15-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - तुम्हें ऐसा बाप मिला है जो बाप टीचर सतगुरू तीनों ही एक है इसलिए अब भटकना छोड़ सच्ची-सच्ची कमाई में लग जाओ''

 

प्रश्नः-

नई दुनिया में राज्य करने के लायक कौन बनते हैं?

उत्तर:-

जो अभी सर्वशक्तिमान बाप से सर्वशक्तियाँ प्राप्त करते हैं।

तुम बच्चे रूहानी वारियर्स हो।

बाप की मत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो।

बाप तुम्हें श्रीमत देते हैं कि योगबल से तुम विजय प्राप्त करो।

प्रश्नः-

किन बच्चों के हर कदम में कमाई जमा होती है?

उत्तर:-

जो हर कर्म श्रीमत पर करते हैं उनके हर कदम में कमाई ही कमाई है।

याद में रहना भी कमाई, सर्विस करना भी कमाई, यज्ञ सेवा करना भी कमाई।

 

गीत:-ओम् नमो शिवाए....


  • ओम् शान्ति।
  • अभी तुम बच्चों को यह मालूम हुआ कि एक होता है लौकिक बाप, दूसरा होता है पारलौकिक बाप।
  • जब कोई भी दु:ख होता है तो पारलौकिक मात-पिता को याद किया जाता है।
  • कोई सिर्फ परमात्मा को याद करते हैं, कोई कहते हैं तुम मात-पिता.... चाहे कोई माता को याद करे या न करे, लेकिन जब गॉड फादर कहते हैं तो माता जरूर है ही।
  • बच्चे माता बिगर तो पैदा हो भी नहीं सकते।
  • तो पारलौकिक मात-पिता है, जिनको याद किया जाता है।
  • जरूर वह कुछ सुख देकर गये हैं।
  • याद आता है भारत सुखधाम था, स्वर्ग था।
  • लौकिक माँ-बाप से दु:ख मिलता है तब तो पारलौकिक को याद किया जाता है क्योंकि उनसे बहुत सुख मिलता हैं।
  • नर्क में हैं तब याद करते हैं कि फिर से स्वर्ग में जाकर सुख घनेरे पावें।
  • गुरू लोग तो कहते हैं - जप-तप-भक्ति आदि करो।
  • बाबा तो ऐसी मत नहीं देते हैं।
  • लौकिक बाप तो कहेंगे पढ़ने के लिए टीचर के पास जाओ, फिर वानप्रस्थ अवस्था होगी तो कहेंगे गुरू के पास जाओ।
  • बाबा तो तुमको ऐसा नहीं कहते हैं।
  • देखो, लौकिक और पारलौकिक में कितना फ़र्क है।
  • वह कितना भटकाते, यह तो कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ, तो फिर तुमको भटकाऊंगा कैसे?
  • यह तो तीनों ही खुद है, इसलिए इनको सब याद करते हैं।
  • मनुष्य तो भक्ति मार्ग में बहुत धक्के खाते हैं।
  • ज्ञान मार्ग में धक्के खाने की बात ही नहीं।
  • यह भक्ति और ज्ञान, दु:ख और सुख का खेल बना हुआ है, जो बच्चों को समझाते हैं।
  • हद का टीचर हद की पढ़ाई पढ़ाते हैं।
  • मैं बेहद का टीचर तुमको बेहद की पढ़ाई पढ़ाता हूँ।
  • तुम जानते हो यह है मृत्युलोक।
  • वो जो पढ़ाई पढ़ाते हैं, पुरानी दुनिया के लिए और हम जो कुछ पढ़ते हैं नई दुनिया के लिए।
  • यह दुनिया दिन-प्रतिदिन पुरानी होती जाती है, इनमें सुख कभी भी मिलना ही नहीं है।
  • सुख और दु:ख, यह खेल कैसे बना हुआ है, यह बाप ही समझाते हैं।
  • बाप आत्माओं से बात करते हैं कि बच्चे तुम ही सुख में थे फिर जब रावण की प्रवेशता होती है तब धीरे-धीरे दु:ख शुरू होता है।
  • फिर कल्प के संगम पर आकर तुमको सुख में ले जाता हूँ।
  • अभी तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला हुआ है, जो तुम जानते हो यह सब बातें यथार्थ हैं, यह बाप के सिवाए कोई सुना नहीं सकते।
  • बाबा ही आकर तुम बच्चों को सुख देता है।
  • अभी तुम जानते हो आत्मा अविनाशी है।
  • यह शरीर तो बदलना पड़ता है।
  • परमात्मा भी परम आत्मा है, उनका नाम शिव है, जो सभी मनुष्य मात्र हैं, उनका रचयिता है।
  • यहाँ सब हैं हद के क्रियेटर।
  • बाबा है बेहद का क्रियेटर।
  • सतयुग से लेकर कलियुग तक तुमको जो बाप मिले हैं वह हैं हद के।
  • सतयुग में तुम्हारी प्रालब्ध है।
  • वहाँ तुमको एक बाप और एक बच्चा मिलता है।
  • कलियुग में एक बाप को 8-10 बच्चे होंगे।
  • प्रजापिता ब्रह्मा को देखो कितने ढेर बच्चे हैं।
  • परन्तु वह हैं मुख वंशावली, जो बी.के. बनते हैं, फिर सतयुग में जाकर देवता बनेंगे।
  • वो लौकिक बाप, टीचर, गुरू सब हद की बातें सुनाते हैं, यह पारलौकिक बाप बेहद की बातें सुनाते हैं।
  • नई बातें बाप बच्चों के आगे ही बोलते हैं।
  • भल घर में रहते भी तुम यह नई शिक्षा प्राप्त करो।
  • यह भगवान की पाठशाला है।
  • यह है श्रीमद् भगवत गीता पाठशाला अथवा ज्ञान के गीत, जो तुम ही सुनते हो।
  • ज्ञान-सागर बाप ही आकर तुमको ज्ञान-ज्ञानेश्वरी बनाते हैं।
  • मम्मा को कहेंगे ज्ञान-ज्ञानेश्वरी।
  • ह्युमिनिटी का सिजरा शुरू होता है।
  • पहले है प्रजापिता ब्रह्मा फिर है जगत अम्बा।
  • पहले-पहले ब्राह्मण रचते हैं फिर हैं देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
  • जगत अम्बा का भी बड़ा मर्तबा है।
  • परन्तु उनको कोई जानते ही नहीं हैं।
  • ढेरों के ढेर देवियों के चित्र बना दिये हैं।
  • वास्तव में 8-10 भुजा वाले कोई मनुष्य होते ही नहीं।
  • विष्णु को 4 भुजायें दिखाते हैं, परन्तु 4 टांगे नहीं दिखाते हैं।
  • यह सब है गुड़ियों का खेल।
  • कलकत्ते में बहुत देवियाँ बनाते हैं, बहुत खर्चा करते हैं।
  • खिला-पिलाकर फिर जाकर डुबोते हैं, यह सब है भक्ति मार्ग।
  • तुम जानते हो हम सो देवी-देवता थे फिर असुर बनें फिर बाप आकर सो देवी-देवता बनाते हैं।
  • अभी यह भ्रष्टाचारी दुनिया है।
  • गवर्मेन्ट भी कहती है, परन्तु सीधा पूछो तुम पतित हो?
  • तो मानेंगे नहीं।
  • अरे तुम पतित-पावन को बुलाते हो, सब बुलाते हैं यथा राजा-रानी तथा प्रजा।
  • संन्यासी पवित्र बनते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है।
  • भारत जैसा पवित्र खण्ड कोई होता ही नहीं इसलिए उनको कहा जाता है सचखण्ड, फिर वही झूठखण्ड बनता है।
  • भारत को पावन बनाने बाप भारत में ही आते हैं।
  • भारत में ही शिव का अवतरण होता है।
  • सोमनाथ का मन्दिर कितना भारी बनाया है।
  • भारतवासियों ने ही बनाया है, जिसको बाप ने इतना साहूकार बनाया है।
  • बाप तो यहाँ पतित दुनिया और पतित शरीर में आते हैं पावन बनाने।
  • लेकिन कई बच्चे पहचानते ही नहीं हैं क्योंकि साधारण है।
  • फिर भक्ति मार्ग में तुम्हारे पास पैसे बहुत होते हैं तो हीरे जवाहरों के तुम मन्दिर बनाते हो।
  • सतयुग में तो अनगिनत पैसे होते हैं।
  • वहाँ पैसे की गिनती नहीं, बेशुमार धन रहता है।
  • तो बाप जिनको साहूकार बनाते हैं वह कितना बड़ा यादगार बनाते हैं।
  • जो पहले लक्ष्मी-नारायण थे, वही 84 जन्म भोगते हैं।
  • नम्बरवन में वो गिरते हैं, भक्त बनते हैं।
  • तो जिसने बनाया, उसका ही यादगार बनाते हैं।
  • लक्ष्मी-नारायण विकर्माजीत बनें फिर सो विकर्मी बनते हैं।
  • तो उन्हों का फ़र्ज है पहले जिसने ऐसा बनाया, उनकी पूजा करना।
  • सोमनाथ का मन्दिर कितना फर्स्टक्लास था - जिन्होंने लूटा, वह तो मर गये।
  • बाकी निशानियाँ लगी हुई हैं।
  • अब तुम जानते हो हम सो पूज्य बन रहे हैं, फिर पुजारी बनेंगे फिर मन्दिर बनाना शुरू करेंगे।
  • सिर्फ एक मन्दिर तो नहीं होगा।
  • राजायें अपने घर में भी मन्दिर बनाते हैं, जैसे घर में गुरुद्वारा बनाते हैं।
  • पहला नम्बर किसने गुरुद्वारा बनाया होगा फिर भक्ति मार्ग शुरू हो जाता है।
  • पहले अव्यभिचारी भक्ति करते हैं फिर व्यभिचारी।
  • आजकल तो मनुष्य अपनी भी पूजा कराते हैं, उनको कहा जाता है भूत पूजा।
  • भूत पूजा भी दुनिया में अथाह है, जो आया सो चित्र बनाते जाते हैं।
  • भक्ति मार्ग है ना।
  • अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है।
  • बाप संगम पर एक ही बार आकर नॉलेज देते हैं।
  • शास्त्रों में तो अनेक अवतार लिख दिये हैं।
  • अवतार एक होता है।
  • अवतरित तो आत्मा भी होती है परन्तु अवतार मनुष्य को नहीं कहा जाता है।
  • अवतार एक ही निराकार बाप है जिसको सारी दुनिया बुलाती है।
  • फादर तो एक ही होगा ना, जो परमधाम में रहते हैं।
  • तो मदर भी चाहिए।
  • क्या मदर भी परमधाम में रहती है?
  • नहीं।
  • मदर फादर का प्रश्न यहाँ होता है।
  • फादर को यहाँ क्रियेट करना है, इसलिए बेहद के बाबा को याद करते हैं।
  • बाबा आकर स्वर्ग की रचना करो, उसको कहा जाता है हेविनली गॉड फादर।
  • अभी तो कितना दु:ख, लड़ाई, मारामारी है इसलिए बुलाते हैं हे गॉड फादर रहम करो।
  • हे पतित-पावन आओ।
  • हम सब दु:खी पतित हैं।
  • हे बाबा फिर आकर स्वर्ग, श्रेष्टाचारी बनाओ।
  • तुम सब भ्रष्टाचारी थे, अब श्रेष्ठाचारी बन रहे हो।
  • भ्रष्टाचारी को श्रेष्टाचारी बनाना - एक बाप का ही काम है।
  • जो वर्ल्ड गॉड फादर है, वह जानते हैं सब बच्चे इस समय निधनके बन गये हैं।
  • उन्हों को धनका, श्रेष्टाचारी बनाना है।
  • 10-20 मनुष्यों को तो श्रेष्टाचारी नहीं बनायेंगे।
  • भारत श्रेष्टाचारी था तो डीटी गवर्मेन्ट थी।
  • अब रावणराज्य है तो 5 विकारों की प्रवेशता है।
  • भगवानुवाच, एक निराकार को ही भगवान कहा जाता है।
  • एक गीता को खण्डन करने से सब शास्त्र खण्डन हो जाते हैं।
  • बाप कहते हैं मैने तुमको जब राजयोग सिखाया था तो भारत स्वर्ग बन गया था।
  • गीता मैंने सुनाई थी।
  • कृष्ण को सारी दुनिया का भगवान कह न सकें।
  • हम आत्माओं का बाप तो निराकार भगवान है।
  • बाकी यह कैसे कहा - गीता का भगवान श्रीकृष्ण है।
  • कहते हैं व्यास ने लिखा है।
  • परन्तु बाप कहते हैं नये विश्व का रचयिता ज्ञान का सागर, पतित-पावन मैं हूँ।
  • मुझे ही सभी आत्माएं पुकारती हैं हे पतित-पावन परमात्मा आओ, आकर मुझे पावन बनाओ।
  • निराकार बाप ही ब्रह्मा द्वारा पावन दुनिया की स्थापना, पतित दुनिया का विनाश कराते हैं।
  • फिर जो पवित्र बनते, वही राज्य-भाग्य करते हैं।
  • तुम हो शिव शक्ति सेना, जगत अम्बा निमित्त बनी हुई है।
  • वह भी शिवबाबा से योग लगाए शक्ति ले रही है, रावण पर विजय पाने।
  • भारत में ही रावण राज्य है, भारत में ही रावण को जलाते हैं।
  • भारत श्रेष्टाचारी था, यहाँ कलियुग में भारत भ्रष्टाचारी है।
  • यही खेल है।
  • भ्रष्टाचारी से श्रेष्टाचारी और श्रेष्टाचारी से भ्रष्टाचारी।
  • यह चक्र कैसे फिरता है, यह बड़ी समझने की बातें हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो हम सब कुछ करते हुए भारत को स्वर्ग बना रहे हैं, बाप की श्रीमत पर।
  • तुम हो रूहानी वारियर्स, योगबल वाले।
  • सर्वशक्तिमान् बाप की मत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हो।
  • बाप मत देते हैं कि योगबल से तुम विजय पा सकते हो।
  • योग में रहना - यह भी कमाई है।
  • यज्ञ सर्विस करना, यह भी कमाई है।
  • और सब चल रहे हैं मनुष्यों की मत पर और तुम हो सर्वशक्तिमान् बाप की मत पर, और कोई विश्व पर जीत पा न सके।
  • ड्रामा में उनका पार्ट ही नहीं है, वर्ल्ड पर राज्य करने का।
  • कितनी बड़े ते बड़ी और साधारण बातें हैं।
  • प्रदर्शनी से अभी तक इतना समझते नहीं हैं तो भी प्रजा निकलती रहती है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) हर कर्म श्रीमत पर करना है।
  • याद में रहकर यज्ञ सेवा कर अपनी कमाई जमा करनी है।
  • 2) भटकना छोड़ भविष्य नई दुनिया के लिए पढ़ाई पढ़नी है।
  • ज्ञान को धारण कर ज्ञान-ज्ञानेश्वर, ज्ञान-ज्ञानेश्वरी बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगाने वाले स्वराज्य अधिकारी सो विश्व राज्य अधिकारी भव
    • रोज़ अमृतवेले अपने मस्तक पर विजय का तिलक अर्थात् स्मृति का तिलक लगाओ।
    • भक्ति की निशानी तिलक है और सुहाग की निशानी भी तिलक है, राज्य प्राप्त करने की निशानी भी राजतिलक है।
    • कभी कोई शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने जाते हैं तो जाने के पहले तिलक देते हैं।
    • आप सबको भी बाप के साथ का सुहाग है इसलिए अविनाशी तिलक है।
    • अभी स्वराज्य के तिलकधारी बनो तो भविष्य में विश्व के राज्य का तिलक मिल जायेगा।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • ज्ञान, गुण और शक्तियों का दान करना ही महादान है।
    • अनमोल ज्ञान रत्न (दादियों की पुरानी डायरी से)
    • जिस समय कोई दैवी वत्स समझता है कि मैं तन, मन, धन सहित यज्ञ में स्वाहा अर्थात् अर्पणमय हो चुका उस समय उस अर्पण हुए वत्स में कुछ भी अपनापन नहीं रहता है। सब यज्ञ की सर्विस में आ जाता है। उसमें भी तन और मन तो नजदीक रहता है, धन फिर भी अलग है। तो तन मन को यज्ञ की सर्विस में लगाना ही शुद्ध सेवा है। यदि कहता है तन मन धन यज्ञ में अर्थात् ईश्वर प्रति है, तो फिर अपने लिए कुछ भी रह नहीं सकता और मन कोई भी माया के अशुद्ध संकल्प तरफ दौड़ नहीं सकता क्योंकि ईश्वर को अर्पण किया तो ईश्वर है शुद्ध, शान्त। तो वह मन रूपी घोड़े को कोई भी अशुद्ध संकल्प तरफ न दौड़ाकर अपने वश में करता है। यदि माया के हाथ में देता है तो माया वैरायटी होने कारण भिन्न-भिन्न प्रकार से अंगूरी लगाती है। फिर अनेक प्रकार के विकल्प आकर मन पर चढ़ाई करते हैं। तो उसको समझना चाहिए कि क्या अभी भी मेरे में कुछ अपनापन रहा हुआ है? क्योंकि यदि यज्ञ प्रति स्वाहा हुआ तो फिर पवित्र हो गया। फिर यज्ञ की सर्विस बिगर कोई भी तरफ तन मन वर्क कर नहीं सकता इसलिए इस अति गुह्य और महीन राज़ को समझकर अपने पर बहुत ही अटेन्शन रख खबरदारी से चलना है। अच्छा - ओम् शान्ति।