30-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें अभी रूहानी कारोबार करनी है, रूह समझकर हर कर्म करने से आत्मा निर्विकारी बनती जाती है''

प्रश्नः-


स्वर्ग का वर्सा लेने और स्वर्ग में ऊंच पद पाने का आधार क्या है?

उत्तर:-

ब्रह्माकुमार/कुमारी बनें तो स्वर्ग का वर्सा मिल जायेगा।

परन्तु ऊंच पद का आधार है पढ़ाई।

अगर बाप का बनकर अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ते रहें, पूरा पवित्र बनें तो राजाई पद मिलता है।

कोई पूरा पढ़ते नहीं, कर्मबन्धन है, पूरा पवित्र नहीं बने और शरीर छूट गया तो प्रजा में भी साधारण पद पा लेंगे।


  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझा रहे हैं।
  • यहाँ रूहानी कारोबार है।
    • बाकी सारी दुनिया में जिस्मानी कारोबार है।
    • वास्तव में कारोबार चलती है रूहों की।
  • आत्मा ही इस शरीर द्वारा पढ़ती है, चलती है, विकर्म करती है इसलिए पतित-आत्मा, पाप-आत्मा कहा जाता है।
    • आत्मा ही सब कुछ करती है।
    • इस समय सब मनुष्य देह-अभिमानी हैं, मैं आत्मा हूँ समझने बदले, समझते हैं मैं फलाना हूँ।
    • यह व्यापार करता हूँ।
    • यह फलाने कामी, क्रोधी हैं।
    • शरीर का ही नाम लेते हैं।
  • इसको कहा जाता है देह-अभिमानी दुनिया, उतरती कला की दुनिया।
    • सतयुग में ऐसे नहीं होता।
    • वहाँ देही-अभिमानी होते हैं।
    • तुमको देही-अभिमानी बनाया जाता है।
    • अपने को आत्मा निश्चय करो।
    • मैं आत्मा यह शरीर रूपी चोला धारण कर पार्ट बजाती हूँ।
    • वह एक्टर्स भी भिन्न-भिन्न कपड़ा बदली कर पार्ट बजाते हैं।
  • बाप कहते हैं - तुम आत्मायें पहले शान्तिधाम में थी।
    • तुम्हारा घर है शान्तिधाम।
    • जैसे वह हद का नाटक होता है, यह फिर है बेहद का नाटक।
    • सभी आत्मायें परमधाम से आकर, शरीर धारण कर पार्ट बजाती हैं।
    • आत्माओं का असुल घर है परमधाम।
    • उन एक्टर्स का तो घर यहाँ ही होता है।
    • सिर्फ ड्रेस बदली कर आकर पार्ट बजाते हैं।
    • तो बाप बैठ समझाते हैं, तुम आत्मायें हो।
    • बाप तो बच्चे-बच्चे ही कहेंगे।
    • संन्यासी बच्चे-बच्चे नहीं कहेंगे।
  • बाप कहते हैं - मैं पतित-पावन तुम सभी आत्माओं का बाप हूँ, जिसको तुम गॉड फादर कहते हो।
    • गॉड फादर तो निराकार है।
    • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी गॉड फादर नहीं कहेंगे।
    • उनमें भी आत्मा है परन्तु उनको कहते हैं ब्रह्मा देवता नम:, विष्णु देवता नम:... देवतायें क्या करते हैं?
    • यह किसको पता नहीं है।
    • बाप ही आकर समझाते हैं - तुम कैसे ड्रामा प्लैन अनुसार पार्ट बजाते हो।
  • दुनिया एक ही है।
    • ऐसे नहीं कोई नीचे पाताल वा ऊपर में दुनिया है।
    • दुनिया एक ही है, जिसका चक्र फिरता रहता है।
    • लोग तो कह देते हैं मून में प्लाट लेंगे।
    • बाप समझाते हैं बच्चे कितने इन्सालवेन्ट बन पड़े हैं।
  • भारतवासियों के लिए ही कहते हैं, तुम कितने साहूकार समझदार थे।
    • इन लक्ष्मी-नारायण का सारे विश्व पर राज्य था, जिसको कोई लूट न सके।
    • वहाँ कोई पार्टीशन आदि नहीं होती।
    • यहाँ तो कितनी पार्टीशन हैं।
    • आपस में टुकड़े-टुकड़े पर लड़ते रहते हैं।
    • तुम सारे विश्व के मालिक थे।
    • सारा आकाश, पृथ्वी, समुद्र सब तुम्हारा था, तुम उनके मालिक थे।
    • अब तो टुकड़े हो गये हैं।
    • यह किसको पता नहीं है, भारत ही विश्व का मालिक था।
  • बाप समझाते हैं, आत्मा को जो पार्ट मिला हुआ है वह कभी घिसता नहीं।
    • चलता ही रहता है।
    • अभी तुम फिर से मनुष्य से देवता बन रहे हो।
    • फिर 84 जन्म लेंगे।
    • तुम्हारा पार्ट चलता ही रहता है, कभी बन्द नहीं होता है।
    • कोई मोक्ष आदि पाते नहीं।
    • जितने अनेक गुरू, अनेक शास्त्र, उतनी अनेक मतें होती हैं।
    • मनुष्यों में कितनी अशान्ति है।
    • जहाँ भी जाओ कहेंगे मन को शान्ति कैसे मिले।
    • यह देह-अभिमान में आकर कहते हैं।
  • बाप समझाते हैं मन और बुद्धि - यह हैं आत्मा के आरगन्स।
    • बाकी यह सब शरीर की इन्द्रियां हैं।
    • आत्मा कहती है मेरे मन को शान्ति कैसे मिले।
    • वास्तव में यह कहना गलत है।
    • तुम आत्मा हो, तुम्हारा स्वधर्म ही शान्त है।
    • तुम ऐसे कहो मुझ आत्मा को शान्ति कैसे मिलेगी।
    • इसमें कर्म तो करना ही है।
    • यह बातें बाप ही बैठ समझाते हैं।
  • दुनिया में यह ज्ञान किसको नहीं।
    • वहाँ है भक्ति मार्ग।
    • उनको ज्ञान का पता नहीं है।
    • ज्ञान तो एक बाप ही देते हैं।
    • बाप खुद कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।
    • कलियुग के अन्त में सभी पतित हैं।
  • यह है रावणराज्य।
    • रावण को जलाते भी भारतवासी ही हैं।
    • बाप पतित-पावन का जन्म भी यहाँ है।
    • तो रावण का जन्म भी यहाँ है।
    • रावण जो सबको पतित बनाते हैं, इसलिए उनको जलाते हैं।
    • यह बातें किसकी बुद्धि में नहीं हैं।
  • अब भारत में कृष्ण जयन्ती मनाते हैं।
    • कृष्ण की लीला, भजन आदि करते हैं।
    • अब बाप कहते हैं - वास्तव में कृष्ण लीला कुछ है ही नहीं।
    • कृष्ण ने क्या किया!
    • कहते हैं कंसपुरी में जन्म लिया।
    • अब कंस तो डेविल को कहा जाता है।
    • सतयुग में डेविल कहाँ से आये।
    • तुम जानते हो कृष्ण की आत्मा जो सतयुग में थी वह अपने 84 जन्म भोग इस समय पतित से पावन बन रही है।
    • अपना पद फिर से ले रही है।
    • वैसे ही तुम कृष्णपुरी में रहने वाले थे।
    • 84 जन्म ले अब फिर अपना पद ले रहे हो।
  • जयन्ती मनानी है वास्तव में शिवबाबा की।
    • जो शिवबाबा सबको हेल से हेविन में ले जाते हैं, उनकी कोई लीला है नहीं।
  • कहते हैं कि हे पतित-पावन बाबा आओ, आकर हमको हेल से हेविन में ले जाओ।
    • आप हमारे बाप हो तो हम स्वर्ग में होने चाहिए, हम विशश दुनिया में क्यों हैं?
    • इसलिए बुलाते हैं हे गॉड फादर हमको इस दु:ख की दुनिया से लिबरेट करो।
    • यह भी ड्रामा में नूँध है।
    • बाप कहते हैं इस ड्रामा को कोई जानते नहीं।
    • शास्त्रों में ड्रामा की आयु लम्बी लिख दी है।
  • नई दुनिया को पुरानी बनना ही है।
    • सतो रजो तमो में आना ही है।
    • यह है बेहद की बात।
  • अभी तुम फिर से विश्व के मालिक बन रहे हो।
    • भारतवासी जो नई दुनिया में थे, वही 84 जन्मों का पार्ट बजायेंगे।
  • अभी तुम पवित्र बनते हो, बाकी सब मनुष्य पतित हैं, तब तो पावन के आगे जाकर नमन करते हैं।
    • पावन को पावन नमन क्यों करेंगे।
    • सन्यासी पावन हैं तब तो पतित मनुष्य उनके आगे माथा झुकाते हैं।
    • कन्या पवित्र है तो सब उनके आगे सिर झुकाते हैं।
    • वही कन्या शादी कर ससुर घर जायेगी तो माथा टेकना पड़ता है।
    • अभी बेहद का बाप आये हैं सबको पावन बनाने।
  • वह सब हैं कलियुग में।
    • तुम हो अभी संगम पर।
    • अब तुमको पतित दुनिया में नहीं जाना है।
    • यह है ही कल्याणकारी युग।
    • बाप आकर सबका कल्याण करते हैं।
  • तुम अभी कृष्ण जयन्ती मनायेंगे, नहीं तो लोग समझेंगे यह तो नास्तिक हैं।
    • नास्तिक वास्तव में उनको कहा जाता है जो अपने बाप को और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते हैं।
    • इस समय सब निधन के आरफन बन पड़े हैं।
    • घर-घर में झगड़ा है, एक दो को मारने में देरी नहीं करते हैं, इसलिए इसको नास्तिकों की दुनिया कहा जाता है, बाप को न जानने वाले।
    • तुम हो जानने वाले।
    • अभी तुम समझते हो कि हम पत्थरबुद्धि थे, बाप हमको पारसबुद्धि बना रहे हैं और कोई तकलीफ की बात नहीं।
  • बाप सिर्फ कहते हैं एक घण्टा पढ़ो।
    • अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
    • शरीर को याद करेंगे तो लौकिक सम्बन्धों की याद आयेगी।
    • देही-अभिमानी रहेंगे तो मुझ बाप की याद रहेगी।
  • यह तो है ही विशश दुनिया।
    • विषय सागर में गोते खाते रहते हैं।
    • विष्णु को क्षीरसागर में दिखाते हैं।
    • कहते हैं वहाँ घी की नदियाँ बहती हैं।
    • यहाँ तो घासलेट भी नहीं मिलता।
    • फ़र्क है ना।
    • तो तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।
  • बाप ही खिवैया है ना।
    • गाते भी हैं नईया मेरी पार लगाओ।
    • यह सब नईयायें हैं, खिवैया एक बाप ही है।
    • यह शरीर यहाँ ही छोड़ देंगे।
    • बाकी आत्माओं को पार ले जायेंगे शान्तिधाम।
    • वहाँ से फिर भेज देंगे सुखधाम।
    • परमपिता परमात्मा को ही खिवैया कहा जाता है।
    • बाप की ही महिमा गाते हैं अनेक प्रकार से।
    • अभी तुम पवित्र बन पवित्र दुनिया के मालिक बनते हो।
  • श्री श्री शिवबाबा आये हैं श्रेष्ठ बनाने।
    • खुद भगवान कहते हैं यह भ्रष्टाचारी दुनिया है।
    • अभी तुम परमपिता परमात्मा की श्रीमत पर चल श्रेष्ठाचारी बनते हो।
    • कितनी यह गुप्त रमणीक बातें हैं, जो तुम बच्चों को ही समझ में आती हैं।
    • औरों को समझ में आयेंगी ही नहीं।
    • तुम जानते हो कि अभी देवी-देवता धर्म का कलम लग रहा है।
    • जो भी देवी-देवता धर्म वाले और धर्मों में चले गये हैं, वही आकर फिर ब्राह्मण बनेंगे।
    • ब्रह्माकुमार-कुमारी बनने बिगर बाप से स्वर्ग का वर्सा ले नहीं सकते।
    • अभी तुम ब्रह्माकुमार-कुमारियां स्वर्ग का वर्सा ले रहे हो।
    • जितना पुरुषार्थ करेंगे, करायेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
    • सब तो इतना नहीं कर सकते।
  • पूरा नहीं पढ़ेंगे तो उसका नतीजा क्या होगा।
    • अगर शरीर छूट जाये तो स्वर्ग में आ जायेंगे।
    • परन्तु प्रजा में बिल्कुल ही साधारण।
    • अगर बाप का बनकर अच्छी रीति पढ़े तो राजाई पद पा सकते हैं।
    • नहीं पढ़ते हैं तो समझेंगे उनकी तकदीर में नहीं है।
  • पवित्र रहेंगे, पढ़ेंगे तो ऊंच पद पायेंगे।
    • अपवित्र होने से बाप को याद नहीं कर सकेंगे।
    • ऐसे भी बहुत हैं - कर्मबन्धन का हिसाब जब छूटे।
    • गाड़ी के दोनों पहिया पवित्र होंगे तो ठीक चलेंगे।
    • दोनों पवित्र रहेंगे तो ज्ञान चिता पर बैठ जायेंगे, नहीं तो खिटपिट होती है।
  • कई बच्चे कहते हैं कि बाबा हम तो जानते हैं श्रीकृष्ण सतयुग का पहला प्रिन्स है, तो क्यों नहीं कुछ मनायें।
    • अच्छा हम कृष्ण की आत्मा को बुला भी सकते हैं।
    • आकर खेल-पाल करेगी, रास करेगी और क्या करेगी।
    • गोप-गोपियाँ तो यहाँ ही होते हैं।
    • वहाँ तो प्रिन्स-प्रिन्सेज आपस में मिलते हैं तो रास करते हैं।
    • सोने की मुरली बजाते हैं।
    • यह सब खेल-पाल तुम पिछाड़ी में देखेंगे।
    • यह सब पार्ट चलेंगे।
    • शुरू में दिखाया गया फिर तुम पुरुषार्थ में लग गये हो।
    • अब फिर पिछाड़ी में साक्षात्कार होना शुरू होगा।
    • कौन-कौन किस पद को पायेंगे, यह तुम जानते हो।
    • बाप बैठ यह सब राज़ समझाते हैं।
  • तुमसे पूछते हैं वेदों, शास्त्रों को मानते हो!
    • बोलो हाँ, हम क्यों नहीं मानते हैं।
    • यह सब भक्ति मार्ग की सामग्री है, इनमें कोई ज्ञान नहीं है।
    • ज्ञान देने वाला तो एक है।
    • ज्ञान मिलता है तो भक्ति आपेही छूट जाती है।
    • तुम मन्दिर में भी जायेंगे तो बुद्धि में रहेगा कि यह लक्ष्मी-नारायण फिर अब नई दुनिया में राज्य करेंगे।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं, दोनों तरफ तोड़ निभाना है।
    • गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र बनना है।
    • श्रीमत कहती है पूरे पवित्र बनो, पूरा वैष्णव बनो और विष्णुपुरी का राज्य लो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) योग द्वारा कर्मबन्धन का हिसाब-किताब चुक्तू कर, पावन बनना है।
    • ज्ञान-चिता पर बैठना है।
    • पूरा-पूरा वैष्णव अर्थात् पवित्र बनना है।
  • 2) अपने शान्त स्वधर्म में स्थित रहना है।
    • सबको शान्तिधाम की याद दिलानी है।
    • कभी भी अशान्त नहीं होना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को जानकर उसकी अट्रैक्शन से मुक्त रहने वाले हिम्मतवान भव
  • जो बच्चे नॉलेज द्वारा रावण के बहु रूपों को अच्छी तरह से जान गये हैं, उनके आगे वह नजदीक भी नहीं आ सकता।
  • चाहे सोने का, चाहे हीरे का रूप धारण करे लेकिन उसकी अट्रैक्शन में नहीं आयेंगे।
  • ऐसी सच्ची सीतायें बन लकीर के अन्दर रहने का लक्ष्य रख, हिम्मतवान बनो।
  • फिर यह रावण की बहु सेना वार करने के बजाए आपकी सहयोगी बन जायेगी।
  • प्रकृति के 5 तत्व और 5 विकार ट्रांसफर होकर आपकी सेवा के लिए आयेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • सेवाओं में सफलता प्राप्त करना है तो निर्माणचित की विशेषता को धारण करो।