03-03-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन




"मीठे बच्चे - बाबा आये हैं तुम्हें सच्चा-सच्चा वैष्णव बनाने, तुम अभी ट्रांसफर हो काले से गोरे बन रहे हो''

प्रश्नः-

सर्व की कामनायें पूर्ण करने वाले आप बच्चों का टाइटल क्या है? तुम्हें कौन सी कामना पूर्ण करनी है?

उत्तर:-

तुम सर्व की मनोकामनायें पूर्ण करने वाले जगत अम्बा के बच्चे कामधेनु हो।

सभी की कामना है - हमें मुक्ति जीवनमुक्ति मिले।

तो तुम जगत अम्बा, जगत पिता के बच्चे सबको मुक्ति-जीवनमुक्ति का रास्ता बताते रहो, यही तुम्हारा धन्धा है।

 

गीत:-अम्बे तू है जगदम्बे.......


  • ओम् शान्ति।
  • यह है मम्मा के लिए भक्तों की महिमा।
  • कहते हैं कि भक्तों की रक्षा करने वाले।
  • अब यह भक्ति मार्ग हो गया।
  • मम्मा की महिमा शिवबाबा के पिछाड़ी है, जब परमपिता परमात्मा शिव आते हैं तब आकर जगत अम्बा को रचते हैं।
  • रचने का अर्थ ही है ट्रांसफर करना।
  • काले को गोरा बनाते हैं।
  • इस समय जगत अम्बा तो एक ही है।
  • जैसे शिव का चित्र तो एक ही है फिर उसके भिन्न-भिन्न नाम रख, भिन्न-भिन्न मन्दिर बनाये हैं।
  • अनेक प्रकार से महिमा भी करते हैं।
  • परमपिता परमात्मा एक ही है।
  • वैसे जगत अम्बा भी एक ही है।
  • दो भुजाओं वाली है।
  • 8 भुजाओं वाले कोई देवी-देवता होते नहीं।
  • प्रजापिता अथवा जगत अम्बा भी दो भुजा वाली है।
  • जगत अम्बा की महिमा जास्ती कलकत्ते में है।
  • मशहूर है काली कलकत्ते वाली।
  • उनका चित्र भी बहुत भयानक बनाया है।
  • खप्पर की माला भी पहनती है।
  • यह सब है भक्ति मार्ग।
  • जगत अम्बा तो बलि ले नहीं सकती।
  • वह तो जगत को रचने वाली ठहरी।
  • वह बलि कैसे ले सकती अथवा वह मांसाहारी कैसे हो सकती।
  • उनके मन्दिर न सिर्फ कलकत्ते में हैं परन्तु बहुत जगह हैं।
  • माता अपने बच्चों की बलि थोड़ेही लेगी।
  • भक्ति कितनी कड़ी है।
  • अब उन्हों को कोई बैठ समझावे कि जगत अम्बा का ऐसा भयानक रूप नहीं होता है।
  • न ऐसी बलि लेती है।
  • उनमें भी एक है वैष्णव देवी, दूसरी है मांसाहारी।
  • अब जो मांसाहारी है वह वैष्णव बनती है।
  • भल मम्मा तो कुमारी है, शायद कुछ न भी खाया हो।
  • जगत अम्बा ब्रह्मा की बेटी कुमारी ठहरी।
  • अब कुमारी को फिर अम्बा कैसे कहा जाता, यह समझने की बात है।
  • कलकत्ते में बहुत पूजा होती है।
  • बहुत भयानक शक्ल बनाई है, जगत अम्बा की तो ऐसी शक्ल हो न सके।
  • वह सबकी मनोकामनायें पूर्ण करने वाली है।
  • वह सच्ची-सच्ची वैष्णव देवी है।
  • उसके पिछले जन्म में जरूर मांसाहारी होगी।
  • फिर वैष्णव अथवा पावन दैवीगुण वाली बन रही है।
  • है सारी संगमयुग की बात।
  • तो जगत अम्बा के मन्दिर में जाकर महिमा करनी चाहिए।
  • पहले बताना है निराकार आत्माओं का बाप भी एक है।
  • फिर साकार प्रजापिता ब्रह्मा भी एक है।
  • ब्रह्मा की बेटी सरस्वती भी एक है, वह कभी बलि आदि नहीं लेती।
  • पहले सुन्दर थी, अब सांवरी है, फिर सुन्दर बनेंगी।
  • तो सारा कुटुम्ब भी सुन्दर बन जायेगा।
  • बहुत जगह अम्बा को दो भुजा वाली ही दिखाते हैं।
  • समझाने से कोई तो समझ भी जायेंगे, कोई तो झगड़ा भी करेंगे।
  • हंगामा करने में देरी नहीं करते।
  • तो समझाने में होशियार चाहिए।
  • तुम बच्चे हो कल्याणकारी।
  • मम्मा भल पहले कलकत्ते में गई थी परन्तु ऐसी मुरली नहीं चली थी।
  • जगत अम्बा है एक।
  • तुम अनेकानेक बच्चियां हो।
  • नाम तो एक का होगा ना।
  • एक के ही अनेक मन्दिर बनाये हैं।
  • अब कलकत्ते में भक्तों को इस पूजा से छुड़ायें कैसे?
  • उन्हों को भी पूज्य तो बनाना है ना!
  • तो वहाँ जाकर कोई समझावे।
  • इस समय वह जगत अम्बा सबकी मनोकामनायें पूर्ण करने वाली बैठी है।
  • वह है कामधेनु।
  • किस रीति वह कामनायें पूरी करती है, यह कोई नहीं जानते।
  • तुम हो कामधेनु जगत अम्बा की बच्चियां।
  • सिर्फ गऊ माता नहीं, पुरुष भी हैं।
  • वह भी बहुतों की कामनायें पूर्ण करते हैं।
  • तुम्हारा धन्धा ही है सबकी मनोकामनायें पूर्ण करना।
  • कहाँ भाई भी सेन्टर्स चलाते हैं।
  • उन्हों की बुद्धि में आता है कि हम भी सभी की मनोकामनायें पूर्ण करें अर्थात् मुक्ति जीवनमुक्ति का रास्ता बतावें, स्वर्ग का वर्सा दें।
  • जिन्होंने कल्प पहले लिया है, वही लेंगे।
  • हाँ, वहाँ सब प्रकार के सुख मिलते हैं।
  • जगत पिता, जगत अम्बा इन दोनों का रचयिता है शिवबाबा।
  • इन द्वारा कितनी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
  • कलकत्ते में बहुत पूजा होती है।
  • कोई किसको, कोई किसको मानने वाला होगा।
  • कोई वैष्णव देवी को भी मानने वाले होंगे।
  • वह तुम्हारी बातों से झट राज़ी हो जायेंगे।
  • बोलो, तुमको राज्य भाग्य मिला हुआ था इस जगत अम्बा से।
  • जगत अम्बा को फिर कहाँ से मिला?
  • जगत पिता से।
  • उनको कहाँ से मिला?
  • शिवबाबा से।
  • जो सारी सृष्टि का रचयिता है, तुम अच्छी रीति समझा सकते हो।
  • जगत अम्बा को सब मानते हैं।
  • जरूर जगत अम्बा और जगत पिता को भी वर्सा शिवबाबा से मिलता है फिर उनके द्वारा बच्चों को मिलता है।
  • जगत अम्बा एक है, दो भुजाओं वाली है।
  • बहुत भुजायें नहीं हैं।
  • सरस्वती ब्रह्मा की बेटी है ज्ञान-ज्ञानेश्वरी।
  • परन्तु उनका रूप तो भयानक दिखा दिया है।
  • तो उस पर समझाना पड़ता है कि जगत अम्बा का ऐसा भयानक रूप नहीं है।
  • सतोप्रधान मनुष्य से फिर तमोप्रधान बनते हैं।
  • तमोप्रधान मनुष्य फिर सतोप्रधान मनुष्यों को पूजते हैं।
  • जगत अम्बा मनुष्य ठहरी क्योंकि जगत तो यहाँ है।
  • मूलवतन, सूक्ष्मवतन को जगत नहीं कहेंगे।
  • सूक्ष्मवतन में देवतायें, मूलवतन में आत्मायें रहती हैं।
  • तो यह सब बातें समझाने की हैं।
  • बाकी बाप और वर्से को याद करना है।
  • 84 जन्मों की कहानी भारतवासियों को ही सुनानी पड़े।
  • जो देवता थे, वह अब नहीं हैं।
  • जो देवी-देवताओं के पुजारी होंगे, वही इन सब बातों को समझेंगे।
  • वह फिर ऊंच पद प्राप्त करने के लिए मेहनत भी करेंगे।
  • कई बच्चे समझते हैं हम तो बाबा के बच्चे बन गये, जरूर ऊंच पद पायेंगे।
  • परन्तु विचार करो पहले तो जरूर अच्छा पढ़ेंगे तब तो अच्छा पद पायेंगे।
  • पढ़ेंगे नहीं और ही विकर्म करते रहेंगे तो एक तो सजा खानी पड़ेगी, दूसरा फिर जाकर नौकर चाकर दास दासियां बनेंगे क्योंकि विकर्मो का बोझा बहुत है।
  • जन्म-जन्मान्तर दासी बने, पिछाड़ी में पद पाया तो क्या हुआ!
  • इससे तो प्रजा को बहुत धन मिलता है।
  • वह किसके दास दासियां नहीं बनते।
  • यह सब समझने की बातें हैं।
  • बाकी मूल बात बाप समझा रहे थे तो वैष्णव देवी ही लक्ष्मी बनती है।
  • लक्ष्मी का मन्दिर बड़ा या वैष्णव देवी का मन्दिर बड़ा?
  • महिमा किसकी बड़ी है?
  • वह है ज्ञान ज्ञानेश्वरी।
  • लक्ष्मी को ज्ञान ज्ञानेश्वरी नहीं कहेंगे इसलिए महिमा जगत अम्बा की है।
  • बड़ा मेला भी उनका लगता है।
  • लक्ष्मी को दीप माला पर बुलाते हैं।
  • यह है आत्माओं का परमात्मा के साथ मेला।
  • इन बातों को कोई मनुष्य नहीं समझते।
  • समझाने वाला बड़ा होशियार चाहिए।
  • जो युक्ति से प्यार से काम चलावे।
  • जो कोई भी समझ जाए तो बरोबर यह ठीक समझाते हैं।
  • श्री लक्ष्मी कितनी सुन्दर थी!
  • लक्ष्मी-नारायण की जो इतनी पूजा है वह भी पक्के वैष्णव हैं।
  • जगत अम्बा भी वैष्णव है।
  • बाप ने उन्हें राजयोग सिखलाकर मनुष्य से देवता बनाया है।
  • तुम्हारी पूजा अभी नहीं हो सकती है क्योंकि शरीर तो पवित्र नहीं है।
  • तुम सम्पूर्ण बन जाते हो तो तुम्हारा शरीर बदल जाता है, तब तुम पूजा लायक बनते हो।
  • वास्तव में संन्यासियों को पूजना नहीं चाहिए।
  • आजकल तो शिवोहम् कह बैठ पूजा कराते हैं।
  • उन्हों में भी एक मठ है जो अपनी पूजा नहीं कराते हैं।
  • अब शिव तो है निराकार, वह अपनी पूजा कैसे करावे।
  • देखो, शिवबाबा इसमें आते हैं तो अपनी पूजा थोड़ेही कराते हैं।
  • बाप तो आकर पुजारी से पूज्य बनाते हैं।
  • पूजा करना कैसे सिखलायेंगे!
  • शिवबाबा कुछ भी करने नहीं देते।
  • कहते हैं राम-राम भी मुख से नहीं कहो।
  • केवल बाप को याद करना है।
  • याद करना कोई जाप नहीं है।
  • बच्चे बाप से वर्सा लेते हैं।
  • बच्चा थोड़ेही बाप का जाप जपेगा!
  • तुमको भी जाप नहीं जपना है।
  • जाप और याद में रात दिन का फ़र्क है।
  • प्वाइंट्स तो ढेर नई-नई मिलती रहती हैं समझाने के लिए।
  • यह भी जरूरी बात है कि यह भी बाप है।
  • इनसे मिलता है बेहद का वर्सा और लौकिक बाप से मिलता है हद का वर्सा।
  • इस पारलौकिक बाप ने कल्प पहले भी वर्सा दिया था, अब फिर देने आये हैं।
  • बुद्धि में सारा ज्ञान फिरना चाहिए, जिससे मनुष्य देवता बन जायें।
  • देखो, ज्ञान मार्ग में समझाने की बड़ी मेहनत चाहिए।
  • जिससे मनुष्य की जीवन हीरे जैसी बन जाये।
  • दु:खी तो बहुत हैं, एक दो में लड़ते रहते हैं।
  • बाप आकर ईश्वरीय सम्प्रदाय बनाकर फिर दैवी सम्प्रदाय बनाते हैं, इसलिए लड़ाई झगड़े की बात ही नहीं।
  • ईश्वरीय दरबार में कोई आसुरी रह न सके।
  • मूत पलीती कपड़ों को यहाँ बैठने का हुक्म नहीं है।
  • बाप समझाते रहते हैं बच्चे कभी आपस में लड़ना-झगड़ना नहीं।
  • सतगुरू का निंदक ठौर न पाये, यानी सतयुग में ऊंच पद नहीं पाये।
  • सतगुरू जो स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, उनकी निंदा करे, तो ऊंच पद पा न सके।
  • यह है सारी यहाँ की बात।
  • परन्तु वह अपने ऊपर ले गये हैं और मनुष्यों को डराते रहते हैं।
  • यहाँ तो पूरा पवित्र बनना है।
  • वह गुरू कर लेते हैं लेकिन पवित्र नहीं बनते हैं।
  • गृहस्थी को गुरू बनाने से कोई फायदा नहीं।
  • यह है प्रजा का राज्य फिर दैवी राज्य बनाने वाला समर्थ चाहिए।
  • बाबा आया है आसुरी दुनिया को दैवी बनाने।
  • दैवी धर्म की स्थापना हो जायेगी, बाकी सब धर्म वाले खत्म हो जायेंगे।
  • कहते हैं भगवान आकर फल देंगे।
  • इससे सिद्ध होता है कि कोई भी निर्वाणधाम में जा नहीं सकते।
  • बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं।
  • बाप कहते हैं मैं तुम्हारा परमपिता परमात्मा हूँ।
  • मेरे में ही सारा ज्ञान है।
  • मेरे को ही पतित-पावन कहते हैं।
  • मैं ही तुमको राजयोग सिखलाता हूँ।
  • तुमको फिर औरों को सिखलाना है।
  • समझाने वाले सब एक जैसे नहीं हैं।
  • तुमको नोट करना चाहिए।
  • अच्छा भाषण करने वालों को भी सब प्वाइंट्स उस समय याद नहीं आती हैं।
  • बाद में ख्याल आता है - यह सुनाना चाहता था।
  • नोट जरूर करना है।
  • परन्तु ऐसे भी नहीं नोट करके फिर छोड़ दें, पढ़े नहीं।
  • धारणा तब होगी जब श्रीमत पर चलेंगे।
  • सुबह अमृतवेले उठकर बाबा को जरूर याद करना है।
  • फिर प्वाइंटस रिपीट करें, औरों को सुनावें तब ऊंच पद पायें।
  • राजा बनना कोई मासी का घर नहीं है। समझा।
  • मेहनत करनी है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) पूज्य बनने का पूरा पुरुषार्थ करना है।
  • अपनी पूजा नहीं करानी है।
  • आत्मा और शरीर दोनों पवित्र होंगे तब ही पूज्यनीय लायक बनेंगे।
  • 2) होशियारी से समझदार बन कल्याण की भावना रख सेवा करनी है।
  • दैवीगुणों वाला सच्चा वैष्णव बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • परमात्म प्यार में धरती की आकर्षण से ऊपर उड़ने वाले मायाप्रूफ भव
    • परमात्म प्यार धरनी की आकर्षण से ऊपर उड़ने का साधन है।
    • जो धरनी अर्थात् देह-अभिमान की आकर्षण से ऊपर रहते हैं उन्हें माया अपनी ओर खींच नहीं सकती।
    • कितना भी कोई आकर्षित रूप हो लेकिन माया की आकर्षण आप उड़ती कला वालों के पास पहुंच नहीं सकती।
    • जैसे राकेट धरनी की आकर्षण से परे हो जाता है।
    • ऐसे आप भी परे हो जाओ, इसकी विधि है न्यारा बनना वा एक बाप के प्यार में समाये रहना - इससे मायाप्रूफ बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • स्व स्थिति को ऐसा शक्तिशाली बनाओ जो परिस्थितियां उसे नीचे ऊपर न कर सकें।
    • अनमोल ज्ञान रत्न - (दादियों की पुरानी डायरी से)
    • ज्ञान ही खुशी का फाउण्डेशन अथवा थुर है, जिस फाउण्डेशन पर ही सारे जीवन रूपी झाड का मदार है। अगर फाउण्डेशन पक्का नहीं है तो वह खुशी अल्पकाल के लिए हो जाती है। जैसे मायावी मनुष्य कहते हैं कि हम खुशी में हैं क्योंकि हमारे पास सब धन पदार्थ मौजूद हैं। परन्तु हम जानते हैं कि उन्हें सर्वदा के लिए स्थाई खुशी नहीं रह सकती क्योकि उन्हों के पास ज्ञान का फाउण्डेशन ही नहीं है। यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई साहूकार किसी फल का माल निकाल आपेही खा लेवे और उसका छिलका फेंक देवे, जिसे कोई गरीब उठा ले और उसे देख खुश हो जाए कि हमारे पास भी माल है, परन्तु वास्तव में माल मालिक खा जाता है। वैसे हम इन अल्पकाल मायावी सुखों को तुच्छ समझ, इस अविनाशी ज्ञान से ईश्वरीय स्थाई अतिन्द्रिय सुख को प्राप्त कर रहे हैं और वे फिर अल्पकाल क्षणभंगुर सुख देने वाली माया को, जिसमें वास्तव में कोई सुख नहीं है उसके पिछाड़ी चटक, उसकी रसना ले, उसमें ही सुख समझ बैठे हैं और इस ही घमण्ड में रहते हैं कि हमारे पास भी कोई माल है। अच्छा - ओम् शान्ति।