15-09-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - अभी तुम अमरलोक की यात्रा पर हो, तुम्हारी यह बुद्धि की रूहानी यात्रा है, जो तुम सच्चे-सच्चे ब्राह्मण ही कर सकते हो

प्रश्नः-

अपने आपसे वा आपस में कौन सी वार्तालाप करना ही शुभ सम्मेलन है?

उत्तर:-

अपने आपसे बातें करो कि हम आत्मा अब इस पुराने छी-छी शरीर को छोड़ वापिस घर जायेंगे। यह तन कोई काम का नहीं, अब तो बाबा के साथ जायेंगे। आपस में जब मिलते हो तो यही वार्तालाप करो कि सर्विस वृद्धि को कैसे पाये, सबका कल्याण किस तरह हो, सबको रास्ता कैसे बतायें... यही शुभ सम्मेलन है।

 
 

गीत:- दिल का सहारा टूट न जाये...


  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे रूहानी बच्चे, सभी सेन्टर्स के ब्रह्मा मुख वंशावली सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण अपने कुल को जानते हैं, जो जिस कुल के होते हैं वह अपने कुल को जानते हैं।
    • चाहे कम कुल वाले हों वा अच्छे कुल वाले हों, हर एक अपने कुल को जानते हैं और समझते हैं कि इसका कुल अच्छा है।
    • कुल कहो वा जाति कहो, दुनिया में तुम बच्चों के सिवाए और कोई नहीं जानते कि ब्राह्मणों का ही सर्वोत्तम कुल है।
    • पहला नम्बर कुल कहेंगे तुम ब्राह्मणों का।
    • ब्राह्मण कुल अर्थात् ईश्वरीय कुल।
    • पहले है निराकारी कुल फिर आते हैं साकारी सृष्टि में।
    • सूक्ष्मवतन में तो कुल होता नहीं।
    • ऊंचे से ऊंचा साकार में है - तुम ब्राह्मणों का कुल।
  • तुम ब्राह्मण आपस में भाई-बहिन हो।
    • बहन और भाई होने कारण विकार में जा नहीं सकते।
    • तुम अनुभव से कह सकते हो कि यह पवित्र रहने की बड़ी अच्छी युक्ति है।
    • हर एक कहते हैं - हम ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं।
    • शिव वंशी तो सब हैं फिर जब साकार में आते हैं तो प्रजापिता का नाम होने के कारण भाई-बहिन हो जाते हैं।
  • प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर रचता है, एडाप्ट करते हैं।
    • तुम कुख वंशावली नहीं हो, मुख वंशावली हो।
    • तो मनुष्य कुख वंशावली और मुख वंशावली का अर्थ भी नहीं जानते।
    • मुख वंशावली अर्थात् एडाप्टेड बच्चे।
    • कुख वंशावली अर्थात् जन्म लेने वाले।
  • तुम्हारा यह जन्म अलौकिक है।
    • बाप को लौकिक, अलौकिक, पारलौकिक कहा जाता है।
    • प्रजापिता ब्रह्मा को अलौकिक बाप कहा जाता है।
    • लौकिक बाप तो सभी को है।
    • वह तो कॉमन है।
    • पारलौकिक बाप भी सभी का है।
  • भक्ति मार्ग में तो हे भगवान, हे परमपिता सभी कहते रहते हैं।
    • परन्तु इस बाबा (प्रजापिता ब्रह्मा) को कभी कोई पुकारते नहीं हैं।
    • यह बाबा भी होता है ब्राह्मण बच्चों का।
    • उन दोनों को तो सब जानते हैं।
    • बाकी ब्रह्मा में मूँझ पड़ते हैं क्योंकि ब्रह्मा तो है ही सूक्ष्मवतन में।
    • यहाँ तो दिखाते नहीं हैं।
    • चित्रों में भी ब्रह्मा को दाढ़ी मूँछ वाला दिखाते हैं क्योंकि प्रजापिता ब्रह्मा यहाँ सृष्टि में है।
    • सूक्ष्मवतन में तो प्रजा रच नहीं सकते।
    • यह भी किसकी बुद्धि में नहीं आता है।
    • यह सब बातें बाप समझाते हैं।
  • यह रूहानी यात्रा भी गाई हुई है।
    • रूहानी यात्रा वह, जहाँ से फिर लौट नहीं आना है।
    • दूसरी यात्रायें तो सब जन्म-जन्मान्तर करते रहते हैं और जाकर लौट आते हैं।
    • वह है जिस्मानी यात्रा, यह तुम्हारी है रूहानी यात्रा।
    • इस रूहानी यात्रा करने से तुम मृत्युलोक में नहीं लौटते हो।
    • बाप तुमको अमर-लोक की यात्रा सिखलाते हैं।
    • वह कश्मीर तरफ अमरनाथ की यात्रा पर जाते हैं।
    • वह कोई अमरलोक नहीं है।
    • अमरलोक एक है आत्माओं का, दूसरा है मनुष्यों का, जिसको स्वर्ग अथवा अमरलोक कह सकते हैं।
    • आत्माओं का है निर्वाणधाम।
    • बाकी अमरलोक सतयुग और मृत्युलोक है कलियुग और निर्वाणधाम है शान्ति लोक, जहाँ आत्मायें रहती हैं।
    • बाप कहते हैं - तुम अमरपुरी की यात्रा पर हो।
    • पैदल जाने की वह शारीरिक यात्रायें है।
    • यह है रूहानी यात्रा, जो सिखलाने वाला एक ही रूहानी बाप है और एक ही बार आकर सिखलाते हैं।
    • वह तो जन्म-जन्मान्तर की बात है।
    • यह है मुत्युलोक के अन्त की यात्रा।
    • यह तुम ब्राह्मण कुल भूषण ही जानते हो।
    • रूहानी यात्रा अर्थात् याद में हो।
    • गाया भी जाता है अन्त मती सो गति।
    • तुमको याद आता ही है बाबा का घर।
    • समझते हो कि अब नाटक पूरा होता है।
    • यह पुराना वस्त्र, पुराना तन है।
    • आत्मा में खाद पड़ने से शरीर में भी खाद पड़ती है।
    • जब आत्मा पवित्र बनती है तो हमको शरीर भी पवित्र मिलता है।
    • यह भी तुम बच्चे समझते हो।
    • बाहर वाले तो कुछ नहीं समझते।
    • तुम देखते हो कि कोई-कोई समझते भी हैं।
    • कोई की बुद्धि में यह ज्ञान नहीं।
    • समझने वाला होगा तो जरूर किसको समझायेगा।
    • मनुष्य जब यात्रा पर जाते हैं तो पवित्र रहते हैं।
    • फिर घर में आकर अपवित्र बनते हैं।
    • मास दो मास पवित्र रहते हैं।
    • यात्रा की भी सीज़न होती है।
    • सदैव तो यात्रा पर जा न सकें।
    • ठण्डी वा बरसात के समय कोई जा न सकें।
    • तुम्हारी यात्रा में तो ठण्डी वा गर्मी की कोई बात नहीं है।
    • बुद्धि से खुद समझ सकते हो कि हम जा रहे हैं बाप के घर।
    • जितना हम याद करते हैं उतना विकर्म विनाश होते हैं।
    • बाप के घर में जाकर फिर हम नई दुनिया में आयेंगे।
    • यह बाबा ही समझाते हैं।
    • यहाँ भी नम्बरवार बच्चे हैं।
    • वास्तव में यात्रा को भूलना नहीं चाहिए लेकिन माया भुला देती है इसलिए लिखते भी हैं बाबा आपकी याद भूल जाती है।
    • अरे याद की यात्रा - जिससे तुम एवर हेल्दी-वेल्दी बनते, ऐसी दवाई को तुम भूल जाते हो।
  • वह यह भी कहते हैं कि बाप को याद करना तो बड़ा ही सहज है।
    • अपने साथ बातें करनी होती हैं कि हम आत्मा पहले सतोप्रधान थी, अब तमोप्रधान बन गई हैं।
    • अब शिवबाबा हमको युक्ति तो बहुत अच्छी बताते हैं।
    • बाकी अभ्यास करना है।
    • आंख बन्द कर विचार नहीं किया जाता।
    • (बाबा ने एक्ट करके दिखाई) ऐसे अपने साथ बातें करो कि हम सतोप्रधान थे, हम ही राज्य करते थे।
    • वह दुनिया गोल्डन एज थी फिर सिलवर कॉपर आइरन एज में आ गये।
    • अब आइरन एज का अन्त है, तब बाबा आया हुआ है।
    • बाबा हम आत्माओं को कहते हैं कि मुझे याद करो और अपने घर को याद करो।
    • जहाँ से आये हो, तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
    • तुमको वहाँ ही जाना है।
  • यह युक्ति बाप बतलाते हैं कि सवेरे उठकर अपने से बातें करो।
    • बाबा एक्ट करके दिखाते हैं कि हम भी सवेरे उठ विचार सागर मंथन करता हूँ।
    • सच्ची कमाई करनी चाहिए ना।
    • सुबह का सांई... तो उस सांई को याद करने से तुम्हारा बेड़ा पार हो जायेगा।
    • बाबा जो करते हैं, जैसे करते हैं, वह बच्चों को भी समझाते हैं।
    • इसमें खिटपिट की बात नहीं है।
    • यह कमाई की बहुत अच्छी युक्ति है।
    • अल्फ को याद करने से बे की बादशाही तो मिल ही जायेगी।
    • बच्चे जानते हैं कि हम राजयोग सीख रहे हैं।
  • बाबा बीजरूप, नॉलेजफुल है तो हम भी झाड़ को पूरा समझ गये हैं।
    • यह भी मोटे रूप में नॉलेज है।
    • आदि में यह झाड़ कैसे वृद्धि को पाता है फिर कैसे उनकी आयु पूरी होती है और झाड़ तो तूफानों आदि के लगने से गिर जाते हैं।
    • परन्तु इस मनुष्य सृष्टि झाड़ का पहला फाउन्डेशन देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है।
    • यह भी होना ही है।
    • यह जब गुम हो जाए तब कहा जाए कि एक धर्म की फिर से स्थापना और अनेक धर्मो का विनाश।
    • कल्प-कल्प यह धर्म प्राय: लोप होता है।
  • आत्मा में खाद पड़ जाती है तो जेवर झूठा हो जाता है।
    • बच्चे समझते हैं हमारे में खाद थी, अब जब हम स्वच्छ बनते हैं तो औरों को रास्ता बताते हैं।
    • दुनिया तो तमोप्रधान है।
    • पहले सतोप्रधान हेविन था।
  • तो बच्चों को सवेरे-सवेरे उठ अपने से बातें अर्थात् रूहरिहान करनी चाहिए।
    • विचार सागर मंथन करना चाहिए।
    • फिर किसको समझाना होता है कि यह 84 जन्मों का चक्र है।
    • 84 जन्म कैसे लेते हैं, कौन लेते हैं।
    • जरूर जो पहले आयेंगे वही लेंगे।
    • बाप भी भारत में आते हैं।
    • आकर 84 का चक्र समझाते हैं।
    • बाप कहाँ आये हैं, यह भी नहीं जानते हैं।
    • बाप आकर अपना परिचय खुद देते हैं।
    • कहते हैं कि मैं तुमको राजयोग सिखलाता हूँ, मनमनाभव।
    • मुझे याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
    • ऐसी समझानी कोई दे न सके।
  • भल गीता आदि सुनाते हैं।
    • वहाँ भी लोग जाते रहते हैं।
    • परन्तु भगवान कभी तो आया होगा, ज्ञान सुनाया होगा।
    • फिर जब आये तब सुनाये ना।
    • वो लोग तो गीता पुस्तक उठाकर बैठ सुनाते हैं।
    • यहाँ तो भगवान है ज्ञान का सागर, इनको कुछ हाथ में ले पढ़ना नहीं है।
    • यह सीखता नहीं है।
    • कल्प पहले भी आकर तुम बच्चों को संगम पर सिखाया था।
    • बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं।
    • यह है याद की यात्रा।
  • तुम्हारी बुद्धि ही जानती है - सिवाए ब्रह्मा मुख वंशावली ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसके पास यह ज्ञान होगा।
    • सबमें सर्वव्यापी का ज्ञान भरा हुआ है।
    • यह कोई नहीं जानते कि परमात्मा बिन्दी है।
    • ज्ञान सागर पतित-पावन है।
    • सिर्फ ऐसे ही गाते रहते हैं।
    • गुरू लोग जो सिखाते हैं वह सत-सत करते रहते।
    • अर्थ कुछ भी नहीं समझते।
    • न उस पर कभी विचार चलाते तो यह सत्य है वा नहीं।
  • बाप समझाते हैं कि तुम बच्चों को चलते-फिरते याद की यात्रा में जरूर रहना है।
    • नहीं तो विकर्म विनाश हो नहीं सकते।
    • कुछ भी कर्म करते रहो परन्तु बुद्धि में बाप की याद रहे।
  • श्रीनाथ द्वारे में भोजन बनाते हैं तो बुद्धि में वह श्रीनाथ रहता है ना।
    • बैठे ही मन्दिर में हैं।
    • जानते हैं कि हम श्रीनाथ के लिए बनाते हैं।
    • भोजन बनाया, भोग लगाया फिर घर वाले बच्चे आदि याद आते रहेंगे।
    • वहाँ भोजन बनाते हैं मुख बन्द, बात नहीं करेंगे।
    • मन्सा से कोई विकर्म नहीं बनता है।
    • वह श्रीनाथ के मन्दिर में बैठे हैं।
  • यहाँ तो शिवबाबा के पास बैठे हो।
    • यहाँ भी बाबा युक्ति बताते रहते हैं।
    • बच्चे कोई फालतू बात नहीं करना।
    • सदैव बाप से मीठी-मीठी बातें करनी हैं।
    • जैसा बाप वैसे बच्चे।
    • बाप की स्मृति में रहता है कि चक्र कैसे फिरता है, तब तुम बच्चों को आकर सुनाते हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो कि हमारा बाबा मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, चैतन्य है।
    • कितनी सहज बात है।
    • परन्तु फिर भी समझते नहीं हैं क्योंकि पत्थरबुद्धि हैं ना।
    • उस बीज को हम चैतन्य नहीं कहेंगे।
    • यह नॉलेजफुल, चैतन्य है।
    • यह एक ही है।
    • वह बीज तो अनेक प्रकार के होते हैं।
    • भगवान को कहा जाता है - मनुष्य सृष्टि का बीज रूप।
    • तो बाप हो गया ना।
  • आत्माओं का बाप परमात्मा है तो सभी ब्रदर्स ठहरे, बाप भी वहाँ रहते हैं जहाँ तुम आत्मायें निवास करती हो।
    • निर्वाणधाम में बाप और बच्चे रहते हैं।
  • इस समय तुम प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान भाई और बहन हो, इसलिए कहलाते हो - शिव वंशी ब्रह्माकुमार-कुमारियां।
    • यह भी तुमको लिखना है कि हम ब्रह्माकुमार-कुमारियां भाई-बहिन हैं।
    • बाप ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचेंगे तो भाई-बहिन ठहरे ना।
    • कल्प-कल्प ऐसे ही क्रियेट करते हैं।
    • एडाप्ट करते जाते हैं।
    • मनुष्य को प्रजापिता ब्रह्मा नहीं कहा जाता।
    • भल बाबा कहते हैं परन्तु वह है हद का, इनको प्रजापिता कहेंगे क्योंकि बहुत प्रजा है अर्थात् ढेर बच्चे हैं।
    • तो बेहद का बाप बच्चों को सभी बातें बैठ समझाते हैं।
  • यह दुनिया बिल्कुल बिगड़ी हुई छी-छी है।
    • अब तुमको वाह-वाह की दुनिया में ले जाते हैं।
    • तुम्हारे में भी बहुत हैं जो भूल जाते हैं।
    • अगर यह याद हो तो बाप भी याद रहे और गुरू भी याद रहे कि अब वापिस जाना है।
    • पुराना शरीर छोड़ देंगे क्योंकि यह तन अब काम का नहीं है।
    • आत्मा अब पवित्र होती जाती है तो शरीर भी पवित्र होना है।
  • आपस में ऐसी-ऐसी बातें बैठ करनी चाहिए, इसको कहा जाता है - शुभ सम्मेलन, जिसमें अच्छी-अच्छी बातें हों।
    • सर्विस कैसे वृद्धि को पाये।
    • कल्याण कैसे करें!
    • उन्हों का तो छी-छी सम्मेलन है, गपोड़े मारते रहते हैं।
    • यहाँ गपोड़े आदि की बात नहीं।
    • सच्चा-सच्चा सम्मेलन इसे कहा जाता है।
  • तुमको यह कहानी सुनाई है कि यह कलियुग है, सतयुग को स्वर्ग कहा जाता है।
    • भारत स्वर्ग था, भारतवासी ही 84 जन्म भोगते हैं।
    • अब अन्त में हैं।
    • अब तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बनते हो।
    • इसमें कोई गंगा स्नान आदि नहीं करना है।
  • भगवानुवाच कि मैं सभी का बाप हूँ।
    • कृष्ण सबका बाप हो नहीं सकता।
    • एक दो बच्चे का बाप श्री नारायण है, न कि श्रीकृष्ण।
    • श्रीकृष्ण तो कुमार है।
    • इस प्रजापिता ब्रह्मा को तो बहुत बच्चे हैं।
    • कहाँ कृष्ण भगवानुवाच, कहाँ शिव भगवानुवाच।
    • भूल कितनी बड़ी कर दी है।
  • कहाँ भी प्रदर्शनी करो तो मुख्य बात यह है कि गीता का भगवान यह है वा वह?
    • पहले-पहले यह समझाना चाहिए कि भगवान शिव को कहा जाता है।
    • यह बुद्धि में बिठाना है।
    • इस पर प्रोब होना चाहिए।
    • गीता के भगवान का चित्र भी बड़ा परमानेन्ट होना चाहिए।
    • नीचे में लिख देना चाहिए कि जज करो और आकर समझो।
    • फिर लिखाकर सही लेनी चाहिए।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) आपस में शुभ सम्मेलन कर सर्विस की वृद्धि के प्लैन बनाने हैं।
    • अपने और सर्व के कल्याण की युक्ति रचनी है।
    • कभी भी कोई व्यर्थ (फालतू) बातें नहीं करनी हैं।
  • 2) सवेरे-सवेरे उठकर अपने आपसे बातें करनी हैं, विचार सागर मंथन करना है।
    • भोजन बनाते एक बाप की याद में रहना है।
    • मन्सा भी बाहर न भटके, यह ध्यान रखना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • विनाश के समय पेपर में पास होने वाले आकारी लाइट रूपधारी भव
  • विनाश के समय पेपर में पास होने वा सर्व परिस्थितियों का सामना करने के लिए आकारी लाइट रूपधारी बनो।
  • जब चलते फिरते लाइट हाउस हो जायेंगे तो आपका यह रूप (शरीर) दिखाई नहीं देगा।
  • जैसे पार्ट बजाने समय चोला धारण करते हो, कार्य समाप्त हुआ चोला उतारा।
  • एक सेकण्ड में धारण करो और एक सेकण्ड में न्यारे हो जाओ - जब यह अभ्यास होगा तो देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह लाइट के वस्त्रधारी हैं, लाइट ही इन्हों का श्रंगार है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • उमंग-उत्साह के पंख सदा साथ हों तो हर कार्य में सफलता सहज मिलती है।