10-04-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 19.03.90 "बापदादा" मधुबन



"उड़ती कला का आधार उमंग-उत्साह के पंख"


 


  • आज सर्व बच्चों के स्नेह सम्पन्न मिलन-भावना और सम्पूर्ण बनने की श्रेष्ठ कामना के शुभ उमंग-उत्साह के वायब्रेशन बापदादा देख रहे हैं।
  • हर बच्चे के अन्दर उसमें भी इस कल्प में पहली बार मिलने वाले बच्चों का उत्साह और इस कल्प में अनेक बार मिलने वाले बच्चों का उत्साह अपना-अपना है।
  • जिसको आप अपनी भाषा में कहते हो - नये बच्चे और पुराने बच्चे।
  • लेकिन हैं सभी अति पुराने से पुराने क्योंकि पुरानी पहचान, बाप की तरफ, ब्राह्मण-परिवार की तरफ आकर्षित कर यहाँ लाई है।
  • यह सिर्फ निशानी मात्र कहा जाता है नया और पुराना।
  • तो नये बच्चों का उमंग-उत्साह यही है कि थोड़े समय में बहुत आगे उड़ते हुए बाप समान बन करके दिखायें।
  • पुराने बच्चों का यही श्रेष्ठ संकल्प है कि जो बापदादा से पालना मिली है, खजाना मिला है - उसका रिटर्न बाप के आगे सदा रखते रहें।
  • दोनों का उमंग-उत्साह श्रेष्ठ है।
  • और यही उमंग-उत्साह पंख बन उड़ती कला की ओर ले जा रहा है।
  • उड़ती कला के पंख ज्ञान-योग तो हैं ही लेकिन प्रत्यक्ष स्वरूप में सारी दिनचर्या में हर समय, हर कर्म में, हर दिन नया उमंग-उत्साह स्वत: ही उत्पन्न होता है।
  • जहाँ उमंग-उत्साह है वही उड़ती कला का आधार है।
  • कैसा भी कार्य हो, चाहे सफाई करने का हो, बर्तन मांजने का हो, साधारण कर्म हो लेकिन उसमें भी उमंग-उत्साह नैचुरल और निरन्तर होगा।
  • ऐसे नहीं कि जब ज्ञान की पढ़ाई कर और करा रहे हैं वा याद में बैठे हैं, किसको बिठा रहे हैं वा आध्यात्मिक सेवा में बिजी हैं तो उस समय सिर्फ उमंग-उत्साह हो और साधारण कर्म हो तो स्थिति भी साधारण हो जाए, उमंग-उत्साह भी साधारण हो जाए - यह उड़ती कला की निशानी नहीं।
  • उड़ती कला वाली श्रेष्ठ आत्मा के उमंग-उत्साह के पंख सदा ही उड़ते रहेंगे।
  • तो बापदादा सभी बच्चों के उमंग-उत्साह को देख रहे हैं।
  • पंख तो सभी के हैं लेकिन कभी-कभी उमंग-उत्साह में उड़ते-उड़ते थक जाते हैं।
  • कोई छोटा-बड़ा कारण बनता है अर्थात् रूकावट आती है, कभी तो प्यार से पार कर लेते हैं, लेकिन कभी घबरा जाते हैं।
  • जिसको आप लोग कहते हैं कनफ्यूज़ हो जाते हैं, इसलिए सहज पार नहीं करने के कारण थक जाते हैं लेकिन थोड़ा-थोड़ा थकते हैं फिर भी लक्ष्य श्रेष्ठ हैं, मंजिल अति प्यारी लगती है इसलिए उड़ने लग जाते हैं।
  • श्रेष्ठ लक्ष्य और प्यारी मंजिल और बाप के प्यार का अनुभव थकावट से नीचे की स्थिति में ठहरने नहीं देता है इसलिए फिर से उड़ने लग जाते हैं।
  • तो बापदादा बच्चों का यह खेल देखते रहते हैं।
  • फिर भी बाप का प्यार रूकने नहीं देता और प्यार में मैजारिटी पास हैं इसलिए रूकावट कितना भी रोकने की कोशिश करे और करती है।
  • कभी-कभी सोचते हैं कि बड़ा मुश्किल है, इससे तो जैसे थे वैसे बन जायें।
  • लेकिन चाहते भी पास्ट लाइफ में जाने का मजा नहीं आता क्योंकि पहले तो इस परमात्म-प्यार और देहधारियों का प्यार दोनों का अन्तर सामने है तो उड़ते-उड़ते जब ठहरती कला में आ जाते हैं तो दो रास्तों के बीच में होते हैं और सोचते हैं - इधर जायें वा उधर जायें।
  • कहाँ जायें?
  • लेकिन परमात्म-प्यार का अनुभव कनफ्यूज़ को सुरजीत कर देता है और उमंग-उत्साह के पंख मिल जाते हैं इसलिए सोचते भी फिर ठहरती कला से उड़ती कला में उड़ जाते हैं।
  • बातें बहुत छोटी-छोटी होती है लेकिन उस समय कमजोर होने के कारण बड़ी लगती है।
  • जैसे शरीर की कमजोरी वाले को एक पानी का गिलास उठाना भी मुश्किल लगता है और जो हिम्मत वाला है उसको दो बाल्टी उठाना भी खेल लगता है।
  • ऐसे ही छोटी-सी बात बड़ी अनुभव करने लगते हैं।
  • तो उमंग-उत्साह के पंख सदा उड़ाते रहते हैं।
  • रोज़ अमृतवेले अपने सामने सारा दिन किस स्मृति से उमंग-उत्साह में रहें - वह वैराइटी उमंग-उत्साह की प्वाइंट्स इमर्ज करो।
  • सिर्फ एक ही प्वाइंट कि मैं ज्योतिर्बिन्दु हूँ, बाप भी ज्योतिर्बिन्दु है, घर जाना है फिर राज्य में आना है - यह एक ही बात कभी-कभी बच्चों को बोर कर देती है।
  • फिर सोचते हैं कुछ नया चाहिए।
  • लेकिन हर दिन की मुरली में उमंग-उत्साह की भिन्न-भिन्न प्वाइंट्स होती है।
  • वह उमंग-उत्साह की विशेष प्वाइंट अपने पास नोट करो।
  • बहुत बड़ी लिस्ट बना सकते हैं।
  • डायरी में भी नोट करो तो बुद्धि में भी नोट करो।
  • जब बुद्धि में इमर्ज न हो तो डायरी से इमर्ज करो और वैराइटी प्वाइंट्स हर रोज नया उमंग-उत्साह बढ़ायेंगी।
  • मनुष्य आत्मा का यह नेचर है कि वैराइटी पंसद आती है इसलिए चाहे ज्ञान की प्वाइंट मनन करो या रूहरिहान करो।
  • सारा दिन बिन्दु याद करेंगे तो बोर हो जायेंगे।
  • लेकिन बिन्दु बाप भी है, बिन्दु आप भी हो।
  • संगमयुग पर हीरो पार्टधारी भी हो, जीरो के साथ हीरो भी हो।
  • सिर्फ जीरो नहीं हो।
  • संगमयुग पर हीरो होने के कारण सारे दिन में वैराइटी पार्ट बजाते हो।
  • मुझ जीरो का सारे कल्प में क्या-क्या पार्ट रहा है और इस समय क्या हीरो पार्ट है, किसके साथ पार्ट है, कितना समय और क्या पार्ट बजाना है, इस वैरायटी रूप से ज़ीरो बन अपने हीरो पार्ट की स्मृति में रहो।
  • याद में भी वैराइटी रूप से कभी बीजरूप स्थिति में रहे, कभी फरिश्ता रूप में, कभी रूहरिहान के रूप में रहो।
  • कभी बाप के मिले हुए खजानों के एक-एक रत्न को सामने लाओ।
  • जिस समय जो रूचि हो उसी रीति से याद करो।
  • जिस समय जिस सम्बन्ध से बाप का मिलन, बाप का स्नेह चाहो उस सम्बन्ध से मिलन मनाओ, इसलिए जो सर्व सम्बन्ध से बाप ने आपको अपना बनाया और आपने भी बाप को सर्व सम्बन्ध से अपना बनाया।
  • सिर्फ एक सम्बन्ध तो नहीं है, वैराइटी है ना?
  • लेकिन एक बात ध्यान में रखनी है कि सिवाए बाप के, सिवाए बाप की प्राप्तियों के वा सिवाए बाप के खजानों के और कोई याद न आये।
  • वैराइटी प्राप्ति है, वैराइटी खजाने हैं, वैराइटी सम्बन्ध हैं, वैराइटी खुशी की बातें हैं - उमंग-उत्साह की बातें हैं।
  • उसी विधि से यूज़ करो।
  • बाप और आप यही सेफ्टी की लकीर है।
  • इस स्मृति की लकीर से बाहर नहीं आओ।
  • बस, यह लकीर परमात्मा-छत्रछाया है, जब तक इस छत्रछाया की लकीर के अंदर हैं तब तक कोई माया की हिम्मत नहीं।
  • फिर मेहनत क्या होती, रूकावट क्या होती, विघ्न क्या होता - इन शब्दों से अविद्या हो जायेगी।
  • जैसे आदि स्थापना के समय जब सतयुग की आत्मायें प्रवेश होती थीं तो उन आत्माओं को विकार क्या होता है, दु:ख क्या होता , माया क्या होती है - इन शब्दों की अविद्या रहती थी।
  • बच्चों को यह अनुभव है ना?
  • पुराने तो इन बातों को जानते हैं।
  • ऐसे जो बाप और आप - इस स्मृति की लकीर की छत्रछाया में हैं, उनको इन बातों की अविद्या हो जाती है इसलिए सदा सेफ हैं, सदा बाप के दिल में रहते हैं।
  • आप लोगों को दिल ज्यादा पसंद आती है ना।
  • सौगात भी हार्ट ही बनाकर लाते हो।
  • केक भी हार्ट बनाते हो, बॉक्स भी हार्ट जैसा बनाते हो।
  • तो रहते भी हार्ट में हो ना?
  • बाप की हार्ट तरफ माया आ नहीं सकती।
  • जैसे जंगल में भी रोशनी कर देते हैं तो जंगल का राजा शेर भी नहीं आ सकता, भाग जाता है।
  • बाप की हार्ट कितनी लाइट और माइट है!
  • उसके आगे माया का कोई रूप आ नहीं सकता।
  • तो मेहनत से सेफ हो गये ना!
  • जन्म भी सहज हुआ, मेहनत लगी क्या जन्म लेने में?
  • बाप का परिचय मिला, पहचाना और सेकण्ड में अनुभव किया।
  • बाप मेरा, मैं बाप का।
  • जन्म सहज हुआ, भटकना नहीं पड़ा।
  • आपके देश रूपी घर में बाप ने बच्चों को निमित्त बनाकर भेजा।
  • ढूंढना वा भटकना तो नहीं पड़ा।
  • घर बैठे बाप मिला ना।
  • यह तो अभी प्यार से भारत में आते हो मिलने।
  • लेकिन परिचय तो वहाँ ही मिला, जन्म तो वहाँ मिला ना?
  • जन्म अति सहज हुआ तो पालना भी अति सहज है।
  • सिर्फ अनुभव करो।
  • और जायेंगे भी सहज ही।
  • बाप के साथ-साथ जाना है ना या बीच में धर्मराजपुरी में रूकना है।
  • सभी साथ चलने वाले हो ना।
  • सभी का यह दृढ़ संकल्प है कि साथ हैं और साथ चलेंगे।
  • और आगे भी ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में वा पार्ट में आयेंगे - पक्का संकल्प है ना?
  • चलते-चलते थक जायेंगे तो रूक जायेंगे फिर क्या करेंगे?
  • क्योंकि बाप तो उस समय रूकेंगे नहीं।
  • अभी रूक रहे हैं।
  • अभी समय दिया है, उस समय नहीं रूकेंगे।
  • उस समय तो सेकण्ड में उड़ेंगे।
  • अभी नये-नये बच्चों के लिए लेट हुआ है लेकिन टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है।
  • अभी तो नई दुनिया आने के लिए, नये-नये बच्चों के लिए रूकी हुई है कि यह भी लास्ट सो फास्ट और फर्स्ट नम्बर तक पहुंच जाएं।
  • सभी साथ जाने के लिए तैयार हो ना?
  • जो इस कल्प में पहली बार आये हैं, बापदादा मुबारक देते हैं।
  • छोटे-छोटे बच्चों पर बड़ों का प्यार होता है।
  • तो बाप का और बड़े भाई-बहनों का आप लोगों से विशेष प्यार है।
  • लाडले हो गये ना।
  • नये बच्चे लाडले हैं।
  • चाहे नये हो वा पुराने हो सभी के लिए फास्ट गति फर्स्ट आने की है - छत्रछाया में रहना, सदा दिल में रहना, यही सबसे सहज तीव्रगति है।
  • अपने-आपको कभी भी बोर नहीं करो।
  • सदा अपने-आपके लिए वैराइटी रूप से उमंग-उत्साह इमर्ज करो।
  • डबल विदेशी कभी-कभी कोई-कोई यह भी सोचते हैं कि हमारा कल्चर और इंडिया का कल्चर बहुत फ़र्क है।
  • इंडियन कल्चर कभी पंसद आता, कभी नहीं आता।
  • लेकिन यह तो न इंडियन कल्चर है, न विदेश का कल्चर है।
  • यह तो ब्राह्मण कल्चर है।
  • ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी यह नाम तो सभी को पसंद है ना?
  • ब्रह्मा बाप से भी बहुत प्यार है और बी.के. जीवन भी अति प्यारी है।
  • कभी-कभी सफेद कपड़ों के बजाए रंगीन कपड़े याद आते हैं क्योंकि सफेद कपड़े जल्दी मैले हो जाते हैं।
  • दफ्तर में जाते हो वा कहाँ भी ऐसे स्थानों पर जाते हो तो जो ड्रेस आप पहनते हो उसके लिए बापदादा मना नहीं करते लेकिन उसी वृत्ति से नहीं पहनो कि हमारा फॉरेन कल्चर है, यही मेरी पर्सनैलिटी है - इस रीति से नहीं पहनो।
  • सेवाभाव से भले पहनो, पर्सनैलिटी के लक्ष्य से नहीं।
  • ब्राह्मण-जीवन का लक्ष्य हो।
  • सेवा अर्थ, आवश्यकता अर्थ पहनते हो तो कोई मना नहीं।
  • लेकिन वह भी निमित्त बनी हुई आत्माओं से वैरीफाय कराओ।
  • ऐसे नहीं कि बापदादा ने तो छुट्टी दे दी फिर आप मना क्यों करते हो?
  • कभी-कभी बहुत हंसी की बातें करते हैं।
  • जो मतलब के अक्षर होते हैं वह याद रखते हैं लेकिन उसके पीछे जो कायदे की बात होती वह भूल जाते।
  • होशियारी तो बापदादा को अच्छी लगती है लेकिन होशियारी लिमिट में हो, अनलिमिट में न हो।
  • खाओ, पियो, पहनो, खेलो - लेकिन लिमिट में।
  • तो कौन सा कल्चर पंसद हैं?
  • जो ब्रह्मा बाप का कल्चर वह ब्रह्माकुमार, कुमारियों का कल्चर है, पसंद है ना?
  • इन्हों में एक बात अच्छी है जो साफ बोल देते हैं, सभी एक जैसे नहीं हैं - कोई-कोई ऐसे हैं जो अपनी कमजोरी वर्णन करते हैं, लेकिन विम्जीकल बन जाते हैं।
  • बार-बार वही स्मृति में लाते रहते - मैं कमजोर हूँ...।
  • ऐसे नाज़ुक नहीं बनो।
  • विशेषताओं को भूल जायेंगे, कमजोरी को ही सोचते रहेंगे, यह नहीं करना।
  • कमजोरी सुनाओ जरूर लेकिन जब बाप को दी तो फिर किसके पास रही?
  • फिर क्यों यह सोचते हो मैं ऐसा हूँ.... बाप को दे दिया ना।
  • बापदादा को पत्र लिख कमजोरियां दे देते हो या पत्र लिख बापदादा के कमरे में रख देते हो तो फिर सोचते हो जवाब तो मिला नहीं।
  • बापदादा ऐसे जवाब नहीं देते।
  • जो कमी आपने दे दी तो बापदादा उसी जगह पर आपको शक्ति, खुशी, उमंग-उत्साह भर देता है।
  • तो जो बापदादा देता है वह लेते नहीं हो, सिर्फ सोचते हो कि जवाब तो मिला नहीं।
  • जो बाप देता है उसको लेने का प्रयत्न करो।
  • जवाब का इंतजार नहीं करो - शक्ति, खुशी लेते जाओ।
  • फिर देखो कितना अच्छा उमंग-उत्साह रहता है।
  • जिस घड़ी अपनी कमजोरी लिखते हो वा निमित्त बनी हुई आत्माओं को सुनाते हो तो दे दी माना खत्म।
  • अभी मिल क्या रहा है वह सोचो।
  • बापदादा के पास एक-एक के कितने पत्र आते, बापदादा उत्तर नहीं देता लेकिन जो आवश्यकता है, जो कमी है उसको भरने का रिटर्न देता है।
  • बाकी याद-प्यार तो रोज़ देते ही हैं।
  • कोई दिन ऐसा है जो याद-प्यार न मिला हो?
  • बापदादा सभी को रोज़ दो-तीन पेज का पत्र लिखते हैं। (मुरली) इतना बड़ा पत्र तो रोज़ कोई भी किसको नहीं लिखता!
  • कितना भी आपका प्यारा हो कोई ने इतना बड़ा पत्र लिखा?
  • मुरली पत्र है ना।
  • आपकी बातों का रेसपाण्ड होता है ना?
  • तो इतना बड़ा पत्र लिखते भी, बोलते भी - जो आप विशेष पत्र लिखते हो उसका विशेष रिटर्न भी करते हैं क्योंकि लाडले, सिकीलधे हो।
  • बापदादा रिटर्न में शक्ति और खुशी एकस्ट्रा देते हैं।
  • सिर्फ बुद्धि को सदा केयरफुल और क्लीयर रखो।
  • पहले भी सुनाया था, वह बात अपनी बुद्धि से निकाल दो।
  • वो बातें भी रखी हुई होती हैं तो बुद्धि क्लीयर नहीं होती इसलिए बाप जो रिटर्न देता, वह मिक्स हो जाता।
  • कभी मिस कर देते हो।
  • कभी मिक्स कर देते हो।
  • कभी-कभी कोई बच्चे क्या करते हैं.... आज हालचाल सुनाते हैं।
  • कई सोचते हैं सेवा तो कर रहे हैं लेकिन बाप का वायदा है कि मैं सदा मददगार हूँ - इस सेवा में तो मदद की नहीं। सफलता कम निकली।
  • बापदादा ने क्यों नहीं मदद की?
  • फिर सोचते शायद मैं योग्य नहीं हूँ।
  • मैं सेवा कर नहीं सकती हूँ, मैं कमजोर हूँ।
  • व्यर्थ सोचते हैं लेकिन अगर कोई बच्चा सेवा की मदद के लिए बाप के आगे संकल्प करते भी हैं, खुली दिल से करो।
  • लेकिन इसका रिटर्न बापदादा सेवा के समय विशेष मदद देते हैं - सिर्फ एक विधि अपनाओ।
  • कैसी भी मुश्किल सेवा हो लेकिन बाप को सेवा भी बुद्धि से अर्पण कर दो।
  • मैंने किया, सफलता नहीं हुई, मैं कहाँ से आया?
  • बाप करन-करावनहार की जिम्मेवारी भूल करके अपने ऊपर क्यों उठाई।
  • यह रांग हो जाता है।
  • बाप की सेवा है, बाप अवश्य करेगा।
  • बाप को आगे रखो, अपने को आगे नहीं रखो।
  • मैंने यह किया, यह मैं शब्द सफलता को दूर करता है। समझा।

  • अच्छा! चारों ओर के सदा उमंग-उत्साह में उड़ने वाले तीव्र पुरुषार्थी आत्माओं को, सदा बाप की दिल में रहने वाली विशेष मणियों को, सदा बाप और आप इस स्मृति की छत्रछाया में रहने वाले सदा ठहरती कला-गिरती कला से पार उड़ती कला में आगे बढ़ने वाले, सदा अपने को वैराइटी प्वाइंट्स से खुशी और नशे में आगे बढ़ाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • ब्राह्मण जीवन में अलौकिक मौजों का अनुभव करने वाले कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भव
    • ब्राह्मण जीवन मौज की जीवन है लेकिन मौज में रहने का अर्थ यह नहीं कि जो आया वह किया, मस्त रहा।
    • यह अल्पकाल के सुख की मौज वा अल्पकाल के सम्बन्ध-सम्पर्क की मौज सदाकाल की प्रसन्नचित स्थिति से भिन्न है।
    • जो आया वह बोला, जो आया वह किया - हम तो मौज में रहते हैं, ऐसे अल्पकाल के मनमौजी नहीं बनो।
    • सदाकाल की रूहानी अलौकिक मौज में रहो - यही यथार्थ ब्राह्मण जीवन है।
    • मौज के साथ कर्मो की गुह्य गति के ज्ञाता भी बनो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • अहम् और वहम में आने के बजाए सर्व पर रहम करो।