24-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - अब तक जो कुछ पढ़ा है, उसे भूल एक बाप को याद करो''
प्रश्नः-
भारत पर सतयुगी स्वराज्य स्थापन करने के लिए कौनसा बल चाहिए?
उत्तर:-
पवित्रता का बल।
तुम सर्वशक्तिवान बाप से योग लगाकर पवित्र बनते हो।
यह पवित्रता का ही बल है जिससे सतयुगी स्वराज्य की स्थापना होती है, इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं।
ज्ञान और योग-बल ही पावन दुनिया का मालिक बना देता है।
इसी बल से एक मत की स्थापना हो जाती है।
गीत:-
आखिर वह दिन आया आज...
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ओम् शान्ति।
- बच्चों ने गीत सुना।
- यह गीत कोई अपना बनाया हुआ नहीं है।
- जैसे और वेदों शास्त्रों का सार समझाया जा रहा है।
- वैसे यह भी जो गीत बनाये हैं, उनका भी सार समझाते हैं।
- बच्चे जानते हैं कि खिवैया वा बागवान वा सद्गति दाता एक ही बाप है।
- भक्ति करते हैं जीवनमुक्ति के लिए।
- परन्तु जीवनमुक्ति वा सद्गति दाता एक भगवान है।
- उसका अर्थ बच्चे ही समझ सकते हैं, मनुष्य नहीं समझते हैं।
- सद्गति अर्थात् दु:ख से छुड़ाकर शान्ति की प्राप्ति कराते हैं।
- भारतवासी बच्चे जानते हैं कि यहाँ पवित्रता सुख शान्ति थी, जबकि इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- राधे कृष्ण का राज्य नहीं कह सकते।
- वास्तव में माताओं की हमजिन्स राधे है।
- उनको जास्ती प्यार करना चाहिए फिर भी कृष्ण को बहुत प्यार करते हैं।
- झूले में झुलाते हैं।
- कृष्ण की जन्माष्टमी भी मनाते हैं।
- राधे की जयन्ती नहीं मनाते हैं।
- वास्तव में मनाना चाहिए दोनों का।
- समझ तो कुछ है नहीं।
- उन्हों की जीवन कहानी को तो कोई जानते नहीं।
- बाप आकर अपनी और सबकी जीवन कहानी सुनाते हैं।
- मनुष्य कहते भी हैं शिव परमात्मा नम: परन्तु उनकी जीवन कहानी को नहीं जानते।
- मनुष्य की जीवन कहानी को हिस्ट्री-जॉग्राफी कहा जाता है, दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी तो गाई जाती है ना - कितने इलाके पर राज्य करते थे, कितनी जमीन पर राज्य करते थे।
- कैसे राज्य किया फिर वह कहाँ गये..... यह बातें कोई नहीं जानते।
- तुम बच्चों को अच्छी रीति समझाया जाता है।
- रचयिता और रचना की नॉलेज बच्चों को समझाते हैं।
- तुम बच्चों को मालूम पड़ गया है कि बरोबर अब कलियुग का अन्त है और सतयुग का आदि है।
- संगम पर ही परमपिता परमात्मा आकर मनुष्य को पतित से पावन देवता बनाते हैं।
- उत्तम पुरूष अथवा पुरूषोत्तम बनाते हैं क्योंकि इस समय के मनुष्य उत्तम नहीं हैं, कनिष्ट हैं। उत्तम, मध्यम, कनिष्ट, सतो रजो तमो होते हैं।
- जो अच्छी तरह ज्ञान सुनेंगे उनको सतोगुणी कहेंगे।
- जो थोड़ा सुनेंगे उनको रजोगुणी कहेंगे, जो सुनते ही नहीं उनको तमोगुणी कहेंगे।
- पढ़ाई में भी ऐसे होता है।
- तुम बच्चों को सतोप्रधान पढ़ाई चाहिए इसलिए सतोप्रधान लक्ष्मी-नारायण बनने का तुमको ज्ञान दिया जाता है।
- नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनना है।
- गीता के लिए भी तुम कहते हो कि यह है सच्ची गीता।
- तुम लिख भी सकते हो - यह है सच्ची गीता पाठशाला अर्थात् सत्य नारायण बनने की कथा अथवा सच्ची अमरकथा, सच्ची तीजरी की कथा।
- चित्र तो सब तुम्हारे पास हैं, इनमें सारा ज्ञान है।
- तुम बच्चे अब प्रतिज्ञा करते हो कि हम प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ भारत को सतोप्रधान स्वर्ग बनाकर छोड़ेंगे।
- तुमको इतला (खबर) करनी है।
- गांधी जी भी पावन राज्य चाहते थे तो जरूर अब पतित राज्य है।
- यह कोई समझ नहीं सकते कि हम खुद पतित हैं।
- कहते हैं रामराज्य चाहिए तो जरूर आसुरी सम्प्रदाय ठहरे ना, परन्तु यह किसकी बुद्धि में नहीं आता है।
- कितने बड़े-बड़े गुरू लोग भी इतना नहीं समझते हैं।
- तुम बच्चे इतला करते हो कि हम श्रीमत पर ब्रह्मा द्वारा 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक दैवी राज्य स्थापन करेंगे।
- यह है पुरूषोत्तम संगमयुग जबकि कनिष्ट पुरुष से सतोप्रधान पुरुषोत्तम बनते हो।
- मर्यादा पुरुषोत्तम आदि सनातन देवी-देवता धर्म ही है।
- अब एक ही देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है फिर दूसरे धर्म होंगे ही नहीं।
- तुम बच्चे सिद्ध कर समझाते हो कि सतयुग में एक धर्म, एक ही राज्य था।
- भल त्रेता में सूर्यवंशी से बदल चन्द्रवंशी में जाते हैं परन्तु होगी एक ही भाषा।
- अब तो भारत में अनेक भाषायें हैं।
- बच्चे जानते हैं कि हमारे राज्य में एक ही भाषा थी।
- आजकल तो बहुत कुछ देखते रहेंगे।
- जैसे मुसाफिरी से नजदीक आते जाते हैं अपने देश तरफ तो खुश होते हैं कि अब अपने घर आ गये।
- बस अब जाकर मिलेंगे।
- तुमको भी अपनी राजधानी का साक्षात्कार होता रहेगा।
- अपने पुरूषार्थ का भी साक्षात्कार होगा।
- देखेंगे कि बाबा हमको कितना कहते हैं कि पुरुषार्थ करो।
- नहीं तो हाय-हाय करेंगे और पद भी कम हो जायेगा।
- योग की यात्रा सबको बताते रहो।
- समझाना तो बहुत सहज है।
- सीढ़ी कितनी सहज है।
- जो देरी से आते हैं उनको दिन-प्रतिदिन सहज ज्ञान मिलता है।
- एक हफ्ता समझने से ही सहज समझ जायेंगे।
- चित्र ऐसे बने हुए हैं, जिनमें एक्यूरेट समझानी है।
- 84 जन्मों का चक्र बिल्कुल ठीक है।
- यह भारतवासियों के लिए है।
- तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है।
- तुम जानते हो कि पतित-पावन, सद्गति दाता शिवबाबा की मत पर हम फिर से सहज राजयोग बल से, अपने तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
- दूसरे कोई का हम नहीं लगाते हैं।
- अपने ही तन-मन-धन से सेवा करते हैं।
- जितना जो करेंगे वह अपने भविष्य के लिए बनाते हैं।
- तुम ही घर के भाती हो।
- तुम्हारे से ही बाबा सतयुगी स्वराज्य स्थापन करा रहे हैं।
- खर्चा भी तुम ही करेंगे।
- तुम्हारा कोई जास्ती खर्चा नहीं है।
- तुमको सिर्फ शिवबाबा को याद करना है, कन्याओं को क्या खर्चा करना है।
- उनके पास कुछ है क्या?
- बाबा बच्चों से क्या फी लेंगे।
- कुछ भी नहीं।
- स्कूलों में तो पहले फीस की बात करते हैं।
- वहाँ कितना पढ़ाई में खर्चा होता है।
- यहाँ तो शिवबाबा बच्चों से कैसे पैसा लेंगे।
- शिवबाबा को अपना घर थोड़ेही बनाना है, जो पैसा लेंगे।
- तुम बच्चों को भविष्य स्वर्ग में जाकर हीरे जवाहरों के महल बनाने हैं इसलिए तुम यहाँ जो करते हो उसका रिटर्न भविष्य में तुमको महल मिल जाता है।
- यह बड़ी समझने की बातें हैं।
- जितना जो तन-मन-धन से सेवा करेंगे, वह ऐसा वहाँ पायेंगे।
- कॉलेज वा हॉस्पिटल बनाते हैं।
- 10 लाख, 20 लाख लगाने पड़ते हैं।
- यहाँ तो इतना खर्चा नहीं लगता।
- छोटे से मकान में रूहानी कॉलेज कम हॉस्पिटल बनाते हैं।
- पाण्डवों का आदि पति कौन था?
- उन्होंने तो कृष्ण का नाम लिख दिया है।
- वास्तव में है निराकार भगवान।
- तुमको श्रीमत देने वाला भगवान है।
- बाकी तो सब हैं रावण की मत पर, रावण राज्य में।
- रावण की मत पर कितने डर्टी बन पड़े हैं।
- अब यही सृष्टि पुरानी, वही नई बनती है।
- सृष्टि में भारत ही था।
- भारत नया, भारत पुराना कहेंगे।
- नया भारत तो स्वर्ग था।
- फिर भारत पुराना है तो नर्क है।
- इनको कहा जाता है रौरव नर्क।
- मनुष्य की ही बात है।
- यहाँ सुख का नाम निशान नहीं है।
- यह कोई सुख थोड़ेही है।
- संन्यासी भी कहते हैं, इस समय का सुख काग विष्टा समान है, इसलिए वह गृहस्थ व्यवहार को छोड़ देते हैं।
- वह स्वर्ग वा सतयुग की स्थापना कर न सकें।
- कृष्णपुरी तो परमात्मा ही स्थापन करते हैं।
- श्रीकृष्ण की आत्मा और शरीर दोनों सतोप्रधान थे इसलिए कृष्ण को बहुत प्यार करते हैं क्योंकि पवित्र है ना।
- गाया भी जाता है छोटा बच्चा ब्रह्म ज्ञानी समान है।
- छोटे बच्चों को विकारों का पता नहीं रहता।
- संन्यासियों को फिर भी पता है।
- बच्चा तो जन्म से ही महात्मा है।
- बच्चों को तो पवित्र फूल कहा जाता है।
- नम्बरवन फूल है श्रीकृष्ण।
- स्वर्ग नई दुनिया का पहला प्रिन्स।
- जन्म लिया तो कहेंगे फर्स्ट प्रिन्स।
- कृष्ण को तो सब याद करते हैं कि श्रीकृष्ण जैसा बच्चा मिले।
- अब बाप कहते हैं कि जो बनना है सो बनो।
- सिर्फ एक कृष्ण थोड़ेही बनता है।
- प्रिन्स ऑफ वेल्स कितने बनते हैं?
- सेकेण्ड थर्ड होते हैं ना।
- तो यहाँ भी डिनायस्टी है।
- बाप के पिछाड़ी फिर दूसरे गद्दी पर बैठेंगे।
- जैसे घराने होते हैं वैसे यह घराना है।
- तुम्हारा कनेक्शन ही क्रिश्चियन से है।
- कृष्ण और क्रिश्चियन दोनों की एक ही राशि है।
- लेन-देन भी आपस में बहुत चलती है।
- भारत से वह कितना धन ले गये हैं।
- अब फिर दे रहे हैं।
- रिटर्न सर्विस कर रहे हैं।
- यह यूरोपवासी आपस में लड़कर खत्म हो जायेंगे।
- इस पर कहानी भी है - दो बिल्ले लड़े, बीच में माखन बन्दर खा गया।
- यह बात अभी की है।
- वह आपस में लड़ेंगे और राज्य भाग्य तुमको मिलना है।
- अब तुम बच्चों को अथाह ज्ञान है।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हम सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं।
- ऐसे नहीं कि हम गुजराती हैं, हम बंगाली हैं।
- यह है नहीं।
- यह मतभेद भी निकल जाना चाहिए।
- हम एक बाप की सन्तान हैं।
- ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा की श्रीमत पर फिर से हम अपना स्वराज्य स्थापन कर रहे हैं - ज्ञान और योगबल से।
- योग बल से ही हम पावन बनते हैं।
- बाप है सर्वशक्तिमान्, उनसे बल मिलता है।
- तुम विश्व की बादशाही लेते हो।
- लड़ाई आदि इसमें कुछ नहीं करते हो।
- सारा पवित्रता का बल है।
- कहते भी हैं कि आकर पतित से पावन बनाओ, तो याद का ही बल है।
- ऐसे नहीं कि वहाँ गोरखधन्धे में जाकर सब भूल जाये।
- यहाँ सम्मुख तो ज्ञान सागर की लहरें देखते रहते हैं।
- नदियों में तो वह लहरें नहीं होती हैं।
- सागर की एक लहर कितना नुकसान कर देती है।
- जब अर्थ क्वेक होगी तो सागर भी उथल खायेंगे।
- सागर को सुखाकर जमीन ली है, वह जमीन फिर कितने दाम में बेचते हैं।
- तुम जानते हो यह बाम्बे ही नहीं रहेगी।
- आगे यह बाम्बे थोड़ेही थी, छोटा एक गांवड़ा था।
- यह मातायें तो भोली हैं।
- यह इतना लिखी-पढ़ी नहीं हैं।
- यहाँ तो पढ़ा हुआ सब भूलना है।
- तुम कुछ नहीं पढ़े हो तो अच्छा है।
- पढ़े हुए मनुष्य समझने समय कितने प्रश्न करते हैं।
- यहाँ तो सिर्फ बाप को याद करना है।
- किसी देहधारी मनुष्य को याद करने की बात नहीं है।
- महिमा है ही एक बेहद के बाप की।
- तुम जानते हो कि ऊंचे ते ऊंचा है एक भगवान फिर सेकेण्ड नम्बर में ब्रह्मा।
- उनसे ऊंचा कोई होता नहीं।
- इससे बड़ी आसामी कोई नहीं, परन्तु चलते देखो कितना साधारण हैं।
- कैसे साधारण रीति बच्चों से बैठते हैं।
- ट्रेन में जाते हैं, कोई क्या जाने कि यह कौन हैं!
- भगवान आकर ज्ञान देते हैं, जरूर प्रवेश कर ज्ञान देंगे ना।
- अगर कृष्ण होता तो भीड़ मच जाती फिर तो पढ़ा भी न सके, सिर्फ दर्शन करते रहें।
- यहाँ तो बाप गुप्त साधारण वेश में बैठ बच्चों को पढ़ाते हैं।
- तुम हो इनकागनीटो सेना।
- तुम जानते हो कि हम आत्मायें योगबल से फिर से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं।
- यह पुराना शरीर छोड़ जाए नया गोरा शरीर धारण करेंगे।
- अब है आसुरी सम्प्रदाय फिर बनेंगे दैवी सम्प्रदाय।
- आत्मा कहती है कि हम नई दुनिया में दैवी शरीर धारण कर जाए राज्य करूँगा।
- आत्मा मेल है, शरीर प्रकृति है।
- आत्मा सदैव मेल है।
- बाकी शरीर हिसाब-किताब से मेल-फीमेल का मिलता है।
- लेकिन मैं हूँ अविनाशी आत्मा।
- यह चक्र फिरता रहता है।
- कलियुग का विनाश भी जरूर होगा।
- विनाश के आसार भी सामने देखते हो।
- वही महाभारत लड़ाई है तो जरूर भगवान भी होगा।
- किस रूप में, किस तन में है वह तुम बच्चों के अलावा किसको पता नहीं।
- कहते भी हैं - मैं बिल्कुल साधारण तन में आता हूँ।
- मैं कृष्ण के तन में नहीं आता हूँ।
- यही पूरे 84 जन्म लेते हैं।
- मैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में आता हूँ।
- 84 जन्म सूर्यवंशी घराने वाले ही लेते हैं।
- वही पहले नम्बर में आयेंगे।
- साकारी झाड़ और निराकारी झाड़ दोनों का तुमको सारा ज्ञान है।
- मूलवतन से नम्बरवार आत्मायें आती हैं।
- पहले-पहले देवी-देवता धर्म की आत्मायें आती हैं फिर नम्बरवार और धर्म वाले आते हैं।
- चित्रों में समझानी तो बड़ी ऊंची है।
- बच्चों को समझाना है, कुमारियों को खड़ा होना चाहिए।
- कोई बच्चियाँ ऐसी-ऐसी बातें समझायें तो कमाल है ना।
- कितना नाम निकालेंगी।
- लौकिक अलौकिक दोनों नाम बाला करेंगी।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) संगमयुग पर श्रेष्ठ कर्म करके पुरूषोत्तम बनना है।
- कोई भी ऐसा कर्म नहीं करना है जो कनिष्ट बन जाये।
- 2) गुप्त रूप में बाप का मददगार बन भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है।
- अपने ही तन-मन-धन से भारत को स्वर्ग बनाना है।
- याद और पवित्रता का बल जमा करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- अपने असली संस्कारों को इमर्ज कर सदा हर्षित रहने वाले ज्ञान स्वरूप भव
- जो बच्चे ज्ञान का सिमरण कर उसका स्वरूप बनते हैं वह सदा हर्षित रहते हैं।
- सदा हर्षित रहना - यह ब्राह्मण जीवन का असली संस्कार है।
- दिव्य गुण अपनी चीज़ है, अवगुण माया की चीज़ है जो संगदोष से आ गये हैं।
- अब उसे पीठ दे दो और अपने आलमाइटी अथॉरिटी की पोजीशन पर रहो तो सदा हर्षित रहेंगे।
- कोई भी आसुरी वा व्यर्थ संस्कार सामने आने की हिम्मत भी नहीं रख सकेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सम्पूर्णता का लक्ष्य सामने रखो तो संकल्प में भी कोई आकर्षण आकर्षित नहीं कर सकती।
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