24-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - एकान्त में बैठ पढ़ाई करो तो धारणा बहुत अच्छी होगी, सवेरे-सवेरे उठ कर विचार सागर मंथन करने की आदत डालो''


 

प्रश्नः-

फुल पास होना है तो कौन से ख्याल आने चाहिए, कौन से नहीं आने चाहिए?

उत्तर:-

फुल पास होने के लिए सदा यही ख्याल रहे कि हमें रात-दिन खूब मेहनत करके पढ़ना है। अपनी अवस्था ऐसी ऊंची बनानी है जो बापदादा के दिलतख्त पर बैठ सकें। नींद को जीतने वाला बनना है। खुशी में रहना है। बाकी यह ख्याल कभी नहीं आना चाहिए कि ड्रामा में वा नसीब में जो होगा वह मिल जायेगा। यह ख्याल अलबेला बना देता है।

 

गीत:-तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है.....


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने गीत का अर्थ समझा।
  • बेहद के बाप से अभी हमको बेहद का वर्सा मिल रहा है।
  • बच्चे बाप से फिर विश्व के स्वराज्य का वर्सा पा रहे हैं, जिस विश्व की बादशाही को तुमसे कोई छीन न सके।
  • तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो।
  • वहाँ कोई हदें नहीं रहेंगी।
  • एक बाप से तुम एक ही राजधानी लेते हो।
  • जो एक ही महाराजा महारानी राज्य चलाते हैं।
  • एक बाप फिर एक राजधानी, जिसमें कोई पार्टीशन नहीं।
  • तुम जानते हो भारत में एक ही महाराजा महारानी लक्ष्मी-नारायण की राजधानी थी, सारे विश्व पर राज्य करते थे।
  • उसको अद्वेत राजधानी कहा जाता है, जो एक ने ही स्थापन की है तुम बच्चों द्वारा।
  • फिर तुम बच्चे ही विश्व की राजाई भोगेंगे।
  • तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष के बाद हम यह राजाई लेते हैं।
  • फिर आधाकल्प पूरा होने से हम यह राजाई गँवाते हैं।
  • फिर बाबा आकर राजाई प्राप्त कराते हैं।
  • यह है हार और जीत का खेल।
  • माया से हारे हार है, फिर श्रीमत से तुम रावण पर जीत पाते हो।
  • तुम्हारे में भी कोई बिल्कुल अनन्य निश्चयबुद्धि हैं, जिनको सदैव खुशी रहती है कि हम विश्व के मालिक बनते हैं।
  • भल कितने भी क्रिश्चियन पावरफुल हैं, परन्तु विश्व के मालिक बनें - यह हो नहीं सकता।
  • टुकड़े-टुकड़े पर राज्य है।
  • पहले-पहले एक भारत ही सारे विश्व का मालिक था।
  • देवी देवताओं के सिवाए दूसरा कोई धर्म नहीं था।
  • ऐसा विश्व का मालिक जरूर विश्व का रचयिता ही बनायेगा।
  • देखो, बाबा कैसे बैठ समझाते हैं।
  • तुम भी समझा सकते हो।
  • भारतवासी विश्व के मालिक थे जरूर।
  • विश्व के रचयिता से ही वर्सा मिला होगा।
  • फिर जब राजाई गँवाते हैं, दु:खी होते हैं तो बाप को याद करते हैं।
  • भक्ति मार्ग है ही भगवान को याद करने का मार्ग।
  • कितने प्रकारों से भक्ति दान-पुण्य जप-तप आदि करते हैं।
  • इस पढ़ाई से जो तुमको राजाई मिलती है वह पूरी होने से फिर तुम भगत बन जाते हो।
  • लक्ष्मी-नारायण को भगवान भगवती कहते हैं क्योंकि भगवान से राजाई ली है ना!
  • परन्तु बाप कहते हैं उनको भी तुम भगवान भगवती नहीं कह सकते हो।
  • इनको यह राजधानी जरूर स्वर्ग के रचयिता ने दी होगी परन्तु कैसे दी - यह कोई नहीं जानते हैं।
  • तुम सब बाप के अथवा भगवान के बच्चे हो।
  • अब बाप सबको तो राजाई नहीं देंगे।
  • यह भी ड्रामा बना हुआ है।
  • भारतवासी ही विश्व के मालिक बनते हैं।
  • अभी तो है ही प्रजा का प्रजा पर राज्य।
  • अपने को आपेही पतित भ्रष्टाचारी मानते हैं।
  • इस पतित दुनिया से पार जाने के लिए खिवैया को याद करते हैं कि आकर इस वेश्यालय से शिवालय में ले चलो।
  • एक है निराकार शिवालय, निर्वाणधाम।
  • दूसरा फिर शिवबाबा जो राजधानी स्थापन करते हैं, उनको भी शिवालय कहते हैं।
  • सारी सृष्टि ही शिवालय बन जाती है।
  • तो यह साकारी शिवालय सतयुग में, वह है निराकार शिवालय, निर्वाणधाम में।
  • यह नोट करो।
  • समझाने के लिए बच्चों को प्वाइंट्स बहुत मिलती हैं फिर अच्छी रीति मंथन भी करना चाहिए।
  • जैसे कालेज के बच्चे बचपन में सवेरे-सवेरे उठकर अध्ययन करते हैं।
  • सवेरे क्यों बैठते हैं?
  • क्योंकि आत्मा विश्राम पाकर रिफ्रेश हो जाती है।
  • एकान्त में बैठ पढ़ने से धारणा अच्छी होती है।
  • सवेरे उठने का शौक होना चाहिए।
  • कोई कहते हैं हमारी ड्युटी ऐसी है सवेरे जाना पड़ता है।
  • अच्छा शाम को बैठो।
  • शाम के समय भी कहते हैं देवतायें चक्र लगाते हैं।
  • क्वीन विक्टोरिया का वजीर रात को बाहर बत्ती के नीचे जाकर पढ़ता था।
  • बहुत गरीब था।
  • पढ़कर वजीर बन गया। सारा मदार पढ़ाई पर है।
  • तुमको तो पढ़ाने वाला परमपिता परमात्मा है।
  • तुमको यह ब्रह्मा नहीं पढ़ाता, न श्रीकृष्ण।
  • निराकार ज्ञान का सागर पढ़ाते हैं।
  • उनको ही रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान है।
  • सतयुग त्रेता आदि फिर त्रेता का अन्त द्वापर की आदि उनको मध्य कहा जाता है।
  • यह सब बातें बाबा समझाते हैं।
  • ब्रह्मा सो विष्णु बन 84 जन्म भोगते हैं, फिर ब्रह्मा बनते हैं।
  • ब्रह्मा ने 84 जन्म लिए वा लक्ष्मी-नारायण ने 84 जन्म लिए।
  • बात एक हो जाती है।
  • इस समय तुम ब्राह्मण वंशावली हो फिर तुम विष्णु वंशावली बनेंगे।
  • फिर गिरते-गिरते तुम शूद्र वंशावली बनेंगे।
  • यह सब बातें बाप ही बैठ समझाते हैं।
  • तुम जानते हो हम आये हैं बेहद के बाप से श्रीमत पर चल विश्व के महाराजा महारानी बनने के लिए।
  • प्रजा भी विश्व की मालिक ठहरी।
  • इस पढ़ाई में बड़ी होशियारी चाहिए।
  • जितना पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • यह बेहद की पढ़ाई है, सबको पढ़ना है।
  • सब एक से ही पढ़ते हैं।
  • फिर नम्बरवार कोई तो अच्छी धारणा करते हैं, कोई को जरा भी धारणा नहीं होती है।
  • नम्बरवार सब चाहिए।
  • राजाओं के आगे दास दासियां भी चाहिए।
  • दास दासियां तो महलों में रहते हैं।
  • प्रजा तो बाहर रहती है।
  • वहाँ महल बहुत बड़े-बड़े होते हैं।
  • जमीन बहुत है, मनुष्य थोड़े हैं।
  • अनाज भी बहुत होता है।
  • सब कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।
  • पैसे के लिए कभी दु:खी नहीं होते।
  • पैराडाइज नाम कितना ऊंचा है।
  • एक की मत पर चलने से तुम विश्व के मालिक बन जाते हो।
  • वहाँ कहेंगे सतयुगी सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का राज्य फिर बच्चे गद्दी पर बैठेंगे।
  • उनकी माला बनती है।
  • 8 पास विद ऑनर्स होते हैं। 9 रत्नों की अंगूठी भी पहनते हैं।
  • बीच में बाबा, बाकी हैं 8 रत्न, 9 रत्नों की अंगूठी बहुत पहनते हैं।
  • यह देवताओं की निशानी समझते हैं।
  • अर्थ तो समझते नहीं हैं कि वह 9 रत्न कौन थे?
  • माला भी 9 रत्न की बनती है।
  • क्रिश्चियन लोग बांह में माला डालते हैं।
  • 8 रत्न और ऊपर फूल होता है।
  • यह है मुक्ति वालों की माला।
  • बाकी जीवनमुक्ति अथवा प्रवृत्ति मार्ग वालों की माला में फूल के साथ युगल दाना भी जरूर होगा।
  • अर्थ भी समझाना है ना, शायद वह पोप की भी नम्बरवार माला बनाते हों।
  • इस माला का तो उन्हों को मालूम ही नहीं है।
  • वास्तव में माला तो यही है, जो सभी फेरते हैं।
  • शिवबाबा और तुम बच्चे जो मेहनत करते हो।
  • अब अगर तुम किसको भी बैठ समझाओ तो माला किसकी बनी हुई है तो झट समझ जायेंगे।
  • तुम्हारा प्रोजेक्टर विलायत तक भी जायेगा फिर समझाने वाली जोड़ी भी चाहिए।
  • समझेंगे यह तो प्रवृत्ति मार्ग है।
  • बाप का परिचय सबको देना है और सृष्टि चक्र को भी जानना है, जो चक्र को नहीं जानते तो उन्हें क्या कहेंगे!
  • सतयुग में तुम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण थे.. अभी फिर बनते हो।
  • तुम यह पढ़ाई पढ़कर इतने ऊंचे बने हो।
  • राधे कृष्ण अलग-अलग राजधानी के थे।
  • स्वयंवर के बाद नाम लक्ष्मी-नारायण पड़ा।
  • लक्ष्मी-नारायण का कोई बचपन का चित्र नहीं दिखाते हैं।
  • सतयुग में तो किसकी स्त्री अकाले मरती नहीं।
  • सब पूरे टाइम पर शरीर छोड़ते हैं।
  • रोने की दरकार नहीं।
  • नाम ही है पैराडाइज।
  • इस समय यह अमेरिका, रशिया आदि जो भी हैं, सबमें है माया का भभका।
  • यह एरोप्लेन, मोटरें आदि सब बाबा के होते ही निकली हैं।
  • 100 वर्ष में यह सब हुए हैं।
  • यह है मृगतृष्णा मिसल राज्य, इनको माया का पाम्प कहा जाता है।
  • साइंस का पिछाड़ी का भभका है - अल्पकाल के लिए।
  • यह सब खत्म हो जायेंगे।
  • फिर स्वर्ग में काम आयेंगे।
  • माया के पाम्प से खुशी भी मनायेंगे तो विनाश भी होगा।
  • अब तुम श्रीमत से राजाई ले रहे हो।
  • वह राजाई हमसे कोई भी छीन नहीं सकता।
  • वहाँ कोई उपद्रव नहीं होगा क्योंकि वहाँ माया ही नहीं।
  • बाप समझाते हैं बच्चे अच्छी तरह पढ़ो।
  • परन्तु साथ-साथ बाबा यह भी जानते हैं कि कल्प पहले मुआफिक ही सबको पढ़ना है।
  • जो सीन कल्प पहले चली है, वही अब चल रही है।
  • नर्क को स्वर्ग बनाने का कल्याणकारी पार्ट कल्प पहले मुआफिक ही चल रहा है।
  • बाकी जो इस धर्म का नहीं होगा, उसको यह ज्ञान बुद्धि में बैठेगा ही नहीं।
  • बाप टीचर है तो बच्चों को भी टीचर बनना पड़े।
  • विलायत तक यह पढ़ाने के लिए बच्चे गये हैं।
  • इन्टरप्रेटर भी साथ में होशियार चाहिए।
  • मेहनत तो करनी है।
  • तुम ईश्वरीय बच्चों की चलन बहुत ऊंची चाहिए।
  • सतयुग में चलन होती ही ऊंची और रॉयल है।
  • यहाँ तो तुमको बकरी से शेरनी, बन्दर से देवता बनाया जाता है।
  • तो हर बात में निरहंकारीपना चाहिए।
  • अपने अहंकार को तोड़ना चाहिए।
  • याद रखना चाहिए “जैसा कर्म हम करेंगे हमको देख और करेंगे।'' अपने हाथ से बर्तन साफ करेंगे तो सब कहेंगे कितने निरहंकारी हैं।
  • सब कुछ हाथ से करते हैं तो और ही जास्ती मान होगा।
  • कहाँ अहंकार आने से दिल से उतर जाते हैं।
  • जब तक ऊंची अवस्था नहीं बनी तो दिल पर नहीं चढ़ेंगे तो तख्त पर बैठेंगे कैसे!
  • नम्बरवार मर्तबे तो होते हैं ना!
  • जिनके पास बहुत धन है तो फर्स्टक्लास महल बनाते हैं।
  • गरीब झोपड़ी बनायेंगे।
  • इस कारण अच्छी तरह से पढ़कर फुल पास हो, अच्छा पद पाना चाहिए।
  • ऐसे नहीं कि जो ड्रामा में होगा अथवा जो नसीब में होगा।
  • यह ख्याल आने से ही नापास हो जायेंगे।
  • नसीब को बढ़ाना है।
  • रात दिन खूब मेहनत कर पढ़ना है।
  • नींद को जीतने वाला बनना है।
  • रात को विचार सागर मंथन करने से तुमको बहुत मज़ा आयेगा।
  • बाबा को कोई बतलाते नहीं हैं कि बाबा हम ऐसे विचार सागर मंथन करते हैं।
  • तो बाबा समझते हैं कि कोई उठता ही नहीं है।
  • शायद इनका ही पार्ट है विचार सागर मंथन करने का।
  • नम्बरवन बच्चा तो यही है ना!
  • बाबा अनुभव बताते हैं, उठकर याद में बैठो।
  • ऐसे ऐसे ख्याल किये जाते हैं - यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है।
  • ऊंचे ते ऊंचा बाबा है फिर सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
  • फिर ब्रह्मा क्या है!
  • विष्णु क्या है!
  • ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन करना चाहिए।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) जो कर्म हम करेंगे, हमको देख और करेंगे, इसलिए हर कर्म पर ध्यान देना है।
  • बहुत-बहुत निर्माण-चित, निरहंकारी बनना है।
  • अहंकार को तोड़ देना है।
  • 2) अपना नसीब (तकदीर) ऊंचा बनाने के लिए अच्छी रीति पढ़ाई पढ़नी है।
  • सवेरे-सवेरे उठकर बाप को याद करने का शौक रखना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • त्रिकालदर्शी स्थिति द्वारा मूंझने की परिस्थितियों को मौज में परिवर्तन करने वाले कर्मयोगी भव
    • जो बच्चे त्रिकालदर्शी हैं वे कभी किसी बात में मूंझ नहीं सकते क्योंकि उनके सामने तीनों काल क्लीयर हैं।
    • जब मंजिल और रास्ता क्लीयर होता है तो कोई मूंझता नहीं।
    • त्रिकालदर्शी आत्मायें कभी कोई बात में सिवाए मौज के और कोई अनुभव नहीं करती।
    • चाहे परिस्थिति मुंझाने की हो लेकिन ब्राह्मण आत्मा उसे भी मौज में बदल देगी क्योंकि अनगिनत बार वह पार्ट बजाया है।
    • यह स्मृति कर्म-योगी बना देती है। वह हर काम मौज से करते हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सर्व का सम्मान प्राप्त करना है तो हर एक को सम्मान दो।