19-12-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 13.12.89 "बापदादा" मधुबन


"दिव्य ब्राह्मण जन्म के

भाग्य की रेखाएं"


  • आज विश्व रचयिता बापदादा अपने विश्व की सर्व मनुष्य-आत्माओं रूपी बच्चों को देख रहे हैं।
  • सर्व आत्माओं में अर्थात् सर्व बच्चों में दो प्रकार के बच्चे हैं।
  • एक हैं बाप को पहचानने वाले और दूसरे हैं पुकारने वाले वा परखने के प्रयत्न करने वाले।
  • लेकिन हैं सभी बच्चे।
  • तो आज दोनों प्रकार के बच्चों को देख रहे थे।
  • सर्व बच्चों में से पहचानने वाले वा प्राप्त करने वाले बच्चे बहुत थोड़े हैं और पहचान करने के प्रयत्न वाले अनेक हैं।
  • पहचानने वाले बच्चों के मस्तक पर श्रेष्ठ भाग्य की लकीर चमक रही है।
  • सबसे श्रेष्ठ भाग्य की लकीर है - बाप द्वारा दिव्य ब्राह्मण जन्म की।
  • दिव्य जन्म की रेखा अति श्रेष्ठ चमक रही है।
  • पुकारने वाले बच्चे अंजाने भी मानते यही हैं कि भगवान् ने हमें रचा है लेकिन अंजान होने कारण दिव्य जन्म की अनुभूति नहीं कर सकते।
  • आप भी कहते हो - हमें बापदादा ने दिव्य जन्म दिया, वह भी कहते - भगवान ने रचा, भगवान ही रचता है, भगवान ही पालनहार है।
  • लेकिन दोनों के कहने में कितना अंतर है!
  • आप अनुभव से, नशे से, नॉलेज से कहते हो कि हमको बापदादा, मात-पिता ने रचा अर्थात् ब्राह्मण जन्म दिया।
  • रचता को, जन्म को, जन्मपत्री को, दिव्य जन्म की विधि और सिद्धि - सबको जानते हो।
  • हर एक को अपना दिव्य जन्म का बर्थ-डे याद है ना?
  • इस दिव्य जन्म की विशेषता कौनसी है?
  • साधारण जन्मधारी आत्माएं अपना बर्थ-डे अलग मनाती, फ्रैंड्स-डे अलग मनाती, पढाई का दिन अलग मनाती और आप क्या कहेंगे?
  • आपका बर्थ-डे भी वही है तो मैरेज-डे और पढ़ाई का दिन भी वही है।
  • मदर-डे कहो, फॉदर-डे कहो, इंगेजमेंट-डे कहो, सब एक ही है।
  • ऐसा दिव्य जन्म कब सुना?
  • सारे कल्प में ऐसा दिन आप आत्माओं का फिर कभी भी नहीं आता।
  • सतयुग में भी बर्थ-डे और मैरेज-डे एक ही नहीं होगा।
  • लेकिन इस संगमयुग के इस महान् जन्म की यह विशेषता भी है और विचित्रता भी है।
  • वैसे तो जिस दिन ब्राह्मण बने वही जन्मदिन, वही मैरेज-दिन है क्योंकि सभी यही वायदा करते हो - एक बाप दूसरा न कोई।
  • यह दृढ़ संकल्प पहले ही करते हो ना।
  • तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूँ, तुम्हीं से सर्व सम्बन्ध निभाऊं - यह सबने वायदा किया ना।
  • पांडवों ने, माताओं ने, कुमारियों ने सभी ने वायदा किया है।
  • तो और कहां स्वप्न में भी मन नहीं जा सकता।
  • ऐसे पक्के हो ना वा कोई साथी चाहिए?
  • सेवा के लिए कोई विशेष साथी चाहिए?
  • तो साथी-दिवस किसका मनायेंगे?
  • सेवाधारी साथी का वा बाप साथी है उसका दिवस मनायेंगे?
  • चाहे सर्विस करने वाले हैं, चाहे सर्विस लेने वाले हैं लेकिन सेवा के समय सेवा की, फिर इतने न्यारे और प्यारे बनो जो जरा भी विशेष झुकाव नहीं हो।
  • जो सेवा में मदद करेगा वह विशेष होगा ना!
  • चाहे भाई हो वा बहन हो, जो विशेष सेवा करता वह विशेष अधिकार भी रखेगा!
  • तो सेवा के साथी बनो लेकिन साक्षी होके साथी बनो।
  • साक्षीपन भूल जाता है तो सिर्फ साथी बनने में बाप भूल जाता है।
  • साक्षी बन पार्ट बजाने की प्रैक्टिस करो।
  • हर बच्चे के मस्तक पर विशेष 4 भाग्य की लकीरें चमकती हैं।
  • (1)दिव्य जन्म की रेखा,
  • (2)परमात्म-पालना की रेखा,
  • (3)परमात्म पढ़ाई की रेखा और
  • (4)निस्स्वार्थ सेवा की रेखा।
  • सभी के मस्तक में चारों ही भाग्य की रेखाएं चमक रही हैं।
  • लेकिन चमक में और सदा एकरस वृद्धि को प्राप्त करने में फर्क होने कारण चमक में अंतर दिखाई देता है।
  • आदि से अब तक चारों ही रेखाएं सदा यथार्थ रूप से चलती रहें, वह बहुत थोड़ों की हैं।
  • बीच-बीच में कोई-न-कोई बात में भाग्य की लकीर या तो खंडित होती है वा चमक कम होती है, स्पष्ट नहीं होती।
  • जैसे हस्त-रेखाएं भी देखते हैं ना - कोई की खण्डित होती, कोई की एकरस होती हैं, कोई की स्पष्ट होती हैं, कोई की स्पष्ट नहीं होती।
  • बापदादा भी बच्चों के भाग्य की रेखा को देखते रहते हैं।
  • दिव्य जन्म तो सभी ने लिया लेकिन दिव्य जन्म की रेखा खण्डित होती वा स्पष्ट नहीं होती क्योंकि अपने जन्म के धर्म में अखण्ड नहीं चलता तो उनके भाग्य की लकीर खण्डित होती।
  • धर्म क्या है, कर्म क्या है - उसको तो जानते हो ना।
  • ऐसे ही परमात्म-पालना में तो सभी ब्राह्मण चल रहे हो।
  • चाहे समर्पित हो, चाहे प्रवृत्ति में हो लेकिन बाप के डॉयरेक्शन से चल रहे हो।
  • प्रवृत्ति वाले क्या कहेंगे?
  • अपना कमाया हुआ खाते हो वा बाप का खाते हो?
  • बाप का खाते हैं ना क्योंकि अपना सब-कुछ बाप को दे दिया तो बाप का ही हुआ ना!
  • चाहे कमाते भी हो लेकिन कमाया हुआ धन बाप के हवाले करते हो या अपने काम में लगाते हो?
  • ट्रस्टी हो ना?
  • ट्रस्टी का अपना कुछ नहीं रहता।
  • गृहस्थी में अपनापन होता है, ट्रस्टी अर्थात् सब बाप का है।
  • अपने हाथ से खाना बनाते हो तो भी समझते हो ना - ब्रह्मा भोजन खा रहे हैं।
  • पहले भोग किसको लगाते हो?
  • बाप को अर्पण करते हो ना?
  • अर्पण करना अर्थात् बाप का खाना।
  • ब्रह्मा भोजन खाते हो।
  • चाहे बच्चों के अर्थ भी लगाते हो वह भी डॉयरेक्शन अनुसार लगाते हो।
  • जैसे समर्पित बहनें वा भाई भिन्न-भिन्न कार्य में तन-मन भी लगाते तो धन भी लगाते हैं।
  • ऐसे प्रवृत्ति में रहने वाले भी चाहे तन लगाते, चाहे धन लगाते - बाप की श्रीमत प्रमाण ही अमानत समझ कार्य में लगाते हो-ऐसे करते हो ना?
  • अमानत में ख्यानत अथवा मनमत तो नहीं मिलाते हो ना।
  • तो परमात्म-पालना सब ब्राह्मण आत्माओं को मिल रही है।
  • पालना की जाती है शक्तिशाली बनाने के लिए।
  • माता की पालना का प्रत्यक्ष रूप क्या होता?
  • बच्चा शक्तिशाली बनता है।
  • तो ब्रह्मा-माँ की पालना द्वारा सभी मास्टर सर्वशक्तिमान बने हो।
  • लेकिन कोई बच्चे सदा शक्तियों को कार्य में लगाते और कोई बच्चे प्राप्त शक्तियों को अर्थात् पालना को कार्य में नहीं लगाते अर्थात् पालना को प्रैक्टिकल में नहीं लाते इसलिए श्रेष्ठ पालना मिलते हुए भी कमजोर रह जाते हैं और भाग्य की लकीर खण्डित हो जाती है।
  • ऐसे ही पढ़ाई की लकीर-पढ़ाई का एम आब्जेक्ट ही है श्रेष्ठ पद को प्राप्त करना।
  • शिक्षक बाप पढ़ाई सबको एक ही पढ़ाता, एक ही समय पर पढ़ाता।
  • लेकिन जो श्रेष्ठ ब्राह्मण-जीवन का वा पढ़ाई का पद अथवा नशा है वह सबको एक जैसा नहीं रहता।
  • फरिश्ता सो देवता स्टेट्स को सदा स्मृति में नहीं रखते, इसलिए भाग्य की लकीर में अंतर पड़ जाता है।
  • ऐसे ही सेवा की लकीर - सेवा की विशेषता है जो ब्रह्मा बाप ने साकार रूप में अंतिम वरदान रूप में स्मृति दिलाई - निराकारी, निर्विकारी और निरहंकारी।
  • निराकारी स्थिति में स्थित होने के बिना किसी भी आत्मा को सेवा का फल नहीं दे सकते क्योंकि आत्मा का तीर आत्मा को लगता है।
  • स्वयं सदा इस स्थिति में स्थित नहीं हैं तो जिनकी सेवा करते वह भी सदा स्मृति-स्वरूप नहीं बन सकते।
  • ऐसे ही निर्विकारी, कोई भी विकार का अंश अन्य आत्मा के शूद्र वंश को परिवर्तन कर ब्राह्मण वंशी नहीं बना सकता।
  • उस आत्मा को भी मेहनत करनी पड़ती है इसलिए मुहब्बत का फल सदा अनुभव नहीं कर सकते।
  • निरहंकारी सेवा का अर्थ ही है फलस्वरूप बन झुकना।
  • बिना निर्मान बने निर्माण अर्थात् सेवा में सफलता नहीं मिल सकती।
  • तो निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी - इन तीनों वरदानों को सदा सेवा में प्रैक्टिकल में लाना, इसको कहते हैं अखण्ड भाग्य की रेखा।
  • अब चारों ही भाग्य की रेखाओं को चेक करो कि अखण्ड हैं या खण्डित हैं, स्पष्ट हैं या अस्पष्ट हैं?
  • कोटो में कोई तो बन गये हैं लेकिन बनना है कोई में भी कोई।
  • जो कोई में कोई होगा वही अब सर्व का माननीय और भविष्य में पूज्यनीय बनता है।
  • जो अखण्ड भाग्य के लकीरवान हैं उसकी निशानी है- वह अब भी सर्व ब्राह्मण-परिवार का प्यारा होगा।
  • माननीय होने के कारण सर्व की दुआयें, श्रेष्ठ आत्माओं के भाग्य की लकीर को चमकाती रहती।
  • तो अपने आपसे पूछो - मैं कौन?
  • तो सुना, आज क्या देखा!
  • दुनिया वाले कहते हैं पालनहार है, जन्मदाता है।
  • लेकिन जन्मदाता का परिचय ही नहीं है।
  • और आप नशे से कह सकते हो कि जन्मदाता परमात्मा कैसे हैं, पालनहार परमात्मा कैसे हैं!
  • ब्रह्मा-माँ की पालना भी मिल रही है और बाप की श्रेष्ठ मत पर योग्य आत्मायें बन गये।
  • बाप बच्चे को योग्य बनाता है और माँ शक्तिशाली बनाती है।
  • दोनों अनुभव हैं ना!
  • अच्छा! गीता पाठशाला वाले ज्यादा आये हैं।
  • गीता पाठशाला वाले कौन हुए?
  • गीता का ज्ञान सुनने वाले “हे अर्जुन'' हैं।
  • “अर्जुन'' समझकर गीता-ज्ञान सुनते हो या “अर्जुन'' दूसरा है।
  • “मैं अर्जुन हूँ'' - यह समझते हो?
  • सदैव यह अनुभव करके सुनो मैं अर्जुन हूँ, मुझे विशेष भगवान गीता का ज्ञान सुना रहा है।
  • गीता पाठशाला वाले तो सबसे नम्बरवन निकल जायेंगे।
  • इस विधि से सुनो तो आगे चले जायेंगे।
  • टीचर्स को बिजी रहने के लिए गीता पाठशालाएं अच्छी हैं।
  • गीता पाठशाला चक्रवर्ती भी बनाती, बिजी भी रखती।
  • वृद्धि भी अच्छी होती है।
  • मेहनत कम लेते हैं, मददगार ज्यादा बनते हैं।
  • बलिहारी तो गीता पाठशाला वालों की है ना, इसलिए गांव वाले बाप को प्यारे लगते हैं।
  • बड़े स्थानों पर माया भी बड़े रूप की आती है।
  • गांव वालों को माया भी गांव वाली आती है, इसलिए बहुत अच्छे हो गांव वाले, ज्यादा संख्या कहाँ की है?
  • लेकिन अभी तो सभी मधुबन निवासी हो।
  • सभी टीचर्स की परमानेंट एड्रेस कौनसी है?
  • मधुबन है ना।
  • वह दुकान हैं, यह घर है।
  • ज्यादा क्या याद रहता है - घर या दुकान?
  • कोई-कोई को दुकान ज्यादा याद रहती है।
  • सोयेंगे तो भी दुकान याद आयेगी।
  • आप लोग जहाँ चाहो बुद्धि को स्थित कर सकते हो।
  • सेवाकेन्द्र पर रहते भी मधुबन निवासी बन सकते और मधुबन में रहते भी सेवाधारी बन सकते हो, यह अभ्यास है ना।
  • सेकण्ड में सोचा और स्थित हुआ, यह है टीचर्स के स्थिति की विशेषता।
  • बुद्धि भी समर्पित है ना या सिर्फ सेवा के लिए समर्पित हो?
  • समर्पित बुद्धि अर्थात् जहाँ चाहें, जब चाहें वहाँ स्थित हो जाऍ।
  • यह विशेषता की निशानी है।
  • बुद्धि सहित समर्पित - ऐसे हो ना या बुद्धि से आधी समर्पित हैं और शरीर से सारी हैं?
  • कोई-कोई टीचर्स भी कहती हैं - योग में बैठते हैं तो आत्म-अभिमानी होने बदले सेवा याद आती है।
  • लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि लास्ट समय अगर अशरीरी बनने की बजाए सेवा का भी संकल्प चला तो सेकण्ड के पेपर में फेल हो जायेंगे।
  • उस समय सिवाय बाप के, निराकारी, निर्विकारी, निरहंकारी - और कुछ याद नहीं।
  • ब्रह्मा बाप ने अंतिम स्टेज यही बनाई ना - बिल्कुल निराकारी।
  • सेवा में फिर भी साकार में आ जायेंगे, इसलिए यह अभ्यास करो - जिस समय जो चाहे वह स्थिति हो नहीं तो धोखा मिल जायेगा।
  • ऐसे नहीं सोचो - सेवा का ही तो संकल्प आया, खराब संकल्प विकल्प तो नहीं आया।
  • लेकिन कन्ट्रोलिंग पावर तो नहीं हुई ना।
  • कन्ट्रोलिंग पावर नहीं तो रूलिंग पावर आ नहीं सकती, फिर रूलर बन नहीं सकेंगे।
  • तो अभ्यास करो।
  • अभी से बहुत काल का अभ्यास चाहिए।
  • इसको हल्का नहीं छोड़ो।
  • तो सुना, टीचर्स को क्या अभ्यास करना है?
  • तब कहेंगे - टीचर्स बाप को फॉलो करने वाली हैं।
  • सदा ब्रह्मा बाप को सामने रखो और तीन वरदान याद रखो और फॉलो करो।
  • यह तो सहज है ना।
  • यह अन्तिम वरदान बहुत शक्तिशाली है।
  • इन तीन वरदानों को अगर सदा स्मृति में रखते प्रैक्टिकल में आओ तो बाप के दिलतख्त और राज्य-तख्त के अधिकारी जरूर बनेंगे।
  • अच्छा! सर्व बाप समान सदा नॉलेजफुल, पावरफुल बच्चों को, सदा भाग्य-विधाता द्वारा श्रेष्ठ भाग्य की स्पष्ट रेखाओं वाले भाग्यवान बच्चे, सदा बाप समान त्रि-वरदान प्राप्त हुए विशेष आत्माओं को, सदा ब्राह्मण जन्म की पालना और पढाई को आगे बढ़ाने वाले - ऐसे अखण्ड भाग्यवान बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
  • अव्यक्त-बापदादा की ज़ोन वाइज बच्चों से मुलाकात - महाराष्ट्र ग्रुप
  • सदा अपने को सर्व प्राप्तियों से भरपूर अनुभव करते हो?
  • कभी खाली तो नहीं हो जाते?
  • क्योंकि बाप ने इतनी प्राप्तियां कराई हैं, अगर सर्व प्राप्ति अपने में जमा करो तो कभी भी खाली नहीं हो सकते।
  • इस जन्म की तो बात ही नहीं है लेकिन अनेक जन्म भी यहाँ की भरपूरता साथ रहेगी।
  • तो जब इतना दिया है जो भविष्य में भी चलना है, तो अभी खाली कैसे होंगे?
  • अगर बुद्धि खाली रही तो हलचल रहेगी।
  • कोई भी चीज़ अगर फुल भरी नहीं होती तो उसमें हलचल होती है।
  • तो भरपूर होने की निशानी है कि माया को आने की मार्जिन नहीं है।
  • माया ही हिलाती है।
  • तो माया आती है या नहीं?
  • संकल्प में भी आती है?
  • माया के राज्य में तो आधाकल्प अनुभव किया और अभी अपने राज्य में जा रहे हो।
  • जब मायाजीत बनेंगे तब फिर अपना राज्य आयेगा और मायाजीत बनने का सहज साधन - सदा प्राप्तियों से भरपूर रहो।
  • कोई एक भी प्राप्ति से वंचित नहीं रहो।
  • सर्व प्राप्ति हो।
  • ऐसे नहीं - यह तो है, एक बात नहीं तो कोई हर्जा नहीं।
  • अगर जरा भी कमी होगी तो माया छोड़ेगी नहीं, उसी जगह से हिलायेगी।
  • तो माया को आने की मार्जिन ही न हो।
  • आ गई, फिर भगाओ तो उसमें टाइम जाता है।
  • तो मायाजीत बने हो?
  • यह नहीं सोचो - 2 वर्ष या 3 वर्ष में हो जायेंगे।
  • ब्राह्मणों के लिए स्लोगन है - “अब नहीं तो कभी नहीं''।
  • अब समय की रफ्तार के प्रमाण कोई भी समय कुछ भी हो सकता है, इसलिए तीव्र पुरुषार्थी बनो। अच्छा!
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • समय और संकल्प सहित अपने सर्व खजानों को विल करने वाले मोहजीत भव
  • जैसे बच्चे को सब कुछ विल किया जाता है, ऐसे आप लोग भी बाप को अपना वारिस बनाकर सब कुछ विल कर दो तो विल पावर आ जायेगी।
  • इस विल पावर से मोह स्वत: नष्ट हो जायेगा।
  • जैसे साकार बाप ने पूरा ही अपने को विल किया वैसे आप लोगों की जो स्मृति है, समय और संकल्पों का खजाना है उसे विल करो अर्थात् श्रीमत प्रमाण सेवाओं में लगाओ तो मोहजीत, बन्धनमुक्त बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • एक दो का स्नेही बनने के लिए सरलता और सहनशीलता का गुण धारण करो।
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  • सूचनाः- आज मास का तीसरा रविवार अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस है, बाबा के सभी बच्चे सायं 6.30 से 7.30 बजे तक विशेष अपने रहमदिल दाता स्वरूप, सम्पूर्ण पवित्र स्वरूप में स्थित हो सर्व आत्माओं को पवित्रता, सुख शान्ति की अंचली देने की सेवा करें।