01-01-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - तुम्हें सदा सर्विस के ख्यालातों में रहना है, ज्ञानी तू आत्मा बनना है, समय व्यर्थ नहीं गंवाना है''

प्रश्नः-

जो ज्ञानवान बच्चे हैं, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

वे सदा सर्विस पर जुटे रहेंगे।

अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान करने में उन्हें खुशी होगी।

बाप भी उनसे राज़ी होगा।

वह कब वाह्यात खान-पान आदि के ख्यालातों में समय नहीं गंवायेंगे। उनको कभी रोना नहीं आ सकता।

उन्हें कभी यह अंहकार नहीं आयेगा कि फलाने को हमने ज्ञान दिया।

हमेशा कहेंगे बाबा ने दिया।

 

गीत:- दु:खियों पर रहम करो....



  • ओम् शान्ति। यह तो बच्चे अभी जानते हैं कि बाबा ने रहम किया था। अब फिर कर रहे हैं। रहम करने वाला कौन है? फिर बेरहमी कौन? यह बरोबर अभी तुम ही जानते हो। बाप ने रहम किया भारत पर अर्थात् भारत को हीरे जैसा बनाया, श्रेष्ठाचारी दैवी स्वराज्य दिया था। तुम अब समझ रहे हो - लक्ष्मी-नारायण को राज्य भाग्य किसने दिया? जरूर परमपिता परमात्मा ने रचना रची है। देवताओं ने परमपिता परमात्मा से वर्सा लिया है, यह दुनिया नहीं जानती। भारतवासियों को स्वराज्य था। बाप ने रहम किया था, फिर रहम मांगते हैं। बेरहमी कौन मिला जिसने दु:खी कंगाल भ्रष्टाचारी बनाया! उनकी एफीज़ी वर्ष-वर्ष जलाते रहते हैं। इस रावण ने ही दु:ख दिया है। जो दु:ख देते हैं वा तंग करते हैं तो उनका वैर लेने के लिए, उनकी इनसल्ट करने के लिए एफीज़ी बनाते हैं। बाप कहते हैं - यह सब पतित हैं। खुद को पतित भी मानते हैं, फिर ईश्वर भी मानते हैं। अखबार में डालते भी हैं कि क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले भारत परिस्तान था। सबसे पहले थे देवतायें फिर इस्लामी, बौद्धी आदि हुए। बच्चों को हिसाब-किताब बता दिया है। बीच में और भी धर्म आ जाते हैं। अब भारतवासी चित्रों को भी मानते हैं इसलिए यह प्रश्नावली भी बनाई है। इस पर समझाना बहुत सहज है। परन्तु जिनमें ज्ञान नहीं है उनको बुद्धू कहा जाता है। ज्ञान सुनकर फिर औरों को सुनाना है। भल सर्विस तो और भी बहुत है परन्तु वह हुई स्थूल सर्विस। कोई कमान्डर, कोई जनरल, कोई प्यादे भी होते हैं। खान-पान आदि बनाना - यह भी सेवा है, इनका भी फल अवश्य मिलता है। समझते हैं ज्ञानी तू आत्माओं की हम सर्विस करते हैं। सेवा करने वाले दिल पर चढ़ते हैं। सब महिमा करते हैं। बाकी यह जरूर है - ज्ञानी तू आत्मा बाप को अति प्रिय लगते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे प्रिय नहीं हैं। सबकी सर्विस दिखाई पड़ती है। बाबा से कोई पूछे - मैं दिल पर चढ़ा हुआ हूँ तो बाबा बता सकते हैं। बाकी जो सिर्फ सर्विस लेते रहते हैं, उनको क्या मिलेगा? भल राजधानी में आयेंगे परन्तु पद तो इतना नहीं पायेंगे। तुम मित्र-सम्बन्धियों की सर्विस भी बहुत कर सकते हो। मतलब सर्विस का ख्याल रखना चाहिए। फालतू समय नहीं गंवाना चाहिए। उन्हों को बाबा बुद्धू कहते हैं। बाबा कितनी अच्छी प्वाइंट्स समझाते हैं। प्रश्नावली भी बहुत अच्छी है। जगत अम्बा है ज्ञान-ज्ञानेश्वरी। राज-राजेश्वरी है लक्ष्मी। वह है सतयुग की। यह महिमा जगत अम्बा की इस समय की है। बच्चों में हड्डी धारणा चाहिए। परिपक्व अवस्था चाहिए तब दिल पर चढ़े। स्कूल में भी स्टूडेण्ट नम्बरवार दिल पर चढ़ते हैं। वैराइटी होते हैं। यह प्वाइंट्स समझाने की बहुत अच्छी हैं। जगत अम्बा को धन लक्ष्मी नहीं कहेंगे। यह है जगत अम्बा, इनको गॉड ने नॉलेज दी है इसलिए सरस्वती गॉडेज ऑफ नॉलेज गाई हुई है। इस समय इस नामरूप में गॉडेज आफ नॉलेज है, जिस नॉलेज से ही फिर पद पाया है। पास्ट जन्म में नॉलेज पाई है, तब लक्ष्मी बनी। लक्ष्मी पास्ट जन्म में जगत अम्बा थी यह तो बिल्कुल क्लीयर राज़ है। पास्ट, प्रेजेन्ट, फ्यूचर क्या बनेंगे। एक-एक बात बड़ी अच्छी है। लक्ष्मी कैसे 84 जन्म लेती है, कहाँ-कहाँ लेती है, यह समझाने की बाते हैं। समझाने की खुशी रहती है। दान देने में खुशी होती है ना।
  • बाप अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान देते हैं तो फिर औरों को दान देने की सर्विस करनी चाहिए। सिर्फ मम्मा बाबा के पिछाड़ी नहीं पड़ना चाहिए। सर्विस पर लगना है तब बाबा राज़ी हो। ज्ञानवान सर्विस में जुटा रहेगा। सर्विस में नहीं जुटते तो उनको बुद्धू कहेंगे। वह समझते हम बाबा की दिल पर नहीं हैं। बहुत फालतू खान-पान के ख्यालात चलते हैं। एम आब्जेक्ट बाहर में तो बहुत अच्छी लिखी हुई है। नाम लिखा हुआ है - यह है पतित-पावन गॉड फादरली यूनिवर्सिटी। बाप से 21 जन्मों के लिए फिर से हेल्थ, वेल्थ, हैपीनेस का वर्सा मिलता है। बोर्ड पर आक्यूपेशन पूरा लिखा हुआ है। शिवबाबा का भी चित्र है। लक्ष्मी-नारायण का भी चित्र है। एम-आब्जेक्ट भी लिखा हुआ है, परन्तु समझते कुछ नहीं हैं। फिर पूछते भी नहीं हैं। दुकान होती है तो उन पर बोर्ड लगा हुआ होता है। यह मिल्क की दुकान है, यह फलाने की है। सतसंग पर कभी बोर्ड नहीं लगता है। वह तो नामीग्रामी हो जाते हैं। यहाँ तो बोर्ड लगा हुआ है तो 21 जन्मों के लिए दैवी पद प्राप्त करने की शिक्षा मिलती है। परन्तु फिर भी बुद्धि में नहीं बैठता है फिर अन्दर आकर पूछते हैं - यहाँ का उद्देश्य क्या है? परन्तु बोर्ड पढ़ते नहीं हैं जो एम आब्जेक्ट समझ सकें। देखना चाहिए ना - किसका दुकान है। परन्तु कुछ भी नहीं जानते। आदि देव का नाम भी महावीर, हनूमान रख दिया है। परन्तु यह कौन हैं, कब होकर गये हैं, जानते नहीं।
  • तुम बच्चों में समझाने की हिम्मत चाहिए। समझाने वाले में ही अगर कोई विकार होगा तो किसको तीर नहीं लगेगा। अगर किसको तीर लगता भी है तो वह शिवबाबा समझाते हैं। जिनमें कोई अवगुण है तो उनकी समझानी किसको लगेगी नहीं। वह तो बाबा आकर किसको दृष्टि दे, ज्ञान देते हैं। वह ऐसे न समझे मैंने इनको बहुत अच्छा ज्ञान दिया। मेरे ज्ञान से इनमें परिवर्तन आया है। यह भी उल्टा अहंकार है। जिसमें रोने की आदत है वह किसको ज्ञान नहीं दे सकते। वह तो विधवा हो गई। वह कभी नहीं समझे कि मैं किसको ज्ञान दे सकती हूँ। वह तो बाप उनका कल्याण कर देते हैं। रोया तो उसकी दुर्गति है। तुम जानते हो हम हर्षितमुख देवी-देवता बनने वाले हैं। अगर रोते हैं तो खोटे कर्म किये हुए हैं, जो धोखा देते हैं। अच्छे-अच्छे भी रोते हैं। फिर बाबा को किसको उठाना है तो खुद आकर दृष्टि दे देते हैं। रोते हैं तो विधवा हैं। यहाँ कहते हैं हम राम के बने हैं और फिर रोते हैं तो गोया उनका राम मर गया। गोया राम से बुद्धियोग टूटा हुआ है। बेमुख है। अवस्था बड़ी अच्छी चाहिए। भल कोई प्रभावित होते हैं परन्तु वह बाबा की ताकत से प्रभावित होते हैं। बाबा जो बोलेगा उसमें कोई गलती नहीं होगी क्योंकि बाप है ही सत्य। अगर कोई अक्षर निकल भी गया तो बिगड़ी को बनाने वाला बैठा है। इसमें समझने की बड़ी अच्छी बुद्धि चाहिए। बाप तो सर्विस पर उपस्थित है। उनको बच्चों की भी रखनी है। बी.के. कहलाते हैं तो मदद भी करते हैं। कोई कोई बी.के. और ही नुकसान करते हैं। बाबा भी जानते हैं तो जिज्ञासू भी जानते हैं। इनकी चलन ऐसी है, ठीक नहीं है, तब लिखते हैं बाबा इनको अपने पास मंगा लो।
  • तुम बच्चों को तो दधीचि ऋषि मुआफिक हड्डियां देनी हैं। कोई-कोई तो नवाब होकर चलते हैं। बाप समझाते हैं - इस कमाई में भी ग्रहचारी बैठती हैं, दशायें बदलती हैं। कब ब्रहस्पति की, कब चक्र की, कब मंगल की, कब राहू की। फिर एकदम चकनाचूर हो जाते हैं। बाबा बहुत अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स समझाते हैं। बोलो, आप तो बड़े अच्छे बुद्धिवान पढ़े लिखे हो। बोर्ड पर तो पूरी एम-आब्जेक्ट लिखी हुई है। एम-आब्जेक्ट को जब समझें तब उस रूहाब से अन्दर आयें। लिखा हुआ है गॉड फादर से वर्सा मिलता है - 21 जन्म और 2500 वर्षों के लिए। सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजधानी। कोई तो अच्छी रीति समझेंगे क्योंकि नम्बरवार ग्राहक हैं ना। यह सब शिवबाबा की दुकान है। सेठ एक है। यह दुकान तो हजारों लाखों की अन्दाज में निकलेंगे। संन्यासियों के कितने दुकान हैं, विलायत में भी हैं। विलायत वाले समझते हैं कि भारत का प्राचीन योग और ज्ञान संन्यासी ही देते होंगे। परन्तु नहीं, यह तो बाप ही देते हैं। मनुष्य कोई भी यह ज्ञान दे न सकें। परन्तु सिर्फ देने वाले बाप का नाम बदल बच्चे का नाम रख दिया है। तुम सिद्ध कर बतायेंगे - कि हेवन स्थापन करने वाला गॉड फादर ही बैठ समझाते हैं। पोप को भी लिखते हैं - भारत की यात्रा पर आये परन्तु इस यात्रा को पूरा समझा नहीं। अब कहो तो तुम्हारे पास किसको भेज दें। यहाँ तो वो लोग आ न सकें। पोजीशन बहुत रहता है। यहाँ तो गरीब आयेंगे। कहते हैं - क्राइस्ट बेगर है। इस समय हम भी बेगर हैं। बेगर से प्रिन्स बनने वाले हैं। भल किसके पास धन बहुत है, परन्तु बेगर है। कहते हैं क्राइस्ट गरीब है। जरूर गरीबी में ही आयेंगे ज्ञान लेने। सलाम तो भरना है। कयामत का समय है। हिसाब-किताब चुक्तू होने वाला है। नम्बरवन सलाम करने वाला भी यहाँ बैठा है। तो वह भी आयेंगे। तुम्हारी यह सूर्यवंशी चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन हो रही है। तो मुख्य चित्र हैं लक्ष्मी-नारायण का। फर्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड उन्हों के चित्र चले आते हैं। हमारे तो चित्र विनाश हो जाते हैं। एक्यूरेट चित्र थोड़ेही कोई हैं। देलवाड़ा मन्दिर में भी जगत अम्बा और लक्ष्मी नारायण के चित्र हैं। परन्तु किसको पता नहीं कि ज्ञान-ज्ञानेश्वरी सो राज-राजेश्वरी बनती है। जरूर उसके बच्चे भी होंगे। पढ़ाई है सोर्स आफ इनकम। ब्राह्मण ही पढ़कर देवी-देवता बनते हैं। कितना क्लीयर है।
  • बाप कहते हैं -मुझे बच्चों का शो करना होता है। ऐसे नहीं उसका फल उनको मिलेगा। नहीं, बच्चों को अपनी मेहनत का फल मिलेगा। मैं सर्विस करता हूँ, वह तो जिसको दृष्टि देता हूँ, उसकी तकदीर है। यह जगत अम्बा कौन है, क्या प्रारब्ध पाई है - इन बातों को मनुष्य नहीं जानते हैं। बाप समझाते हैं - मीठे बच्चे रोना भी अपसगुन है। यह बेहद बाप का घर है ना। जो खुद रोते हैं वह औरों को क्या सर्विस कर हंसायेंगे? यहाँ तो हंसना सीखना है। हंसना अर्थात् मुस्कराना। आवाज से भी हंसना नहीं है। कितनी शिक्षा दी जाती है। प्वाइंट्स समझाई जाती हैं। दिन-प्रतिदिन नॉलेज सहज होती जाती है। तुम्हारे में भी ताकत आती जाती है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कभी भी अपना अहंकार नहीं दिखाना है।
  • दधीचि ऋषि मिसल सेवा में हड्डियां देनी है।
  • 2)
  • सदा हर्षितमुख रहना है, कभी भी रोना नहीं है।
  • रोना माना विधवा बनना इसलिए मुस्कराते रहना है, जोर से भी हंसना नहीं है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021-22)
  • एक बाप में सारे संसार की अनुभूति करते हुए निरन्तर एक की याद में रहने वाले सहज योगी भव
  • सहजयोग का अर्थ ही है - एक को याद करना।
  • एक बाप दूसरा न कोई।
  • तन-मन-धन सब तेरा, मेरा नहीं।
  • ऐसे ट्रस्टी बन डबल लाइट रहने वाले ही सहजयोगी हैं।
  • सहजयोगी बनने की सहज विधि है - एक को याद करना, एक में सब कुछ अनुभव करना।
  • बाप ही संसार है तो याद सहज हो गई।
  • आधाकल्प मेहनत की अभी बाप मेहनत से छुड़ाते हैं।
  • लेकिन यदि फिर भी मेहनत करनी पड़ती है तो उसका कारण है अपनी कमजोरी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021-22)
  • महान आत्मा वह है जो पवित्रता रूपी धर्म को जीवन में धारण करता है।

-:विशेष अटेंशन:-
यह जनवरी मास हम सबके अति प्रिय पिताश्री ब्रह्मा बाबा की सम्पन्नता और सम्पूर्णता का विशेष मास है। पूरा ही मास हम सब ब्रह्मा वत्स विशेष शिव बाप के साथ-साथ ब्रह्मा बाप के स्नेह में समाये हुए रहते हैं। बाबा कहते, यह स्नेह में समाना भी समान बनना है। भक्तों ने इस स्नेह में समाने की स्थिति के लिए ही कहा है कि आत्मा परमात्मा में समा जाती है। तो आओ, हम सभी पूरा ही मास उस लवलीन स्थिति में समाने का अनुभव करें, इसी लक्ष्य से रोज़ की मुरली के नीचे लव में लीन होने की एक विशेष प्वाइंट लिख रहे हैं, आप इसी अनुसार मुरली क्लास के बाद रोज़ 10 मिनट योग अभ्यास करना जी।

लवलीन स्थिति का अनुभव करो
प्यार के सागर बाप के साथ मिलन मनाते प्यार से बाबा कहो और उसी प्यार में समा जाओ।

लगन में मगन हो जाओ।

यह लवलीन स्थिति और सब बातों को सहज समाप्त कर देगी।