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- सबका स्नेह, स्नेह के सागर में समा गया।
- ऐसे ही सदा स्नेह में समाये हुए औरों को भी स्नेह का अनुभव कराते चलो।
- बापदादा सर्व बच्चों के विचार समान मिलने का सम्मेलन देख हर्षित हो रहे हैं।
- उड़ते आने वालों को सदा उड़ती कला के वरदान स्वत: प्राप्त होते रहेंगे।
- बापदादा सर्व आये हुए बच्चों के उमंग-उत्साह को देख सभी बच्चों पर स्नेह के फूलों की वर्षा कर रहे हैं।
- संकल्प समान मिलन और आगे संस्कार बाप समान मिलन - यह मिलन ही बाप का मिलन है।
- यही बाप समान बनना है।
- संकल्प, मिलन, संस्कार मिलन - मिलना ही निर्माण बन निमित्त बनना है।
- समीप आ रहे हो, आ ही जायेंगे।
- सेवा की सफलता की निशानी देख हर्षित हो रहे हैं।
- स्नेह मिलन में आये हो सदा स्नेही बन स्नेह की लहर विश्व में फैलाने के लिए।
- लेकिन हर बात में चैरिटी बिगन्स एट होम।
- पहले स्व है अपना सबसे प्यारा होम।
- तो पहले स्व से, फिर ब्राह्मण परिवार से, फिर विश्व से।
- हर संकल्प में स्नेह, नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह, दिल का स्नेह, हर संकल्प में सहानुभूति, हर संकल्प में रहमदिल, दातापन की नैचुरल नेचर बन जाए - यह है स्नेह मिलन, संकल्प मिलन, विचार मिलन, संस्कार मिलन।
- सर्व के सहयोग के कार्य के पहले सदा सर्व श्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं का सहयोग विश्व को सहयोगी सहज और स्वत: बना ही लेता है इसलिए सफलता समीप आ रही है।
- मिलना और मुड़ना अर्थात् मोल्ड होना - यही सफलता का चुम्बक है।
- बहुत सहज इस चुम्बक के आगे सर्व आत्मायें आकर्षित हो आई कि आई!
- मीटिंग के बच्चों को भी बापदादा स्नेह की मुबारक दे रहे हैं।
- समीप हैं और सदा समीप रहेंगे।
- न सिर्फ बाप के लेकिन आपस में भी समीपता का विज़न (दृश्य) बापदादा को दिखाया।
- विश्व को विज़न दिखाने के पहले बापदादा ने देखा।
- आने वाले आप सर्व बच्चों के एक्शन (कर्म) को देख - क्या एक्शन करना है, होना है, वह सहज ही समझ जायेंगे।
- आपका एक्शन ही एक्शन-प्लान है।
- अच्छा!
प्लैन सब अच्छे बनाये हैं।
- और भी जैसे यह कार्य आरम्भ होते बापदादा का विशेष ईशारा वर्गीकरण को तैयार करने का था और अब भी है।
- तो ऐसा लक्ष्य जरूर रखो कि इस महान् कार्य में कोई भी वर्ग रह नहीं जाये।
- चाहे समय प्रमाण ज्यादा नहीं कर सकते हो लेकिन प्रयत्न वा लक्ष्य यह जरूर रखो कि सैम्पुल जरूर तैयार हों।
- बाकी आगे इसी कार्य को और बढ़ाते रहेंगे।
- तो समय प्रमाण करते रहना।
- लेकिन समाप्ति को समीप लाने के लिए सर्व का सहयोग चाहिए।
- लेकिन इतनी सारी दुनिया की आत्माओं को तो एक समय पर सम्पर्क में नहीं ला सकते इसलिए आप फलक से कह सको कि हमने सर्व आत्माओं को सर्व वर्ग के आधार से सहयोगी बनाया है, तो यह लक्ष्य सर्व के कारण को पूरा कर देता है।
- कोई भी वर्ग का उल्हना नहीं रह जाए कि हमें तो पता ही नहीं है कि क्या कर रहे हो?
- बीज डालो।
- बाकी वृद्धि जैसा समय मिले, जैसे कर सको वैसे करो।
- इसमें भारी नहीं होना कि कैसे करें, कितना करें?
- जितना होना है उतना हो ही जायेगा।
- जितना किया उतना ही सफलता के समीप आये।
- सैम्पुल तो तैयार कर सकते हो ना?
- बाकी जो इन्डियन गवर्मेन्ट (भारत सरकार) को समीप लाने का श्रेष्ठ संकल्प लाया है, वह समय सर्व की बुद्धियों को समीप ला रहा है इसलिए सर्व ब्राह्मण आत्मायें इस विशेष कार्य के अर्थ आरम्भ से अन्त तक विशेष शुद्ध संकल्प “सफलता होनी ही है'' - इस शुद्ध संकल्प से और बाप समान वायब्रेशन बनाने मिलाने से, विजय के निश्चय की दृढ़ता से आगे बढ़ते चलो।
- लेकिन जब कोई बड़ा कार्य किया जाता है तो पहले, जैसे स्थूल में देखा है - कोई भी बोझ उठायेंगे तो क्या करते हैं?
- सभी मिलकर उंगली देते हैं और एक दो को हिम्मत-उल्लास बढ़ाने के बोल बोलते हैं।
- देखा है ना!
- ऐसे ही निमित्त कोई भी बनता है लेकिन सदा इस विशेष कार्य के लिए सर्व के स्नेह, सर्व के सहयोग, सर्व के शक्ति के उमंग-उत्साह के वायब्रेशन कुम्भकरण को नींद से जगायेंगे।
- यह अटेन्शन जरूरी है इस विशेष कार्य के ऊपर। विशेष स्व, सर्व ब्राह्मण और विश्व की आत्माओं का सहयोग लेना ही सफलता का साधन है।
- इसके बीच में थोड़ा भी अगर अन्तर पड़ता है तो सफलता के अन्तर लाने में निमित्त बन जाता है इसलिए बापदादा सभी बच्चों के हिम्मत का आवाज सुन उसी समय हर्षित हो रहे थे और खास संगठन के स्नेह के कारण स्नेह का रिटर्न देने के लिए आये हैं।
- बहुत अच्छे हो और अच्छे ते अच्छे अनेक बार बने हो और बने हुए हो!
- इसलिए डबल विदेशी बच्चों के दूर से एवररेडी बन उड़ने के निमित्त बापदादा विशेष बच्चों को हृदय का हार बनाए समाते हैं। अच्छा!
- कुमारियाँ तो है ही कन्हैया की।
- बस एक शब्द याद रखना - सबमें एक, एकमत, एकरस, एक बाप।
- भारत के बच्चों को भी बापदादा दिल से मुबारक दे रहे हैं।
- जैसा लक्ष्य रखा वैसे लक्षण प्रैक्टिकल में लाया। समझा?
- किसको कहें, किसको न कहें - सबको कहते हैं! (दादी को) जो निमित्त बनते हैं, उनको ख्याल तो रहता ही है।
- यही सहानुभूति की निशानी है। अच्छा!
- मीटिंग में आये हुए सभी भाई-बहनों को बापदादा ने स्टेज पर बुलाया
सभी ने बुद्धि अच्छी चलाई है।
- बापदादा हरेक बच्चे के सेवा के स्नेह को जानते हैं।
- सेवा में आगे बढ़ने से कहाँ तक चारों ओर की सफलता है, इसको सिर्फ थोड़ा-सा सोचना और देखना।
- बाकी सेवा की लगन अच्छी है।
- दिन-रात एक करके सेवा के लिए भागते हो।
- बापदादा तो मेहनत को भी मुहब्बत के रूप में देखते हैं।
- मेहनत नहीं की, मुहब्बत दिखाई। अच्छा!
- अच्छे उमंग-उत्साह के साथी मिले हैं।
- विशाल कार्य है और विशाल दिल है, इसलिए जहाँ विशालता हैं वहाँ सफलता है ही।
- बापदादा सभी बच्चों के सेवा की लगन को देख रोज खुशी के गीत गाते हैं।
- कई बार गीत सुनाया है - “वाह बच्चे वाह!'' अच्छा!
- आने में कितने राज़ थे, राज़ों को समझने वाले हो ना!
- राज़ जाने, बाप जाने।
- (दादी ने बापदादा को भोग स्वीकार कराना चाहा) आज दृष्टि से ही स्वीकार करेंगे। अच्छा!
- सबकी बुद्धि बहुत अच्छी चल रही है और एक दो के समीप आ रहे हो ना!
- इसलिए सफलता अति समीप है।
- समीपता सफलता को समीप लायेगी।
- थक तो नहीं गये हो?
- बहुत काम मिल गया है?
- लेकिन आधा काम तो बाप करता है।
- सबका उमंग अच्छा है।
- दृढ़ता भी है ना!
- समीपता कितनी समीप है?
- चुम्बक रख दो तो समीपता सबके गले में माला डाल देगी, ऐसे अनुभव होता है?
- अच्छा! सब अच्छे ते अच्छे हैं।
- दादियों के प्रति उच्चारे हुए अव्यक्त महावाक्य:- (31-3-88)
- बाप बच्चों को शुक्रिया देता, बच्चे बाप को।
- एक-दो को शुक्रिया देते-देते आगे बढ़े हो, यही विधि है आगे बढ़ने की।
- इसी वधि से आप लोगों का संगठन अच्छा है।
- एक-दो को ‘हाँ जी' कहा, ‘शुक्रिया' कहा और आगे बढ़े, इसी विधि को सब फालो करें तो फरिश्ते बन जायेंगे।
- बापदादा छोटी माला को देख करके खुश होते हैं।
- अभी कंगन बना है, गले की माला तैयार हो रही है।
- गले की माला तैयार करने में लगे हुए हो।
- अभी अटेन्शन चाहिए।
- ज्यादा सेवा में चले जाते हैं तो अपने ऊपर अटेन्शन कहाँ-कहाँ कम हो जाता है।
- ‘विस्तार' में ‘सार' कभी मर्ज हो जाता है, इमर्ज (प्रत्यक्ष) रूप में नहीं रहता है।
- आप लोग ही कहते हो कि अभी यह होना है।
- कभी ऐसा भी दिन आयेगा जो कहेंगे - जो होना चाहिए, वही हो रहा है।
- पहले दीपकों की माला तो यहाँ ही तैयार होगी।
- बापदादा आप लोगों को हरेक का उमंग-उत्साह बढ़ाने का एग्जैम्पल समझते हैं।
- आप लोगों की युनिटी ही यज्ञ का किला है।
- चाहे 10 हो, चाहे 12 हो लेकिन किले की दीवार हो। तो बापदादा कितना खुश होंगे!
- बापदादा तो है ही, फिर भी निमित्त तो आप हो।
- ऐसा ही संगठन दूसरा, तीसरा ग्रुप बन जाये तो कमाल हो जाए।
- अभी ऐसा ग्रुप तैयार करो।
- जैसे पहले ग्रुप के लिए सब कहते हैं कि इन्हों का आपस में स्नेह है।
- स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं, वह तो रहेंगे ही लेकिन ‘रिगार्ड' है, ‘प्यार' है, ‘हाँ जी' है, समय पर अपने आपको मोल्ड कर लेते, इसलिए यह किले की दीवार मजबूत है, इसलिए ही आगे बढ़ रहे हैं।
- फाउण्डेशन को देखकर खुशी होती है ना।
- जैसे यह पहला पूर दिखाई देता है, ऐसे शक्तिशाली ग्रुप बन जाएं तो सेवा पीछे-पीछे आयेगी।
- ड्रामा में विजय माला की नूँध है।
- तो जरूर एक-दो के नजदीक आयेंगे, तब तो माला बनेगी।
- एक दाना एक तरफ हो, एक दाना एक से दूर हो तो माला नहीं बनेगी।
- दाने मिलते जायेंगे, समीप आते जायेंगे तब माला तैयार होगी। तो एग्जैम्पल अच्छे हो।
- अच्छा!
अभी तो मिलने का कोटा पूरा करना है।
- सुनाया ना - रथ को भी एक्स्ट्रा सकाश से चला रहे हैं।
- नहीं तो साधारण बात नहीं है।
- देखना तो सब पड़ता है ना।
- फिर भी सब शक्तियों की एनर्जी जमा है, इसलिए रथ भी इतना सहयोग दे रहा है।
- शक्तियाँ जमा नहीं होती तो इतनी सेवा मुश्किल हो जाती।
- यह भी ड्रामा में हर आत्मा का पार्ट है।
- जो श्रेष्ठ कर्म की पूँजी जमा होती है तो समय पर वह काम में आती है।
- कितनी आत्माओं की दुआयें भी मिल जाती हैं, वह भी जमा होती हैं।
- कोई न कोई विशेष पुण्य की पूँजी जमा होने के कारण विशेष पार्ट है।
- निर्विघ्न रथ चले - यह भी ड्रामा का पार्ट है।
- 6 मास कोई कम नहीं रहा।
- अच्छा! सभी को राज़ी करेंगे।
- अव्यक्त मुरली से चुने हुए कुछ अनमोल महावाक्य (प्रश्न-उत्तर)
- प्रश्न:-
- किस एक शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होने से ही सर्व कमजोरियां समाप्त हो जायेंगी?
- उत्तर:-
- सिर्फ पुरुषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ।
- पुरुष अर्थात् इस रथ का रथी, प्रकृति का मालिक।
- इसी एक शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित होने से सर्व कमजोरियां समाप्त हो जायेंगी।
- पुरुष प्रकृति के अधिकारी है न कि अधीन।
- रथी रथ को चलाने वाला है न कि रथ के अधीन होने वाला।
- प्रश्न:-
- आदिकाल के राज्य अधिकारी बनने के लिए कौन से संस्कार अभी से धारण करो?
- उत्तर:-
- अपने आदि अविनाशी संस्कार अभी से धारण करो।
- अगर बहुतकाल योद्धेपन के संस्कार रहे अर्थात् युद्ध करते करते समय बिताया, आज जीत कल हार।
- अभी-अभी जीत, अभी-अभी हार, सदा के विजयीपन के संस्कार नहीं बनें तो क्षत्रिय कहा जायेगा न कि ब्राह्मण।
- ब्राह्मण सो देवता बनते हैं, क्षत्रिय, क्षत्रिय में चले जाते हैं।
- प्रश्न:-
- विश्व परिवर्तक बनने के पहले कौन सा परिवर्तन करने की शक्ति चाहिए?
उत्तर:-
- विश्व परिवर्तक बनने के पहले अपने संस्कारों को परिवर्तन करने की शक्ति चाहिए।
- दृष्टि और वृत्ति का परिवर्तन चाहिए।
- आप दृष्टा इस दृष्टि द्वारा देखने वाले हो।
- दिव्य नेत्र से देखो न कि चमड़ी के नेत्रों से।
- दिव्य नेत्र से देखेंगे तो स्वत: दिव्य रूप ही दिखाई देगा।
- चमड़े की आंखे चमड़े को देखती, चमड़ी के लिए सोचती- यह काम फरिश्तों वा ब्राह्मणों का नहीं।
- प्रश्न:-
- आपस में बहन भाई के सम्बन्ध में होते भी किस दिव्य नेत्र से देखो तो दृष्टि वा वृत्ति कभी चंचल नहीं हो सकती?
- उत्तर:-
- हर एक नारी शरीरधारी आत्मा को शक्ति रूप, जगत माता का रूप, देवी का रूप देखो-यही है दिव्य नेत्र से देखना।
- शक्ति के आगे कोई आसुरी वृत्ति से आते हैं तो भस्म हो जाते हैं इसलिए हमारी बहन वा टीचर नहीं लेकिन शिवशक्ति है।
- मातायें बहनें भी सदा अपने शिव शक्ति स्वरूप में स्थित रहें।
- मेरा विशेष भाई, विशेष स्टूडेन्ट नहीं, वह महावीर हैं और वह शिव शक्ति हैं।
- प्रश्न:-
- महावीर की विशेषता क्या दिखाते हैं?
- उत्तर:-
- उनके दिल में सदा एक राम रहता है।
- महावीर राम का है तो शक्ति भी शिव की है।
- किसी भी शरीरधारी को देखते मस्तक के तरफ आत्मा को देखो।
- बात आत्मा से करनी है न कि शरीर से।
- नजर ही मस्तक मणी पर जानी चाहिए।
- प्रश्न:-
- किस शब्द को अलबेले रूप में न यूज़ करके सिर्फ एक सावधानी रखो, वह कौन सी?
- उत्तर:-
- पुरुषार्थी शब्द को अलबेले रूप में न यूज़ करके सिर्फ यही सावधानी रखो कि हर बात में दृढ़ संकल्प वाले बनना है।
- जो भी करना है वह श्रेष्ठ कर्म ही करना है।
- श्रेष्ठ ही बनना है। ओम् शान्ति।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करने वाले सर्व समर्पण वा ट्रस्टी भव
- जो आईवेल के लिए पुराने संस्कारों की प्रापर्टी किनारे कर रख लेते हैं।
- तो माया किसी न किसी रीति से पकड़ लेती है।
- पुराने रजिस्टर की छोटी सी टुकड़ी से भी पकड़ जायेंगे, माया बड़ी तेज है, उनकी कैचिंग पावर कोई कम नहीं है इसलिए विकारों के वंश के अंश को भी समाप्त करो।
- जरा भी किसी कोने में पुराने खजाने की निशानी न हो - इसको कहा जाता है सर्व समर्पण, ट्रस्टी वा यज्ञ के स्नेही सहयोगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- किसी की विशेषता के कारण उससे विशेष स्नेह हो जाना - ये भी लगाव है।
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