21-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम बच्चों को आप समान अशरीरी बनाने, जब तुम अशरीरी बनो तब बाप के साथ चल सको।''

प्रश्नः-

बाप के किस फरमान पर चलने वाले निरन्तर योगी बन सकते हैं?

उत्तर:-

बाप का पहला फरमान है कि बच्चे इस देह को तुम्हें भूलना है।

इसको भूल अपने को आत्मा निश्चय करो तो बाप की याद निरन्तर रहेगी।

सदैव एक ही पाठ पक्का करो कि मैं आत्मा निराकारी दुनिया की रहने वाली हूँ, इससे तुम्हारा देह-अहंकार खत्म हो जायेगा।

बुद्धि में किसी भी देहधारी की याद न आये तो निरन्तर योगी बन सकते हो।

 

गीत:-तुम्हें पा के हमने जहाँ...


  • ओम् शान्ति।
    • यह किसने कहा?
    • आत्मा ने कहा ओम् अर्थात् मैं शान्त स्वरूप हूँ।
    • यह सब समझने की बातें हैं।
    • पहले-पहले तो अपने को आत्मा निश्चय करो।
    • हम आत्मा फर्स्ट।
    • बाद में यह शरीर मिलता है।
  • हम आत्मा किसकी सन्तान हैं?
    • उस शान्ति के सागर, ज्ञान के सागर परमपिता परमात्मा की।
    • वह सदैव शान्त है।
    • हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं।
    • पार्ट बजाते हैं।
    • शिवबाबा तो विचित्र है।
    • उस आत्मा को अपना चित्र नहीं है।
    • तुमको तो अपना चित्र (शरीर) है।
    • बोलते रहते हो।
    • बाप कहते हैं मैं सदैव विचित्र हूँ ब्रह्मा विष्णु शंकर सूक्ष्म चित्रवान हैं।
    • मैं विचित्र हूँ।
    • तुम आत्मायें भी मेरे साथ निर्वाणधाम में रहने वाली हो।
    • बाबा जो विचित्र है वह बैठ सुनाते हैं।
    • तुम आत्मायें सुनती हो।
    • बाप कहते हैं मुझे याद करो, यह दु:खधाम है।
  • कहते तो हैं हम पतित हैं।
    • परन्तु हमको ऐसा पतित किसने बनाया?
    • बाप ने तो नहीं बनाया?
    • बाप की तो महिमा करते हो तुम मात-पिता... आपसे जो सुख घनेरे मिले हुए थे, उसको सभी भारतवासी याद करते हैं।
    • ब्रदरहुड है।
    • फिर जब जिस्मानी बनते हैं, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना होती है।
    • आत्मा तो है ही अविनाशी।
    • परन्तु फादर हुड तो नहीं कहेंगे।
  • संन्यासी लोग कहते हैं शिवोहम् ततत्वम् वा ईश्वर सर्वव्यापी है फिर तो सब फादर हो जाते हैं।
    • यह तो बेकायदे हो जाए।
    • बच्चे पुकारते ही हैं मुक्ति अथवा जीवनमुक्ति का वर्सा लेने।
    • तो जब यहाँ आते हो तो अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो, हम आत्मा हैं।
    • ऐसे नहीं कि हम परमात्मा हैं, नहीं।
    • हम आत्मा हैं, परमपिता परमात्मा के हम सब बच्चे ब्राह्मण ब्राह्मणियां हैं।
    • तुम सब ब्रह्मा के बच्चे और शिवबाबा के पोत्रे ठहरे।
    • सब याद करते हैं परमपिता परमात्मा को।
    • ओ गाड फादर कहते हैं फिर उनको सर्वव्यापी कहेंगे तो वर्सा कहाँ से मिलेगा।
  • भक्ति मार्ग में सब भगवान को याद करते हैं।
    • भगवान है एक।
    • तुम सब भगत हो।
  • ब्राइड्स अनेक, ब्राइडग्रूम अथवा साज़न एक है।
    • वह बाप है बाकी सब बच्चे हैं तो और किसको भी याद न करो।
    • बाप का फरमान है बच्चे, तुम्हें इस देह को भी याद नहीं करना है।
    • अपने को आत्मा समझो।
    • आत्मा ही कहती है हम दु:खी, भ्रष्टाचारी हैं।
    • यहाँ दैवी राज्य तो नहीं है।
  • 5 हजार वर्ष पहले भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, यथा राजा रानी तथा प्रजा सदा सुखी थे।
    • अकाले मृत्यु नहीं होता था।
    • बहुत थोड़े थे।
    • यह भारतवासी सब भूल गये हैं कि हमारा भारत पहले-पहले हेविन था।
    • कहते भी हैं हेविनली गॉड फादर।
    • हेविन कोई मूलवतन को नहीं कहा जाता।
    • यह याद रखना, हम आत्मा निराकारी दुनिया की रहवासी हैं और कोई देहधारी की याद न आये।
    • देह-अहंकार छोड़ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है।
  • यह जो कुम्भ का मेला कहते हैं, वह कोई सुहावने संगमयुग का मेला नहीं है।
    • संगम कहा जाता है कलियुग की अन्त और सतयुग की आदि।
    • कलियुग है ही पतित दुनिया।
    • एक भी पावन नहीं।
    • भल महात्मायें भी हैं, परन्तु पावन तो कोई नहीं।
    • सब कहते हैं यह पतित दुनिया है।
    • कुम्भ पर जाते हैं पावन बनने के लिए।
    • गंगा में स्नान करते हैं तो जरूर पतित हैं।
    • साधू सन्त सब जाते हैं पावन बनने।
  • बाप कहते हैं मैं तब आता हूँ जब बहुत भ्रष्टाचार होता है।
    • मनुष्य बहुत दु:खी हो जाते हैं।
    • मैं आकर इन सबका उद्धार करता हूँ।
    • अहिल्यायें, गणिकायें, साधुओं, गुरूओं आदि का उद्धार करने आता हूँ क्योंकि वह तो पावन आत्मायें हैं नहीं।
  • पतित दुनिया में कोई भी पावन नहीं।
    • पावन दुनिया में फिर कोई पतित नहीं होता।
    • लॉ नहीं है।
  • साधू लोग अपने को महान आत्मा कहाँ समझते, वह तो अपने को परमात्मा समझते हैं।
    • शिवोहम् कहते हैं।
    • प्राचीन महात्मायें आदि तो कहते थे परमात्मा बेअन्त है।
    • वह रचता और उसकी रचना बेअन्त हैं।
    • तो फिर निर्वाणधाम कैसे ले जायेंगे।
    • उन्हों को पता ही नहीं कि जीवनमुक्त भी भारत था।
    • उस समय और कोई धर्म नहीं था।
    • सिर्फ सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी थे।
    • फिर सूर्यवंशी बदल चन्द्रवंशी बनें।
  • पुनर्जन्म में तो आते हैं ना।
    • 84 पुनर्जन्म लेते हैं।
    • 84 लाख नहीं, यह तो बड़ा गपोड़ा लगा दिया है।
    • ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात, तो 84 जन्म चाहिए ना।
    • बाप बैठ समझाते हैं कि अब किसको भी याद न करो।
  • हम आत्मा मोस्ट बील्वेड परमपिता परमामा की सन्तान हैं।
    • ऐसे नहीं कि सब परमात्मा के रूप हैं।
    • यह तो इम्पासिबुल है।
    • यही एकज़ भूल है।
    • बाप एक ही है बाकी सब हैं बच्चे।
    • आत्मायें सब ब्रदर्स हैं।
    • फिर जब शरीर में आते हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कहेंगे ना।
    • पहले-पहले हैं ब्राह्मण।
  • भारत में विराट रूप भी दिखाते हैं।
    • ब्राह्मण हैं चोटी, भगवान की ऊंचे ते ऊंची सन्तान।
    • अभी तुम ईश्वरीय औलाद बने हो।
    • शिवबाबा के पौत्रे और पौत्रियां, प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे।
    • शिवबाबा के बच्चे तो सभी आत्मायें हैं।
    • तुम वर्सा शिवबाबा से ले रहे हो।
  • शिवबाबा है झोली भरने वाला।
    • और खाली करने वाली है माया।
    • गाते भी हैं पतित-पावन सीता-राम।
    • परन्तु मनुष्यों की बुद्धि में त्रेता वाला राम सीता है।
    • तुम बच्चे जानते हो सतयुग त्रेता है सुखधाम।
    • वहाँ दु:ख का नाम निशान भी नहीं रहता।
    • पतित-पावन सबका बाप एक ही है।
    • यहाँ तो हनूमान के मन्दिर में भी जाकर कहते हैं त्वमेव माताश्च पिता... वह कैसे हो सकता।
    • सबका सद्गति दाता पतित-पावन एक ही है।
    • वही ज्ञान का सागर है।
  • वह जो सागर से नदियां निकलती हैं वह तो है पानी।
    • पानी तो पतित-पावन हो न सके।
    • कोई भी खण्ड में ऐसे नहीं कहेंगे कि पानी में स्नान करने से पावन बन मुक्ति को पायेंगे।
    • यह तो हो नहीं सकता।
  • एक मुक्ति, दूसरी है जीवनमुक्ति।
    • सद्गति अथवा जीवनमुक्ति दाता एक ही है।
    • यह है पतित दुनिया।
  • भारतवासी जानते हैं 5 हजार वर्ष पहले भारत में लक्ष्मी-नारायण का राज्य था और कोई खण्ड नहीं था।
    • 5 हजार वर्ष की बात तुम भूल गये हो।
    • पीछे फिर और-और खण्ड आते हैं।
    • अब इतनी वृद्धि हो गई है।
  • देखो, बच्चे यह हमेशा याद रखो - जब सुनते हो तो यह मत समझना, यह दादा वा ब्रह्मा बोलता है।
    • शिवबाबा जो सबका रचयिता है वह बैठ रचना का राज़ समझाते हैं।
    • ऋषि मुनि तो सब कहते रहे कि परमात्मा बेअन्त है।
    • हम नहीं जानते।
  • आस्तिक तो तुम ब्राह्मण हो जो निश्चय करते हो कि बाबा हमको अपनी और रचना की नॉलेज देते हैं।
    • त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
    • ऋषि मुनि आदि कोई भी त्रिकालदर्शी नहीं।
    • बाप कहते हैं देवी-देवता भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं।
    • सिर्फ ब्राह्मण ही त्रिकालदर्शी हैं।
  • यह ब्राह्मणों की चोटी है।
    • ब्राह्मणों से नई रचना होती है।
    • तुम हो सबसे उत्तम।
    • तुम बाप की श्रीमत पर भारत को श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ बनाते हो।
  • श्रीमत भगवान की है, कृष्ण की नहीं।
    • कृष्ण पतित-पावन नहीं।
    • पतित-पावन एक ही है।
    • वह सबका बाप है।
  • हमेशा याद करो - हम आत्मा इन आरगन्स द्वारा सुनते हैं।
    • आत्म-अभिमानी भव।
  • हम आत्माओं को ज्ञान देता हूँ, तब गाया हुआ है - ज्ञान अंजन सतगुरू दिया... पतित-पावन सद्गति दाता वही है।
    • बच्चों को बाप पैदा करते फिर टीचर बनकर पढ़ाते फिर गुरू बनकर सद्गति देते हैं।
    • सद्गति में ले जाने वाला सद्गति दाता एक ही बाप है।
    • तुम बच्चे नई दुनिया में जाने के लिए अथवा मनुष्य से देवता बनने के लिए यह पढ़ाई पढ़ रहे हो।
    • अभी यह पतित मनुष्य सृष्टि खत्म होकर दैवी दुनिया होने वाली है।
  • अभी भल देवताओं को पूजते हैं।
    • परन्तु यह नहीं जानते कि जरूर हम देवी-देवता धर्म के हैं, जिसको पूजते हैं उनका वह धर्म कहेंगे ना।
    • भारतवासियों का तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, स्वर्ग था।
  • अब कहते हैं - मनुष्य 84 लाख जन्म लेते हैं।
    • क्या सब लेते हैं?
    • इतने लाख जन्म हों तो उसके लिए बहुत बड़ा कल्प चाहिए।
    • यह भी ड्रामा अनुसार खेल बना हुआ है।
    • जो पास्ट हुआ सो ड्रामा।
  • मूलवतन, सूक्ष्मवतन को भी तुम बच्चे ही जानते हो।
    • तुम हो स्वदर्शन चक्रधारी।
    • वह विष्णु को स्वदर्शन चक्रधारी कहते हैं।
    • बाप समझाते हैं - विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण स्वदर्शन चक्रधारी नहीं हैं।
    • स्वदर्शन चक्रधारी तुम ब्राह्मण हो।
    • कितना फ़र्क हो जाता है।
  • वह फिर कहते हैं कृष्ण का स्वदर्शन चक्र था।
    • लड़ाई के मैदान में चक्र चलाया।
    • फिर कौरव मारे गये।
    • लेकिन देवता कभी हिंसा थोड़ेही करते हैं।
    • वह तो डबल अहिंसक हैं।
    • न उनमें विकार हैं, न लड़ाई।
  • सबसे बड़ी हिंसा है एक दो को विष पिलाना, काम कटारी चलाना।
    • बाप कहते हैं इससे आदि मध्य अन्त दु:ख भोगते आये हो।
    • सतयुग में काम कटारी नहीं चलती थी।
    • वाइसलेस राज्य था।
    • सर्वगुण सम्पन्न, मर्यादा पुरुषोत्तम थे।
    • हिंसा थी नहीं।
    • इस समय रावण का राज्य है।
    • 5 विकार सर्वव्यापी हैं।
    • और वह फिर कह देते परमात्मा सर्वव्यापी है।
  • इस साइंस से जो भी विमान आदि निकले हैं, अभी 100 वर्ष के अन्दर - यह किसलिए?
    • यह ट्रायल हो रही है।
    • यह सब चीजें फिर भविष्य में काम आने वाली हैं।
    • इन्हों के द्वारा अभी सब कुछ विनाश हो जायेगा।
    • फिर यह सुख के काम आयेंगे।
    • यहाँ तो सुख भी है, तो दु:ख भी है।
    • इसको माया का पाम्प कहा जाता है।
    • विनाश हो यह तो अच्छा है ना।
  • कहते भी हैं पतित-पावन आओ - क्या आकर करूँ?
    • बाबा फिर से स्वर्ग की स्थापना करो तो हम सुख पावें।
    • बाप समझाते है बच्चे यह खेल बना हुआ है।
    • बाप सुखधाम रचते हैं - रावण फिर दु:खधाम बनाते हैं।
    • शान्तिधाम से आत्मायें पहले-पहले आती हैं सुखधाम में।
    • पवित्र आत्मायें ही आती हैं।
    • इस समय सब पतित हैं तब तो याद करते हैं कि आओ।
    • बाप भी ड्रामा के बन्धन में हैं।
    • बाप कहते हैं जब सब दु:खी हो जाते हैं तब ही मुझे आना पड़ता है।
    • कलियुग अन्त और सतयुग आदि का यह संगम है।
  • वह संगम पर कुम्भ का मेला करते हैं।
    • वह है पानी के सागर और नदियों का मेला।
    • तुम कहेंगे यह है परमापिता परमात्मा और हम आत्माओं का मेला।
    • बाबा को अपना शरीर तो नहीं है।
  • बाप कहते हैं बच्चे मुझे नॉलेज देने के लिए तन जरूर चाहिए।
    • नहीं तो मैं कैसे बात करूं, इसलिए मैं इनको एडाप्ट करता हूँ।
    • तुम अब ईश्वर के सम्मुख आये हो - बाबा द्वारा जानते हो हम ईश्वर के बच्चे हैं।
    • अब परमपिता परमात्मा पूछते हैं मैं आऊं कैसे?
    • किसमें प्रवेश करूँ?
    • जरूर मुझे पतित दुनिया, पतित शरीर में आना पड़ता है।
    • यह सब सांवरे हैं।
    • बाप कहते हैं तुम सब गोरे थे।
    • अब सांवरे हो।
  • तुम हर एक का नाम है - श्याम सुन्दर।
    • अभी श्याम बने हो।
    • कृष्ण को कहते हैं श्याम सुन्दर।
  • बरोबर भारत पहले सुन्दर था।
    • गोल्डन एजेड था।
    • फर्स्टक्लास प्रकृति थी।
    • वहाँ लूले लंगड़े नहीं होते।
    • कृष्ण है नम्बरवन श्याम सुन्दर।
    • शिवबाबा इनके (ब्रह्मा के) ही तन का आधार लेकर इनको और साथ-साथ तुम बच्चों को श्याम से फिर सुन्दर बनाते हैं।

  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) हम ब्राह्मण चोटी सबसे उत्तम हैं, इस नशे में रह श्रीमत पर भारत को श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनाने की सेवा करनी है।
  • आस्तिक बनना और बनाना है।
  • 2) देह-अहंकार को छोड़ आत्म-अभिमानी बनना है।
  • विचित्र (अशरीरी) बनने का पूरा-पूरा पुरुषार्थ करना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • श्रेष्ठ पुरूषार्थ द्वारा हर शक्ति वा गुण का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव
    • सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की है।
    • जैसे सोचते और कहते हो कि आत्मा शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप है - ऐसे एक-एक गुण वा शक्ति की अनुभूति करो और उन अनुभवों में खो जाओ।
    • जब कहते हो शान्त स्वरूप तो स्वरूप में स्वयं को, दूसरे को शान्ति की अनुभूति हो।
    • शक्तियों का वर्णन करते हो लेकिन शक्ति वा गुण समय पर अनुभव में आये।
    • अनुभवी मूर्त बनना ही श्रेष्ठ पुरूषार्थ की निशानी है।
    • तो अनुभवों को बढ़ाओ।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
    • सम्पन्नता की अनुभूति द्वारा सन्तुष्ट आत्मा बनो तो अप्राप्ति का नामनिशान नहीं रहेगा।