28-11-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति 01.12.89 "बापदादा" मधुबन

स्वमान से ही सम्मान की प्राप्ति


  • आज बापदादा चारों ओर के स्वमानधारी बच्चों को देख रहे हैं।
  • स्वमानधारी बच्चों का ही सारा कल्प सम्मान होता है।
  • एक जन्म स्वमानधारी, सारा कल्प सम्मानधारी।
  • अपने राज्य में भी राज्य-अधिकारी बनने के कारण प्रजा द्वारा सम्मान प्राप्त होता है और आधा कल्प भक्तों द्वारा सम्मान प्राप्त करते हो।
  • अब अपने लास्ट जन्म में भी भक्तों द्वारा देव आत्मा वा शक्ति रूप का सम्मान देख रहे हो और सुन रहे हो।
  • कितना सिक व प्रेम से अभी भी सम्मान दे रहे हैं!
  • इतना श्रेष्ठ भाग्य कैसे प्राप्त किया!
  • मुख्य सिर्फ एक बात के त्याग का यह भाग्य है।
  • कौनसा त्याग किया?
  • देह अभिमान का त्याग किया क्योंकि देह अभिमान के त्याग बिना स्वमान में स्थित हो ही नहीं सकते।
  • इस त्याग के रिटर्न में भाग्य-विधाता भगवान ने यह भाग्य का वरदान दिया है।
  • दूसरी बात - स्वयं बाप ने आप बच्चों को स्वमान दिया है।
  • बाप ने बच्चों को चरणों के दास वा दासी से अपने सिर का ताज बना दिया।
  • कितना बड़ा स्वमान दिया!
  • ऐसे स्वमान प्राप्त करने वाले बच्चों का बाप भी सम्मान रखते हैं।
  • बाप बच्चों को सदा अपने से भी आगे रखते हैं।
  • सदा बच्चों के गुणों का गायन करते हैं।
  • हर रोज़ सिक व प्रेम से यादप्यार देने के लिए परमधाम से साकार वतन में आते हैं।
  • वहाँ से भेजते नहीं लेकिन आकर देते हैं।
  • रोज़ यादप्यार मिलता है ना।
  • इतना श्रेष्ठ सम्मान और कोई दे नहीं सकता।
  • स्वयं बाप ने सम्मान दिया है, इसलिए अविनाशी सम्मान अधिकारी बने हो।
  • ऐसी श्रेष्ठता का अनुभव करते हो?
  • स्वमान और सम्मान - दोनों का आपस में सम्बन्ध है।
  • स्वमानधारी अपने प्राप्त हुए स्वमान में रहते हुए स्वमान के सम्मान में भी रहता और दूसरों को भी सम्मान से देखता, बोलता वा सम्पर्क में आता है।
  • स्व-सम्मान का अर्थ ही है स्व को सम्मान देना।
  • जैसे बाप विश्व की सर्व आत्माओं द्वारा सम्मान प्राप्त करने वाले हैं, हर एक सम्मान देते।
  • लेकिन जितना ही बाप को सम्मान मिलता है उतना ही सब बच्चों को सम्मान देते हैं।
  • जो देता नहीं है तो देवता बनता नहीं।
  • अनेक जन्म देवता बनते हो और अनेक जन्म देवता रूप का ही पूजन होता है।
  • एक जन्म ब्राह्मण बनते हो लेकिन अनेक जन्म देवता रूप में राज्य करते वा पूज्य बनते हो।
  • देवता अर्थात् देने वाला।
  • अगर इस जन्म में सम्मान नहीं दिया तो देवता कैसे बनेंगे, अनेक जन्मों में सम्मान कैसे प्राप्त करेंगे?
  • फालो फॉदर।
  • साकार स्वरूप ब्रह्मा बाप को देखा - सदा स्वयं को वर्ल्ड सर्वेन्ट (विश्व-सेवाधारी) कहलाया, बच्चों का सर्वेन्ट कहलाया और बच्चों को मालिक बनाया।
  • सदा मालेकम् सलाम किया।
  • सदा छोटे बच्चों को भी सम्मान का स्नेह दिया, होवनहार विश्वकल्याणकारी रूप से देखा।
  • कुमारियों वा कुमारों को, युवा स्थिति वालों को सदा विश्व की नामीग्रामी महान् आत्माओं को चैलेंज करने वाले, असम्भव को सम्भव करने वाले, महात्माओं के सिर झुकाने वाले - ऐसे पवित्र आत्माओं के सम्मान से देखा।
  • सदा अपने से भी कमाल करने वाले महान आत्मा समझ सम्मान दिया ना!
  • ऐसे ही बुजुर्ग-आत्माओं को सदा अनुभवी आत्मा, हमजिन्स आत्मा के सम्मान से देखा।
  • बांधेले बांधेलियों को निरन्तर याद में नम्बरवन के सम्मान से देखा इसलिए नम्बरवन अविनाशी सम्मान के अधिकारी बने।
  • राज्य सम्मान में भी नम्बरवन - विश्व-महाराजन और पूज्य रूप में भी बाप की पूजा के बाद पहले पूज्य - लक्ष्मी-नारायण ही बनते हैं।
  • तो राज्य सम्मान और पूज्य सम्मान - दोनों में नम्बर-वन हो गये क्योंकि सर्व को स्वमान, सम्मान दिया।
  • ऐसे नहीं सोचा - सम्मान देवे तो सम्मान दूँ।
  • सम्मान देने वाले निंदक को भी अपना मित्र समझते।
  • सिर्फ सम्मान देने वाले को अपना नहीं समझते लेकिन गाली देने वाले को भी अपना समझते क्योंकि सारी दुनिया ही अपना परिवार है।
  • सर्व आत्माओं का तना आप ब्राह्मण हो।
  • यह सारी शाखायें अर्थात् भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें भी मूल तना से निकली हैं।
  • तो सभी अपने हुए ना।
  • ऐसे स्वमानधारी सदा अपने को मास्टर रचयिता समझ सर्व के प्रति सम्मान-दाता बनते हैं।
  • सदा अपने को आदि देव ब्रह्मा के आदि रत्न आदि पार्टधारी आत्मायें समझते हो?
  • इतना नशा है?
  • तो सभी ने सुना - बच्चों का सम्मान क्या है, बूढ़ों का सम्मान क्या है, युवा का क्या है?
  • आदि पिता ब्रह्मा ने हमको ऐसे सम्मान से देखा।
  • कितना नशा होगा!
  • तो सदा यह स्मृति रखो कि आदि आत्मा ने जिस श्रेष्ठ दृष्टि से देखा, ऐसी ही श्रेष्ठ स्थिति की सृष्टि में रहेंगे।
  • ऐसे अपने से वायदा करो।
  • वायदे तो करते रहते हो ना!
  • बोल से भी वायदा करते हो, मन से भी करते हो और लिखकर भी करते हो और फिर भूल भी जाते हो इसलिए वायदे का फायदा नहीं उठा पाते।
  • याद रखो तो फायदा भी उठाओ।
  • सभी अपने को चेक करो - कितने बार वायदा किया है और निभाया कितने बार है?
  • निभाना आता है वा सिर्फ वायदा करना आता है?
  • वा बदलते रहते हो - कभी वायदा करने वाले, कभी निभाने वाले?
  • टीचर्स क्या समझती हैं?
  • निभाने वालों की लिस्ट में हो ना।
  • टीचर्स को बापदादा सदा साथी शिक्षक कहते हैं।
  • तो साथी की विशेषता क्या होती है?
  • साथी समान होता है।
  • बाप कभी बदलता है क्या?
  • टीचर्स भी वायदा और फायदा - दोनों का बैलेंस रखने वाली हैं।
  • वायदे बहुत और फायदा कम हो - यह बैलेंस नहीं होता।
  • जो दोनों का बैलेंस रखते हैं उसको वरदाता बाप द्वारा यह वरदान वा ब्लैसिंग मिलती है।
  • वह सदा दृढ़ संकल्प से कर्म में सफलतामूर्त बनते हैं।
  • साथी शिक्षक का यही विशेष कर्म है।
  • संकल्प और कर्म समान हों।
  • संकल्प श्रेष्ठ और कर्म साधारण हो जाएं - इसको समानता नहीं कहेंगे।
  • तो सदा टीचर्स अपने को “साथी शिक्षक'' अर्थात् “शिक्षक बाप समान'' समझ - इस स्मृति में समर्थ बन चलो।
  • बापदादा को टीचर्स की हिम्मत पर खुशी होती है।
  • हिम्मत रख सेवा के निमित्त तो बन गये हैं ना।
  • लेकिन अभी सदा यह स्लोगन याद रखो - “हिम्मते टीचर, समान शिक्षक बाप''।
  • यह कभी नहीं भूलना।
  • तो स्वत: ही समान बनने वाला लक्ष्य - “बापदादा'' आपके सामने रहेगा अर्थात् साथ रहेगा।
  • अच्छा! चारों ओर के स्वमानधारी सो सम्मानधारी बच्चों को बापदादा नयनों के सम्मुख देखते हुए सम्मान की दृष्टि से यादप्यार दे रहे हैं। सदा राज-सम्मान और पूज्य-सम्मान के समान साथी बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।
  • बिहार ग्रुप:-
  • सभी अपने को स्वराज्य अधिकारी समझते हो?
  • स्व का राज्य मिला है या मिलने वाला है?
  • स्वराज्य अर्थात् जब चाहो, जैसे चाहो वैसे कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म करा सको।
  • कर्मेन्द्रिय - जीत अर्थात् स्वराज्य अधिकारी।
  • ऐसे अधिकारी बने हो या कभी-कभी कर्मेन्द्रियां आपको चलाती हैं?
  • कभी मन आपको चलाता है या आप मन को चलाते हो?
  • कभी मन व्यर्थ संकल्प करता है या नहीं करता है?
  • अगर कभी-कभी करता है तो उस समय स्वराज्य अधिकारी कहेंगे?
  • राज्य बहुत बड़ी सत्ता है।
  • राज्य सत्ता चाहे जो कर सकती है, जैसे चलाने चाहे वैसे चला सकती है।
  • यह मन-बुद्धि-संस्कार आत्मा की शक्तियां हैं।
  • आत्मा इन तीनों की मालिक है।
  • यदि कभी संस्कार अपने तरफ खींच लें तो मालिक कहेंगे?
  • तो स्वराज्य-सत्ता अर्थात् कर्मेन्द्रिय-जीत।
  • जो कर्मेन्द्रिय-जीत है वही विश्व की राज्य-सत्ता प्राप्त कर सकता है।
  • स्वराज्य अधिकारी विश्व-राज्य अधिकारी बनता है।
  • तो आप ब्राह्मण आत्माओं का ही स्लोगन है कि स्वराज्य ब्राह्मण जीवन का जन्मसिद्ध अधिकार है।
  • स्वराज्य अधिकारी की स्थिति सदा मास्टर सर्वशक्तिमान है, कोई भी शक्ति की कमी नहीं।
  • स्वराज्य अधिकारी सदा धर्म अर्थात् धारणामूर्त भी होगा और राज्य अर्थात् शक्तिशाली भी होगा।
  • अभी राज्य में हलचल क्यों हैं?
  • क्योंकि धर्म-सत्ता अलग हो गई है और राज्य-सत्ता अलग हो गई है।
  • तो लंगड़ा हो गया ना!
  • एक सत्ता हुई ना इसलिए हलचल है।
  • ऐसे आप में भी अगर धर्म और राज्य - दोनों सत्ता नहीं हैं तो विघ्न आयेंगे, हलचल में लायेंगे, युद्ध करनी पड़ेगी।
  • और दोनों ही सत्ता हैं तो सदा ही बेपरवाह बादशाह रहेंगे, कोई विघ्न आ नहीं सकता।
  • तो ऐसे बेपरवाह बादशाह बने हो?
  • या थोड़ी-थोड़ी शरीर की, सम्बन्ध की .... परवाह रहती है?
  • पाण्डवों को कमाने की परवाह रहती है, परिवार को चलाने की परवाह रहती है या बेपरवाह रहते हैं?
  • चलाने वाला चला रहा है, कराने वाला करा रहा है - ऐसे निमित्त बनकर करने वाले बेपरवाह बादशाह होते हैं।
  • “मैं कर रहा हूँ'' - यह भान आया तो बेपरवाह नहीं रह सकते।
  • लेकिन बाप द्वारा निमित्त बना हुआ हूँ - यह स्मृति रहे तो बेफिकर वा निश्चिंत जीवन अनुभव करेंगे।
  • कोई चिंता नहीं।
  • कल क्या होगा - उसकी भी चिंता नहीं।
  • कभी यह थोड़ी-सी चिंता रहती है कि कल क्या होगा, कैसे होगा?
  • पता नहीं विनाश कब होगा, क्या होगा?
  • बच्चों का क्या होगा?
  • पोत्रों-धोत्रों का क्या होगा - यह चिंता रहती है?
  • बेपरवाह बादशाह को सदा ही यह निश्चय रहता है कि जो हो रहा है वह अच्छा, और जो होने वाला है वह और भी बहुत अच्छा होगा क्योंकि कराने वाला अच्छे-ते-अच्छा है ना!
  • इसको कहते हैं निश्चयबुद्धि विजयी।
  • ऐसे बने हो या सोच रहे हो?
  • बनना तो है ही ना!
  • इतनी बड़ी राजाई मिल जाए तो सोचने की क्या बात है?
  • अपना अधिकार कोई छोड़ता है?
  • झोपड़ी वाले भी होंगे, थोड़ी-सी मिलकियत भी होगी - तो भी नहीं छोड़ेंगे।
  • यह तो कितनी बड़ी प्राप्ति है!
  • तो मेरा अधिकार है - इस स्मृति से सदा अधिकारी बन उड़ते चलो।
  • यही वरदान याद रखना कि “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है''।
  • मेहनत करके पाने वाले नहीं, अधिकार है।
  • अच्छा! बिहार माना सदा बहार में रहने वाले।
  • पतझड़ में नहीं जाना।
  • कभी आंधी-तूफान न आये, सदा बहार। अच्छा!
  • 2. अपने को रूहानी दृष्टि से सृष्टि को बदलने वाला अनुभव करते हो?
  • सुनते थे कि दृष्टि से सृष्टि बदल जाती है लेकिन अभी अनुभवी बन गये।
  • रूहानी दृष्टि से सृष्टि बदल गई ना!
  • अभी आपके लिए बाप संसार है, तो सृष्टि बदल गई।
  • पहले की सृष्टि अर्थात् संसार और अभी के संसार में फ़र्क हो गया ना!
  • पहले संसार में बुद्धि भटकती थी और अभी बाप ही संसार हो गया।
  • तो बुद्धि का भटकना बंद हो गया, एकाग्र हो गई क्योंकि
    • पहले की जीवन में,
    • कभी देह के सम्बन्ध में,
    • कभी देह के पदार्थ में
      • - अनेकों में बुद्धि जाती थी।
  • अभी यह सब बदल गया।
  • अभी देह याद रहती या देही?
  • अगर देह में कभी बुद्धि जाती है तो रांग समझते हो ना!
  • फिर बदल लेते हो, देह के बजाय अपने को देही समझने का अभ्यास करते हो।
  • तो संसार बदल गया ना!
  • स्वयं भी बदल गये।
  • बाप ही संसार है या अभी संसार में कुछ रहा हुआ है?
  • विनाशी धन या विनाशी सम्बन्ध के तरफ बुद्धि तो नहीं जाती?
  • अभी मेरा रहा ही नहीं।
  • “मेरे पास बहुत धन है'' - यह संकल्प या स्वप्न में भी नहीं होगा क्योंकि सब बाप के हवाले कर दिया।
  • मेरे को तेरा बना लिया ना!
  • या मेरा, मेरा ही है और बाप का भी मेरा है, ऐसे तो नहीं समझते?
  • यह विनाशी तन, धन, पुराना मन, मेरा नहीं, बाप को दे दिया।
  • पहला-पहला परिवर्तन होने का संकल्प ही यह किया कि सब कुछ तेरा और तेरा कहने से ही फायदा है।
  • इसमें बाप का फायदा नहीं है, आपका फायदा है क्योंकि मेरा कहने से फंसते हो, तेरा कहने से न्यारे हो जाते हो।
  • मेरा कहने से बोझ वाले बन जाते हो और तेरा कहने से डबल लाइट “ट्रस्टी'' बन जाते हो।
  • तो क्या अच्छा है?
  • हल्का बनना अच्छा है या भारी बनना अच्छा है?
  • आजकल के जमाने में शरीर से भी कोई भारी होता है तो अच्छा नहीं लगता।
  • सभी अपने को हल्का करने का प्रयत्न करते हैं क्योंकि भारी होना माना नुकसान है और हल्का होने से फायदा है।
  • ऐसे ही मेरा-मेरा कहने से बुद्धि पर बोझ पड़ जाता है, तेरा-तेरा कहने से बुद्धि हल्की बन जाती है।
  • जब तक हल्के नहीं बने तब तक ऊंची स्थिति तक पहुंच नहीं सकते।
  • उड़ती कला ही आनंद की अनुभूति कराने वाली है।
  • हल्का रहने में ही मजा है।
  • अच्छा! जब बाप मिला तो माया उसके आगे क्या है?
  • माया है रुलाने वाली और बाप है वर्सा देने वाला, प्राप्ति कराने वाला।
  • सारे कल्प में ऐसी प्राप्ति कराने वाला बाप मिल नहीं सकता!
  • स्वर्ग में भी नहीं मिलेगा।
  • तो एक सेकण्ड भी भूलना नहीं चाहिए।
  • हद की प्राप्ति कराने वाला भी नहीं भूलता है तो बेहद की प्राप्ति कराने वाला भूल कैसे सकता!
  • तो सदा यही याद रखना कि ट्रस्टी हैं।
  • कभी भी अपने ऊपर बोझ नहीं रखना।
  • इससे सदा हंसते, गाते, उड़ते रहेंगे।
  • जीवन में और क्या चाहिए!
  • हंसना, गाना और उड़ना।
  • जब प्राप्ति होगी तब तो हंसेंगे ना।
  • नहीं तो रोयेंगे।
  • तो यह वरदान स्मृति में रखना कि हम हंसने-गाने और उड़ने वाले हैं, सदा ही बाप के संसार में रहने वाले हैं।
  • और कुछ है ही नहीं जहाँ बुद्धि जाए।
  • स्वप्न में भी रोना नहीं।
  • माया रुलाए तो भी नहीं रोना।
  • मन का भी रोना होता है, सिर्फ आंखों का रोना ही नहीं होता।
  • तो माया रुलाती है, बाप हंसाते हैं।
  • सदा बिहार माना खुश रहने वाले - खुशबहार।
  • और बंगाल माना सदा मीठा रहने वाले।
  • बंगाल में मिठाइयां अच्छी होती हैं ना, बहुत वैरायटी होती है।
  • तो जहाँ मधुरता है वहाँ ही पवित्रता है।
  • बिना पवित्रता के मधुरता आ नहीं सकती।
  • तो सदा मधुर रहने वाले और सदा खुशबहार रहने वाले।
  • अच्छा! टीचर्स भी खुशबहार को देख करके सदा-बहार में ही रहती हैं ना। अच्छा!
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • संगदोष से दूर रह सदा बाप की समीपता का भाग्य प्राप्त करने वाले पास विद आनर भव
  • यदि बाप के समीप रहना पसन्द है तो कभी कोई भी संगदोष से दूर रहना।
  • कई प्रकार के आकर्षण पेपर के रूप में आयेंगे लेकिन आकर्षित नहीं होना।
  • संगदोष कई प्रकार का होता है, व्यर्थ संकल्पों वा माया की आकर्षण के संकल्पों का संग, सम्बन्धियों का संग, वाणी का संग, अन्नदोष का संग, कर्म का संग...इन सब संगदोषों से अपने को बचाने वाले ही पास विद आनर बनते हैं।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • आप फरिश्ता बनो तो परिस्थितियों में बाप स्वयं आपकी छत्रछाया बन जायेंगे।