06-08-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - रोज़ अपने आपसे पूछो कि मैं आत्मा कितना शुद्ध बना हूँ, जितना शुद्ध बनेंगे उतना खुशी रहेगी, सेवा करने का उमंग आयेगा''

प्रश्नः-

हीरे जैसा श्रेष्ठ बनने का पुरूषार्थ क्या है?

उत्तर:-

देही-अभिमानी बनो, शरीर में जरा भी मोह न रहे।

फिकर से फारिग हो एक बाबा की याद में रहो - यही श्रेष्ठ पुरूषार्थ हीरे जैसा बना देगा।

अगर देह-अभिमान है तो समझो अवस्था कच्ची है।

बाबा से दूर हो।

तुम्हें इस शरीर की सम्भाल भी करनी है क्योंकि इस शरीर में रहते कर्मातीत अवस्था को पाना है।

गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी...


  • ओम् शान्ति।
  • बाप बच्चों को समझाते हैं कि जिसके योगबल से पाप कटते हैं, उनको खुशी का पारा चढ़ जाता है।
    • अपनी अवस्था को आपेही बच्चे जान सकते हैं।
    • जब अवस्था अच्छी होती है तो सर्विस का शौक बहुत अच्छा होता है।
    • जितना-जितना शुद्ध होते जायेंगे उतना औरों को भी शुद्ध अथवा योगी बनाने का उमंग आयेगा क्योंकि तुम राजयोगी वा राजऋषि हो।
  • हठयोग ऋषि तत्व को भगवान मानते हैं।
    • राजयोग ऋषि भगवान को बाप मानते हैं।
    • तत्व को याद करने से उन्हों के कोई पाप नहीं कटते हैं।
    • तत्व के साथ योग लगाने से कोई बल नहीं मिलता है।
    • कोई भी धर्म वाले योग को जानते नहीं हैं इसलिए कोई भी सच्चा योगी बन वापिस नहीं जा सकते।
  • अभी तुम बच्चे अपनी अवस्था खुद भी जान सकते हो।
    • आत्मा जितना बाप को याद करेगी उतना खुशी होगी।
    • अपनी जांच रखनी है।
    • बच्चे भी एक दो की अवस्था को, अपनी अवस्था को जान सकते हैं।
    • देखना है हमारा कोई शरीर में भान तो नहीं है!
    • देह-अभिमान है तो समझो हम बहुत कच्चे हैं।
    • बाबा से बहुत दूर हैं।
    • बाप फरमान करते हैं बच्चे तुम्हें अब हीरे जैसा बनना है।
  • बाप देही-अभिमानी बनाते हैं।
    • बाप को देह-अभिमान होता नहीं।
    • देह-अभिमान होता है बच्चों को।
    • बाप की याद से तुम देही-अभिमानी बनेंगे।
    • अपनी जांच करते रहो, हम कितना समय याद करते हैं।
    • जितना याद करेंगे उतना खुशी का पारा चढ़ेगा और अपने को लायक बनायेंगे।
  • ऐसे भी मत समझना कि कोई बच्चे कर्मातीत अवस्था को पहुँच गये हैं।
    • नहीं, रेस चल रही है।
    • रेस जब पूरी होगी तब फाइनल रिजल्ट होगी।
    • फिर विनाश भी शुरू हो जायेगा।
    • तब तक यह रिहर्सल होती रहेगी जब तक कर्मातीत अवस्था आ जाए।
    • हम किसी की बुराई नहीं कर सकते।
    • अन्त में ही सबका पता पड़ेगा।
    • अभी तो थोड़ा टाइम पड़ा है।
    • यह दादा भी कहते हैं मीठे बच्चे, अभी थोड़ा समय पड़ा है।
    • इस समय एक भी कर्मातीत अवस्था को पा न सके।
  • बीमारी आदि होती है - इसको कर्मभोग कहा जाता है।
    • भोगना का और किसको पता नहीं पड़ता है।
    • वह अन्दर की पीड़ा होती है।
    • अभी एकरस अवस्था किसी की बनी नहीं है।
    • जितनी कोशिश करते हैं उतना विकल्प, तूफान बहुत आते हैं।
  • तो बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए।
    • विश्व का मालिक बनना कोई कम बात है क्या?
    • मनुष्य साहूकार हैं बड़े-बड़े बंगले हैं, तो खुशी रहती है क्योंकि सुख बहुत है।
    • अभी भी तुम बाप से अथाह सुख लेते हो।
    • जानते हो बाबा से हम राजाई लेंगे।
    • शान्ति में इतना खुशी नहीं होती, जितनी धन में खुशी होती है।
  • संन्यासी घरबार छोड़ जाए जंगल में रहते थे।
    • कभी पैसा हाथ में नहीं रखते थे, सिर्फ रोटी लेते थे।
    • अभी तो कितने धनवान हो गये हैं।
    • सबको पैसे की चिंता बहुत है।
  • वास्तव में राजा को प्रजा का ओना रहता है इसलिए लड़ाई का सामान रखते हैं।
    • सतयुग में तो लड़ाई आदि की बात होती नहीं।
    • अभी तुम बच्चों को खुशी होती है - हम अपनी राजाई में जाते हैं।
    • वहाँ डर की कोई बात नहीं होती।
    • टैक्स आदि की बात नहीं।
  • यह शरीर की फिकरात यहाँ रहती है।
    • गाया जाता है फिकर से फारिग स्वामी... तुम जानते हो फिकर से फारिग होने के लिए अभी हम इतना पुरूषार्थ करते हैं।
    • फिर 21 जन्म लिए कोई फिकरात नहीं रहेगी।
    • बाबा को याद करने से तुम बहुत अडोल रहेंगे।
    • रामायण की कथा भी तुम्हारे पर है।
    • तुम ही महावीर बनते हो।
    • आत्मा कहती है हमको रावण हिला नहीं सकता।
    • वह अवस्था पिछाड़ी को आयेगी।
    • अभी तो कोई भी हिल जायेंगे।
    • फिकरात रहेगी।
    • जब विश्व में लड़ाई लगेगी तब समझेंगे अब टाइम आ गया है।
  • जितना बाप को याद करने का पुरूषार्थ करेंगे उतना फायदा होगा।
    • पुरुषार्थ करने का अभी ही समय है।
    • फिर तो विनाश की धूमधाम होगी।
    • अभी तो शरीर में भी मोह रहता है ना।
  • बाबा खुद कहते हैं शरीर की सम्भाल रखो।
    • अन्तिम शरीर है, इसमें ही पुरूषार्थ कर कर्मातीत अवस्था को पाना है।
    • जीते रहेंगे, बाप को याद करते रहेंगे।
    • बाप समझाते हैं बच्चे जीते रहो।
    • जितना जियेंगे उतना बाप को याद कर ऊंच वर्सा लेंगे।
    • अभी तुम्हारी कमाई होती रहती है।
    • शरीर को निरोगी तन्दरूस्त रखो, ग़फलत नहीं करनी है।
    • खान-पान की सम्भाल रखेंगे तो कुछ नहीं होगा।
    • एकरस चलन से शरीर भी तन्दरूस्त रहेगा।
    • यह अमूल्य तन है।
    • इसमें पुरूषार्थ कर देवी-देवता बनते हो तो बलिहारी इस समय की है।
    • खुशी रहनी चाहिए।
  • जितना बाप और वर्से को याद करेंगे उतना नारायणी नशा चढ़ा रहेगा।
    • बाप की याद से ही तुम ऊंच ते ऊंच पद पायेंगे।
    • देखना है हम कितना खुशी में, कितना फखुर में रहते हैं।
    • गरीबों को तो और ही खुशी रहनी चाहिए।
    • साहूकारों को तो धन का फिकर रहता है।
    • तुम्हारे में कुमारियों को तो कोई फिकर नहीं है।
  • हाँ कोई के मित्र-सम्बन्धी गरीब हैं, तो सम्भाल रखनी पड़ती है।
    • जगाते भी रहना है।
    • अगर नहीं जगते हैं तो फिर कहाँ तक मदद करते रहेंगे।
    • बाबा कहते हैं ना - तुम सर्विसएबुल खुद बनो वा स्त्री को रूहानी सर्विस में दो।
  • तुम हो बाबा के मददगार।
    • मदद तो सबको चाहिए ना।
    • अकेला बाप भी क्या करेगा, कितनों को मन्त्र दे!
    • हम तुमको देते हैं - तुमको फिर औरों को देना है, कलम लगाना है।
    • बच्चों को कहते रहते हैं जितना हो सके मददगार बनो, मन्त्र देते जाओ।
    • तुम्हारे शास्त्रों में भी है कि सबको पैगाम दिया था कि बाप आये हैं वर्सा लेना है तो बाप को याद करो।
  • देह-धारियों को याद नहीं करो।
    • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और वर्सा मिल जायेगा।
    • गीता तो बहुत सुनते सुनाते हैं।
    • उसमें प्रसिद्ध अक्षर है मनमनाभव।
    • बाप को याद करो तो मुक्ति को पायेंगे।
    • संन्यासी भी यह पसन्द करेंगे।
    • मध्याजी भव अर्थात् जीवनमुक्ति।
  • बच्चे बाप के बनते हैं तो बाप कहते हैं- बच्चे तुम्हारी आत्मा पतित है, पतित चल नहीं सकेंगे।
    • यह समझने की बातें हैं।
    • तुम भारतवासी सतोप्रधान थे, तमोप्रधान बने अब फिर सतोप्रधान बनना है तो बाप कहते हैं पुरूषार्थ करो तो ऊंच पद मिलेगा।
    • भक्ति तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो।
  • तुम जानते हो - पहले-पहले अव्यभिचारी भक्ति शुरू हुई।
    • अभी कितनी व्यभिचारी भक्ति है।
    • शरीरों की भी पूजा होती है, वह है भूत पूजा।
    • देवतायें फिर भी पवित्र हैं।
    • परन्तु इस समय तो सब तमोप्रधान हैं।
    • तो पूजा भी तमोप्रधान होती जाती है।
    • अभी बाप को याद करना है।
    • भक्ति का अक्षर कोई नहीं बोलना है।
    • हाय राम - यह भी भक्ति का अक्षर है।
    • ऐसे कोई पुकार नहीं करनी है।
    • इसमें कुछ भी उच्चारण करने की बात नहीं।
  • ओम् शान्ति भी घड़ी-घड़ी नहीं कहना है।
    • शान्ति माना अहम् आत्मा शान्त स्वरूप हैं।
    • सो तो हैं ही।
    • इसमें बोलने की बात नहीं रहती।
    • दूसरे कोई मनुष्य को कहेंगे ओम् शान्ति, वह तो अर्थ जरा भी नहीं समझेंगे।
    • वो लोग तो ओम् की बड़ी-बड़ी महिमा करते हैं।
    • तुम तो अर्थ समझते हो फिर ओम् शान्ति कहना भी फालतू है।
  • हाँ एक दो से ऐसे पूछ सकते हो - शिवबाबा की याद में हो?
    • जैसे हम भी बच्ची से पूछता हूँ यह किसका श्रृंगार करती हो?
    • बोलती है शिवबाबा के रथ का।
    • यह शिवबाबा का रथ है ना।
    • जैसे हुसैन का रथ होता है ना।
    • घोड़े को श्रृंगार करते हैं।
    • घोड़े का अर्थ नहीं समझते हैं।
  • धर्म स्थापन करने वाले जो आते हैं उनकी आत्मायें पवित्र होती हैं।
    • पुरानी पतित आत्मा धर्म स्थापन कर न सके।
    • तुम धर्म स्थापन नहीं करते हो, शिवबाबा तुम्हारे द्वारा करते हैं।
    • तुमको पवित्र बनाते हैं।
  • वो लोग भक्ति मार्ग में बहुत श्रृंगार आदि करते हैं।
    • यहाँ श्रृंगार पसन्द नहीं करते।
    • बाप कितना निरहंकारी है।
    • खुद कहते हैं हम बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त में आता हूँ।
  • पहले सतयुग में होगा श्री नारायण।
    • श्री लक्ष्मी से भी पहले श्री नारायण आयेगा।
    • वह तो बड़ा होगा ना इसलिए कृष्ण का नाम गाया हुआ है।
    • नारायण से भी कृष्ण की महिमा जास्ती करते हैं।
    • कृष्ण की ही जन्माष्टमी मनाते हैं।
    • नारायण का बर्थ डे नहीं मनाते।
    • यह कोई नहीं जानते कि कृष्ण सो नारायण।
    • नाम तो बचपन का ही चलेगा ना।
    • फलाने ने जन्म लिया, उसका बर्थ डे मनाते हैं इसलिए कृष्ण का ही मनाते हैं।
    • नारायण का किसको पता नहीं।
  • पहले-पहले शिवजयन्ती फिर है कृष्ण जयन्ती फिर राम की... शिव के साथ गीता का भी जन्म होता है।
    • शिवबाबा आते ही हैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में।
    • बुजुर्ग अनुभवी रथ में ही आते हैं।
    • कितना अच्छा समझाया हुआ है, तो भी किसकी बुद्धि में नहीं आता।
  • बाप कहते यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है।
    • जब मैं आकर सुनाऊं तब तुम भी सुना सकते हो।
    • अभी तुम बच्चे जानते हो हम भविष्य में एक्यूरेट यह (देवी-देवता) बनेंगे।
  • बाबा ने 2-3 प्रकार के साक्षात्कार किये थे।
    • यह बनूँगा, ताज वाला बनूँगा, पगड़ी वाला बनूँगा।
    • 2-4 राजाई के जन्मों का साक्षात्कार किया था।
    • अभी तुम समझ सकते हो - इन बातों को दुनिया में और कोई समझ नहीं सकते।
    • हाँ, इतना समझते हैं अच्छा कर्म करेंगे तो अच्छा जन्म मिलेगा।
  • अभी तुम पुरूषार्थ ही भविष्य के लिए कर रहे हो।
    • नर से नारायण बनने का।
    • तुम जानते हो - हम यह पद पायेंगे।
    • यह खुशी जास्ती उनको रहेगी जो कर्मातीत अवस्था को पाने का पुरूषार्थ करते रहते होंगे।
    • कहते हैं बाबा हम तो मम्मा बाबा को फालो करेंगे तब तो तख्त पर बैठ सकेंगे।
    • यह भी समझ चाहिए, कितनी हम सर्विस करते हैं और कितना खुशी में रहते हैं।
    • खुद खुशी में रहेंगे तो दूसरों को भी खुशी में लायेंगे।
  • अन्दर कोई खराबी होगी तो दिल खाती रहेगी।
    • कोई-कोई आकर कहते हैं - बाबा हमारे में क्रोध है।
    • यह भूत है हमारे में।
    • फिकर की बात हुई ना।
    • भूत को रहने नहीं देना चाहिए।
    • क्रोध क्यों करें!
    • प्यार से समझाना होता है।
    • बाबा कोई पर क्रोध थोड़ेही करेंगे।
    • शिवबाबा की महिमा है ना।
    • बहुत फालतू झूठी महिमा भी करते हैं।
    • मैं करता क्या हूँ!
  • मुझे कहते हैं आकर पतित से पावन बनाओ।
    • जैसे डॉक्टर को कहते हैं हमारी बीमारी दूर करो।
    • वह दवाई दे इन्जेक्शन लगाते हैं, सो तो उनका काम ही है।
    • बड़ी बात थोड़ेही है।
    • पढ़ते ही हैं सर्विस के लिए।
  • जास्ती पढ़ते हैं तो जास्ती कमाई करते हैं।
    • बाप को तो कोई कमाई नहीं करनी है।
    • उनको तो कमाई कराना है।
    • बाबा कहते मुझे तुम अविनाशी सर्जन भी कहते हो, यह जास्ती महिमा कर दी है।
    • पतित-पावन को कोई सर्जन नहीं कहा जाता।
    • यह सिर्फ महिमा है।
  • बाप तो सिर्फ कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
      • बस।
    • मेरा पार्ट ही है तुमको यह समझाने का कि मामेकम् याद करो, जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
    • यह है ही राजयोग का ज्ञान।
    • गीता जिन्होंने पढ़ी है, उनको समझाना सहज होता है।
  • तुम पूज्य राजाओं के राजा बनते हो, फिर पुजारी बनेंगे।
    • तुमको मेहनत करनी है।
    • तुम विश्व को पवित्र बनाते हो।
    • कितना भारी मर्तबा है।
    • तुम सब अंगुली देते हो - कलियुगी पहाड़ को पलटाने।
    • बाकी पहाड़ आदि कुछ भी है नहीं।
  • अब तुम जानते हो - नई दुनिया आनी है, इसलिए राजयोग जरूर सीखना है।
    • बाप ही आकर सिखलाते हैं।
    • सतोप्रधान बनना है।
    • जो कल्प पहले बने होंगे उनको समझाने से जंचेगा।
    • बात तो ठीक कहते हैं।
    • बरोबर बाप ने कहा था - मनमनाभव।
    • अक्षर संस्कृत है।
    • बाप तो हिन्दी में कहते हैं मुझे याद करो।
    • अभी तुम समझते हो हम कितने ऊंच धर्म, ऊंच कर्म वाले थे तब तो गायन है 16 कला... अब फिर ऐसा बनना है।
    • अपने को देखना है कहाँ तक हम सतोप्रधान बने हैं, पावन बने हैं।
    • कहाँ तक नर्कवासियों को स्वर्गवासी बनाने की सेवा करते हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) बाप समान निरहंकारी बनना है।
    • इस शरीर की सम्भाल करते हुए शिवबाबा को याद करना है।
    • रूहानी सर्विस में बाप का मददगार बनना है।
  • 2) अन्दर में कोई भी भूत को रहने नहीं देना है।
    • कभी किसी पर क्रोध नहीं करना है।
    • सबसे बहुत प्यार से चलना है।
    • मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • सहन शक्ति की विशेषता द्वारा दूसरे के संस्कारों को परिवर्तन करने वाले दृढ़ संकल्पधारी भव
  • जैसे ब्रह्मा बाप ने ज्ञानी और अज्ञानी आत्माओं द्वारा इनसल्ट सहन कर उसे परिवर्तन किया तो फालो फादर करो, इसके लिए अपने संकल्पों में सिर्फ दृढ़ता को धारण करो।
  • यह नहीं सोचो कि कहाँ तक होगा।
  • सिर्फ थोड़ा पहले लगता है कैसे होगा, कहाँ तक सहन करेंगे।
  • लेकिन अगर आपके लिए कोई कुछ बोलता भी है तो आप चुप रहो, सहन कर लो तो वह भी बदल जायेगा।
  • सिर्फ दिलशिकस्त नहीं बनो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • संगम पर सहन कर लेना, झुक जाना, यही सबसे बड़ी महानता है।