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- ओम् शान्ति।
- अब यह भक्तिमार्ग का गीत सुना।
- शिवाए नम: कहते हैं।
- शिव का नाम घड़ी-घड़ी लेते हैं।
- रोज़ शिव के मन्दिर में जाते हैं और जो त्योहार हैं वह वर्ष-वर्ष मनाते हैं।
- पुरुषोत्तम मास भी होता है, पुरुषोत्तम वर्ष भी होता है।
- शिवाए नम: तो रोज़ कहते रहते हैं।
- शिव के पुजारी बहुत हैं।
- रचयिता है शिव ऊंच ते ऊंच भगवान।
- कहते भी हैं - पतित-पावन परमपिता परमात्मा शिव है।
- रोज़ पूजा भी करते हैं।
- तुम बच्चे जानते हो यह संगमयुग है - पुरुषोत्तम बनने का युग।
- जैसे जिस्मानी पढ़ाई से कोई न कोई ऊंच पद पाते हैं ना।
- इन लक्ष्मी-नारायण ने यह पद कैसे पाया, विश्व के मालिक कैसे बनें।
- यह किसको भी पता नहीं।
- शिवाए: नम: भी कहते हैं।
- तुम मात-पिता... रोज़ महिमा गाते हैं परन्तु यह नहीं जानते कि वह कब आकर मात-पिता बनकर वर्सा देते हैं।
- तुमको मालूम है कि दुनिया के मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते हैं।
- भक्ति मार्ग में कितने धक्के खाते हैं।
- अमरनाथ पर कितने झुण्ड के झुण्ड जाते हैं।
- कितने धक्के खाते हैं।
- किसको ऐसा कहो तो बिगड़ पड़े।
- तुम थोड़े बच्चे हो जिनको अन्दर में बहुत खुशी है।
- लिखते भी रहते हैं बाबा जबसे आपको पहचाना है, बस अब तो हमारी खुशी का पारावार नहीं रहा है।
- कुछ भी तकलीफ आदि होती है, फिर भी खुशी में रहना चाहिए।
- हम बाप के बने हैं, यह कभी भूलना नहीं चाहिए।
- तुम बच्चे जबकि जानते हो हमने शिवबाबा को पाया है।
- तो खुशी का पारावार नहीं रहना चाहिए।
- माया घड़ी-घड़ी भुला देती है।
- भल लिखते हैं हमको निश्चय है, बाबा को हम जानते हैं फिर भी चलते-चलते ठण्डे पड़ जाते हैं।
- 6-8 मास, 2-3 वर्ष आते नहीं तो बाबा समझ जाते हैं पूरा निश्चयबुद्धि नहीं है।
- पूरा नशा नहीं चढ़ा है।
- ऐसा बेहद का बाप, जिससे 21 जन्मों का वर्सा मिलता है।
- निश्चय हो जाए तो बहुत खुशी का नशा रहना चाहिए।
- जैसे किसके बच्चे को राजा गोद में लेने चाहते हैं।
- बच्चे को मालूम पड़ जाता है कि हमारे लिए ऐसी बातचीत हो रही है कि राजा चाहता है - इस बच्चे को हम वारिस बनायें।
- तो बच्चे को बहुत खुशी होगी ना।
- मैं राजा का बच्चा बनता हूँ वा गरीब का बच्चा साहूकार की गोद लेते हैं तो बहुत खुशी होती है ना।
- जान जाता है कि मुझे फलाना एडाप्ट करते हैं तो गरीबी का गम भूल जाता है।
- वह तो है फिर भी एक जन्म की बात।
- यहाँ बच्चों को खुशी रहती है 21 जन्म वर्सा लेने की।
- बेहद के बाप को याद करना है और फिर दूसरों को रास्ता बताना है।
- शिवबाबा पतित-पावन आया हुआ है।
- समझाते हैं, तुम्हारा मैं बाप हूँ।
- ऐसे कोई मनुष्य नहीं कह सकते कि मैं तुम्हारा बेहद का बाप हूँ।
- बाप ही समझानी देते हैं मैं 5 हजार वर्ष पहले आया था।
- तुमको यही अक्षर कहा था कि मामेकम् याद करो।
- मुझ पतित-पावन बाप को याद करने से ही तुम पतित से पावन बनेंगे और कोई भी उपाय नहीं है - पतित से पावन बनने का।
- पतित-पावन है ही एक बाप।
- कृष्ण को भगवान नहीं कह सकते।
- गीता का भगवान एक पतित-पावन पुनर्जन्म रहित है।
- पहली-पहली बात यह लिखाओ।
- बड़े-बड़े आदमियों की लिखत देखेंगे तो समझेंगे ठीक है।
- कोई साधारण आदमी का देखेंगे तो कहेंगे ब्रह्माकुमारियों ने इनको जादू लगा दिया है तब लिखा है, बड़े आदमी के लिए ऐसा नहीं कहेंगे।
- तुम कुछ भी कहते हो तो समझते हैं छोटा मुख बड़ी बातें बनाती हैं कि भगवान आया हुआ है।
- ऐसे तुम बच्चों को सिर्फ कहना नहीं है कि भगवान आया हुआ है, इससे तो कोई समझेंगे नहीं और ही हँसी करेंगे।
- यह तो समझाना है कि दो बाप हैं।
- पहले से ही फट से सीधा कहना नहीं है कि भगवान आया हुआ है क्योंकि आजकल दुनिया में भी भगवान कहलाने वाले बहुत हो गये हैं।
- सब अपने को भगवान का अवतार समझते हैं तो युक्ति से दो बाप का राज़ समझाना चाहिए।
- एक है हद का बाप, दूसरा है बेहद का बाप।
- बाप का नाम है शिव।
- वह सब आत्माओं का बाप है तो जरूर बच्चों को वर्सा देते होंगे।
- शिव जयन्ती भी मनाते हैं।
- वही आकर स्वर्ग की स्थापना करते हैं, तो जरूर नर्क का विनाश होना है।
- उसकी भी निशानी - यह महाभारत लड़ाई है।
- बाकी सिर्फ भगवान आया है, यह कहने से कोई समझेंगे नहीं। ढिंढोरा पीटते रहते हैं।
- ऐसी-ऐसी उल्टी सर्विस करने से और ही फिर सर्विस में ढीलापन आ जाता है।
- एक तरफ कहते भगवान आया हुआ है, भगवान पढ़ाते हैं फिर जाकर शादी करते हैं।
- तो लोग कहेंगे तुमको फिर क्या हुआ।
- तुम तो कहते थे कि भगवान पढ़ाते हैं।
- कहते हैं हमने जो सुना था सो कह दिया।
- अनेक प्रकार के विघ्न भी पड़ते हैं अपने बच्चों से, जैसे हिन्दू धर्म वालों ने आपेही अपने को चमाट मारी है ना।
- वास्तव में हैं देवी-देवता धर्म के परन्तु कह देते हम हिन्दू हैं। अपने को चमाट मारी है ना।
- अभी तुम जानते हो हम ही पूज्य थे तो श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ धर्म था।
- आसुरी मत पर धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट बन पड़े हैं।
- हम ही अपने धर्म की ग्लानी शुरू करते हैं, आसुरी माया की मत से इसलिए बाबा ने खुद कहा है - वह है आसुरी सम्प्रदाय।
- यह है दैवी सम्प्रदाय, जिनको मैं राजयोग सिखलाता हूँ।
- अभी है कलियुग।
- जो यह नॉलेज आकर सुनते हैं, वह असुर से बदल देवता बनते हैं।
- यह नॉलेज है ही देवता बनने के लिए।
- 5 विकारों पर जीत पाने से देवता बनते हैं, बाकी असुरों और देवताओं की कोई लड़ाई नहीं लगी।
- यह भी भूल कर दी है फिर दिखाते हैं, जिसकी तरफ साक्षात् भगवान है उनकी विजय हुई, उसमें नाम कृष्ण का दे दिया है।
- वास्तव में है तुम्हारी माया से युद्ध।
- बाप कितनी बातें बैठ समझाते हैं परन्तु तमोप्रधान ऐसे हैं जो बिल्कुल समझते ही नहीं।
- बाप को याद नहीं कर सकते।
- समझते भी हैं हमारी ऐसी तमोप्रधान बुद्धि है जो याद ही नहीं ठहरती, इसलिए उल्टा काम करता रहता हूँ।
- अच्छे-अच्छे बच्चे भी याद बिल्कुल नहीं करते।
- लक्षण सुधारते ही नहीं, इसलिए सर्विस की उछल नहीं आती है।
- बाप कहते हैं - देह सहित देह के जो भी सम्बन्ध हैं, उनको मारो अथवा भूलो।
- अब मारो अक्षर वास्तव में है नहीं।
- कहते हैं आप मुये मर गई दुनिया।
- यह बाप बैठ समझाते हैं।
- बुद्धि से भूल जाना है जबकि तुम हमारे बने हो तो इन सबको भूलो, एक बाप को याद करो।
- जैसे कोई बीमारी का होपलेस केस हो जाता है तो फिर उससे ममत्व मिटाना होता है।
- फिर उनको कहते हैं राम-राम कहो, बाप भी कहते हैं इस दुनिया का केस बहुत होपलेस है।
- यह खत्म होनी ही है, सब मर जायेंगे, इसलिए इनसे ममत्व मिटाओ।
- वह तो राम-राम की धुन लगाते हैं।
- यहाँ तो एक की बात नहीं।
- सारी दुनिया विनाश होनी है इसलिए तुमको एक ही मन्त्र देता हूँ मामेकम् याद करो।
- कितनी समझानी देते रहते हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार से।
- अभी पुरुषोत्तम मास आया तो पुरुषोत्तम युग पर भी समझानी देते रहते हैं।
- समझाने की बड़ी होशियारी चाहिए।
- धारणा अच्छी चाहिए।
- कोई पाप कर्म नहीं करना चाहिए।
- बिगर छुट्टी कोई चीज़ उठाना, खाना यह भी बहुत गुप्त पाप है।
- कायदे बड़े कड़े हैं, पाप करते हैं फिर भी बतलाते नहीं, फिर पाप वृद्धि को पाते जाते हैं।
- यहाँ तो तुम बच्चों को पुण्य आत्मा बनना है।
- हमको पुण्य आत्मा से स्नेह है, पाप आत्मा से विरोध है।
- भक्ति मार्ग में भी जानते हैं कि अच्छा कर्म करने से अच्छा फल मिलेगा इसलिए दान-पुण्य आदि अच्छे कर्म करते हैं ना।
- यह ड्रामा है फिर भी कहते हैं भगवान अच्छे कर्मो का फल अच्छा देता है। बाप कहते हैं - मैं सिर्फ यह धन्धा थोड़ेही बैठकर करता हूँ।
- यह तो सारी ड्रामा में नूँध है।
- ड्रामा अनुसार बाप को जरूर आना है।
- बाप कहते हैं - मुझे आकर सबको रास्ता बताना है।
- बाकी इसमें कृपा आदि की कोई बात ही नहीं है।
- कोई-कोई लिखते हैं बाबा आपकी कृपा होगी तो हम आपको कभी नहीं भूलेंगे।
- बाप कहते हैं - हम कभी कृपा आदि नहीं करते, यह तो भक्ति मार्ग की बातें हैं।
- तुमको अपने पर कृपा करनी है।
- बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे।
- भक्ति मार्ग की बातें ज्ञान मार्ग में होती नहीं।
- ज्ञान मार्ग है ही पढ़ाई।
- टीचर कोई पर कृपा थोड़ेही करेगा।
- हर एक को पढ़ना है।
- बाप श्रीमत देते हैं, उस पर चलना चाहिए ना।
- परन्तु अपनी मत पर चलने कारण कुछ भी सर्विस नहीं करते। बच्चों को बिल्कुल पुण्य आत्मा बनना है।
- जरा भी कोई पाप न हो।
- कई बच्चे अपना पाप बतायेंगे कभी नहीं।
- बाप भी कहते हैं वह ऊंच पद कभी नहीं पायेंगे।
- गाया हुआ है चढ़े तो चाखे... बच्चे जानते हैं बहुत ऊंच मर्तबा है। गिरते हैं तो कोई काम के नहीं रहते।
- अशुद्ध अहंकार है पहला नम्बर, फिर काम, क्रोध, लोभ भी कम नहीं।
- लोभ, मोह भी सत्यानाश कर देते हैं।
- बच्चे आदि में मोह होगा तो वह याद आते रहेंगे।
- आत्मा तो कहती है मेरा तो एक शिवबाबा, दूसरा न कोई और कोई भी याद न पड़े - ऐसा पुरुषार्थ करना है।
- यह सब तो खत्म होना है।
- विनाश सामने खड़ा है, वर्सा तो ले नहीं सकेंगे।
- इनमें क्या मोह रखना है।
- ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी है।
- सारी दुनिया को बुद्धि से भूलना है।
- यह तो सब खत्म होना ही है।
- तूफान ऐसे लगेंगे जो एकदम खत्म हो जायेगा।
- आग कहाँ लगती है और हवा ज़ोर से आती है तो झट एकदम खलास कर देती है।
- आधा घण्टे में 100-150 झोपड़ियों को खत्म कर देती है।
- तुम जानते कि इस भंभोर को आग लगनी ही है, नहीं तो इतने सब मनुष्य कैसे मरेंगे।
- जो अच्छे बच्चे हैं, लक्षण भी अच्छे हैं तो सर्विस भी अच्छी करते हैं।
- तुम बच्चों को नशा रहना चाहिए।
- पूरा नशा तो अन्त में रहेगा, जब कर्मातीत अवस्था हो फिर भी पुरुषार्थ करते रहते हैं।
- बनारस में शिव के मन्दिर में तो बहुत जाते हैं क्योंकि वह है ऊंच ते ऊंच भगवान।
- वहाँ शिव की भक्ति बहुत है।
- बाबा तो कहते रहते हैं वहाँ उनको जाकर समझाओ।
- यह शिव भगवान इन लक्ष्मी-नारायण को यह वर्सा देते हैं।
- संगम पर ही यह वर्सा उनसे मिला हुआ है।
- यह समझाने से फिर ब्रह्मा-सरस्वती की भी समझानी आती है।
- चित्रों पर बड़ा क्लीयर समझा सकते हैं।
- इन्हों को यह राज्य कैसे मिला।
- इन लक्ष्मी-नारायण के राज्य में भक्ति मार्ग था नहीं।
- कहेंगे भक्ति तो अनादि है ही।
- अभी तुमको कितनी नॉलेज मिली है तो नशा चढ़ना चाहिए ना।
- हमको भगवान पढ़ा रहे हैं, 21 जन्मों का राज्य-भाग्य देने के लिए।
- तुम स्टूडेन्ट हो ना।
- जिसको निश्चय होगा - यह ब्रह्माकुमारियां जिस द्वारा सुनकर हमको निश्चय बिठाती हैं वह खुद क्या होगा।
- ऐसे बाप से तो पहले मिलें।
- जब तक पूरा निश्चय नहीं होगा तब तक बढ़ेगा नहीं।
- निश्चय वाला ही झट भागेगा।
- ऐसे बाप के पास हम जाकर मिलेंगे, छोड़ेंगे नहीं।
- बस बाबा हम तो आपका बन गया, हम जायेंगे नहीं।
- गीत भी है ना चाहे प्यार करो चाहे ठुकराओ।
- यह दीवाना तेरा दर नहीं छोड़ेगा।
- फिर भी बिठा तो नहीं सकते।
- सर्विस पर भेजना पड़ता है।
- गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।
- ऐसे लिखकर भी देते हैं फिर बाहर जाने से माया की चकरी में आ जाते हैं।
- माया इतनी प्रबल है।
- माया के बहुत विघ्न पड़ते हैं।
- छोटे से दीवे को माया के तूफान कितने आते हैं।
- इन गीतों का भी सार बाप आकर समझाते हैं।
- तुम्हारा पुरुषोत्तम युग चल रहा है।
- भक्तों का पुरुषोत्तम मास चला गया।
- बाप कहते हैं - इस संगमयुग पर ही मैं आता हूँ, पतितों को पावन बनाने।
- समझानी कितनी अच्छी है।
- अच्छा - दिन-प्रतिदिन सेवा की वृद्धि के लिए नई-नई युक्तियां निकलती रहेंगी।
- अच्छे-अच्छे चित्र बनते जायेंगे।
- कहते हैं ना - देर पड़े काम दुरस्त होते हैं।
- तैयार माल मिलता है, जिससे फट से कोई समझ जाए।
- सीढ़ी बहुत अच्छी है।
- इस समय कोई यह नहीं कह सकते कि हम पावन हैं।
- पावन दुनिया सतयुग को ही कहा जाता है।
- पावन दुनिया के मालिक यह लक्ष्मी-नारायण हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) जरा भी कोई बड़ा अथवा सूक्ष्म पाप न हो, इसका बहुत-बहुत ध्यान रखना है।
- कभी कोई चीज़ छिपाकर नहीं लेनी है।
- लोभ मोह से भी सावधान रहना है।
- 2) अशुद्ध अहंकार जो सत्यानाश करने वाला है, उसे त्याग देना है।
- एक बाप के सिवाए दूसरा कोई भी याद न पड़े, यही पुरुषार्थ करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सूक्ष्म संकल्पों के बंधन से भी मुक्त बन ऊंची स्टेज का अनुभव करने वाले निर्बन्धन भव
- जो बच्चे जितना निर्बन्धन हैं उतना ऊंची स्टेज पर स्थित रह सकते हैं, इसलिए चेक करो कि मन्सा-वाचा व कर्मणा में कोई सूक्ष्म में भी धागा जुटा हुआ तो नहीं है!
- एक बाप के सिवाए और कोई याद न आये।
- अपनी देह भी याद आई तो देह के साथ देह के संबंध, पदार्थ, दुनिया सब एक के पीछे आ जायेंगे।
- मैं निर्बन्धन हूँ - इस वरदान को स्मृति में रख सारी दुनिया को माया की जाल से मुक्त करने की सेवा करो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- देही-अभिमानी स्थिति द्वारा तन और मन की हलचल को समाप्त करने वाले ही अचल रहते हैं।
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