06-01-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - देह-अभिमान में आने से ही विकर्म बनते हैं, इसलिए प्रतिज्ञा करो और सब संग तोड़ एक संग जोड़ेंगे''
प्रश्नः-
कौन सा खेल नेचुरल है लेकिन मनुष्य उसे गॉडली एक्ट समझते हैं?
उत्तर:-
ड्रामा में यह जो नेचुरल कैलेमिटीज़ आती हैं, विनाश के समय एक ही समुद्र की लहर में सब खण्ड टापू आदि खत्म हो जाते हैं, जिसका रिहर्सल अभी भी होता रहता है, यह सब नेचुरल खेल है।
इसे मनुष्य गॉडली एक्ट कह देते हैं।
परन्तु बाबा कहते मैं कोई डायरेक्शन नहीं देता हूँ, यह सब ड्रामा में नूंध है।
गीत:-
कौन आया मेरे मन के द्वारे...
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ओम् शान्ति।
- कौन आया अर्थात् किसकी याद आई?
- ऐसे नहीं कि आकर दिल में बैठ गया फिर तो सर्वव्यापी हो जाए।
- नहीं, कौन आया मेरी याद में?
- अकालमूर्त।
- जिसको काल खा न सके।
- सिक्ख लोगों के पास अकालतख्त भी है।
- उनके पास अकाली लोग भी हैं।
- वो लोग खुद नहीं समझते कि सिक्ख धर्म प्रवृत्ति मार्ग का धर्म है।
- एक ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय: लोप है।
- दूसरा है संन्यास धर्म, निवृत्ति मार्ग का।
- घरबार छोड़ हद का संन्यास कर पवित्र बनते हैं।
- जंगल में तो जरूर पवित्र ही रहते होंगे।
- हर एक धर्म की रसमरिवाज अलग है।
- शिक्षा भी अलग है।
- वह है निवृत्ति मार्ग का धर्म, उनको फालो करने वाले को भी घरबार छोड़ कफनी पहननी पड़े।
- फिर भल वो लोग कहते हैं घर गृहस्थ में रहते भी ज्ञान पा सकते हो परन्तु वह कोई ज्ञान नहीं।
- न संन्यासी ऐसे करा सकते हैं।
- वास्तव में गुरू वह जो सद्गति देने वाला हो।
- वह तो एक ही है।
- गुरूनानक ने भी शिक्षा दी है।
- वह भी परमात्मा की ही महिमा करते हैं।
- एकोअंकार, अकालमूर्त, तुमको अब उस अकालमूर्त अर्थात् परमपिता परमात्मा की ही याद है।
- महिमा करते हैं, अकालमूर्त, अयोनि है।
- स्वयंभू अर्थात् रचता है।
- निर्भय, निर्वैर, अकालमूर्त... सतगुरू प्रसाद, जप साहेब आदि यह महिमा है - परमपिता परमात्मा की।
- अकालमूर्त को ही मानते हैं।
- वही बताते हैं सतयुग आदि सत, होसी भी सत, फिर यह भी कहते हैं मूत पलीती... पतित-पावन माना ही मूत पलीती कपड़ धोए, साफ करते हैं तब उनकी महिमा गाते हैं।
- फिर कहते हैं अशंख चोर हराम खोर।
- यह भी इस समय की ही महिमा है।
- फिर नानक कहे नींच विचार कर... फिर उनके ऊपर बलिहार जाते हैं।
- जरूर जब वह आया तब तो बलिहार जाते हैं।
- बाबा कहते मैं अहिल्याओं, गणिकाओं, साधुओं का भी उद्धार करने आता हूँ।
- तो जरूर सब पतित ठहरे।
- अब यह है बेहद की बात तो जरूर बेहद का मालिक ही आकर समझायेंगे।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी मेरी रचना है।
- ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना, शंकर द्वारा अनेक धर्मो का विनाश।
- दूसरे जो आते हैं सिर्फ अपने धर्म की स्थापना करते हैं।
- ऐसे नहीं कि वो गुरू लोग सद्गति दाता हैं।
- सद्गति किसकी करेंगे?
- उनकी वंशावली की ही पूरी वृद्धि नहीं हुई है तो सद्गति कैसे करेंगे।
- बाप कहते हैं मैं आकर आदि सनातन धर्म की स्थापना और अधर्मो का विनाश कराता हूँ।
- इस समय सब तमोप्रधान पाप आत्मा बन गये हैं।
- मनुष्य जो इस बेहद ड्रामा के पार्टधारी हैं, उन्हों को मालूम होना चाहिए कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है।
- बाप आकर हम बच्चों को त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
- यह भी समझते हैं जरूर बाप आकर स्वर्ग, सचखण्ड की स्थापना करेंगे और झूठ खण्ड का विनाश करेंगे।
- सचखण्ड की स्थापना करने वाला सच्चा ठहरा ना।
- यह सब बातें बाबा ही समझाते हैं।
- सभी तो धारण कर नहीं सकते क्योंकि देह-अभिमान बहुत है।
- जितना देही-अभिमानी होंगे, अपने को आत्मा अशरीरी समझेंगे, बाबा को याद करेंगे तो धारणा होगी।
- देह-अभिमानी को धारणा नहीं होगी।
- योग से ही आत्मा के पाप दग्ध होते हैं।
- दिन में तो देह-अभिमान रहता है।
- तो देही-अभिमानी बनने की प्रैक्टिस कब करनी चाहिए?
- बाप कहते हैं नींद को जीतने वाला बनो।
- बाप कितनी अच्छी प्वाइंट्स समझाते हैं।
- परन्तु कई ऐसे भी बच्चे हैं जो मुरली सुनते ही नहीं।
- पढ़ाई तो मुख्य है।
- कैसे भी करके मुरली पढ़नी चाहिए।
- परन्तु ऐसे भी नहीं विकारों में गिरते रहें और मुरली मांगते रहें।
- जब तक गैरन्टी न करें मुरली नहीं भेजनी चाहिए।
- जो मुरली नहीं पढ़ते तो उनकी गति क्या होगी।
- अच्छे-अच्छे बच्चे भी मुरली नहीं पढ़ते, नशा चढ़ जाता है।
- नहीं तो एक दिन भी मुरली मिस नहीं करनी चाहिए।
- धारणा नहीं होती है तो समझना चाहिए देह-अभिमान है।
- वह ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
- बाबा अच्छी रीति समझाते हैं, बच्चों को भी समझाना पड़े।
- बाबा तो बाहर जा न सकें।
- बाबा बच्चों के आगे ही समझाते हैं।
- यह बड़ी मम्मा भी है गुप्त।
- शक्तियां बाहर जा सकती हैं।
- कान्फ्रेन्स होती है, उनमें आदि सनातन देवी-देवता धर्म का तो कोई प्रतिनिधि है नही।
- यह भी प्वाइंट समझानी है।
- और जो भी धर्म पिता आते हैं वह सिर्फ धर्म स्थापन करने आते हैं, न कि अधर्मों का विनाश करने।
- सत धर्म की स्थापना, अनेक अधर्मों का विनाश संगम पर ही होता है।
- जब उतरती कला हो जाती है तब बाप आते हैं।
- चढ़ती कला तो एक ही बार होती है।
- इस पर एक श्लोक भी है - छोटेपन में पढ़ा था।
- गुरूनानक ने कहा है - सब निंदक है, झूठे हैं।
- कोई भी पवित्र नहीं रहते।
- सिक्ख धर्म में अकाली होते हैं जिनके ऊपर काला चक्र भी दिखाते हैं।
- यह है स्वदर्शन चक्र।
- यह भी पवित्रता की निशानी है।
- कंगन भी बांधते हैं - दोनों पवित्रता की निशानी हैं।
- परन्तु वो लोग इसका अर्थ नहीं समझते हैं, न पवित्र रहते हैं।
- जनेऊ भी पवित्रता की निशानी है।
- आजकल तो सब कुछ उड़ा दिया है।
- ब्राह्मण कुल है उत्तम, उसमें फिर बड़ी चोटी रखते हैं।
- परन्तु पावन तो कोई बनते नहीं।
- पतित-पावन एक ही परमात्मा आकर सबको पावन बनाते हैं।
- ऐसे नहीं बुद्ध, क्राइस्ट आदि भी कोई पतित-पावन थे।
- नहीं, गुरू तो दुनिया में अनेक हैं, सिखलाने वाले, पढ़ाने वाले।
- बाकी सर्व का सद्गति दाता पतित-पावन एक ही है।
- सबको पावन बनाकर साथ में ले जाने के लिए मैं ही आता हूँ।
- ज्ञान सागर के साथ मददगार तुम ज्ञान गंगायें भी हो।
- गंगा नदी पर भी देवी का चित्र रख दिया है।
- अब वास्तव में ज्ञान गंगायें तुम हो।
- परन्तु तुम्हारी अब पूजा नहीं होती क्योंकि तुम अब लायक बन रहे हो।
- पुजारी से पूज्य बन रहे हो फिर तुम्हारा पुजारीपना खत्म हो जायेगा।
- यह राज़ समझाते हैं परन्तु कोई की बुद्धि में नहीं बैठता है।
- कदम-कदम बाबा की श्रीमत पर चलना है।
- देह-अभिमान छोड़ते रहो।
- यह सब मित्र सम्बन्धी आदि खत्म होने वाले हैं।
- हम सब चले जायेंगे।
- परन्तु दुनिया तो रहेगी ना।
- बाप कहते हैं मैं नई सृष्टि का रचयिता हूँ, परन्तु मैं आऊंगा तो पतित दुनिया में ना, तब तो मुझे पतित-पावन कहते हैं तो जरूर पतित दुनिया होगी।
- पावन दुनिया में तो पतित होंगे नहीं।
- परमात्मा को हेविन स्थापन करना है इसलिए उनको हेविनली गॉड फादर कहते हैं।
- क्राइस्ट हेविन नहीं स्थापन करते।
- हां, उस समय जो आत्माएं ऊपर से आती हैं वह सतोप्रधान हैं, बाकी और कोई भी पतित से पावन नहीं बनाते।
- तुम बच्चों को अभी ऐसा कोई विकर्म नहीं करना चाहिए जो पतित कहा जाए।
- देह-अभिमान से ही विकर्म बनते हैं।
- तुम गैरन्टी करते हो कि और संग तोड़ एक संग जोड़ेंगे।
- अब तुम प्रतिज्ञा पूरी करो।
- नहीं तो दण्ड खायेंगे।
- ग्रंथ में भी है चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
- अक्षर अच्छे हैं परन्तु जो कुछ पढ़े हैं उनको तो भूलना पड़ता है।
- बाबा को तो बच्चों के नाम भी पूरे याद नहीं क्योंकि शिवबाबा को याद करना है इसलिए बाबा कह देते हैं, खुश रहो, आबाद रहो, न बिसरो, न याद रहो।
- परन्तु सर्विसएबुल बच्चों को बाबा याद जरूर करते हैं कि फलाना बहुत अच्छा मददगार है।
- साहूकार तो घोर अंधकार में पड़े हैं।
- कोई को पता नहीं पड़ता कि मौत सामने खड़ा है।
- भगवानुवाच - मैं राजयोग सिखाता हूँ तो जरूर नॉलेज से गॉडेज आफ वेल्थ बनते हैं।
- यह सारी राजधानी बन रही है नम्बरवार।
- तुम जानते हो नम्बरवार हम सब पढ़ रहे हैं।
- बाबा कहते हैं मैं राजधानी स्थापन कर रहा हूँ।
- अनेक धर्मों का विनाश कराता हूँ।
- परम सतगुरू एक ही है।
- वह ऊंचे ते ऊंचा एक भगवान ही गाया हुआ है।
- ऊंचे ते ऊंचे ब्रह्मा विष्णु शंकर को भी भगवान नहीं कहते, तो राम कृष्ण को भगवान कैसे कहेंगे।
- वह तो है ज्ञान का सागर पतित-पावन।
- भगत भगवान को याद करते हैं, ब्रह्मा विष्णु शंकर को थोड़ेही याद करते हैं।
- यह तो अभी व्यभिचारी बन गये हैं।
- तो कितनी अच्छी-अच्छी बातें धारण करने की हैं।
- जो करेगा सो पायेगा।
- ज्ञान गंगायें तुम हो।
- तुम नदियों का ही छोर (किनारा) है।
- सागर तो कहाँ जा नहीं सकता।
- परन्तु वह है जड़ सागर, यह है चैतन्य।
- उसमें तो एक तूफान की लहर उठी तो बहुत नुकसान हो जाता है।
- विनाश के समय जोर से तूफान आयेगा, सब खण्ड टापू आदि खलास हो जायेंगे।
- देरी नहीं लगती।
- नेचुरल कैलेमिटीज को गॉडली एक्ट कह देते हैं।
- तब कहा है कि शंकर द्वारा विनाश तो गॉडली एक्ट ही हुई ना।
- परन्तु बाप कहते हैं मैं कोई ऐसा डायरेक्शन आदि नहीं देता हूँ।
- यह सब ड्रामा में नूंध है।
- तूफान, नेचुरल कैलेमिटीज आदि-आदि सब अपना काम करेंगी।
- कल्प-कल्प यह कैलेमिटीज़ आनी ही हैं और सब खण्ड खत्म होंगे।
- बाकी एक भारत रह जायेगा।
- उसके लिए तैयारी होती है।
- रिहर्सल होती रहेगी।
- यह नेचुरल खेल बना हुआ है।
- तुम शिव शक्तियां ही कहाँ पर जाकर समझा सकती हो कि तुम सब चाहते हो शान्ति स्थापन हो, परन्तु तुम जानते हो शान्ति होती कहाँ है?
- सुख कहाँ होता है, दु:ख कहाँ है - यह सब समझने की बातें हैं।
- अभी दु:खधाम है।
- यही भारत सुखधाम था।
- आदि सनातन देवी देवताओं का राज्य था।
- कलियुग है दु:खधाम, इनका विनाश जरूर होना है।
- पहले अन्त होकर फिर आदि होनी है।
- मध्य में हैं अनेक धर्म।
- सतयुग में एक धर्म था।
- यह ड्रामा का चक्र है।
- इसमें 4 मुख्य धर्म हैं।
- एक धर्म का पाया (टांग) गुम है।
- देवता धर्म स्थापन करने वाला कौन है - यह बताओ?
- परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं।
- वास्तव में तुम भी प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद हो।
- शिव की भी औलाद हो।
- ब्रह्मा की औलाद होने के कारण आपस में भाई-बहिन हो।
- तुम जानते हो हम उनके बने हैं।
- परमपिता परमात्मा पहले ब्राह्मण धर्म रचते हैं।
- ब्राह्मण धर्म है चोटी और सब धर्म वाले बाद में आये हैं नम्बरवार।
- आखिर में तुम्हारी प्रत्यक्षता होनी है जरूर।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान की धारणा के लिए जितना हो सके, देही-अभिमानी रहना है।
- अशरीरी बनने का अभ्यास रात को जागकर करना है।
2) कैसे भी करके मुरली रोज़ सुननी वा पढ़नी है।
- एक दिन भी मिस नहीं करनी है और संग तोड़ एक संग जोड़ने की प्रतिज्ञा करनी है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
बिन्दू रूप में स्थित रह उड़ती कला में उड़ने वाले डबल लाइट भव
सदा स्मृति में रखो कि हम बाप के नयनों के सितारे हैं, नयनों में सितारा अर्थात् बिन्दू ही समा सकता है।
आंखों में देखने की विशेषता भी बिन्दू की है।
तो बिन्दू रूप में रहना - यही उड़ती कला में उड़ने का साधन है।
बिन्दू बन हर कर्म करो तो लाइट रहेंगे।
कोई भी बोझ उठाने की आदत न हो।
मेरा के बजाए तेरा कहो तो डबल लाइट बन जायेंगे।
स्व उन्नति वा विश्व सेवा के कार्य का भी बोझ अनुभव नहीं होगा।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
विश्व परिवर्तक वह है जो निगेटिव को पॉजिटिव में परिवर्तन कर दे।
- लवलीन स्थिति का अनुभव करो
- देह की स्मृति से ऐसे खोये हुए रहो जो देह-भान का, दिन-रात का, भूख और प्यास का, सुख के, आराम के साधनों का किसी भी बात के आधार पर जीवन न हो, तब कहेंगे लव में लवलीन स्थिति। जैसे शमा ज्योति-स्वरूप है, लाइट माइट रूप है, ऐसे शमा के समान स्वयं भी लाइट-माइट रूप बन जाओ।
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