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ओम् शान्ति।
- निराकार शिवबाबा बैठकर बच्चों को समझाते हैं कि बच्चे देही-अभिमानी भव।
- अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।
- हम आत्मा हैं, हमको बाप पढ़ाते हैं।
- बाबा ने समझाया है - संस्कार सब आत्मा में ही रहते हैं।
- जब माया रावण का राज्य होता है अथवा भक्ति मार्ग शुरू होता है तो देह-अभिमानी बन जाते हैं।
- फिर जब भक्ति मार्ग का अन्त होता है तो बाप आकर बच्चों को कहते हैं - अभी देही-अभिमानी बनो।
- तुमने जो जप तप दान पुण्य आदि किये हैं, उनसे कुछ भी फायदा नहीं मिला।
- 5 विकार तुम्हारे में प्रवेश होने से तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो।
- रावण ही तुमको देह-अभिमानी बनाते हैं।
- वास्तव में असुल तुम देही-अभिमानी थे फिर से अभी यह प्रैक्टिस कराई जाती है कि अपने को आत्मा समझो।
- यह पुराना शरीर हमको छोड़ नया जाकर लेना है।
- सतयुग में यह 5 विकार होते नहीं हैं।
- देवी-देवता, जिनको श्रेष्ठ पावन कहा जाता है वह सदैव आत्म-अभिमानी होने के कारण 21 जन्म सदा सुखी रहते हैं।
- फिर जब रावणराज्य होता है तो तुम बदलकर देह-अभिमानी बन जाते हो।
- इनको सोल-कान्सेस और उनको बॉडीकान्सेस कहा जाता है।
- निराकारी दुनिया में तो बॉडी कान्सेस और सोल कान्सेस का प्रश्न ही नहीं उठता है, वह तो है ही साइलेन्स वर्ल्ड।
- यह संस्कार इस संगमयुग पर ही होते हैं।
- तुमको देह-अभिमानी से देही-अभिमानी बनाया जाता है।
- सतयुग में तुम देही-अभिमानी होने कारण दु:ख नहीं उठाते हो क्योंकि नॉलेज है कि हम आत्मा हैं।
- यहाँ तो सब अपने को देह समझते हैं।
- बाप आकर समझाते हैं बच्चे अभी देही-अभिमानी बनो तो विकर्म विनाश होंगे।
- फिर तुम विकर्माजीत बन जाते हो।
- शरीर भी है, राज्य भी करते हो तो आत्म-अभिमानी हो।
- यह जो तुमको शिक्षा मिलती है, इससे तुम आत्म-अभिमानी बन जाते हो।
- सदैव सुखी रहते हो।
- सोल कान्सेस होने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होते हैं इसलिए बाबा समझाते हैं मुझे याद करते रहो तो विकर्म विनाश होंगे।
- वह गंगा स्नान जाकर करते हैं, परन्तु वह कोई पतित-पावनी तो है नहीं।
- न योग अग्नि है जिससे विकर्म भस्म हों।
- ऐसे-ऐसे मौके पर तुम बच्चों को सर्विस करने का चांस मिलता है।
- जैसा समय वैसी सर्विस।
- कितने ढेर मनुष्य स्नान करने जाते होंगे।
- कुम्भ के मेले पर सब जगह स्नान करते हैं।
- कोई सागर पर, कोई नदी में भी जाते हैं।
- तो सबको बांटने के लिए कितने पर्चे छपाने पड़े।
- खूब बांटने चाहिए।
- प्वाइंट ही सिर्फ यह हो - बहनों-भाइयों विचार करो पतित-पावन, ज्ञान सागर और उनसे निकली हुई ज्ञान नदियों द्वारा तुम पावन बन सकते हो वा इस पानी के सागर और नदियों से तुम पावन बन सकते हो?
- इस पहेली को हल किया तो सेकेण्ड में तुम जीवनमुक्ति पा सकते हो।
- राज्य भाग्य का वर्सा भी पा सकते हो।
- ऐसे-ऐसे पर्चे हर एक सेन्टर छपा ले।
- नदियां तो सब जगह हैं।
- नदियां निकलती हैं बहुत दूर से।
- नदियां तो जहाँ तहाँ बहुत हैं।
- फिर क्यों कहते कि इसी ही नदी में स्नान करने से पावन होंगे।
- खास एक जगह पर इतना खर्चा कर तकलीफ करके क्यों जाते हैं!
- ऐसे तो नहीं एक दिन स्नान करने से पावन हो जायेंगे।
- स्नान तो जन्म-जन्मान्तर करते हैं।
- सतयुग में भी स्नान करते हैं।
- वहाँ तो हैं ही पावन।
- यहाँ तो ठण्डी में कितनी तकलीफ लेकर जाते हैं स्नान करने।
- तो उन्हों को समझाना है, अन्धों की लाठी बनना है।
- सुजाग करना है।
- पतित-पावन आकर पावन बनाते हैं।
- तो दु:खियों को रास्ता बताना चाहिए।
- यह छोटे-छोटे पर्चे सब भाषाओं में छपे हुए होने चाहिए।
- लाख दो लाख छपाने चाहिए।
- जिन्हों की बुद्धि में ज्ञान का नशा चढ़ा हुआ है, उन्हों की बुद्धि काम करेगी।
- यह चित्र 2-3 लाख सभी भाषाओं में होने चाहिए।
- जगह-जगह पर सर्विस करनी है।
- एक ही प्वाइंट मुख्य है, आकर समझो कि सेकेण्ड में मुक्ति-जीवनमुक्ति कैसे मिलती है।
- मुख्य सेन्टर्स की एड्रेस डाल दो, फिर पढ़े वा न पढ़े।
- तुम बच्चों को त्रिमूर्ति के चित्र पर समझाना चाहिए कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना जरूर होनी है।
- दिन-प्रतिदिन मनुष्य समझते जायेंगे कि बरोबर विनाश तो सामने खड़ा है।
- यह झगड़े आदि बढ़ते ही जायेंगे।
- मिलकियत के ऊपर भी कितना झंझट चलता है।
- फिर नहीं तो मारामारी भी कर लेते हैं।
- विनाश तो सामने है ही है।
- जो अच्छी रीति गीता भागवत आदि पढ़े होंगे वह समझेंगे बरोबर यह तो पहले भी हुआ था।
- तो तुम बच्चों को अच्छी रीति समझाना चाहिए कि क्या पानी में स्नान करने से मनुष्य पतित से पावन बनेंगे वा योग अग्नि से पावन बनेंगे।
- भगवानुवाच - मुझे याद करने से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
- जहाँ-जहाँ भी तुम्हारे सेन्टर्स हैं तो विशेष मौके पर ऐसे पर्चे निकालने चाहिए।
- मेले भी बहुत लगते हैं, जिसमें ढेर मनुष्य जाते हैं।
- परन्तु समझेंगे कोई मुश्किल ही।
- पर्चे बांटने के लिए भी बहुत चाहिए, जो फिर समझा सकें।
- ऐसी जगह खड़ा रहना चाहिए
- यह हैं ज्ञान रत्न।
- सर्विस का बहुत शौक रखना चाहिए।
- हम अपनी दैवी बादशाही स्थापन करते हैं ना।
- यह है ही मनुष्य को देवता अथवा पतित को पावन बनाने की मिशन।
- यह भी तुम लिख सकते हो कि बाप ने समझाया है मनमनाभव।
- पतित-पावन बेहद के बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे।
- यात्रा की प्वाइंट भी तुम बच्चों को बार-बार समझाई जाती है।
- बाप को बार-बार याद करो।
- सिमर सिमर सुख पाओ, कलह क्लेष मिटे सब तन के अर्थात् तुम एवरहेल्दी बन जायेंगे।
- बाप ने मन्त्र दिया है कि मुझे सिमरो अर्थात् याद करो, ऐसे नहीं कि शिव-शिव बैठ सिमरो।
- शिव के भगत ऐसे शिव-शिव कह माला जपते हैं।
- वास्तव में है रूद्र माला।
- शिव और सालिग्राम।
- ऊपर में है शिव।
- बाकी हैं छोटे-छोटे दाने अर्थात् आत्माएं।
- आत्मा इतनी छोटी बिन्दी है।
- काले दानों की भी माला होती है।
- तो शिव की माला भी बनी हुई है।
- आत्मा को अपने बाप को याद करना है।
- बाकी मुख से शिव, शिव बोलना नहीं है।
- शिव-शिव कहने से फिर बुद्धियोग माला तरफ चला जाता है।
- अर्थ तो कोई समझते नहीं हैं।
- शिव-शिव जपने से विकर्म थोड़ेही विनाश होंगे।
- माला फेरने वालों के पास यह ज्ञान नहीं है कि विकर्म तब विनाश होते हैं जब संगम पर डायरेक्ट शिवबाबा आकर मंत्र देते हैं कि मामेकम् याद करो।
- बाकी तो कोई कितना भी बैठ शिव-शिव कहे, विकर्म विनाश नहीं होंगे।
- काशी में भी जाकर रहते हैं।
- तो शिव काशी, शिव काशी कहते रहते हैं।
- कहते हैं काशी में शिव का प्रभाव है।
- शिव के मन्दिर तो बहुत आलीशान बने हुए हैं।
- यह सब है भक्ति मार्ग की सामग्री।
- तुम समझा सकते हो कि बेहद का बाप कहते हैं - मेरे साथ योग लगाने से ही तुम पावन बनेंगे।
- बच्चों को सर्विस का शौक होना चाहिए।
- बाप कहते हैं मुझे पतितों को पावन बनाना है।
- तुम बच्चे भी पावन बनाने की सर्विस करो।
- पर्चे ले जाकर समझाओ।
- बोलो, इनको अच्छी रीति पढ़ो।
- मौत तो सामने खड़ा है।
- यह दु:खधाम है।
- अब ज्ञान स्नान एक ही बार करने से सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है।
- फिर नदियों में स्नान करने, भटकने की क्या दरकार है।
- हमको सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है तब ढिंढोरा पिटवाते हैं।
- नहीं तो कोई थोड़ेही ऐसे पर्चे छपवा सकते हैं।
- बच्चों को सर्विस का बहुत शौक होना चाहिए।
- पहेलियां भी जो बनवाई हैं वह सर्विस के लिए हैं।
- बहुत हैं जिनको सर्विस का शौक नहीं है।
- ध्यान में ही नहीं आता है कि कैसे सर्विस करें, इसमें बड़ी अच्छी चमत्कारी बुद्धि चाहिए,
- जिनके पैरों में देह-अभिमान की कड़ियां (जंजीरें) पड़ी हैं तो देही-अभिमानी बन नहीं सकते हैं।
- समझा जाता है, यह क्या जाकर पद पायेंगे।
- तरस पड़ता है।
- सब सेन्टर्स में देखा जाता है - कौन-कौन पुरुषार्थ में तीखे जा रहे हैं।
- कोई तो अक के फूल भी हैं, कोई गुलाब के फूल भी हैं।
- हम फलाने फूल हैं।
- हम बाबा की सर्विस नहीं करते तो समझना चाहिए हम अक के फूल जाकर बनेंगे।
- बाप तो बहुत अच्छी रीति समझा रहे हैं।
- तुम हीरे जैसा बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो।
- कोई तो सच्चा हीरा है, कोई काले झुंझार भी हैं।
- हर एक को अपना ख्याल करना चाहिए।
- हमको हीरे जैसा बनना है।
- अपने से पूछना है हम हीरे जैसा बने हैं!
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह-अभिमान की कड़ियां (जंजीर) काट देही-अभिमानी बनना है।
- सोल कान्सेस रहने का संस्कार डालना है।
2) सर्विस का बहुत शौक रखना है।
- बाप समान पतित से पावन बनाने की सेवा करनी है।
- सच्चा हीरा बनना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
कर्म करते हुए न्यारी और प्यारी अवस्था में रह, हल्के पन की अनुभूति करने वाले कर्मातीत भव
कर्मातीत अर्थात् न्यारा और प्यारा।
कर्म किया और करने के बाद ऐसा अनुभव हो जैसे कुछ किया ही नहीं, कराने वाले ने करा लिया।
ऐसी स्थिति का अनुभव करने से सदा हल्कापन रहेगा।
कर्म करते तन का भी हल्कापन, मन की स्थिति में भी हल्कापन, जितना ही कार्य बढ़ता जाए उतना हल्कापन भी बढ़ता जाए।
कर्म अपनी तरफ आकर्षित न करे, मालिक होकर कर्मेन्द्रियों से कर्म कराना और संकल्प में भी हल्के-पन का अनु-भव करना - यही कर्मातीत बनना है।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
सर्व प्राप्तियों से सदा सम्पन्न रहो तो सदा हर्षित, सदा सुखी और खुशनसीब बन जायेंगे।
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
“किस्मत बनाने वाला परमात्मा, किस्मत बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है''
अब यह तो हम जानते हैं कि मनुष्य आत्मा की किस्मत बनाने वाला कौन है?
और किस्मत बिगाड़ने वाला कौन है?
हम ऐसे नहीं कहेंगे कि किस्मत बनाने वाला, बिगाड़ने वाला वही परमात्मा है।
बाकी यह जरूर है कि किस्मत को बनाने वाला परमात्मा है और किस्मत को बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है।
अब यह किस्मत बने कैसे?
और फिर गिरे कैसे?
इस पर समझाया जाता है।
मनुष्य जब अपने को जानते हैं और पवित्र बनते हैं तो फिर से वो बिगड़ी हुई तकदीर को बना लेते हैं।
अब जब हम बिगड़ी हुई तकदीर कहते हैं तो इससे साबित है कोई समय अपनी तकदीर बनी हुई थी, जो फिर बिगड़ गई है।
अब वही फिर बिगड़ी तकदीर को परमात्मा खुद आकर बनाते हैं।
अब कोई कहे परमात्मा खुद तो निराकार है वो तकदीर को कैसे बनायेगा?
इस पर समझाया जाता है, निराकार परमात्मा कैसे अपने साकार ब्रह्मा तन द्वारा, अविनाशी नॉलेज द्वारा हमारी बिगड़ी हुई तकदीर को बनाते हैं।
अब यह नॉलेज देना परमात्मा का काम है, बाकी मनुष्य आत्मायें एक दो की तकदीर को नहीं जगा सकती हैं।
तकदीर को जगाने वाला एक ही परमात्मा है तभी तो उन्हों का यादगार मन्दिर कायम है। अच्छा।
- लवलीन स्थिति का अनुभव करो
- जिस समय जिस सम्बन्ध की आवश्यकता हो, उसी सम्बन्ध से भगवान को अपना बना लो। दिल से कहो मेरा बाबा, और बाबा कहे मेरे बच्चे, इसी स्नेह के सागर में समा जाओ। यह स्नेह छत्रछाया का काम करता है, इसके अन्दर माया आ नहीं सकती।
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