01-02-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन



"मीठे बच्चे - सारे कल्प में बड़े से बड़ी हस्ती यह ब्रह्मा है, इसमें ही बाप प्रवेश करते हैं, इन्हें ही तुम्हें फालो करना है''

प्रश्नः-

बाप और दादा दोनों का विशेष गुण कौन सा है, जिसे तुम्हें फालो करना है?

उत्तर:-

बाप निराकारी सो निरहंकारी है तो दादा भी साकार में होते सदा निरहंकारी है।

इतनी बड़ी हस्ती होते हुए भी कितना साधारण रहते हैं।

एक ओर कहते यह ऊंचे से ऊंच, हीरा बनाने वाले बाबा की डिब्बी है तो दूसरी ओर कहते यह पुराने ते पुरानी लांग बूट है, जिसमें बाप ने प्रवेश किया है।

दोनों ही बच्चों की सेवा में हाज़िर हैं।

तो ऐसे ही बच्चों को भी फालो फादर कर निरहंकारी हो सेवा करनी है।

 

गीत:-ओम् नमो शिवाए...



  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने किसकी महिमा सुनी?
  • सब बच्चे कहेंगे कि ऊंचे ते ऊंच भगवान, उनका नाम है शिव।
  • शिवाए नम: कहते हैं ना, यह तो भारतवासी जानते हैं शिव जयन्ती भी मनाते हैं।
  • महिमा भी बहुत करते हैं त्वमेव माताश्च पिता... परन्तु सिर्फ इतने तक ही कहते हैं शिवाए नम:.. वह मात-पिता कैसे हैं, वर्सा कैसे देते हैं - यह दुनिया भर में कोई नहीं जानते।
  • यह तो एक वन्डरफुल हस्ती है।
  • शिवबाबा है निराकार।
  • जब तक शिवबाबा को शरीर न मिले तो शिवबाबा क्या करेंगे!
  • शिवबाबा तो निराकार है।
  • निराकार की ही महिमा गाते हैं।
  • सबसे ऊंचे ते ऊंचा उनका ठाँव (रहने का स्थान) है।
  • कौन सा ठाँव? मूलवतन।
  • फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का कौन सा ठाँव है?
  • सूक्ष्मवतन!
  • फिर जगत अम्बा का ठाँव है - यह स्थूलवतन।
  • यह तो सब जानते हैं कि जगत अम्बा तो यहाँ की रहने वाली होगी।
  • जगत माना ही मनुष्य सृष्टि।
  • नाम तो बहुत अच्छा है - जगत अम्बा, परन्तु वह कौन है?
  • कहाँ से आई?
  • यह कुछ भी जानते नहीं।
  • जान पहचान कहाँ से मिली?
  • जरूर कोई मनुष्य हस्ती से मिलनी चाहिए, जिसमें परमपिता परमात्मा आवे।
  • निराकार आत्मायें भी साकार हस्ती में आती हैं।
  • भल आत्मा तो जानवर में भी है परन्तु उनका कुछ भी गायन नहीं हैं।
  • गायन किस हस्ती का होता है?
  • निराकार शिवबाबा का।
  • वह जब तक हस्ती में न आये तो कुछ कर न सके।
  • आत्मा को भी जब तक हस्ती (शरीर) न मिले तो पार्ट बजा न सके।
  • सिर्फ हस्ती का गायन नहीं।
  • हस्ती में जब आत्मा आती है तब ही उनका गायन होता है।
  • बाप कहते हैं मेरी महिमा तो सब करते हैं पतित-पावन, परन्तु मुझे भी मनुष्य तन चाहिए, जिसमें मैं प्रवेश करूं।
  • बिगर हस्ती कुछ कर न सके।
  • तो बाप भी आकर हस्ती लेते हैं।
  • वह गर्भ में नहीं आते हैं।
  • शिव जयन्ती भी गाई जाती है परन्तु शिवबाबा किस हस्ती में और कब आया, यह नहीं जानते।
  • अच्छा रात्रि में आया परन्तु किस हस्ती में आया, यह नहीं जानते।
  • गाते भी हैं भागीरथ अर्थात् भाग्यशाली रथ तो जरूर मनुष्य हस्ती होगी।
  • यह जो हस्ती है, जिसमें परमपिता परमात्मा प्रवेश करते हैं, यह कितनी ऊंची हस्ती है।
  • अभी तुम जानते हो कि शिवबाबा ब्रह्मा के सिवाए किसी भी हस्ती में आ नहीं सकता।
  • परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा ही आकर मनुष्य सृष्टि रचते हैं, जब-जब भारत बहुत दु:खी और भ्रष्टाचारी हो जाता है, तब परमपिता परमात्मा इस हस्ती में प्रवेश कर तुम्हें सुखी, श्रेष्ठाचारी बनाते हैं।
  • इस भागीरथ बिगर शिवबाबा भी कुछ कर नहीं सकते।
  • कोई तो चाहिए ना।
  • यह हस्ती शिवबाबा की है।
  • यह न हो तो तुम शिवबाबा से वर्सा पा नहीं सकते।
  • गाया भी जाता है प्रजापिता ब्रह्मा अथवा त्रिमूर्ति ब्रह्मा।
  • देव देव महादेव कहते हैं।
  • इन तीनों में भी ब्रह्मा का नाम ऊंचा क्यों?
  • ब्रह्मा तो यहाँ ही है, जिसके रथ में आते हैं।
  • विष्णु और शंकर को तो देवता कहते हैं।
  • अच्छा जो ब्रह्मा है उनको देवता कहना चाहिए?
  • वह तो है प्रजापिता ब्रह्मा।
  • मनुष्य तन चाहिए।
  • गाया भी हुआ है प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचते हैं।
  • तो जरूर ब्रह्मा मुख से ही ब्राह्मण रचेंगे।
  • तो यह कितनी बड़ी हस्ती है परन्तु है कितनी साधारण।
  • इतनी बड़ी हस्ती, इनका रहन-सहन देखो कितना साधारण है।
  • कितना निरहंकारी है।
  • अभी आकर तुम्हारी सेवा में उपस्थित हुआ है।
  • देखो कैसे बैठ पढ़ाते हैं।
  • तुम क्या पढ़ते हो?
  • तुम कहेंगे हम राजयोग की पढ़ाई पढ़ते हैं, कौन पढ़ाते हैं?
  • परमपिता परमात्मा।
  • तो छोटे, बड़े, बूढ़े, जवान, सब पढ़ते हैं।
  • यह ईश्वरीय कॉलेज है - मनुष्य से देवता अथवा विश्व का मालिक बनने का।
  • यहाँ हम आये ही हैं पढ़ने अथवा विश्व की बादशाही लेने।
  • लक्ष्मी-नारायण जब विश्व पर राज्य करते थे तो और कोई धर्म नहीं था, न कोई खण्ड था।
  • एक ही भारत खण्ड था।
  • अब फिर वह पद प्राप्त करने के लिए तुम यहाँ कैसे बैठे हो।
  • इस पढ़ाई बिगर तुम विश्व के मालिक बन न सको।
  • भारत शिवालय बन न सके।
  • शिवबाबा ही गाया हुआ है निराकार, निरहंकारी।
  • जब तक हस्ती में प्रवेश न करे तो निरहंकारीपना कैसे दिखावे।
  • कितनी महिमा है - अकालमूर्त,...परन्तु ऐसे नहीं कि वह मुर्दे को भी जिंदा कर सकते हैं।
  • तुम बच्चों को बहुत नशा होना चाहिए कि हमको परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं।
  • प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखला रहे हैं।
  • ब्रह्मा बिगर प्रजापिता किसको कह नहीं सकते।
  • ऐसे नहीं कि शिव या विष्णु प्रजापिता हैं। नहीं।
  • ब्रह्मा ही सारे मनुष्य सृष्टि का पिता है और आत्माओं का पिता है शिवबाबा, बाकी उस पिता को तो कोई जानते ही नहीं।
  • अपनी आत्मा को ही नहीं जानते।
  • कहते हैं पुण्य आत्मा, पाप आत्मा फिर क्यों कहते हम ही परमात्मा हैं।
  • कितनी ठगी है।
  • तुम बच्चे जानते हो आज से 5 हजार वर्ष पहले पीस, प्युरिटी, प्रासपर्टी थी।
  • अब बाप कहते हैं मैं आकर सबको नॉलेज देता हूँ, पहले तुम कुछ नहीं जानते थे, अब सब कुछ जानते हो।
  • बाप की बायोग्राफी बाप से ही जानी जाती है।
  • अब निराकार की बायोग्राफी कैसे हो सकती है।
  • जरूर जब साकार में आये तब बायोग्राफी हो।
  • सिर्फ आत्मा की बायोग्राफी नहीं हो सकती है।
  • जीव आत्मा बनें तब पुनर्जन्म में आवे और बायोग्राफी भी हो।
  • वे लोग कहते हैं 84 लाख योनियां हैं।
  • बाप कहते हैं 84 लाख जन्म थोड़ेही होते हैं।
  • यह सब गपोड़े हैं।
  • बाप खुद कहते हैं मैं ब्रह्मा के तन में आकर तुमको वेदों का सार समझाता हूँ।
  • साथ-साथ राजयोग सिखलाता हूँ और रचयिता रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ भी समझाता हूँ।
  • जब पहले-पहले बड़े-बड़े ऋषि मुनि ही नहीं जानते थे, तो उन्हों की औलाद फिर कैसे जान सकती।
  • तो देखो बड़े ते बड़ी हस्ती कितने साधारण रूप में है।
  • ऊंचे ते ऊंच हीरा बनाने वाला बाप है।
  • उनकी यह डिब्बी है।
  • रथ कहो, पुरानी जुत्ती कहो, सबसे पुरानी जुत्ती यह है।
  • पहले-पहले जब आत्मा आती है तो बिल्कुल नम्बरवन थी, श्री नारायण को नम्बरवन रखेंगे।
  • श्री लक्ष्मी भी प्लस में है। उन्हों ने भी पुनर्जन्म लिए।
  • पहले सूर्यवंशी फिर चन्द्रवंशी में... ऐसे जन्म लेते 84 का भी हिसाब चाहिए ना।
  • 84 लाख का हिसाब तो कोई बता न सके।
  • 84 लाख जन्मों के कारण फिर कल्प की आयु भी लाखों वर्ष लिख दी है।
  • अगर लाखों वर्ष होते तो भारतवासी हिन्दू बहुत होते।
  • परन्तु यह तो संख्या और ही कम है।
  • भारत का देवी देवता धर्म प्राय:लोप हो गया है।
  • कोई भी अपने को देवता नहीं कह सकते क्योंकि देवता तो सर्वगुण सम्पन्न थे।
  • अब वह हैं नहीं।
  • रावणराज्य है न कि रामराज्य।
  • दुनिया वाले न राम की, न रावण की बायोग्राफी को जानते हैं।
  • दिनप्रतिदिन रावण की पाग बढ़ती जाती है।
  • दुनिया पतित होती जाती है।
  • 16 कला से गिरते-गिरते नो कला।
  • सब कहते मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही।
  • आपेही तरस करो।
  • तो हम सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण बनें।
  • भारत पहले परिस्तान था।
  • कहने मात्र तो कहते हैं परन्तु सृष्टि चक्र को कुछ जानते नहीं।
  • बाप कहते हैं तुमको माया ने तुच्छ बुद्धि बना दिया है।
  • परन्तु अपना घमण्ड कितना है।
  • तुम बच्चों को बाप कहते हैं मीठे बच्चे - तुम राम को याद करो तो माला में पिरोने लायक बन जायेंगे।
  • रूद्र माला के बाद होती है विष्णु माला।
  • भगत माला में भक्तों की महिमा होती है।
  • यह रूद्र माला फिर विष्णु माला में पिरोनी है यानी विष्णु के राज्य में जाते हैं।
  • कितना ऊंचा ज्ञान है। संन्यास भी दो प्रकार का है।
  • वह है हठयोग संन्यास।
  • कर्म संन्यास तो कभी हो नहीं सकता।
  • कर्म बिगर तो मनुष्य रह नहीं सकता।
  • प्राणायाम चढ़ाकर बैठ जाएं फिर भी कर्म तो करेंगे ना।
  • अनेक प्रकारों से प्रैक्टिस करते हैं।
  • वह कोई राजयोग नहीं।
  • वह है हद का संन्यास, हठयोग संन्यास।
  • वह भी भारत का धर्म है पवित्रता का।
  • परन्तु देवी-देवताओं जितना पवित्र और कोई धर्म हो नहीं सकता।
  • वहाँ कोई संन्यास नहीं करना पड़ता क्योंकि आत्मा पवित्र है तो उनको शरीर भी पवित्र मिलता है।
  • आत्मा में ही खाद पड़ती है।
  • कला कम होते-होते पतित बनना है।
  • अभी सभी आत्मायें आइरन एज में हैं, सब सांवरे हैं।
  • आत्मा जब पवित्र थी तो गोरी थी।
  • अभी आत्मा अपवित्र है तो शरीर भी अपवित्र काले हैं।
  • गाया भी जाता है श्याम-सुन्दर।
  • कृष्ण का चित्र भी काला और गोरा बनाते हैं।
  • अभी तुम सभी श्याम-सुन्दर हो।
  • पहले भारत गोल्डन एजेड था, अब आइरन एजड है।
  • अब फिर बाबा ज्ञान चिता पर बिठाए गोरा बनाते हैं।
  • अगर मुक्ति और जीवनमुक्ति चाहिए तो वह विकारों का हथियाला कैंसिल करना है।
  • पवित्रता की राखी बाँधो।
  • यह अभी की ही बात है जबकि तुम ब्रह्मा के बच्चे हो।
  • ब्राह्मण बनने बिगर कोई भी यहाँ आ नहीं सकते।
  • तुम हो ब्रह्मा मुख वंशावली।
  • शिवबाबा कहते हैं मुझ निराकार की महिमा तो गाते हैं, परन्तु शरीर जब तक न लें तो कर ही क्या सकते।
  • मैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में आता हूँ।
  • अभी सबका विनाश होना है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना, किसकी?
  • कलियुग की स्थापना तो कभी होती नहीं।
  • स्थापना होती है सतयुग की, संगम पर।
  • बाप कहते हैं मैं आता हूँ संगमयुग पर।
  • तुम ब्राह्मणों के लिए यह संगम है, बाकी सबके लिए है कलियुग।
  • इस समय सब घोर अन्धियारे में हैं।
  • तो घोर अन्धियारे को ही बाप आकर घोर सोझरा करते हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो यह तो विचित्र चीज़ है।
  • कृष्ण तो छोटा बच्चा है, वह तो कुछ समझा न सके।
  • कृष्ण की आत्मा भी भिन्न नाम रूप में इनसे समझ रही है, अन्तिम जन्म में, इसलिए इनको श्याम सुन्दर भी कहते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बापदादा के समान निरहंकारी और निराकारी बनना है।
  • सबकी सेवा करनी है।
  • 2) मुक्ति-जीवनमुक्ति के लिए पवित्रता की राखी बांधनी है।
  • ज्ञान चिता पर बैठना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
    • पावरफुल ब्रेक द्वारा सेकण्ड में व्यक्त भाव से परे होने वाले अव्यक्त फरिश्ता व अशरीरी भव
    • चारों ओर आवाज का वायुमण्डल हो लेकिन आप एक सेकण्ड में फुलस्टॉप लगाकर व्यक्त भाव से परे हो जाओ, एकदम ब्रेक लग जाए तब कहेंगे अव्यक्त फरिश्ता वा अशरीरी।
    • अभी इस अभ्यास की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अचानक प्रकृति की आपदायें आनी हैं, उस समय बुद्धि और कहाँ भी नहीं जाये, बस बाप और मैं, बुद्धि को जहाँ लगाने चाहें वहाँ लग जाए।
    • इसके लिए समाने और समेटने की शक्ति चाहिए, तब उड़ती कला में जा सकेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
  • खुशी की खुराक खाते रहो तो मन और बुद्धि शक्तिशाली बन जायेगी।

    • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
    • “दुनिया में अनेक प्रकारों की मत से परमात्मा की श्रेष्ठ मत''
      इस दुनिया में तीन प्रकार की मत है एक है मनमत, दूसरी है गुरू मत, तीसरी है शास्त्र मत। अब विचार की बात है मन मत, गुरू मत अथवा शास्त्र मत, सभी आत्माओं की मत ठहरी न देवता मत ठहरी, न परमात्मा की मत ठहरी। भल कोई देवता की मत मिलें परन्तु वो मनुष्य आत्मा की मत हुई परन्तु देवतायें तो सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण हैं, उन्हें गुरू मत, शास्त्र मत की जरूरत नहीं है। उन्हें गुरू की भी जरुरत नहीं थी। गुरू किया जाता है सद्गति के लिये। तो जो अधोगति में हैं वो गुरू कर सकते हैं परन्तु सतयुग त्रेता में अधोगति नहीं है ना, तो वहाँ गुरू करने की जरुरत नहीं है। वास्तव में सच्चा गुरू एक परमात्मा है जो सर्व आत्माओं को सद्गति देने इस ड्रामा के अन्त में आता है। बाकी तो सभी नाम मात्र गुरू हैं क्योंकि कोई भी मनुष्य आत्मा मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता बता नहीं सकती। देवतायें भी मनुष्य से देवता बने हैं, बाकी वे कोई तीसरी ऑख वाले या चार भुजाधारी नहीं थे। लोग तो समझते हैं कि देवतायें कोई मनुष्य से भिन्न होंगे, हाँ भिन्नता यह है कि वो 16 कला सम्पूर्ण होने के कारण बहुत पवित्र हैं, उन्हों के संस्कार शुद्ध थे, बाकी मनुष्य तो मनुष्य थे। मनुष्य में जब दैवी-गुण हैं तो उन्हें देवता कहते हैं। अब यह मत हमको परमात्मा द्वारा मिल रही है, हम मनुष्य मत या गुरू मत पर नहीं हैं। हम चल रहे हैं परमात्मा की मत पर, सभी आत्माओं से परमात्मा की जरूर श्रेष्ठ मत होगी। अच्छा - ओम् शान्ति।