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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत सुना।
- रूहानी बच्चों अर्थात् शिवबाबा जो सुप्रीम रूह है, उनके बच्चों आत्माओं ने शरीर रूपी कर्मेन्द्रियों द्वारा गीत सुना।
- अब तो बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है।
- बहुत मेहनत भी है।
- घड़ी-घड़ी अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है।
- यह है गुप्त मेहनत।
- बाप भी गुप्त, तो मेहनत भी गुप्त कराते हैं।
- बाप स्वयं आकर कहते हैं बच्चों, मुझे याद करो तो कल्प 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक फिर से सतोप्रधान बनेंगे।
- बच्चे समझते हैं हम ही सतोप्रधान थे फिर हम ही अब तमोप्रधान बने हैं।
- सतोप्रधान बनना है जरूर।
- गीत में भी कहते हैं तकदीर जो गँवाई हुई है वह फिर पाने के लिए तदबीर कराने वाला एक ही सर्वशक्तिमान् बाप है, क्योंकि सबको पावन बनाते हैं ना।
- बाप बच्चों को समझाते हैं, हे रूहानी बच्चों अब तकदीर बनाने आये हो।
- स्टूडेन्ट स्कूल में तकदीर बनाने जाते हैं ना।
- वह तो छोटे बच्चे होते हैं।
- तुम छोटे नहीं हो, तुम तो बड़े बुजुर्ग हो।
- तकदीर बना रहे हो।
- हाँ कोई बूढ़े-बूढ़े भी हैं।
- बुढ़ापे से जवानी में पढ़ना अच्छा होता है, जवान की बुद्धि अच्छी होती है।
- यह तो सबके लिए बहुत सहज है।
- तुम्हारा शरीर तो बड़ा है ना।
- यह बेबी है, इतना नहीं समझ सकेंगे क्योंकि आरगन्स छोटे हैं।
- स्तुति-निंदा, दु:ख-सुख इन बातों को तुम समझ सकते हो।
- आत्मा तो बिन्दी है।
- शरीर बढ़ता रहता है।
- आत्मा तो एकरस ही होती है।
- कभी घटती-बढ़ती नहीं।
- उस आत्मा की बुद्धि के लिए बाप कस्तूरी जैसी सौगात दे रहे हैं क्योंकि अभी तो बुद्धि बिल्कुल तमोप्रधान बन गई है।
- सो अब स्वच्छ भी बन रही है।
- यह चित्र तुमको समझाने में बहुत काम में आते हैं।
- भक्ति मार्ग में देवताओं के आगे जाकर माथा झुकाते हैं, पूजा करते हैं।
- आगे तुम भी अन्धश्रधा से जाते थे।
- शिव के मन्दिर में जाते थे, तुमको यह थोड़ेही पता था कि यह शिवबाबा है।
- बाबा से जरूर वर्सा मिला है तब तो उनकी महिमा गाई जाती है।
- कोई अच्छा काम करके जाते हैं तो उनकी महिमा गाई जाती है।
- स्टैम्प बनानी चाहिए शिवबाबा की।
- शिवबाबा गीता सर्मोनाइजर.... यह स्टैम्प सहज बन सकेगी।
- वह बाप सबको सुख देने वाला है।
- बाप कहते हैं - मैं तुमको सुखधाम का मालिक बनाने वाला हूँ।
- बुढ़ियाँ भी यह तो समझती होंगी कि हम आये हैं शिवबाबा के पास, जो विचित्र है।
- जिसने इस चित्र (तन) में प्रवेश किया है।
- निराकार को विचित्र कहा जाता है।
- बुद्धि में रहता है हम शिवबाबा के पास जाते हैं, जिसने यह टैप्रेरी चित्र धारण किया है।
- पतितों को पावन बनाए मुक्ति-जीवनमुक्ति देते हैं अथवा शान्तिधाम, सुखधाम का रहवासी बनाते हैं।
- मनुष्य शान्ति के लिए ही कोशिश करते हैं।
- भगवान मिले तो शान्ति मिले, सुख के लिए पुरूषार्थ नहीं करते हैं।
- बस बाप के पास घर जायें, भगवान मिले।
- इस समय सब मुक्ति की चाहना रखने वाले हैं।
- जीवनमुक्ति लेने वाले सिर्फ तुम ब्राह्मण ही हो।
- बाकी सब मुक्ति की चाहना रखने वाले हैं।
- जीवनमुक्ति का रास्ता बताने वाला कोई है ही नहीं।
- संन्यासियों आदि के पास जाकर शान्ति मांगते हैं।
- कहेंगे मन की शान्ति कैसे मिले।
- जो भी रास्ता बताने वाले हैं वह हैं ही मुक्ति में जाने वाले।
- मोक्ष क्या होता है, वह भी बुद्धि में नहीं आता है।
- तंग होकर कहते हैं मुक्ति में जायें तो अच्छा है।
- वास्तव में मुक्तिधाम है आत्माओं के रहने का स्थान।
- इतने सेन्टर्स पर बच्चे हैं सब जानते हैं कि हम नई दुनिया के लिए राज्य-भाग्य लेते हैं।
- बाबा हमको नई दुनिया का राज्य देते हैं।
- कहाँ देंगे?
- नई दुनिया में देंगे वा पुरानी दुनिया में देंगे?
- बाप कहते हैं मैं संगम पर आता हूँ।
- मैं न सतयुग में, न कलियुग में आता हूँ।
- दोनों के बीच में आता हूँ।
- बाप तो सबको सद्गति देंगे ना।
- ऐसे तो नहीं दुर्गति में छोड़ जायेंगे।
- सद्गति और दुर्गति इकट्ठे नहीं रह सकते।
- बच्चे जानते हैं यह पुरानी दुनिया विनाश होनी है, इसलिए इनसे प्यार नहीं रखना है।
- बुद्धि कहती है बरोबर अभी हम संगमयुग पर हैं।
- यह दुनिया बदलने वाली है।
- अब बाप आया हुआ है, बाप कहते हैं-मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ।
- तुमको दु:ख से छुड़ाए हरि के द्वार ले जाता हूँ।
- यह ज्ञान की बात है।
- हरिद्वार, कृष्ण का द्वार अर्थात् कृष्णपुरी को कहा जाता है।
- अच्छा उनके पीछे फिर लक्ष्मण झूला लगा दिया है।
- पहले हरिद्वार आयेगा।
- सतयुग को हरी-द्वार कहा जाता है।
- फिर राम लक्ष्मण आदि दिखाते हैं।
- वह बात कोई है नहीं।
- वह तो बनाई हुई बात है।
- राम को कितने भाई दे दिये हैं!
- 4 भाई तो होते नहीं।
- 4-8 भाई तो यहाँ होते हैं।
- एक तरफ हैं ईश्वरीय सन्तान, दूसरे तरफ हैं आसुरी सन्तान।
- अभी तुम जानते हो शिवबाबा ब्रह्मा तन में आये हैं।
- शिवबाबा है, ब्रह्मा है दादा।
- प्रजापिता है।
- वह आत्माओं का पिता तो अनादि है, इस समय ब्राह्मणों को रचते हैं।
- ऐसे नहीं कि शिवबाबा सालिग्राम को रचते हैं।
- नहीं, सालिग्राम तो अविनाशी हैं ही हैं।
- सिर्फ बाप आकर पवित्र बनाते हैं।
- जब तक आत्मा पवित्र नहीं बनी है तब तक शरीर कैसे पवित्र बन सकता।
- हम आत्मायें पवित्र थी तो सतोप्रधान थी।
- अभी अपवित्र तमोप्रधान हैं फिर सतोप्रधान कैसे बनें।
- यह तो सहज समझ की बात है।
- तुम इस समय खाद पड़ने से पतित तमोप्रधान हो गये हो।
- अब फिर सतोप्रधान बनना है।
- हिसाब-किताब चुक्तू कर सब शान्तिधाम वा सुखधाम में आयेंगे।
- आत्मायें निराकारी घर से कैसे आती हैं, उसकी यादगार भी क्रिश्चियन लोग झाड़ में बल्ब लगाकर मनाते हैं।
- तुम जानते हो यह सभी धर्मों की अलग-अलग शाखायें हैं, वहाँ से आत्मायें कैसे नम्बरवार नीचे उतरती हैं, यह नॉलेज तुमको मिल गई है।
- हम आत्माओं का घर शान्ति-धाम है।
- अभी है संगम।
- वहाँ से सब आत्मायें आ जायेंगी फिर सब जायेंगे।
- प्रलय तो होने की नहीं है।
- तुम जानते हो हम बाबा से तकदीर बनाने फिर से स्वराज्य लेने आये हैं।
- यह कोई सिर्फ कहने मात्र नहीं है।
- याद से ही वर्सा मिलेगा।
- बाप कहते हैं- देह सहित जो भी देह के मित्र-सम्बन्धी आदि हैं, सबको भूल जाओ।
- चित्र और विचित्र हैं ना।
- विचित्र उनको कहा जाता है जिनको देखा नहीं जाता है।
- यह बहुत महीन बातें हैं।
- आत्मा कितनी छोटी है।
- उनको घड़ी-घड़ी पार्ट बजाना पड़ता है और किसकी बुद्धि में ऐसी बातें हैं नहीं।
- पहले-पहले तो यह बुद्धि में बिठाना है कि हम आत्मा हैं, वह हमारा बाप है।
- उनको ही पतित-पावन, हे भगवान कह याद करते हैं।
- दूसरी कोई जगह जाने की दरकार नहीं है।
- तो याद भी एक को करना चाहिए ना।
- भगवान को याद करते हैं तो जरूर उससे कुछ मिलने का होगा।
- फिर दर-दर धक्के क्यों खाते हो!
- भगवान को तो परमधाम से आना पड़ेगा ना।
- हम तो जा नहीं सकते क्योंकि पतित हैं।
- पतित वहाँ जा न सकें।
- अभी तुम वन्डर खाते हो।
- भक्ति मार्ग का पार्ट कैसे वन्डरफुल है।
- एक भगवान को ही याद करते हैं - हे ईश्वर, हे परमपिता, ओ गॉड फादर।
- जब वह एक ही है फिर दूसरे तरफ धक्के क्यों खाते हो!
- वह एक ऊपर में रहते हैं।
- परन्तु यह सब नूँध हैं, ड्रामा अनुसार भक्ति करते हैं, बेहद बेसमझी से।
- अभी तुम फिर बेहद समझदार बनते हो।
- श्रीमत पर चलने वाले ही समझदार बनते हैं।
- वह फिर छिपे नहीं रह सकते, वह सदैव श्रेष्ठाचारी काम ही करेंगे।
- बाप कहते हैं - हम दु:ख हर्ता सुख कर्ता हैं तो बच्चों को भी कितना मीठा बनना चाहिए।
- बाप का राइट हैण्ड बनना चाहिए।
- ऐसे बच्चे ही बाप को प्रिय लगते हैं।
- राइट हैण्ड हैं ना।
- तुमको मालूम है लेफ्ट हाथ से इतना काम नहीं कर सकते हैं क्योंकि राइट हाथ राइटियस काम करते हैं इसलिए इस राइट हाथ को ही शुभ काम में लगाते हैं।
- पूजा हमेशा राइट हैण्ड से करते हैं।
- बाप कहते हैं - हर बात में राइटियस बनो।
- बाप मिला है तो खुशी होनी चाहिए।
- बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
- मत और गत वा गति करने की मत एक ही है।
- गाया भी जाता है ईश्वर की गत मत ईश्वर ही जाने।
- पतित-पावन वही है।
- वह जानते हैं मैं मनुष्यों को पावन बनाए दुर्गति से सद्गति में कैसे ले जाऊंगा।
- भक्ति मार्ग में कितनी मेहनत करते है परन्तु सद्गति होती नहीं।
- फल कुछ भी मिलता नहीं, सद्गति देने वाला तो एक ही बाप है।
- भक्ति में जो जिस भावना से पूजा करते हैं, उनको वह फल देने वाला मैं ही हूँ।
- वह भी ड्रामा में नूँध है, उनको आपेही मिल जाता है - अपने पुरूषार्थ से।
- अब पवित्र भी अपने पुरूषार्थ से बच्चों को बनना है।
- बाप कहते हैं - मीठे-मीठे बाप को याद करो।
- वही सर्वशक्तिमान्, आलमाइटी अथॉरिटी कितना अच्छा बनाते हैं।
- तुम सब कुछ जान चुके हो फिर बाप से वर्सा ले रहे हो।
- रचयिता और रचना की नॉलेज तुम्हारी बुद्धि में है।
- तुम जानते हो यह नॉलेज हमारे में नहीं थी।
- यज्ञ-तप आदि करना, शास्त्र आदि सुनना - यह है शास्त्रों की नॉलेज।
- उनको भक्ति कहा जाता।
- उसमें एम आब्जेक्ट कुछ है नहीं।
- पढ़ाई में एम आब्जेक्ट रहती है।
- कोई न कोई प्रकार की नॉलेज होती है।
- हमको पतित से पावन बनने की नॉलेज पतित-पावन बाप ने दी है।
- सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज बाप ने दी है।
- यह सृष्टि चक्र कैसे फिरता है, इसमें सभी एक्टर्स पार्टधारी हैं।
- यह अनादि नाटक बना हुआ है।
- यह बेहद की नॉलेज तो जरूर होनी चाहिए।
- तुम बच्चे जानते हो अभी हम घोर अन्धियारे से निकल घोर सोझरे में जा रहे हैं।
- तुम अभी देवता बन रहे हो।
- यह भी समझाना है कि आदि सनातन तो देवी-देवता धर्म है, जिसे हिन्दू धर्म कह दिया है।
- धीरे-धीरे यह बात भी समझ जायेंगे।
- बच्चों को खड़ा होना चाहिए।
- इसमें तो ढेर बच्चे चाहिए।
- देहली में कान्फ्रेन्स करनी पड़े।
- परिस्तान भी देहली को कहा जाता है।
- यही जमुना का कण्ठा था, देहली कैपीटल है।
- बहुतों के हाथ आई है।
- देवताओं की कैपीटल भी यह थी, देहली में बहुत बड़ी कान्फ्रेन्स होनी चाहिए परन्तु माया ऐसी है जो करने नहीं देती।
- विघ्न बहुत डालती है।
- आजकल भाव-स्वभाव भी बहुत हो गये हैं ना।
- बच्चों को आपस में मिलकर सर्विस में लगना है।
- वे लोग भी आपस में नहीं मिलते हैं तो राजाई ही उड़ जाती है, दो पार्टी हो जाती हैं तो प्रेजीडेंट को भी उड़ा देते हैं।
- द्वेत मत बड़ा नुकसान करती है।
- फिर भगवान का भी सामना करने में देरी नहीं करते हैं।
- नुकसान भी बहुत पाते हैं।
- क्रोध का भूत आ जाता है तो फिर बात मत पूछो इसलिए बाबा कहते हैं गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने।
- बाप बच्चों को सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुना रहे हैं।
- अब कोई धारणा करे वा न करे, वह है पुरूषार्थ पर मदार।
- ऐसे नहीं कोई पर बाबा आशीर्वाद वा कृपा करेंगे, इसमें कृपा आदि मांगने की बात नहीं।
- प्रेरणा से अगर योग और ज्ञान सिखलाना होता, फिर तो बाप कहते हैं मैं इस गन्दी दुनिया में आता क्यों?
- प्रेरणा, आशीर्वाद यह सब भक्ति मार्ग के अक्षर हैं।
- इसमें पुरूषार्थ करना होता है, प्रेरणा की बात नहीं।
- तुमको 3 इन्जन मिली हैं इकट्ठी।
- वहाँ तो बाप अलग, टीचर अलग मिलता है, गुरू पिछाड़ी में मिलता है।
- यहाँ तो यह तीनों ही इकट्ठे हैं।
- बाप कहते हैं - मैं तुमको पूज्य बनाता हूँ, तुम फिर पुजारी बन जायेंगे।
- बड़ा युक्ति से समझाना है।
- ऐसा न हो कोई बेहोश हो जाए।
- पहले-पहले मुख्य है दो बाप की बात।
- भगवान बाप है, उनका जन्म शिव जयन्ती भी यहाँ मनाते हैं।
- जरूर स्वर्ग का मालिक बनाते होंगे।
- भारत में ही स्वर्ग था।
- अभी नर्क के विनाश लिए महाभारत लड़ाई खड़ी है।
- जरूर बाप नई दुनिया की स्थापना कराने वाला भी है।
- बाप की श्रीमत पर ही हम कहते हैं कि भारत को हम पावन बनाकर ही छोड़ेंगे।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) जैसे बाप दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, ऐसे बाप समान बनना है।
- बहुत मीठा बनना है।
- सदा शुभ काम करके राइट हैण्ड बन जाना है।
- 2) कभी दो मतें नहीं बनानी है।
- भाव-स्वभाव में आकर एक-दो का सामना नहीं करना है।
- क्रोध का भूत निकाल देना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- फरियाद को याद में परिवर्तन करने वाले स्वत: और निरन्तर योगी भव
- संगमयुग की विशेषता है - अभी-अभी पुरूषार्थ, अभी-अभी प्रत्यक्षफल।
- अभी स्मृति स्वरूप अभी प्राप्ति का अनुभव।
- भविष्य की गॉरन्टी तो है ही लेकिन भविष्य से श्रेष्ठ भाग्य अभी का है।
- इस भाग्य के नशे में रहो तो स्वत: याद रहेगी।
- जहाँ याद है वहाँ फरियाद नहीं।
- क्या करें, कैसे करें, यह होता नहीं है, थोड़ी मदद दे दो - यह है फ़रियाद।
- तो फरियाद को छोड़कर स्वत: योगी निरन्तर योगी बनो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वही महान स्थिति का अनुभव करते हैं।
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