13-12-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - श्रेष्ठ बनना है तो श्रीमत पर पूरा-पूरा चलो, श्रीमत पर न चलना ही सबसे बड़ी खामी है"

प्रश्नः-

किन बच्चों का गला घुट जाता है, बुद्धि से ज्ञान निकल जाता है?

उत्तर:-

जो चलते-चलते अपवित्र बन जाते हैं, पढ़ाई छोड़ बाप को फारकती दे देते हैं उनकी बुद्धि से ज्ञान निकल जाता है।

जब तक निर्विकारी न बनें तब तक अविनाशी ज्ञान बुद्धि में बैठ नहीं सकता।

बुद्धि का ताला खुल नहीं सकता।

पतित बनने वालों का खान-पान भी गंदा हो जाता है।

वह मायावी मनुष्यों से जाकर मिल जाते हैं फिर गला ही घुट जाता है।

किसी को भी ज्ञान सुना नहीं सकते हैं।

 

गीत:- तुम्हें पाके हमने....


  • ओम् शान्ति।
  • यह गीत कौन गा रहे हैं?
  • जिसने बाप से तीनों जहान की बादशाही ले ली है।
  • आप से जो कुछ मिला है उनको कोई हटा न सके।
  • हमको कोई हटा नहीं सकता अर्थात् काल खा नहीं सकता।
  • और ना ही हमारी राजाई को कोई ले सकता है।
  • बच्चे जानते हैं हम उस मालिक से वर्सा ले रहे हैं।
  • बाप को मालिक भी कहते हैं लेकिन उस मालिक से क्या मिलता है, कुछ भी पता नहीं।
  • मालिक को कैसे हम याद करें, उनका नाम रूप क्या है?
  • कुछ भी पता नहीं।
  • मालिक तो सृष्टि का मालिक ठहरा ना।
  • वह हुआ रचयिता।
  • हम हुए रचना।
  • बाबा रचते हैं वारिसों को अथवा बच्चों को फिर उनको अपना मालिक बना देते हैं।
  • बच्चे फिर बाप के मालिक बन जाते हैं।
  • बच्चे कहते हैं मेरे बाप की जो जायदाद है उनका मैं मालिक हूँ।
  • बाप तो ऐसे नहीं कहेंगे कि बच्चे की जायदाद का मैं मालिक हूँ।
  • यह बड़ी समझने की बातें हैं। सेन्सीबुल बच्चे ही समझ सकते हैं।
  • बुद्धि साफ नहीं है तो उसमें रत्न ठहर न सकें।
  • जब देही-अभिमानी हो तब रत्न ठहर सकें।
  • देही-अभिमानी होकर रहना है और बाप से वर्सा लेना है।
  • उस बाप को याद करना है।
  • जैसे लौकिक बाप बच्चों को पैदा करते हैं तो बच्चे मालिक बन जाते हैं।
  • बच्चे कहेंगे मेरा बाप।
  • बाप कहेगा मेरे बच्चे।
  • परन्तु बच्चे के पास तो कुछ है नहीं।
  • उनको तो बाप की मिलकियत मिलती है।
  • बाप कभी ऐसे नही कहेंगे कि बच्चे की मिलकियत मेरी है।
  • बाप समझते हैं - बच्चे मेरी मिलकियत के मालिक हैं, यह बड़ी धारणायुक्त बातें हैं।
  • धारणा नहीं होती क्योंकि खामियां हैं।
  • समझना चाहिए मेरे में बहुत खामियां हैं।
  • नम्बरवन खामी है - जो श्रीमत पर नहीं चलते हैं।
  • श्रीमत से ही श्रेष्ठ बनना है।
  • श्रीमत राजयोग सिखलाती है।
  • श्री माना निराकार भगवानुवाच, इसलिए हम प्रश्न पूछते हैं कि ज्ञान सागर पतित-पावन परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध ह
  • ै? यह बहुत बड़े-बड़े बोर्ड पर लिख देना चाहिए।
  • परमात्मा है स्वर्ग का रचयिता, तो जिनका परमात्मा से सम्बन्ध होगा वह भी जरूर स्वर्ग का मालिक बन ही जायेगा।
  • बाप आकर बच्चों को सलाम करते हैं।
  • सलाम मालेकम् बच्चे।
  • बच्चे कहते हैं मालेकम् सलाम।
  • हम तो सिर्फ ब्रह्माण्ड के मालिक हैं, तुम ब्रह्माण्ड और विश्व दोनों के मालिक बनते हो, इसलिए बाबा बच्चों को डबल सलाम करते हैं।
  • एक ही बेहद का बाप तुम्हारी कितनी निष्काम सेवा करते हैं।
  • लौकिक बाप निष्काम नहीं होते।
  • उनको आश रहती है हम वानप्रस्थ अवस्था में जायेंगे तो बच्चे हमारी सेवा करेंगे।
  • असुल यह कायदा था - बच्चे बाप की सेवा करते थे।
  • आजकल तो पैसे उड़ा देते हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो हमको ऐसी बादशाही मिलती है बाप से।
  • लक्ष्मी-नारायण के लिए भी लिखो कि इन्हों को जानते हो, इन्हों को यह स्वर्ग की बादशाही किसने दी?
  • जरूर स्वर्ग स्थापन करने वाला ही देगा।
  • पुरानी दुनिया हो तब तो नई दुनिया स्थापन करेंगे।
  • तो लक्ष्मी-नारायण ने यह वर्सा पाया श्रीमत पर चलने से।
  • श्रीमत राजयोग और सहज ज्ञान सिखलाती है।
  • जिनको समझाते हैं - वह राजा बन जाते हैं।
  • पहले नम्बर में श्रीकृष्ण, उसने ऐसा क्या कर्म किया जो अपने माँ बाप से भी जास्ती मर्तबा पाया।
  • वह महाराजा महारानी कहाँ थे जिनके पास कृष्ण का जन्म हुआ।
  • जब तक निर्विकारी होकर नहीं रहेंगे तब तक अविनाशी ज्ञान बुद्धि में बैठ नहीं सकता।
  • बुद्धि का ताला खुलता ही तब है जब पवित्र रहते हैं।
  • अपवित्र बनने से सब बुद्धि से निकल जायेगा।
  • बहुत बच्चे फारकती दे देते हैं।
  • पढ़ाई को ही छोड़ देते हैं।
  • वह फिर कभी किसको ज्ञान सुना न सकें।
  • पतित बन जाते, खान-पान भी गंदा खाते।
  • मायावी मनुष्यों से जाकर मिलते हैं।
  • उनके गले घुट जाते हैं।
  • यह बात भी शास्त्रों में है।
  • वृन्दावन में रास आदि होती थी, मना कर देते थे - किसको सुनायेंगे तो गला घुट जायेगा।
  • है यह ज्ञान की बात।
  • अगर फारकती दी, जाकर निंदा करते हैं तो गला घुट जाता है।
  • कहते हैं ना सतगुरू का निंदक ठौर न पाये।
  • बाप कहते हैं सृष्टि जब पतित, पुरानी हो जाती है तब मैं आता हूँ।
  • मनुष्यों को तमोप्रधान बनना ही है।
  • जो कर्तव्य करेंगे वो उल्टा ही करेंगे क्योंकि उल्टी मत मिल रही है।
  • श्रीमत है नहीं।
  • उल्टी मत पतित भ्रष्टाचारी बनाती है।
  • आगे भ्रष्टाचारी अक्षर ही नहीं था।
  • संन्यासी विकारों का संन्यास करते हैं पावन बनने के लिए।
  • तो पहले-पहले यह बात समझानी है कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है?
  • सब भगवान को याद करते हैं।
  • भगवान कहते हैं मुझे सब भगत प्रिय हैं क्योंकि उन सबको मुझे ही गति सद्गति देनी है।
  • वह समझते हैं भगवान आकर भक्तों को भक्ति का फल देते हैं, इसलिए भगत भगवान को प्रिय हैं।
  • बाबा समझाते हैं - तुमने दुर्गति को पाया है, अब मैं सद्गति देने आया हूँ।
  • भक्ति के बाद भगवान को आना है जरूर।
  • मुझे तुमको ही पहले भक्ति का फल देना पड़ता है।
  • और तो शुरू से लेकर मेरे भक्त हैं नहीं।
  • वह तो अनेकों की भक्ति करते हैं।
  • तुम मेरे प्यारे बच्चे हो, तुम मालिक थे फिर माया रावण ने तुम पर जीत पा ली और फिर भक्ति शुरू हो गई।
  • यह भी ड्रामा है।
  • मैं तो सबकी सद्गति करता हूँ।
  • अब तुम मेरी मत पर चलते हो ना।
  • मत देने के लिए जरूर मुझे आना पड़ता है।
  • नहीं तो कैसे सद्गति का रास्ता बताऊं।
  • मैं इस पहले नम्बर के भगत के तन में आता हूँ।
  • यह है नंदीगण।
  • शिव के मन्दिर में सामने नंदीगण रखते हैं।
  • अब विचार करो - परमपिता परमात्मा बैल के तन में तो नहीं आयेगा।
  • राजयोग बैल द्वारा कैसे सिखाऊंगा।
  • ज्ञान सागर बैल में प्रवेश करेंगे क्या!
  • अभी तुम ज्ञानवान बनते हो।
  • श्रीमत पर चलकर लक्ष्मी-नारायण, सूर्यवंशी राजा-रानी बन रहे हो।
  • उस राजधानी को कोई हमसे छीन न सके, न कोई तूफान लग सके।
  • हम अमरपुरी के मालिक बनते हैं।
  • यह मृत्युलोक है।
  • अमरनाथ बाबा ही काल पर जीत पहनाने वाला है।
  • उनका पार्ट अलग है।
  • तुम सब पार्वतियां हो, मैं अमरनाथ हूँ।
  • हम कभी जन्म-मरण में नहीं आते।
  • अमरपुरी स्वर्ग का मालिक तुमको बनाता हूँ।
  • भारतवासियों को वैकुण्ठ बहुत प्यारा लगता है।
  • कहते हैं फलाना वैकुण्ठवासी हुआ।
  • बहुत मुख मीठा कर दिया।
  • अब वैकुण्ठ सचमुच तो सतयुग में होगा।
  • जब सतयुग है तो पुनर्जन्म भी सतयुग में लेते हैं।
  • फिर त्रेता में आते हैं तो पुनर्जन्म भी त्रेता में लेते हैं।
  • फिर द्वापर में आते हैं तो पुनर्जन्म भी द्वापर में लेते हैं।
  • परन्तु ऐसे थोड़ेही हो सकता है जो मरेंगे कलियुग में, पुनर्जन्म लेंगे सतयुग में।
  • स्वर्ग में जन्म लेते रहें, इसका मदार है पढ़ाई पर।
  • बाप कहते हैं मैं तुमको सृष्टि का मालिक बनाता हूँ, मैं निष्कामी हूँ।
  • हम विश्व का मालिक नहीं बनते।
  • तुम स्वर्ग में जाते हो तो मैं विश्रामी हो जाता हूँ।
  • मैं चक्र में नहीं आता हूँ।
  • इस ईश्वरीय जन्म के बाद तुम दैवी गोद में जन्म लेंगे।
  • अभी तुम जन्म-जन्मान्तर आसुरी गोद में जन्म लेते हो।
  • भ्रष्टाचारी बन पड़े हो
  • । सतयुग में सब श्रेष्ठाचारी होते हैं।
  • अब तुम श्रीमत से श्रेष्ठाचारी बन रहे हो।
  • वहाँ विष होता नहीं।
  • यहाँ भल संन्यासी हैं परन्तु जन्म तो विकारों से लेते हैं ना।
  • सतयुग में विकारों से जन्म नहीं होता है।
  • नहीं तो उन्हों को सम्पूर्ण निर्विकारी कह न सकें।
  • वहाँ माया होती नहीं।
  • परन्तु यह बातें भी जब किसकी बुद्धि में बैठें।
  • अब बाबा कहते हैं बच्चे तुमको घर जाना है फिर स्वर्ग में आकर राज्य करना है।
  • आत्मायें परमधाम से आती हैं पार्ट बजाने, फिर जब तक पतित-पावन आकर लिबरेट न करे तब तक एक भी जा नहीं सकता।
  • गपोड़ा मारते रहते हैं - फलाना पार निर्वाण गया।
  • बाप आकर सब बातें अच्छी रीति समझाते हैं।
  • पहले-पहले समझाओ परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है!
  • दूसरे किसको यह भी प्रश्न पूछने आयेगा नही।
  • तुम कल्प-कल्प पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि और पारसबुद्धि से पत्थरबुद्धि बनते आये हो।
  • यह तो अच्छी रीति समझाया जाता है परन्तु जबकि निश्चय बैठे।
  • बरोबर शिवबाबा के हम बच्चे हैं।
  • बाबा कहते हैं मैं अब आया हूँ तुमको सुखधाम ले चलने, चलेंगे?
  • वहाँ यह विष नहीं मिलेगा।
  • मूल बात ही पवित्रता की है।
  • जो कल्प पहले रहे थे, वही अब भी रह सकते हैं।
  • बहुत बच्चियां लिखती हैं बाबा पता नहीं कब बन्धन टूटेगा।
  • युक्ति बताओ।
  • बाबा कहते हैं बच्चे बंधन टूटेगा अपने टाइम पर।
  • बाबा क्या करेंगे?
  • एक बंधन भल छूट जाये फिर बच्चों आदि में मोह पड़ जाता है।
  • इन सबसे बुद्धि निकालने में बड़ी मेहनत लगती है।
  • कई तो और ही जास्ती मोह में आ जाते हैं।
  • बहुत हैं जो मोह में लटक पड़ते हैं।
  • बाबा कहते हैं तुम मोह एक बाप में रखो तब धारणा होगी।
  • कोई ज्ञान उठा नहीं सकते हैं तो भागन्ती हो जाते हैं।
  • फिर नाम बदनाम होता है।
  • ड्रामा में कल्प पहले भी यह हुआ था।
  • जो सेकण्ड पास हुआ वह ड्रामा।
  • अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना, बीबी मरे तो भी हलुआ खाना.. कच्चे को थोड़ा झटका आता है।
  • बहुत संन्यासी भी ऐसे होते हैं, नहीं ठहर सकते हैं तो गृहस्थ में चले जाते हैं।
  • चलन ही ऐसी होती है।
  • यहाँ तो एक ही मुख्य बात है।
  • हम भी उस बाप से वर्सा ले रहे हैं, तुम भी उनको पिता समझते हो, आकर स्वर्ग का वर्सा ले लो।
  • एक ही बात है - सेकण्ड में जीवनमुक्ति, पिछाड़ी मे थोड़ा ही समझाने से मनुष्य झट समझ जायेंगे।
  • अनेक मत हैं, जिससे भारत भ्रष्ट बन गया है।
  • फिर एक की मत से आधाकल्प के लिए भारत श्रेष्ठाचारी बनता है।
  • श्रेष्ठ जरूर बाप ही बनायेंगे।
  • सबको पार ले जाने वाला एक ही बाप है तो जरूर कोई डुबोने वाले भी होंगे।
  • बाप तो सबको कहते हैं विकारों का संन्यास करना ही पड़ेगा तब ही तुम पवित्र दुनिया के मालिक बन सकेंगे।
  • बाबा वर्सा दे रहे हैं।
  • ढेर ब्रह्माकुमारियां हैं।
  • तुम भी बी.के. हो, वर्सा रूहानी बाप से मिलता है।
  • कितना सहज है।
  • परन्तु कोई की सिर्फ कथनी है, करनी नहीं तो कोई को तीर नहीं लगता है।
  • कथनी से भल और किसका भला हो जायेगा परन्तु खुद की करनी नहीं है तो गिर पड़ेगा।
  • जिनको ज्ञान देंगे वह चढ़ जायेगा, खुद गिर पड़ेगा।
  • ऐसे भी बहुत हैं, बाबा बच्चों को पूरा वर्सा विल कर देते हैं, अब तुम लायक बन स्वर्ग के मालिक बनो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) श्रेष्ठाचारी बनने के लिए अपनी सब खामियां निकाल सदा श्रीमत पर चलना है।
    • बुद्धि में ज्ञान रत्नों की धारणा देही-अभिमानी बनकर करनी है।
  • 2) अपनी कथनी और करनी एक करनी है।
    • ज्ञान की धारणा के लिए सबसे मोह निकाल एक बाप में ही मोह रखना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • बाप-दादा के साथ द्वारा माया को दूर से ही मूर्छित करने वाले मायाजीत, जगतजीत भव
  • जैसे बाप के स्नेही बने हो ऐसे बाप को साथी बनाओ तो माया दूर से ही मूर्छित हो जायेगी।
  • शुरू-शुरू का जो वायदा है तुम्हीं से खाऊं, तुम्हीं से बैठूं, तुम्हीं से रूह को रिझाऊं...इसी वायदे प्रमाण सारी दिनचर्या में हर कार्य बाप के साथ करो तो माया डिस्टर्ब कर नहीं सकती, उसका डिस्ट्रक्शन हो जायेगा।
  • तो साथी को सदा साथ रखो, साथ की शक्ति से वा मिलन में मगन रहने से मायाजीत, जगतजीत बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अपनी ऊंची वृत्ति से प्रवृत्ति की परिस्थितियों को चेंज करो।