22-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - अगर बाप से मिलन मनाना है, पावन बनना है तो सच्चे-सच्चे रूहानी आशिक बनो, एक बाप के सिवाए किसी को भी याद न करो''


 

प्रश्नः-

ब्राह्मण जो देवता बनते हैं, उन ब्राह्मणों का पद देवताओं से भी ऊंचा है, कैसे?

उत्तर:-

ब्राह्मण इस समय सच्चे-सच्चे रूहानी सोशल वर्कर हैं।

मनुष्यों की रूह को पवित्रता, योग का इन्जेक्शन लगाते हैं।

भारत के डूबे हुए बेड़े को श्रीमत पर पार लगाते हैं।

नर्कवासी भारत को स्वर्गवासी बनाते हैं।

ऐसी सेवा देवतायें नहीं करेंगे।

वह तो इस समय के सेवा की प्रालब्ध भोगते हैं, इसलिए ब्राह्मण देवताओं से भी ऊंच हैं।

 

गीत:-हमारे तीर्थ न्यारे हैं....


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने गीत सुना।
  • हम जो जीव आत्मायें हैं।
  • आत्मा और शरीर, आत्मा को आत्मा और शरीर को जीव कहा जाता है।
  • आत्मायें आती हैं - परमधाम से।
  • यहाँ आकर शरीर धारण करती हैं।
  • यह कर्मक्षेत्र है जहाँ हम आकर पार्ट बजाते हैं।
  • बाप कहते हैं मुझे भी पार्ट बजाना है।
  • मैं तो पतितों को पावन बनाने आया हूँ।
  • इस समय इस पतित दुनिया में एक भी पावन नहीं हैं।
  • पावन दुनिया में फिर एक भी पतित नहीं रहेगा।
  • सतयुग त्रेता पावन, द्वापर कलियुग पतित।
  • पतित-पावन बाप ही आकर सबको शिक्षा देते हैं हे आत्मायें तुमने इस शरीर के साथ 84 जन्मों का पार्ट पूरा किया।
  • उसमें आधा समय सुख, आधा समय दु:ख पाया।
  • दु:ख भी धीरे-धीरे शुरू होता है।
  • अभी बहुत दु:ख है।
  • अजुन बहुत आपदायें आने वाली हैं।
  • इस समय सब भ्रष्टाचारी हैं।
  • कोई का भी योग बाप के साथ नहीं है।
  • आत्मा अपने को भूल गई है।
  • अब बाप बैठ समझाते हैं जैसे आशिक माशूक होते हैं ना!
  • जैसे देखो बच्ची और बच्चा है, एक दो को बिल्कुल जानते भी नहीं हैं।
  • दोनों की सगाई होने से फिर आशिक माशूक बन जाते हैं।
  • वह सगाई होती है विकार के लिए।
  • विकारी पतित आशिक माशूक कहेंगे।
  • दूसरे आशिक माशूक होते हैं जो सिर्फ चेहरे पर आशिक होते हैं लैला मजनू आदि एक दो की शक्ल देखते रहते हैं।
  • वह विकार में नहीं जाते।
  • काम करते-करते माशूक सामने खड़ा हो जायेगा।
  • जैसे मीरा के सामने कृष्ण खड़ा हो जाता था।
  • अभी यह है परमपिता परमात्मा माशूक, जिसकी हम सब आत्मायें आशिक बनी हैं।
  • सब उनको याद करते हैं।
  • आशिक बहुत हैं - माशूक एक है सभी का।
  • सभी मनुष्य मात्र उस एक के आशिक हैं।
  • भक्ति करते हैं भगवान से मिलने के लिए।
  • भगत होते हैं आशिक, भगवान हुआ माशूक।
  • अब मिलन कैसे हो?
  • तो सबका जो माशूक परमात्मा है वह आते हैं।
  • अब आये हैं और कहते हैं अगर तुम बच्चों को मेरे से मिलना है तो निरन्तर मुझ एक को याद करो।
  • मेरे साथ योग लगाकर मेरे ही आशिक बनो।
  • इस रावणराज्य में दु:ख ही दु:ख है।
  • अभी इनका विनाश होना है।
  • मैं आया हूँ तुमको पावन बनाने।
  • तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है, इसलिए याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
  • धर्मराज के डन्डों से भी छूट जायेंगे।
  • वह निराकार बाप कहते हैं मेरे लाडले बच्चे, अभी कयामत का समय है, सिर पर पापों का बोझा है।
  • अभी पुण्य आत्मा बनना है।
  • योग से ही विकर्म विनाश होंगे और पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
  • बाप कहते हैं 63 जन्म तुम रावणराज्य में पाप आत्मा थे।
  • अभी तुमको पापात्मा से पुण्यात्मा बनाते हैं।
  • देवतायें पुण्य आत्मा हैं।
  • पाप आत्मायें ही पुण्य आत्माओं का पूजन करते हैं।
  • अभी यह है अन्तिम जन्म, मरना तो सबको है तो क्यों न वर्सा ले लेवें!
  • क्यों न पुण्य आत्मा बनें!
  • सबसे बड़ा पाप है विकार में जाना।
  • विकारी को पतित, निर्विकारी को पावन कहा जाता है।
  • संन्यासी भी पतित थे तब तो पावन होने के लिए घरबार छोड़ते हैं।
  • फिर जब पावन बनते हैं तो सब उनको माथा झुकाते हैं।
  • पहले जब पतित थे तो कोई झुकते नहीं थे।
  • यहाँ तो माथा आदि टेकने की बात नहीं।
  • बाप बच्चों को श्रीमत देते हैं अपने को आत्मा समझो, हम यहाँ आये हैं पार्ट बजाने फिर बाप के पास जाना है।
  • अभी जिस्मानी तीर्थ यात्रायें सब बन्द होनी हैं।
  • तुमको वापिस घर शान्तिधाम जाना है।
  • जब यात्रा पर जाते हैं तो यात्रा के समय पवित्र रहते हैं।
  • फिर घर में आकर पतित बनते हैं।
  • वह हुई अल्पकाल के लिए जिस्मानी यात्रा।
  • अभी तुमको रूहानी यात्रा सिखलाते हैं।
  • बाप कहते हैं - मेरी श्रीमत पर चलने से तुम आधाकल्प अपवित्र नहीं बनेंगे।
  • सतयुग में राधे कृष्ण की सगाई कोई पतित होने के लिए थोड़ेही होती है।
  • वहाँ तो पावन हैं।
  • योगबल से बच्चे पैदा होते हैं।
  • जैसे योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो।
  • वहाँ बच्चे कभी शैतानी नहीं करते क्योंकि वहाँ माया होती नहीं।
  • बच्चे अच्छे कर्म ही करेंगे।
  • वह कर्म-अकर्म हो जायेंगे।
  • यहाँ रावणराज्य में तुम्हारा कर्म विकर्म बन जाता है।
  • यह खेल बना हुआ है।
  • तुम सब कुमार कुमारियां आपस में भाई बहिन हो।
  • शिवबाबा के पोत्रे हो गये।
  • वर्सा दादे से मिलता है - स्वर्ग की बादशाही का।
  • अब बाप आकर मेल फीमेल दोनों का योग अपने साथ लगाते हैं।
  • कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहकर पवित्र बनो।
  • यह बहादुरी दिखाओ।
  • इकट्ठे रहते काम अग्नि न लगे. ऐसे रहकर दिखाया तो बहुत ऊंच पद पायेंगे।
  • भीष्म पितामह जैसा ब्रह्मचारी बनना है, मेहनत है।
  • लोग समझते हैं यह बहुत मुश्किल है।
  • परन्तु यह युक्ति तो बाप ही सिखलाते हैं।
  • शिव भगवानुवाच - कृष्ण कोई भगवान नहीं है।
  • वो तो दैवीगुण वाला मनुष्य है।
  • ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी सूक्ष्मवतन-वासी हैं।
  • ब्रह्मा का पद विष्णु से ऊंचा है।
  • जैसे ब्राह्मणों का पद देवताओं से भी ऊंचा है क्योंकि इस समय तुम रूहानी सोशल वर्कर हो।
  • मनुष्य की रूह को पवित्रता, योग का इन्जेक्शन लगाते हो।
  • तुम ही इस भारत को स्वर्ग बनाते हो, इसलिए बनाने वालों की महिमा जास्ती है।
  • भल तुम ही देवता बनते हो परन्तु इस समय तुम ब्राह्मण बन सेवा करते हो, देवता रूप में सेवा नहीं करेंगे।
  • वहाँ तो तुम राज्य करेंगे।
  • तुम्हारी सेवा है नर्कवासी भारत को स्वर्गवासी बनाना, इसलिए वन्दे मातरम् कहते हैं।
  • शिव शक्ति सेना।
  • मम्मा की शेर पर सवारी दिखाते हैं, परन्तु ऐसे है नहीं।
  • तुम शेरणियां हो क्योंकि तुम 5 विकारों पर जीत पाते हो।
  • भारत को स्वर्ग बनाते हो।
  • यह ऊंच सेवा हुई ना इसलिए शक्तियों के मन्दिर बहुत हैं।
  • मुख्य है एक।
  • शक्ति देने वाला है शिवबाबा।
  • महिमा सारी उनकी है।
  • फिर जो जो मददगार हैं उन्हों का भी नाम है।
  • मेल्स पाण्डवों को भी महारथी कहा जाता है।
  • मेल फीमेल दोनों चाहिए।
  • प्रवृत्ति मार्ग है ना।
  • कभी भी कोई विकारी गुरू नहीं करना चाहिए।
  • गृहस्थी को गुरू करना तो कोई फायदा ही नहीं है।
  • गृहस्थी अथवा पतित मिला पतित को, वह कभी भी पावन बना न सके।
  • संन्यासियों के फालोअर्स अपने को कहलाते हैं परन्तु खुद संन्यासी नहीं बने तो यह भी झूठ हुआ।
  • आजकल तो ठगी बहुत है।
  • गृहस्थी गुरू बनकर बैठ जाते हैं, पवित्रता की बात उठाते नहीं।
  • यहाँ तो बाप कहते हैं पवित्र बनो तो बच्चा कहलाओ।
  • पावन बनने बिगर तो राजाई नहीं मिलेगी।
  • तो बाप से योग जरूर लगाना है।
  • फिर जो जिसको मानने वाले हैं, समझो कोई गुरुनानक को मानने वाला होगा तो उस घराने में जायेगा।
  • स्वर्ग में वह आयेंगे जो इस समय शिक्षा लेकर पवित्र बनते हैं।
  • गुरूनानक को कोई देवता नहीं कहेंगे।
  • देवता होते हैं सतयुग में।
  • वहाँ सुख बहुत है, और धर्म वालों को स्वर्ग के सुख का मालूम नहीं।
  • स्वर्ग में होते ही हैं भारतवासी।
  • बाकी तो बाद में आते हैं।
  • जो जो देवता बनने होंगे वही बनेंगे।
  • इस समय पूजते हैं देवताओं को, लक्ष्मी-नारायण को और अपना धर्म हिन्दू कह देते हैं, क्योंकि पतित बन गये हैं तो अपने पवित्र धर्म को भूल हिन्दू कहलाते हैं।
  • अरे तुम देवी-देवता धर्म के हो फिर अपने को हिन्दू क्यों कहलाते हो!
  • हिन्दू कोई धर्म नहीं है, परन्तु गिर पड़े हैं।
  • देवतायें तो बहुत थोड़े होते हैं, जो आकर यहाँ शिक्षा लेते हैं - वही मनुष्य से देवता बनते हैं।
  • थोड़ी शिक्षा लेंगे तो साधारण प्रजा में आयेंगे।
  • बाप का बनने से विजय माला में आयेंगे।
  • अब तो रूहानी आशिक माशूक बनना है।
  • सतयुग में जिस्मानी बनेंगे, कलियुग में भी जिस्मानी।
  • अब संगमयुग पर रूहानी आशिक बनना है एक माशूक का।
  • बाप कहते हैं मुझे याद करते रहो।
  • विकार में जाने से सौ गुणा दण्ड पड़ जायेगा, गिर जाते हैं तो लिखना चाहिए कि बाबा हमने काला मुँह कर दिया।
  • बाप कहते हैं बच्चे अब तुमको गोरा बनना है।
  • कृष्ण को श्याम-सुन्दर कहते हैं, उनकी आत्मा इस समय काली हो गई है।
  • फिर ज्ञान चिता पर बैठ गोरी बन जायेगी।
  • 21 जन्म के लिए सुन्दर बन जायेगी फिर श्याम बनेगी।
  • यह श्याम और सुन्दर का खेल बना हुआ है।
  • श्याम से सुन्दर बनने में एक सेकेण्ड, सुन्दर से श्याम बनने में आधाकल्प लग जाता है।
  • आधाकल्प श्याम तो आधाकल्प सुन्दर।
  • एक मुसाफिर है शिव-बाबा बाकी सब सजनियां हो गई काली।
  • हसीन (सुन्दर) बनाने के लिए तुमको योग सिखलाते हैं।
  • सतयुग में फर्स्ट-क्लास नेचरल ब्युटी रहती है क्योंकि 5 तत्व सतोप्रधान होने से शरीर भी सुन्दर बनते हैं।
  • यहाँ तो आर्टीफिशल ब्युटी है।
  • पवित्रता तो बहुत अच्छी है।
  • बाबा के पास बहुत आते हैं, पवित्रता की प्रतिज्ञा करते हैं परन्तु कोई फेल हो जाते हैं, कोई पास हो जाते हैं।
  • यह है ईश्वरीय मिशन।
  • डूबे हुए भारत को सैलवेज करना।
  • भारत का बेड़ा रावण ने डुबोया, राम आकर पार करते हैं।
  • तुम्हारी बुद्धि में है कि हम स्वर्ग में जाकर हीरे जवाहरों के महल बनायेंगे।
  • यह शरीर छोड़ प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे।
  • जो बच्चे होंगे उन्हों के ही ऐसे ख्यालात चलेंगे।
  • यह है ईश्वरीय दरबार अथवा ईश्वरीय फैमली।
  • गाते हैं तुम मात पिता.. हम बालक तेरे, तो फैमली हो गई ना!
  • ईश्वर है दादा, ब्रह्मा है बाबा।
  • तुम हो भाई बहिन।
  • स्वर्ग का वर्सा तुम दादे से लेते हो, फिर तुम गँवाते हो फिर बाबा देने आते हैं।
  • तुम प्रैक्टिकल में बाप के बने हो वर्सा लेने के लिए।
  • ब्रह्मा के बच्चे शिव के पोत्रे हो प्रैक्टिकल में।
  • तो इनको ईश्वरीय दरबार भी कहते हैं, ईश्वरीय कुटुम्ब भी कह सकते हैं।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) ज्ञान चिता पर बैठ सम्पूर्ण पावन (गोरा) बनना है।
  • पवित्रता ही नम्बरवन ब्युटी है, इस ब्युटी को धारण कर बाप का बच्चा कहलाने का हकदार बनना है।
  • 2) इस कयामत के समय में सिर पर जो पापों का बोझा है, उसे एक बाप की याद से उतारना है।
  • पुण्य आत्मा बनने के लिए श्रेष्ठ कर्म करना है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा कम्बाइन्ड सेवा करने वाले सफलता मूर्त भव
    • जैसे शरीर और आत्मा कम्बाइन्ड है, भविष्य विष्णु स्वरूप कम्बाइन्ड है, ऐसे बाप और हम आत्मा कम्बाइन्ड हैं इस स्वरूप की स्मृति में रहकर स्व सेवा और सर्व आत्माओं की सेवा साथ-साथ करो तो सफलता मूर्त बन जायेंगे।
    • ऐसे कभी नहीं कहो कि सेवा में बहुत बिजी थे इसलिए स्व की स्थिति का चार्ट ढीला हो गया।
    • ऐसे नहीं जाओ सेवा करने और लौटो तो कहो माया आ गई, मूड आफ हो गया, डिस्टर्ब हो गये।
    • सेवा में वृद्धि का साधन ही है स्व और सर्व की सेवा कम्बाइन्ड हो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • हद के इच्छाओं की अविद्या होना ही महान सम्पत्तिवान बनना है।
    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
    • निराकारी दुनिया और साकारी दुनिया का विस्तार
    • स्वयं परमात्मा द्वारा हम जान चुके हैं कि एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है साकारी दुनिया। अब निराकारी दुनिया को कहते हैं ब्रह्माण्ड अर्थात् अखण्ड ज्योति महतत्व, जो हम आत्माओं का और परमपिता परमात्मा का निवास स्थान है। उस निराकार दुनिया से ही परमात्मा हम आत्माओं को पार्ट बजाने के लिये साकार सृष्टि में भेजते हैं। जैसे ब्रह्माण्ड में आत्माओं का वृक्ष है, वैसे साकार सृष्टि में आत्माओं का शरीर सहित वृक्ष है। जैसे जड़ झाड़ का मिसाल देते हैं, कैसे झाड़ की जड़ें नीचे रहती हैं, वैसे मनुष्य सृष्टि को भी उल्टा झाड़ कहते हैं क्योंकि मनुष्य सृष्टि के झाड़ की जड़ें फिर ऊपर निराकारी दुनिया में हैं। वहाँ भी हर एक धर्म का सेक्शन अलग-अलग है, उस दुनिया में कोई सूर्य चांद का प्रकाश नहीं है, बल्कि वो दुनिया तो स्वयं अखण्ड ज्योति तत्व है जो बिल्कुल स्थूल तत्वों से अति सूक्ष्म है। जैसे साकार सृष्टि पाँच तत्वों की बनी हुई है आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी, उसमें भी पृथ्वी है स्थूल तत्व, उससे सूक्ष्म है जल, उनसे सूक्ष्म तत्व है अग्नि, उनसे फिर सूक्ष्म है वायु, फिर है आकाश तत्व। अब इन पाँच तत्वों से भी अति सूक्ष्म यह अखण्ड ज्योति महतत्व है, जो इस स्थूल सृष्टि से उस पार निराकार दुनिया है, जहाँ फिर हम आत्मायें अण्डे मिसल (ज्योति बिन्दु रूप में) अपने परमपिता परमात्मा के साथ रहते हैं तो ब्रह्माण्ड से अलग है यह साकार सृष्टि।