17-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - तुम्हें भक्ति की रोचक बातों के बजाए रूहानी बातें सबको सुनानी है, रावण राज्य से मुक्त करने की सेवा करनी है''


 

प्रश्नः-

सेवा में सफलता प्राप्त करने के लिए मुख्य कौन सा गुण चाहिए?

उत्तर:-

निरहंकारिता का गुण।

महावीर के लिए भी दिखाते हैं जहाँ भी सतसंग होता था, वहाँ जुत्तियों में जाकर बैठता था क्योंकि उसमें देह-अभिमान नहीं था, परन्तु इसमें बहादुरी चाहिए।

तुम कोई भी ड्रेस पहनकर उन सतसंगों में जाकर सुन सकते हो।

गुप्त वेष में जाकर उनकी सेवा करनी चाहिए।

 

गीत:-ओम् नमो शिवाए ....


  • ओम् शान्ति।
  • यह हुई महिमा ऊंचे ते ऊंचे भगवान की।
  • ईश्वर कहो, परमपिता परमात्मा कहो, सिर्फ ईश्वर वा भगवान कहने से पिता नहीं समझा जाता है, इसलिए परमपिता परमात्मा कहना चाहिए।
  • वह रचयिता है इस मनुष्य सृष्टि का।
  • अब ऊंचे ते ऊंचा बाप क्या आकर कहते हैं?
  • कहते हैं कि पतित मनुष्य मुझे बुलाते हैं कि आकर हमको पावन बनाओ।
  • पावन माना पवित्र।
  • पतित-पावन भगवान को ही कहा जाता है।
  • बरोबर वह आता है जरूर।
  • भक्ति मार्ग में भगवान को याद करते हैं तो वह आता भी जरूर है।
  • परन्तु वह आयेगा तब जब भक्तों को भक्ति का फल देना होगा।
  • फल देना अर्थात् वर्सा देना, उनके लिए बहुत सहज है।
  • एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति दे सकते हैं।
  • कहते भी हैं कि जनक को सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली।
  • नाम एक का ही गाया हुआ है।
  • सेकेण्ड में जीवनमुक्ति अर्थात् सुख-शान्ति मिली।
  • मनुष्य कहते भी हैं कि शान्ति, सुख और बड़ी आयु चाहिए।
  • छोटेपन में कोई मरता है तो कहते हैं अकाले मृत्यु आ गया, पूरी आयु नहीं बिताई।
  • अब बाप जो कुछ करके गये हैं, उनका ही गायन है।
  • सेकेण्ड में जीवनमुक्ति, तो जरूर पहले जीवनबन्ध में होगा।
  • जीवनबंध कलियुग के अन्त और जीवनमुक्त सतयुग के आदि को कहा जाता है।
  • कहते हैं जनक मिसल घर गृहस्थ में रहकर जीवनमुक्ति को पायें।
  • बाप समझाते हैं अक्षर ही दो हैं - राजयोग और ज्ञान।
  • भारत का प्राचीन राजयोग तो मशहूर है।
  • प्राचीन माना पहले-पहले, लेकिन कब?
  • यह मनुष्य नहीं जानते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देते हैं।
  • भारत का प्राचीन ज्ञान और योग तो सब चाहते हैं जिससे भारत स्वर्ग बनता है।
  • अब तो भारत बहुत दु:खी है, पहले सूर्यवंशी राज्य था।
  • अब नहीं है फिर उनको याद करते हैं कि वह राजयोग और ज्ञान किसने दिया था!
  • यह नहीं जानते।
  • नहीं तो बाप से वर्सा लेने में बच्चों को कोई भी तकलीफ नहीं।
  • बाप का बने तो वर्से के लायक बनें।
  • फिर भी मात-पिता, टीचर की शिक्षा मिलनी होती है।
  • मुक्ति का भी वर्सा चाहिए, इसलिए गुरू करते हैं।
  • परन्तु जीवनमुक्ति तो कभी कोई दे नहीं सकता।
  • जब जीवनबन्ध का अन्त हो, जीवनमुक्ति की आदि हो तब ही फिर जीवनमुक्ति देने वाला आये।
  • मनुष्यों ने सिर्फ सुना है कि सेकेण्ड में जीवनमुक्ति अथवा सेकेण्ड में रावण राज्य से रामराज्य, पतित से पावन।
  • परन्तु कैसे; सो नहीं जानते।
  • बाप तुम आत्माओं से बात करते हैं।
  • यह है रूहानी शिक्षा जो सुप्रीम रूह देते हैं।
  • वहाँ तो सब मनुष्य ही शास्त्र आदि पढ़ते हैं।
  • कहते हैं फलाने महात्मा ने यह ज्ञान दिया।
  • यहाँ है प्राचीन राजयोग और ज्ञान जो परमपिता परमात्मा ने दिया था, 5 हजार वर्ष पहले, जिससे तुम सो देवी देवता बने थे।
  • अब प्राय:लोप हो गया है।
  • अगर लोप न हो तो सुनावे कैसे?
  • मनुष्य पतित न बनें तो पतित-पावन बाप कैसे आये?
  • पतित बनने में 84 जन्म लेने पड़ते हैं।
  • इसका भी सारा विस्तार बाप समझाते हैं।
  • वर्ण भी समझाते हैं।
  • ब्रह्मा चाहिए तो ब्रह्मा का बाप भी चाहिए।
  • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर इन तीनों का बाप शिव है।
  • अब ब्रह्मा द्वारा बैठ प्राचीन ज्ञान देते हैं जिससे विष्णुपुरी के मालिक बनेंगे और ब्राह्मण सो देवता बन जाते हैं।
  • ब्राह्मण धर्म वाले मनुष्य से तुम सो देवी-देवता धर्म वाले बन रहे हो।
  • तो पहले प्रजापिता ब्रह्मा चाहिए।
  • कृष्ण को तो प्रजापिता नहीं कह सकते हैं।
  • यह तो सब उल्टी बातें बना दी हैं।
  • कृष्ण को इतनी रानियां, बच्चे आदि थे, यह है भूल।
  • वास्तव में बच्चे हैं ब्रह्मा को, न कि कृष्ण को।
  • ब्रह्मा ही कृष्ण बनते हैं।
  • बस इस एक जन्म की उथल पाथल ने मनुष्यों को मुँझा दिया है।
  • गीता का भगवान कृष्ण को कह शिव को उड़ा दिया है।
  • सब कहते हैं ब्रह्मा को 3 मुख थे, कितने मूँझ गये हैं।
  • शिव रचयिता को तो एकदम गुम कर दिया है।
  • रचता ही आकर बताते हैं कि हम कैसे देवी देवता धर्म की रचना करते हैं।
  • ऐसे नहीं परमात्मा सृष्टि कैसे रचते हैं।
  • परमपिता परमात्मा को बुलाते ही हैं कि हे पतित-पावन आकर हम पतितों को पावन बनाओ।
  • दुनिया को यह मालूम ही नहीं कि इस समय रावण का राज्य चल रहा है।
  • रावण की बड़ी-बड़ी कथायें बैठ सुनाते हैं।
  • इसको कहा जाता है भक्ति की रोचक बातें और यह हैं रूहानी बातें।
  • इस समय सब सीतायें अथवा भक्तियां रावण की कैद में हैं और रावण-राज्य में बहुत दु:खी हैं।
  • अब सबको रावण राज्य से मुक्त कराना है।
  • अब बाप आया है कहते हैं बच्चे, तुम्हारे 84 जन्म अब पूरे हुए।
  • अब वापिस चलना है।
  • मुझे ही बुलाते थे कि दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ।
  • यह मेरा ही नाम है।
  • कलियुग में हैं अपार दु:ख।
  • सतयुग में हैं अपार सुख।
  • फिर से तुमको सुख का वर्सा दिलाने अर्थ फिर से तुम्हें राजयोग और ज्ञान सिखला रहा हूँ।
  • यह पुरानी दुनिया विनाश हो जायेगी।
  • मनुष्य तो विनाश से बहुत डरते हैं।
  • समझते हैं यह आपस में लड़ें ही नहीं तो शान्ति हो जाए।
  • फिर इतने अनेक धर्मों में शान्ति कैसे होगी?
  • बाप समझाते हैं यह इतने सब धर्म जो अब हैं - वह पहले नहीं थे, जब एक ही धर्म था तब बरोबर सुख-शान्ति का राज्य था।
  • अब सब मांगते हैं मन को शान्ति कैसे मिले!
  • अरे मन क्या चीज़ है - पहले इनको तो समझो।
  • आत्मा में ही मन-बुद्धि है।
  • मनुष्य की जबान बोलती है।
  • आंख देखती है।
  • टोटल मिलाकर कहते हैं, मनुष्य दु:खी हैं।
  • किसको भी समझाना बड़ा सहज है कि बाप को याद करो और वर्से को याद करो।
  • फिर झाड़ और ड्रामा की समझानी भी देनी पड़े, जिसके लिए यह चित्र बने हुए हैं।
  • सिर्फ मनमनाभव कहने के लिए तो चित्र की दरकार नहीं।
  • चित्रों पर समझाने में घण्टा लग जाता है।
  • प्राचीन राजयोग भगवान ने सिखलाया और राजाई मिल गई। फिर कोई मनुष्य थोड़ेही राजयोग सिखलायेंगे।
  • बाप और वर्से को याद करो तो ठीक है।
  • परन्तु यह डिटेल जब तक किसको समझायें नहीं तब तक बुद्धि नहीं खुलेगी।
  • सृष्टि चक्र को समझ नहीं सकेंगे।
  • जब कोई ड्रामा देखकर आते हैं तो वह बुद्धि में आदि से अन्त तक घूमता रहता है, कहने में तो सिर्फ इतना ही आयेगा कि हम ड्रामा को देखकर आये हैं।
  • तुम भी कहते हो हम इस ड्रामा को जानते हैं।
  • परन्तु डिटेल तो बहुत है।
  • बाप से सुख-शान्ति का वर्सा मिलता है फिर बुद्धि में चक्र भी है।
  • 84 का चक्र जरूर घड़ी-घड़ी याद करना है।
  • यह ज्ञान ब्राह्मणों को ही मिलता है जो फिर देवता बनते हैं।
  • ब्रह्मा सो विष्णु फिर विष्णु सो ब्रह्मा।
  • तुम जो देवी देवता थे, पुनर्जन्म लेते-लेते फिर आकर ब्राह्मण बने।
  • हद का बाप तो सिर्फ उत्पत्ति, पालना करते हैं।
  • विनाश तो नहीं करेंगे।
  • विनाश अर्थात् सारी पतित दुनिया ही न रहे।
  • सारे रावण राज्य का ही विनाश होना है।
  • नहीं तो रामराज्य कैसे हो!
  • वहाँ कभी रावण को जलाते नहीं।
  • भक्ति मार्ग की कोई भी बात ज्ञान मार्ग में होती नहीं।
  • तुम सतयुग त्रेता में प्रालब्ध भोगते हो।
  • वह है ज्ञान की प्रालब्ध, इनको कहेंगे भक्ति की प्रालब्ध।
  • अल्पकाल क्षणभंगुर सुख।
  • पहले भक्ति अव्यभिचारी थी फिर व्यभिचारी होते-होते बिल्कुल ही दु:खी बन जाते हैं।
  • सद्गति दाता एक बाप है, यह तो समझाना है कि बाप और वर्से को याद करो।
  • याद किया और स्वर्ग की बादशाही मिली फिर नर्क में कैसे आये, यह सब बातें बैठ समझाई जाती हैं।
  • अब तुमको सारे सृष्टि चक्र के आदि मध्य अन्त का पता पड़ गया है।
  • तो इस समय तुम त्रिकालदर्शी बन रहे हो।
  • उनको तुम कहेंगे कि देवतायें भी त्रिकालदर्शी नहीं थे।
  • तो कहेंगे तब कौन थे?
  • क्योंकि संगमयुगी ब्राह्मणों को तो कोई जानते ही नहीं।
  • दिखाते हैं जहाँ भी सतसंग होता था तो हनूमान जाकर जुत्तियों में बैठ जाता था।
  • अब यह बात महावीर के लिए क्यों कही है?
  • क्योंकि तुम बच्चों में कोई देह-अभिमान तो है नहीं।
  • समझो सतसंग में कोई ऐसी बात निकल पड़े तो तुम कह सकते हो प्राचीन सहज राजयोग और ज्ञान से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति लेना है तो फलाने के पास जाओ।
  • समझाने वाला तो बहुत बहादुर, निरहंकारी चाहिए।
  • जरा भी देह-अभिमान न हो।
  • कहाँ भी जाकर बैठे, टाइम मिल जाए तो बोलना चाहिए।
  • मजबूत होगा तो भाषण आदि करेगा कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कैसे सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है।
  • परमपिता परमात्मा के सिवाए तो कोई दे न सके।
  • यह महावीर ही समझा सकते हैं।
  • सुनने लिए मना नहीं है, गृहस्थ व्यवहार में रहते तुम बच्चे बहुत सर्विस कर सकते हो।
  • बोलो, राजयोग सीखना हो तो ब्रह्माकुमारियों के पास जाओ।
  • आगे चलकर तुम्हारा नाम बाला हो जायेगा, मैजॉरिटी हो जायेगी।
  • अभी तो थोड़े हैं।
  • भगाने का नाम भी बहुत है।
  • कृष्ण ने भगाया, अरे भगाने की तो कोई बात नहीं।
  • टीचर कब पढ़ाने के लिए भगाते हैं क्या!
  • सर्विस करने वालों को तो बहुत विचार सागर मंथन करना है और बहुत बहादुर बनना है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) सभी भक्ति रूपी सीताओं को रावण की कैद से छुड़ाना है।
  • सेकेण्ड में मुक्ति जीवनमुक्ति की राह दिखानी है।
  • 2) बाप और वर्से को याद करना है।
  • देह-अभिमान छोड़ महावीर बन सेवा करनी है।
  • विचार सागर मंथन कर सेवा की नई नई युक्तियां निकालनी हैं।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • नथिंगन्यु की युक्ति द्वारा हर परिस्थिति में मौज की स्थिति का अनुभव करने वाले सदा अचल-अडोल भव
    • ब्राह्मण अर्थात् सदा मौज की स्थिति में रहने वाले।
    • दिल में सदा स्वत: यही गीत बजता रहे - वाह बाबा और वाह मेरा भाग्य!
    • दुनिया की किसी भी हलचल वाली परिस्थिति में आश्चर्य नहीं, फुलस्टाप।
    • कुछ भी हो जाए - लेकिन आपके लिए नथिंगन्यु।
    • कोई नई बात नहीं है।
    • इतनी अन्दर से अचल स्थिति हो, क्या, क्यों में मन मूंझे नहीं तब कहेंगे अचल-अडोल आत्मायें।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • वृत्ति में शुभ भावना हो, शुभ कामना हो तो शुभ वायब्रेशन फैलते रहेंगे।
    • अनमोल ज्ञान रत्न (दादियों की पुरानी डायरी से)
    • 1- अब तुम्हें दैवीगुणों की धारणा करनी है। धैर्यवत गुण की धारणा भी निश्चय से होती है और साक्षीपन की अवस्था में ही खुशी है। इस धारणा से ही परमात्मा आपेही हजार कदम आगे प्रख्यात होता है। बाबा कहता है कि तुम सूक्ष्म में दो कदम नजदीक आओ तो मैं स्थूल में अनेक कदम उठाकर सामने आऊंगा। ज्ञान ही है स्व लक्ष्य में स्थित रहना। स्व में स्थित रहने से ही परमात्मा स्वयं आगे आयेगा। बाबा के यह महावाक्य याद कर दो, जितना दैवीगुणों की धारणा करेंगे, उतना ही एक दो को सुख देने के निमित्त बनेंगे। आज देना कल मिलना। आज सर्वेन्ट बन देंगे तो कल मालिक बन राज्य करेंगे। अभी तो वर्ल्ड सर्वेन्ट हो ना।
    • 2- हर एक स्व स्वरूप में स्थित हो अपने रथ (शरीर) को चलाते चलो। जैसेकि इस रथ को मैं बिठाती हूँ, मैं खिलाती हूँ, मैं सुलाती हूँ। मैं मुख से बात कराती हूँ। अगर मैं मुख से किसको दु:ख देती हूँ तो जैसे अपने ही स्व स्वरूप की इनसल्ट करती हूँ। तो फिर स्व सम्पूर्ण आत्मा कहती है कि हे जीव आत्मा तेरे पर अफसोस है। ऐसे इन्सान अथवा प्राणी में मैं शुद्ध आत्मा प्रवेश नहीं हूँ। स्व शुद्ध आत्मा जिस जगह है उस जगह पर अफसोस नहीं है क्योंकि वह कभी भी किसको दु:ख नहीं दे सकता है। स्व शुद्ध आत्मा तो सुख रूप है। और ऐसा स्व निश्चय बुद्धि तो सदैव सुख पहुंचाता है। वह साक्षात मेरा स्वरूप है और जो अपने को स्व आत्मा निश्चय करते भी अन्य को दु:ख देता है, वह तो सिर्फ कहलाने वाला पण्डित है। उसका असर दूसरों पर नहीं हो सकता है। अच्छा - ओम् शान्ति।