18-01-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे, सवेरे उठकर बाबा को बहुत प्रेम से याद करो, बाबा को याद करेंगे तो बाबा भी प्यार करेंगे, कशिश होगी।

गीत:-तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया है...



  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे बच्चों को बाबा बार-बार समझाते हैं बच्चे अपने को आत्मा समझो, यह शरीर मेरा नहीं, यह भी खत्म होना है।
    • हमको बाप के पास जाना है।
    • ऐसे ज्ञान की मस्ती में रहने से तुम्हारे में कशिश बहुत आयेगी।
    • यह तो जानते हो यह पुराना चोला छोड़ना है।
    • यहाँ रहना नहीं है, इस शरीर से ममत्व निकल जाए।
    • इस शरीर में सिर्फ सर्विस के लिए ही हैं, इसमें ममत्व नहीं है।
    • बस घर जायें।
  • यह संगम का समय भी पुरुषार्थ के लिए बहुत आवश्यक है।
    • अभी ही समझते हैं हमने 84 का चक्र लगाया है, बाप कहते हैं भल धन्धाधोरी आदि करो।
    • गृहस्थ व्यवहार में रहते बुद्धि में यह याद रहे कि यह तो सब कुछ खत्म होना है।
    • अब वापिस घर जाना है।
    • बाप भी सदैव घर में रहते हैं ना।
    • भल 8 घण्टा धन्धे आदि में लगाओ, 8 घण्टा आराम करो।
    • बाकी समय बेहद के बाप से यह वार्तालाप, रूहरिहान करो।
    • बाप की श्रीमत है मीठे बच्चे, निरन्तर याद की यात्रा पर रहो, जितना याद की यात्रा पर रहेंगे तो तुम्हारी प्रकृति दासी बनेंगी।
  • संन्यासी लोग कब मांगते नहीं हैं।
    • वह योगी तो है ना, निश्चय रहता है कि हमें ब्रह्म में लीन होना है।
    • बहुत पक्के रहते हैं, बस हम जाते हैं यह शरीर छोड़ जायेंगे।
    • बड़ी मेहनत करते हैं।
  • भक्ति मार्ग में कई भक्त देवताओं से मिलने के लिए अपना जीवघात भी कर लेते हैं।
    • आत्मघात तो नहीं कहेंगे वह तो होता नहीं।
    • बाकी जीवघात होता है।
    • तुम बच्चे योग में रहते हो तो जैसे अमर हो।
    • कभी कोई भी ख्याल नहीं आयेगा कि कुछ करें, परन्तु वह अवस्था मजबूत हो।
  • पहले तो अपने अन्दर देखना है कि हमारे में कोई खामी तो नहीं है?
    • खामी नहीं होगी तो सर्विस भी अच्छी कर सकेंगे।
    • फादर सोज़ सन, सन सोज़ फादार।
  • बाप ने तुमको लायक बनाया और तुम बच्चों को फिर नये-नये को बाप का परिचय देना है।

    • बच्चों को बाप ने होशियार कर ही दिया।
    • बाबा जानते हैं बहुत अच्छे-अच्छे बच्चे हैं जो सर्विस करके आते हैं।
    • रात-दिन यही ख्याल चलता है कि हम इनका जीवन कैसे बनायें, इससे हमारा जीवन भी उन्नति को पायेगा।
    • खुशी होती है, हरेक को उमंग रहता है हम अपने गांव वालों का उद्धार करें।
    • अपने हमजिन्स की सेवा करें।
    • बाप भी कहते हैं चैरिटी बिगन्स एट होम।
    • बाप बैठ बच्चों को ही शिक्षा देते हैं कि बच्चे तुमको पहले अपनी उन्नति करनी है।
  • बाप जानते हैं रूहानी कल्प वृक्ष, कल्प पहले मिसल ही है।
    • यह वृक्ष है ना, इनमें सभी सेक्शन हैं।
    • तुम आगे चल सब साक्षात्कार करेंगे, कैसे सब रहते हैं, सिजरा तो जरूर है ना।
    • बुद्धि भी कहती है वहाँ से आत्मायें फिर नम्बरवार आती हैं।
    • तो बच्चों का विचार सागर मंथन चलना चाहिए कि ऐसे-ऐसे सर्विस करें, यह करें, साथ-साथ बाप की भी याद रहनी चाहिए, याद से ही उन्नति होती है।
    • बाबा कहेंगे ड्रामा प्लैन अनुसार जो पास हुआ वह ठीक है।
  • लाडले बच्चे, आगे चल तुम्हारे में योगबल की ताकत आ जायेगी।
    • फिर तुम किसी को थोड़ा ही समझायेंगे तो झट समझ जायेंगे।
    • यह भी ज्ञान बाण हैं ना।
    • बाण लगता है तो घायल कर देता है।
    • पहले घायल होते हैं फिर बाबा के बनते हैं।
  • तो एकान्त में बैठ युक्तियाँ निकालनी चाहिए।
    • ऐसे नहीं रात को सोया सुबह को उठा, नहीं।
  • सवेरे उठकर बाबा को बहुत प्रेम से याद करना चाहिए।
    • रात को भी याद में सोना चाहिए।
    • बाबा को याद ही नहीं करेंगे तो बाप फिर प्यार कैसे करेंगे।
    • कशिश ही नहीं होगी।
  • भल बाबा जानते हैं ड्रामा में सब प्रकार के नम्बरवार बनने हैं, फिर भी चुप करके बैठ थोड़ेही जायेंगे।
    • पुरुषार्थ करायेंगे ना।
    • बच्चों को ड्रामा कहकरके ठहर नहीं जाना है, नहीं तो अन्त समय में बहुत पछताना पड़ेगा, नाहेक मैंने ऐसा किया!
    • माया के वश हो गया!
    • बाप को तो तरस पड़ता है।
    • नहीं सुधरते हैं तो उनकी क्या गति होगी, रोयेंगे, पीटेंगे, सजायें खायेंगे इसलिए बाप बच्चों को बार-बार शिक्षा देते हैं कि बच्चे तुम्हें परफेक्ट बनना है।
  • बार-बार अपनी चेकिंग करनी है।
    • हरेक बच्चे को अपने से पूछना है, बाप से हमें सब कुछ मिला, फिर किस चीज़ की मेरे में कमी है?
    • अपने अन्दर झांक करके देखना है।
    • जैसे नारद से पूछा ना कि लक्ष्मी को वरने के लायक अपने को समझते हो?
    • बाप भी पूछते हैं लक्ष्मी को वरने लायक बने हो?
    • क्या क्या खामियां रही हुई हैं, जिसको निकालने का पुरुषार्थ करना है।
  • नये-नये बच्चों को भी समझाया जाता है बताओ, तुम्हारे में कोई खामी तो नहीं है?
    • क्योंकि तुम्हें अभी ही परफेक्ट बनना है, बाप आते ही हैं परफेक्ट बनाने।
    • तो अपने अन्दर से पूछो हम इन लक्ष्मी-नारायण जैसे परफेक्ट बने हैं?
    • अगर खामियाँ हैं तो बाप को बताना चाहिए कि यह-यह खामियाँ हमारे से निकलती नहीं हैं, उसका कोई उपाय बताओ।
    • बीमारी सर्जन द्वारा ही निकल सकती हैं।
    • तो इमानदारी से, सच्चाई से देखो मेरे में क्या खामी है!
    • खामियाँ बतायेंगे तो बाप राय देंगे।
    • खामियाँ बहुतों में हैं।
    • कोई में क्रोध है या लोभ है या फालतू चिन्तन है, तो उसको ज्ञान की धरणा हो नहीं सकती।
    • बाप रोज़-रोज समझाते हैं, वैसे इतना समझाने की दरकार नहीं है लेकिन यह धारण करने की बातें हैं।
  • 5 विकारों को जीतने की बात अभी की ही है।
    • तुम्हारे में कोई वह भूत (भटकने वाले) नहीं हैं, यह जन्म जन्मान्तर के भूत 5 विकार अन्दर प्रवेश हैं जिन्होंने दु:खी किया है।
    • काम भूत के लिए तो रोज़ समझाया जाता है।
  • ऑखें बहुत धोखा देती हैं, इसलिए आत्मा को देखने की प्रैक्टिस अच्छी रीति डालनी चाहिए।
    • मैं आत्मा हूँ, यह भी आत्मा है।
    • तुम आत्मायें तो भाई-भाई हो ना।
    • तो इस शरीर को नहीं देखना है।
  • हम आत्मायें सब वापस घर जाने वाली हैं।
    • बाप आये हैं ले जाने के लिए, बाकी यह देखना है हम सर्वगुण सम्पन्न बने हैं?
    • कौन सा गुण कम है?
    • आत्मा को देख बताया जाता है इस आत्मा में यह खामी है, तो फिर बैठकर करेन्ट दें कि इनसे यह बीमारी निकल जाए।
  • बच्चों को बाबा से बहुत मीठी-मीठी बातें करनी चाहिए, बाबा आप ऐसे हो!
    • बाबा आप कितने मीठे हो।
    • तो बाप की याद से, बाप की महिमा करने से यह भूत भागते रहेंगे और तुमको खुशी भी रहेगी।
  • तुम जानते हो कि यह झाड़ बहुत धीरे-धीरे वृद्धि को पाता है।
    • माया तो चारों तरफ से घेराव डालती है, माया का परछाया ऐसा पड़ता है जो एकदम गुम हो जाते हैं।
    • बाप का हाथ छोड़ देते हैं।
    • तुम हरेक बच्चे का कनेक्शन बाप के साथ है, बाकी बच्चे तो सब नम्बरवार निमित्त हैं।
  • अच्छा। अति मीठे, अति लाडले सर्व सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का दिल व जान सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • अव्यक्त महावाक्य -
  • अन्तिम सर्विस का अन्तिम स्वरूप अपने अन्तिम स्वरूप का साक्षात्कार होता रहता है?
  • क्योंकि जितना-जितना नजदीक आते जाते हैं उतना ऐसे अनुभव होगा जैसे कोई सम्मुख वस्तु दिखाई दे रही है।
  • ऐसे ही अनुभव होगा कि अभी-अभी यह बनेंगे।
  • जैसे वृद्ध अवस्था वालों को यह स्मृति रहती है कि अभी वृद्ध हूँ, अभी-अभी जाकर बच्चा बनूंगा।
  • ऐसे ही अपने अन्तिम स्वरूप की स्मृति नहीं लेकिन सम्मुख स्पष्ट रूप से साक्षात्कार हो, अभी यह हूँ, फिर यह बनूंगा?
  • जैसे शुरू में सुनाते थे कि जब मंजिल पर पहुंच जायेंगे तो ऐसे समझेंगे, कि कदम रखने की देरी है।
  • एक पांव रख चुके हैं, दूसरा रखना है।
  • बस इतना अन्तर है।
  • तो ऐसे अपनी अन्तिम स्टेज की समीपता का अनुभव होता है?
  • अपरोक्ष स्पष्ट साक्षात्कार होता है?
  • जैसे आइने में अपना रूप स्पष्ट दिखाई देता है, वैसे ही इस नॉलेज के दर्पण में ऐसा ही अपना अन्तिम स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे।
  • जैसे कोई बहुत अच्छा सुन्दर चोला सामने रखा हो और मालूम हो कि हमको अभी यह धारण करना है, तो न चाहते हुए भी धारण करने का समय जैसे-जैसे नजदीक आता रहेगा तो अटेंशन जायेगा क्योंकि सामने दिखाई दे रहा है।
  • ऐसे ही अपना अन्तिम स्वरूप सामने दिखाई देता है?
  • उस स्वरूप तरफ अटेन्शन जाता है?
  • वह लाइट का स्वरूप कहो वा चोला कहो, लाइट ही लाइट दिखाई पड़ेगी।
  • फरिश्तों का स्वरूप क्या होता है? लाइट।
  • देखने वाले भी ऐसे अनुभव करेंगे कि यह लाइट के वस्त्रधारी हैं, लाइट ही इन्हों का ताज है, लाइट ही वस्त्र हैं, लाइट ही इन्हों का श्रृंगार है।
  • जहाँ भी देखेंगे तो लाइट ही देखेंगे।
  • मस्तक के ऊपर देखेंगे तो लाइट का क्राउन दिखाई पड़ेगा।
  • नैनों में भी लाइट की किरणें निकलती हुई दिखाई देंगी।
  • तो ऐसा रूप सामने दिखाई पड़ता है?
  • क्योंकि माइट रूप अर्थात् शक्ति रूप का जो पार्ट चलता है वह प्रसिद्ध किससे होगा?
  • लाइट रूप से।
  • कोई भी सामने आये तो एक सेकेण्ड में अशरीरी बन जाये, वह लाइट रूप से ही होगा।
  • ऐसा चलता-फिरता लाइट हाउस हो जायेंगे जो किसी को भी यह शरीर दिखाई नहीं पड़ेगा।
  • विनाश के समय पेपर में पास होना है तो सर्व परिस्थितियों का सामना करने के लिये लाइट हाउस बनना पड़े।
  • चलते-फिरते अपना वह रूप अनुभव होना चाहिए।
  • यह प्रैक्टिस करनी है।
  • शरीर बिल्कुल भूल जाये, अगर कोई काम भी करना है, चलना है, बात करनी है, वह भी निमित्त आकारी लाइट का रूप धारण करना है।
  • जैसे पार्ट बजाने समय चोला धारण करते हो, कार्य समाप्त हुआ चोला उतारा।
  • एक सेकेण्ड में धारण करेंगे, एक सेकेण्ड में न्यारे हो जायेंगे।
  • जब यह प्रैक्टिस पक्की हो जायेगी, फिर यह कर्मभोग समाप्त होगा।
  • जैसे इन्जेक्शन लगाकर दर्द को खत्म कर देते हैं।
  • हठयोगी तो शरीर से न्यारा होने का अभ्यास कराते हैं।
  • ऐसे ही यह स्मृति सवरूप का इंजेक्शन लगाकर, देह की स्मृति से गायब हो जायें।
  • स्वयं भी अपने को लाइट रूप अनुभव करो तो दूसरे भी वही अनुभव करेंगे।
  • अन्तिम सर्विस यही है, इससे सारी कारोबार भी लाइट अर्थात् हल्की होगी।
  • जो कहावत है ना पहाड भी राई बन जाता है।
  • ऐसे कोई भी कार्य लाइट रूप बनने से हल्का हो जायेगा, बुद्धि लगाने की भी आवश्यकता नहीं रहेगी।
  • हल्के काम में बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है।
  • तो इसी लाइट स्वरूप की स्थिति में, जो मास्टर जानी जाननहार वा मास्टर त्रिकालदर्शी के लक्षण हैं, वह आ जाते हैं।
  • करें या न करें, यह भी सोचना नहीं पड़ेगा।
  • बुद्धि में वही संकल्प होगा जो यथार्थ करना है।
  • उस अवस्था के बीच कोई भी कर्मभोग की भासना नहीं रहेगी।
  • जैसे इंजेक्शन के नशे में बोलते हैं, हिलते हैं, सभी कुछ करते भी स्मृति नहीं रहती है।
  • कर रहे हैं, यह स्मृति नहीं रहती है।
  • स्वत: ही होता रहता है।
  • वैसे कर्मभोग व कर्म किसी भी प्रकार का चलता रहेगा लेकिन स्मृति नहीं रहेगी।
  • वह अपनी तरफ आकर्षित नहीं करेगा।
  • ऐसी स्टेज को ही अन्तिम स्टेज कहा जाता है।
  • ऐसा अभ्यास होना है।
  • यह स्टेज कितना समीप है?
  • बिल्कुल सम्मुख तक पहुंच गये है?
  • जब चाहें तब लाइट रूप हो जायें, जब चाहें तब शरीर में आयें वा जो कुछ करना हो वह करें।
  • सदाकाल वह स्थिति एकरस जब तक रहे, तब तक बीच-बीच में कुछ समय तो रहे।
  • फिर ऐसे रहते-रहते सदाकाल हो जायेगी।
  • जैसे साकार में आकार का अनुभव करते थे ना।
  • फर्स्ट में रहते भी फरिश्ते का अनुभव करते थे।
  • ऐसी स्टेज तो आनी है ना।
  • शुरू-शुरू में बहुतों को यह साक्षात्कार होते थे।
  • लाइट ही लाइट दिखाई देती थी।
  • अपने लाइट के क्राउन के भी अनेक बार साक्षात्कार करते थे।
  • जो आदि में सैम्पल था, वह अन्त में प्रैक्टिकल स्वरूप होगा।
  • संकल्प की सिद्धि का साक्षात्कार होगा।
  • जैसे वाचा से आप डायरेक्शन देती हो ना, वैसे संकल्प से सारी कारोबार चला सकती हो।
  • साइंस की शक्ति से नीचे पृथ्वी से ऊपर तक डायरेक्शन लेते रहते हैं, तो क्या श्रेष्ठ संकल्प से कारोबार नहीं चल सकती है?
  • साईस ने कापी तो साइलेंस से ही की है।
  • तो एग्जाम्पल देने अर्थ पहले से ही स्पष्ट रूप में आपके सामने है।
  • कल्प पहले तो आप लोगों ने किया है ना।
  • फिर बोलने की आवश्यकता नहीं।
  • जैसे बोलने में बात को स्पष्ट करते हैं, वैसे ही संकल्प से सारी कारोबार चले।
  • जितना-जितना अनुभव करते जाते हो, एक दो के समीप आते जाते हो तो संकल्प भी एक-दो से मिलते जाते हैं।
  • लाइट रूप होने से व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ समय समाप्त हो जाने के बाद संकल्प वही उठेगा जो होना है।
  • आपकी बुद्धि में भी वही संकल्प उठेगा और जिसको करना है उनकी बुद्धि में भी वही संकल्प उठेगा कि यही करना है।
  • नवीनता तो यह है ना।
  • यह कारोबार कोई देखे तो समझेंगे इन्हों की कारोबार कहने से नहीं, इशारों से चलती है।
  • नज़र से देखा और समझ गये।
  • सूक्ष्मवतन यहाँ ही बनना है।
  • अच्छा - ओम् शान्ति।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
  • भुजाओं में समाने और भुजायें बन सेवा करने वाले ब्रह्मा बाप के स्नेही भव
  • जो बच्चे बाप स्नेही हैं वह सदा ब्रह्मा बाप की भुजाओं में समाये रहते हैं।
  • यह ब्रह्मा बाप की भुजायें ही आप बच्चों की सेफ्टी का साधन हैं।
  • जो प्यारे, स्नेही होते हैं वो सदा भुजाओं में होते हैं।
  • तो सेवा में बापदादा की भुजायें हो और रहते हो बाप की भुजाओं में।
  • इन दोनों दृश्यों का अनुभव करो - कभी भुजाओं में समा जाओ और कभी भुजायें बनकर सेवा करो।
  • नशा रहे कि हम भगवान के राइट हैण्ड हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
  • सन्तुष्टता और प्रसन्नता की विशेषता ही उड़ती कला का अनुभव कराती है।

    • लवलीन स्थिति का अनुभव करो
    • बाप का बच्चों से इतना प्यार है जो अमृतवेले से ही बच्चों की पालना करते हैं। दिन का आरम्भ ही कितना श्रेष्ठ होता है! स्वयं भगवन मिलन मनाने के लिये बुलाते हैं, रुहरिहान करते हैं, शक्तियाँ भरते हैं! बाप की मोहब्बत के गीत आपको उठाते हैं। कितना स्नेह से बुलाते हैं, उठाते हैं - मीठे बच्चे, प्यारे बच्चे, आओ.....। तो इस प्यार की पालना का प्रैक्टिकल स्वरूप ‘सहज योगी जीवन' का अनुभव करो।