर जानता होगा।
    • अगर इतनी सर्विस नहीं करेंगे तो गद्दी पर कैसे बैठेंगे।
  • यह राजयोग है नर से नारायण बनने का।
    • प्रजा बनने का नहीं।
    • क्या तुम यहाँ प्रजा बनने आये हो?
  • बाबा के पास समाचार आये तो बाबा समझे कि यह सर्विस कर रहे हैं।
    • न घर का, न सर्विस का समाचार देंगे तो कैसे समझेंगे कि यह विजय माला में आयेंगे।
    • निश्चयबुद्धि विजयन्ती, संशयबुद्धि विनशन्ती।
  • तुम जानते हो अभी हमारी राजधानी स्थापन हो रही है।
    • उस राजधानी में ऊंच पद पाने का तुम बच्चों को पुरुषार्थ करना है।
    • परन्तु कोई की तकदीर में नहीं है तो टीचर क्या कर सकता है।
    • तुमने ही ऐसे खोटे कर्म किये हैं, जो तुम्हें भोगना पड़ता है।
    • मम्मा ने अच्छे कर्म किये हैं तो कितना अच्छा अटेन्शन से मम्मा ने ऊंच पद प्राप्त किया।
    • तुम बच्चों को हर हालत में खूब पुरुषार्थ करना चाहिए।
  • बाबा ने राय दी है - बोर्ड बनाए लगाना चाहिए और छोटे-छोटे पर्चे बनाकर बांटने चाहिए कि इन लक्ष्मी-नारायण को जानने से तुम यह श्रेष्टाचारी देवता बन जायेंगे।
    • शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए।
    • तुम मीठे-मीठे बच्चों को बहुत सर्विस करनी चाहिए।
    • गृहस्थ व्यवहार में रहते कमाल कर दिखानी है।
    • कब छोड़ने का ख्याल नहीं करना है।
  • तुम जानते हो बाबा हमको ब्रह्मा द्वारा सिखला रहे हैं, शिवबाबा भारत में आया है तो क्या निराकार आया?
    • कैसे आया, क्या किया?
    • कोई को पता ही नहीं है।
    • शिवरात्रि मनाते हैं, जरा भी पता नहीं है।
    • परमात्मा आते ही हैं पावन बनाने।
    • बाबा कहते हैं कोई भी बात में मूँझते हो तो पूछो कि बाबा हमको यह बात समझ में नहीं आती हैं, 84 जन्मों का राज़ भी समझाया है।
  • वर्णो में भी आना है।
    • तुम यह धारणा करते हो।
    • बरोबर हमने ऐसे 84 जन्म लिए हैं।
    • अब फिर हम सूर्यवंशी बनते हैं।
    • जितना जो पुरुषार्थ करेगा उतना ऊंच पद पायेगा।
    • कितनी सहज बात है, फिर भी बुद्धि में बैठता नहीं है तो आकर पूछो - बाबा हम इस समझानी में मूँझते हैं।
    • पहले-पहले अल्फ का परिचय देना है।
  • यह बोर्ड सब लगा दें, इस नॉलेज से तुम सदा सुखी, श्रेष्टाचारी बन जाते हो तो यह अच्छा है ना।
    • टैम्पटेशन होगा - क्यों न ऐसी बात जाकर समझें।
    • बाबा सर्विस से समझ जायेंगे कि कौन-कौन सच्चा बच्चा है, जो अटेन्शन देते हैं - वही माला का दाना बनेंगे।
    • करके दिखाना है।
  • तुम तो प्रैक्टिकल सम्मुख बैठ सुन रहे हो।
    • बाकी बच्चे मुरली द्वारा सुनेंगे।
    • यह सब समझने की बातें हैं।
    • परमात्मा बाप भी है फिर पतित से पावन बनाकर ले जाते हैं तो गुरू हो गया।
    • सृष्टि के आदि मध्य अन्त की नॉलेज शिक्षक बन पढ़ाते हैं तो तीनों हो गये ना।
    • परन्तु बहुत बच्चे भूल जाते हैं।
    • बुद्धि से वह नशा निकल जाता है।
    • नहीं तो स्थाई खुशी रहनी चाहिए।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) विजय माला का दाना बनने के लिए अपने ऊपर पूरा अटेन्शन देना है।
  • श्रेष्टाचारी बनने और बनाने की सेवा करनी है।
  • 2) कोई भी ऐसा खोटा कर्म नहीं करना है, जिसकी भोगना भोगनी पड़े।
  • बाप की राय पर कदम-कदम चलना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • अपनी आकर्षणमय स्थिति द्वारा सर्व को आकर्षित करने वाले रूहानी सेवाधारी भव
    • रूहानी सेवाधारी कभी यह नहीं सोच सकते कि सेवा में वृद्धि नहीं होती या सुनने वाले नहीं मिलते।
    • सुनने वाले बहुत हैं सिर्फ आप अपनी स्थिति रूहानी आकर्षणमय बनाओ।
    • जब चुम्बक अपनी तरफ खींच सकता है तो क्या आपकी रूहानी शक्ति आत्माओं को नहीं खींच सकती!
    • तो रूहानी आकर्षण करने वाले चुम्बक बनो जिससे आत्मायें स्वत: आकर्षित होकर आपके सामने आ जायें, यही आप रूहानी सेवाधारी बच्चों की सेवा है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • समाधान स्वरूप बनना है तो सबको स्नेह और सम्मान देते चलो।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
    • “परमात्मा एक है बाकी सर्व मनुष्य आत्माये हैं''
    • अब यह तो सारी दुनिया जानती है कि परमात्मा एक है वो सर्वशक्तिवान है, जानीजाननहार है, ऐसे तो सारी दुनिया खुद भी कहती है हम परमात्मा की संतान हैं। परमात्मा एक है, भल कोई धर्म वाला हो वो भी परमात्मा को ही मानते हैं। वो भी अपने को परमात्मा द्वारा भेजा हुआ सन्देशवाहक समझते हैं, ऐसे ही सन्देश लेकर अपने अपने धर्म की स्थापना करते हैं। जैसे गुरुनानक ने भी परमात्मा की इतनी बड़ाई की एकोंकार सत् नाम। एकोंकार का अर्थ है परमात्मा एक है। सत् नाम अर्थात् उसका नाम सत्य है तो गोया परमात्मा नाम रूप वाला भी है, अविनाशी है, अकालमूर्त भी है तो फिर कर्ता पुरुष भी है माना वो खुद अकर्ता होते हुए भी कैसे ब्रह्मा तन द्वारा कर्ता पुरुष बनता है। अब यह सारी महिमा एक परमात्मा की है, अब मनुष्य इतना समझते हुए फिर भी कहते हैं ईश्वर सर्वत्र है। अहम् आत्मा सो परमात्मा है, अगर सभी परमात्मा ठहरे फिर एकोंकार ....यह महिमा किस परमात्मा की करते हैं? इससे सिद्ध है कि परमात्मा एक है। अच्छा - ओम् शान्ति।