07-12-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - दिलवाला बाप आया है तुम बच्चों की दिल लेने, इसलिए साफ दिल बनो''

प्रश्नः-

सतयुगी पद का मदार मुख्य किस बात पर है?

उत्तर:-

पवित्रता पर।

मुख्य है ही पवित्रता।

सेन्टर पर जो आते हैं उनको समझाना है, अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो नॉलेज बुद्धि में ठहर नहीं सकती।

योग सीखते-सीखते अगर पतित बन गये तो सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा।

अगर कोई पवित्र नहीं रह सकते तो भले क्लास में न आयें, परवाह नहीं करनी है।

जो जितना पढ़ेंगे, पवित्र बनेंगे उतना धनवान बनेंगे।

 

गीत:- आखिर वह दिन आया आज...


  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बच्चे जानते हैं कि अभी वह दिन फिर आया है।
  • कौन सा?
  • यह तो सिर्फ तुम बच्चे ही जानते हो कि भारत में फिर से स्वर्ग के आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है अर्थात् लक्ष्मी-नारायण का राज्य स्थापन हो रहा है।
  • तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।
  • जिस पतित-पावन बाप को हम पुकारते हैं वह आया हुआ है।
  • वही लिबरेटर, गाइड है अथवा दु:ख हर्ता सुख कर्ता है।
  • एक बार लिबरेट किया फिर फँसे कैसे!
  • यह किसको भी पता नहीं।
  • ऐसे पत्थरबुद्धि मनुष्यों को समझाने में कितनी मेहनत लगती है।
  • ड्युटी भी देखो कैसी रखी है?
  • मूत पलीती कपड़ों को आकर साफ करो।
  • आत्मा और शरीर दोनों पवित्र तो देवताओं के ही हैं।
  • रावणराज्य में शरीर तो किसका पवित्र हो न सकें।
  • शरीर तो पतित है ही।
  • इन सब बातों को कोई जानते ही नहीं।
  • करके आत्मा कुछ पवित्र है तो प्रभाव निकलता है परन्तु फिर भी पतित तो बनना ही है ना।
  • बेहद का बाप पतित-पावन आकर कहते हैं यह 5 विकार शैतान हैं, इनको छोड़ो।
  • अगर मेरी नहीं मानेंगे तो तुमको धर्मराज तंग करेंगे।
  • तुम आलमाइटी अथॉरिटी का कहना नहीं मानते हो तो धर्मराज बहुत कड़ी सज़ा देंगे।
  • बाप आया है पावन बनाने।
  • तुम जानते हो हम ही पावन देवी-देवता थे, अब हम पतित बने हैं।
  • तो अब फट से वह छोड़ देना चाहिए।
  • देह-अभिमान भी शैतान की मत है, वह भी छोड़ना पड़े।
  • पहले नम्बर का जो विकार है, वह भी छोड़ना पड़े।
  • वह दिन भी आयेगा जो बाप के साथ इस सभा में कोई पतित बैठ नहीं सकता, किसको भी एलाउ नहीं करेंगे।
  • मूत पलीती को निकालो बाहर।
  • इन्द्र सभा में आने नहीं देंगे।
  • फिर भल कोई कितना भी करोड़पति हो वा क्या हो, सभा में आ न सकें।
  • बाहर में भल उनको समझाया जाता है।
  • परन्तु बाप की सभा में एलाउ नहीं किया जाता है।
  • अभी एलाउ किया जाता है - भीती के लिए।
  • फिर नहीं।
  • अभी भी बाबा सुनते हैं कोई पतित आकर बैठे हैं तो बाबा को अच्छा नहीं लगता है।
  • ऐसे बहुत हैं जो छिपकर आकर बैठते हैं।
  • ऐसे-ऐसे को बहुत सजा खानी पड़ेगी।
  • मन्दिरों, टिकाणों में स्नान करके जाते हैं।
  • बिगर स्नान कोई जाते नहीं होंगे।
  • वह है स्थूल स्नान।
  • यह है ज्ञान स्नान।
  • इससे भी शुद्ध होना पड़े।
  • कोई मांसाहारी भी आ नहीं सकते।
  • जब समय आयेगा तो बाबा स्ट्रिक्ट हो जायेगा।
  • दुनिया में देखो भक्ति का कितना जोर है।
  • जो अधिक शास्त्र पढ़ते हैं वह शास्त्री का लकब लेते हैं।
  • तुम अब संस्कृत आदि सीखकर क्या करेंगे?
  • अब बाप तो कहते हैं कि सब कुछ भूल जाओ।
  • सिर्फ एक बाप को याद करो तो तुम पवित्र बन विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे।
  • जब इस बात को अच्छी रीति समझ जायेंगे तो यह शास्त्र आदि सब भूल जायेंगे।
  • यह जो पढ़ाई पढ़कर बैरिस्टर आदि बनते हैं, उन सबसे ऊंच पढ़ाई यह है, जो परमात्मा नॉलेजफुल आकर पढ़ाते हैं।
  • उनको कहते भी हैं पतित-पावन आओ।
  • परन्तु यह नहीं जानते कि हम पतित हैं।
  • बाबा तो यह समझाते रहते हैं - सतयुग को कहते हैं रामराज्य, कलियुग को कहते हैं रावण राज्य।
  • इस समय सब पतित हैं, पावन देवी देवतायें तो मन्दिरों में पूजे जाते हैं और उनके आगे पतित जाकर माथा टेकते हैं।
  • इससे सिद्ध हुआ कि वह पवित्रता में सबसे ऊंचे हैं।
  • संन्यासियों से भी ऊंचे हैं।
  • संन्यासियों का मन्दिर थोड़ेही बनता है।
  • अब जब तमोप्रधान भक्ति में चले गये हैं तब फिर उनका चित्र रखते हैं।
  • उसको कहा जाता है तमोप्रधान भक्ति।
  • मनुष्यों की पूजा, 5 तत्वों की पूजा।
  • जब सतोप्रधान भक्ति थी तो एक की पूजा होती थी।
  • उसको कहा जाता है अव्यभिचारी भक्ति।
  • देवताओं को भी ऐसा उसने ही बनाया है।
  • तो पूजा भी होनी चाहिए एक की।
  • परन्तु यह भी ड्रामा बना हुआ है।
  • सतोप्रधान सतो रजो तमो में आना ही है।
  • यहाँ भी ऐसे है।
  • कोई सतोप्रधान बन जाते हैं, कोई सतो, कोई रजो, कोई तमो।
  • सतयुग में फर्स्टक्लास सफाई रहती है।
  • वहाँ शरीर का तो कोई मूल्य रहता नहीं।
  • बिजली पर रखा और खलास।
  • ऐसे नहीं हड्डियां कोई नदी आदि में डालेंगे।
  • ऐसे भी नहीं शरीर को कहाँ उठाकर ले जायेंगे।
  • यह तकलीफ की बात होती नहीं।
  • बिजली में डाला, खलास।
  • यहाँ शरीर के पिछाड़ी कितना मनुष्य रोते हैं।
  • याद करते हैं।
  • ब्राह्मण खिलाते हैं।
  • वहाँ यह कोई भी बात नहीं होगी।
  • बुद्धि से काम लेना होता है।
  • वहाँ क्या-क्या होगा।
  • स्वर्ग तो फिर क्या!
  • यह है ही नर्क, झूठ खण्ड।
  • तब गाया हुआ है झूठी काया, झूठी माया... गवर्मेन्ट कहती है गऊ कोस बन्द करो।
  • उन्हों को लिखना चाहिए - पहला यह कोस है बड़ा भारी।
  • एक दो पर काम कटारी चलाना, यह कोस बन्द करो।
  • यह काम महाशत्रु है।
  • आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं, उस पर जीत पहनो।
  • तुम पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
  • वहाँ देवताओं का न्यु ब्लड है।
  • वह कहते हैं - बच्चों का न्यु ब्लड है।
  • परन्तु यहाँ नया ब्लड कहाँ से आया!
  • यहाँ पुराना ब्लड है।
  • सतयुग में जब नया शरीर मिलेगा तब नया ब्लड भी होगा।
  • यह शरीर भी पुराना तो ब्लड भी पुराना।
  • अब इनको छोड़ना है और पावन बनना है।
  • सो तो बाप के सिवाए कोई बना न सके।
  • सबका धर्म अलग-अलग है।
  • और हर एक को अपने धर्म का शास्त्र पढ़ना है।
  • संस्कृत में मुख्य है गीता।
  • बाबा कहते हैं मैं संस्कृत थोड़ेही सिखाता हूँ।
  • जो भाषा यह ब्रह्मा जानता है, मैं उसमें ही समझाऊंगा।
  • मैं अगर संस्कृत में सुनाऊं तो यह बच्चे कैसे समझें।
  • यह कोई देवताओं की भाषा नहीं है।
  • कभी-कभी बच्चियां आकर वहाँ की भाषा बतलाती हैं।
  • यह भाषायें सीखने से शरीर निर्वाह अर्थ कोई लाख, कोई करोड़ कमाते हैं।
  • यहाँ तुम कितनी कमाई कर रहे हो।
  • तुम जानते हो सतयुग में हम महाराजा महारानी बनेंगे।
  • जितना जास्ती पढ़ेंगे उतना जास्ती धनवान बनेंगे।
  • गरीब और साहूकार में फ़र्क तो रहता है ना।
  • सारा मदार है पवित्रता पर।
  • सेन्टर पर जो आते हैं उनको समझाना है अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो नॉलेज बुद्धि में ठहरेगी नहीं।
  • 5-7 रोज़ आकर फिर पतित बने तो नॉलेज खत्म।
  • योग सीखते-सीखते अगर पतित बने तो सब कुछ मिट्टी में मिल जायेगा।
  • अगर कोई पवित्र नहीं बन सकता है तो भले न आओ।
  • परवाह थोड़ेही रखनी चाहिए।
  • जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझा सिर पर है।
  • सो बिगर याद के कैसे उतरेगा!
  • गाया भी हुआ है - सेकेण्ड में जीवन मुक्ति।
  • जो बाप कहे सो करना है।
  • सारी दुनिया बुलाती तो है हे पतित-पावन आओ, हम पतित हैं परन्तु पावन कोई बनते ही नहीं हैं।
  • तो वापिस भी कोई जा नहीं सकते।
  • वे लोग ब्रह्म को परमात्मा समझ याद करते हैं।
  • यह ज्ञान ही किसको नहीं तो परमात्मा क्या है?
  • ब्रह्म कोई परमात्मा नहीं है।
  • न ब्रह्म में कोई लीन हो सकता है।
  • फिर भी पुनर्जन्म में तो सबको आना ही है क्योंकि आत्मा अविनाशी है।
  • वह समझते हैं बुद्ध वापिस चला गया।
  • परन्तु उसने जो स्थापना की तो जरूर पालना भी करेंगे।
  • नहीं तो पालना तब कौन करेंगे।
  • वह वापिस कैसे जा सकते हैं।
  • तुम ऐसे थोड़ेही कहते हो कि हम मुक्ति में जाकर बैठ जायें।
  • तुम जानते हो हम अपना धर्म स्थापन कर रहे हैं फिर पालना भी करेंगे।
  • वह पावन धर्म था, अब पतित बन पड़े हैं।
  • आयेंगे भी वही जो इस धर्म के होंगे।
  • यह कलम लग रहा है।
  • सबसे मीठे ते मीठा झाड़ है यह देवी-देवता धर्म का।
  • इसकी स्थापना का कार्य हो रहा है।
  • शास्त्र आदि जो भी बनाये हैं, सब हैं भक्ति मार्ग के लिए।
  • एक बाबा का ही गायन है जो आकर मनुष्य से देवता बनाते हैं।
  • तो ऐसे बनाने वाले बाप को कितना अच्छी रीति याद करना चाहिए।
  • यह भी जानते हैं ड्रामा अनुसार भक्ति मार्ग को भी चलना ही है।
  • वास्तव में सर्व का सद्गति-दाता एक है, तो पूजा भी एक की करनी चाहिए।
  • देवी-देवता जो सतोप्रधान थे वह 84 जन्म भोगकर तमोप्रधान बने हैं।
  • अब फिर सतोप्रधान बनना है।
  • सो सिवाए बाबा की याद के बन न सकें।
  • न किसी में बनाने की ताकत है सिवाए बाप के।
  • याद भी एक को ही करना है।
  • यह है अव्यभिचारी याद।
  • अनेकों को याद करना - यह है व्यभिचारीपना।
  • सबकी आत्मा जानती है कि शिव हमारा बाबा है इसलिए सब तरफ जहाँ भी देखो शिव को पूजते हैं।
  • देवी-देवताओं के आगे भी शिव को रखा है।
  • वास्तव में देवतायें तो पूजा करते नहीं हैं।
  • गायन भी है - दु:ख में सिमरण सब करें, सुख में करे न कोई।
  • फिर देवतायें पूजा कैसे करेंगे!
  • वह है रांग।
  • झूठी महिमा थोड़ेही दिखानी चाहिए।
  • शिवबाबा को जानते ही कहाँ हैं जो याद करें।
  • तो वह चित्र उठा देना चाहिए।
  • बाकी पूजा करने वाले सिंगल ताज वाले दिखाने चाहिए।
  • साधू-सन्त किसको भी लाइट का ताज नहीं है इसलिए ब्राह्मणों को भी लाइट का ताज नहीं दिखा सकते हैं।
  • जिनका ज्ञान तरफ पूरा ध्यान होगा वह करेक्शन भी करते रहेंगे।
  • अभुल तो कोई बना नहीं है।
  • भूलें होती ही रहती हैं।
  • त्रिमूर्ति का चित्र कितना अच्छा है।
  • यह बाप यह दादा।
  • बाबा कहते हैं - तुम मुझे याद करो तो यह बन जायेंगे।
  • देही-अभिमानी बनना है।
  • आत्मा कहती है मेरा सिवाए एक बाप के और किसी में ममत्व नहीं है।
  • हम यहाँ रहते भी शान्तिधाम और सुखधाम को याद करते हैं।
  • अभी दु:खधाम को छोड़ना है।
  • परन्तु जब तक हमारा नया घर तैयार हो जाए तब तक पुराने घर में रहना है।
  • नये घर में जाने लायक बनना है।
  • आत्मा पवित्र बन जायेगी तो फिर घर चली जायेगी।
  • कितना सहज है।
  • मूल बात है ही यह समझने की कि परमात्मा कौन है और यह दादा कौन है?
  • बाप इन द्वारा वर्सा देते हैं।
  • बाबा कहते हैं बच्चे मनमनाभव।
  • मुझे याद करो तो तुम पावन देवता बन जायेंगे सतयुग में।
  • बाकी सब उस समय मुक्तिधाम में रहते हैं।
  • सभी आत्माओं को शान्तिधाम में ले जाने वाला बाप ही है।
  • है कितना सहज।
  • बच्चों को बहुत खुशी होनी चाहिए।
  • दिल बड़ी साफ होनी चाहिए।
  • कहा जाता - दिल साफ तो मुराद हॉसिल।
  • दिल आत्मा में है।
  • सच्चा दिलवर आत्माओं का बाप है।
  • दिल लेने वाला दिलवाला बाप को कहा जाता है।
  • वह आते ही हैं सबकी दिल लेने के लिए।
  • सभी की संगम पर आकर दिल लेते हैं।
  • आत्माओं की दिल लेने वाला परमात्मा।
  • मनुष्यों की दिल लेने वाले मनुष्य।
  • रावण राज्य में सब एक दो की दिल को खराब करने वाले हैं।
  • तुम बच्चों को कल्प पहले भी इस त्रिमूर्ति के चित्र पर समझाया है तब तो अभी भी निकला है ना।
  • तो जरूर समझाना पड़ेगा।
  • अभी कितने चित्र निकले हैं समझाने के लिए।
  • सीढ़ी कितनी अच्छी है।
  • फिर भी समझते नहीं।
  • अरे भारतवासी तुमने ही 84 जन्म लिये हैं।
  • यह अभी अन्तिम जन्म है।
  • हम तो शुभ बोलते हैं।
  • तुम ऐसे क्यों कहते हो कि हमने 84 जन्म नहीं लिये हैं।
  • तो तुम स्वर्ग में आयेंगे नहीं।
  • फिर भी नर्क में आयेंगे।
  • स्वर्ग में आने चाहते ही नहीं हैं।
  • भारत ही स्वर्ग बनना है।
  • यह तो हिसाब है समझने का।
  • महारथी अच्छी तरह समझा सकते हैं।
  • सर्विस करने का हुल्लास रखना चाहिए।
  • हम जाकर किसको दान दें।
  • धन होगा ही नहीं तो दान देने का ख्याल भी नहीं आयेगा।
  • पहले पूछना चाहिए कि क्या आश रखकर आये हो?
  • दर्शन की यहाँ बात नहीं।
  • बेहद बाप से बेहद का सुख लेना है।
  • दो बाप हैं ना।
  • बेहद के बाप को सब याद करते हैं।
  • बेहद के बाप से बेहद का वर्सा कैसे मिलता है सो आकर समझो।
  • यह भी समझने वाले ही समझेंगे।
  • राजाई लेने वाला होगा तो फट समझ जायेगा।
  • यह तो बाप कहते हैं घर बैठे, काम काज करते सिर्फ बाबा को याद करो तो याद करने से ही पाप मिट जायेंगे।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कभी भी एक दो की दिल खराब नहीं करनी है।
    • सर्विस करने का हुल्लास रखना है।
    • ज्ञान धन है तो दान जरूर करना है।
  • 2) नये घर में चलने के लिए स्वयं को लायक बनाना है।
    • आत्मा को याद के बल से पावन बनाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • स्व-स्थिति द्वारा सर्व परिस्थितियों को पार करने वाले निराकारी, अलंकारी भव
  • जो अलंकारी हैं वे कभी देह-अहंकारी नहीं बन सकते।
  • निराकारी और अलंकारी रहना - यही है मन्मनाभव, मध्याजीभव।
  • जब ऐसी स्व-स्थिति में सदा स्थित रहते तो सर्व परिस्थितियों को सहज ही पार कर लेते, इससे अनेक पुराने स्वभाव समाप्त हो जाते हैं।
  • स्व में आत्मा का भाव देखने से भाव-स्वभाव की बातें समाप्त हो जाती हैं और सामना करने की सर्व शक्तियां स्वयं में आ जाती हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • संकल्प का एक कदम आपका तो सहयोग के हज़ार कदम बाप के।