31-12-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


" मीठे बच्चे - सदा सुखी रहो, जितना याद करेंगे उतना सुख मिलेगा, यही बाप तुम बच्चों को आशीर्वाद देते हैं''

प्रश्नः-

संगमयुग पर तुम बच्चे ऐसा कौन सा शुभ कार्य करते हो जो सारे कल्प में नहीं होता?

उत्तर:-

पवित्र बनना और बनाना - सबसे शुभ कार्य है।

पवित्र बनने से तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन जाते हो।

पवित्र बनने की युक्ति बाप ने बताई है कि मीठे बच्चे तुम मुझे लव से याद करो।

देही-अभिमानी बनो।

ऐसी युक्ति सबको सुनाते रहो।

 

गीत:- किसने यह सब खेल रचाया...


  • ओम् शान्ति।
  • शिवबाबा बैठ करके अपने बच्चों को, सालिग्रामों को समझाते हैं।
    • शिवबाबा को तो सब जानते ही हैं।
    • यह भी जानते हैं कि शिवबाबा को अपना शरीर नहीं है।
    • शिव की प्रतिमा तो एक ही है।
    • इसमें कोई फ़र्क नहीं आता।
    • उनको दिखाते ही हैं लिंग के समान।
    • जैसे मनुष्य हैं तो मनुष्य में कोई फ़र्क नहीं पड़ सकता।
    • आंख, नाक, कान सबको दो हैं।
    • आत्मा कोई छिपी हुई चीज़ नहीं है।
  • जैसे मनुष्यों की, देवताओं की पूजा होती है, वैसे आत्माओं और परमात्मा की भी पूजा होती है।
    • शिव के मन्दिर में जाओ तो ढेर छोटे-छोटे सालिग्राम रखे हुए हैं, जिनकी पूजा होती है।
    • मनुष्यों की दो प्रकार की पूजा होती है - एक तो विकारियों की, दूसरी निर्विकारियों की, उसको कहा जाता है भूत पूजा क्योंकि यहाँ तो शरीर कोई का भी पवित्र है नहीं।
    • 5 तत्वों का बना हुआ है, मिट्टी का बना हुआ बुत (पुतला) है।
    • मूर्तियां बनाते हैं, तो भी मिट्टी और पानी मिलाते हैं फिर उसको सुखाने के लिए धूप चाहिए।
    • धूप भी आग का अंश है, आगे धूप से आग जलाते थे।
    • तो बच्चों को यह पता है कि निराकार की भी पूजा होती है।
    • साकार देवताओं की भी होती है, तो मनुष्यों की भी पूजा होती है।
    • देवता हैं पवित्र, यहाँ अपवित्र हैं।
    • बाकी पूजा तो भूतों (5 तत्वों) की ही होती है।
  • आत्मा क्या चीज़ है, यह मनुष्य नहीं जानते।
    • कहा जाता है - रियलाइज़ योर सेल्फ।
    • आत्मा को रियलाइज़ करो।
    • आत्मा है बिन्दी समान।
    • कईयों ने साक्षात्कार भी किया है।
    • वर्णन करते हैं छोटी सी लाइट उनसे निकल हमारे में प्रवेश हो गई।
    • अच्छा इससे फायदा तो कुछ भी नहीं हुआ।
    • नारद और मीरा भक्ति में तीखे गाये जाते हैं।
    • भल साक्षात्कार होते हैं परन्तु सीढ़ी उतरनी होती है ना।
    • फायदा अल्पकाल के लिए होता है।
    • अभी तुम बच्चे आत्म-अभिमानी बने हो।
    • जानते हो आगे हम देह-अभिमानी थे।
    • अब यह हैं नई बातें।
    • आत्मा पढ़ रही है।
  • यह तो एकदम पक्का कर देना चाहिए, बाबा हमको पढ़ाते हैं।
    • यह तो पहला पक्का निश्चय हो जाए।
    • आत्म-अभिमानी बनना है।
    • आधाकल्प आत्म-अभिमानी बनते हैं फिर आधाकल्प देह-अभिमानी बनते हैं।
    • सतयुग में आत्मा को यह शुद्ध अभिमान नहीं है कि हम परमात्मा को जानते हैं।
    • शुद्ध अभिमान और अशुद्ध अभिमान होता है ना।
    • कर्तव्य भी शुभ और अशुभ होते हैं।
    • कहा जाता है शुभ कार्य में देरी नहीं करनी चाहिए।
    • बाप कहते हैं मैं तुमको कितना अच्छा बनाता हूँ।
    • तुम पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया का मालिक बनोगे।
    • इन जैसा शुभ कार्य कोई हो नहीं सकता।
    • तुम पावन थे।
    • अब घड़ी-घड़ी बाप कहते हैं देही-अभिमानी बनो।
    • अपने को आत्मा समझ बाप से पूरा लव रखना है।
    • आत्मा का सम्बन्ध ही एक बाप से है।
    • वह बैठ पढ़ाते हैं।
    • यह प्रैक्टिकल अनुभव की बात है।
    • बेहद के बाप से हम बेहद स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं।
    • बाप भी कहते हैं हे मीठे-मीठे बच्चों।
    • आत्माओं को कहते हैं।
    • आत्मा इन कानों से सुनती है।
  • तुम समझते हो आज हमको कौन मीठे-मीठे बच्चे कह रहे हैं?
    • मीठे-मीठे बच्चे।
    • बाप का बच्चों पर लव रहता है ना।
    • बहुत खुशी से बच्चों की पालना करते हैं।
    • यह भी बच्चों का बेहद का बाप है।
    • आत्मा कहती है हम शरीर के आरगन्स द्वारा सुनाता हूँ।
  • अज्ञान काल में बाप बच्चों को कितना लव करते हैं।
    • जानते हैं यह वारिस है, इन्हों को हम लायक बनाता हूँ जिससे बहुत सुखी बनें।
    • अच्छा वर्सा पायें।
    • कहते हैं ना - बच्चे जीते रहो, सुखी बनो।
    • आशीर्वाद निकलती रहेगी।
    • बच्चा सदैव सुखी हो।
    • परन्तु वह तो सदा सुखी हो न सके।
    • तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको आशीर्वाद दे रहे हैं - सदा सुखी रहो, मुझे याद करो।
    • बाप कितना प्यार, प्रेम, नम्रता से बैठ समझाते हैं।
    • बाप बच्चों का सर्वेन्ट है ना।
    • कितने बच्चों की चाकरी करनी होती है।
    • माँ मर जाती है तो बाप को सब कुछ बच्चों का करना पड़ता है।
    • यह बाप कितना बच्चों को प्यार से समझाते हैं।
    • अपने पैरों पर खड़ा होना है।
    • हे आत्मा तुमको बाप से वर्सा लेना है।
  • देह का भान छोड़ अपने को आत्मा समझो - यह बड़ा भारी सब़क (पाठ) है।
    • बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
    • कहते हैं बाबा को याद करना भूल जाते हैं।
    • याद अक्षर बड़ा सहज है।
    • योग वा नेष्ठा आदि यह शास्त्रों के अक्षर हैं।
    • बाप कितना सहज बतलाते हैं सिर्फ याद करो।
    • बाप को देखने से बड़ी खुशी होनी चाहिए।
    • हमारे जैसा बाबा दुनिया में किसी को नहीं मिलता।
    • तुम जानते हो - हम आत्मा पतित बनी थी।
    • अब बाप पावन बनाते हैं, इसलिए पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ।
    • बाप को याद करने के सिवाए और कोई तकलीफ नहीं देते हैं।
    • इसका नाम ही है सहज याद, सहज ज्ञान।
    • यह भी बच्चे समझ गये हैं।
  • बाप सत है, चैतन्य है।
    • उनकी आत्मा ज्ञान का सागर है, ज्ञान की अथॉरिटी है।
    • यहाँ मनुष्यों की महिमा होती है, फलाना शास्त्रों की अथॉरिटी है।
    • यहाँ बाप कहते हैं मैं ही सभी वेदों शास्त्रों को जानता हूँ, अथॉरिटी हूँ।
  • भक्ति मार्ग में चित्र भी दिखाते हैं - विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला।
    • उनको फिर शास्त्र दिये हैं।
    • ब्रह्मा द्वारा सब वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं।
    • बाप सभी बातें अच्छी रीति बैठ समझाते हैं।
    • अब ब्रह्मा तो है सूक्ष्म-वतन में।
    • भगवान हो गया मूलवतन में।
    • अब सूक्ष्मवतन में किसको ज्ञान सुनायेंगे।
    • जरूर यहाँ आकर सुनायेंगे ना।
    • यह बड़ी समझने की बातें हैं।
    • ब्रह्मा द्वारा सब शास्त्रों का सार भगवान कहाँ सुनायेंगे?
    • सुनाने की बात तो यहाँ होती है।
    • अभी तुम प्रैक्टिकल में जानते हो - कैसे भगवान आकर ब्रह्मा द्वारा हमें सुनाते हैं।
    • बच्चों को तो अथाह खुशी होनी चाहिए।
  • मनुष्य 5-10 लाख कमाते हैं, कितना खुशी होती है।
    • यहाँ बाप बैठ तुम्हारा खजाना भरते हैं।
    • कहते हैं मुझे याद करो तो तुम सोने जैसा बन जायेंगे।
    • यह भारत सोने की चिड़िया बन जायेगा।
    • जानते हो बाबा मूलवतन से आकर ब्रह्मा द्वारा हमको शास्त्रों का सार समझा रहे हैं।
    • सब राज़ समझाते हैं।
  • उस योग, तप-दान-पुण्य आदि से मुक्ति तो कोई नहीं पाता है।
    • मनुष्य समझते हैं इन सब रास्तों से हम मुक्ति में जाते हैं।
    • अगर ऐसा होता तो फिर पतित-पावन बाप को आने की क्या दरकार।
    • अगर वह वापिस जाने का रास्ता होता तो कोई जाते ना।
    • दुनिया में मनुष्यों की अनेक मत हैं।
    • अब बच्चों को बाप ने समझाया है वापिस कोई भी जा नहीं सकते।
    • बाप कहते हैं - मैं इन द्वारा सब वेदों शास्त्रों का सार समझाता हूँ।
    • इसने भी बहुत गुरू किये हैं, पढ़ा लिखा है, बाप कहते हैं इन सबको भूल जाओ।
  • पतित-पावन तो परमपिता परमात्मा को ही कहेंगे।
    • वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, वृक्षपति चैतन्य है।
    • आत्मायें सब चैतन्य हैं।
    • तुम जानते हो हम मूलवतन में जाकर फिर आयेंगे पार्ट बजाने।
    • आधाकल्प सुख का पार्ट बजायेंगे।
  • सारा मदार पढ़ाई पर है, जितना पढ़ेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
    • यह पढ़ाई बहुत ऊंची है।
    • एम आबजेक्ट ही है नर से नारायण, मनुष्य से देवता बनने की।
    • जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म है तब कोई हिंसा होती नहीं।
    • वहाँ विकार की बात होती नहीं।
    • न कोई लड़ाई-झगड़ा होता है।
  • अभी तुम समझाते हो कि जब अनेक धर्म हैं तो भाषायें भी अनेक हैं।
    • सबकी एक भाषा हो नहीं सकती।
    • अब अद्वैत धर्म तुम्हारा स्थापन हो रहा है।
    • अद्वैत वा देवता एक अक्षर हो जाता है।
    • अभी तुम देवता धर्म के बन रहे हो।
  • गीत भी है ना - बाबा हम आपसे 21 जन्मों के लिए सारे विश्व की बादशाही लेते हैं।
    • वहाँ ऐसे कोई नहीं कहेंगे कि यह हमारी स्पेश है, यहाँ से तुम पास न करो।
    • यहाँ तो एक दूसरे को डराते रहते हैं।
    • बैठे-बैठे लड़ने-झगड़ने का भूत आ बैठा है।
  • तुम बच्चे जानते हो हम श्रीमत पर अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं।
    • हम विश्व के मालिक बनते हैं।
    • हम होंगे भारत में ही।
    • देहली के आस-पास ही नदियों पर होंगे।
    • वहाँ सदैव बहारी मौसम होती है, सब सुखी रहते हैं।
    • प्रकृति भी सतोप्रधान होती है ना।
    • तुम समझ सकते हो हम कैसे दैवी राज्य स्थापन कर रहे हैं फिर से।
  • तो बच्चों को बाप की याद में बड़ा खुशी में रहना चाहिए।
    • निरन्तर याद करो और कोई तकलीफ नहीं दी जाती, इसमें ही मेहनत है।
    • घड़ी-घड़ी बाप की याद भूल जाती है।
    • देह-अभिमान में आने से उल्टा काम कर लेते हैं।
  • पहला विकार है ही देह-अभिमान का।
    • यह तुम्हारा बड़ा दुश्मन है।
    • देही-अभिमानी न होने के कारण फिर काम आदि विकार डस लेते हैं।
    • बच्चे भी समझते हैं मंजिल ऊंची है।
    • पवित्र भी रहना है।
  • तुम हो सच्चे-सच्चे ब्राह्मण।
    • करोड़ों को भूँ-भूँ करते रहो।
    • कछुए का मिसाल भी यहाँ तुमसे लगता है।
  • बाप समझाते हैं - भल तुम अपना काम काज आदि करो, आफिस में बैठो, देखो कोई ग्राहक नहीं है तो याद में बैठ जाओ।
    • साथ में चित्र रखे हों।
    • फिर तुमको आदत पड़ जायेगी।
    • हम बाबा की याद में बैठ जाते हैं।
    • युक्तियाँ तो बाबा अनेक प्रकार की बतलाते हैं।
    • भक्ति मार्ग में चित्र को याद करते हैं।
    • यहाँ यह है फिर विचित्र की याद।
    • यह नई बात है ना।
    • अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो।
    • नई बात होने कारण मेहनत लगती है।
    • इसमें प्रैक्टिस करनी होती है।
    • ज्ञान तो मिल गया है।
  • यह भी समझाया है विष्णु से ब्रह्मा कैसे बनते हैं।
    • विष्णु अर्थात् लक्ष्मी-नारायण के 84 जन्मों के बाद वही ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं।
    • यह बातें और कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
    • ऐसे नहीं कि विष्णु की नाभी से कोई ब्रह्मा निकलता है।
  • बाप कहते हैं - मैं तुम बच्चों को स्वदर्शन चक्रधारी बनाता हूँ।
    • उसका अर्थ भी तुम जानते हो।
    • यह तुम्हारे अक्षर ही ऐसे गुप्त हैं जो कोई कॉपी कर न सके।
    • आजकल कॉपी भी करते हैं ना।
    • सफेद पोशधारी भी बहुत बनते हैं, रीस करते हैं।
    • इसमें कोई कॉपी कर न सकें।
  • अभी तुम बच्चे समझते हो जो हम बाबा से रोज़ सम्मुख बैठ सुनते हैं।
    • बाहर में भी बच्चे समझते होंगे - मधुबन में शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा मुरली चलाते हैं।
    • आत्मा ही बाप को याद करती है।
    • याद से विकर्म विनाश होंगे क्योंकि जब से विकारी बने हैं, पाप करते ही आये हैं तो जन्म-जन्मान्तर का सिर पर बोझा है।
    • तमोप्रधान बनते जाते हैं।
    • तमोप्रधान बनने में आधाकल्प लगा है।
  • सतो रजो तमो बनते आत्मा मैली होती है ना - खाद पड़ने से।
    • वह खाद जरूर निकालनी चाहिए।
    • नहीं तो बाप की याद के सिवाए आत्मा उड़ नहीं सकती।
    • माया रावण सबके पंख काट देती है।
    • यह भी समझ की बात है।
    • मोक्ष आदि तो किसको भी मिलता ही नहीं।
  • बुलाते हैं हम पतितों को आकर पावन बनाओ।
    • बस इसमें और कोई बात ही नहीं।
    • बाप शिक्षा देते हैं तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान कैसे बनेंगे।
    • बच्चों को लिखते भी रहते हैं।
    • बच्चे तुम बाप को भूलने से तमोप्रधान बने हो।
    • अब बाप को याद करो तो सतोप्रधान बनेंगे।
    • सतोप्रधान विश्व का मालिक बनने के लिए बाप को याद करो।
  • तुम्हारी आत्मा में 84 जन्मों का ज्ञान है।
    • 84 का चक्र पूरा किया है।
    • आत्मा में कितना भारी पार्ट भरा हुआ है।
    • यह वन्डर लगता है।
    • इतनी छोटी आत्मा में कितना पार्ट भरा हुआ है।
    • आत्मा कहती है हम 84 जन्म लेते हैं।
    • यह भी अभी तुमको समझ मिली है।
    • मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं।
    • बाप अभी समझा रहे हैं - तुम आत्मायें 84 जन्म भोगती हो।
    • एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हो।
    • पुनर्जन्म लेते-लेते सीढ़ी नीचे उतरते आये हैं।
  • अब फिर सतोप्रधान बनकर राज्य करना है तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
    • बाबा हमको बेहद का वर्सा कल्प-कल्प देते ही हैं।
    • तुम बच्चों को अब पहचान मिली है।
    • तुम जानते हो हम माला के दाने बनते हैं जो फिर नम्बरवार राज्य करेंगे।
    • वहाँ के राजधानी की जो रसम-रिवाज होगी वही फिर रिपीट होगी।
    • उनके लिए फालतू ख्यालात करने की दरकार ही नहीं है।
    • यह कैसे होगा, क्या होगा।
    • जैसे राज्य किया होगा वैसे करेंगे।
    • वह साक्षी हो देखना है।
    • चिंतन करने की दरकार नहीं कि क्या होगा।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) शुभ कार्य में देरी नहीं करनी है।
    • पवित्र बन बाप से पूरा वर्सा लेना है।
    • अपने को लायक बनाकर अपने पैरों पर खड़ा होना है।
    • एक बाप से पूरा लव रखना है।
  • 2) काम-काज करते, एक विचित्र बाप को याद करना है।
    • कोई भी व्यर्थ ख्यालात नहीं करने हैं।
    • सतोप्रधान बनना है।
    • अपार खुशी में रहना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • श्रेष्ठ मत के आधार पर मायावी संगदोष से परे रहने वाले शक्ति स्वरूप भव
  • बच्चों की एक कम्पलेन रहती है कि सम्बन्धी नहीं सुनते, संग अच्छा नहीं है, इस कारण शक्तिशाली नहीं बन सकते।
  • लेकिन श्रेष्ठ मत के आधार पर ज्ञान स्वरूप, शक्ति स्वरूप के वरदानी बन अपनी स्थिति को अचल बनाओ।
  • साक्षी होकर हर एक का पार्ट देखो।
  • अपने सतोगुणी पार्ट में स्थित रहो।
  • सदा बाप के संग में रहो तो तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव पड़ नहीं सकता।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • कर्मयोगी वह है जो कर्म के कल्प वृक्ष की डाली पर बैठ कर्म करते भी उपराम स्थिति में रहे।