27-11-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - ज्ञान धन का दान करने के लिए विचार सागर मंथन करो, दान का शौक रखो तो मंथन चलता रहे''
|| ज्ञान-धन और उसका शौक ||

प्रश्नः-

ज्ञान मार्ग में सदा अपने को तन्दरूस्त रखने का साधन क्या है?

उत्तर:-

सदा अपने आपको तन्दरूस्त रखने के लिए बाबा द्वारा जो भी ज्ञान घास (मुरली) मिलती है, उसे खाकर फिर उगारना चाहिए अर्थात् मंथन करना चाहिए।

जिन बच्चों को मंथन करने की अर्थात् हज़म करने की आदत है, वह बीमार नहीं पड़ सकते।

सदा तन्दरूस्त वह है जिसमें विकारों की बीमारी नहीं।

 

गीत:- तू प्यार का सागर है...


  • ओम् शान्ति। बच्चों ने गीत सुना।
  • मनुष्य जो भी गीत आदि बनाते हैं, शास्त्र आदि सुनाते हैं, समझते कुछ भी नहीं हैं।
  • जो कुछ पढ़ते आये हैं उससे कोई का कल्याण नहीं हुआ है और ही अकल्याण होता आया है।
  • सर्व का कल्याणकारी एक ही ईश्वर है।
  • तुम समझते हो हमारा कल्याण करने वाला आया हुआ है।
  • कल्याण का रास्ता बता रहे हैं।
  • खास तुम भारतवासियों का, आम सारी दुनिया का कल्याण करने वाला एक बाप ही है।
  • सतयुग में सबका कल्याण था, तुम सब सुखधाम में थे और बाकी सब शान्तिधाम में थे।
  • यह बच्चों की बुद्धि में है परन्तु प्वाइंट खिसक जाती हैं, पूरी धारणा नहीं करते हैं।
  • अगर एक प्वाइंट पर विचार सागर मंथन करते रहें तो ऐसा न हो।
  • जानवरों में जितना अक्ल है, आजकल के मनुष्यों में उतना भी अक्ल नहीं।
  • जानवर (गऊ) घास खाते हैं तो उगारते रहते हैं।
  • तुमको भी भोजन मिलता है।
  • परन्तु तुम फिर सारा दिन उगारते नहीं हो। वह तो सारा दिन उगारते ही रहते हैं।
  • यह तुमको मिलता है ज्ञान घास। योग और ज्ञान।
  • इस पर दिन भर विचार सागर मंथन करते रहना चाहिए।
  • जिनको सर्विस का शौक नहीं, वह विचार सागर मंथन करके क्या करेंगे।
  • शौक नहीं तो करेंगे भी नहीं।
  • कोई-कोई को ज्ञान धन देने का शौक रहता है।
  • गऊशाला में मनुष्य जाकर गऊओं को घास आदि देते हैं। वह भी पुण्य समझते हैं।
  • बाप तुमको यह ज्ञान घास खिलाते हैं।
  • इस पर विचार सागर मंथन करते रहेंगे तो खुशी में रहेंगे और सर्विस का शौक भी होगा।
  • कोई लोटा भर लेते हैं अथवा बूँद लेते हैं, वह भी स्वर्ग में चले जायेंगे।
  • स्वर्ग के द्वार तो खुलने ही हैं।
  • यूँ तो ज्ञान सागर को हप करना है।
  • कोई तो सारा हप करते हैं, कोई तो बूँद लेते हैं फिर भी स्वर्ग में तो जायेंगे।
  • बाकी जितना-जितना धारणा करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
  • बाकी स्वर्ग में एक बूँद से भी चले जायेंगे।
  • मनुष्य मरते हैं तो उनको गंगा की एक बूँद देते हैं।
  • कोई-कोई घर में सदैव गंगा जल ही पीते हैं।
  • कितना पीते होंगे।
  • गंगा तो बहती रहती है।
  • उनको तो कोई हप कर न सके।
  • तुम्हारे लिये तो गाया हुआ है - सागर को हप कर लिया।
  • जो ज्ञान सागर के नजदीक आ जाते हैं, जास्ती सर्विस करते हैं वही विजय माला में पिरोये जाते हैं।
  • जितना-जितना जो हप करते हैं और दूसरों का कल्याण करते हैं वह पद भी पाते हैं, जितना धारणा करेंगे उतना खुशी भी होगी।
  • धनवान को खुशी होती है ना।
  • जिनके पास बहुत अथाह धन होता है, दान करते हैं, कालेज, धर्मशाला, मन्दिर आदि बनवाते हैं तो उन्हें इतनी खुशी भी रहती है।
  • यहाँ तो तुमको मिलते हैं अविनाशी ज्ञान र
  • त्न। 21 जन्मों के लिए अविनाशी खजाना।
  • जो अच्छी रीति धारण कर फिर दान भी करते हैं, उन्हें अच्छा पद मिलता है।
  • कोई-कोई बच्चे लिखते हैं - बाबा हमको दिल होती है नौकरी छोड़ इस रूहानी सर्विस में लग जायें।
  • प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी लेकर फिरते रहें।
  • एक बूँद भी कोई को मिलेगी तो कल्याण हो जायेगा।
  • सर्विस का बहुत शौक है।
  • बाकी हर एक की अवस्था को बाबा जानते हैं।
  • सर्विस के साथ फिर गुण भी चाहिए।
  • न क्रोध होना चाहिए, न कोई उल्टा-सुल्टा ख्याल आना चाहिए।
  • विकारों की कोई भी बीमारी न हो।
  • तन्दरुस्ती अच्छी चाहिए।
  • जिनमें विकार कम हैं, बाबा कहेंगे यह तन्दरुस्त हैं।
  • बाबा महिमा करेंगे ना।
  • गाया हुआ भी है - कौन-कौन अच्छे महारथी हैं।
  • उन्होंने फिर असुर और देवताओं की लड़ाई दिखाई है।
  • देवताओं की जीत हुई।
  • अब हमारी लड़ाई है 5 विकारों रूपी असुरों से।
  • और कोई किसम के मनुष्य असुर नहीं होते हैं, जिनमें आसुरी स्वभाव है, उनको ही असुर कहा जाता है।
  • नम्बरवन आसुरी स्वभाव है काम का, इसलिए संन्यासी भी इसे छोड़ भागते हैं।
  • इन आसुरी अवगुणों को छोड़ने में मेहनत लगती है।
  • रहना भी गृहस्थ में है परन्तु आसुरी स्वभाव छोड़ना है।
  • पवित्र बनने से मुक्ति जीवनमुक्ति मिलती है।
  • कितनी भारी प्राप्ति है।
  • वह तो घरबार छोड़ भाग जाते हैं, प्राप्ति कुछ है नहीं।
  • इन चित्रों में कितनी अच्छी-अच्छी बातें समझने की हैं।
  • वे लोग तो सिर्फ चित्रों का शो करते हैं।
  • सिर्फ चित्र देखने के लिए कितने जाते हैं।
  • फायदा कुछ भी नहीं।
  • यहाँ इन चित्रों में कितना ज्ञान है, इससे फायदा बहुत होता है।
  • इसमें आर्ट आदि की कोई बात नहीं।
  • न कोई बनाने वाले की होशियारी आदि है।
  • उन्हों के तो नाम चित्र पर लिखे हुये होते हैं।
  • आर्टिस्ट को भी इनाम मिलता है।
  • कई इतना समझते हैं हाँ बाप को तो जरूर याद करना चाहिए।
  • इतना कहा तो भी प्रजा बनी।
  • प्रजा तो अथाह बननी है।
  • मैं तो हूँ ज्ञान का सागर।
  • एक बूँद भी किसको मिलने से स्वर्ग में आ ही जायेंगे।
  • तुम समझते हो प्रदर्शनी, मेले से बहुतों का कल्याण होता है।
  • ईश्वर कल्याणकारी है ना।
  • तुम्हारा भी कल्याण हो रहा है।
  • परन्तु इसमें फिर अपना विचार सागर मंथन करता रहे।
  • स्मृति में लाता रहे तो बहुत फायदा होगा।
  • उल्टी-सुल्टी बातें तो एक कान से सुन दूसरे कान से निकाल देनी चाहिए।
  • बाप कहते हैं मैं तुमको बहुत अच्छी बातें सुनाता हूँ।
  • नम्बरवन मुख्य बात एक ही है - कोई को भी बाप का परिचय दो।
  • बस एक बाप को याद करो, वही सब कुछ है।
  • भक्ति मार्ग में बहुत ऐसे होते हैं।
  • बोलो, आप तो यह बहुत अच्छा करते हो।
  • अंगुली से इशारा करते हैं।
  • सब कुछ परमात्मा कराते हैं।
  • वह सबका कल्याणकारी ऊपर में रहते हैं।
  • रहती तो तुम आत्मायें भी वहाँ ही हो।
  • यह सारी ज्ञान की बातें तुम अभी समझते हो।
  • बाप कहते हैं बच्चे, अभी तुम्हारा यह कपड़ा (शरीर) सड़ गया है।
  • सतयुग त्रेता में कितना अच्छा वस्त्र था।
  • अब सड़ा हुआ वस्त्र कहाँ तक पहनेंगे।
  • परन्तु यह कोई भी समझते नहीं हैं।
  • बाप आकर जब समझाये तब समझें।
  • अभी तुम बच्चे समझते हो - ज्ञान देने वाला है ही एक बाप। वह है सागर।
  • जो सागर हप कर लेते हैं - वही विजय माला के दाने बन जाते हैं।
  • वो सदैव सर्विस पर ही तत्पर रहते हैं।
  • बाबा आये ही हैं बच्चों को पावन बनाने, पावन बनकर फिर वापस जाना है।
  • जहाँ से आये हैं फिर वहाँ ही जायेंगे नम्बरवार।
  • आगे पीछे नहीं जा सकते हैं।
  • नाटक में एक्टर्स का एक्ट टाइम पर होता है ना।
  • इसमें भी जो एक्टर्स हैं वह नम्बरवार अपने-अपने समय पर आते जायेंगे।
  • यह बेहद का नाटक बना हुआ है।
  • ब्रह्म में हम आत्मायें बिन्दी रहती हैं।
  • वहाँ और कुछ क्या होगा।
  • कहाँ एक आत्मा बिन्दी, कहाँ इतना बड़ा शरीर।
  • आत्मा कितनी थोड़ी जगह लेगी।
  • ब्रह्म महतत्व कितना बड़ा है।
  • जैसे पोलार का इन्ड नहीं, वैसे ब्रह्म मह-तत्व की भी इन्ड नहीं होती है।
  • कितनी कोशिश करते हैं अन्त पाने की, परन्तु पा नहीं सकते, कितना माथा मारते रहते हैं।
  • परन्तु कोई चीज़ ही नहीं जिसको पकड़े या पार जायें।
  • साइंस का घमण्ड कितना है।
  • कुछ भी फायदा नहीं।
  • सुना है ना - आकाश ही आकाश, पाताल ही पाताल।
  • समझते हैं मून में दुनिया होगी।
  • वह भी ड्रामा में उन्हों का पार्ट है।
  • फायदा कुछ नहीं।
  • बाप तो आकर हमको विश्व का मालिक बनाते हैं। कितना फायदा है।
  • बाकी मून में जाओ, छू मन्त्र से भभूत आदि निकालो... इससे फायदा क्या।
  • अब तो हम बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेते हैं।
  • कल्प-कल्प लेते आये हैं।
  • वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है।
  • यह चक्र फिरता रहता है।
  • दुनिया में पहले सिर्फ भारत ही था।
  • भारतवासी ही विश्व के मालिक थे।
  • वहाँ देवताओं को कोई खण्ड का मालूम नहीं रहता।
  • यह तो बाद में वृद्धि को पाते हैं।
  • नये-नये धर्म स्थापक आकर अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं।
  • बाकी वह कोई सद्गति तो नहीं करते हैं, सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं।
  • उनका क्या गायन होगा!
  • मुक्तिधाम से आते हैं पार्ट बजाने।
  • मनुष्य कहते हैं मोक्ष में बैठे रहें।
  • इस आवागमन के चक्र में आये ही क्यों!
  • परन्तु इसमें तो आना ही है।
  • पुनर्जन्म लेना ही है, फिर वापिस जाना है।
  • यह बना-बनाया ड्रामा का चक्र है।
  • लाखों वर्ष का ड्रामा तो कोई होता ही नहीं।
  • यह तो नेचुरल अनादि ड्रामा है, इसको कहा जाता है ईश्वरीय कुदरत।
  • रचता और रचना की जो कुदरत है - उसको जानना होता है।
  • ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो बैठकर पुरुषार्थ करे - सृष्टि चक्र को जानने का।
  • यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, यह ख्याल करना आयेगा ही नहीं।
  • सबसे पुराने से पुराना चित्र है शिवलिंग का।
  • खुदा आया हुआ है फिर उसका यादगार बनाते हैं।
  • पहले जब शिव की पूजा शुरू होती है तो हीरे का लिंग बनाते हैं।
  • फिर जब भक्ति रजो तमो हो जाती है तो पत्थर का भी बनाते हैं।
  • शिवबाबा तो हीरों का नहीं है।
  • वह तो एक बिन्दी है, पूजा के लिए बड़ा बनाते हैं।
  • समझते हैं हम हीरे का शिवलिंग बनायें।
  • सोमनाथ के इतने बड़े मन्दिर में एक बिन्दी रखें तो समझ में भी न आये।
  • बाप समझाते हैं - भक्ति मार्ग में क्या-क्या होता है।
  • साइंस वाले इनवेन्शन करते रहते हैं।
  • अच्छी-अच्छी चीज़ें निकालते रहते हैं।
  • विनाश के लिए भी निकालते रहते हैं।
  • आगे बिजली थोड़ेही थी।
  • मिट्टी का दीपक जलाते थे।
  • बाप समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चे थोड़े में राज़ी मत हो जाओ।
  • अच्छी रीति धारण कर सागर को हप करो।
  • जो अच्छी सर्विस करेंगे तो पद भी अच्छा पायेंगे।
  • सारा दिन खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए।
  • यह तो छी-छी दुनिया है।
  • अब यहाँ से जायेंगे।
  • पुरानी दुनिया तो खत्म होनी ही है।
  • तैयारियाँ हो रही हैं।
  • बाकी थोड़े दिन हैं, इसमें भी कितनी सर्विस करनी है।
  • सारे भारत में तो क्या विलायत में भी सब तरफ चक्र लगाना है।
  • अखबारों द्वारा विलायत के कोने-कोने तक भी पता लग जाना है।
  • इस सीढ़ी आदि से झट समझ जायेंगे।
  • बाप आता ही है बच्चों को फिर से स्वर्गवासी बनाने।
  • बरोबर लक्ष्मी-नारायण भारत में ही राज्य करके गये हैं।
  • महिमा तो बहुत करते हैं कि भारत प्राचीन देश है।
  • बहुत महिमा करते हैं भारत ऐसा था, भारत में ऐसी पवित्र देवियाँ थी।
  • तुम जानते हो हम बाप से 21 जन्मों की प्रालब्ध पाते हैं।
  • बाप बिल्कुल सिम्पुल पढ़ाते हैं।
  • दिखाते हैं द्रोपदी के पाँव दबाये, वह भी कुछ है नहीं।
  • यह तो बाबा कहते हैं बच्चे भक्ति मार्ग में धक्के खाकर थक गये हैं।
  • अब हम तुम्हारी थक दूर करते हैं, तुम धक्के खा-खा कर पतित बन पड़े हो।
  • बाप कहते हैं - मैं तुम्हारी थक दूर कर रहा हूँ।
  • फिर कभी दु:ख नहीं देखेंगे।
  • जरा भी दु:ख का नाम नहीं होगा।
  • बाकी पुरुषार्थ कर ऊंच पद पाना है।
  • अच्छा पद पायेंगे तो कहेंगे ना - इसने पास्ट जन्म में अच्छे कर्म किये हैं।
  • गायन तो होता है ना।
  • परन्तु कोई जानते नहीं हैं कि इन्होंने कब पुरुषार्थ कर यह पद पाया!
  • अभी बाप तुमको ऐसे कर्म सिखलाते हैं।
  • तुमको भी कहते हैं अच्छे कर्म कर ऊंच पद पाओ।
  • यहाँ मनुष्य के कर्म विकर्म होते हैं।
  • वहाँ तो है ही स्वर्ग।
  • कर्म अकर्म होते हैं।
  • वहाँ यह ज्ञान रहता नहीं है।
  • बाप कहते हैं - कर्मो की गति मैं जानता हूँ।
  • इस समय जो अच्छा कर्म करेंगे वह फल भी अच्छा पायेंगे।
  • यह कर्मक्षेत्र है।
  • कोई बहुत अच्छे कर्म करते हैं।
  • कोई हैं जिन्हें सर्विस की ही तात लगी रहती है।
  • पूछते हैं बाबा हमारे में कोई खामी है क्या?
  • नहीं, सर्विस तो जितनी कर सकेंगे उतनी करेंगे।
  • सर्विस वृद्धि को पाती रहेगी।
  • सर्विस करने वाले भी निकलते जायेंगे।
  • दिल में आथत है - बाकी थोड़े रोज़ हैं।
  • अब ऐसा पुरुषार्थ करें जो वहाँ भी ऊंच पद पायें।
  • बाबा यह ज्ञान घास खिलाते हैं, कहते हैं उगारते रहो तो धारणा पक्की हो जाए।
  • खुशी का पारा भी चढ़े।
  • बहुत सर्विस करनी है, बहुतों को पैगाम देना है।
  • तुम पैगम्बर के बच्चे पैगम्बर हो।
  • एक दिन बड़े अखबारों में भी तुम्हारे चित्र पड़ेंगे।
  • विलायत तक तो अखबारें जाती हैं ना।
  • चित्रों से समझ जायेंगे, यह नॉलेज तो गॉड फादर की है।
  • बाकी मेहनत है मन्मनाभव होने की।
  • वह भारतवासी ही मेहनत करते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप जो अच्छी-अच्छी बातें सुनाते हैं, उन पर विचार सागर मंथन कर बहुतों का कल्याणकारी बनना है।
    • उल्टी-सुल्टी बातें एक कान से सुन दूसरे से निकाल देनी हैं।
  • 2) कोई भी आसुरी स्वभाव है तो उसे छोड़ना है।
    • बाप जो ज्ञान घास खिलाते हैं, उसे उगारते रहना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • सदा अपने पवित्र स्वरूप में स्थित रह गुण रूपी मोती चुगने वाले होलीहंस भव
  • आप होली हसों का स्वरूप है पवित्र और कर्तव्य है सदैव गुणों रूपी मोती चुगना।
  • अवगुण रूपी कंकड कभी भी बुद्धि में स्वीकार न हो।
  • लेकिन इस कर्तव्य को पालन करने के लिए सदैव एक आज्ञा याद रहे कि न बुरा सोचना है, न बुरा सुनना है, न बुरा देखना है, न बुरा बोलना है.... जो इस आज्ञा को सदा स्मृति में रखते हैं वह सदा सागर के किनारे पर रहते हैं।
  • हंसों का ठिकाना है ही सागर।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • चलते-फिरते फरिश्ता स्वरूप में रहना - यही ब्रह्मा बाप की दिल-पसन्द गिफ्ट है।