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- ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना।
- अब इन दो लाइन का अर्थ जिन्होंने समझा वह हाथ उठायें?
- यह किसने कहा - तकदीर जगाकर आई हूँ? आत्मा ने।
- सभी की आत्मा कहती है - मैं तकदीर बनाकर आयी हूँ, कौन सी तकदीर?
- नई दुनिया में जाने की तकदीर।
- नई दुनिया है स्वर्ग।
- यह पुरानी दुनिया है नर्क।
- तो यह सब आत्मायें कहती हैं।
- आत्मा को तो शरीर जरूर चाहिए तब तो बोले।
- जीव की आत्मायें कहती हैं हम आये हैं स्कूल में तकदीर बनाने।
- पढ़ाने वाला कौन है?
- शिवबाबा ज्ञान का सागर।
- मनुष्य को देवता अथवा पतित को पावन, नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने वाला वह एक बाप ही है।
- इस नर्क को आग लगनी है।
- दुनिया में ऐसा कोई स्कूल नहीं जहाँ बच्चे कहें कि हम बेहद के बाप के पास आये हैं अथवा ऐसा भी कोई नहीं जो कहे मैं बाप भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरू भी हूँ।
- यह ब्रह्मा भी नहीं कह सकते हैं।
- एक शिवबाबा ही कहते हैं - मैं सभी का बाप, टीचर, गुरू हूँ।
- वही बैठ पढ़ाते हैं। तो अब बच्चों को तकदीर बनानी है।
- बच्चे कहते हैं हम आये हैं नई दुनिया के राजधानी की तकदीर बनाने।
- हमको मालूम है कि यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
- बाप आकर नई दुनिया स्थापन करते हैं।
- तुम 21 जन्मों का राज्य-भाग्य लेने पढ़ते हो।
- गोया तुम राजाई तकदीर बनाने आये हो।
- यहाँ राजयोग सीख रहे हो।
- यह गीत तो भल उन नाटक वालों का बनाया हुआ है परन्तु इसका अर्थ फिर समझाया जाता है।
- जैसे बाप सभी वेदों, शास्त्रों का सार बैठ समझाते हैं।
- इस समय सारी दुनिया में है भक्ति।
- सतयुग में भक्ति, मन्दिर आदि होते नहीं।
- तुमने आधाकल्प भक्ति की है, अब तो भगवान मिल गया है।
- पहले-पहले भारत में इन देवी देवताओं का राज्य था, फिर 84 जन्म लेते-लेते तकदीर बिगड़ गई है।
- अब फिर से तकदीर बनाते हैं।
- बाप आये ही है तकदीर बनाने।
- बच्चों को कहते हैं मुझे याद करो।
- तुम बहुत ही पाप आत्मा बन पड़े हो।
- पहले-पहले भक्ति की जाती है शिवबाबा की, वह है अव्यभिचारी भक्ति।
- फिर भक्ति भी व्यभिचारी हो जाती है।
- तो बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए कि जिसको भगवान कहा जाता है वह हमको पढ़ाते हैं।
- उनको कोई शरीर है नहीं, वह इस शरीर में बैठ बोलते हैं।
- जैसे तुम्हारी आत्मा इस शरीर में आने से बोलने लगती है।
- कभी-कभी मनुष्य मर जाते हैं, फिर जब शमशान में ले जाते हैं तो आधे में चुरपुर करने लग पड़ते हैं।
- ऐसे आत्मा चली गई फिर आई, नहीं।
- आत्मा बिल्कुल सूक्ष्म है ना, तो कहाँ छिप गई।
- ऐसे कहेंगे अनकानसेस हो गई, किसको पता नहीं पड़ा
- । ऐसे कभी-कभी हो जाता है।
- चिता से भी जाग पड़ते हैं, फिर उनको उठा लेते हैं।
- तो यह क्या हुआ?
- आत्मा कहाँ छिप गई।
- फिर अपने ठिकाने आ गई।
- आत्मा नहीं है तो शरीर एकदम मुर्दा हो जाता है।
- तो आत्माओं का देश है परमधाम।
- तुम जानते हो हम वहाँ उस घर के रहने वाले थे।
- पहले-पहले हम आत्मा घर से आये सतयुग में।
- भारतवासी जो देवी-देवता थे, वही आये होंगे।
- वास्तव में जो-जो धर्म स्थापन करते हैं, पिछाड़ी तक कायम रहते हैं।
- बुद्ध का धर्म कायम है, क्राइस्ट का धर्म कायम है।
- सिर्फ देवी-देवता धर्म वाले जो राज्य करते थे उनका नाम ही गुम है।
- कोई भी नहीं है जो अपने को देवी-देवता धर्म का कहता हो।
- बाप समझाते हैं भारतवासी अपने धर्म को भूल गये हैं, हमारा गृहस्थ धर्म पवित्र था।
- सम्पूर्ण निर्विकारी, महाराजा-महारानी का राज्य था।
- उन्हों को कहते हैं भगवती लक्ष्मी और भगवान नारायण।
- वास्तव में भगवान एक है, उनको ही ज्ञान सागर कहा जाता है।
- इन लक्ष्मी-नारायण में तो कोई ज्ञान है नहीं।
- ज्ञान का सागर एक ही शिवबाबा है।
- वह बैठ तुम बच्चों को ज्ञान देते हैं।
- तुम अभी पढ़ रहे हो, यह पढ़ाई फिर वहाँ भूल जायेंगे।
- अभी तुम हर एक समझते हो हमारी आत्मा में 84 जन्मों का रिकार्ड भरा हुआ है।
- आत्मा अभी नॉलेज ले रही है।
- फिर सतयुग में जाकर अपना राज्य भाग्य करेगी।
- तुम कहेंगे हमने 84 का चक्र लगाया।
- अब बाबा से हम स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं।
- हर एक उस दादे से वर्सा लेते हैं, परन्तु अपने-अपने पुरुषार्थ अनुसार।
- इसमें कोई हिस्सा बाँटा नहीं जाता है।
- अज्ञान काल में बाँटा जाता है ना।
- बेहद का बाप कहते हैं हम बैकुण्ठ स्थापन करते हैं।
- उसमें ऊंच मर्तबा पाना, वह है तुम्हारे पुरुषार्थ पर मदार।
- जितना बाप को याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे।
- पवित्र बनेंगे।
- सोना को भट्ठी में डालते हैं ना।
- तो उनसे खाद निकल सच्चे सोने की डल्ली बन जाती है।
- यह आत्मा भी सच्चा सोना थी, यहाँ पार्ट बजाने आती है।
- पहले है गोल्डन एजड फिर पहले चांदी की खाद पड़ी।
- आत्मा थोड़ी इमप्योर बन जाती है तो फिर आहिस्ते-आहिस्ते थोड़ा घटती जाती है।
- मकान भी पहले नया फिर आहिस्ते-आहिस्ते पुराना होता जाता है।
- 100 वर्ष के बाद कहेंगे पुराना।
- वैसे दुनिया भी नई और पुरानी होती है।
- आज से 5 हजार वर्ष पहले नई थी, इन देवी-देवताओं का राज्य जो था - वह कहाँ गया?
- 84 जन्म भोगते-भोगते पुराना हो गया।
- आत्मा भी मैली, तो शरीर भी मैला हो गया।
- गोरे से साँवरे हो गये।
- कृष्ण को भी गोरा और साँवरा दिखाते हैं ना।
- टाँग नर्क तरफ, मुँह स्वर्ग तरफ दिखाना है।
- तुम भी उस कुल के हो।
- तुम्हारी भी टाँग नर्क तरफ मुँह स्वर्ग तरफ है।
- अभी तुम पहले निर्वाणधाम में जाकर फिर स्वर्ग में आयेंगे।
- कलियुग को आग लग जायेगी।
- मूसलधार बरसात, आग, अर्थक्वेक आदि होगी।
- पतित आत्मायें सब हिसाब-किताब चुक्तू कर घर चली जायेंगी।
- बाकी थोड़े बचेंगे।
- पवित्र आत्मायें आती जायेंगी।
- अभी तो सब हैं काँटे।
- काम कटारी चलाना, यह काँटा लगाना है।
- यहाँ तो बाप कहते हैं कि सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो मैं तुमको स्वर्ग का वर्सा दूँगा, तुम पवित्र बन जायेंगे।
- तुम पावन थे तो गृहस्थ व्यवहार भी पवित्र था।
- अभी तुम पतित बने हो तो गृहस्थ व्यवहार भी अपवित्र, विकारी है।
- सतयुग में व्यवहार धन्धा भी सच्चा चलता है।
- वहाँ झूठ आदि बोलने की दरकार नहीं रहती, झूठ तब बोला जाता है जब बहुत पैसे कमाने का लोभ होता है।
- वहाँ तो अथाह पैसे मिलते हैं।
- अनाज आदि का कोई दाम नहीं रहता।
- वहाँ कोई गरीब होता ही नहीं, जो अच्छा पुरुषार्थ करेंगे वह महाराजा बनेंगे।
- हीरे जवाहरों के महल मिलेंगे।
- पुरुषार्थ पूरा नहीं करेंगे तो प्रजा में चले जायेंगे।
- राजा-रानी फिर प्रिन्स-प्रिन्सेज सारा घराना होता है ना।
- फिर प्रजा में भी नम्बरवार साहूकार और गरीब प्रजा होती है।
- वहाँ तो सब पवित्र होंगे।
- राजा-रानी, वजीर भी एक। वहाँ कोई बहुत वजीर नहीं रहते।
- राजा में ताकत रहती है राज्य चलाने की।
- तो जैसे बाप समझाते हैं तो बच्चों को भी समझाना चाहिए।
- हम भारतवासी देवी-देवता थे।
- सतयुग में हमारा राज्य था।
- गृहस्थ व्यवहार में हम पवित्र थे, स्वर्गवासी थे फिर पतित बनते-बनते नर्कवासी बने हैं फिर स्वर्गवासी बनते हैं।
- यह खेल बना हुआ है।
- स्वर्गवासी एक जन्म में बन जायेंगे फिर नर्कवासी बनने में 84 जन्म लेने पड़ेंगे।
- सीढ़ी में बड़ा क्लीयर दिखाया हुआ है।
- अभी बुद्धि में आया है कि हम जाकर स्वर्ग में राज्य करेंगे।
- अभी बाप से वर्सा ले रहे हैं।
- बाप ही सत्य बताकर नर से नारायण बनाते हैं।
- वे लोग जो सत्य नारायण की कथा सुनते हैं वह कोई नर से नारायण बनते नहीं।
- तो वह कथा झूठी हुई ना।
- यहाँ तुम बैठे ही हो नर से नारायण बनने के लिए, वह ऐसे थोड़ेही कहते कि पवित्र बनो, मामेकम् याद करो।
- सत्य-नारायण की कथा पूर्णमासी के दिन सुनाते हैं।
- अब इस समय पूर्णमासी कहा जाता है 16 कला चन्द्रमा को।
- जब पिछाड़ी होती है तब चन्द्रमा की लकीर जाकर रहती है, जिसको अमावस कहते हैं।
- अमावस माना अन्धियारी रात।
- सतयुग त्रेता को दिन, द्वापर कलियुग को रात कहा जाता है।
- यह सब प्वाइंट समझने की हैं।
- यह शिवबाबा बैठ पढ़ाते हैं।
- वह बाप भी है, टीचर भी है और गुरू भी है।
- इनमें प्रवेश कर आत्माओं को पढ़ाते हैं।
- बाप कहते हैं जैसे इनकी आत्मा भ्रकुटी के बीच में बैठी है, मैं भी आकर यहाँ बैठता हूँ।
- तुमको बैठ समझाता हूँ।
- तुम पहले पावन थे फिर पतित बने हो।
- अब मुझ बाप को याद करो, पवित्र बनने बिगर घर वापिस जा नहीं सकते।
- पवित्र बनेंगे तब उड़ेंगे।
- सब पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ, पावन बनाओ, तब हम उड़ें।
- अपने घर मुक्तिधाम में जायें।
- वह है हम आत्माओं का घर।
- पतित घर जा नहीं सकते।
- जो अच्छी रीति शिक्षा को धारण करेंगे तो जल्दी स्वर्ग में आयेंगे, नहीं तो देरी से आयेंगे।
- नये मकान में आना चाहिए ना।
- नये मकान में मजा है ना।
- पहले-पहले सतयुग में आना चाहिए।
- मम्मा बाबा सतयुग में जाते हैं, हम फिर देरी से क्यों जाये!
- तुम भी फॉलो करो ब्रह्मा को।
- बाप को याद करते रहो।
- कोई बात में तकलीफ होती है तो शिवबाबा से पूछो।
- श्रीमत से ही श्रेष्ठ बनेंगे।
- पुरानी दुनिया में तो पाँच विकारों रूपी रावण की मत पर चलते आये हो।
- पहले-पहले है देह-अभिमान।
- अभी तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनना है।
- मैं आत्मा परमधाम की रहने वाली हूँ, उनको शान्तिधाम कहा जाता है।
- ऐसी-ऐसी बातें दूसरा कोई समझा न सके।
- बाप ही समझाते हैं, तुम्हारी आत्मा इन आरगन्स से सुनती है, सतयुग में कभी शरीर खराब होता ही नहीं।
- यहाँ तो बैठे-बैठे अकाले मृत्यु हो जाती है।
- सतयुग में ऐसी कोई बात होती नहीं, उसको कहा ही जाता है हेविन, स्वर्ग, पैराडाइज।
- फिर हम चक्र लगाकर पुनर्जन्म लेते-लेते 84 का चक्र पूरा किया है, फिर बाप आकर बच्चों को स्वर्ग का लायक बनाते हैं।
- अभी तुम नयी दुनिया के लायक बने हो। अभी तो नर्क है।
- अभी तुम आये हो नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने की तकदीर बनाने।
- कहते हैं हम शिवबाबा के पास आये हैं तकदीर बनाने।
- कल्प-कल्प हर 5 हजार वर्ष बाद हम तकदीर बनाते हैं।
- हम स्वर्गवासी बनते हैं फिर रावण राज्य शुरू होने से हम विकारी बन जाते हैं।
- अभी सब विकारी पतित हैं तब आप आकर नई दुनिया स्थापन करते हैं।
- नई दुनिया में सिर्फ तुम बच्चे ही होंगे।
- बाकी सब शान्तिधाम में चले जायेंगे।
- ऊपर में आत्माओं का झाड़ है।
- फिर अपने-अपने समय पर आयेंगे।
- जब हमारा राज्य होगा तो वहाँ और धर्म वाले होंगे नहीं।
- फिर द्वापर में रावण राज्य शुरू होगा।
- यह सब बातें अच्छी रीति धारण करनी हैं।
- यहाँ नर्कवासी से स्वर्गवासी बनना है।
- नर्कवासी मनुष्य को असुर और स्वर्गवासी मनुष्य को देवता कहा जाता है।
- अब सभी आसुरी स्वभाव वाले हैं।
- अब बाप बैठ पुरुषार्थ कराते हैं।
- बाप कहते हैं पवित्र बनो।
- हर बात में पूछते रहो।
- कोई पूछते हैं कि बाबा धन्धे में झूठ बोलना पड़ता है, झूठ बोलने से थोड़ा पाप बनेगा।
- वह फिर बाप को याद करते रहेंगे तो पाप कट जायेंगे।
- आजकल की दुनिया में सब पाप करते रहते हैं।
- कितनी रिश्वत खाते रहते हैं।
- यह प्रदर्शनी का चित्र मैप्स हैं, ऐसे मैप्स कहाँ होते नहीं।
- अगर कोई देखकर कॉपी करके बनाये भी, परन्तु उनका अर्थ कुछ भी समझ नहीं सकेंगे।
- प्रदर्शनी मेले में तो बहुत आते हैं।
- कहा जाता है 7 रोज़ लिए समझने आओ तो तुम स्वर्गवासी बनने लायक बन जायेंगे।
- अभी नर्कवासी हो, सीढ़ी में देखो कितना क्लीयर है।
- यह है पतित दुनिया, पावन दुनिया ऊपर खड़ी है।
- अभी तुम बच्चे शिवबाबा से प्रॉमिस करते हो बाबा हम नर्कवासी से स्वर्गवासी जरूर बनेंगे।
- अभी तुम तैयारी कर रहे हो शिवालय में जाने के लिए, इसलिए विकार में कभी नहीं जाना है।
- तूफान तो माया के बहुत आयेंगे परन्तु नंगन (पतित) नहीं होना है।
- पतित होने से बड़ी खता (भूल) हो जायेगी फिर धर्मराज की बहुत बड़ी सजा खानी पड़ेगी।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) मनुष्य से देवता बनने के लिए जो भी आसुरी स्वभाव है, झूठ बोलने की आदत है, उसका त्याग करना है।
- दैवी स्वभाव धारण करना है।
- 2) घर चलने के लिए पवित्र जरूर बनना है।
- माया के तूफान आते भी कर्मेन्द्रियों से कभी कोई विकर्म नहीं करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सच्ची लगन के आधार पर और संग तोड़ एक संग जोड़ने वाले सम्पूर्ण वफादार भव
- सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जिनके संकल्प वा स्वप्न में भी सिवाए बाप के और बाप के कर्तव्य वा बाप की महिमा के, बाप के ज्ञान के और कुछ भी दिखाई न दे।
- एक बाप दूसरा न कोई... बुद्धि की लगन सदा एक संग रहे तो अनेक संग का रंग लग नहीं सकता इसलिए पहला वायदा है और संग तोड़ एक संग जोड़ - इस वायदे को निभाना अर्थात् सम्पूर्ण वफादार बनना।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सत्यता की स्व-स्थिति परिस्थितियों में भी सम्पूर्ण बना देगी।
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