19-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - तुम सच्चे-सच्चे राजऋषि, राजयोगी हो, तुम्हें राजाई के लिए पवित्र जरूर बनना है''

प्रश्नः-


कौन सा अटेन्शन राजाई के लायक बना देता है?

उत्तर:-

अगर पढ़ाई पर पूरा-पूरा अटेन्शन है तो राजाई मिल जाती है।

बाप जो सुनाते हैं उसे अच्छी रीति सुनकर धारण करो।

बाप ने सुनाया और बच्चों ने सुना तो राजाई मिल जायेगी।

अगर सुनते समय उबासी देते वा झुटका खाते, बुद्धि भटकती तो राजाई गँवा देंगे, इसलिए पढ़ाई पर पूरा अटेन्शन दो।

गीत:- हमें उन राहों पर चलना है...


  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बाप रूहानी बच्चों प्रति समझा रहे हैं।
    • आज बच्चों को हठयोग और राजयोग पर समझाते हैं।
    • बच्चों को मालूम है वह जो भी सिखलाते हैं, सब है हठयोग क्योंकि वह कर्म संन्यासी हैं।
    • वास्तव में गृहस्थियों को हठयोग, कर्म-संन्यास सीखना नहीं है।
    • वह तो है ही निवृत्ति मार्ग।
    • वह धर्म ही अलग है।
    • तुम्हारा धर्म देवी-देवता धर्म है, जिन देवी-देवताओं ने राजयोग से ही राज्य पाया है।
  • अभी तुम राजऋषि हो।
    • ऋषि उन्हों को कहा जाता है जो पवित्र रहते हैं।
    • तुम अभी पवित्र हो।
    • अगर पवित्र न रहे तो उनको ऋषि नहीं कहा जाता।
    • तुम राजाई पाने के लिए पवित्र बनते हो।
    • वह कोई राजाई पाने के लिए पवित्र नहीं बनते।
    • तुम जानते हो कि पवित्र दुनिया में हमको पवित्र राजाई थी।
  • भारत में ही 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का पूज्य पवित्र प्रवृत्ति मार्ग था।

    • अभी पुजारी पतित बन पड़े हैं।
    • पतित कैसे बनें?
    • 84 जन्मों का हिसाब है ना।
    • बाप जो सहज राजयोग सिखला रहे हैं, वही तुमको 84 जन्मों का हिसाब बतलाते हैं।
  • दूसरे धर्म को संन्यास धर्म वाले क्या जानें।
    • यह है देवी-देवताओं का प्राचीन धर्म।
    • वह है पीछे वाला धर्म।
    • जो पास्ट हो गये हैं, उनको संन्यासी समझ न सकें।
    • तुम जानते हो हठयोग अनेक प्रकार के हैं।
    • द्वापर से भक्ति मार्ग के साथ हठयोग शुरू होता है।
    • अभी फिर है राजयोग।
  • वह हठयोग जन्म बाई जन्म सीखते आये हैं।

    • राजयोग तुम एक जन्म में ही सीखते हो।
    • उनको जन्म बाई जन्म पुनर्जन्म लेकर हठयोग सीखना ही है।
    • तुमको राजयोग सीखने के लिए पुनर्जन्म नहीं लेना पड़ता।
    • यह राजयोग तुम सिर्फ संगम पर ही सीखते हो।
    • राजाई मिल गई, स्वर्ग हो गया फिर और सब धर्म खत्म हो जाते हैं।
    • तुम राजऋषि हो।
  • राधे कृष्ण भी पवित्र हैं ना।
    • कृष्ण को महात्मा भी कहते हैं।
    • महात्मा पवित्र होते हैं।
    • तुम भी अभी महात्मा वा राज-ऋषि हो।
    • महात्मा अर्थात् पवित्र, महान आत्मा।
  • यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
    • शास्त्र तो बाद में बनते हैं।
    • कहानियों मिसल बैठ लिखते हैं।
    • जो पास्ट हो जाता है, वह बैठ खेल बनाते हैं।
    • सच्चा तो नहीं है।
    • अब बाप बच्चों को प्रैक्टिकल में पढ़ाते हैं।
    • उनकी फिर हिस्ट्री बनाई है।
    • यादव, कौरव, पाण्डव थे, जरूर संगम पर होंगे।
    • संगमयुग की हिस्ट्री बैठ बनाई है।
    • त्योहार भी सभी संगमयुग के हैं।
  • राखी बंधन भी पवित्रता पर है।
    • पीछे फिर उनका यादगार चलता है।
    • यहाँ बाप भी सभी को पवित्र बनाए प्रतिज्ञा कराते हैं।
    • सिक्ख लोग कंगन पहनते हैं, वह भी पवित्रता की निशानी है।
    • हिन्दू लोग जनेऊ पहनते हैं, वह भी पवित्रता की निशानी है।
    • परन्तु पवित्र रहते नहीं हैं।
    • राखी बंधवाते हैं, अर्थ थोड़ेही समझते हैं।
    • आगे ब्राह्मण लोग राखी बांधते थे।
    • अभी बहन भाई को राखी बांधती है, वह खर्ची देते हैं।
    • यह सब अभी फैशन पड़ा है।
    • वास्तव में यह है पवित्रता की बात।
  • बाप कहते हैं - बच्चे काम महाशत्रु है।
    • वह ब्राह्मण लोग कोई ऐसे नहीं समझाते हैं।
    • अभी बेहद का बाप कहते हैं बच्चे प्रतिज्ञा करो हम पवित्र बनेंगे।
    • कभी विकार में नहीं जायेंगे।
    • बुलाते भी इसलिए हो कि आकर पतितों को पावन बनाओ।
    • सतयुग त्रेता में कोई नहीं बुलाते।
  • वह है ही रामराज्य।
    • यह है रावण राज्य।
    • रामराज्य में 5 विकार होते नहीं।
    • यथा राजा रानी तथा प्रजा...अभी तुम बच्चे जानते हो हम बाबा से स्वर्ग की बादशाही ले रहे हैं।
    • इस नर्क से जाना जरूर है।
    • बाबा आया है पावन बनाकर स्वर्ग में ले जाने।
    • फिर तो हम क्यों नहीं पावन बनें।
  • उन्हों के हठयोग तो अनेक प्रकार के हैं।
    • जयपुर के म्युजियम में जाकर देखो कितनी वैराइटी है हठयोगियों की।
    • उनसे होता कुछ भी नहीं।
    • सीढ़ी नीचे उतरते ही जाते।
  • बाप ने समझाया है भारत जब पतित बनता है, रावण का राज्य होता है तो धरनी हिलने लगती है।
    • सोने के महल आदि सब नीचे चले जाते हैं।
    • महलों आदि को कोई लूटा थोड़ेही है।
    • वह तो सिर्फ मन्दिरों को लूटा है।
    • कुछ जेवर सोना आदि ले गये हैं।
    • जेवरों का सबसे जास्ती शौक तुमको है।
    • तुम स्वर्ग में आते ही जेवर पहनते हो, राज्य करते हो।
    • और धर्म वाले आते ही राज्य नहीं करते हैं।
    • तुम बेहद के बाप से स्वर्ग की बादशाही का वर्सा लेते हो।
  • तो यह बाप बैठ समझाते हैं, गीता पढ़कर नहीं सुनाते हैं।
    • गीता में जो कुछ लिखा है, वह सब मैंने कहा नहीं है, वह तो मनुष्यों ने मेरे महावाक्यों का बाद में बैठ शास्त्र बनाया है।
    • हमने जो तुमको सुनाया वह तुमने ही सुना और फिर जाकर राजाई की।
    • वहाँ यह ज्ञान नहीं रहता।
    • यहाँ तो बाप टीचर बैठ शिक्षा देते हैं।
    • बाप तो हिन्दी में ही समझाते हैं।
    • यहाँ सब हिन्दी-हिन्दी कहते रहते हैं ना।
    • जो उन्हों की भाषा है।
  • वास्तव में प्राचीन भाषा हिन्दी ही है, न कि संस्कृत।
    • यह संस्कृत तो शंकराचार्य के बाद निकली है।
    • जो आते हैं वह अपनी भाषा चलाते हैं।
    • बाकी ऐसे नहीं कि बाबा ने गीता संस्कृत में सुनाई है।
    • नहीं।
  • गुरूनानक का अपना ग्रंथ है।
    • उसने सिक्ख धर्म स्थापन किया, उनको भी अवतार मानते हैं।
    • उसमें राजायें भी होते हैं।
    • संन्यासियों में राजाई नहीं है।
  • बाबा ने समझाया है - बुद्ध, क्राइस्ट आदि पहले गृहस्थी आत्मा थे।
    • अब गृहस्थी पतित आत्मा तो धर्म स्थापन कर न सके।
    • उनमें पवित्र आत्मा आई, जिसने धर्म स्थापन किया।
    • दूसरे धर्म तो किसम-किसम के बहुत हैं, आकर अपना छोटा मठ पंथ स्थापन करते हैं।
    • झाड़ में भी दिखाया है ना।
  • तो हठयोग और राजयोग में बहुत फर्क है।
    • यह बातें समझने की हैं, जिसको समझ में नहीं आती होंगी, वह झुटका खाते, उबासी देते रहेंगे।
    • यहाँ तो तुमको खजाना मिलता है।
    • बड़ी भारी कमाई है।
    • तुम रत्नों से झोली भरते हो।
    • तो यह आंखें खोलकर सुनना होता है।
    • झुटके खाते रहेंगे या बुद्धि बाहर भटकती रहेगी तो वह राजधानी पा न सकें।
  • तुम हो राजऋषि।
    • राजाई प्राप्त करने वाले।
    • बाप राजधानी स्थापन करते हैं।
    • श्रीकृष्ण नहीं करते।
    • कृष्ण तो बाप का वर्सा लेते हैं।
    • अब तुम्हारा बाप है निराकार, जिससे वर्सा ले रहे हो - विश्व की बादशाही का।
    • कितना तुम साहूकार बनते हो।
    • यहाँ एक ही बाप आकर राजयोग सिखलाते हैं।
  • सो भी घूमो, फिरो, खाओ पियो, सिर्फ बाप को याद करो।
    • साहूकार जरूर अच्छी रीति खायेंगे।
    • वह तो अपनी कमाई का फल खाते हैं।
    • मालपुड़ा खाओ या रोटी खाओ।
    • याद करो बाप को।
    • भल कुछ भी खाओ।
    • पैसा तब किसके लिए है।
    • बाबा कोई मना नहीं करते हैं।
    • सिर्फ बाप से योग लगाना है।
  • इस राजाई स्थापन करने में खर्चा नहीं है।
    • उस लड़ाई आदि में कितना खर्चा होता है।
    • एरोप्लेन पर कितना खर्चा होता है।
    • गिरते हैं तो एकदम खत्म हो जाते हैं।
    • कितना नुकसान हो जाता है।
    • तो बाप कहते हैं चलते फिरते बाप को याद करो।
    • स्वदर्शन चक्र फिराते रहो।
    • हमने 84 जन्म पूरे किये हैं।
    • अब चलें वतन की ओर।
    • घर जाकर फिर आए राजाई करेंगे।
  • तुम एक्टर्स हो ना।
    • वह बाइसकोप तो दो अढ़ाई घण्टा चलते हैं।
    • यह बेहद का नाटक 5 हजार वर्ष चलता है, इनको मनुष्य ही जान सकते।
  • यह दुनिया है कांटों का जंगल।
    • बड़े ते बड़ा काँटा है विकार का, जो आदि मध्य अन्त दु:ख देते हैं।
    • दूसरे नम्बर का काँटा है क्रोध।
    • उनकी निशानी यह महाभारत लड़ाई देखो।
  • कोई बात में गुस्सा आया तो झट बाम्बस शुरू कर देंगे।
    • अभी तो ऐसे-ऐसे बाम्बस बनाये हैं जो बात मत पूछो।
    • सतयुग में कोई लड़ाई आदि होती नहीं।
    • संगम पर ही यह महाभारत लड़ाई दिखाई है।
    • दूसरे कोई शास्त्र में लड़ाई की बात ही नहीं।
  • वहाँ तो सारे विश्व के तुम मालिक रहते हो।
    • लड़ाई की बात हो न सके।
    • शास्त्रों में असुरों और देवताओं की लड़ाई दिखाई है।
    • परन्तु देवतायें अहिंसक हैं।
    • तुम योगबल से विश्व के मालिक बनते हो।
    • यह है साइलेन्स बल, इसमें कुछ तुमको बोलना नहीं है।
    • याद के बल से तुम बाबा से विश्व की बादशाही लेते हो।
    • फ़र्क देखो कितना है।
    • साइंस बल से विनाश होता है।
    • उसी ही साइंस से फिर सतयुग में सुख देखेंगे।
  • साइंस से इन्वेन्शन करते हैं, वह तो सुख के लिए करते हैं।
    • यह भी आकर कुछ ज्ञान लेंगे।
    • प्रदर्शनी में तो सब आते हैं।
    • आगे चल सब आयेंगे।
    • तुम्हारे इस साइलेन्स बल का आवाज निकलेगा।
  • तुम प्रश्न पूछते हो - गीता का भगवान कौन?
    • ऐसे प्रश्न कोई पूछ न सके।
    • जहाँ यह प्रश्न लिखते हैं, तो उनके साथ चित्र भी दो।
    • गीता का भगवान परमपिता परमात्मा या श्रीकृष्ण?
    • जो पूरे 84 जन्म लेते हैं।
    • पतित से पावन बनाने वाला तो बाप ही है।
    • कृष्ण की आत्मा तो 84 जन्म ले सांवरी बनी है।
    • उनको बैठ समझाते हैं, तुमने 84 जन्म लिए हैं।
    • तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
    • एक्टर्स को पता तो होना चाहिए ना कि हम 84 जन्म कैसे लेते हैं।
  • संन्यासियों का धर्म ही अलग है।
  • भारतवासियों को अपने धर्म का पता न होने कारण और-और धर्मों में जाते रहते हैं।
    • किसी गुरू की आशीर्वाद से किसको धन मिल गया तो उनके पीछे चटक पड़ेंगे।
    • फिर देवाला निकला तो कहेंगे खुदा की भावी।
    • बच्चा मिला बहुत खुशी होगी।
    • अच्छा 10-12 दिन के बाद बच्चा मर गया तो कहेंगे ईश्वर की भावी।
    • इनको जिंदा करना हमारे हाथ में नहीं है।
    • बाबा के बहुत ऐसे मिसाल देखे हुए हैं।
    • ऐसे-ऐसे बहुत होते हैं।
    • यहाँ तो बाप बैठा है।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं मीठे-मीठे बच्चों पावन बनो।
    • याद है, जब महाभारी महाभारत लड़ाई लगी थी तो द्रोपदी ने पुकारा था - बाबा हमको यह दुशासन नंगन करते हैं, हमको इनसे बचाओ।
    • 5 हजार वर्ष की बात है।
  • इन अबलाओं पर अत्याचार इस विष पर ही होते हैं।
    • कई तो स्त्रियाँ भी ऐसी होती हैं जो विष बिगर रह नहीं सकती।
    • उन्हों का नाम भी रखा हुआ है सूपनखा, पूतना।
    • जो विष के लिए तंग करते हैं वह हैं कंस, जरासन्धी, शिशुपाल....यह सब विनाश को तो पाने ही हैं।
    • इस समय है आसुरी, रावण राज्य फिर होगा ईश्वरीय राज्य।
    • इस सारे चक्र को तो तुम जान गये हो कि कैसे 84 जन्म लेते हैं।
    • यह भूलता तब है जब विकार में जाते हैं।
    • विकार में जाने वाले का मुँह ही पीला हो जाता है।
    • खुद ही समझते हैं - यह हमने क्या कर दिया।
    • बाप कहते हैं- बच्चे इस विषय गटर में मत जाओ।
    • यह तुमको आदि मध्य अन्त दु:ख देने वाला है।
    • इसमें न पड़ो।
    • कसम उठाओ कि हम विकार में कभी नहीं जायेंगे।
    • भगवानुवाच है काम महाशत्रु है।
  • हर एक चित्र में पहले तो यह लिखो।
  • ज्ञान सागर, पतित-पावन गीता ज्ञान दाता शिव भगवानुवाच।
    • तो फिर कृष्ण का नाम उड़ जाए।
    • हमको गीता का भगवान बैठ यह बतलाते हैं।
    • वही ज्ञान हम लेते हैं।
    • भगवान ही आकर नई दुनिया स्थापन करते हैं और पुरानी दुनिया का विनाश होता है।
    • रूद्र ज्ञान यज्ञ है ना।
    • असुल है शिवबाबा।
    • रूद्र बाबा नहीं कहेंगे।
  • बाम्बे में बाबुरीनाथ का भी मन्दिर है।
    • अब बबुल कहा जाता है काँटों को।
    • बाबुरीनाथ नाम क्यों रखा है?
    • यह कोई समझते नहीं हैं।
    • चित्र तो शिव का ही है।
    • बाकी तो अनेक नाम रख दिये हैं।
    • शिवबाबा ही आकर काँटों के जंगल को फूलों का बगीचा बनाते हैं, वही तुम्हारा बाबा है।
    • उनका नाम है शिव।
  • शिव परमात्माए नम:, ब्राह्मण देवी-देवताए नम: अक्षर बिल्कुल क्लीयर है।
    • अब वह परमपिता परमात्मा बैठ इस रथ द्वारा समझा रहे हैं।
    • हूबहू जैसे लौकिक बाप समझाते हैं बच्चे, हमारे कुल को कलंक नहीं लगाना।
    • कोई खराब काम नहीं करना।
    • यह बाबा भी कहते हैं बच्चे विकार में तो कभी नहीं जाना।
    • पवित्र बनने बिगर स्वर्ग में ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
  • बहुत जबरदस्त कमाई तुम कर रहे हो।
    • बाकी सब गँवा रहे हैं।
    • भल कोई के पास पदम हैं।
    • बड़े-बड़े महल बना रहे हैं।
    • लाखों रूपये खर्च करते हैं।
    • तुम समझते हो वह सब वेस्ट ऑफ टाइम... है।
    • यह कुछ काम नहीं आयेगा, सब खत्म हो जायेगा।
    • वह तो समझते हैं - 10-12 हजार वर्ष चलेंगे।
  • तुम बच्चे जानते हो मौत तो सामने खड़ा है, सिर पर।
    • थोड़े समय के अन्दर यह अर्थक्वेक आदि हो सब डांवाडोल हो जायेगा।
    • अर्थक्वेक आदि में अनगिनत मर जाते हैं।
    • अब तो विनाश होना ही है।
    • विनाश का साक्षात्कार और स्थापना का साक्षात्कार किया है।
    • सो फिर इन आंखों से देखेंगे।
    • भक्ति मार्ग में कितना कुछ करते, परन्तु कोई बैकुण्ठ में जा न सके।
    • ज्ञान बिगर सद्गति हो न सके।
    • यह सब भक्ति मार्ग के खिलौने हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) कुल कलंकित करने वाला कोई भी खराब काम नहीं करना है।
    • पवित्र बनने की अपने आपसे प्रतिज्ञा करनी है।
  • 2) अब अपना टाइम, मनी...वेस्ट नहीं करना है।
    • फूलों के बगीचे में चलने के लिए काँटे निकाल देने हैं।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • “पहले आप'' के पाठ द्वारा ताजधारी बनने वाले चतुरसुजान भव
  • जैसे बापदादा अपने को ओबीडियन्ट सर्वेन्ट कहते हैं, सर्वेन्ट कहने से ताजधारी स्वत: बन जाते हैं, ऐसे आप बच्चे भी स्वयं नम्रचित बन दूसरे को श्रेष्ठ सीट दे दो, उनको सीट पर बिठायेंगे तो वह उतरकर आपको स्वत: ही बिठा देगा।
  • अगर आप बैठने की कोशिश करेंगे तो वह बैठने नहीं देगा इसलिए बिठाना ही बैठना है।
  • तो “पहले आप'' का पाठ पक्का करो, फिर संस्कार भी सहज ही मिल जायेंगे, ताजधारी भी बन जायेंगे - यही चतुरसुजान बनने का तरीका है, इसमें मेहनत भी नहीं प्राप्ति भी ज्यादा है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अन्तर्मुखी, एकान्तवासी बनने वाली श्रेष्ठ आत्मा ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करती है।