22-09-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

 

"मीठे बच्चे - इस बेहद के ड्रामा में हीरो हीरोइन का पार्ट तुम्हारा है, बाप का नहीं, बाप के पास सिर्फ पतितों को पावन बनाने का हुनर है''

प्रश्नः-

ब्रह्मा के चित्र को देख जो प्रश्न उठाते हैं, उन्हें कौन सा राज़ समझाना है?

उत्तर:-

उन्हें समझाओ कि यह आदि सो अन्त वाली आत्मा है।

जो फर्स्ट प्रिन्स श्रीकृष्ण है, उनके ही लास्ट जन्म में बाप आते हैं।

यह पतित तन है, इन्हें ही पावन बनना है।

यह कोई भगवान नहीं।

भगवान तो एवर-प्योर है।

उसने इनके तन का आधार लिया है।

 

गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी...


  • ओम् शान्ति।
  • बाप ने बच्चों को समझाया है कि शान्ति के लिए कोई बाहर दर-दर धक्का नहीं खाना है।
  • जैसे हठयोगी संन्यासी समझते हैं - गृहस्थ व्यवहार में रहते शान्ति मिल नहीं सकती।
  • शान्ति जंगल में मिलती है।
  • परन्तु बाप समझाते हैं शान्ति वहाँ भी नहीं मिल सकती।
  • इस पर एक कहानी वा दृष्टान्त सुनाते हैं कि रानी के गले में हार पड़ा था और ढूढती थी बाहर.... ऐसे शान्ति तो तुम्हारे गले में पड़ी है।
  • बाहर कहाँ ढूँढते हो।
  • बाप आकर समझाते हैं बच्चे, तुम आत्मा का स्वधर्म है ही शान्त।
  • यह शरीर तो तुम्हारी कर्मेन्द्रियां हैं, जिससे तुमको पार्ट बजाना पड़ता है।
  • आत्मा तो अविनाशी है।
  • आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है, न विनाश होती है।
  • हाँ आत्मा पतित बनती है, इनको ही पावन बनना होता है।
  • आत्मा को पहले किशोर शरीर मिलता है फिर युवा, वृद्ध होता है।
  • आत्मा तो है ही एकरस।
  • पहले-पहले तो आत्मा को जानना होता है।
  • मैं आत्मा ही बैरिस्टर आदि बनता हूँ।
  • इसको कहा जाता है - आत्म-अभिमानी भव।
  • बाप समझाते हैं बच्चे तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो इसलिए अपने को शरीर समझ लेते हो, यह भूल जाते हो कि मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है।
  • तो अपने को रियलाइज करना है।
  • 84 जन्म भी आत्मा लेती है।
  • अभी बाप ने समझाया है जो ब्राह्मण बने हैं वही फिर देवता बनने वाले हैं।
  • ऐसे भी नहीं कि सब 84 जन्म लेते हैं।
  • कोई पहले आयेगा, कोई 50-100 वर्ष बाद भी आते रहेंगे।
  • कोई के 80-82, कोई के कितने जन्म होंगे।
  • मनुष्य तो 84 लाख जन्म कह देते हैं, इनसे भी सैटिस्फाई नहीं होते हैं फिर कह देते कण-कण में भगवान है।
  • अब भगवान कहते हैं कि मैं किसी मनुष्य तन में भी नहीं हूँ तो जानवर, पत्थर ठिक्कर कण-कण में कैसे होगा।
  • बाप ने समझाया है नम्बरवन ही लास्ट नम्बर में तमोप्रधान बनते हैं।
  • मैं खुद कहता हूँ कि मैं बहुत जन्मों के अन्त में साधारण तन में प्रवेश करता हूँ।
  • जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं वह तो जरूर पतित होगा।
  • पावन तो हो नहीं सकता।
  • बाप खुद कहते हैं पहले नम्बर में है श्रीकृष्ण, फर्स्ट प्रिन्स।
  • श्री नारायण तो बाद में बनता है, जब बड़ा होता है।
  • वह भी 20-25 वर्ष कम हो जाते हैं।
  • उनके भी पूरे 84 जन्म नहीं कहेंगे।
  • नम्बरवन है श्रीकृष्ण।
  • भल वही फिर स्वयंवर बाद नारायण बनते हैं।
  • परन्तु हिसाब तो बच्चों को करना है ना।
  • पूरे 84 जन्म, 5 हजार वर्ष श्रीकृष्ण के ही कहेंगे।
  • तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कल्प-कल्प उसी ही तन में आता हूँ, जिसका आदि से लेकर अन्त तक पार्ट है।
  • दूसरे कोई में आ नहीं सकता हूँ।
  • हिसाब है ना।
  • ब्रह्मा ही पहला नम्बर ठहरा।
  • मैं और कोई में आ कैसे सकता।
  • तुमसे बहुत लोग पूछते हैं सिर्फ एक ही ब्रह्मा में क्यों आते हैं!
  • परन्तु यह हिसाब है ना।
  • यह समझने की बातें हैं।
  • गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
  • विष्णु वा शंकर द्वारा स्थापना नहीं करते।
  • यह और कोई का काम नहीं है।
  • मनुष्य रचता और रचना को नहीं जानते हैं।
  • यह भी ड्रामा में नूँध है।
  • बनी बनाई बन रही.. चिंता ताकी कीजिये.. यह अभी की बात है, जो होनी है वही होती है।
  • वह बदल नहीं सकती।
  • आज जो कुछ होता है फिर 5 हजार वर्ष बाद होगा।
  • बाबा ने समझाया भी था - कोई भी बात ऐसी देखो तो बोलो यह कोई नई बात नहीं।
  • 5 हजार वर्ष पहले भी हुआ था।
  • एकदम ऐसा लिख दो।
  • फिर भल वह आकर पूछे, लिखने में कोई हर्जा नहीं है।
  • यह लड़ाई पहले लगी थी, नथिंग न्यु।
  • महाभारत की लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले भी हुई थी।
  • क्रिश्चियन ने भारत में आकर राज्य छीना, नथिंग न्यु।
  • फिर कल्प बाद भी ऐसे ही होगा।
  • यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है।
  • अब फिर से आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है।
  • जिनके 84 जन्म पूरे हुए हैं वही पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
  • यह सब राज़ बाप ही बैठ समझाते हैं।
  • बाप कहते हैं - मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ, इनको उल्टा झाड़ कहा जाता है।
  • इस कल्प वृक्ष की आयु 5 हजार वर्ष है।
  • स्वास्तिका में 4 भाग एक जैसे देखेंगे।
  • युग भी इक्वल हैं, उसमें फ़र्क नहीं पड़ता।
  • बाप समझाते हैं कि देखो दुनिया में तो क्या-क्या हो रहा है।
  • कोई मून में जाते, कोई आग पर, कोई पानी पर चलना सीखते हैं।
  • यह सब है फालतू, इससे कोई भी फायदा नहीं।
  • मनुष्य पावन बन मुक्ति-जीवनमुक्ति में तो जा नहीं सकते।
  • कुछ भी करें परन्तु वापिस घर जा नहीं सकते।
  • आत्मा को अपना घर और बाप का घर भूल गया है।
  • आत्मा अपने को ही भूल देह-अभिमानी बन पड़ी है।
  • फिर मन्दिरों में जाकर महिमा गाते हैं।
  • आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नींच पापी हैं। अपनी ग्लानी करते हैं।
  • बाप तो कभी पुजारी नहीं बनते।
  • अच्छा फिर सेकेण्ड नम्बर में कहेंगे शंकर भी एवर पूज्य है।
  • वह भी पुजारी नहीं बनते, उनका पार्ट ही यहाँ नहीं है।
  • इस स्टेज पर पार्ट है ब्रह्मा और विष्णु का।
  • ब्रह्मा और विष्णु का क्या-क्या पार्ट है, यह दुनिया में किसको भी पता नहीं है।
  • त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते हैं, अर्थ कुछ भी नहीं समझते।
  • यह भी गाते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, कौन करते हैं, उनका चित्र ही नहीं।
  • मुख से कहते हैं परन्तु वह कहाँ है।
  • शिव क्या चीज़ है, वह भी नहीं जानते।
  • आत्मा के लिए कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा..... मैं आत्मा अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है।
  • कितने शरीर लेते हैं, कुछ भी पता नहीं।
  • मनुष्य कितने दु:खी हैं, रड़ियां मारते रहते हैं - ओ गॉड फादर।
  • जबसे दु:ख शुरू हुआ है, पुकारते आये हैं।
  • यह भी समझाया गया है भारत में जब रावण राज्य शुरू होता है तो ऐसे नहीं और धर्मो में भी रावणराज्य हो गया।
  • नहीं, उनको तो अपने समय पर सतो रजो तमो में आना ही है।
  • यह कहानी सारी भारत पर है।
  • वह तो बाईप्लाट हैं।
  • बाप बीच में ही आते हैं।
  • भारत जब तमोप्रधान बन जाता है तो फिर सारा झाड़ तमोप्रधान बन जाता है।
  • उनको भी सुख दु:ख भोगना है।
  • झाड़ में नये-नये पत्ते निकलते हैं।
  • वह बड़े शोभनिक होते हैं।
  • नयों को फिर सतो रजो तमो में जरूर आना है।
  • पिछाड़ी में जो आते हैं उनका कुछ मान रहता है।
  • एक जन्म में भी सतो रजो तमो से पास कर सकते हैं, परन्तु उनकी कोई वैल्यु नहीं रहती।
  • वैल्यु तो उनकी है जो हीरो-हीरोइन का पार्ट बजाते हैं।
  • ऐसे नहीं कहेंगे बाबा ही हीरो-हीरोइन का पार्ट बजाते हैं।
  • बाबा के लिए नहीं कह सकते हैं।
  • वह तो आकर पतितों को पावन बनाते हैं।
  • खुद पतित नहीं बनते हैं।
  • तुम पतित से पावन बनने की मेहनत करते हो।
  • श्रीमत पर राजयोग से ही राज्य लिया था।
  • अभी तुम फिर ले रहे हो।
  • बाबा कहते हैं- मैं तो राज्य नहीं करता हूँ, तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
  • अब दुनिया में मनुष्य कहते तो बहुत हैं।
  • भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
  • परन्तु उनका अर्थ न खुद समझते हैं, न किसको समझा सकते हैं।
  • भगवानुवाच, तो जरूर भगवान आया था तब तो कहा होगा ना हे बच्चों, भारत में ही शिव जयन्ती, शिव रात्रि मनाते हैं।
  • बाप आते भी हैं भारत खण्ड में।
  • भारत ही अविनाशी खण्ड है।
  • उनकी महिमा बहुत भारी है।
  • जैसे बाप की महिमा अपरमअपार है।
  • वैसे भारत की महिमा भी अपरमअपार है।
  • भारत में ही परमपिता परमात्मा आकर सब मनुष्य मात्र की सद्गति करते हैं।
  • सबको सुख देते हैं।
  • उनका बर्थ प्लेस भारत है।
  • भारत ही प्राचीन देश है।
  • भगवान राजयोग सिखलाने भारत में ही आया था।
  • परन्तु कृष्ण को भगवान कह देने से उनकी महिमा नहीं रही है।
  • भगवान तो है ही एक, उनको ही सतगुरू कहा जाता है।
  • बाकी गुरू तो ढेर हैं।
  • कोई धन्धा सिखलाने वाले को भी गुरू कह देते हैं।
  • आजकल तो सबको अवतार मान लेते हैं।
  • कुछ भी समझते नहीं।
  • जब बिल्कुल पतित बन जाते हैं तब पुकारते हैं - बाबा आकर हमको पावन बनाओ।
  • बाप ही आकर सच्ची-सच्ची अमरकथा सुनाते हैं।
  • अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हम 84 जन्मों में कैसे आते हैं।
  • पहले अच्छा जन्म फिर उतरते आयेंगे।
  • दुनिया की भी उतरती कला होती है।
  • मनुष्यों की बुद्धि सतो, रजो, तमो बनती है।
  • सतयुग से फिर थोड़ी-थोड़ी उतरती कला शुरू हो जाती है।
  • चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
  • सर्व का सद्गति दाता तो एक बाप है ना।
  • वो गुरू लोग तो सिर्फ शास्त्र सुनाते हैं।
  • सुनते-सुनते गिरते ही आये हैं।
  • बेहद का बाप आकर बच्चों से पूछते हैं, मैं तुमको इतना साहूकार बनाकर गया, इतने हीरे-जवाहरों के महल देकर गया, वह सब कहाँ गये?
  • लौकिक बाप बच्चों को पैसे देते हैं लेकिन बच्चे पैसा बरबाद कर देते हैं तो बाप बुलाकर पूछते हैं तुमने इतना पैसा कहाँ बरबाद किया?
  • बच्चों के पास पैसे होने से उड़ाते बहुत हैं।
  • बाप धर्मात्मा है, बच्चे विलायत में जाकर लाखों रूपये उड़ा आते हैं।
  • बाप कुछ कर नहीं सकता।
  • बाप फारकती भी नहीं दे सकते क्योंकि दादे की मिलकियत है।
  • परन्तु अन्दर जलते रहते हैं।
  • बाप के मर जाने के बाद, कोई-कोई तो ऐसे गन्दे बच्चे होते हैं, 12 मास में सारी मिलकियत उड़ा देते हैं।
  • वह हैं हद की बातें।
  • यह है फिर बेहद की बात।
  • बेहद का बाप कहते हैं तुम कितने धनवान थे, विश्व के मालिक थे।
  • फिर कंगाल क्यों बने हो?
  • इतना धन कहाँ किया?
  • बच्चों से ही बाप पूछते हैं - भारत को इतना साहूकार बनाया, सब पैसे कहाँ गये?
  • फिर बाप ही बैठ समझाते हैं।
  • भक्ति मार्ग में कितना खर्चा करते हैं।
  • शास्त्रों आदि के पिछाड़ी कितना खर्चा करते हैं।
  • माथा भी टेकते गये, टिप्पड़ भी घिस गई।
  • पैसे आदि सब कुछ गँवा बैठे, यह है ड्रामा।
  • हम तुमको साहूकार बनाते हैं।
  • रावण तुमको कंगाल बनाते हैं।
  • भारतवासियों को ही बाप समझायेंगे ना।
  • भारत ही सोने की चिड़िया थी, इतना धन था जो दूसरे धर्म वाले लूटकर ले गये।
  • ख्याल तो करो - भारत क्या था!
  • यह भी ड्रामा बना हुआ है।
  • भारत ही हेविन, भारत ही हेल।
  • अभी है नर्क, इसलिए बाबा ने सीढ़ी भी ऐसी बनवाई है जो कोई भी समझे हम पतित हैं।
  • छोटे-छोटे बच्चों को भी चित्र पर समझाया जाता है ना।
  • नक्शे बिगर बच्चे क्या समझें।
  • बाप ही आकर पतित से पावन बनने की सहज युक्ति बताते हैं।
  • सहज ते सहज भी है, डिफीकल्ट से डिफीकल्ट भी है।
  • सतयुग में देही-अभिमानी रहते हैं।
  • आत्मा समझती है अब शरीर बड़ा हुआ है, यह पुराना चोला छोड़ दूसरा लेना है।
  • जैसे साक्षात्कार हो जाता है - अब जाकर बच्चा बनना है, पुरानी खल छोड़ देते हैं।
  • यहाँ कोई मरता है तो रोते भी हैं।
  • बैण्ड बाजा भी ले जाते।
  • सतयुग में तो खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं, तो शादमाना मनाते हैं।
  • यहाँ कितना अफसोस करते हैं।
  • कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा।
  • तो इसका मतलब नर्क में था ना!
  • अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - स्वर्गवासी बनने के लिए।
  • बाप तुमको स्वर्ग-वासी बनाते हैं।
  • बाप आते ही हैं जीवनमुक्ति देने।
  • रावण के बन्धन से छुड़ाए जीवनमुक्त करते हैं।
  • बाप कहते हैं - मैं कल्प पहले मुआफिक आकर राजयोग सिखलाता हूँ।
  • कल्प-कल्प ब्रह्मा के ही तन में आता हूँ।
  • तुमको ब्राह्मण जरूर बनना है।
  • यज्ञ में ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना।
  • यह है राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ।
  • इस रथ को स्वाहा करना है।
  • अश्व इस रथ को कहा जाता है।
  • राजस्व, स्वराज्य के लिए यह सब अश्व (शरीर) इसमें स्वाहा होने हैं।
  • आत्मा तो स्वाहा नहीं होगी।
  • आत्मायें हिसाब-किताब चुक्तू कर चली जायेंगी।
  • फिर नयेसिर सबका पार्ट शुरू होगा।
  • इनको कहा जाता है हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट।
  • बाप आते ही है नई दुनिया स्थापन कर पुरानी दुनिया खलास करने।
  • यह एक ही महाभारत लड़ाई है, जो शास्त्रों में गाई हुई है।
  • तो समझाना चाहिए - इस लड़ाई से यह स्वर्ग के द्वार खुलते हैं, इसलिए इनका गायन शास्त्रों में है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलध बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बीती बातों का कभी भी चिन्तन नहीं करना है।
    • जो बात बीत गई, नथिंग न्यु समझ भूल जाना है।
  • 2) इस राजस्व अश्वमेध यज्ञ में अपना तन-मन-धन सब स्वाहा कर सफल करना है।
    • इस अन्तिम जन्म में सम्पूर्ण पावन बनने की मेहनत करनी है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव
  • जो भी संकल्प, बोल वा कर्म करते हो - वह मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर करो तो कोई भी कर्म व्यर्थ वा अनर्थ नहीं हो सकता।
  • त्रिकालदर्शी अर्थात् साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर, कर्मों की गुह्य गति को जानकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराओ तो कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंधेंगे।
  • हर कर्म करते कर्मबन्धन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते रहेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • जिनके पास हद के इच्छाओं की अविद्या है वही महान सम्पत्तिवान हैं।