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- ओम् शान्ति।
- भगवानुवाच।
- भगवान क्या कहते हैं?
- यह भगवानुवाच किसने कहा?
- देखने में तो कोई आता नहीं।
- मनुष्य को भगवान नहीं कहा जाता।
- कोई समझेंगे कि बोलने वाले ही कहते हैं - भगवानुवाच।
- लेकिन निराकार भगवान बोल रहे हैं, यह सिर्फ तुम ही जानते हो।
- यह कौन बैठा है!
- भगवान कहाँ हैं!
- यह नई बात है ना इसलिए मनुष्य मूंझ जाते हैं।
- लेकिन भगवानुवाच है जरूर।
- कहते हैं कि मैं बच्चों को राजयोग सिखा रहा हूँ।
- नर से नारायण अथवा कृष्ण, नारी को लक्ष्मी अथवा राधे बनाने लिए योग और ज्ञान सिखाता हूँ, इनसे और क्या चाहिए।
- तुमको हम राजाओं का राजा, प्रिन्स का प्रिन्स बनाता हूँ।
- प्रिन्स-प्रिन्सेज भी तो मन्दिर में जाते होंगे ना।
- विकारी प्रिन्स, निर्विकारी प्रिन्स श्रीकृष्ण को नमन करते हैं।
- तो मैं तुमको प्रिन्स का भी प्रिन्स बनाता हूँ।
- श्रीकृष्ण जैसे स्वर्ग का प्रिन्स बनो।
- नॉलेज पढ़ने से ही तो बनेंगे ना।
- डॉक्टर वा बैरिस्टर कहेंगे ना स्टूडेन्ट को, कि मैं तुमको डॉक्टर वा बैरिस्टर बनाता हूँ।
- परन्तु पढ़ेंगे तब तो बनेंगे।
- बाबा कहते बच्चे, अच्छी रीति समझते हो कि राजयोग सिखलाने वाला एक ही भगवान है, न कि कृष्ण।
- राधे-कृष्ण तो अलग-अलग राजाई के बच्चे हैं।
- उन्हों की आपस में सगाई होती है, शादी के बाद नाम बदलता है इसलिए चित्र में भी लक्ष्मी-नारायण के नीचे राधे कृष्ण को दिखाया है।
- अब बाप अच्छी रीति समझाते हैं कि यह ब्रह्मा भी नम्बरवन भगत था।
- पिछाड़ी में नारायण की पूजा करते थे।
- कृष्ण की भक्ति की वा नारायण की भक्ति की, एक ही बात है।
- कृष्ण ही बड़ा होकर नारायण बनता है।
- अब तुमको नर से नारायण बनने के लिए राजयोग सिखला रहे हैं।
- अब तुम्हारे 84 जन्म पूरे हुए।
- अब इनकी आत्मा भी पढ़ रही है फिर भविष्य में श्रीकृष्ण बनती है।
- बाप कहते हैं - बच्चों तुम ज्ञान-चिता पर बैठ गोरे बनते हो फिर काम-चिता पर बैठ सांवरे बन गये हो।
- यह है कंसपुरी, मैं तुमको कृष्ण पुरी ले जाने के लिए आया हूँ।
- श्रीकृष्ण ही सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण है... यहाँ कोई में सर्वगुण हैं नहीं।
- मैं आया हूँ बच्चों को सम्पूर्ण निर्विकारी बनाने।
- बनना है योगबल से।
- बाहुबल है - हिंसक लड़ाई, जो तीर-कमान से होती थी।
- फिर बन्दूकों, तलवारों से हुई।
- अब तो होती है बाम्बस से। खुद कहते हैं हम ऐसे बाम्बस बनाते हैं जो घर बैठे सब खत्म हो जायेंगे।
- फिर मिलेट्री क्या करेगी!
- बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बच्चों यह पाठशाला है।
- मैं तुमको प्रिन्स श्रीकृष्ण जैसा बनाता हूँ।
- जो फर्स्ट प्रिन्स सतयुग का था, वह अब 84 जन्म लेकर कलियुग में बेगर बना है।
- भारत में ही उनका राज्य था।
- फिर पुनर्जन्म लेना पड़े ना।
- कृष्ण को भगवान कहते तो भगवान फिर पुनर्जन्म में कैसे आयेगा?
- भगवान तो निराकार है। वह है ही एक रचयिता।
- बाकी सब हैं रचना, तब तो कहते हैं कि हम आत्मायें सब भाई-भाई हैं।
- बाप समझाते हैं कि तुम ब्रह्माकुमार-कुमारी आपस में भाई-बहिन ठहरे।
- तो फिर क्रिमिनल एसाल्ट कैसे हो।
- तुम वर्सा एक बाप से लेते हो, भविष्य के लिए।
- अगर पवित्र नहीं रहेंगे तो शान्तिधाम, सुखधाम में कैसे जायेंगे।
- पुकारते भी हैं हम पतित बन गये हैं, पावन बनाने आओ।
- तो बाप कहते हैं मुझे याद करो।
- यह तुम्हारा अन्तिम जन्म है।
- तुम सब आत्मायें अब वापिस वानप्रस्थ में जा सकती हो इसलिए वानप्रस्थी हो।
- ऐसा कोई गुरू रास्ता बता न सके।
- यह ज्ञान है ही एक बाप के पास।
- वही पतित-पावन निराकार है।
- बाप कहते हैं कि मुझे याद करो, थोड़े टाइम के लिए, मैंने इस तन का लोन लिया है।
- शरीर बिगर आत्मा कैसे बोल सकेगी!
- भगवानुवाच है कि मैं बूढ़े साधारण तन में प्रवेश कर तुम बच्चों को पढ़ाता हूँ।
- मैं गर्भ में नहीं आता हूँ।
- गर्भ में आने वाले को तो पुनर्जन्म में आना पड़े।
- मैं एक ही बार आता हूँ।
- प्रकृति का आधार मुझे जरूर चाहिए।
- मैं इसमें बैठ तुमको पढ़ाता हूँ।
- यह तो पहले अपना जवाहरात का धंधा करता था।
- कोई गुरू ने नहीं सिखाया, अचानक ही बाप ने प्रवेश किया।
- करनकरावनहार होने कारण इससे कर्तव्य कराते रहते हैं।
- यह भी सीखता जाता है।
- तुम भी साथ में सीखते जाते हो।
- बोलते हैं तुमको, परन्तु सुनता पहले मैं हूँ।
- पढ़ाने तुम बच्चों को आता हूँ परन्तु इनकी आत्मा भी पढ़ती रहती है।
- बच्चों को राजयोग सिखलाने आया हूँ।
- ऐसा कभी कोई पढ़ाते नहीं हैं।
- यह है पावन बनने की बात।
- यह संगमयुग है ही पुरुषोत्तम बनने का।
- पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण था।
- स्वयंवर के बाद उनकी डिग्री कुछ कम हो जाती है इसलिए श्रीकृष्ण की महिमा बहुत है।
- नाम ही है श्रीकृष्णपुरी, इनको कहा जाता है कंसपुरी।
- बाकी कहानी बनाई है - कृष्ण और कंस की।
- बच्चों को समझाया है कि परिपक्व अवस्था होने से भक्ति आपेही छूट जायेगी।
- तुम कभी कोई को ऐसा नहीं कहना कि भक्ति न करो।
- उनको ज्ञान देना है।
- बाप तुमको ज्ञान दे स्वर्ग का प्रिन्स बनाने आये हैं।
- कृष्ण भी स्वर्ग का मालिक था, अब नहीं है।
- फिर से वह भी राजयोग द्वारा बन रहे हैं।
- तुमको भी पुरूषार्थ कर बाप को याद करना है।
- हेविन की स्थापना करने वाला है - हेविनली गॉड फादर।
- वही आकर नई सृष्टि रचते हैं।
- वह करेगा तब जब कलियुग पूरा होगा।
- सतयुग-त्रेता में नहीं आते।
- कहते हैं मैं कल्प-कल्प संगमयुगे आता हूँ।
- उन्होंने कल्प अक्षर निकाल सिर्फ युगे-युगे लिख दिया है।
- तो भी 4 युग हैं।
- पांचवा है यह संगमयुग।
- अच्छा फिर तो 5 अवतार मानों।
- परन्तु इतने कच्छ-मच्छ परशुराम अवतार होते हैं क्या!
- यह सभी हैं शास्त्रों की बातें।
- धर्म का नाम और भारत का नाम ही बदली कर दिया है।
- हिन्दू धर्म और हिन्दुस्तान कह देते हैं।
- भारत नाम क्यों बदलना चाहिए!
- यदा यदाहि धर्मस्य... भारत।
- उसमें भी भारत का अक्षर आता है।
- बाप समझाते हैं कि तुमने कोई एक जन्म थोड़ेही भक्ति की है।
- द्वापर से की है।
- भक्ति भी पहले अव्यभिचारी थी, सिर्फ शिव की भक्ति करते थे।
- जिस शिव-बाबा ने ही भारत को स्वर्ग बनाया था और अब फिर स्वर्ग का मालिक बनाने आये हैं।
- तो पतित शरीर में बैठ बताते हैं कि मैं आता ही हूँ, पतित शरीर में, पतित दुनिया में पतितों को पावन बनाने।
- भक्ति मार्ग में तो फिर भी मेरे लिए बड़ा भारी मन्दिर बनाते हैं।
- कितनी क्लीयर बात है।
- इनमें बाबा की प्रवेशता हुई और गीता आदि पढ़ना छोड़ दिया।
- भक्ति छूट गई।
- अनायास ही तो छोड़ा।
- तुमको कोई ने कहा नहीं कि भक्ति नहीं करो।
- अब तुम बच्चों को बाबा समझाते हैं कि फिर से मैं तुमको कृष्णपुरी का मालिक बनाता हूँ।
- कृष्ण की फिर 8 डिनायस्टी चलती हैं।
- पहले कहेंगे प्रिन्स ऑफ सतयुग फिर बनता है किंग ऑफ सतयुग।
- 8 पीढ़ी उनकी चलती हैं।
- उस समय तो दूसरी राजाई होती नहीं।
- अब बाबा कहते हैं तुम बच्चे भी सतयुग के प्रिन्स बनो।
- भक्ति में कोई सुख नहीं है।
- ज्ञान से तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो।
- कोई का बाप मर जाता है तो उनसे पूछा जाये तुम्हारा बाप कहाँ गया!
- कहेंगे स्वर्गवासी हुआ।
- समझते हैं आत्मा और शरीर दोनों गये।
- लेकिन शरीर तो यहाँ ही छोड़ गये, बाकी गई आत्मा।
- इसका मतलब पहले नर्क में था।
- आत्मा शरीर छोड़ स्वर्ग में गई फिर इसमें रोने की क्या दरकार है?
- स्वर्ग अब यहाँ है क्या?
- परन्तु समझते नहीं हैं।
- कह देते सब ईश्वर का हुक्म है।
- सुख दु:ख सब ईश्वर देता है, सब ईश्वर के रूप हैं।
- परन्तु बाप कहते हैं कि मैं बच्चों को दु:ख कैसे दे सकता हूँ।
- बाप से बच्चे कब दु:ख माँगते हैं क्या?
- बाप तो बच्चों को लायक बनाकर प्रापर्टी दे जाते हैं।
- बाकी दु:ख तो हर एक को कर्मो के अनुसार ही मिलता है।
- बाप कहते हैं कि अभी बच्चे आदि कुछ नहीं माँगो।
- अभी यह प्रापर्टी आदि सब खत्म होने वाली है।
- फिर तुम्हारे बच्चों को क्या मिलेगा!
- इतना समय ही नहीं है जो तुम्हारी प्रापर्टी का बच्चा मालिक बन सके।
- बच्चा बड़ा हो तब तो मालिक बनें, परन्तु इतना टाइम ही नहीं है।
- विनाश समाने खड़ा है।
- मनुष्य तो कहते हैं कि कलियुग में अजुन 40 हजार वर्ष पड़े हैं।
- यह ब्रह्माकुमार-कुमारियां तो विनाश-विनाश करते रहते हैं।
- कहानी है ना - शेर आया, शेर आया... आखिर तो आया और खा गया।
- सब समझते हैं कि थोड़ा-थोड़ा काल आयेगा।
- यह तो होता ही रहता है लेकिन तुम कहते हो कि महाकाल आया हुआ है।
- शिवबाबा कालों का काल आया हुआ है, जो सभी आत्माओं को वापिस ले जायेगा।
- तो शरीर तो जरूर छोड़ना पड़े इसलिए बाबा कहते हैं - योग से पवित्र बनो।
- आत्माओं को पवित्र बनाए फिर वापिस ले जायेंगे।
- अगर पवित्र नहीं बनेंगे तो बहुत सजायें अन्त में खानी पड़ेंगी और ऊंच पद भी पा नहीं सकेंगे।
- श्रीकृष्ण नम्बरवन पास विद् ऑनर है, उनको स्कॉलरशिप मिलती है।
- 21 जन्म राज्य पाते हैं।
- कितना सहज समझाते हैं।
- बुद्धि में बैठता भी है फिर गुम हो जाता है।
- किसको भी भक्ति छुड़ानी नहीं है।
- बाप आये हैं - भक्तों को भक्ति का फल देने।
- कहते हैं मैं कल्प पहले मिसल फिर उसी साधारण तन में आया हूँ।
- कल्प-कल्प आकर तुमको पढ़ाता हूँ।
- यह है ऊंच से ऊंच पढ़ाई।
- तुम जानते हो हम सतो-प्रधान थे।
- अब तमोप्रधान हैं फिर भारत ही सतोप्रधान बनता है।
- और धर्म वालों ने इतना सुख नहीं देखा है तो दु:ख भी नहीं देखा है।
- बाहर वालों के पास पैसा तो बहुत है तो गरीब देश को कर्ज देते हैं।
- उन बिचारों को पता नहीं है, यह तो रिटर्न हो रहा है।
- बिल्कुल घोर अन्धियारे में कुम्भकरण की नींद में सोये हुए हैं।
- पिछाड़ी में हाय-हाय कर उठेंगे।
- फिर तुम कहेंगे - टू लेट क्योंकि लड़ाई शुरू हो जायेगी।
- फिर क्या करेंगे!
- भंभोर को आग लग जाती फिर तो टू लेट हो जाता है इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, अब जल्दी-जल्दी पुरुषार्थ करते जाओ।
- बाबा कोई जास्ती तकलीफ नहीं देते हैं।
- बाबा को आकर कहते हैं कि बाबा अगर हम पूजा नहीं करते तो वह कहते हैं कि यह तो नास्तिक बन गया है।
- बाबा राय देते हैं कि साक्षी होकर बाबा की याद में रहो।
- थोड़ी-थोड़ी पूजा बाहर से कर दो।
- एक होता है दिल से करना, दूसरा होता है राज़ी करने के लिए करना।
- अन्दर में तुमको शिवबाबा को याद करना है।
- अगर कोई तंग करते हैं तो पूजा कर दिखाओ, तो वह खुश हो जायेंगे।
- यह कोई पाप का काम नहीं है।
- बाबा तो बहुतों को कहते हैं शादी आदि पर भले जाओ।
- दोनों तरफ तोड़ निभाना है।
- वहाँ भी सुनाते-सुनाते कोई न कोई को तीर लग जायेगा।
- युक्ति से चलना है।
- बाप का फरमान है कि अब पतित नहीं बनना है।
- पवित्र बनने से ही तुम कृष्णपुरी के मालिक बनेंगे।
- शिवबाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और विश्व के मालिक बन जायेंगे।
- बच्चों, ऐसी-ऐसी युक्ति से अपने मित्र-सम्बन्धियों को समझाना है।
- वह है जिस्मानी यात्रा, यह है रूहानी यात्रा।
- यह रूहानी यात्रा बाप सिखलाते हैं।
- कहते हैं कि मामेकम् याद करो तो पतित से पावन बन जायेंगे और सब दु:ख दूर हो जायेंगे।
- कोई विरला व्यापारी व्यापार करे अर्थात् बैकुण्ठ की बादशाही लेवे।
- श्रीमत पर चलते रहो।
- ऐसे भी न हो पैसे आदि कहाँ मुफ्त में जायें, कुछ फल नहीं निकले।
- घरबार भी सम्भालना है, बच्चों की पालना भी करनी है।
- सिर्फ श्रीमत पर चलना है।
- राय लेनी है कि बाबा इस हालत में हम क्या करें!
- बाबा बच्ची कहती हैं कि हम शादी करें तो बाबा कहते हैं कि शादी करानी ही पड़ेगी क्योकि उनका हिस्सा है, उनको दे दो।
- बाप सिर्फ समझाते हैं फिर भी कुछ पूछना हो तो पूछकर श्रीमत पर चलो।
- बच्चों को बाप की आज्ञा पर चलना है, इसमें ही कल्याण है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) हर कर्म साक्षी होकर शिवबाबा की याद में करना है।
- लौकिक, अलौकिक दोनों तरफ तोड़ निभाना है।
- लौकिक से युक्तियुक्त चलना है।
- 2) इस समय अन्तिम जन्म में भी यह वानप्रस्थ अवस्था है।
- वापिस घर जाना है इसलिए पावन जरूर बनना है।
- कोई भी बंधन नहीं बनाने हैं।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- पुराने संस्कारों वा विघ्नों से मुक्ति प्राप्त करने वाले सदा शक्ति सम्पन्न भव
- किसी भी प्रकार के विघ्नों से, कमजोरियों से या पुराने संस्कारों से मुक्ति चाहते हो तो शक्ति धारण करो अर्थात् अंलकारी रूप होकर रहो।
- जो अलंकारों से सदा सजे सजाये रहते हैं वह भविष्य में विष्णुवंशी बनते हैं लेकिन अभी वैष्णव बन जाते हैं।
- उन्हें कोई भी तमोगुणी संकल्प वा संस्कार टच नहीं कर सकता।
- वे पुरानी दुनिया अथवा दुनिया की कोई भी वस्तु और व्यक्तियों से सहज ही किनारा कर लेते हैं, उन्हें कारणे अकारणे भी कोई टच नहीं कर सकता।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- हर समय हर कर्म में बैलेन्स रखना ही सर्व की ब्लैसिंग प्राप्त करने का साधन है।
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