07-10-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - हियर नो ईविल, एक बाप से ही सुनना है, गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहना है''

प्रश्नः-


किस खेल को यथार्थ रीति जानने वाले बच्चे कभी मूँझ नहीं सकते हैं?

उत्तर:-

दु:ख और सुख, भक्ति और ज्ञान का जो खेल चलता है, इसको यथार्थ रीति जानने वाले कभी मूँझते नहीं।

तुम जानते हो भगवान किसी को दु:ख नहीं देता, वह है दु:ख हर्ता सुख कर्ता।

जब सभी दु:खी हो जाते हैं, तब दु:खों से लिबरेट करने के लिए वह आते हैं।

 

गीत:- यह कौन आज आया सवेरे-सवेरे....


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने क्या सुना?
    • भक्ति का गीत।
  • भक्ति को अंग्रेजी में फिलासॉफी कहते हैं।
    • टाइटल मिलते हैं डॉक्टर ऑफ फिलासॉफी।
    • अब फिलासॉफी (भक्ति) तो छोटे बड़े मनुष्य सब जानते हैं।
    • कोई से भी पूछो ईश्वर कहाँ रहते हैं, तो कह देंगे सर्वव्यापी है।
    • यह भी फिलासॉफी हुई ना।
  • अब शास्त्रों की कोई भी बात बाप नहीं सुनाते।
    • कोई भी भगत को ज्ञान सागर नहीं कहेंगे।
    • न उनमें ज्ञान है, न ज्ञान सागर के बच्चे हैं।
    • ज्ञान सागर बाप को कोई नहीं जानते हैं।
    • न अपने को बच्चा समझते हैं।
    • वह सब भक्ति करते हैं भगवान से मिलने के लिए।
    • परन्तु भगवान को जानते नहीं तो भक्ति से क्या फायदा होगा।
    • बहुतों को यह टाइटिल मिलता होगा डॉक्टर ऑफ फिलासॉफी, उन्हों की बुद्धि में तो एक ही बात है कि ईश्वर सर्वव्यापी है।
    • उसको फिलासॉफी समझते हैं, इससे ही गिरते आये हैं, इसको कहा जाता है धर्म ग्लानि।
    • हम कोई भी मनुष्यों से शास्त्रों का कुछ वाद-विवाद नहीं कर सकते।
    • हम कोई मनुष्य से पढ़े हुए नहीं हैं और सब मनुष्य, मनुष्य द्वारा पढ़े हुए होते हैं।
    • वेद शास्त्र आदि सब मनुष्य से ही पढ़ते हैं।
    • बनाये भी मनुष्यों ने हैं।
  • तुमको तो यह ज्ञान सुनाने वाला है एक ही रूहानी बाप।
    • वह एक ही बार आकर समझाते हैं।
    • अब हमको कोई मनुष्य से कुछ भी सीखना नहीं है।
    • तुमको अब स्प्रीचुअल बाप से ही सुनना है।
    • सुनने वाले हैं रूहानी बच्चे, आत्मायें।
    • वह सब मनुष्य, मनुष्य को सुनाते हैं।
    • यह है रूहानी बाप का ज्ञान।
    • वह है मनुष्यों का ज्ञान।
  • यह बाबा भी (साकार) मनुष्य है ना।
    • बोलो, रूहानी बाप इस द्वारा सुनाते हैं।
    • हम रूह सुनते हैं।
    • हम रूह फिर शरीर द्वारा औरों को सुनाते हैं।
  • यह है रूहानी ज्ञान।
    • बाकी सब है जिस्मानी।
    • भक्ति में जिस्म की पूजा करते हैं।
    • बाप कहते हैं - तुम अपने को मनुष्य या भगत न समझो।
    • अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
    • तुम आत्मायें भाई-भाई हो।
    • गाया हुआ भी है आत्मा-परमात्मा अलग रहे बहुकाल.. तो हमको कोई भी मनुष्य से सुनना नहीं है।
  • कोई सवाल पूछे तो बोलो - हमारा कोई शास्त्रों का ज्ञान नहीं है।
    • हम उसको फिलासॉफी कहते हैं अर्थात् भक्ति मार्ग का ज्ञान है।
    • सद्गति देने का ज्ञान सिर्फ एक बाप ही देते हैं।
    • सर्व का सद्गति दाता एक ही गाया हुआ है।
    • तो तुम बच्चों को कोई से डिबेट नहीं करनी है।
  • बाप कहते हैं ज्ञान की अथॉरिटी, ज्ञान सागर मैं हूँ।
    • मैं तुमको कोई शास्त्र आदि नहीं सुनाता हूँ।
    • हमारा यह है रूहानी ज्ञान।
    • बाकी सब है जिस्मानी ज्ञान।
    • वह सतसंग आदि सब भक्ति मार्ग के लिए हैं।
    • यह रूहानी बाप बैठ रूहों को समझाते हैं इसलिए देही-अभिमानी बनने में बच्चों को मेहनत लगती है।
  • हम आत्मायें बाप से वर्सा लेती हैं।
    • बाप के बच्चे जरूर बाप की ही गद्दी के वारिस होंगे ना।
    • लक्ष्मी-नारायण भी देहधारी हैं।
    • उनके बच्चे जिस्मानी बाप से वर्सा पाते हैं।
    • यह बात ही न्यारी है।
    • सतयुग में भी जिस्मानी बात हो जाती है।
    • वहाँ यह नहीं कहेंगे कि रूहानी बाप से वर्सा मिलता है।
    • देह-अभिमान को तोड़ना है।
  • हम आत्मा हैं और बाप को याद करना है।
    • यही भारत का प्राचीन योग गाया हुआ है।
    • याद अक्षर हिन्दी का है।
  • तो यह नॉलेज तुमको अभी कौन देते हैं?
    • यह कोई मनुष्य नहीं जानते हैं।
    • जन्म-जन्मान्तर मनुष्य, मनुष्य से बात करते आये हैं।
    • अभी रूहानी बाप रूहानी बच्चों से बात करते हैं।
    • रूह सुनाते हैं इसलिए इसको रूहानी स्प्रीचुअल नॉलेज कहा जाता है।
  • गीता को भी वह स्प्रीचुअल नॉलेज समझते हैं, परन्तु उसमें नाम कृष्ण देहधारी का डाल दिया है।
    • बाप कहते हैं कि कोई भी मनुष्य में यह नॉलेज हो नहीं सकती।
    • कभी भी कोई तुमसे डिबेट करते हैं तो बोलो, यह है तुम्हारा भक्ति का ज्ञान।
    • मनुष्यों के बनाये हुए शास्त्रों का ज्ञान।
  • सत्य ज्ञान तो एक ज्ञान सागर बाप के पास ही है, वही खुद नॉलेज दे रहे हैं।
    • उन्हें सुप्रीम बाप कहते हैं।
    • पूजा भी उस निराकार की होती है।
    • अगर और निराकारियों की पूजा होती है तो वह भी उनके बच्चे ही हैं।
    • मिट्टी का सालिग्राम बनाकर पूजा करते हैं।
    • रूद्र यज्ञ रचते हैं।
    • तुम जानते हो वह परमपिता परमात्मा निराकारी दुनिया में रहते हैं।
    • हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं।
    • वह ज्ञान का सागर आकर ज्ञान सुनाए सबकी सद्गति कर देते हैं।
    • वह है परे ते परे रहने वाला परमपिता परमात्मा।
  • सभी आत्मायें ब्रदर्स को पार्ट मिला हुआ है, जो फिर शरीर धारण कर भाई बहिन बनते हैं।
    • आत्मा सब एक बाप के बच्चे हैं।
    • आत्मा जब शरीर धारण करती है तो स्वर्ग में सुख, नर्क में दु:ख को पाती है।
    • यह क्यों होता है?
  • समझाया जाता है - ज्ञान और भक्ति।
    • वह है दिन, वह है रात।
    • ज्ञान से सुख, भक्ति से दु:ख, यह खेल बना हुआ है।
    • ऐसे नहीं कि दु:ख सुख सब भगवान ही रचते हैं।
    • भगवान को बुलाते ही तब हैं जब दु:खी होते हैं।
    • समझते हैं वह सुख देने वाला है।
    • फिर जब सुख का समय पूरा होता है फिर रावण 5 विकारों के कारण दु:ख शुरू होता है।
    • यही खेल है, जिसे यथार्थ रीति समझना है।
    • इसे ही रूहानी ज्ञान कहा जाता है।
    • बाकी है सब जिस्मानी ज्ञान, वह हम सुनने नहीं चाहते हैं।
  • हमको हुक्म मिला हुआ है - सिर्फ मुझ निराकार बाप से ही सुनो।
    • बाप कहते हैं - हियर नो ईविल... हम एक भगवान से सुनते हैं।
    • तुम मनुष्यों से सुनते हो।
    • रात-दिन का फर्क है।
    • बड़े-बड़े विद्वान शास्त्र आदि पढ़ते हैं।
    • वह तो हमने भी बहुत पढ़े।
  • अब भगवान कहते हैं तुमने गुरू बहुत किये हैं, अब उनको छोड़ो, मैं जो सुनाता हूँ वह सुनो।
    • भगवान है ही निराकार, उनका नाम है शिव।
    • अभी हम उनसे सुन रहे हैं।
    • बाप खुद अपना परिचय और अपनी रचना के आदि मध्य अन्त का परिचय देते हैं।
    • फिर हम आपसे शास्त्रों आदि की बातें सुनें ही क्यों!
    • हम आपको रूहानी नॉलेज सुनाते हैं।
    • सुनना हो तो सुनो।
    • मूँझने की तो कोई बात ही नहीं।
    • सारी दुनिया है एक तरफ और तुम कितने थोड़े हो।
  • बाप अब कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे ऊपर जो पापों का बोझा है वह उतर जायेगा और तुम पवित्र बन जायेंगे।
    • जो पवित्र बनेंगे वही पवित्र दुनिया का मालिक बनेंगे।
    • अभी पुरानी दुनिया बदलनी है।
    • कलियुग के बाद सतयुग आना है।
    • सतयुग है पावन दुनिया।
    • कलियुग में ही मुझे बुलाते हैं कि आकर पावन दुनिया बनाओ।
    • सो मैं अब आया हूँ, मामेकम् याद करो।
    • अब दुनिया बदल रही है।
    • यह अन्तिम जन्म है।
  • इस पुरानी दुनिया में आसुरी राज्य खलास हो रामराज्य स्थापन हो रहा है इसलिए अब अन्तिम जन्म गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनो।
    • यह विषय सागर है ना।
    • कमल फूल पानी के ऊपर रहता है।
    • तो अब तुम गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल के समान पवित्र बनो।
    • तुम बच्चे जानते हो हम राजाई स्थापन कर रहे हैं।
    • अभी सारी दुनिया बदलनी है।
    • वह धर्म स्थापक सिर्फ अपना-अपना धर्म स्थापन करते हैं।
    • पहले वह पावन होते हैं फिर पतित बनते हैं।
    • सतगुरू तो एक ही सद्गति दाता है।
    • मनुष्य गुरू करते ही तब हैं जब सद्गति में जाना चाहते हैं।
  • जब पाप बहुत होते हैं तब रूहानी बाप ज्ञान सुनाते हैं।
    • भक्ति का फल ज्ञान तुमको भगवान से मिलता है।
    • भगवान कोई भक्ति नहीं सिखलाते हैं।
    • वह तो ज्ञान देते हैं।
  • कहते हैं मामेकम् याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और कोई पावन बनने का रास्ता ही नहीं।
  • नई दुनिया में सब स्वर्गवासी थे।
    • अब पुरानी दुनिया में सब नर्कवासी हैं इसलिए बाप कहते हैं कि मैं सबका उद्धार करने आता हूँ।
  • मैं ही आकर रूहानी ज्ञान देता हूँ।
    • बाप अपना परिचय दे रहे हैं।
    • मैं तुम्हारा बाप हूँ।
    • अभी यह है नर्क।
    • नई दुनिया को स्वर्ग कहा जाता है।
    • ऐसे कैसे कहेंगे कि यहाँ ही स्वर्ग नर्क है, जिनको बहुत धन है वह स्वर्ग में हैं।
    • स्वर्ग तो होता ही है नई दुनिया में।
    • यहाँ स्वर्ग कहाँ से आया इसलिए हम कोई मनुष्यों की बात सुनते नहीं।
  • बाप कहते हैं तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है तो मामेकम् याद करो।
    • सारा दिन बुद्धि में यह नॉलेज रहनी चाहिए।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) एक बाप से ही रूहानी बातें सुननी है।
    • किसी से दूसरी बातों का वाद-विवाद नहीं करना है।
  • 2) देही-अभिमानी बनने की मेहनत करनी है।
    • सतोप्रधान बनने के लिए एक बाप की याद में रहना है।
  • वरदान:-
  • बाप के हाथ और साथ की स्मृति से मुश्किल को सहज बनाने वाले बेफिक्र वा निश्चिंत भव
  • जैसे किसी बड़े के हाथ में हाथ होता है तो स्थिति बेफिक्र वा निश्चिंत रहती है। ऐसे हर कर्म में यही समझना चाहिए कि बापदादा मेरे साथ भी हैं और हमारे इस अलौकिक जीवन का हाथ उनके हाथ में है अर्थात् जीवन उनके हवाले है, तो जिम्मेवारी भी उनकी हो जाती है।
  • सभी बोझ बाप के ऊपर रख अपने को हल्का कर दो।
  • बोझ उतारने वा मुश्किल को सहज करने का साधन ही है - बाप का हाथ और साथ।
  • स्लोगन:-
  • पुरुषार्थ में सच्चाई हो तो बापदादा की एकस्ट्रा मदद का अनुभव करेंगे।
  • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
  • 1)
  • “ज्ञान, योग और दैवी गुणों की धारणा जीवन का आधार है'' यह तो अपने को निश्चय है कि परमपिता परमात्मा द्वारा हमें नॉलेज मिल रही है, इस नॉलेज में मुख्य तीन प्वाइन्ट हैं जिसके लिये अपने को पूरा पुरुषार्थ करने का ध्यान रखना है।
  • इसमें पहले है योग अथवा ईश्वरीय निरंतर याद, जिससे विकर्मों का विनाश होता है।
  • दूसरा है ज्ञान माना इस सारे ब्रह्माण्ड, सृष्टि की आदि-मध्य-अन्त कैसे होती है, जब यह नॉलेज हो तब ही इस लाइफ में प्रैक्टिकल चेंज आ सकती है और हम भविष्य प्रालब्ध अच्छी बना सकते हैं।
  • तीसरी प्वाइन्ट है - क्वालिफिकेशन तो हमको सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण अवश्य बनना है तब ही देवता बन सकते हैं।
  • तो अपने आपको चलते-फिरते, खाते-पीते इन तीनों प्वाइन्ट पर ध्यान देना जरुरी है।
  • इस एक ही जन्म में ज्ञान बल, योग बल और दैवी गुणों की धारणा की जाती है।
  • तीनों का आपस में कनेक्शन है - ज्ञान बिगर योग नहीं लग सकता और योग बिगर दैवी गुणों की धारणा नहीं होती, इन तीनों प्वाइन्ट पर सारी जीवन का आधार है, तब ही विकर्मों का खाता खलास हो अच्छे कर्म बनते हैं।
  • इसे ही ईश्वरीय जीवन कहा जाता है।
  • 2)
  • “भारत का प्राचीन योग परमात्मा द्वारा सिखाया हुआ है'' अपना यह ईश्वरीय योग भारत में प्राचीन योग के नाम से मशहूर है।
  • इस योग को अविनाशी योग क्यों कहते हैं?
  • क्योंकि अविनाशी परमपिता परमात्मा द्वारा सिखाया गया है।
  • भल योग और मनुष्य आत्मायें भी सिखाती हैं इसलिये योगाश्रम वगैरा खोलते रहते हैं परन्तु वो प्राचीन योग सिखला नहीं सकते।
  • अगर ऐसा योग होता तो फिर वो बल कहाँ!
  • भारत तो दिन प्रतिदिन निर्बल होता जाता है इससे सिद्ध है वह योग अविनाशी योग नहीं है, जिसके साथ योग लगाना है वह खुद ही सिखला सकता है।
  • बाकी औरों से तो योग लगाना ही नहीं है तो फिर सिखलायेंगे कैसे?
  • यह तो स्वयं परमात्मा ही कार्य कर सकता है, वही हमें पूरा भेद बता सकता है।
  • बाकी तो सब तरफ कहते रहते हैं, हम योग सिखलायेंगे।
  • यह तो हम जानते हैं कि सच्चा योग तो खुद परमात्मा ही सिखलाए सूर्यवंशी चन्द्रवंशी घराना व दैवी राज्य स्थापन करते हैं।
  • अब वो प्राचीन योग परमात्मा आकर कल्प-कल्प हमें सिखलाते हैं।
  • कहते हैं हे आत्मा मुझ परमात्मा के साथ निरन्तर योग लगाओ तो तुम्हारे पाप नष्ट हो जायेंगे। अच्छा। ओम् शान्ति।