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ओम् शान्ति।
- गीत की एक लाइन सुन करके भी मीठे-मीठे बच्चों के रोमांच खड़े हो जाने चाहिए।
- है तो कॉमन गीत परन्तु इनका सार और कोई नहीं जानते।
- बाप ही आकर हर गीत, शास्त्र का अर्थ समझाते हैं।
- मीठे-मीठे बच्चे यह भी जानते हैं कि कलियुग में सबकी तकदीर सोई हुई है।
- सतयुग में तकदीर जगी हुई रहती है।
- सोई हुई तकदीर को जगाने वाला और मत देने वाला अथवा तकदीर बनाने वाला एक ही बाप है।
- वही बैठ बच्चों की तकदीर जगाते हैं।
- जैसे बच्चे पैदा होते हैं और तकदीर जग जाती है।
- बच्चा जन्मा और उनको यह पता चल जाता कि हम वारिस हैं।
- हूबहू यह बेहद की बात है।
- बच्चे जानते हैं कल्प-कल्प हमारी तकदीर जगती है और सो जाती है।
- पावन बनते हैं तो तकदीर जगती है।
- पावन गृहस्थ आश्रम कहा जाता है।
- आश्रम अक्षर पवित्र होता है।
- पवित्र गृहस्थ आश्रम, उनके अगेंस्ट फिर है अपवित्र पतित धर्म, आश्रम नहीं कहेंगे।
- गृहस्थ धर्म तो सबका है ही।
- जानवरों का भी है।
- बच्चे तो सब पैदा करते हैं।
- जानवरों को भी कहेंगे गृहस्थ धर्म में हैं।
- अब बच्चे जानते हैं हम स्वर्ग में पवित्र गृहस्थ आश्रम में थे, देवी-देवता थे।
- उन्हों की महिमा भी गाते हैं सर्वगुण सम्पन्न... तुम खुद भी गाते थे।
- अभी समझते हो हम मनुष्य से सो देवता फिर से बन रहे हैं।
- देवी-देवताओं का धर्म है।
- फिर ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को भी देवता कहते हैं।
- ब्रह्मा देवताए नम:, विष्णु देवताए नम:... शिव के लिए कहेंगे शिव परमात्माए नम: तो फर्क हुआ ना।
- शिव और शंकर को एक कह नहीं सकते।
- पत्थरबुद्धि थे, अब पारसबुद्धि बन रहे हैं।
- देवताओं को तो पत्थरबुद्धि नहीं कहेंगे।
- फिर ड्रामा प्लैन अनुसार रावण राज्य होने से उन्हों को भी सीढ़ी उतरनी है।
- पारसबुद्धि से पत्थरबुद्धि बनना है।
- सबसे बुद्धिवान बनाने वाला तो एक ही बाप है।
- तुमको पारसबुद्धि बनाते हैं।
- तुम यहाँ आते हो पारसबुद्धि बनने।
- पारसनाथ के भी मन्दिर हैं।
- वहाँ मेला लगता है।
- परन्तु यह किसको पता नहीं है - पारसनाथ कौन है।
- वास्तव में पारस बनाने वाला तो बाप ही है।
- वह है बुद्धिवानों की बुद्धि।
- यह है तुम बच्चों की बुद्धि के लिए खुराक।
- बुद्धि कितना पलटती है।
- जैसे गाया जाता है सी नो ईविल... अब बन्दरों की तो बात नहीं।
- मनुष्य ही जैसे बन्दर मिसल बन जाते हैं।
- एप्स (वनमानुष) की मनुष्य से भेंट की जाती है।
- इसको कहा ही जाता है कांटों का जंगल।
- कितना एक दो को दु:ख देते रहते हैं।
- अभी तुम बच्चों की बुद्धि को खुराक मिल रही है।
- बेहद का बाप खुराक दे रहे हैं।
- यह पढ़ाई है, इसको ज्ञान अमृत भी कहते हैं।
- कोई जल आदि नहीं।
- आजकल सब चीज़ों को अमृत कह देते हैं।
- गंगाजल को भी अमृत कहते हैं।
- देवताओं के पैर धोकर पीते हैं, पानी रखते हैं, उनको भी अमृत की अंचली समझते हैं।
- अंचली जो लेते हैं उसको ऐसे नहीं कहेंगे कि यह पतितों को पावन बनाने वाला है।
- गंगाजल के लिए कहते हैं पतित-पावनी है।
- कहते भी हैं मनुष्य मरे तो गंगाजल मुख में हो।
- दिखाते हैं अर्जुन ने बाण मारा फिर अमृत जल पिलाया।
- तुम बच्चों ने कोई बाण आदि नहीं चलाये हैं।
- एक गाँव है जहाँ बांणों से लड़ाई करते हैं।
- वहाँ के राजा को ईश्वर का अवतार कहते हैं।
- बाप कहते हैं - यह सब भक्ति मार्ग के गुरू हैं।
- सच्चा-सच्चा सतगुरू एक ही है।
- सर्व का सद्गति दाता एक है, जो सबको साथ ले जाते हैं।
- बाप के सिवाए वापिस कोई ले नहीं जा सकता।
- ब्रह्म में लीन हो जाने की भी बात नहीं।
- यह नाटक बना हुआ है, जो चक्र अनादि फिरता ही रहता है।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है।
- यह अभी तुम जानते हो।
- मनुष्य अर्थात् आत्मायें अपने बाप रचता को भी नहीं जानती हैं, जिसको याद भी करते हैं - ओ गॉड फादर।
- हद के बाप को कभी गॉड फादर नहीं कहेंगे।
- गॉड फादर अक्षर बहुत अदब (इज्जत) से कहते हैं।
- उनके लिए ही कहते हैं वह पतित-पावन, दु:ख हर्ता सुख कर्ता है।
- एक तरफ कहते हैं वह दु:ख हर्ता सुख कर्ता है, और फिर कोई दु:ख होता है वा बच्चा आदि मर जाता है तो कह देते ईश्वर ही सुख-दु:ख देता है।
- ईश्वर ने हमारा बच्चा ले लिया, यह क्या किया!
- ईश्वर को फिर गालियाँ देते हैं।
- कहते भी हैं ईश्वर ने बच्चा दिया है फिर अगर उसने वापिस ले लिया तो तुम रोते क्यों हो।
- ईश्वर के पास गया ना।
- सतयुग में कब कोई रोते नहीं हैं।
- बाप समझाते हैं रोने की तो कोई दरकार नहीं।
- आत्मा को अपने हिसाब-किताब अनुसार जाकर पार्ट बजाना है।
- ज्ञान न होने के कारण मनुष्य कितना रोते हैं।
- जैसे पागल हो जाते हैं, यहाँ तो बाप समझाते हैं - अम्मा मरे तो भी हलुआ खाना... बाप मरे तो भी हलुआ खाना... नष्टोमोहा होना है।
- हमारा तो एक ही बेहद का बाप है, दूसरा न कोई।
- ऐसी अवस्था बच्चों की होनी चाहिए।
- मोहजीत राजा की कथा भी सुनी है ना।
- सतयुग में कभी दु:ख की बात नहीं होती।
- न कभी अकाले मृत्यु होती है।
- बच्चे जानते हैं हम काल पर जीत पाते हैं।
- बाप को महाकाल भी कहते हैं, कालों का काल।
- तुमको काल पर जीत पानी है अर्थात् काल कब खाता नहीं।
- काल न आत्मा को, न शरीर को खा सकता।
- आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
- उसको कहते हैं काल खा गया, बाकी काल कोई चीज़ नहीं है।
- मनुष्य महिमा गाते रहते हैं, समझते कुछ नहीं।
- अचतम् केशवम्... बाप समझाते हैं यह 5 विकार तुम्हारी बुद्धि को कितना खराब कर देते हैं।
- इस समय कोई भी बाप को नहीं जानते हैं इसलिए इनको आरफन की दुनिया कहा जाता है।
- कितना आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं।
- यह सारी दुनिया बाबा का घर है ना।
- बाप सारी दुनिया के बच्चों को पतित से पावन बनाने आते हैं।
- आधाकल्प बरोबर पावन दुनिया थी ना।
- गाते भी हैं राम राजा राम प्रजा... वहाँ फिर अधर्म की बात हो कैसे सकती।
- कहते भी हैं वहाँ शेर बकरी इकट्ठे जल पीते हैं, फिर वहाँ रावण आदि कहाँ से आये।
- समझते नहीं, बाहर वाले तो ऐसी बातें सुनकर हँसते हैं।
- बाप आकर ज्ञान देते हैं, यह पतित दुनिया है ना।
- अब प्रेरणा से पतितों को पावन बनायेंगे क्या!
- बुलाते हैं पतित-पावन आओ तो जरूर भारत में ही आया था।
- अब भी कहते हैं मैं ज्ञान का सागर आया हूँ - तुम्हें आप समान मास्टर ज्ञान सागर बनाने।
- बाप को ही सच्चा-सच्चा व्यास कहेंगे।
- तो यह व्यास देव और तुम उनके बच्चे सुखदेव, तुम अभी सुख के देवता बनते हो।
- सुख का वर्सा ले रहे हो व्यास, शिवाचार्य से।
- व्यास के बच्चे तुम हो।
- परन्तु मनुष्य मूँझ न जाएं इसलिए कहा जाता है शिव के बच्चे।
- उनका असुल नाम है शिव।
- आत्मा को जाना जाता है, परमात्मा को भी जाना जाता है।
- वही आकर पतित से पावन बनने का रास्ता बताते हैं।
- कहते हैं मैं तुम आत्माओं का बाप हूँ।
- कहते हैं अंगुष्ठे मिसल है।
- इतना बड़ा तो यहाँ ठहर भी न सके।
- वह तो बहुत सूक्ष्म है।
- डॉक्टर लोग भी माथा मारते हैं - आत्मा को देखने के लिए।
- परन्तु देख नहीं सकते।
- आत्मा को रियलाइज किया जाता है।
- बाप पूछते हैं अब तुमने आत्मा को रियलाइज किया?
- इतनी छोटी सी आत्मा में अविनाशी पार्ट नूँधा हुआ है।
- जैसे एक रिकार्ड है।
- पहले तुम देह-अभिमानी थे, अभी देही-अभिमानी बने हो।
- तुम जानते हो हमारी आत्मा 84 जन्म कैसे लेती रहती है।
- उनका इन्ड नहीं होता।
- कोई-कोई पूछते हैं - यह ड्रामा कब से शुरू हुआ।
- परन्तु यह तो अनादि है, यह कभी विनाश नहीं होता।
- इनको कहा जाता है बना बनाया अविनाशी वर्ल्ड ड्रामा।
- वर्ल्ड को भी तुम जानते हो।
- जैसे अनपढ़ बच्चों को पढ़ाई दी जाती है, ऐसे बाप तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
- आत्मा ही शरीर द्वारा पढ़ती है।
- यह है पत्थर-बुद्धि के लिए फूड।
- बुद्धि को समझ मिलती है।
- तुम बच्चों के लिए ही बाबा ने चित्र बनवाये हैं।
- बहुत सहज है।
- त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, अब ब्रह्मा को त्रिमूर्ति क्यों कहते हैं!
- देव-देव महादेव... एक दो के ऊपर रखते हैं।
- अर्थ कुछ भी नहीं जानते।
- अब ब्रह्मा कैसे हो सकता, जबकि ब्रह्मा को प्रजापिता कहा जाता है।
- तो सूक्ष्मवतन में वह देवता कैसे हो सकता।
- प्रजापिता ब्रह्मा तो यहाँ होना चाहिए।
- यह बातें कोई भी शास्त्र में हैं नहीं।
- बाप कहते हैं - मैं इस शरीर में प्रवेश कर इन द्वारा तुमको समझाता हूँ, इनको अपना रथ बनाता हूँ।
- इनके बहुत जन्मों के अन्त में मैं आता हूँ।
- यह भी 5 विकारों का संन्यास करते हैं।
- संन्यास करने वाले को योगी, ऋषि कहा जाता है।
- अभी तुम राजऋषि हो।
- तुम प्रतिज्ञा करते हो।
- वह संन्यासी लोग तो घरबार छोड़ चले जाते हैं।
- यहाँ तो स्त्री-पुरूष इकट्ठे रहते हैं।
- कहते हैं हम विकार में कभी नहीं जायेंगे।
- मूल बात है ही विकार की।
- तुम जानते हो शिवबाबा रचयिता है।
- वह नई रचना रचते हैं।
- वह बीजरूप सत् चित, आनंद का सागर, ज्ञान का सागर है।
- स्थापना, पालना, विनाश कैसे करते हैं - यह बाप ही जानते हैं।
- इन बातों को मनुष्य तो जानते नहीं।
- तुम बच्चे अभी इन सब बातों को जानते हो, इसलिए सबको समझा सकते हो।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1)
- हर एक आत्मा का हिसाब-किताब अपना-अपना है, इसलिए कोई शरीर छोड़ते हैं तो रोना नहीं है।
- बुद्धि में रहे हमारा तो एक बेहद का बाप, दूसरा न कोई।
- 2)
- 5 विकार जो बुद्धि को खराब करते हैं उनका त्याग करना है।
- सुख का देवता बन सबको सुख देना है।
- किसी को दु:ख नहीं देना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- रहम की दृष्टि द्वारा घृणा दृष्टि को समाप्त करने वाले नॉलेजफुल भव
- जो बच्चे एक दो के संस्कारों को जानकर संस्कार परिवर्तन की लगन में रहते हैं, कभी यह नहीं सोचते कि यह तो हैं ही ऐसे, उन्हें कहेंगे नॉलेजफुल।
- वे स्वयं को देखते और निर्विघ्न रहते हैं। उनके संस्कार बाप के समान रहमदिल के होते हैं।
- रहम की दृष्टि, घृणा दृष्टि को समाप्त कर देती है।
- ऐसे रहमदिल बच्चे कभी आपस में खिट-खिट नहीं करते।
- वे सपूत बनकर सबूत देते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सदा परमात्म चिंतन करने वाले ही बेफिक्र बादशाह हैं, उन्हें किसी भी प्रकार की चिंता नहीं हो सकती।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
- “अखण्ड ज्योति तत्व साइलेंस लॉज और साकारी दुनिया प्ले ग्राउण्ड''
- आत्माओं का निवास स्थान है अखण्ड ज्योति महतत्व, जहाँ इस शरीर के पार्ट से मुक्त है अर्थात् दु:ख सुख से न्यारी अवस्था में है जिसको साइलेंस लॉज भी कहते हैं और आत्माओं का शरीर सहित पार्ट बजाने का स्थान प्ले ग्राउण्ड यह साकार दुनिया है।
- तो मुख्य दो दुनिया हैं एक है निराकारी दुनिया, दूसरी है साकारी दुनिया। दुनिया वाले तो सिर्फ कहने मात्र कहते हैं, कि परमात्मा रचता, पालन करता है, संहार करता है, खिलाता है, मारता, जलवाता भी वही है।
- तो दु:ख सुख देने वाला भी वही है, जब कोई को दु:ख आता है तो कहते हैं प्रभु तेरा भाना मीठा लागे, अब यह है अयथार्थ ज्ञान क्योंकि यह कोई परमात्मा का काम नहीं है, परमात्मा दु:ख हर्ता है, दु:ख कर्ता नहीं है।
- जन्म लेना जन्म छोड़ना, दु:ख सुख भोगना हर एक मनुष्य आत्मा के संस्कार हैं।
- शारीरिक जन्म देने वाला मात-पिता है जो भी कर्म बन्धन अनुसार बाप बेटे के सम्बन्ध में आता है, इसी रीति आत्माओं का पिता फिर परमात्मा बाप है वो कैसे बेहद रचना की स्थापना, पालना करता है!
- कैसे वो अपने तीन रूप ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का रचयिता है फिर इन आकारी रूपों द्वारा दैवी सृष्टि की स्थापना, आसुरी दुनिया का विनाश और फिर दैवी दुनिया की पालना करवाता है।
- परमात्मा के यह तीन काम बेहद के हैं।
- बाकी यह दु:ख-सुख, जन्म-मरण कर्मों अनुसार होता है।
- परमात्मा तो है ही सुख दाता वो कोई अपने बच्चों को दु:ख नहीं देता। अच्छा - ओम् शान्ति।
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