05-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन




"मीठे बच्चे - बाप से तुम्हें सुमत मिली है, तुम्हारी बुद्धि का ताला खुला है इसलिए तुम्हारा कर्तव्य है सबको अपनी बुद्धि का सहयोग देना।''

प्रश्नः-

संगमयुग पर तुम बच्चों के अन्दर कौन सी आश उत्पन्न होती है जो बाप ही पूरी करते हैं?

उत्तर:-

संगम पर तुम बच्चों में स्वर्ग जाने की आश उत्पन्न होती है।

पहले कभी सोचा भी नहीं था कि हम कोई स्वर्ग में जायेंगे, अभी यह नई आश उत्पन्न हुई है।

यह आश एक बाप ही पूरी करता, यह आश पूरी होने के बाद फिर कोई आश नहीं रहेगी।

गायन भी है अप्राप्त नहीं कोई वस्तु देवताओं के खजाने में।

 

गीत:-आखिर वह दिन आया आज....


  • ओम् शान्ति।
  • सभी भक्तों के लिए जरूर कोई दिन आना है।
  • सब भगवान को ही याद करते हैं।
  • बाकी सभी हैं सीतायें, भक्तियां, सभी दु:खी हैं।
  • याद करते-करते आखिर वह दिन आता है, जबकि बाप आकर हाथ पकड़ते हैं।
  • उनको खिवैया, बागवान, पतित-पावन भी कहा जाता है।
  • अब बच्चे जानते हैं हमने एक का हाथ पकड़ा है।
  • नास्तिक से आस्तिक बने हैं।
  • बाप ने बच्चों को अपना परिचय दे अपना बनाया है वर्सा देने के लिए।
  • बाप से ही वर्सा मिलता है ना।
  • अब यह है बेहद का बाप, परमपिता इसलिए सब बच्चे जो भगत हैं वे सब उनको याद करते हैं।
  • परन्तु यह बात भक्त नहीं समझते।
  • कितना धूमधाम से बाजे-गाजे बजाते तीर्थों पर जाते हैं।
  • कुम्भ के मेले लगते हैं, वेद शास्त्र आदि पढ़ते हैं।
  • यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री इसलिए भगवान को याद करते हैं कि वह आकर इस दुर्गति से छुड़ाये।
  • पुकारते रहते हैं परन्तु बाप का किसको पता नहीं, जिसको बाप का पता न हो वह जैसे बच्चा ही नहीं।
  • बाप को न जानने कारण, नास्तिक बनने कारण दु:ख ही दु:ख है।
  • बाप का बच्चा बनने से सदा सुख ही सुख है।
  • बाप है स्वर्ग का रचयिता।
  • वहाँ सभी तो नहीं चलेंगे।
  • लिमिटेड नम्बर ही आयेंगे बाप से वर्सा लेने।
  • बाकी सब धर्म वाले मुक्ति का वर्सा लेने आते हैं।
  • लेना सबको बाप से ही है।
  • बाप कहते हैं अभी मैं तुमको सहज ते सहज बात समझाता हूँ।
  • बस मुझ अपने बाप को याद करो और यह बाप ही समझाते हैं कि 5 हजार वर्ष पहले भी तुम मिले थे।
  • हर 5 हजार वर्ष के बाद मिलते रहेंगे।
  • अपने लिए तो जैसे पुरानी बात है।
  • कल्प-कल्प तुम राज्य गँवाते हो और फिर पाते हो।
  • 84 जन्म तुम ही लेते हो।
  • यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म।
  • तुम समझते हो हम पहले क्षीरसागर में थे फिर आकर विषय सागर में फँसे हैं।
  • क्षीरसागर वा विषय सागर कोई है नहीं।
  • परन्तु पावन थे फिर माया रावण ने पतित बनाया, अब फिर बाप पावन बनाने आये हैं।
  • गीत में भी कहते हैं आखिर वह दिन आया आज।
  • भक्तिमार्ग में तुमको कोई यह आश नहीं थी कि हम स्वर्ग के मालिक बनें।
  • यह बात तो बुद्धि में थी ही नहीं।
  • यह बाबा भी बहुत गीता पढ़ते थे, सुनते थे।
  • परन्तु यह आश नहीं थी कि हम राजयोग सीख नर से नारायण बनेंगे, तो अनायास ही बाप ने आकर प्रवेश किया।
  • बाबा कहते हैं मैं अब तुम्हारी स्वर्ग की आश पूर्ण करने आया हूँ।
  • अब स्वर्ग में चलने की आश बुद्धि में धारण करो।
  • स्वर्ग का रचयिता है बाप।
  • वह बहुत सहज रीति बैठ समझाते हैं।
  • हाँ काम महाशत्रु है, यह तो संन्यासी भी कहते हैं इसलिए घरबार छोड़ देते हैं।
  • वह तो हुई एक दो की बात।
  • उनका निवृत्ति मार्ग का पार्ट ड्रामा में है।
  • है तो वह भी भगत।
  • गॉड फादर कहते हैं लेकिन वह कौन है - यह नहीं जानते।
  • फिर कहते हैं भज राधे गोविन्द... किसको भजे?
  • कृष्ण का नाम फिर गोविन्द रख दिया है।
  • जो सुना है वह लिख दिया है, भला गोविन्द किसको कहें?
  • गऊओं को चराने वाला, मुरली सुनाने वाला तो एक बाप ही है।
  • है भी ह्युमन गऊ की बात।
  • आगे तुम भी कुछ नहीं समझते थे।
  • अभी बाप ने आकर सुमत दी है।
  • माया रावण कुमत देते हैं, बाप सुमत देते हैं।
  • सुमत है शिवबाबा की, कुमत है रावण की।
  • सुमत माना श्रीमत, कुमत माना झूठी मत।
  • अभी तुम कान्ट्रास्ट को जानते हो।
  • हम झूठी मत पर थे, स्वर्ग की आश तो थी नहीं।
  • अभी बाप ने नई आश प्रगट की है।
  • वहाँ कोई अप्राप्त वस्तु होती नहीं, जिसके लिए माथा मारना पड़े।
  • अब तुम सबकी नई आश है।
  • भल पुरुषार्थ नम्बरवार करते हो।
  • बाप तो नम्बरवन मत देते हैं ना।
  • कहते हैं यह तो ऐसा है जो ब्रह्मा भी उतर आये तो भी उनकी मत नहीं लेंगे।
  • यह पिछाड़ी की महिमा है।
  • तुम्हारी महिमा पिछाड़ी में गाई जायेगी।
  • जब तुम सम्पूर्ण बन जायेंगे तब वाह-वाह निकलेगी।
  • अभी तो चढ़ते गिरते रहते हैं।
  • अभी-अभी खुशी में नाचते, अभी-अभी मुर्दा बन पड़ते।
  • माया भिन्न-भिन्न प्रकार से ठोकर मार देती है।
  • कहाँ न कहाँ सूत मुंझा देती है जो श्रीमत को छोड़ रावण की मत पर चल पड़ते हैं फिर चिल्लाते रहते हैं।
  • बाबा कहते हैं कदम-कदम पर सावधानी लेते रहो।
  • श्रीमत पर चलने में ही तुम्हारा कल्याण है।
  • तुम्हारे अन्दर बाप ने ही आश प्रगट की है ना कि श्रीमत पर चलने से यह लक्ष्मी-नारायण जैसा बनेंगे।
  • जैसे यह (ब्रह्मा) बनते हैं ऐसे ततत्वम्।
  • यह बात भूलो मत।
  • परन्तु माया ऐसी है जो श्रीमत लेने का चांस ही नहीं देती।
  • कहाँ न कहाँ उल्टा काम करा देती है।
  • करके फिर पीछे आकर कहेंगे, बाबा हम यह काम कर बैठे।
  • टाइम नहीं मिला जो राय लेवें।
  • अब क्या करें, माया ने तुमको थप्पड़ मारा, इसमें बाप क्या करेंगे!
  • हर बात में कदम-कदम पर बड़ी सावधानी चाहिए।
  • संन्यासी कभी नहीं कहेंगे - स्त्री पुरुष इकट्ठे रह पवित्र रह सकते हैं, इसमें युक्तियां बहुत हैं।
  • ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाना - कितनी बड़ी युक्ति है।
  • तुम बच्चे ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ बनते हो तो कहाँ कुल को कलंक नहीं लगाना।
  • बहन भाई का नाता कभी उल्टा नहीं होता।
  • लॉ नहीं जो बहन भाई आपस में शादी करें।
  • यहाँ तो सब भाई बहिन हो जाते हैं।
  • इस पर वो लोग हंसते हैं कि यह फिर कहाँ का रिवाज़ है।
  • यह तो है ही नई बात।
  • ऐसी राय कभी कोई दे न सके।
  • कोई पूछे तुम बी.के. हो तो भाई बहिन हो गये।
  • तो बुद्धि में बिठाना है क्योंकि सबकी बुद्धि का ताला बन्द है।
  • पत्थरबुद्धि हैं तो तुमको उनकी बुद्धि का ताला खोलना चाहिए।
  • ढेर के ढेर सेन्टर्स हैं, उनमें सभी अपने को ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हैं तो भाई बहिन ठहरे ना।
  • वह क्रिमिनल एसाल्ट कर न सकें, इम्पासिबुल है।
  • यह तो नई रचना है ईश्वर की।
  • वह कहते हैं - गीता में तो कभी सुना नहीं हैं।
  • बाप कहते हैं यह तो मैं तुमको सिखलाता हूँ फिर तो न शिवबाबा होगा, न बी.के. होंगे।
  • यह ज्ञान प्राय:लोप हो जायेगा।
  • फिर कहाँ सुन सकेंगे।
  • अभी मैं तुमको राजयोग सिखला रहा हूँ।
  • जब राजधानी की स्थापना पूरी हो जायेगी तो फिर यह सब खलास हो जायेगा।
  • पाण्डवों ने राजधानी स्थापन की।
  • यह भी शास्त्रों में नहीं है।
  • देवतायें तो थे पावन दुनिया के मालिक।
  • दैत्य हैं पतित दुनिया के।
  • इन्हों की फिर आपस में लड़ाई कैसे लग सकती।
  • स्वर्ग से नर्क में लड़ाई करेंगे क्या!
  • अच्छा, भला असुरों और देवताओं की लड़ाई कैसे लगी?
  • जरूर संगम होना चाहिए।
  • वह अपना लश्कर ले आकर लड़ाई करें, हिसाब ही नहीं बैठता।
  • जहाँ असुर हैं वहाँ देवता कोई हैं नहीं।
  • जहाँ देवतायें हैं वहाँ असुर नहीं।
  • तो फिर लड़ाई कैसे लग सकती!
  • कौरवों, पाण्डवों की लड़ाई भी लग न सके।
  • जो श्रीमत पर चलते हैं वह कभी किसको लड़ायेंगे कैसे?
  • लड़ाने वाले हैं मनुष्य।
  • बाप लड़ने वा जुआ खेलने की छुट्टी नहीं दे सकते।
  • पाण्डव कोई मूर्ख थोड़ेही थे जो जुआ खेलेंगे वा आपस में लड़ेंगे।
  • बाबा ने समझाया है कि यह बाबा का रुद्र ज्ञान यज्ञ है।
  • अबलाओं पर अत्याचार बहुत होते हैं।
  • विष के लिए कितना तंग करते हैं।
  • बोलो, भगवान कहते हैं काम महाशत्रु है, इस पर विजय पाने से तुम स्वर्ग में आ जायेंगे।
  • ऐसे-ऐसे समझाने से बहुत जीत भी पाते हैं।
  • फिर उनको देवी कह पूजते हैं।
  • मदद भी मिलती है।
  • मनुष्य तो सुनकर डर जाते हैं कि स्त्री पुरुष इकट्ठे रहते पवित्र रहे, यह हो नहीं सकता।
  • कहते हैं जरूर कुछ जादू है।
  • ऐसे सतसंग में कभी नहीं जाना।
  • शुरू में बच्चियां भागी तो वह नाम हो गया है।
  • भट्ठी जो बनी तो जरूर भागे होंगे ना।
  • बांधेलियों को बहुत राय मिलती है, इसमें बहादुरी भी चाहिए।
  • गरीब तो समझेंगे कोई हर्जा नहीं।
  • इसके कारण हम स्वर्ग की राजाई क्यों गॅवायें।
  • यह घर से निकाल देंगे - अच्छा हम जाकर बर्तन मांजेंगी, झाडू लगायेंगी।
  • बड़े घर वाले तो ऐसे छोड़ न सकें।
  • शुरू में तो बच्चियों का पार्ट था।
  • गरीबों के लिए बहुत सहज है।
  • बाबा कहते हैं - बाबा के पास आयेंगे तो पहले झाडू आदि लगाना, सब करना पड़ेगा।
  • माया के तूफान भी जोर से आयेंगे।
  • बच्चे याद पड़ेंगे, इसलिए खबरदारी चाहिए।
  • पहले नष्टोमोहा बनो, तब है बात। शिवबाबा को मत देनी पड़ती है।
  • ज्ञान मिला है, कपड़ा कैसा भी पहनो, हर्जा नहीं है।
  • बाप तुम्हें नयनों पर बिठाकर स्वर्ग में ले चलते हैं।
  • साजन पिछाड़ी सजनी जाती है तो मटकी में ज्योति जगाते हैं।
  • बाप आते ही हैं सबको गुल-गुल बनाकर ले जाने।
  • प्योर तो सभी बनेंगे।
  • पापों का बोझा सिर पर है तो हिसाब-किताब अन्त में चुक्तू कर जाना है, इसके लिए तुम याद में रहने की इतनी मेहनत करते हो, जो नहीं करते वह ऐसे ही थोड़ेही मुक्ति में जायेंगे।
  • कयामत के समय खूब सजा खाकर फिर मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
  • आत्मा का तो स्वधर्म है साइलेन्स।
  • हम अशरीरी हो बैठते हैं।
  • इन कर्मेन्द्रियों से काम नहीं लेते हैं, चुप हो बैठ जाते हैं।
  • परन्तु कब तक?
  • आखरीन कर्म तो करना है ना।
  • साधू सन्त आदि कोई को भी यह पता नहीं है कि आत्मा का स्वधर्म ही साइलेन्स है।
  • संन्यासी लोग शान्ति को ढूँढने जाते हैं।
  • बाबा कहते हैं शान्ति तो तुम्हारे गले का हार है।
  • फिर हम जंगल में क्यों जायें! हम कर्मयोगी हैं।
  • बाबा कहते हैं मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
  • फिर स्वर्ग को याद करो, 63 जन्म भक्ति की घमसान ने हैरान कर दिया, अभी तुमको सब हंगामों से छुड़ा दिया है।
  • बाबा के डायरेक्शन मिलते हैं कि अब अशरीरी बनो क्योंकि तुमको मेरे पास आना है फिर तुमको स्वर्ग में भेज दूँगा, इसमें हंगामें की कोई बात ही नहीं।
  • भक्ति मार्ग में तुमने धक्के खाये, सो तो फिर भी खाने पड़ेंगे।
  • सबको पुनर्जन्म लेते-लेते तमोप्रधान बनना ही है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कदम-कदम पर बड़ी सावधानी से चलना है।
  • श्रीमत पर मूँझना नहीं है।
  • कभी कुल को कलंक नहीं लगाना है।
  • 2) बाप के पास जाने के लिए पुराने सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं।
  • अशरीरी बनने का पूरा अभ्यास करना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • बाप की समीपता के अनुभव द्वारा स्वप्न में भी विजयी बनने वाले समान साथी भव
    • भक्ति मार्ग में समीप रहने के लिए सतसंग का महत्व बताते हैं।
    • संग अर्थात् समीप वही रह सकता है जो समान है।
    • जो संकल्प में भी सदा साथ रहते हैं वह इतने विजयी होते हैं जो संकल्प में तो क्या लेकिन स्वप्न मात्र भी माया वार नहीं कर सकती।
    • सदा मायाजीत अर्थात् सदा बाप के समीप संग में रहने वाले।
    • कोई की ताकत नहीं जो बाप के संग से अलग कर सके।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सदा निर्विघ्न रहना और सर्व को निर्विघ्न बनाना - यही यथार्थ सेवा है।
    • अनमोल ज्ञान रत्न (दादियों की पुरानी डायरी से)
    • अपने निश्चय में स्थित हो अपनी कल्प पहले वाली नूंध को बनाना है। ऐसे नहीं कि नूंध अनुसार निश्चय करना है। कई समझते हैं कि यह ज्ञान तो मेरे भाग्य में ही नहीं है, ऐसा नूंधा हुआ है। लेकिन नहीं। यह निश्चय अवश्य रखना है कि मेरे भाग्य में नूंध है। पुरुषार्थ करके अपनी प्रालब्ध बनानी है क्योंकि विराट फिल्म अनुसार बनी हुई तो है लेकिन पुरुषार्थ से इस बनी को बनाना है। बनी सिद्ध ही तब होगी, जब बनी को मालिक बन बनावें। बनी हुई को आगे से ही समझ खड़ा नहीं हो जाना चाहिए। लेकिन पुरुषार्थ से जो प्रालब्ध सिद्ध होती है उनको ही प्रालब्ध समझना चाहिए। यही ज्ञान है। बाकी नूंध समझ पुरुषार्थहीन हो जाना, यह अज्ञान है। अच्छा - ओम् शान्ति।