22-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - तुम सबको सच्ची गीता सुनाकर सुख देने वाले सच्चे-सच्चे व्यास हो, तुम्हें अच्छी तरह पढ़कर सबको पढ़ाना है, सुख देना है''

प्रश्नः-

सबसे ऊंची मंजिल कौन सी है, जिस पर पहुंचने का तुम पुरूषार्थ करते हो?

उत्तर:-

अपने को अशरीरी समझना, इस देह-अभिमान पर जीत पाना - यही ऊंची मंजिल है क्योंकि सबसे बड़ा दुश्मन है देह-अभिमान।

ऐसा पुरुषार्थ करना है जो अन्त में बाप के सिवाए कोई याद न आये।

शरीर छोड़ बाप के पास जाना है।

यह शरीर भी याद न रहे।

यही मेहनत करनी है।

 

गीत:-इस पाप की दुनिया से....


  • ओम् शान्ति।
  • जीव आत्मायें या बच्चे समझते हैं दिल में कि अभी हमको बाबा कहाँ ले चलते हैं।
  • बरोबर जहाँ से हम आये हैं वहाँ ही ले चलेंगे।
  • फिर हमको पुण्य आत्माओं की सृष्टि, जीव आत्माओं की दुनिया में भेज देंगे।
  • श्रेष्ठ और भ्रष्ट अक्षर निकले हैं, जरूर जीव आत्माओं को ही कहेंगे।
  • सुख वा दु:ख जब शरीर में है तब ही भोगा जाता है।
  • बच्चे जानते हैं कि अब बाबा आया है।
  • बाबा का नाम हमेशा शिव है।
  • हमारा नाम सालिग्राम है।
  • शिव के मन्दिर में सालिग्रामों की भी पूजा होती है, बाबा ने समझाया था - एक है रूद्र ज्ञान यज्ञ, दूसरा है रूद्र यज्ञ।
  • उसमें खास बनारस के ब्राह्मणों, पण्डितों को बुलाते हैं - रूद्र यज्ञ की पूजा के लिए।
  • बनारस में ही शिव के रहने के अनेक मन्दिर हैं।
  • शिवकाशी कहते हैं, असल नाम काशी था।
  • फिर अंग्रेजों ने बनारस नाम रखा।
  • वाराणसी नाम अभी रखा है।
  • भक्ति मार्ग में आत्मा परमात्मा का ज्ञान तो है नहीं।
  • पूजा दोनों की अलग-अलग करते हैं।
  • एक बड़ा शिवलिंग बनाते हैं बाकी छोटे-छोटे सालिग्राम अनेक बनाते हैं।
  • तुम जानते हो - हम आत्माओं का नाम है सालिग्राम और हमारे बाबा का नाम है शिव।
  • सालिग्राम सब एक साइज़ के बनाते हैं तो बरोबर बाप और बेटे का सम्बन्ध है।
  • आत्मा याद करती रहती है हे परमपिता परमात्मा।
  • हम परमात्मा नहीं हैं।
  • परमात्मा हमारा बाबा है, यह समझाने की मत तुमको दी गई है।
  • दिन-प्रतिदिन तुमको श्रीमत मिलती रहती है कि कोई को भी पहले बाप का परिचय दे वर्सा दिलाना है।
  • पहले तुमको सिद्ध करके समझाना है कि वह निराकार बाप है।
  • यह प्रजापिता साकार है।
  • वर्सा निराकार से मिलता है।
  • अब बाप समझाते हैं - मेरा एक ही शिव नाम है।
  • दूसरा कोई मेरा नाम नहीं।
  • सभी आत्माओं के शरीर के नाम अनेक हैं।
  • मेरा कोई शरीर है नहीं।
  • मैं सुप्रीम सोल हूँ।
  • बाबा पूछते हैं बच्चे, तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है?
  • जो सयाने होंगे वह कहेंगे देह-अभिमान सबसे बड़ा दुश्मन है जिससे ही काम की उत्पत्ति होती है।
  • देह-अभिमान को जीतने में बड़ी मुश्किलात होती है।
  • देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
  • जन्म-जन्मान्तर तुम देह के सम्बन्ध में चले हो।
  • अब जानते हो बरोबर मैं आत्मा अविनाशी हूँ, जिसके आधार से यह शरीर चलता है।
  • रिलीजस माइन्डेड जो भी हैं वह समझते हैं कि हम आत्मा हैं, देह नहीं हैं।
  • आत्मा का नाम एक ही रहता है।
  • देह के नाम बदलते हैं।
  • आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
  • हमको बाप कहते हैं तुमको चलना है पुण्य आत्माओं की दुनिया में।
  • यह है पाप आत्माओं की दुनिया।
  • भ्रष्टाचारी रावण बनाते हैं।
  • 10 शीश वाला कोई मनुष्य नहीं होता परन्तु इस बात को कोई नहीं जानते।
  • सभी रामलीला आदि में पार्ट लेते रहते हैं।
  • सब एक मत भी नहीं हैं।
  • कोई-कोई इन सब बातों को कल्पना समझते हैं।
  • परन्तु यह नहीं जानते कि रावण भ्रष्टाचारी को कहा जाता है।
  • पराई स्त्री को चुराना यह भ्रष्टाचार है ना।
  • इस समय सब भ्रष्टाचारी हैं क्योंकि विकार में जाते हैं।
  • जो विकार में न जायें उनको निर्विकारी कहा जाता है, वह है रामराज्य।
  • यह है रावण राज्य।
  • भारत में ही रामराज्य था।
  • भारत सबसे प्राचीन था।
  • पहले नम्बर में सृष्टि पर सूर्यवंशी देवी देवताओं का झण्डा बुलन्द था।
  • उस समय चन्द्रवंशी भी नहीं थे।
  • अभी तुम बच्चों का यह सूर्यवंशी झण्डा है।
  • तुमको मंजिल का पता लगा है फिर भूल जाते हो।
  • स्कूल में बच्चा कभी एम आब्जेक्ट को भूल नहीं सकता।
  • स्टूडेन्ट टीचर को वा पढ़ाई को कभी भूल नहीं सकते।
  • यहाँ फिर भूल जाते हैं।
  • कितनी बड़ी पढ़ाई है, 21 जन्मों के लिए राज्यभाग्य पाते हो।
  • ऐसे स्कूल में कितना अच्छा और रोज़ाना पढ़ना चाहिए।
  • इस कल्प अगर नापास हुए तो कल्प-कल्प नापास होते ही रहेंगे।
  • फिर कभी भी पास नहीं होना है।
  • तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए।
  • श्रीमत पर चलना चाहिए।
  • श्रीमत कहती है अच्छी रीति धारणा करो और कराओ।
  • अगर ईश्वरीय डायरेक्शन पर नहीं चलेंगे तो ऊंच पद भी नहीं पायेंगे।
  • अपनी दिल से पूछो - हम श्रीमत पर चल रहे हैं।
  • अपने को मिया मिट्ठू नहीं समझना है।
  • अब अपने से पूछो तो जैसे यह ब्रह्मा सरस्वती श्रीमत पर चलते, हम ऐसे चल रहे हैं?
  • पढ़कर और पढ़ाते हैं?
  • क्योंकि तुम सच्ची-सच्ची गीता सुनाने वाले व्यास हो।
  • वह व्यास नहीं जिसने गीता लिखी है।
  • तुम इस समय सुखदेव के बच्चे सुख देने वाले व्यास हो।
  • सुखदेव शिवबाबा गीता का भगवान है।
  • तुम उनके बच्चे व्यास हो कथा सुनाने वाले।
  • यह स्कूल है, स्कूल में बच्चे की पढ़ाई से नम्बर का मालूम पड़ जाता है।
  • वह है प्रत्यक्ष, यह है गुप्त।
  • यह फिर बुद्धि से जाना जाता है कि हम किस लायक हैं!
  • किसको पढ़ाने का सबूत मिला है।
  • बच्चे लिखते हैं बाबा फलाने ने हमको ऐसा तीर लगाया जो हम आपके बन गये।
  • कोई तो सामने आते भी कह नहीं सकते कि बाबा हम तो आपके बन गये।
  • कई बच्चियां पवित्रता के कारण मार भी खाती रहती हैं।
  • कोई तो बच्चे बन फिर टूट भी पड़ते हैं क्योंकि अच्छी तरह से पढ़ते नहीं।
  • नहीं तो बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं कि बच्चे सिर्फ मुझे याद करो और पढ़ो इस नॉलेज से तुम चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
  • घर के बाहर भी लिख दो - एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिल सकती है - जनक मिसल, 21 जन्मों के लिए।
  • एक सेकेण्ड में तुम विश्व के मालिक बन सकते हो।
  • विश्व के मालिक तो जरूर देवतायें ही बनेंगे ना।
  • सो भी नई विश्व, नया भारत।
  • जो भारत नया था सो अब पुराना हो गया है।
  • सिवाए भारत के और कोई खण्ड को नया नहीं कहेंगे।
  • अगर नया कहेंगे तो फिर पुराना भी कहना पड़ेगा।
  • हम फुल नये भारत खण्ड में जाते हैं।
  • भारत ही 16 कला सम्पूर्ण बनता है और कोई खण्ड फुल मून हो न सके।
  • वह तो शुरू ही आधा से होता है।
  • कितने अच्छे-अच्छे राज़ हैं।
  • हमारा भारत ही सचखण्ड कहलाया जाता है।
  • सच के पीछे फिर झूठ भी है।
  • भारत पहले फुल मून होता है।
  • पीछे तो अन्धियारा हो जाता है।
  • पहला झण्डा है हेविन का।
  • गाते भी हैं पैराडाइज़ था... हम अच्छी तरह से समझा सकते हैं क्योंकि हमको सारा अनुभव है।
  • सतयुग त्रेता में हमने कैसे राज्य किया फिर द्वापर कलियुग में क्या हुआ, यह सब बुद्धि में आने से कितनी खुशी आनी चाहिए।
  • सतयुग को सोझरा, कलियुग को अन्धियारा कहा जाता है, तब कहते हैं ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... बाबा ने कैसे आकर तुम अबलाओं, माताओं को जगाया है।
  • साहूकार तो कोई मुश्किल ही खड़ा होता है।
  • इस समय सचमुच बाबा गरीब निवाज़ है।
  • गरीब ही स्वर्ग के मालिक बनते हैं, साहूकार नहीं।
  • इसका भी गुप्त कारण है।
  • यहाँ तो बलिहार जाना पड़ता है।
  • गरीबों को बलिहार जाने में देरी नहीं लगती इसलिए सुदामा का मिसाल गाया हुआ है।
  • तुम बच्चों को अब रोशनी मिली है, परन्तु तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं।
  • और सबकी ज्योत उझाई हुई है।
  • इतनी छोटी सी आत्मा में अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है।
  • वन्डर है ना।
  • यह कोई साइंस की शक्ति नहीं है।
  • तुमको अब बाबा से शक्ति मिलती है, बरोबर यह अविनाशी चक्र है जो फिरता रहता है, इनका कोई आदि अन्त नहीं है।
  • नया कोई यह बातें सुने तो चकरी में आ जाये।
  • यहाँ 10-20 वर्ष वालों को भी पूरा समझ में नहीं आता है, न किसको समझा सकते हैं।
  • तुमको पिछाड़ी में सब पता पड़ जायेगा कि फलाना, फलाने के पास जन्म लेगा, यह होगा... जो महावीर होंगे उन्हों को आगे चलकर सब साक्षात्कार होते रहेंगे।
  • पिछाड़ी में तुमको सतयुग के झाड़ बहुत नजदीक दिखाई पड़ेंगे।
  • महावीरों की ही माला है ना।
  • पहले 8 महावीर, फिर हैं 108 महावीर।
  • पिछाड़ी में बहुत फर्स्टक्लास साक्षात्कार होंगे।
  • गाया भी हुआ है - परमपिता परमात्मा ने बाण मरवाये।
  • नाटक में बहुत बातें बनाई हैं।
  • वास्तव में यह स्थूल बाणों की बात नहीं।
  • कन्यायें, मातायें बाणों से क्या जानें।
  • वास्तव में यह हैं ज्ञान बाण और इन्हों को ज्ञान देने वाला बरोबर परमपिता परमात्मा है।
  • कितनी वन्डरफुल बातें हैं।
  • परन्तु बच्चों को एक ही मुख्य बात घड़ी-घड़ी भूल जाती है।
  • सबसे कड़े ते कड़ी भूल होती है जो देह-अभिमान में आकर अपने को आत्मा निश्चय नहीं करते।
  • सच कोई नहीं बतलाते।
  • सच तो कोई आधा घण्टा, घण्टा भी सारे दिन में मुश्किल याद में रह सकते हैं।
  • कोई को समझ में भी नहीं आता कि योग किसको कहा जाता है।
  • मंजिल भी बहुत ऊंची है।
  • अपने को अशरीरी समझना है, जितना हो सके उतना पुरुषार्थ करना है, जो पिछाड़ी के समय कोई भी याद न पड़े।
  • कोई तत्व ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी अच्छे होते हैं तो गद्दी पर बैठे-बैठे समझते हैं हम तत्व में लीन हो जायेंगे।
  • शरीर का भान नहीं रहता है।
  • फिर जब उनका शरीर छूटता है तो आस-पास सन्नाटा हो जाता है।
  • समझते हैं कोई महान आत्मा ने शरीर छोड़ा है।
  • तुम बच्चे याद में रहेंगे तो कितनी शान्ति फैलायेंगे।
  • यह अनुभव उन्हों को होगा जो तुम्हारे कुल के होंगे।
  • बाकी तो मच्छरों सदृश्य मरने वाले हैं।
  • तुम्हारी प्रैक्टिस हो जायेगी अशरीरी होने की।
  • यह प्रैक्टिस तुम यहाँ ही करते हो।
  • वहाँ सतयुग में तो आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
  • यहाँ तो तुम जानते हो यह शरीर छोड़ बाबा के पास जाना है।
  • परन्तु पिछाड़ी में कोई याद न आये।
  • शरीर ही याद न रहे तो बाकी क्या रहा।
  • मेहनत है इसमें।
  • मेहनत करते-करते पिछाड़ी में पास होकर निकलते हो।
  • पुरुषार्थ वालों का भी पता तो पड़ता है ना, उनका शो निकलता रहेगा।
  • बांधेली गोपिकायें पत्र ऐसे लिखती हैं, जो कभी छुटेली भी नहीं लिखती।
  • उन्हों को फुर्सत ही नहीं।
  • बांधेलियां समझती हैं शिवबाबा ने इन हाथों का लोन लिया है तो शिवबाबा का पत्र आयेगा।
  • ऐसा पत्र तो फिर 5 हजार वर्ष के बाद आयेगा।
  • क्यों नहीं बाबा को पत्र रोज़ लिखें।
  • नयनों से काजल निकालकर भी लिखें।
  • ऐसे-ऐसे ख्यालात आयेंगे।
  • और लिखती हैं बाबा मैं वही कल्प पहले वाली गोपिका हूँ।
  • हम आपसे मिलेंगे भी जरूर, वर्सा भी जरूर लेंगे।
  • योगबल है तो अपने को बंधन से छुड़ाती रहती हैं।
  • फिर मोह भी किसमें न रहे।
  • चतुराई से समझाना है।
  • अपने को बचाना है, तोड़ निभाने के लिए बड़ी कोशिश करनी है।
  • मातायें समझती हैं हम पति को भी साथ ले चलें।
  • हमारा फ़र्ज है उन्हों को समझाना।
  • पवित्रता तो बहुत अच्छी है।
  • बाबा खुद कहते हैं काम महाशत्रु है, इनको जीतो।
  • मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाऊंगा।
  • ऐसी बच्चियां हैं जो पति को समझाकर ले आती हैं।
  • बांधेलियों का भी पार्ट है।
  • अबलाओं पर अत्याचार तो होते ही हैं।
  • यह शास्त्रों में भी गायन है - कामेशु, क्रोधेशु... कोई नई बात नहीं है।
  • तुमको तो 21 जन्मों का वर्सा मिलता है, इसलिए थोड़ा कुछ सहन तो करना ही पड़ता है।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) योगबल से अपने सब बन्धनों को काट बंधनमुक्त होना है, किसी में भी मोह नहीं रखना है।
  • 2) जो भी ईश्वरीय डायरेक्शन मिलते हैं उन पर पूरा-पूरा चलना है।
  • अच्छी तरह से पढ़ना और पढ़ाना है।
  • मियाँ मिट्ठू नहीं बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • बाप के प्यार की पालना द्वारा सहज योगी जीवन बनाने वाले स्मृति सो समर्थी स्वरूप भव
    • सारे विश्व की आत्मायें परमात्मा को बाप कहती हैं लेकिन पालना और पढ़ाई के पात्र नहीं बनती हैं।
    • सारे कल्प में आप थोड़ी सी आत्मायें अभी ही इस भाग्य के पात्र बनती हो।
    • तो इस पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप है - सहजयोगी जीवन।
    • बाप बच्चों की कोई भी मुश्किल बात देख नहीं सकते।
    • बच्चे खुद ही सोच-सोच कर मुश्किल बना देते हैं।
    • लेकिन स्मृति स्वरूप के संस्कारों को इमर्ज करो तो समर्थी आ जायेगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सदा निश्चिंत स्थिति का अनुभव करना है तो आत्म-चिंतन और परमात्म-चिंतन करो।