16-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - सब बातों में सहनशील बनो, निंदा-स्तुति, जय-पराजय सबमें समान रहो, सुनी सुनाई बातों में विश्वास नहीं करो''

प्रश्नः-


आत्मा सदा चढ़ती कला में आगे बढ़ती रहे उसकी सहज युक्ति सुनाओ?

उत्तर:-

एक बाप से ही सुनो, दूसरे से नहीं।

फालतू परचिन्तन में, वाह्यात बातों में अपना समय बरबाद न करो, तो आत्मा सदा चढ़ती कला में रहेगी।

उल्टी-सुल्टी बातें सुनने से, उन पर विश्वास करने से अच्छे बच्चे भी गिर पड़ते हैं, इसलिए बहुत सम्भाल करनी है।


  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे बच्चों को अब स्मृति आई है कि बरोबर आधाकल्प हमने बाप को याद किया है, जब से रावण राज्य शुरू हुआ है।
    • ऐसे भी नहीं कोई पूरे आधाकल्प याद किया है, नहीं।
    • जब-जब दु:ख जास्ती आया है, तब-तब याद किया है।
    • अभी तुमको पता पड़ा है कि भक्ति मार्ग से हम उतरते आये हैं।
    • ड्रामा का राज़ बुद्धि में है।
  • मुख से कुछ कहने का भी नहीं है, हम उनके हो गये इसलिए जास्ती ज्ञान की दरकार नहीं।
    • बाप के बने तो बाप की जायदाद के मालिक हो गये।
    • कुछ कर्मेन्द्रियों से करने का नहीं रहता।
    • भक्ति मार्ग में भगवान से मिलने के लिए कितने यज्ञ-तप दान-पुण्य करते हैं।
    • जहाँ भी जाओ सब जगह तीर्थ, मन्दिर अथाह हैं।
    • ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो सारे भारत के तीर्थ और अथाह मन्दिर आदि घूम सके।
    • अगर घूमे भी तो कुछ मिलता नहीं।
    • वहाँ घण्टा घड़ियाल आदि कितना घमसान है।
    • यहाँ तो घमसान की बात नहीं।
    • न गीत गाने, न तालियां बजाने की बात है।
    • मनुष्य तो क्या-क्या नहीं करते हैं, अथाह कर्मकाण्ड हैं।
    • यहाँ तो तुम बच्चों को सिर्फ याद करना है और कुछ भी नहीं।
    • घर में रहते सब कुछ करते सिर्फ बाप को याद करना है।
  • तुम जानते हो अभी हम देवता बनते हैं।

    • यहाँ ही दैवीगुण धारण करना है।
    • खानपान भी शुद्ध होना चाहिए।
    • 36 प्रकार के भोजन तो वहाँ मिलेंगे।
    • यहाँ साधारण रहना है।
    • न बहुत ऊंच, न बहुत नींच।
  • सब बातों में सहनशीलता चाहिए।
    • निंदा-स्तुति, जय-पराजय, सर्दी-गर्मी, यह सब कुछ सहन करना पड़ता है।
    • समय ही ऐसा है।
    • पानी नहीं मिलेगा, यह नहीं मिलेगा, सूर्य भी अपनी तपत दिखायेगा।
    • हर चीज़ तमोप्रधान बनती है।
    • यह सृष्टि ही तमोप्रधान है।
    • तत्व भी तमोप्रधान हैं।
    • तो यह दु:ख देते हैं।
    • निंदा-स्तुति में भी नहीं जाना है।
    • बहुत हैं जो झट बिगड़ पड़ते हैं।
    • किसने उल्टा-सुल्टा कुछ किसको सुनाया क्योंकि आजकल बातों की बनावट तो बहुत है ना।
    • कोई ने कुछ कहा - तुम्हारे लिए बाबा यह कहते हैं कि इनको देह-अभिमान है, बाहर का शो बहुत है, यह किसी ने सुनाया, बस बुखार चढ़ जायेगा।
    • नींद भी फिट जायेगी।
    • आधाकल्प के मनुष्य ऐसे हैं, कोई को भी झट बुखार चढ़ा दें, झट पीले हो जायेंगे।
  • तो बाप कहते हैं कोई भी ऐसी वाह्यात बातें नहीं सुनो।
    • बाप कभी भी किसकी निंदा नहीं करते हैं।
    • बाप तो समझाने लिए ही कहते हैं।
    • उल्टी-सुल्टी बातें एक-दो को सुनाने से अच्छे-अच्छे बच्चे भी बिगड़ पड़ते हैं।
    • तो ट्रेटर बन वाह्यात बातें जाकर एक-दो को सुनायेंगे।
    • भक्ति मार्ग में भी कैसी-कैसी कहानियां बनाई हैं।
  • अभी तुमको ज्ञान मिला है तो तुम कभी भी हे राम वा हाय भगवान भी नहीं कह सकते, यह अक्षर भी भक्ति मार्ग के हैं।
    • तुम्हारे मुख से ऐसे अक्षर नहीं निकलने चाहिए।
    • बाप सिर्फ कहते हैं मीठे लाड़ले बच्चों आत्म-अभिमानी बनो।
    • कितना प्यार से समझाते हैं।
    • किसकी भी बात नहीं सुनो, फालतू परचिंतन नहीं करो।
  • एक बात पक्की कर लो - हम आत्मा हैं।

    • आत्मा अविनाशी है, शरीर विनाशी है।
    • आत्मा ही संस्कार धारण करती है।
    • अब तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है।
    • द्वापर से तुम रावण राज्य में देह-अभिमानी बनते हो इसलिए अब देही-अभिमानी बनने में मेहनत लगती है।
    • घड़ी-घड़ी बुद्धि में यह आना चाहिए कि हमको बेहद का बाप मिला है।
  • कल्प-कल्प बाप वर्सा देते हैं।
    • अब उनकी मत पर चलना है।
    • उनके लिए ही गायन है - तुम मात-पिता.... वह सब सम्बन्धों का सुख देने वाला है, उनमें सब मिठास है।
    • बाकी और मित्र-सम्बन्धी आदि दु:ख देने वाले ही हैं।
    • एक ही बाप है जो सबको सुख देने वाला है।
    • रास्ता भी बिल्कुल सहज बताते हैं कि अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
    • बाप समझाते हैं यह कोई नई बात नहीं है।
    • तुम जानते हो हर 5 हजार वर्ष बाद हम ऐसे बाप के पास आते हैं, यह कोई साधू-सन्त नहीं है।
  • तुम कोई साधू सन्त आदि के पास नहीं रहते, बाकी हाँ बाप कहते हैं - प्रवृत्ति मार्ग के सम्बन्ध से तोड़ निभाना है।
    • नहीं तो और ही खिट-खिट हो जाती है, युक्ति से चलो।
    • प्यार से हर एक को समझाना है कि देखो अभी विनाश का समय नजदीक है, यह आसुरी दुनिया खत्म होनी है।
    • अब देवता बनना है, दैवीगुण यहाँ धारण करना है।
    • प्यार से समझाना चाहिए।
    • देवतायें भी प्याज़ लहसुन आदि तो खाते नहीं।
    • हम भी मनुष्य से देवता बनते हैं तो हम यह कैसे खा सकते हैं।
    • तुमको भी राय देते हैं - यह छोड़ दो।
    • ऐसी चीजें हम खाते नहीं।
    • अभी तुमको बेहद का बाप दैवीगुण सिखलाने वाला मिला है तो सर्वगुण सम्पन्न..... यहाँ ही बनना है।
    • यहाँ बनेंगे तब फिर भविष्य नई दुनिया आयेगी।
    • यह ऐसे ही होता है जैसे रात के बाद फिर दिन होता है।
    • अब रात की अन्त में ही दैवीगुण धारण करने हैं तो फिर सुबह हो जायेगी।
  • अपनी परीक्षा हरेक को आपेही लेनी है।
    • ऐसे नहीं कि बाप तो सब कुछ जानते हैं।
    • तुम अपने को देखो ना।
    • स्टूडेन्ट ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि टीचर तो सब कुछ जानते हैं।
    • इम्तहान के दिन नजदीक आते हैं तो बच्चे खुद भी समझते हैं हम कितना पास होंगे, किस सबजेक्ट में हम ढीले हैं।
    • मार्क्स कम लेंगे फिर सब मिलाकर पास हो जायेंगे।
    • यह समझते हैं तो इसमें भी अपनी जांच रखनी है।
    • हमारे में क्या कमी है?
    • मैं बहुत मीठा बना हूँ?
  • सबको प्यार से समझाना है - हम आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा है।
    • मनुष्य की बात नहीं।
    • हम निराकार को भगवान कहते हैं, भगवान रचता एक ही है, बाकी सब हैं रचना।
    • रचना से किसको वर्सा नहीं मिल सकता, कायदा नहीं है।
    • अब सर्व रचना का सद्गति दाता एक ही रचता बाप है, उसमें साधू-सन्त सब आ गये।
    • हैं तो सब आत्मायें ना।
    • हाँ मनुष्य अच्छे-बुरे तो होते ही हैं, पोजीशन ऊंचा-नीचा होता है।
  • संन्यासियों में भी नम्बरवार हैं।

    • कोई तो देखो भीख मांगते रहते, कोई को सब पांव पड़ते हैं।
  • तुम बच्चों को भी ऊंच बनना है, बहुत मीठा बनो।
    • कभी भी क्रोध से बात नहीं करनी चाहिए, जितना हो सके प्यार से काम लो।
    • कहते हैं बच्चे बहुत तंग करते हैं सो तो आजकल के बच्चे हैं ही ऐसे।
    • प्यार से उनको समझाओ।
    • दिखाते हैं कृष्ण चंचलता करता था तो उनको रस्सी से बांधते थे।
    • जितना हो सके प्यार से समझाना है या तो हल्की सजा।
    • बिचारे अबोध (अन्जान) हैं।
    • समय भी ऐसा है।
    • बाहर का संगदोष बहुत खराब है।
  • अभी बेहद का बाप कहते हैं तुम्हें मूर्ति आदि रखने की कोई दरकार नहीं है।
    • कुछ भी मेहनत करने की दरकार नहीं है।
    • शिव का चित्र भी क्यों रखें! वह तो तुम्हारा बाप है ना।
    • घर में बच्चे बाप का चित्र क्यों रखेंगे?
    • बाप तो हाज़िरा-हज़ूर है ना।
    • बाप कहते हैं - मैं अभी हाज़िर नाज़िर हूँ ना।
    • फिर चित्रों की तो दरकार नहीं।
    • मैं बच्चों को बैठ समझाता हूँ।
    • कहते हैं बापदादा को देखें।
    • अब बाप तो है निराकार, उनको देख न सकें।
    • बुद्धि से समझ सकते हैं।
  • बाप कहते हैं - मैं इनमें प्रवेश कर तुमको नॉलेज बैठ देता हूँ।

    • नहीं तो कैसे आऊं।
    • कृष्ण के तन में कैसे आयेगा।
    • संन्यासियों में भी नहीं आ सकता हूँ।
    • मैं आता ही उनमें हूँ जो पहले नम्बर में था।
    • वही अब लास्ट नम्बर में है।
    • तुमको भी अभी पढ़कर फिर पहले नम्बर में जाना है।
    • पढ़ाने वाला तो एक ही है, जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है।
    • तुमको ज्ञान बहुत अच्छा मिलता है।
  • तुम जानते हो - शान्तिधाम हमारा घर है, सुखधाम हमारी राजधानी है।

    • दु:खधाम रावण की बादशाही है।
    • अब बाप कहते हैं मीठे-मीठे बच्चों - अपने घर शान्तिधाम को याद करो, सुखधाम को याद करो।
    • दु:खधाम के बन्धन को भूलते जाओ।
    • ऐसे और कोई कह न सके।
    • न वह जा सकते हैं।
    • ड्रामा के बीच से वापस कोई भी जा न सके।
    • यह जो कहते हैं फलाना ज्योति ज्योत समाया वा पार निर्वाण गया, एक भी जाता नहीं है।
  • सबका बाप अथवा मालिक एक ही परमपिता परमात्मा है, वह सब आशिकों का एक ही माशूक है।
    • वह जिस्मानी आशिक माशूक एक-दो को याद करते हैं, बुद्धि में चित्र आ जाता है।
    • फिर एक-दो को याद करते रहेंगे।
    • खाना खाते रहेंगे, याद करते रहेंगे।
    • वह तो हैं एक जन्म के आशिक माशूक।
    • तुम जन्म-जन्मान्तर के आशिक हो, एक माशूक के।
    • तुमको और कुछ भी नहीं करना है, सिर्फ एक बाप को याद करना है।
    • उन आशिक माशूक के सामने चित्र आ जाता है।
    • बस उनको देखते-देखते काम भी ठहर जाता फिर उनका चेहरा गुम हो जाता है और काम करने लग पड़ते हैं।
    • इसमें तो ऐसे नहीं है।
  • आत्मा भी बिन्दी, परमात्मा भी बिन्दी है।
    • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है, इसमें ही मेहनत है, कोई भी ऐसी प्रैक्टिस करते नही हैं।
    • आत्मा का ज्ञान मिला अर्थात् आत्मा को रियलाइज़ किया, बाकी रहा परमात्मा।
    • वह भी तुम जानते हो।
    • बाबा आकर यहाँ (भृकुटी में) बैठते हैं।
    • इनकी जगह भी यहाँ है।
    • आत्मा कहाँ से भी चली जाती है, मालूम नहीं पड़ता है।
    • उनका मुख्य स्थान भ्रकुटी है।
    • बाप कहते हैं - मैं भी बिन्दी हूँ, इसमें आकर बैठा हूँ।
    • तुमको पता भी नहीं पड़ता है।
    • बाप तुम बच्चों को बैठ सुनाते हैं, तुमको जो सुनाते हैं वह हम भी सुनते हैं।
    • समझानी तो बिल्कुल राइट है।
  • दैवी धर्म वाले जो होंगे वह झट समझ जायेंगे - यह राजधानी स्थापन हो रही है।
    • पहले स्थापना और फिर विनाश भी होगा और कोई धर्म स्थापक ऐसे नहीं करते हैं।
    • वह सिर्फ अपना धर्म स्थापन करते हैं फिर वृद्धि को पाते, यहाँ तो जो जितना-जितना पुरुषार्थ करते हैं, उतना भविष्य में ऊंच पद पाते हैं।
    • तुम भविष्य 21 जन्मों के लिए प्रालब्ध बनाते हो तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए और है बहुत सहज, योग भी सहज जिससे तुम्हारे विकर्म विनाश होते हैं।
  • बाप कहते हैं - मैं गैरन्टी करता हूँ, कल्प-कल्प मैं ही आकर तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ।
    • वहाँ पतित एक भी होता नहीं।
    • ज्ञान भी कितना सहज है, 84 जन्मों का चक्र कैसे लगाते हैं, वह भी बुद्धि में नॉलेज है।
    • हमने 84 का चक्र लगाया है, यह निश्चय रखना है।
    • निश्चय में ही विजय है।
    • ऐसे नहीं कि पता नहीं हम 84 जन्म लेते हैं वा कुछ कम।
    • जबकि तुम ब्राह्मण हो तो तुमको निश्चय होना चाहिए बरोबर हमने 84 का चक्र पूरा भोगा है।
    • यह तो बहुत सहज समझानी है।
  • बच्चों को समझाया है यह चित्र सब दिव्य दृष्टि से बाप ने बनवाये हैं।
    • करेक्ट भी कराये हैं।
    • शुरू में जब बनारस में बाबा एकान्त में रहते थे तो ऐसे चक्र दीवारों पर बैठ निकालते थे।
    • समझते कुछ नहीं थे कि यह क्या है।
    • खुशी होती थी।
    • साक्षात्कार होने से जैसे उड़ जाते थे।
    • यह क्या होता है, समझ में नहीं आता था।
    • तुम जानते हो जो चित्र पहले बने थे वह फिर बदलकर नये-नये बनाते गये हैं।
    • अभी नये-नये चित्र कल्प पहले मुआफिक बनते जाते हैं।
    • सीढ़ी का चित्र देखो कितना अच्छा है।
    • इस पर समझाना सहज है।
    • देरी से आने वालों को और ही सहज समझानी मिलती है।
    • अभी नये-नये जो आते हैं, 7 दिन में सारा नॉलेज समझ लेते हैं।
    • पुरानों से भी आगे जा रहे हैं।
  • कोई कहते हैं पहले आते थे तो अच्छा था।
    • अरे यह भी फिकर मत करो।
    • आगे आते थे और भागन्ती हो जाते थे तो?
    • देरी से आने वालों को तो सहज तख्त मिलता है।
    • पहले जो थे देखो वे फिर अब हैं भी नहीं।
    • खत्म हो गये।
    • पिछाड़ी में रिजल्ट का मालूम पड़ता है - कौन पास हुआ।
  • नये-नये निकलते हैं और झट सर्विस पर लग पड़ते हैं।
    • पुराने इतना नहीं लगते।
    • नई-नई बच्चियां सर्विस से दिल पर चढ़ी रहती हैं।
    • पुराने कितने तो खत्म हो गये इसलिए बाबा कहते हैं- जिनको सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल भूषण कहा जाता है, उनमें भी कोई आश्चर्यवत् सुनन्ती, भागन्ती हो जाते हैं।
    • जो गाया हुआ है वह अब प्रैक्टिकल हो रहा है।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अपनी जांच आपेही करनी है।
    • देखना है मैं बहुत-बहुत मीठा बना हूँ?
    • हमारे में क्या-क्या कमी है?
    • सब दैवीगुण धारण हुए हैं!
    • अपनी चलन देवताओं जैसी बनानी है।
    • आसुरी खान-पान त्याग देना है।
  • 2) कोई भी वाह्यात बातें न सुननी है और न बोलनी है।
    • सहनशील बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • कर्मातीत स्टेज पर स्थित हो चारों ओर की सेवाओं को हैण्डल करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
  • आगे चलकर चारों ओर की सेवाओं के विस्तार को हैण्डल करने के लिए भिन्न-भिन्न साधन अपनाने पड़ेंगे क्योंकि उस समय पत्र व्यवहार या टेलीग्राम, टेलीफोन आदि काम नहीं करेंगे।
  • ऐसे समय पर वायरलेस सेट चाहिए, इसके लिए अभी-अभी कर्मयोगी, अभी-अभी कर्मातीत स्टेज में स्थित रहने का अभ्यास करो तब चारों ओर संकल्प की सिद्धि द्वारा सेवा में सहयोगी बन सकेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • परमात्म प्यार की पालना का स्वरूप - आपकी सहजयोगी जीवन है।