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ओम् शान्ति।
- रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ समझाते हैं इसलिए बच्चों को आत्म-अभिमानी हो बैठना है।
- ऐसा और कोई जगह समझाया नहीं जाता।
- कोई भी साधू-सन्त ऐसे नहीं समझाते कि आत्म-अभिमानी हो बैठो।
- यह एक बाप ही समझाते हैं और किसको कहने आयेगा नहीं।
- यह युक्ति कोई बता नहीं सकेंगे।
- तुम बच्चे भी समझते हो हम आत्मा हैं।
- आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- कब बैरिस्टर, कब डॉक्टर बनती है।
- आत्मा ही अभी पतित बनी है फिर पावन बनेगी।
- आत्मा में ज्ञान धारण होता है।
- बाप निराकार ज्ञान का सागर है तो जरूर आकर ज्ञान सुनायेंगे ना।
- पतित-पावन है तो जरूर आकर पावन बनायेंगे।
- वह है सुप्रीम परमपिता परमात्मा।
- मैं तुम्हारा बाप सुप्रीम हूँ, नॉलेजफुल हूँ।
- मुझे अपना शरीर नहीं है।
- यह सब नॉलेज तुम्हारी आत्मा धारण करती है तो तुमको आत्म-अभिमानी बनना है।
- देह-अभिमान नहीं रखना है और कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ सुनने और सुनाने वाले दोनों देही-अभिमानी हों।
- बाप तो है ही निराकार।
- वह आकर तुमको राजयोग सिखलाते हैं।
- बाकी सब मनुष्य हैं ही देह-अभिमानी।
- भल इन लक्ष्मी-नारायण के लिए कहेंगे - यह आत्म-अभिमानी थे फिर भी देहभान तो रहता है ना।
- यह ज्ञान परमपिता परमात्मा ही आकर देते हैं।
- आत्मा को धारण करना होता है।
- आत्मा को ही पतित से पावन होने की युक्ति बताते हैं।
- अभी सारी दुनिया का डाउन फाल है फिर राइज़ करने आते हैं।
- यह तुम बच्चे जानते हो।
- डाउन फाल माना डिस्ट्रक्शन राइज़ माना कन्स्ट्रक्शन।
- स्थापना और विनाश।
- स्थापना किसकी?
- नई दुनिया की, स्वर्ग की स्थापना और फिर पुरानी दुनिया हेल, नर्क का विनाश।
- डिस्ट्रक्शन और कन्स्ट्रक्शन।
- कलियुग है पुरानी दुनिया, इसका विनाश जरूर चाहिए।
- विनाश की निशानी - यह महाभारी महाभारत लड़ाई है।
- महाभारत का वृतान्त महाभारत शास्त्र में दिखाते हैं।
- बाप, ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
- सो तो जरूर नई दुनिया की करेंगे ना।
- यह है बेहद का विनाश और बेहद की स्थापना, बाप ही नया मकान बनायेंगे - बच्चों के लिए।
- फिर पुराना जरूर खलास करायेंगे।
- तुम समझते हो - बाबा अब नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं।
- तमोप्रधान से फिर सतोप्रधान बनाने के लिए हमको तैयार कर रहे हैं।
- विनाश के लिए महाभारत की लड़ाई मशहूर है।
- कहते हैं यह वही समय है।
- वही स्टार्स आकर आपस में मिले हैं जो महाभारत के समय थे।
- इस सीढ़ी में भी लिखा गया है भारत के उत्थान और पतन की अद्भुत कहानी।
- इस लाइन में कल्प-कल्प अक्षर भी आना चाहिए।
- शुरू से अन्त तक मनुष्य 84 जन्म लेते हैं।
- यह भी तुम्हारी बुद्धि में है।
- मनुष्यों की बुद्धि को तो एकदम गॉडरेज का ताला लगा हुआ है।
- इन बातों को मनुष्य को जानना है।
- आत्मायें यहाँ शरीर धारण करती हैं पार्ट बजाने।
- तो ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त के क्रियेटर, डायरेक्टर, मुख्य एक्टर्स आदि को जानना चाहिए ना।
- अभी तुमको ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, हू इज़ हू, सारे ड्रामा का पता पड़ गया है - शुरू से लेकर अन्त तक।
- बाप द्वारा यह नॉलेज सारी मिल रही है।
- सृष्टि चक्र कैसे फिरता है।
- इनको कहा जाता है रूहानी नॉलेज।
- जिस्मानी ज्ञान को फिलॉसाफी कहा जाता है।
- स्प्रीचुअल नॉलेज, रूहानी नॉलेज को ज्ञान कहा जाता है।
- अब यह सब बातें बच्चों की बुद्धि में बिठाई हैं।
- बच्चे जानते हैं अब 84 जन्मों का नाटक पूरा होता है।
- अभी हम वापिस जाते हैं परन्तु पतित कोई वापिस जा न सके।
- नहीं तो इतने जप तप तीर्थ आदि क्यों करते।
- पवित्र बनने लिए ही गंगा स्नान करने जाते हैं, परन्तु उससे कोई पावन तो बन नहीं सकते इसलिए वापिस कोई जा नहीं सकते।
- गपोड़े तो बहुत लगाते हैं कि फलाना पार निर्वाणधाम गया, ज्योति ज्योत समाया।
- बाप ने समझाया है वापिस कोई जाता नहीं है।
- सब एक्टर्स यहाँ ही हैं।
- अभी नाटक पूरा होता है तो सभी स्टेज पर खड़े हुए हैं।
- अभी सब यहाँ मौजूद हैं।
- मनुष्यों को पता नहीं कि बौद्धी, क्रिश्चियन आदि कहाँ हैं।
- तुम समझते हो जो सब आत्मायें ऊपर से यहाँ आई हैं वह सब इस समय तमोप्रधान हैं।
- तमोप्रधान से सतोप्रधान कल्प पहले भी बने थे।
- बाप ही आकर स्थापना, विनाश कराते हैं।
- कहते भी हैं यह ज्ञान राजाओं का राजा बनाने वाला है।
- यह बेहद के बाप ने कहा है कि मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- कृष्ण तो स्थापना नहीं कराते।
- क्रियेटर बाप है।
- बाप ही आकर समझाते हैं कि तुम मुझे बुलाते ही तब हो जबकि सृष्टि पतित है।
- ऐसे नहीं कि मैं नई सृष्टि रचता हूँ।
- जैसे दिखाते हैं प्रलय हुई, यह सब रांग है।
- मनुष्य बुलाते ही हैं कि हे पतित-पावन आओ तो जरूर पतित दुनिया में आयेंगे ना।
- बाप ही आकर कृष्णपुरी का साक्षात्कार कराते हैं।
- दिखाते हैं कृष्ण पीपल के पत्ते पर सागर में आया .. यह है ठीक बात।
- नई दुनिया में फर्स्ट कृष्ण ही आते हैं।
- सागर में नहीं परन्तु गर्भ महल में आते हैं।
- अंगूठा चूसते, बड़े आराम से गर्भ महल में रहते हैं।
- सतयुग में जो भी बच्चे होते हैं - गर्भ महल में रहते हैं।
- उन्होंने गर्भ महल की बात को फिर सागर में पत्ते पर बैठ दिखाया है।
- वह सब है भक्ति मार्ग की बातें।
- बाप इन सब शास्त्रों का सार बैठ समझाते हैं।
- यहाँ गर्भजेल में रहते हैं तब कहते हैं हमको बाहर निकालो।
- फिर हम पाप नहीं करेंगे।
- परन्तु रावण की दुनिया में पाप तो होते ही हैं।
- फिर भी पाप करने लग पड़ते हैं।
- तुम आधाकल्प जेल बर्डस बन जाते हो।
- चोर लोगों को जेल बर्डस कहते हैं।
- बाहर निकलते रहते फिर भी चोरी करते रहते हैं और जेल में जाना पड़ता है इसलिए जेल बर्डस कहते हैं।
- बाप ने समझाया है यह रावण राज्य है।
- वहाँ तो यह बातें होती ही नहीं।
- वह है ही रामराज्य।
- वहाँ न गर्भजेल है और न वह जेल होता है।
- यहाँ तो कितने मनुष्य जेल में पड़े रहते हैं।
- गर्भ जेल है तो वह भी जेल है।
- डबल जेल है।
- कलियुग का अन्त है ना।
- बाप समझाते हैं तुम बच्चे अभी कन्स्ट्रक्शन कर रहे हो।
- राइज़ और फॉल, हर कल्प होता ही रहता है।
- राइज़ और फॉल दुनिया का होता है।
- उसमें मुख्य पार्ट है भारत का।
- गाते भी रहते हैं आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल.... तो उसका भी हिसाब चाहिए ना।
- कौन सी आत्मायें बहुतकाल से अलग रही हैं।
- पहले-पहले देवी-देवता धर्म की आत्मायें आती हैं पार्ट बजाने।
- अभी वह देवता हैं नहीं, जो राज्य करके जाते हैं, उन्हों के चित्र निशानियां रहती हैं।
- राजाई तो खत्म हो गई।
- हेविन खलास हो जाता है तो फिर हेल होता है फिर हेल खत्म तो हेविन बनता है।
- तो नई दुनिया का कन्स्ट्रक्शन होता है और हेल का डिस्ट्रक्शन होता है।
- कन्स्ट्रक्शन के लिए बच्चे चाहिए ना।
- रहने वाले भी तुम हो।
- पहले तो तुमको दैवी गुणों वाला देवता बनना पड़े।
- यह भी गायन है मनुष्य से देवता.. मूत पलीती मनुष्य हैं ना।
- भगवानुवाच - गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।
- यह इस मृत्युलोक का है ही अन्तिम जन्म, इसमें पवित्र बनना है।
- यह अच्छी रीति समझाना चाहिए।
- हम यह मृत्युलोक का अन्तिम जन्म पवित्र रहते हैं।
- बाप कहते हैं - इन विकारों पर जीत पाने से तुम विश्व का मालिक बनेंगे।
- बच्चे भी सुनकर फिर औरों को समझाते हैं कि इस पुरानी दुनिया का विनाश सामने खड़ा है।
- यह वही महाभारत की लड़ाई है, काम महाशत्रु है, इसलिए प्रतिज्ञा करो।
- अभी तुम समझते हो हम पवित्र बनते हैं।
- इस पुरानी दुनिया का विनाश जरूर होना है, उनके पहले पवित्र जरूर बनना है।
- विनाश होता है फिर तो बात मत पूछो - हाहाकार हो जाता है, बहुत कड़ा मौत है।
- तुम देख भी नहीं सकेंगे।
- कोई का आपरेशन होता है तो कमजोर लोग ठहरते नहीं, गिर पड़ते हैं इसलिए डॉक्टर लोग फैमलीज़ को तो एलाउ नहीं करते।
- यह तो कितना भारी आपरेशन होगा।
- एक दो को मारते रहेंगे।
- यह है डर्टी दुनिया, काँटों का जंगल।
- सतयुग को कहा जाता है गार्डन आफ फ्लावर्स, फूलों का बगीचा।
- देवतायें चैतन्य फूल हैं ना।
- मनुष्य तो समझते हैं बहिश्त में कोई फूलों का बगीचा होता है, जो सुनते हैं सो कह देते हैं।
- गार्डन आफ अल्लाह कहते हैं ना, फिर ध्यान में भी गार्डन देखेंगे।
- अल्लाह ने हाथ में फूल दिया।
- बुद्धि में ही खुदाई बगीचा है।
- भक्ति मार्ग में साक्षात्कार करने के लिए भक्ति करते हैं।
- साक्षात्कार हुआ तो कहेंगे सर्वव्यापी है ना।
- जो पास्ट हुआ सो फिर होगा।
- बच्चे जिस पोशाक में, जैसे आये हैं, ऐसी पोशाक में फिर कल्प बाद आयेंगे।
- ड्रामा को कोई अच्छी रीति समझते हैं, बाबा के पास कोई आते हैं तो बाबा पूछते हैं आगे कब आये हो?
- कहते हैं - हाँ बाबा आपसे कल्प आगे भी मिले थे, आपसे वर्सा लेने आये थे।
- बाप पूछते हैं क्या मर्तबा पाया था?
- बाबा मम्मा कहते हैं तो जरूर उन्हों के घराने में आयेंगे।
- बाबा कहते हैं ऐसा पुरुषार्थ करो जो ऊंच पद पाओ।
- यह सब बातें तुम्हारी बुद्धि में हैं।
- बरोबर लड़ाई भी है, नर्क विनाश तो होना ही है।
- तुम्हारे पास चित्र बड़े फर्स्टक्लास हैं।
- यह कृष्ण के दो गोले वाला चित्र भी छपाना चाहिए, इसमें बड़ा क्लीयर है।
- स्वर्ग के द्वार खुलते हैं तो नर्क तरफ लात है।
- तुम्हारा भी मुँह है स्वर्ग तरफ, यह तो बिल्कुल एक्यूरेट बात है।
- जानते हो अभी हमको घर जाना है तो घर को ही याद करना पड़े।
- पुरानी दुनिया को भूलना पड़े, इसको कहा जाता है बेहद का वैराग्य।
- पुरानी दुनिया को छोड़ हम बाबा के पास जाते हैं।
- याद की यात्रा से ही जायेंगे।
- मुख्य है ही याद की बात।
- याद तो सब करते हैं ना।
- अभी बाप यथार्थ बात आकर समझाते हैं कि मुझे याद करो।
- यह है अव्यभिचारी याद सो भी अर्थ सहित।
- तुम जानते हो शिवबाबा भी बिन्दी है।
- अपने को भी आत्मा बिन्दी समझें, बाप को भी बिन्दी समझें।
- नई बात देख भूल जाते हैं।
- अपने को आत्मा समझ फिर बाप को और अपने घर को याद करना है।
- अच्छा बिन्दी छोटी लगती है, घर तो बड़ा है ना।
- घर को याद करो।
- बाबा भी वहाँ रहते हैं।
- हम तुम वहाँ जायेंगे जहाँ बाबा रहते हैं।
- बिन्दी याद नहीं पड़ती है, अच्छा घर तो याद पड़ता है ना, वह है शान्तिधाम और वह है सुखधाम।
- यह है दु:खधाम।
- अभी तुम नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार पढ़ रहे हो फिर सुखधाम में आ जायेंगे।
- बाप के बच्चे हैं तो जरूर स्वर्ग की बादशाही चाहिए।
- कल्प पहले भी शिवबाबा आया था, स्वर्ग की बादशाही दी थी।
- तुम भूल गये हो।
- बाप कहते हैं - अभी फिर आया हूँ, तुमको देने।
- कितने बार तुमने राजाई ली और गँवाई है।
- अनगिनत बार वर्सा लिया है फिर भी ऐसे बाप को भूल क्यों जाते हो!
- माया के तूफान से बहुत लड़ाई होती है इसलिए नाटक भी दिखाते हैं - माया उस तरफ खींचती है, प्रभू इस तरफ खींचते हैं।
- ज्ञान में विघ्न नहीं पड़ते, याद में विघ्न पड़ते हैं, इसमें ही मेहनत है।
- अब बाप कहते हैं - महारथी बनो।
- इस पुरानी दुनिया को तो आग लगनी है।
- इस यज्ञ में सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है तो महावीर भी बनना है।
- तुम बच्चों को अखण्ड, अटल, अडोल राज्य पाना है।
- तुम्हारा बुद्धियोग बाप के साथ ऐसा रहे जो भल कितना भी तूफान आये, माया कुछ कर न सके।
- यह है तुम्हारी पिछाड़ी की अवस्था, जब ट्रांसफर होना होता है।
- जैसे स्कूल में इम्तिहान पिछाड़ी को होते हैं, तुम्हारी माला भी पिछाड़ी में बनेंगी।
- तुमको बहुत साक्षात्कार होगा - फलाने यह बनेंगे, फलाना ये बनेगा।
- ये दासी बनेगी... ये सब बतायेंगे।
- उस समय तो कुछ भी कर नहीं सकेंगे, फिर पछताना पड़ेगा, यह हमने क्या किया!
- श्रीमत पर क्यों नहीं चला!
- परन्तु अन्त समय में कुछ हो नहीं सकेगा।
- ऐसे बहुत पछताते हैं।
- मनुष्य किसका खून कर फिर बाद में पछताते हैं।
- परन्तु खून तो हो गया फिर क्या कर सकेंगे इसलिए बाप कहते हैं - ग़फलत मत करो, अपना पुरुषार्थ करते रहो।
- अच्छा-
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) 84 जन्मों का नाटक अभी पूरा होता है, वापस घर चलना है, इसलिए आत्म-अभिमानी रह पावन बनना है।
- 2) अर्थ सहित अपने को आत्मा बिन्दू समझ, बिन्दू बाप की अव्यभिचारी याद में रहना है।
- महावीर बन अपनी अवस्था अडोल, अचल बनानी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह और शुभचिंतक की भावना रखने वाले देही-अभिमानी भव
- जैसे महिमा करने वाली आत्मा के प्रति स्नेह की भावना रहती है, ऐसे ही जब कोई शिक्षा का इशारा देता है तो उसमें भी उस आत्मा के प्रति ऐसे ही स्नेह की, शुभचिंतन की भावना रहे - कि यह मेरे लिए बड़े से बड़े शुभचिंतक हैं - ऐसी स्थिति को कहा जाता है देही-अभिमानी।
- अगर देही-अभिमानी नहीं हैं तो जरूर अभिमान है।
- अभिमान वाला कभी अपना अपमान सहन नहीं कर सकता।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सदा परमात्म प्यार में खोये रहो तो दु:खों की दुनिया भूल जायेगी।
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