29-01-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - आत्मा को निरोगी बनाने के लिए रूहानी स्टडी करो और कराओ, रूहानी हॉस्पिटल खोलो''

प्रश्नः-

कौन सी एक आश रखने से बाकी सब आशायें स्वत: पूर्ण हो जाती हैं?

उत्तर:-

सिर्फ बाप को याद कर एवरहेल्दी बनने की आश रखो।

ज्ञान-योग की आश पूर्ण की तो बाकी सब आशायें स्वत: पूरी हो जायेंगी।

बच्चों को कोई भी आदत नहीं रखनी है।

आलराउन्डर बनना है।

भल खामियां हर एक में हैं परन्तु सर्विस जरूर करनी है।

 

गीत:-धीरज धर मनुआ...



  • ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना।
  • इस समय सभी आत्माओं को धीरज दिया जाता है।
  • आत्मा में ही मन-बुद्धि है।
  • आत्मा ही दु:खी होती है तब बाप को बुलाती है - हे पतित-पावन परमपिता परमात्मा आओ।
  • कभी ब्रह्मा विष्णु शंकर को पतित-पावन नहीं कहा जाता।
  • जब उन्हों को नहीं कहा जाता तो लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता आदि को भी नहीं कहा जा सकता है।
  • पतित-पावन तो एक ही है।
  • विष्णु का चित्र तो है ही पावन।
  • वह हैं विष्णुपुरी के मालिक।
  • विष्णुपुरी स्थापन करने वाला है शिवबाबा।
  • वही इस समय विष्णुपुरी स्थापन कर रहे हैं।
  • वहाँ देवी-देवता ही रहते हैं।
  • विष्णु डिनायस्टी कहें अथवा लक्ष्मी-नारायण डिनायस्टी कहें, बात एक ही है।
  • यह सब प्वाइंट्स धारण करने की हैं।
  • बाप है रूहानी और यह रूहानी स्टडी है, रूहानी सर्जरी है इसलिए बोर्ड पर नाम भी ऐसा लिखना चाहिए “ब्रह्माकुमारी रूहानी ईश्वरीय विश्व विद्यालय''।
  • रूहानी अक्षर जरूर डालना है।
  • रूहानी हॉस्पिटल भी कह सकते हैं, क्योंकि बाप को अविनाशी सर्जन भी कहते हैं, पतित-पावन, ज्ञान का सागर भी कहते हैं।
  • वह धीरज दे रहे हैं कि बच्चे मैं आया हूँ।
  • मैं रूहों को पढ़ाने वाला हूँ।
  • मुझे सुप्रीम रूह कहते हैं।
  • आत्मा को ही रोग लगा हुआ है, खाद पड़ी हुई है।
  • सतयुग में पवित्र आत्मायें हैं, यहाँ अपवित्र आत्मायें हैं।
  • वहाँ हैं पुण्य आत्मायें यहाँ हैं पाप आत्मायें।
  • आत्मा पर ही सारा मदार है।
  • आत्मा को शिक्षा देने वाला है - परमात्मा।
  • उनको ही याद करते हैं।
  • सब कुछ उनसे ही मांगा जाता है।
  • कोई दु:खी कंगाल होगा तो कहेगा - मेहर करो कुछ पैसे साहूकार से दिलाओ।
  • पैसा मिल गया तो कहेंगे ईश्वर ने दिया वा दिलवाया।
  • कोई कारपेन्टर है तो उनको सेठ से मिलेगा।
  • बच्चों को बाप से मिलता है।
  • परन्तु नाम ईश्वर का बाला होता है।
  • अब ईश्वर को तो मनुष्य जानते ही नहीं हैं इसलिए यह सब युक्तियां रची जाती है।
  • पूछा जाता है परमपिता परमात्मा से आपका क्या सम्बन्ध है?
  • प्रजापिता ब्रह्मा और जगदम्बा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • राज-राजेश्वरी लक्ष्मी-नारायण से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • वह तो स्वर्ग के मालिक हैं।
  • जरूर स्वर्ग की स्थापना करने वाले ने उनको वर्सा दिया होगा।
  • यह तो विष्णुपुरी के मालिक हैं ना।
  • मुख्य चित्र है शिवबाबा और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का।
  • विष्णु का भी सजा-सजाया रूप दिखाते हैं।
  • विष्णु द्वारा पालना करते हैं, शंकर द्वारा विनाश।
  • उनका इतना कर्तव्य नहीं है।
  • स्तुति लायक शिवबाबा है और विष्णु भी बनते हैं।
  • शंकर का पार्ट अलग है।
  • नाम रख दिया है त्रिमूर्ति।
  • राम-सीता, लक्ष्मी-नारायण यही मुख्य चित्र हैं।
  • उसके बाद फिर चित्र है रावण का।
  • वह भी बड़ा 4X6 फुट का बनाना चाहिए।
  • रावण को वर्ष-वर्ष जलाते हैं, इनसे आपका क्या सम्बन्ध है?
  • इनको जलाते हैं तो जरूर बड़ा दुश्मन ठहरा।
  • प्रदर्शनी में उनका बड़ा चित्र होना चाहिए।
  • इनका राज्य द्वापर से शुरू होता है, जबकि देवी-देवता वाम मार्ग में गिरते हैं।
  • इनके अलावा बाकी जो चित्र हैं उनकी फिर अलग-अलग प्रदर्शनी दिखानी चाहिए कि यह सब कलियुगी चित्र हैं।
  • गणेश, हनुमान, कच्छ-मच्छ आदि सबके चित्र डालने चाहिए।
  • ऐसे बहुत किसम-किसम के चित्र मिलते हैं।
  • एक तरफ कलियुगी चित्र, एक तरफ हैं तुम्हारे चित्र।
  • इन पर तुम समझा सकते हो।
  • मुख्य चित्र है शिवबाबा का और एम आबजेक्ट का।
  • लक्ष्मी-नारायण का अलग है, संगम का अलग है, कलियुग का अलग है।
  • चित्रों की प्रदर्शनी के लिए बहुत बड़ा कमरा चाहिए।
  • देहली में बहुत आयेंगे।
  • अच्छे और बुरे तो होते ही हैं।
  • बड़ी सम्भाल करनी चाहिए, इसमें चाहिए पहचान।
  • चीफ जस्टिस से ओपनिंग कराते हैं, वह भी नामीग्रामी नम्बरवन है।
  • प्रेजीडेंट और चीफ जस्टिस इक्वल हैं।
  • एक दो को कसम उठवाते हैं।
  • जरूर कुछ समझते हैं तब तो उद्घाटन करेंगे ना।
  • कन्स्ट्रक्शन का ही उद्घाटन करेंगे।
  • डिस्ट्रक्शन का तो उद्घाटन नहीं करेंगे।
  • अब बाप समझाते हैं बच्चे, तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं।
  • बोर्ड पर भी हॉस्पिटल नाम जरूर लिखना चाहिए।
  • और किसने स्थापना की?
  • अविनाशी सर्जन पतित-पावन बाप है ना।
  • पावन दुनिया में तो पावन मनुष्यों को कभी बीमारी आदि होती नहीं।
  • पतित दुनिया में तो बहुत बीमारियां हैं।
  • तो सर्विस के लिए विचार चलाना चाहिए।
  • क्या-क्या चित्र रखने चाहिए, कैसे समझाना चाहिए।
  • अगर कोई बेसमझ, समझायेंगे तो कुछ भी समझ नहीं सकेंगे।
  • कहेंगे यहाँ तो कुछ भी नहीं है।
  • गपोड़े मारते रहते हैं इसलिए प्रदर्शनी में कभी भी बुद्धूओं को समझाने के लिए नहीं खड़ा करना चाहिए।
  • समझाने वाले भी होशियार चाहिए।
  • किसम-किसम के मनुष्य आते हैं।
  • बड़े आदमी को कोई भुटटू समझावे तो सारी प्रदर्शनी का नाम बदनाम कर देंगे।
  • बाबा बतला सकते हैं फलाना-फलाना किस प्रकार का टीचर है।
  • सब एक जैसे होशियार भी नहीं हैं।
  • बहुत देह-अभिमानी भी हैं।
  • अब बाप कहते हैं हे आत्मायें तुम्हारे सुख के दिन आ रहे हैं।
  • स्वर्ग का नाम तो सब गाते हैं।
  • परन्तु स्वर्ग में भी नम्बरवार मर्तबे हैं।
  • नर्क में भी नम्बरवार दर्जे हैं।
  • विजय माला में पिरोने वाले राज-राजेश्वर बनते हैं।
  • हम पूछते भी हैं - ज्ञान ज्ञानेश्वरी जगत अम्बा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • ज्ञान ज्ञानेश्वरी को ईश्वर ज्ञान देते हैं तो राज-राजेश्वरी बनती है।
  • जगत अम्बा को भी बहुत बच्चे हैं और प्रजापिता ब्रह्मा को भी बहुत बच्चे हैं।
  • कितनी सूक्ष्म बातें हैं।
  • मनुष्य समझ ही नहीं सकते कि प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा यह कौन हैं!
  • प्रजापिता ब्रह्मा के मुख वंशावली होंगे ना।
  • सेन्सीबुल जो होंगे वह झट पूछेंगे हमको यह बात समझ में नहीं आती कि प्रजापिता ब्रह्मा और जगत अम्बा का आपस में क्या कनेक्शन है?
  • जो इतने बच्चे मुख से हुए हैं।
  • ऐसे ऐसे प्रश्न पूछने से आने वालों की बुद्धि का भी पता लग जायेगा।
  • बाप सब राज़ समझाते हैं।
  • त्रिमूर्ति, झाड़, गोला, लक्ष्मी-नारायण का चित्र इनमें एम आबजेक्ट भी है, वर्सा देने वाला भी ऊपर में खड़ा है।
  • तो समझाने वाला बहुत होशियार चाहिए।
  • प्रश्नावली भी बहुत अच्छी है।
  • रावण से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • इतने बड़े-बड़े विद्वान, पण्डित आदि कुछ भी समझते नहीं हैं कि यह दुश्मन कैसे हैं।
  • हम भी आगे समझते नहीं थे।
  • बाबा कहते हैं यह जो ब्रह्मा है, जिसको मैंने एडाप्ट किया है वह भी नहीं जानते थे।
  • अब जानते हैं तो औरों को भी समझाने का बड़ा शौक चाहिए।
  • यह प्रदर्शनी बिल्कुल नई है।
  • भल कोई कापी भी करे तो भी समझा न सके।
  • यह वन्डर है।
  • बड़ा नशा चाहिए।
  • सर्विस में पूरा लग जाना चाहिए।
  • चित्र तुम्हारे बहुत मांगेंगे तो बहुत होने चाहिए।
  • सर्विस के लिए विशालबुद्धि चाहिए।
  • खर्चा तो होगा ही।
  • पैसे तो खर्च करने के लिए ही हैं।
  • खर्च करते जायेंगे तो आते जायेंगे।
  • धन दिये धन ना खुटे।
  • बच्चे तो बहुत बनते जायेंगे।
  • पैसे तो सर्विस में ही लगाने हैं।
  • राजधानी तो सतयुग में होनी है।
  • यहाँ तो महल आदि नहीं बनाने हैं।
  • उसमें गवर्मेन्ट का कितना खर्चा होता है।
  • यहाँ है चित्र बनाने का खर्चा।
  • दिनप्रतिदिन प्वाइंटस बहुत अच्छी निकलती जाती हैं।
  • बड़ी युक्ति से समझाया जाता है कि रावण राज्य कब से शुरू हुआ है।
  • आधा समय रावण का राज्य, आधा समय राम का राज्य।
  • इस रावण से बाबा ही आकर छुड़ाते हैं और कोई छुड़ा न सके।
  • इनके लिए तो सर्वशक्तिमान् ही चाहिए।
  • वही माया पर जीत पहना सकते हैं।
  • फिर सतयुग में यह रावण दुश्मन होता ही नहीं।
  • धीरे-धीरे तुम्हारा प्रभाव बहुत निकलेगा।
  • फिर बांधेली मातायें, कन्यायें सब छूट जायेंगी।
  • समझेंगे यह तो अच्छी बात है।
  • कलंक लगने ही हैं।
  • कृष्ण पर भी कलंक लगे हैं ना।
  • स्थापना के समय भी भगाने आदि के कलंक लगाये, गालियां देते थे।
  • फिर स्वर्ग में भी कलंक लगाये हैं, सर्प ने डसा, यह किया.... कितनी फालतू बातें हैं।
  • प्रदर्शनी में बहुत आते हैं।
  • फिर उन्हों को कहा जाता है सेन्टर पर आकर समझो।
  • आकर अपनी जीवन बनाओ।
  • काल पर जीत पहनो।
  • वहाँ काल खाता नहीं।
  • एक कहानी है - यमदूत लेने गया तो उनको कहा तुम अन्दर घुस नहीं सकते... यह बड़ी समझने की बाते हैं।
  • इसमें बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए और देही-अभिमानी चाहिए।
  • हम आत्मा हैं, पुराने सम्बन्ध और पुराने शरीर का भान नहीं रखना है।
  • अब नाटक पूरा होता है, हम वापिस जा रहे हैं।
  • स्वर्ग में जाकर हमको नये सम्बन्ध में जुटना है।
  • यह ज्ञान बुद्धि में है।
  • यह पुरानी दुनिया तो खत्म होने वाली है।
  • हमारा सम्बन्ध है बाप से और नई दुनिया से।
  • यह बातें सिमरण करनी पड़े।
  • यह ज्ञान मिल रहा है तुमको भविष्य नई दुनिया के लिए।
  • यह पुरानी दुनिया तो कब्रिस्तान होनी है, इनसे क्या दिल लगानी है।
  • यह तो देह सहित सब कुछ खलास हो जाने वाला है।
  • देही-अभिमानी बनना अच्छा है।
  • हम बाबा के पास जाते हैं।
  • अपने साथ बातें करनी हैं तब कोई को समझा सकेंगे।
  • अब तुम बच्चे जानते हो हमारे सुख के दिन आ रहे हैं।
  • जितना पास होने का पुरूषार्थ करेंगे तो पद भी ऊंचा पायेंगे।
  • सर्टीफिकेट तो टीचर ही देंगे ना।
  • वह जानते हैं इनमें कितनी सच्चाई है।
  • कितना सर्विसएबुल है।
  • यह कन्स्ट्रक्शन का काम करते हैं।
  • डिस्ट्रक्शन का काम तो नहीं करते हैं!
  • सर्विसएबुल ही दिल पर चढ़ते हैं।
  • भल अभी तो परिपूर्ण कोई नहीं है।
  • खामियां तो सबमें रहती हैं।
  • परिपूर्ण तो आगे चलकर बनना है।
  • शौक रखना है - मनुष्य की जीवन कैसे बनायें।
  • कांटों को फूल बनाना है।
  • बाप भी कांटे जैसे मनुष्यों को फूल बनाते हैं।
  • देवता बनाते हैं।
  • ज्ञान और योग भी चाहिए।
  • बच्चे वृद्धि को पाते रहेंगे फिर कोई विरोध नहीं करेंगे।
  • सीधे हो जायेंगे।
  • यहाँ कोई डीटी तो है नहीं।
  • हर बात में ध्यान देना पड़ता है।
  • आलराउन्ड बुद्धि चाहिए।
  • सर्विस ठीक रीति से कोई करते हैं वा नहीं करते हैं।
  • कोई आराम-पसन्द तो नहीं हैं!
  • सारा दिन यह चाहिए, वह चाहिए तो नहीं है!
  • इसको कहा जाता है लोभ।
  • कपड़ा अच्छा चाहिए, भोजन अच्छा चाहिए।
  • आशायें बहुत रहती हैं।
  • वास्तव में यज्ञ से जो मिले सो अच्छा।
  • संन्यासी कभी दूसरी चीज़ लेते नहीं।
  • समझते हैं आदत अच्छी नहीं है।
  • शिवबाबा के यज्ञ से सब कुछ ठीक मिलता है।
  • फिर भी कुछ आश रहती है।
  • पहले ज्ञान-योग की आश तो पूर्ण करो।
  • वह आशायें तो जन्म-जन्मान्तर रखते आये।
  • अब तो बाबा को याद करने से हम एवरहेल्दी बनेंगे - यह आश रखनी है।
  • तो यह जरूर लिखना है कि यह रूहानी हॉस्पिटल है, जिससे मनुष्य समझें कि यह हॉस्पिटल वा कालेज भी है।
  • बाबा ने मकान भी हॉस्पिटल और कॉलेज के ढंग से बनवाया है।
  • कालेजों में कोई श्रृंगार नहीं होता है, सिम्पल होता है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) आराम-पसंद नहीं बनना है।
    • सर्विस का बहुत-बहुत शौक रखना है।
    • सर्विस में ही पैसे खर्च करने हैं।
    • मनुष्यों की जीवन कांटे से फूल बनानी है।
  • 2)सदैव कन्स्ट्रक्शन का काम ही करना है, डिस्ट्रक्शन का नहीं।
    • अपने आपसे बातें करनी हैं।
    • हम कहाँ जा रहे हैं!
    • क्या बन रहे हैं!
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
  • शक्तिशाली याद द्वारा परिवर्तन, खुशी और हल्के पन की अनुभूति करने वाले स्मृति सो समर्थ स्वरूप भव
  • शक्तिशाली याद एक समय पर डबल अनुभव कराती है।
  • एक तरफ याद अग्नि बन भस्म करने का काम करती है, परिवर्तन करने का काम करती है और दूसरे तरफ खुशी व हल्के पन का अनुभव कराती है।
  • ऐसे विधिपूर्वक शक्तिशाली याद को ही यथार्थ याद कहा जाता है।
  • ऐसी यथार्थ याद में रहने वाले स्मृति स्वरूप बच्चे ही समर्थ हैं।
  • यह स्मृति सो समर्थी ही नम्बरवन प्राइज का अधिकारी बना देती है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
  • अनुभवी वह है जिसकी दिल मजबूत और बुजुर्ग है।

    • लवलीन स्थिति का अनुभव करो
    • परमात्म प्यार इस श्रेष्ठ ब्राह्मण जन्म का आधार है। कहते भी हैं प्यार है तो जहान है, जान है। प्यार नहीं तो बेजान, बेजहान है। प्यार मिला अर्थात् जहान मिला। दुनिया एक बूँद की प्यासी है और आप बच्चों का यह प्रभु प्यार प्रापर्टी है। इसी प्रभु प्यार से पलते हो अर्थात् ब्राह्मण जीवन में आगे बढ़ते हो। तो सदा प्यार के सागर में लवलीन रहो।