13-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 20.01.90 "बापदादा" मधुबन




"ब्रह्मा बाप के विशेष पाँच कदम"



  • आज विश्व स्नेही बाप अपने विशेष अति स्नेही और समीप बच्चों को देख रहे हैं।
  • स्नेही सभी बच्चे हैं लेकिन अति स्नेही वा समीप बच्चे वही हैं जो हर कदम में फॉलो करने वाले हैं।
  • निराकार बाप ने साकारी बच्चों को साकार रूप में फॉलो करने के लिए साकार ब्रह्मा बाप को बच्चों के आगे निमित्त रखा जिस आदि आत्मा ने ड्रामा में 84 जन्मों के आदि से अन्त तक अनुभव किये, साकार रूप में माध्यम बन बच्चों के आगे सहज करने के लिए एग्जैम्पल बनें क्योंकि शक्तिशाली एग्जैम्पल को देख फॉलो करना सहज होता है।
  • तो स्नेही बच्चों के लिए स्नेह की निशानी बाप ने ब्रह्मा बाप को रखा और सर्व बच्चों को यही श्रेष्ठ श्रीमत दी कि हर कदम में फॉलो फादर।
  • सभी अपने को फॉलो फादर करने वाले समीप आत्मायें समझते हो?
  • फॉलो करना सहज लगता या मुश्किल लगता है?
  • ब्रह्मा बाप के विशेष कदम क्या देखे?
  • 1- सबसे पहला कदम - सर्वन्श त्यागी।
  • न सिर्फ तन से और लौकिक सम्बन्ध से लेकिन सबसे बड़ा त्याग, पहला त्याग मन-बुद्धि से समर्पण अर्थात् मन-बुद्धि में हर समय बाप और श्रीमत की हर कर्म में स्मृति रही।
  • सदा स्वयं को निमित्त समझ हर कर्म में न्यारे और प्यारे रहे।
  • देह के सम्बध से, मैं-पन का त्याग।
  • जब मन-बुद्धि की बाप के आगे समर्पणता हो जाती है तो देह के सम्बन्ध स्वत: ही त्याग हो जाते हैं।
  • तो पहला कदम - सर्वन्श त्यागी।
  • 2- दूसरा कदम - सदा आज्ञाकारी रहे।
  • हर समय हर एक बात में - चाहे स्व-पुरुषार्थ में, चाहे यज्ञ-पालना में निमित्त बने क्योंकि एक ही ब्रह्मा विशेष आत्मा है जिसका ड्रामा में विचित्र पार्ट नूंधा हुआ है।
  • एक ही आत्मा माता भी है, पिता भी है।
  • यज्ञ-पालना के निमित्त होते हुए भी सदा आज्ञाकारी रहे।
  • स्थापना का कार्य विशाल होते हुए भी किसी भी आज्ञा का उलंघन नहीं किया।
  • हर समय “जी हाजिर'' का प्रत्यक्ष स्वरूप सहज रूप में देखा।
  • 3- तीसरा कदम - हर संकल्प में भी व़फादार।
  • जैसे पतिव्रता नारी एक पति के बिना और किसी को स्वप्न में भी याद नहीं कर सकती, ऐसे हर समय एक बाप दूसरा न कोई - यह व़फादारी का प्रत्यक्ष स्वरूप देखा।
  • विशाल नई स्थापना की जिम्मेवारी के निमित्त होते भी वफादारी के बल से, एक बल एक भरोसे के प्रत्यक्ष कर्म में हर परिस्थिति को सहज पार किया और कराया।
  • 4- चौथा कदम - विश्व-सेवाधारी।
  • सेवा की विशेषता- एक तरफ अति निर्माण, वर्ल्ड सर्वेन्ट; दूसरे तरफ ज्ञान की अथॉरिटी।
  • जितना ही निर्माण उतना ही बेपरवाह बादशाह।
  • सत्यता की निर्भयता - यही सेवा की विशेषता है।
  • कितना भी सम्बन्धियों ने, राजनेताओं ने, धर्म-नेताओं ने नये ज्ञान के कारण ऑपोजीशन किया लेकिन सत्यता और निर्भयता की पोजीशन से जरा भी हिला न सके।
  • इसको कहते हैं निर्माण और अथॉरिटी का बैलेंस।
  • इसकी रिजल्ट आप सभी देख रहे हो।
  • गाली देने वाले भी मन से आगे झुक रहे हैं।
  • सेवा की सफलता का विशेष आधार निर्माण-भाव, निमित्त-भाव, बेहद का भाव।
  • इसी विधि से ही सिद्धिस्वरुप बने।
  • 5- पांचवा कदम - कर्मबन्धन मुक्त, कर्म-सम्बन्ध मुक्त अर्थात् शरीर के बंधन से मुक्त फरिश्ता, अर्थात् कर्मातीत।
  • सेकण्ड में नष्टोमोहा स्मृति स्वरूप समीप और समान।
  • तो आज विशेष संक्षेप में पांच कदम सुनाये।
  • विस्तार तो बहुत है लेकिन सार रूप में इन पांच कदमों के ऊपर कदम उठाने वाले को ही फॉलो फादर कहा जाता है।
  • अभी अपने से पूछो - कितने कदमों में फॉलो किया है?
  • समर्पित हुए हो या सर्वन्श सहित समर्पित हुए हो?
  • सर्व-वंश अर्थात् संकल्प, स्वभाव और संस्कार, नेचर में भी बाप समान हों।
  • अगर अब तक भी चलते-चलते समझते हो और कहते हो - मेरा स्वभाव ऐसा है, मेरी नेचर ऐसी है वा न चाहते भी संकल्प चल जाते हैं, बोल निकल पड़ते हैं - तो इसको सर्वन्श त्यागी नहीं कहेंगे।
  • अपने को समर्पित कहलाते हो लेकिन सर्वन्स समर्पण - इसमें मेरा-तेरा हो जाता है।
  • जो बाप का स्वभाव, स्व का भाव अर्थात् आत्मिक भाव।
  • संस्कार सदा बाप समान स्नेह, रहम, उदारदिल का, जिसको बड़ी दिल कहते हो।
  • छोटी दिल अर्थात् हद का अपनापन देखना - चाहे अपने प्रति, चाहे अपने सेवा-स्थानों के प्रति, अपने सेवा के साथियों के प्रति।
  • और बड़ी दिल - सर्व अपना-पन अनुभव हो।
  • बड़ी दिल में सदा हर प्रकार के कार्य - चाहे तन के, चाहे मन, चाहे धन के, चाहे सम्बन्ध में सफलता की बरक्कत होती है।
  • बरक्कत अर्थात् ज्यादा फायदा होता है और छोटी दिल वाले को मेहनत ज्यादा, सफलता कम होती है।
  • पहले भी सुनाया था कि छोटी दिल वालों के भण्डारे और भण्डारा - सदा बरक्कत की नहीं होती।
  • सेवा-साथी दिलासे बहुत देंगे - आप ये करो हम करेंगे लेकिन समय पर सरकमस्टांस सुनाने शुरू कर देंगे।
  • इसको कहते हैं बड़ी दिल तो बड़ा साहेब राज़ी।
  • राज़युक्त पर साहेब सदा राज़ी रहता है। टीचर्स सभी बड़ी दिल वाली हो ना!
  • बेहद के बड़े ते बड़े कार्य अर्थ ही निमित्त हो।
  • यह तो नहीं कहते हो ना - हम फलाने एरिया के कल्याणकारी हैं या फलाने देश के कल्याणकारी हैं?
  • विश्व-कल्याणकारी हो ना।
  • इतने बड़े कार्य के लिए दिल भी बड़ी चाहिए ना?
  • बड़ी अर्थात् बेहद वा टीचर्स कहेंगी कि हमको तो हदें बनाकर दी गई हैं?
  • हदें भी क्यों बनाई गई हैं, कारण?
  • छोटी दिल।
  • कितना भी एरिया बनाकर दें लेकिन आप सदा बेहद का भाव रखो, दिल में हद नहीं रखो।
  • स्थान की हद का प्रभाव दिल पर नहीं होना चाहिए।
  • अगर दिल में हद का प्रभाव है तो बेहद का बाप हद की दिल में नहीं रह सकता।
  • बड़ा बाबा है तो दिल बड़ी चाहिए ना।
  • कभी ब्रह्मा बाप ने मधुबन में रहते यह संकल्प किया कि मेरा तो सिर्फ मधुबन है, बाकी पंजाब, यू.पी., कर्नाटक आदि बच्चों का है?
  • ब्रह्मा बाप से तो सबको प्यार है ना।
  • प्यार का अर्थ है फॉलो करना।
  • सभी टीचर्स फॉलो फादर करने वाली हो या मेरा सेन्टर, मेरे जिज्ञासू, मेरी मदोगरी और स्टूडेन्ट भी समझते - मेरी टीचर यह है?
  • फॉलो फादर अर्थात् मेरे को तेरे में समाना, हद को बेहद में समाना।
  • अभी इस कदम पर कदम रखने की आवश्यकता है।
  • सबके संकल्प, बोल, सेवा की विधि बेहद की अनुभव हो।
  • कहते हो ना - अभी क्या करना है इस वर्ष।
  • तो स्व-परिवर्तन के लिए हद को सर्व वंश सहित समाप्त करो।
  • जिसको भी देखो वा जो भी आपको देखे - बेहद के बादशाह का नशा अनुभव हो।
  • हद की दिल वाले बेहद के बादशाह बन नहीं सकते।
  • ऐसे नहीं समझना कि जितने सेन्टर्स खोलते वा जितनी ज्यादा सेवा करते हो इतना बड़ा राजा बनेंगे।
  • इस पर स्वर्ग की प्राइज़ नहीं मिलनी है।
  • सेवा भी हो, सेन्टर्स भी हों लेकिन हद का नाम-निशान न हो।
  • उसको नम्बरवार विश्व के राज्य का तख्त प्राप्त होगा इसलिए अभी-अभी थोड़े समय के लिए अपनी दिल खुश करके नहीं बैठना, बेहद की खुशबू वाला बाप समान और समीप अब भी है और 21 जन्म भी ब्रह्मा बाप के समीप होगा। तो ऐसी प्राइज़ चाहिए या अभी की?
  • बहुत सेन्टर्स हैं, बहुत जिज्ञासू हैं... इस बहुत-बहुत में नहीं जाना।
  • बड़ी दिल को अपनाओ।
  • सुना, इस वर्ष क्या करना है?
  • इस वर्ष स्वप्न में भी किसके हद का संस्कार उत्पन्न न हो।
  • हिम्मत है ना?
  • एक-दो को फॉलो नहीं करना, बाप को फॉलो करना।
  • दूसरी बात - बापदादा ने वाणी के ऊपर भी विशेष अटेन्शन दिलाया था।
  • इस वर्ष अपने बोल के ऊपर विशेष डबल अटेन्शन।
  • सभी को बोल के लिए डायरेक्शन भेजा गया है।
  • इस पर प्राइज मिलनी है।
  • सच्चाई-सफाई से अपना चार्ट स्वयं ही रखना।
  • सच्चे बाप के बच्चे हो ना।
  • बापदादा सभी को डायरेक्शन देते हैं - जहाँ देखते हो सेवा स्थिति को डगमग करती है, उसे सेवा में कोई सफलता मिल नहीं सकती।
  • सेवा भले कम करो लेकिन स्थिति को कम नहीं करो।
  • जो सेवा स्थिति को नीचे ले आती है उसको सेवा कैसे कहेंगे!
  • इसलिए बापदादा सभी को फिर से यही कहेंगे कि सदा स्व-स्थिति और सेवा अर्थात् स्व-सेवा और औरों की सेवा साथ-साथ सदा करो।
  • स्व-सेवा को छोड़ पर सेवा करना, इससे सफलता नहीं प्राप्त होती।
  • हिम्मत रखो - स्व सेवा और पर-सेवा की।
  • सर्वशक्तिवान बाप मदद-गार है इसलिए हिम्मत से दोनों का बैलेन्स रख आगे बढ़ो। कमजोर नहीं बनो।
  • अनेक बार के निमित्त बने हुए विजयी आत्मा हैं।
  • ऐसी विजयी आत्माओं के लिए कोई मुश्किल नहीं, कोई मेहनत नहीं।
  • अटेन्शन और अभ्यास - यह भी सहज और स्वत: अनुभव करेंगे। अटेन्शन का भी टेन्शन नहीं रखना।
  • कोई-कोई अटेन्शन को टेन्शन में बदल लेते हैं।
  • ब्राह्मण-आत्माओं का निज़ी संस्कार “अटेन्शन और अभ्यास'' है। अच्छा!
  • बाकी रही विश्व कल्याण के सेवा की बात।
  • तो इस वर्ष हर एक सेवाकेन्द्र जितने भी सन्देश वा सम्पर्क वाले हैं, उन्हों को निमन्त्रण देकर यथाशक्ति स्नेह-मिलन करो।
  • चाहे वर्गीकरण के हिसाब से करो वा मिला हुआ करो लेकिन उन आत्माओं की तरफ विशेष अटेन्शन दो।
  • पर्सनल मिलो।
  • सिर्फ पोस्ट भेज देते हो तो उससे भी रिजल्ट कम निकलती है।
  • अपने ही आने वाले स्टूडेन्ट्स के ग्रुप बनाओ और उन्हों में से थोड़े लोगों को पर्सनल समीप आने के निमित्त बनाओ।
  • तो सब स्टूडेन्ट्स भी बिजी होंगे और सेवा की सलेक्शन भी हो जायेगी, जिसको आप लोग कहते हो- पीठ नहीं होती।
  • ऐसी आत्माओं को भी कोई नई बात सुनाने की चाहिए।
  • अभी तक तो बेटर वर्ल्ड क्या होगी।
  • उसके वीजन्स इकट्ठे किये हैं।
  • अब फिर उन्हों को अपनी तरफ अटेन्शन दिलाओ।
  • उसकी विशेष टॉपिक रखो “सेल्फ प्रोगेस'' और “सेल्फ प्रोग्रेस का आधार''।
  • यह नई विषय रखो।
  • इस स्व - प्रोग्रेस के लिए स्प्रीचुअल बजट बनाओ और बजट में सदैव बचत की स्कीम बनाई जाती है।
  • तो स्प्रीचुअल बचत का खाता क्या है!
  • समय, बोल, संकल्प और एनर्जी को वेस्ट से बेस्ट में चेन्ज करना होगा।
  • सभी को अब स्व तरफ अटेन्शन दिलाओ।
  • बच्चों ने टापिक निकाली थी “फॉर सेल्फ ट्रांसफरमेशन''।
  • लेकिन इस वर्ष हरेक सेवाकेन्द्र को फ्रीडम है, जितनी जो कर सकते, अपनी स्वउन्नति के साथ-साथ पहले स्वयं के बचत की बजट बनाओ और सेवा में औरों को इस बात का अनुभव कराओ।
  • अगर कोई बड़े प्रोग्राम्स रख सकते हो तो रखो, अगर नहीं कर सकते तो भले छोटे प्रोग्राम्स करो।
  • लेकिन विशेष अटेन्शन स्व-सेवा और पर-सेवा का बैलेन्स वा विश्व सेवा का बैलेन्स हो।
  • ऐसे नहीं कि सेवा में ऐसे बिजी हो जाओ जो स्व-उन्नति का समय नहीं मिले।
  • तो यह स्वतन्त्र वर्ष है सेवा के लिए।
  • जितना चाहो उतना करो।
  • दोनों प्लैन स्मृति में रख और भी एडीशन कर सकते हो और प्लैन में रत्न जड़ सकते हो।
  • बाप सदैव बच्चों को आगे रखता है। अच्छा!

 

  • अव्यक्त बापदादा से पर्सनल मुलाकात:-
  • मैं हर कल्प की पूज्य आत्मा हूँ- ऐसा अनुभव करते हो?
  • अनेक बार पूज्य बने और फिर से पूज्य बन रहे हैं! पूज्य आत्मायें क्यों बनते हो?
  • क्योंकि जो स्वंय स्वमान में रहते हैं उनको स्वत: ही औरों द्वारा मान मिलता है।
  • स्वमान को जानते हो?
  • कितना ऊंच स्वमान है?
  • कितने भी बड़े स्वमान वाले हों लेकिन वह आपके आगे कुछ भी नहीं है क्योंकि उनका स्वमान हद का है और आपका आत्मिक स्वमान है।
  • आत्मा अविनाशी है तो स्वमान भी अविनाशी है।
  • उनको है देह का मान।
  • देह विनाशी है तो स्वमान भी विनाशी है।
  • कभी कोई प्रेजीडेंट बना या मिनिस्टर बना लेकिन शरीर जायेगा तो स्वमान भी जायेगा।
  • फिर प्रेजीडेंट होंगे क्या?
  • और आपका स्वमान क्या है?
  • श्रेष्ठ आत्मा हो, पूज्य आत्मा हो।
  • आत्मा की स्मृति में रहते हो, इसलिए अविनाशी स्वमान है।
  • आप विनाशी स्वमान की तरफ आकर्षित नहीं हो सकते।
  • अविनाशी स्वमान वाले पूज्य आत्मा बनते हैं।
  • अभी तक अपनी पूजा देख रहे हो।
  • जब अपने पूज्य स्वरूप को देखते हो तो स्मृति आती है ना कि यह हमारे ही रूप है।
  • चाहे भक्तों ने अपनी-अपनी भावना से रूप दे दिया है लेकिन हो तो आप ही पूज्य आत्मायें।
  • जितना ही स्वमान उतना ही फिर निर्माण।
  • स्वमान का अभिमान नहीं है।
  • ऐसे नहीं - हम तो ऊंच बन गये, दूसरे छोटे हैं या उनके प्रति घृणा भाव हो, यह नहीं होना चाहिए।
  • कैसी भी आत्मायें हों लेकिन रहम की दृष्टि से देखेंगे, अभिमान की दृष्टि से नहीं।
  • न अभिमान, न अपमान।
  • अभी ब्राह्मण-जीवन की यह चाल नहीं है।
  • तो दृष्टि बदल गई है ना!
  • अब जीवन ही बदल गई तो दृष्टि तो स्वत: ही बदल गई ना!
  • सृष्टि भी बदल गई।
  • अभी आपकी सृष्टि कौनसी है!
  • आपकी सृष्टि वा संसार बाप ही है।
  • बाप में परिवार तो आ ही जाता है।
  • अभी किसी को भी देखेंगे तो आत्मिक दृष्टि से, ऊंची दृष्टि से देखेंगे।
  • अभी शरीर की तरफ दृष्टि जा नहीं सकती क्योंकि दृष्टि वा नयनों में सदा बाप समाया हुआ है।
  • जिसके नयनों में बाप है वह देह के भान में कैसे जायेंगे?
  • बाप समाया हुआ है या समा रहा है?
  • बाप समाया है तो और कोई समा नहीं सकता।
  • वैसे भी देखो तो आंख की कमाल है ही बिन्दू से।
  • यह सारा देखना-करना कौन करता है?
  • शरीर के हिसाब से भी बिंदी ही है ना।
  • छोटी-सी बिंदी कमाल करती है।
  • तो देह के नाते से भी छोटी-सी बिंदी कमाल करती है और आत्मिक नाते से बाप बिंदु समाया हुआ है, इसलिए और कोई समा नहीं सकता। ऐसे समझते हो?
  • जब पूज्य आत्मायें बन गये तो पूज्य आत्माओं के नयन सदा निर्मल दिखाते हैं।
  • अभिमान या अपमान के नयन नहीं दिखाते।
  • कोई भी देवी वा देवता के नयन निर्मल वा रूहानी होंगे।
  • तो यह नयन किसके हैं?
  • कभी किसी के प्रति कोई संकल्प भी आये तो याद रखो कि मैं कौन हूँ।
  • मेरे जड़-चित्र भी रूहानी नयनधारी हैं तो मैं तो चैतन्य कैसे हूँ?
  • लोग अभी तक भी आपकी महिमा में कहते हैं - सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी।
  • तो आप कौन हो?
  • सम्पूर्ण निर्विकारी हो ना!
  • अंशमात्र भी कोई विकार न हो।
  • सदैव यह स्मृति रखो कि मेरे भक्त मुझे इस रूप से याद कर रहे हैं।
  • चेक करो - जड़ चित्र और चैतन्य-चरित्र में अंतर तो नहीं है?
  • चरित्र से चित्र बने हैं।
  • संगम पर प्रैक्टिकल चरित्र दिखाया है तब चित्र बने हैं। अच्छा!

    • अच्छा!
    • चारों ओर के सर्व फॉलो फादर करने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा डबल सेवा का बैलेन्स रखने वाले बाप की ब्लैसिंग के अधिकारी आत्माओं को, सदा बेहद के बादशाह - ऐसे राजयोगी, सहजयोगी, स्वत: योगी, सदा अनेक बार के विजय के निश्चय और नशे में रहने वाले अति सहयोगी स्नेही बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • सर्व शक्तियों की सम्पन्नता द्वारा विश्व के विघ्नों को समाप्त करने वाले विघ्न-विनाशक भव
    • जो सर्व शक्तियों से सम्पन्न है वही विघ्न-विनाशक बन सकता है।
    • विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता।
    • लेकिन यदि कोई भी शक्ति की कमी होगी तो विघ्न-विनाशक बन नहीं सकते इसलिए चेक करो कि सर्व शक्तियों का स्टॉक भरपूर है?
    • इसी स्मृति वा नशे में रहो कि सर्व शक्तियां मेरा वर्सा हैं, मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो कोई विघ्न ठहर नहीं सकता।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • जो सदा शुभ संकल्पों की रचना करते हैं वही डबल लाइट रहते हैं।