21-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - तुम्हारे पास जो कुछ है, उसे ईश्वरीय सेवा में लगाकर सफल करो, कॉलेज कम हॉस्पिटल खोलते जाओ''


 

प्रश्नः-

तुम बच्चों का शिवबाबा से कौन सा एक सम्बन्ध बहुत रमणीक और गुह्य है?

उत्तर:-

तुम कहते हो शिवबाबा हमारा बाप भी है तो बच्चा भी है, परन्तु बाप सो फिर बच्चा कैसे है, यह बहुत रमणीक और गुह्य बात है।

तुम उन्हें बालक भी समझते हो क्योंकि उन पर पूरा बलिहार जाते हो।

सारा वर्सा पहले तुम उनको देते हो।

जो शिवबाबा को अपना वारिस बनाते हैं, वही 21 जन्मों का वर्सा पाते हैं।

यह बच्चा (शिवबाबा) कहता है कि मुझे तुम्हारा धन नहीं चाहिए।

तुम सिर्फ श्रीमत पर चलो तो तुम्हें बादशाही मिल जायेगी।

 

गीत:-माता ओ माता...


  • ओम् शान्ति।
  • ओम् शान्ति, किसने कहा?
  • शरीर ने कहा वा आत्मा ने कहा?
  • यह बच्चों को अच्छी रीति समझना चाहिए।
  • एक है आत्मा, दूसरा है शरीर।
  • आत्मा तो अविनाशी है।
  • यह आत्मा स्वयं अपना परिचय देती है कि मैं भी आत्मा बिन्दू स्वरूप हूँ।
  • जैसे परमात्मा बाप अपना परिचय देते हैं कि मुझे परमात्मा क्यों कहते हैं?
  • क्योंकि मैं सबका बाप हूँ।
  • सभी कहते हैं कि हे परमपिता परमात्मा, हे भगवान, यह सब समझने की बातें हैं।
  • अन्धश्रद्धा की बात नहीं।
  • जैसे और जो सुनाया वह सत नहीं, मनुष्य जो ईश्वर के लिए बतलाते हैं वह सब असत्य है।
  • एक ईश्वर ही सत है।
  • वह सत बतलायेगा।
  • बाकी सभी मनुष्य-मात्र उनके लिए झूठ बतलायेंगे इसलिए बाप को सत (ट्रूथ) कहा जाता है, सचखण्ड स्थापन करने वाला।
  • भारत ही सचखण्ड था।
  • बाप कहते हैं मैंने ही सचखण्ड बनाया था।
  • उस समय भारत के सिवाए और कोई खण्ड नहीं था।
  • यह सब सत बाप ही बतला सकते हैं।
  • ऋषि, मुनि आगे वाले सब कहते गये कि हम ईश्वर रचयिता और रचना के आदि मध्य अन्त को नहीं जानते।
  • नेती-नेती करते गये।
  • कोई भी परिचय दे न सके।
  • बाप का परिचय बाप ही देते हैं।
  • मैं तुम्हारा बाप हूँ।
  • मैं ही आकर नई दुनिया की स्थापना कर पुरानी दुनिया का विनाश कराता हूँ - शंकर द्वारा।
  • नई सृष्टि ब्रह्मा द्वारा रचता हूँ।
  • मैं ही तुमको अपना सत्य परिचय देता हूँ।
  • बाकी जो मेरे लिए तुमको सुनायेंगे वह झूठ ही सुनायेंगे।
  • जो होकर गये हैं, उन्हें कोई नहीं जानते।
  • सतयुगी लक्ष्मी-नारायण ऊंचे ते ऊंचे थे।
  • नई दुनिया जो ऊंची थी, उसके मालिक थे।
  • बाकी इतनी ऊंची दुनिया किसने बनायी और उसका मालिक किसने बनाया?
  • यह कोई नहीं जानते।
  • बाप जानते हैं जिन्होंने स्वर्ग की राजाई का वर्सा लिया होगा, उनकी बुद्धि में ही यह बातें बैठेंगी।
  • गाते भी हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे, तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे।
  • यह किसके लिए गाते हैं?
  • लौकिक के लिए या पारलौकिक के लिए?
  • लौकिक की तो यह महिमा हो न सके।
  • सतयुग में भी यह महिमा किसकी हो न सके।
  • तुम यहाँ आये हो उस मात पिता से 21 जन्मों के सुख घनेरे का वर्सा लेने, राज्य-भाग्य का वर्सा लेने।
  • भगवान है ही रचयिता तो उनके साथ माता भी होगी ना।
  • यहाँ तुम बच्चे कहते हो हम मात-पिता के पास आये हैं।
  • यहाँ कोई गुरू गोसाई नहीं है।
  • बाप कहते हैं तुम मेरे से फिर से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो।
  • सतयुग में लक्ष्मी-नारायण ही राज्य करते थे।
  • श्रीकृष्ण को सब प्यार करते हैं, भला राधे को क्यों नहीं करते?
  • लक्ष्मी-नारायण छोटेपन में कौन हैं?
  • यह कोई नहीं जानते।
  • लोग समझते हैं यह द्वापर युग में हुए हैं।
  • माया रावण ने बिल्कुल तुच्छ बुद्धि बना दिया है।
  • तुम भी पहले पत्थरबुद्धि थे।
  • बाबा ने तुमको पारसबुद्धि बनाया है।
  • पारसबुद्धि बनाने वाला एक बाप ही है।
  • स्वर्ग में सोने के महल होंगे।
  • यहाँ सोना तो क्या तांबा भी नहीं मिलता।
  • पैसे ताम्बे के भी नहीं बनाते।
  • वहाँ तो ताम्बे की कोई कीमत नहीं।
  • यह जो गाया हुआ है, किनकी दबी रही धूल में, किनकी राजा खाए, वह फिर होना है जरूर।
  • बरोबर आग लगी थी।
  • विनाश हुआ था सो फिर होना है जरूर 5 हजार वर्ष पूर्व समान फिर से दैवी स्वराज्य स्थापन हो रहा है।
  • तुम बच्चों को राजाई देता हूँ, अब जितना जो पढ़े।
  • विचार करना चाहिए कि यह सतयुग में लक्ष्मी-नारायण राजा रानी तथा प्रजा कहाँ से आये?
  • उन्होंने राज्य कहाँ से लिया?
  • एक दो से लेते हैं वा सूर्यवंशियों से चन्द्रवंशियों ने लिया!
  • चन्द्रवंशियों से फिर विकारी राजायें लेते हैं, राजाओं से फिर कांग्रेस सरकार ने लिया।
  • अब तो कोई राजाई नहीं है।
  • लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे ना - 8 गद्दियां चलीं।
  • त्रेता में सीताराम का राज्य चला।
  • फिर माया का राज्य शुरू हुआ।
  • विकारी राजायें, निर्विकारी राजाओं के मन्दिर बनाकर पूजा करने लगे।
  • पूज्य थे वही पुजारी बनें।
  • अभी तो विकारी राजायें भी नहीं हैं।
  • अब फिर नई दुनिया की हिस्ट्री रिपीट होगी।
  • नई दुनिया के लिए बाप ने तुमको राजयोग सिखलाया था।
  • बेहद के बाप से वर्सा लेना है।
  • जो इम्तहान पास करेंगे वही कल्प-कल्प ऊंच पद पायेंगे।
  • यह है पढ़ाई, गीता पाठशाला।
  • वास्तव में इनको गॉड फादरली युनिवर्सिटी कहना चाहिए क्योंकि इनसे ही भारत स्वर्ग बनता है।
  • परन्तु इस बात को सभी समझते नहीं हैं।
  • कुछ देरी है।
  • आगे चलकर प्रभाव निकलेगा।
  • यह सब शिवबाबा ही समझाते हैं।
  • शिवबाबा कहें या शिव बालक कहें?
  • शिवबाबा भी है तो माँ भी है।
  • अगर शिव भगवान माँ न होती तो तुम ऐसे क्यों पुकारते - तुम मात-पिता हम बालक तेरे।
  • बुद्धि काम करती है।
  • शिव भगवान बाप भी है तो माँ भी है।
  • अब बताओ शिव को माँ है?
  • शिव तुम्हारा बच्चा है?
  • जो कहते हैं शिव हमारा बाप भी है, बच्चा भी है वह हाथ उठायें!
  • यह बहुत रमणीक और गुह्य बात है।
  • बाप सो फिर बच्चा कैसे हो सकता है?
  • वास्तव में कृष्ण ने तो गीता सुनाई नहीं।
  • वह तो माँ बाप का एक ही बच्चा था।
  • सतयुग में तो मटकी आदि फोड़ने की बात नहीं है।
  • गीता सुनाई है शिव ने।
  • उनको बालक भी समझते हैं क्योंकि उन पर बलिहार भी जाते हैं।
  • सारा वर्सा उनको देते हैं।
  • तुम गाते भी थे शिवबाबा आप आयेंगे तो हम बलिहार जायेंगे।
  • अब बाप कहते हैं तुम मुझे वारिस बनायेंगे तो मैं तुमको 21 जन्मों के लिए वारिस बनाऊंगा।
  • लौकिक बच्चा तुमसे लेगा, देगा कुछ भी नहीं।
  • यह तो फिर देते देखो कितना हैं।
  • हाँ अपने बच्चों को भी भल सम्भालो परन्तु श्रीमत पर चलो।
  • इस समय के बच्चे बाप के धन से पाप ही करेंगे।
  • यह बच्चा कहता है - मुझे तुम्हारा धन क्या करना है।
  • मैं तो तुमको बादशाही देने आया हूँ, सिर्फ श्रीमत पर चलो।
  • योग से 21 जन्मों के लिए तन्दरुस्ती, तो पढ़ाई से राजाई मिलेगी।
  • ऐसी कॉलेज कम हॉस्पिटल खोलो।
  • शिवबाबा तो दाता है, मैं लेकर क्या करूँगा!
  • हाँ, युक्ति बताते हैं कि ईश्वर अर्थ सेवा में लगाओ।
  • श्रीमत पर चलो।
  • श्रीकृष्ण के अर्थ अर्पण करते हैं, वह तो प्रिन्स था, वह कोई भूखा थोड़ेही था।
  • शिवबाबा तुमको बदले में बहुत कुछ देता है।
  • भगवान भक्ति का फल देते हैं।
  • वह है दु:ख हर्ता सुख कर्ता।
  • तुम्हारी सद्गति करने वाला और कोई है नहीं।
  • मैं तुम बच्चों की सद्गति करता हूँ।
  • अच्छा बाबा, भला दुर्गति कौन करते हैं?
  • हाँ बच्चे, रावण की प्रवेशता होने के कारण, रावण की मत पर सब तुम्हारी दुर्गति ही करते आये हैं।
  • रावण की मत पर एकदम भ्रष्टाचारी बन पड़े हैं।
  • अब मैं तुमको श्रेष्ठाचारी बनाए स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ।
  • यहाँ जो कुछ तुम करेंगे सो आसुरी मत पर ही करेंगे।
  • अब देवता बनना है तो और संग तोड़ एक मुझ संग जोड़ो।
  • जितना मेरी मत पर चलेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • पढ़ेंगे नहीं तो प्रजा में भी कम पद पायेंगे। एक बार सुना, धारण किया तो स्वर्ग में आयेंगे परन्तु पद कम पायेंगे। दिन प्रतिदिन उपद्रव बहुत होंगे।
  • जो मनुष्य भी समझेंगे कि बरोबर यह तो वही समय है।
  • परन्तु बहुत देरी से आने से इतना ऊंच पद तो पा नहीं सकेंगे।
  • योग बिगर विकर्म विनाश नहीं होंगे।
  • अभी सबकी कयामत का समय है।
  • हिसाब-किताब चुक्तू करना है।
  • यहाँ तुम्हारे कर्म विकर्म बनते जाते हैं।
  • सतयुग में कर्म अकर्म बन जाते हैं।
  • कर्म तो जरूर सब करेंगे।
  • कर्म बिगर तो कोई रह नहीं सकेंगे।
  • आत्मा कहती है - मैं यह कर्म करती हूँ।
  • रात को थक जाने के कारण विश्राम लेता हूँ।
  • इस आरगन्स को अलग समझ सो जाता हूँ, जिसको नींद कहा जाता है।
  • अब बाप कहते हैं हे आत्मा मैं तुमको सुनाता हूँ, सो धारण करो।
  • गृहस्थ व्यवहार में रहते पढ़ाई भी करो।
  • पढ़ाई से ही ऊंच पद मिलेगा।
  • पवित्र बनने बिगर यह ज्ञान बुद्धि में नहीं बैठेगा।
  • माया बुद्धि को अपवित्र बनाती है इसलिए बाबा का नाम है पतित-पावन।
  • गाते हैं तुम मात-पिता हम बालक तेरे.. परन्तु तुम अब प्रैक्टिकल में बैठे हो, जानते हो इस सहज राजयोग के बल से 21 जन्मों के लिए हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे इसलिए ही तुम आये हो।
  • भक्ति मार्ग में तुम गाते थे, अब गायन बंद हुआ।
  • स्वर्ग में गायन होता ही नहीं फिर भक्ति में होगा।
  • बाप कहते हैं मैं तुम्हारा मात-पिता बन तुमको स्वर्गवासी बनाता हूँ।
  • माया फिर नर्कवासी बनाती है।
  • यह खेल है।
  • इसको समझकर मरने के पहले बाप से वर्सा ले लो।
  • नहीं तो राज्य भाग्य गँवा देंगे।
  • पतित वर्सा ले न सकें। वह फिर प्रजा में चले जायेंगे।
  • उनमें भी नम्बरवार मर्तबे हैं।
  • बाप कहते हैं इस मृत्युलोक में यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।
  • अब मेरी मत पर चलो तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा, इसमें अन्धश्रद्धा की कोई बात नहीं। पढ़ाई में कभी अन्धश्रद्धा नहीं होती।
  • परमात्मा पढ़ाते हैं।
  • बिगर निश्चय पढ़ेंगे कैसे?
  • पढ़ते-पढ़ते फिर माया विघ्न डाल देती है, तो पढ़ाई को छोड़ देते हैं इसलिए गाया हुआ है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती.. फिर बाबा को फारकती दे देते हैं।
  • परन्तु फिर भी लव है तो आकर मिलते हैं।
  • आगे चलकर पछतायेंगे कि बाप के बच्चे बन फिर बाप को छोड़ दिया!
  • माया का जाकर बना तो उन पर सजायें भी बहुत आती हैं और पद भी भ्रष्ट हो जाता है। कल्प-कल्पान्तर के लिए अपना राज्य भाग्य गँवा देंगे।
  • सजा खाकर प्रजा पद पाया, उससे फायदा ही क्या!
  • बाप के सम्मुख आकर बहुत सुनते हैं - फिर गोरखधन्धे में जाकर भूल जाते हैं।
  • पहले नम्बर का पाप है काम कटारी चलाना इसलिए बाप कहते हैं मूत पलीती कभी नहीं होना।
  • बाप आकर सबका कपड़ा साफ करते हैं।
  • बाप ही सब पतितों को पावन बनाने वाला है।
  • सतयुग में कोई पतित नहीं होगा।
  • तुम बाप से वर्सा लेकर विश्व के मालिक बन जायेंगे।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अब रावण की मत छोड़ श्रीमत पर चलना है और सब संग तोड़ एक बाप के संग जोड़ना है।
  • 2) निश्चयबुद्धि बन पढ़ाई जरूर पढ़नी है।
  • किसी भी विघ्न से बाप का हाथ नहीं छोड़ना है।
  • योग से तन्दरुस्ती और पढ़ाई से राजाई लेनी है।
  • वरदान:-
  • All Blessings of 2021-22
    • ज्ञान जल में तैरने और ऊंची स्थिति में उड़ने वाले होलीहंस भव
    • जैसे हंस सदा पानी में तैरते भी हैं और उड़ने वाले भी होते हैं, ऐसे आप सच्चे होलीहंस बच्चे उड़ना और तैरना जानते हो।
    • ज्ञान मनन करना अर्थात् ज्ञान अमृत वा ज्ञान जल में तैरना और उड़ना अर्थात् ऊंची स्थिति में रहना।
    • ऐसे ज्ञान मनन करने वा ऊंची स्थिति में रहने वाले होलीहंस कभी भी दिलशिकस्त वा नाउम्मींद नहीं हो सकते।
    • वह बीती को बिन्दी लगाए, क्या क्यों की जाल से मुक्त हो उड़ते और उड़ाते रहते हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • मणि बन बाप के मस्तक के बीच चमकने वाले ही मस्तकमणि हैं।