18-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - परचिंतन छोड़ अपना कल्याण करो, तुम सोने जैसा बनकर औरों को रास्ता बताओ''

प्रश्नः-


अशरीरी बनने का अभ्यास जो सदा करते रहते, उनकी मुख्य निशानी सुनाओ?

उत्तर:-

वे हठ से अपनी कर्मेन्द्रियों को वश नहीं करते। लेकिन उनकी कर्मेन्द्रियाँ स्वत: शीतल हो जाती हैं। हम आत्मा भाई-भाई हैं, यह स्मृति स्वत: रहती है। देह-अभिमान छूटता जाता है। नाम रूप का नशा खत्म होता जाता है। दूसरों की याद नहीं आती है।

गीत:- तू प्यार का सागर है...


  • ओम् शान्ति।
  • यह कोई सिर्फ प्यार का सागर नहीं, ज्ञान का सागर है।
  • ज्ञान और अज्ञान।
    • ज्ञान को दिन, अज्ञान को रात कहा जाता है।
    • ज्ञान अक्षर ही अच्छा है।
    • अज्ञान अक्षर बुरा है।
    • आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध।
    • आधाकल्प है अज्ञान की प्रालब्ध, अज्ञान की प्रालब्ध है दु:ख।
    • ज्ञान की प्रालब्ध सुख है।
    • यह तो बहुत सहज समझने की बातें हैं, दिन है ज्ञान का।
    • रात है अज्ञान, यह भी किसको पता नहीं है।
    • ज्ञान किसको कहा जाता है, अज्ञान किसको कहा जाता है, यह बेहद की बातें हैं।
    • तुम सबको समझाते हो ज्ञान क्या है, भक्ति क्या है।
    • ज्ञान से तुम पूज्य बन रहे हो।
  • जब पूज्य बन जाते हो तो पूजा की सामग्री को जान जाते हो, जो भी मन्दिर आदि हैं।
    • तुम जानते हो यह सब यादगार हैं।
    • उनकी जीवन कहानी क्या है - वह तुम जानते हो।
    • जो पूजा करने जाते हैं वह खुद नहीं जानते।
    • पूजा को भक्ति कहा जाता है, भगवान को भक्तों से मिलना है - भक्ति का फल देने के लिए।
    • सो भगवान ही आकर पुजारी से पूज्य बनाते हैं।
    • पूज्य सतयुग में पुजारी कलियुग में होते हैं।
    • तुम बच्चे जानते हो आज क्या हैं, कल क्या होना है।
  • विनाश तो जरूर होने का है, कोई भी समय हो सकता है।
    • तैयारी हो रही है।
    • गाया हुआ भी है अनेक कुदरती आपदायें होती हैं।
    • यह तो लिख देना चाहिए - गृह युद्ध और कुदरती आपदायें, उनको कोई ईश्वरीय आपदायें नहीं कहेंगे।
    • यह तो ड्रामा की नूँध है, जिसमें नेचुरल कैलेमिटीज़ सब आने वाली हैं।
    • विनाश में भी मदद करेंगे।
    • मूसला-धार बरसात पड़ेगी।
    • भूखों मरेंगे, अर्थक्वेक आदि सब आने की हैं।
    • इन द्वारा ही विनाश होने का है।
    • बच्चे जानते हैं, यह तो जरूर होने का है।
    • नहीं तो सतयुग में इतने थोड़े मनुष्य कैसे होंगे, जरूर इकट्ठा विनाश होगा।
    • बच्चे अच्छी रीति जानते हैं, यह सब कपड़े धोये जायेंगे।
    • यह बेहद की बड़ी मशीनरी है।
  • गाया जाता है मूत पलीती कपड़ धोए... इन कपड़ों की बात नहीं।
    • यह है शरीर की बात।
    • आत्माओं को योगबल से धोना है।
    • इस समय 5 तत्व तमोप्रधान हैं तो शरीर भी ऐसे बनते हैं।
    • पतित-पावन बाप आकर पावन बनाते हैं और सब खलास हो जाते हैं।
    • तुम जानते हो पावन कैसे बनते हैं।
    • रास्ता बहुत सहज बताते हैं।
    • मनुष्य तो कुछ भी नहीं समझते।
  • जहाँ-जहाँ भक्ति यज्ञ आदि होते हैं, वहाँ जाकर समझाना चाहिए कि जिनकी तुम भक्ति करते हो उनकी बायोग्राफी समझने से ही तुम देवता बन सकते हो।
    • उन्होंने जीवनमुक्ति कैसे पाई सो तो समझो, तो तुम भी जीवनमुक्ति पा सकते हो।
    • मन्दिरों में बैठ जीवन कहानी समझाने से अच्छी रीति समझेंगे।
    • तुम भी बाप से अभी जीवन कहानी सुनते हो, तुम बच्चों को कितनी समझ मिलती है।
    • परमपिता परमात्मा की जीवन कहानी कोई भी नहीं जानते।
    • सर्वव्यापी कहने से जीवन कहानी थोड़ेही हो जाती है।
  • तुम बच्चे अभी परमपिता परमात्मा की जीवन कहानी को जानते हो, यानी आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
    • इस समय को आदि कहेंगे।
    • जबकि बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं फिर मध्य में भक्ति का पार्ट चलता है।
  • बाप कहते हैं इस समय मैं आकर स्थापना करता, कराता हूँ।
    • करनकरावनहार हूँ।
    • प्रेरणा को करना नहीं कहेंगे।
    • बाबा आकर इनकी कर्मेन्द्रियों द्वारा करते हैं, इसमें प्रेरणा की बात नही।
    • करन-करावनहार तो जरूर सम्मुख हो करायेंगे।
    • प्रेरणा से कुछ भी नहीं हो सकता।
    • आत्मा, बिगर शरीर कुछ भी नहीं कर सकती है।
  • बहुत कहते हैं ईश्वर ही प्रेरणा से सब कुछ करता है।
    • बाबा आप प्रेरणा करो, हमारे पति की बुद्धि ठीक हो जाए।
    • बाप कहते हैं - प्रेरणा की तो इसमें बात ही नहीं।
    • फिर शिव जयन्ती क्यों मनाई जाती।
    • प्रेरणा से काम हो तो फिर आये ही क्यों?
    • एक तो ईश्वर क्या चीज़ है, यह नहीं जानते।
    • सिर्फ कह देते ईश्वर की प्रेरणा से सब कुछ होता है।
    • निराकार प्रेरणा से कैसे करेंगे, वह तो करनकरावनहार है।
    • आकरके रास्ता बताते हैं।
    • कर्मेन्द्रियों से मुरली चलाते हैं।
    • जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार न ले, तब तक मुरली कैसे चलाये।
    • ज्ञान का सागर है तो सुनाने के लिए मुख चाहिए ना।
  • अब तुम बच्चों को सारी दुनिया के आदि-मध्य-अन्त का पता पड़ा है।
    • पूरी नॉलेज मिली है।
    • समझते हैं ज्ञान बिगर गति नहीं।
    • ज्ञान कौन दे।
  • अज्ञान मार्ग और ज्ञान मार्ग में फ़र्क तो देखो ना।
    • विज्ञान भी कहते हैं।
    • अज्ञान हैं अन्धियारा, बाकी ज्ञान और विज्ञान को हम मुक्ति-जीवनमुक्ति भी कह सकते हैं।
    • तुमको अब पावन बनने का ज्ञान मिलता है।
    • तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
    • कोई सुनेंगे तो वन्डर खायेंगे।
  • कहेंगे आत्मा ज्ञान लेती है तो आत्मा जरूर संस्कार ले जायेगी ना।
    • मनुष्य से देवता बनते हो तो ज्ञान रहना चाहिए।
    • परन्तु बाप समझाते हैं यह पुरूषार्थ है प्रालब्ध के लिए।
    • प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान की क्या दरकार है।
    • सतयुग है ही तुम बच्चों के लिए प्रालब्ध।
    • यह बातें सुनने से ही वन्डर खायेंगे।
    • यह ज्ञान परम्परा क्यों नहीं चलता, बाप कहते हैं यह प्राय:लोप हो जाता है।
    • दिन हो गया फिर अज्ञान तो है नहीं, जो ज्ञान की दरकार रहे।
    • यह भी समझने समझाने की बातें हैं।
    • फट से कोई समझ नहीं सकते।
    • शिवबाबा भारत में ही आते हैं, बच्चों के लिए सौगात ले आते हैं, भक्ति का फल देने लिए।
    • भक्ति के बाद है सद्गति।
  • यह विनाश भी होगा जरूर।
    • आसार खड़े हैं।
    • तुम सुनते रहेंगे - चिनगारी लगती है तो एक दो घण्टे में सारा मकान जलकर भस्म हो जाता है।
    • यह कोई नई बात नहीं है, विनाश तो होना जरूर है।
    • सतयुग में होते ही हैं थोड़े मनुष्य, श्रेष्ठाचारी।
  • तो श्रेष्ठाचारी बनने में कितनी मेहनत लगती है।
    • माया नाक से एकदम पकड़ लेती है।
    • ऐसे गिरने वालों को चोट बहुत लगती है।
    • टाइम लग जाता है।
    • बड़े ते बड़ी चोट है काम विकार की इसलिए कहा जाता है - काम महाशत्रु है।
    • यही पतित बनाते हैं।
    • झगड़ा होता ही है विकार पर।
    • विकार के लिए नहीं छोड़ेंगे तो जरूर कहेंगे - इससे तो बर्तन साफ करें वो अच्छा है।
    • झाड़ू पोंछा लगायेंगी परन्तु पवित्र रहेंगी, इसमें हिम्मत बहुत चाहिए।
    • जब कोई बाप की शरण में आते हैं तो फिर माया भी लड़ना शुरू करती है।
    • 5 विकारों की बीमारी और ही अधिक उथल खाती है।
    • पहले तो पक्का निश्चयबुद्धि होना चाहिए।
  • जीते जी मरे हुए हैं।
    • यहाँ से लंगर उठा लिया है।
    • कलियुगी, विकारी किनारा तुमने छोड़ दिया है।
    • अब हम यात्रा पर जा रहे हैं - हम अशरीरी हो अपने घर जाते हैं।
    • आत्मा को यह ज्ञान है कि हम एक शरीर छोड़ दूसरे में जायेंगे।
    • हम गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बन यात्रा पर रहते हैं।
    • बुद्धि में याद रहे कि यह तो कब्रिस्तान है, फिर हम सुखधाम में जायेंगे।
    • हमको बाबा वर्सा देने की युक्ति बता रहे हैं।
    • पावन बनने के लिए हम योग में रहते हैं।
  • याद से ही विकर्म विनाश होंगे तब आत्मा शरीर छोड़ेगी।
    • यात्रा कितनी वन्डरफुल है।
    • सिर्फ बाप को याद करो, अपनी राजधानी को याद करो।
    • इतनी सहज बात भी याद नहीं पड़ती है।
    • अल्फ को याद करो, बस।
    • परन्तु माया वह भी याद करने नहीं देती, मेहनत लगती है।
    • आत्मा को ज्ञान मिला है, हमारा बाबा आया हुआ है।
  • आत्मा पढ़ती है ना।
    • आत्मा शरीर द्वारा जन्म लेती है।
    • आत्मा भाई-भाई है।
    • देह-अभिमान में आने से फिर अनेक सम्बन्ध हो जाते हैं।
    • यहाँ तुम भाई-बहिन हो गये।
    • आपस में भाई-भाई भी हो, बहन भाई भी हो।
    • प्रवृत्ति मार्ग है ना।
    • दोनों को वर्सा चाहिए।
    • आत्मा ही पुरुषार्थ करती है।
    • अपने को आत्मा समझना - यही मेहनत है।
  • देह-अभिमान न रहे।
    • शरीर ही नहीं तो विकार किससे करेंगे।
    • हम आत्मा हैं, बाप के पास जाना है।
    • शरीर का भान ही न रहे।
  • जितना योगी बनते जायेंगे, कर्मेन्द्रियाँ शान्त होती जायेंगी।

    • देह-अभिमान में आने से कर्मेन्द्रियाँ चंचल होती हैं।
    • आत्मा जानती है हमको प्राप्ति हो रही है।
    • शरीर से अलग होते जायेंगे, तो कर्मेन्द्रियाँ शान्त होती जायेंगी।
    • संन्यासी लोग दवाई खाकर कर्मेन्द्रियों को शान्त करते हैं।
    • वह तो हठयोग हो गया ना।
    • तुमको तो योग से काम लेना है।
    • क्या योगबल से तुम वश नहीं कर सकते हो?
    • जितना आत्म-अभिमानी होते जायेंगे तो कर्मेन्द्रियाँ शान्त हो जायेंगी।
    • बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, प्राप्ति तो बहुत ऊंच है ना।
    • बाप कहते हैं - योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो।
    • कर्मेन्द्रियों पर जीत पहनते हो इसलिए भारत का योग नामीग्रामी है।
    • तुम मनुष्य से देवता, पतित से पावन बनते हो।
    • प्रजा भी स्वर्गवासी तो है ना।
    • योगबल से तुम स्वर्गवासी बनते हो।
    • बाहुबल से नहीं बन सकते हो।
    • मेहनत कोई बहुत नहीं है।
  • कुमारियों के लिए तो जैसे मेहनत ही नहीं है।
    • फ्री हैं।
    • विकार में गई तो बड़ी पंचायत हो जाती है।
    • कुमारी रहना अच्छा है।
    • नहीं तो फिर अधर कुमारी नाम पड़ जाता है।
    • युगल भी क्यों बनें!
    • इसमें भी नाम रूप का नशा चढ़ता है।
    • यह भी मूर्खता है।
    • युगल बनने के बाद पवित्र रहने के लिए बड़ी अच्छी हिम्मत चाहिए।
    • ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा चाहिए।
    • बहुत हैं जो हिम्मत करते हैं परन्तु आग की आंच आ जाती है तो खेल खलास इसलिए बाबा कहते हैं कुमारी फिर भी अच्छी है।
    • अधरकुमारी बनने का ख्याल भी क्यों करना चाहिए।
    • कुमारियों का नाम बाला है।
    • बाल ब्रह्मचारी हैं।
    • बाल ब्रह्मचारी रहना अच्छा है, ताकत रहती है।
    • दूसरे कोई की याद नहीं आयेगी।
    • बाकी हिम्मत है तो करके दिखाओ, परन्तु मेहनत है।
    • दो हो पड़ते हैं ना।
    • कुमारी है तो अकेली है।
    • दो से द्वेत आ जाता है।
    • जहाँ तक हो सके कुमारी हो रहना अच्छा है।
    • कुमारी सेवा पर निकल सकती है।
    • बंधन में पड़ने से फिर बन्धन वृद्धि को पाते हैं।
    • ऐसा जाल बिछाना ही क्यों चाहिए जो बुद्धि फँस पड़े।
    • ऐसे जाल में फँसना ठीक नहीं है।
    • कुमारियों के लिए तो बहुत अच्छा है।
    • कुमारियों ने नाम भी निकाला है।
    • कन्हैया नाम गाया जाता है ना।
    • कुमारी हो रहना बड़ा अच्छा है।
    • इन्हों के लिए बहुत सहज है।
    • स्टूडेन्ट लाइफ पवित्र लाइफ भी है।
    • बुद्धि भी फ्रेश रहती है।
  • कुमारों को भीष्म पितामह जैसा बनना है।
    • कल्प पहले भी रहे हैं तब तो देलवाड़ा मन्दिर में यादगार बना हुआ है।
  • अब बाप बच्चों को फरमान करते हैं, मुझे याद करो।
    • और सब बातों को छोड़ तुम अपना कल्याण करो।
    • बाप को याद करने में ही कल्याण है।
  • भूल-चूक होती है, बच्चे गिर पड़ते हैं, तुम परचिंतन को छोड़ अपना कल्याण करो।
    • दूसरे चिंतन में जाओ ही नहीं।
    • तुम सोने जैसा बन जाओ औरों को भी रास्ता बताओ।
    • सतोप्रधान बनने का एक ही उपाय है।
    • पावन बनने के बिगर मुक्तिधाम में जा नहीं सकते।
    • उपाय एक ही है फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
    • झरमुई झगमुई छोड़ दो।
    • नहीं तो अपना ही नुकसान करेंगे।
    • बाप कोई श्राप नहीं देते हैं।
    • श्रीमत पर नहीं चलते तो आपेही अपने को श्रापित करते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) निश्चयबुद्धि बन जीते जी इस पुरानी दुनिया से अपना लंगर उठा लेना है।
    • बाप के हर फरमान को पालन कर अपना कल्याण करना है।
  • 2) दूसरों का चिंतन छोड़ अपनी बुद्धि को स्वच्छ सोने जैसा बनाना है।
    • झरमुई-झगमुई में अपना समय नष्ट नहीं करना है।
    • योगबल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शान्त, शीतल बनाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • मेहमानपन की वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को श्रेष्ठ, स्टेज को ऊंचा बनाने वाले सदा उपराम भव
  • जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वे अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते हैं।
  • मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तुएं लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा।
  • वे सब साधनों को अपनाते हुए भी जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे रहते हैं।
  • देह, देह के संबंध और वैभवों से सहज उपराम हो जाते हैं।
  • जितना मेहमानपन की वृत्ति रहती उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहती है।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अपने स्वभाव को निर्मल बना दो तो हर कदम में सफलता समाई हुई है।