26-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - रोज़ अमृतवेले ज्ञान और योग की वासधूप जगाओ तो विकारों रूपी भूत भाग जायेंगे।"
प्रश्नः-
कौन सी एक भूल अनेक भूतों को अन्दर में प्रवेश कर देती है?
उत्तर:-
मैं आत्मा हूँ, यह बात भूलने से अन्दर में अनेक भूत प्रवेश हो जाते हैं।
देह-अभिमान का भूत सबसे बड़ा है,
जिसके पीछे सब आ जाते हैं इसलिए जितना हो सके देही-अभिमानी बनने का पुरूषार्थ करो।
गीत:- आज अन्धेरे में हैं इंसान... |
- ओम् शान्ति।
- बाप बैठ बच्चों को इस गीत पर समझाते हैं, भगत भगवान से चाहते हैं कि भगवान आकर हमारी आंखों को अपना साक्षात्कार करा दे।
- अब तुम बच्चे तो सम्मुख बैठते हो, तुमने ईश्वर को पाया है, इन आंखो से देखा है।
- ईश्वर को कैसे पाना होता है, वह खुद ही आकर बताते हैं अर्थात् यह नॉलेज देते हैं।
- समझाते हैं इस तन द्वारा।
- तुम सब आत्मायें भी इस तन द्वारा अपना-अपना पार्ट बजाती हो, बिगर शरीर तो कोई पार्ट बजा न सके।
- पार्ट आत्मा ही बजाती है शरीर द्वारा।
- शरीर के नाम भी भिन्न-भिन्न रखे जाते हैं।
- आत्मा तो एक ही है - आत्मा खुद कहती है और बाप भी समझाते हैं कि 84 जन्म आत्मा लेती है।
- आत्मा कहती है हम एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
- शरीर तो नहीं कहेगा ना।
- अब तुम बच्चे तो जान गये कि हम आत्मा हैं न कि शरीर।
- बाबा आकर हमको आत्म-अभिमानी बनाते हैं।
- इस शरीर द्वारा आत्मा ही सब कुछ करती है।
- शरीर के अन्दर आत्मा कहती है, इस शरीर द्वारा मैं चलता फिरता हूँ।
- मैं आत्मा जज, वकील आदि बनता हूँ।
- आत्मा कहती है हम इस शरीर द्वारा राजयोग सीखते हैं।
- फिर जाकर राजा-रानी की लिबास पहनेंगे।
- अब तुमको आत्म-अभिमानी बनाया जाता है।
- देह-अभिमान में आना - यही पहले नम्बर की भूल है, जिससे फिर और भूलें भी होती हैं।
- इसको देह-अभिमान का भूत कहा जाता है।
- हर एक मनुष्य में 5 भूत तो हैं जरूर।
- भूतों को भगाने के लिए ही वासधूप किया जाता है।
- इन 5 विकारों रूपी भूतों के लिए वासधूप है - ज्ञान और योग।
- यह कोई जल्दी नहीं भागते हैं।
- उन्हों को भट्ठी में डाला जाता है क्योंकि यह 5 विकार बड़े पुराने दुश्मन हैं।
- बाप कहते हैं बच्चे तुम्हारे में इन भूतों की प्रवेशता हुए आधाकल्प हुआ है, जबसे रावणराज्य चला है।
- बरोबर भारतवासी रावण को दुश्मन समझकर जलाते हैं।
- एक बार इनका खात्मा हुआ है तब फिर रसम चली आती है।
- इस समय तुमने इन 5 विकारों पर विजय पाई थी।
- रावण मुर्दाबाद हो गया था - आधाकल्प के लिए।
- बच्चे कहते फिर बाबा - यह कब जिन्दाबाद होगा?
- बच्चे, फिर आधाकल्प के बाद जिन्दाबाद होगा।
- अपना राज्य करेंगे।
- कहते हैं ना रामराज्य चाहिए।
- तो अब कौन सा राज्य है?
- रावणराज्य है ना, सतयुग में रावणराज्य ही नहीं होगा, वहाँ होगा रामराज्य।
- अच्छा राम-राज्य के पहले-पहले राजा-रानी कौन थे?
- यह भी कोई जानते नहीं।
- राम-राम कहते हैं तो राम को ऊपर ले गये हैं।
- कृष्ण को नीचे ले गये हैं।
- सतयुग का तो जैसे उन्हों को पता ही नहीं है।
- तुम प्रदर्शनी में भी लिख दो कि हर एक मनुष्य में 5 भूतों की प्रवेशता है।
- कम से कम 7 रोज़ भट्ठी में रहें तब यह भूत सब भागें।
- उन्हों को ज्ञान और योग का धूप चाहिए।
- उनके सिवाए कभी मुक्ति जीवनमुक्ति पा नहीं सकेंगे।
- इस ज्ञान और योग का इन्जेक्शन एक ही सर्जन के पास है।
- अब यह ज्ञान आत्मा को मिल रहा है।
- आत्मा समझती है कि बाबा हमको समझा रहे हैं और कोई भाषा में ऐसे नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा हमको पढ़ा रहे हैं।
- भगवान खुद भी निराकार तो बच्चे भी निराकार।
- निराकार इस साकार द्वारा, साकारी बच्चों को ज्ञान दे रहे हैं।
- यह तुम अच्छी तरह जानते हो।
- परन्तु चलते-चलते कई बच्चे भूल जाते हैं।
- भूलने का भी पहला-पहला कारण है देह-अभिमान का भूत। उसको भगाने का अमृतवेले ही पुरूषार्थ करना है।
- अमृतवेले बाबा की याद अच्छी रहती है।
- कहते हैं - सिमर-सिमर सुख पाओ।
- अमृतवेले का ही कायदा है।
- भगत लोग भी अमृतवेले ही सिमरण करते हैं।
- राम सिमर प्रभात मोरे मन... आत्मा बुद्धि को कहती है कि राम सिमरो।
- भक्तिमार्ग में तो ऐसे ही टोटके बनाते हैं।
- वह कोई रीयल्टी में नहीं है।
- समझते नहीं कि काम भी भूत है।
- तुम लिख सकते हो सबमें 5 भूत हैं।
- पहला नम्बर है देह-अभिमान।
- फिर सेकेण्ड नम्बर है काम महाशत्रु।
- आगे स्कूल में भी पढ़ाते थे कि तुम आत्मा हो यह शरीर 5 तत्वों का बना हुआ है।
- आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है।
- अब तो यह पढ़ाई आदि कुछ नहीं है।
- अब तुम बच्चों को पूरा-पूरा परिचय दिया जाता है।
- प्रेजीडेंट को जरूर प्रेजीडेंट कहेंगे।
- प्राइम-मिनिस्टर को प्राइम-मिनिस्टर, दोनों की एक्ट अपनी-अपनी है।
- वैसे परमपिता परमात्मा और फिर त्रिमूर्ति, उन्हों की भी एक्ट अपनी-अपनी है।
- शिव को कहा ही जाता है पतित-पावन।
- वह ब्रह्मा द्वारा पतितों को पावन बनाते हैं, उनकी यह ड्युटी है।
- अब बड़े ते बड़ा तो है शिव।
- शिवबाबा कब जन्म-मरण में नहीं आते हैं।
- बाकी ब्रह्मा द्वारा सर्विस करते हैं। शिवबाबा है एवरप्योर। ब्रह्मा विष्णु पुनर्जन्म में आते हैं।
- शिवबाबा तो करनकरावनहार है।
- इस समय बाबा मीठे झाड़ का सैपलिंग लगा रहे हैं, जो और धर्मों में कनवर्ट हो गये होंगे वह सब निकल आयेंगे।
- तो यह इतनी समझानी नया कोई समझ न सके।
- 7 रोज़ भट्ठी में पड़ने के सिवाए मुक्ति-जीवनमुक्ति कोई पा नहीं सकते।
- तुमने भी भूतों को निकालने के लिए कितनी मेहनत की है।
- बुद्धि जब पवित्र हो तब ज्ञान अमृत ठहर सके।
- तुम बच्चे समझ सकते हो तो बरोबर बाबा की याद भूल जाती है।
- बहुत देह-अभिमान आने से फिर मित्र-सम्बन्धियों आदि तरफ लव चला जाता है।
- कोई को भी मोह का भूत न आये।
- बाबा को कितने ढेर बच्चे हैं।
- मोह की बात ही नहीं।
- जानते हैं आत्मा कभी मरती नहीं।
- मरने का ही डर रहता है।
- आत्मा भी अविनाशी है, परमात्मा भी अविनाशी है, वह जन्म-मरण में नहीं आता।
- बाबा कहते हैं मैं इस शरीर का लोन लेता हूँ।
- मेरे रहने से इनको बहुत फायदा है।
- इनकी आयु बढ़ जाती है, गुल-गुल हो जाता है।
- इनकी सब खामियां खत्म कर बिल्कुल नया बना देता हूँ।
- बाबा तो है ही सुख दाता, मेरे कारण यह योग सीखते हैं, तब तो तन्दुरूस्त बन जाते हैं।
- किसको गाली देना, गुस्सा करना यह सब आसुरी स्वभाव है।
- सतयुग में यह गाली आदि होती ही नहीं।
- नाम ही कितना फर्स्टक्लास है हेविन, वैकुण्ठ, पैराडाइज, कहते हैं - क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत पैराडाइज था।
- इस हिसाब से बरोबर 5 हजार वर्ष ही हुआ।
- यह सत्य ज्ञान और सत्य नारायण की कथा कितनी सहज है।
- हम अभी नर से नारायण बनने की सत्य कथा सुनते हैं - राजयोग की।
- फिर यहाँ की बात भक्तिमार्ग में चली जाती है, वन्डर है ना।
- भारतवासियों को पता ही नहीं कि लक्ष्मी-नारायण ही राधे-कृष्ण थे इसलिए हम यह चित्र बनाते रहते हैं तो मनुष्य समझें।
- तुम बच्चों के सेन्टर वृद्धि को पाते रहते हैं।
- बहुत चाहते हैं सेन्टर खोलें, जांच करनी चाहिए कि कितने पढ़ने वाले हैं?
- स्कूल में स्टूडेन्ट तो चाहिए ना।
- पहले 2-4 आयेंगे फिर जास्ती होते जायेंगे।
- गली-गली में मन्दिर, टिकाणे खुलते रहते हैं।
- फिर एक दो को देख बहुत आ जाते हैं।
- सेन्टर खोलने जैसा भी चाहिए ना।
- हर्जा नहीं है खोलने में, परन्तु विघ्न बहुत पड़ते हैं विकार के कारण।
- हम तो सिर्फ गीता सुनाते हैं, परन्तु शुरू से इस विष के कारण झगड़ा चलता ही रहता है।
- समझते हैं यहाँ जाने से विष का प्याला नहीं मिलेगा।
- इस पर मीरा का इतिहास भी है।
- ऐसे तो बहुत कन्यायें और बालक ब्रह्मचारी रहते हैं उनको तो कोई कुछ नहीं कहता।
- यह तो कल्प पहले भी गाली खाई थी, यह तो होना ही है।
- कोई तो पवित्रता की प्रतिज्ञा करते हैं फिर हार भी खा लेते हैं।
- कल्प-कल्प की लाटरी है।
- इसमें जांच की जाती है कि कहाँ तक वर्सा लेते हैं फिर कल्प-कल्प लेते रहेंगे।
- कहाँ काम न मिलने कारण फिर क्रोध में आकर हंगामा करते हैं।
- तकलीफ बहुत देते हैं, मारते भी हैं फिर जब समझ जाते हैं तो माफी भी लेते हैं।
- फिर भी अपकारी के ऊपर उपकार करना होता है।
- कहेंगे अच्छा फिर पुरूषार्थ करो।
- अपकारी पर उपकार कर उठाना बेहतर है।
- रहमदिल बनना होता है।
- पहले-पहले मेहनत है आत्म-अभिमानी बनने की।
- देह-अभिमानी होने से बाप को भूल जाते हैं फिर भूलें होती रहेंगी।
- हर एक की चलन से पता पड़ जाता है।
- मुख से हमेशा रत्न निकलने चाहिए, पत्थर नहीं।
- आगे पत्थर निकलते थे।
- अब रत्न निकलने चाहिए।
- तुम्हारा नाम ही है रूप-बसन्त।
- बाबा भी रूप-बसन्त है, ज्ञान का सागर है और उनका रूप भी ज्योर्तिलिंगम् दिखाया है, परन्तु है स्टॉर।
- पूजा के लिए बड़ा रूप रख दिया है।
-
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पहले-पहले आत्म अभिमानी बनने की मेहनत करनी है, देह-अभिमान में कभी नहीं आना है।
रहमदिल बन अपकारी पर भी उपकार करना है।
2) भूतों को भगाने के लिए अमृतवेले विशेष याद में रहने का पुरूषार्थ करना है।
मीठे झाड़ का सैपलिंग लगाने में बाबा का मददगार बनना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाले न्यारे-प्यारे भव
- समय की समीपता प्रमाण वर्तमान समय के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष रूप में होना आवश्यक है।
- यथार्थ वैराग्य वृत्ति का अर्थ है - सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा।
- जो न्यारा-प्यारा है वह निमित्त और निर्मान है, उसमें मेरेपन का भान आ नहीं सकता।
- वर्तमान समय मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है - कहेंगे ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे यह सब साधन भाग्य अनुसार मिले हैं... तो अब ऐसे रायॅल रूप के मेरे पन को समाप्त करो।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- परचिंतन के प्रभाव से मुक्त होना है तो शुभचिंतन करो और शुभचिंतक बनो।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
- हम ब्राह्मण कुल का छोटा-सा संसार
- गीत: मेरा छोटा-सा देखो ये संसार है...। यह गीत किसी समय का गाया हुआ है क्योंकि इस संगम समय ही हम ब्राह्मण कुल का छोटा-सा संसार है। वो हमारा कौन-सा परिवार है? वह नम्बरवार बतलाते हैं। हम परमपिता परमात्मा शिव के पोत्रे हैं। ब्रह्मा सरस्वती की मुख संतान हैं, और विष्णु शंकर हमारे ताया जी हैं और हम आपस में सभी भाई बहन ठहरे। यह है अपना छोटा-सा संसार... इनके आगे और सम्बन्ध रचा ही नहीं है, इस समय का इतना ही सम्बन्ध कहेंगे। देखो, हमारा सम्बन्ध कितनी बड़ी अथॉरिटी से है! हमारा ग्रैण्ड पप्पा है शिव, इनका नाम कितना भारी है वो सारी मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है। सर्व आत्माओं का कल्याणकारी होने कारण उनको कहा जाता है हर हर भोलानाथ, शिव देवों के देव महादेव। वो सारी सृष्टि का दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है। उस द्वारा हमें सुख-शान्ति-पवित्रता का बड़ा हक मिलता है, शान्ति में फिर कोई कर्मबन्धन का हिसाब किताब नहीं रहता। परन्तु यह दोनों वस्तु पवित्रता के आधार पर रखते हैं। जब तक पिता की परवरिश का पूर्ण वर्सा ले पिता से सर्टीफिकेट न मिला है, तब तक वो वर्सा मिल नहीं सकता। देखो, ब्रह्मा के ऊपर कितना बड़ा काम है, मलेच्छ 5 विकारों में मैली अपवित्र आत्माओं को गुलगुल बनाते हैं, जिस अलौकिक कार्य का उजूरा फिर सतयुग का पहला नम्बर श्रीकृष्ण पद मिलता है। अब देखो, उस पिता के साथ तुम्हारा कितना सम्बन्ध है! तो कितना बेफिकर और खुश होना चाहिए। अब हर एक अपनी दिल से पूछे हम उनके पूर्ण रीति हो चुके हैं? अच्छा - ओम् शान्ति।
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