26-12-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 17.12.89 "बापदादा" मधुबन


" सदा समर्थ कैसे बनें? "


  • आज समर्थ बाप अपने चारों ओर के मास्टर समर्थ बच्चों को देख रहे हैं।
  • एक हैं सदा समर्थ और दूसरे हैं कभी समर्थ, कभी व्यर्थ की तरफ न चाहते भी आकर्षित हो जाते क्योंकि जहाँ समर्थ स्थिति है, वहाँ व्यर्थ हो नहीं सकता, संकल्प भी व्यर्थ नहीं उत्पन्न हो सकता।
  • बापदादा देख रहे थे कि कई बच्चों की अब तक भी बाप के आगे फरियाद है कि कभी-कभी व्यर्थ संकल्प याद को फरियाद में बदल देते हैं, चाहते नहीं हैं लेकिन आ जाते हैं।
  • विकल्पों की स्टेज को तो मैजारिटी ने मैजारिटी समय तक समाप्त कर लिया है लेकिन व्यर्थ देखना, व्यर्थ सुनना और सोचना, व्यर्थ समय गंवाना - इसमें फुल पास नहीं हैं क्योंकि
    • अमृतवेले से सारे दिन की दिनचर्या में अपने मन और बुद्धि को समर्थ स्थिति में स्थित करने का प्रोग्राम सेट नहीं करते इसलिए अपसेट हो जाते हैं।
  • जैसे अपने स्थूल कार्य के प्रोग्राम को दिनचर्या प्रमाण सेट करते हो, ऐसे अपनी मन्सा समर्थ स्थिति का प्रोग्राम सेट करेंगे तो स्वत: ही कभी अपसेट नहीं होंगे।
  • जितना अपने मन को समर्थ संकल्पों में बिजी रखेंगे तो मन को अपसेट होने का समय ही नहीं मिलेगा।
  • आजकल की दुनिया में बड़ी पोजीशन वाले, जिन्हों को आई. पी. या वी.आई.पी. कहते हैं, वह सदा अपने कार्य की दिनचर्या को समय प्रमाण सेट करते हैं।
  • तो आप कौन हो?
  • वह भले वी.आई.पी. हैं लेकिन सारे विश्व में ईश्वरीय सन्तान के नाते, ब्राह्मण-जीवन के नाते आप कितनी भी वी. आगे लगा दो तो भी कम है क्योंकि आपके आधार पर विश्व परिवर्तन होता है।
  • आप विश्व के नव-निर्माण के आधारमूर्त हो।
  • बेहद के ड्रामा अन्दर हीरो एक्टर हो और हीरे तुल्य जीवन वाले हो।
  • तो कितने बड़े हुए!
  • यह शुद्ध नशा समर्थ बनाता है और देह-अभिमान का नशा नीचे ले आता है।
  • आपका आत्मिक रूहानी नशा है इसलिए नीचे नहीं ले आता, सदा ऊंची उड़ती कला की ओर ले जाता है।
  • तो व्यर्थ तरफ आकर्षित होने का कारण है - अपने मन-बुद्धि की दिनचर्या सेट नहीं करते हो।
  • मन को बिजी रखने की कला सम्पूर्ण रीति से सदा यूज़ नहीं करते हो।
  • दूसरी बात, बापदादा ने अमृतवेले से लेकर रात के सोने तक मन्सा-वाचा-कर्मणा और सम्बन्ध-सम्पर्क में कैसे चलना है वा रहना है - सबके लिए श्रीमत अर्थात् आज्ञा दी हुई है।
  • मन्सा में क्या स्मृति में रखना है - यह हर कर्म में अपनी मन्सा स्थिति का डायरेक्शन, आज्ञा मिली हुई है और आप सब आज्ञाकारी बच्चे हो ना वा बन रहे हो?
  • आज्ञाकारी अर्थात् बाप के सम्बन्ध से बाप के फुट स्टैप लेने वाले अर्थात् कदम के ऊपर कदम रखने वाले।
  • और दूसरा नाता है सजनियों का।
  • तो सजनी भी क्या करती है?
  • उनको क्या शिक्षा मिलती है?
  • साजन के कदम ऊपर कदम चलो।
  • तो आज्ञाकारी अर्थात् बापदादा के आज्ञा रूपी कदम पर कदम रखना।
  • यह सहज है वा मुश्किल है?
  • कहाँ कदम रखें - ठीक है वा नहीं, यह सोचने की भी जरूरत नहीं।
  • है सहज, लेकिन सारे दिन में चलते-चलते कोई न कोई आज्ञाओं का उल्लंघन हो जाता है।
  • बातें छोटी-छोटी होती हैं लेकिन अवज्ञा होने से थोड़ा-थोड़ा बोझ इकट्ठा हो जाता है।
  • आज्ञाकारी को सर्व सम्बन्धों से परमात्म-दुआयें मिलती हैं।
  • यह नियम है।
  • साधारण रीति भी कोई किसी मनुष्य आत्मा के डायरेक्शन प्रमाण “हाँ जी'' कहकर के कार्य करते हैं तो जिसका कार्य करते, उसके द्वारा उसके मन से उनको दुआयें जरूर मिलती हैं।
  • यह तो परमात्म-दुआयें हैं!
  • परमात्म-दुआओं के कारण आज्ञाकारी आत्मा सदा डबल लाइट उड़ती कला वाली होती है।
  • साथ-साथ आज्ञाकारी आत्मा को आज्ञा पालन करने के रिटर्न में बाप द्वारा विल पावर विशेष वरदान के रूप में, वर्से के रूप में मिलती है।
  • बाप सब पावर्स विल में बच्चे को देते हैं, इसलिए सर्व पावर्स सहज प्राप्त हो जाती हैं।
  • तो ऐसे विल पावर प्राप्त करने वाली आज्ञाकारी आत्मा वर्सा, वरदान और दुआयें - यह सब प्राप्तियां कर लेती है जिस कारण सदा खुशी में नाचते, “वाह-वाह'' के गीत गाते उड़ते रहते हैं क्योंकि उनका हर कर्म, उनको प्रत्यक्षफल प्राप्त कराता है।
  • कर्म है बीज।
  • जब बीज शक्तिशाली है तो फल भी ऐसा मिलेगा ना।
  • तो हर कर्म का प्रत्यक्षफल बिना मेहनत के स्वत: ही प्राप्त होता है।
  • जैसे फल की शक्ति से शरीर शक्तिशाली रहता है, ऐसे कर्म के प्रत्यक्षफल की प्राप्ति कारण आत्मा सदा समर्थ रहती है।
  • तो सदा समर्थ रहने का दूसरा आधार है - सदा और स्वत: आज्ञाकारी बनना।
  • ऐसी समर्थ आत्मा सदा सहज उड़ते हुए अपनी सम्पूर्ण मंजिल - “बाप के समीप स्थिति'' को प्राप्त करती है।
  • तो व्यर्थ तरफ आकर्षित होने का कारण है अवज्ञा।
  • बड़ी-बड़ी अवज्ञायें नहीं करते हो, छोटी-छोटी हो जाती हैं।
  • जैसे मुख्य पहली आज्ञा है - पवित्र बनो, कामजीत बनो।
  • इस आज्ञा को पालन करने में मैजारिटी पास हो जाते हैं।
  • भोली-भोली मातायें भी इसमें पास हो जाती हैं।
  • जो बात दुनिया असम्भव समझती उसमें पास हो जाते।
  • लेकिन उनका दूसरा भाई क्रोध - उसमें कभी-कभी आधा फेल हो जाते हैं।
  • फिर होशियार भी बहुत हैं।
  • कई बच्चे कहते हैं - क्रोध नहीं किया लेकिन थोड़ा रोब तो दिखाना ही पड़ता है, क्रोध नहीं आता थोड़ा रोब रखता हूँ।
  • जब असम्भव को सम्भव कर लिया, यह तो उसका छोटा भाई है।
  • तो इसको आज्ञा कहेंगे वा अवज्ञा?
  • इससे भी छोटी अवज्ञा अमृतवेले का नियम आधा पालन करते हो।
  • उठ करके बैठ तो जाते हो लेकिन जैसे बाप की आज्ञा है, उस विधि से सिद्धि को प्राप्त करते हो?
  • शक्तिशाली स्थिति होती है?
  • स्वीट साइलेन्स के साथ-साथ निद्रा की साइलेन्स भी मिक्स हो जाती है।
  • बापदादा अगर हर एक को अपने सप्ताह की टी.वी. दिखाये तो बहुत मजा देखने में आयेगा!
  • तो आधी आज्ञा मानते हो - नेमीनाथ बनते हो लेकिन सिद्धिस्वरूप नहीं बनते हो।
  • इसको क्या कहेंगे?
  • ऐसी छोटी-छोटी आज्ञायें हैं।
  • जैसे आज्ञा है - किसी भी आत्मा को न दु:ख दो, न दु:ख लो।
  • इसमें भी दु:ख देते नहीं हो लेकिन ले तो लेते हो ना।
  • व्यर्थ संकल्प चलने का कारण ही यह है - व्यर्थ दु:ख लिया।
  • सुन लिया तो दु:खी हुए।
  • सुनी हुई बात न चाहते भी मन में चलती है - यह क्यों कहा, यह ठीक नहीं कहा, यह नहीं होना चाहिए....।
  • व्यर्थ सुनने, देखने की आदत मन को 63 जन्मों से है, इसलिए अभी भी उस तरफ आकर्षित हो जाते हो।
  • छोटी-छोटी अवज्ञायें मन को भारी बना देती हैं और भारी होने के कारण ऊंची स्थिति की तरफ उड़ नहीं सकते।
  • यह बहुत गुह्य गति है।
  • जैसे पिछले जन्मों के पाप-कर्म बोझ के कारण आत्मा को उड़ने नहीं देते।
  • ऐसे इस जन्म की छोटी-छोटी अवज्ञाओं का बोझ, जैसी स्थिति चाहते हो, वैसी अनुभव करने नहीं देता।
  • ब्राह्मणों की चाल बहुत अच्छी है।
  • बापदादा पूछते हैं - कैसे हो?
  • तो सभी कहेंगे - बहुत अच्छे हैं, ठीक हैं।
  • फिर जब पूछते हैं कि जैसी स्थिति होनी चाहिए वैसी है?
  • तो चुप हो जाते हैं।
  • इस कारण यह अवज्ञाओं का बोझ सदा समर्थ बनने नहीं देता।
  • तो आज यही स्लोगन याद रखना - न व्यर्थ सोचो, न देखो, न व्यर्थ सुनो, न व्यर्थ बोलो, न व्यर्थ कर्म में समय गंवाओ।
  • आप बुराई से तो पार हो गये।
  • अब ऐसे आज्ञाकारी चरित्र का चित्र बनाओ।
  • इसको कहते हैं सदा समर्थ आत्मा। अच्छा!
  • सभी टीचर्स आर्टिस्ट हो।
  • चित्र बनाना आता है?
  • अपना श्रेष्ठ चरित्र का चित्र बनाना आता है ना!
  • तो बड़े-ते-बड़े चित्रकार वही हैं जो हर कदम में चरित्र का चित्र बनाते रहते हैं।
  • इसी चरित्र का चित्र बनाने कारण ही आपके जड़ चित्र आधाकल्प चलते हैं।
  • तो टीचर्स अर्थात् बड़े-ते-बड़े चित्रकार।
  • अपना भी चित्र बनाते और अन्य आत्माओं को भी चित्रकार बना देते हो।
  • औरों के भी श्रेष्ठ चरित्र बनाने के निमित्त टीचर्स हो।
  • इसी में ही बिजी रहते हो ना।
  • फुल बिजी रहो।
  • एक सेकण्ड भी मन-बुद्धि को फुर्सत में रखा तो व्यर्थ संकल्प अपनी तरफ आकर्षित कर लेंगे।
  • सुनाया ना कि सेवा का प्रत्यक्षफल सदा प्राप्त हो- यही निशानी है सदा आज्ञाकारी आत्मा की।
  • कभी सेवा का फल प्रत्यक्ष मिलता और कभी नहीं मिलता, इसका कारण?
  • कोई-न-कोई अवज्ञा होती है।
  • टीचर्स अर्थात् अमृतवेले से लेकर रात तक हर आज्ञा के कदम-पर-कदम रखने वाली।
  • ऐसी टीचर्स हो वा कभी-कभी अलबेलापन आ जाता है?
  • अलबेला नहीं बनना।
  • जिम्मेवारी के ताजधारी हो।
  • कभी ताज भारी लगता है तो उतार देते हैं।
  • आप उतारने वाले तो नहीं हो ना।
  • सदा आज्ञाकारी माना सदा जिम्मेवारी के ताजधारी।
  • टीचर्स तो सब हैं लेकिन इसको कहते हैं योग्य टीचर, योगी टीचर।
  • टीचर्स कभी कम्पलेन नहीं कर सकती।
  • औरों को कम्पलीट करने वाली हो, कम्पलेन करने वाली नहीं।
  • कभी ऐसे पत्र तो नहीं लिखती हो ना - क्या करें, हो गया, होना तो नहीं चाहिए।
  • वह तो समाप्त हो गया ना।
  • सुनाया था - पत्र लिखो जरूर, मधुबन में पत्र जरूर भेजो परन्तु “मैं सदा ओ.के. हूँ'' - बस, यह दो लाइन लिखो।
  • पढ़ने वालों को भी टाइम नहीं।
  • फिर कम्पलेन करते कि पत्र का उत्तर नहीं आया।
  • वास्तव में आप सबके पत्रों का उत्तर बापदादा रोज़ की मुरली में देता ही है।
  • आप लिखेंगे ओ.के. और बापदादा ओ.के. के रिटर्न में कहते - यादप्यार और नमस्ते।
  • तो यह रेसपान्ड हुआ ना।
  • समय को भी बचाना है ना।
  • सेवा समाचार भी शार्ट में लिखो।
  • तो समय की भी एकॉनामी, कागज की भी एकॉनामी, पोस्ट की भी एकॉनामी।
  • एकानामी हो सकती है ना।
  • पत्र तीन पेज में भी लिखा जा सकता है, कोई को विस्तार से लिखने का डॉयरेक्शन मिलता है तो भल लिखो लेकिन दो लाइन में भी अपनी गलती की क्षमा ले सकते हो।
  • छिपाओ नहीं, लेकिन शार्ट में लिखो।
  • कितने पत्र लिखते हैं, जिनका कोई सार नहीं होता।
  • बाप को कहो - मेरा यह काम कर लो, मेरे को ठीक कर दो, मेरा धंधा ठीक कर दो, मेरी पत्नी को ठीक कर दो.... ऐसे पत्र एक बार नहीं 10 बार भेजते हैं।
  • तो अब एकॉनामी के अवतार बनो और बनाओ।
  • अच्छा! सभी को यह मेला अच्छा लगता है ना।
  • दुनिया वाले कहते दो दिन का मेला और आपका 4 दिन का मेला है।
  • सभी को पसंद है ना यह मेला।
  • अच्छा! चारों ओर के सदा समर्थ आत्माओं को, सदा हर कदम में आज्ञाकारी रहने वाले आज्ञाकारी बच्चों को, सदा व्यर्थ को समर्थ में परिवर्तन करने वाले विश्व-परिवर्तक आत्माओं को, सदा अपने चरित्र के चित्रकार बच्चों को समर्थ बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
  • अव्यक्त बापदादा की ज़ोन वाइज बच्चों से मुलाकात, बॉम्बे और गुजरात ग्रुप
  • बेहद बाप के अर्थात् बेहद के मालिक के बालक हैं, ऐसे समझते हो?
  • बालक सो मालिक होता है, इसलिए बापदादा बच्चों को “मालेकम् सलाम'' कहते हैं।
  • बेहद बाप के बेहद के वर्से के बालक सो मालिक हो।
  • तो बेहद के वर्से की खुशी भी बेहद होगी ना।
  • बाप बच्चों को अपने से भी आगे रखते हैं।
  • विश्व के राज्य का अधिकारी बच्चों को बनाते हैं, खुद तो नहीं बनते।
  • तो वर्तमान और भविष्य - दोनों अधिकार मिल गये और दोनों ही बेहद हैं!
  • सतयुग में भी हदें तो नहीं होंगी ना - न भाषा की, न रंग की, न देश की।
  • यहाँ तो देखो कितनी हदें हैं!
  • बेहद के आकाश को भी हदों में बांट दिया है।
  • वहाँ कोई हद नहीं होती।
  • तो बेहद का राज्य-भाग्य हो गया।
  • लेकिन बेहद का राज्य-भाग्य प्राप्त करने वालों को पहले इस समय अपनी देह की हद से परे जाना पड़ेगा।
  • अगर देहभान की हद से निकले तो और सभी हद से निकल जायेंगे इसलिए बापदादा कहते हैं - पहले देह सहित देह के सब सम्बन्धों से न्यारे बनो।
  • पहले देह फिर देह के सम्बन्धी।
  • तो इस देह के भान की हद से निकले हो?
  • क्योंकि देह की हद कभी भी ऊपर नहीं ले जायेगी।
  • देह मिट्टी है, मिट्टी सदा भारी होती है।
  • कोई भी चीज़ मिट्टी की होगी तो भारी होगी ना।
  • यह देह तो पुरानी मिट्टी है, इसमें फंसने से क्या मिलेगा!
  • कुछ भी नहीं।
  • तो सदा यह नशा रखो कि बेहद बाप और बेहद वर्से का बालक सो मालिक हूँ।
  • जब बालक बनना है उस समय मालिक नहीं बनो और जब मालिक बनना है उस समय बालक नहीं बनो।
  • जब कोई राय देनी है, प्लैन सोचना है, कुछ कार्य करना है तो मालिक होकर करो लेकिन जब मैजारिटी द्वारा या निमित्त बनी आत्माओं द्वारा कोई भी बात फाइनल हो जाती है तो उस समय बालक बन जाओ, उस समय मालिक नहीं बनो।
  • मेरा ही विचार ठीक है, मेरा ही प्लैन ठीक है - नहीं।
  • उस समय मालिक नहीं बनो।
  • किस समय राय बहादुर बनना है और किस समय राय मानने वाला बनना है- जिसको यह तरीका आ जाता है वह कभी नीचे-ऊपर नहीं होता।
  • वह पुरुषार्थ और सेवा में सफल रहता है।
  • अपने को मोल्ड कर सकता है, अपने को झुका सकता है।
  • झुकने वाले को सदैव ही सेवा का फल मिलता है और अपने अभिमान में रहने वाले को सेवा का फल नहीं मिलता है।
  • तो सफलता की विधि है-बालक सो मालिक, समय पर बालक बनना, समय पर मालिक बनना।
  • यह विधि आती है?
  • अगर छोटी-सी बात को बालक के समय मालिक बनकर सिद्ध करेंगे तो मेहनत ज्यादा और फल कम मिलेगा।
  • और जो विधि को जानते हैं, समय प्रमाण उसको मेहनत कम और फल ज्यादा मिलता है।
  • वह सदा मुस्कराता रहेगा।
  • स्वयं भी खुश रहेगा और दूसरों को देखकर के भी खुश होगा।
  • सिर्फ मैं बड़ा खुश रहता हूँ, यह नहीं।
  • लेकिन खुश करना भी है खुश रहना भी है, तब राजा बनेंगे।
  • अपने को मोल्ड करेंगे तो गोल्डन एज का अधिकार जरूर मिलेगा। अच्छा!
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • स्थूल और सूक्ष्म दोनों रीति से स्वयं को बिजी रखने वाले मायाजीत, विजयी भव
  • स्वयं को सेवाधारी समझ अपनी रुची, उमंग से सेवा में बिजी रहो तो माया को चांस नहीं मिलेगा।
  • जब संकल्प से, बुद्धि से, चाहे स्थूल कर्मणा से फ्री रहते हो तो माया चांस ले लेती है।
  • लेकिन स्थूल और सूक्ष्म दोनों ही रीति से खुशी-खुशी से सेवा में बिजी रहो तो खुशी के कारण माया सामना करने का साहस नहीं रख सकती, इसलिए स्वयं ही टीचर बन बुद्धि को बिजी रखने का डेली प्रोग्राम बनाओ तो मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • निश्चय और फलक से कहो बाबा मेरे साथ है तो माया समीप आ नहीं सकती।