24-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम बाप के पास आये हो अपनी जीवन हीरे समान बनाने, बाप की याद से ही ऐसी जीवन बनेगी''

प्रश्नः-

नई दुनिया में ऊंच पद के लिए कौन सा एक मुख्य पुरुषार्थ करना है?

उत्तर:-

बाबा कहते - मीठे बच्चे, जिन पुराने सम्बन्धियों ने इतना दु:खी किया, अब उनके मोहजाल से बुद्धि को निकाल एक मुझे याद करो। उनके साथ रहते भी मन को मेरे में लगाओ। मनमनाभव का मन्त्र सदा याद रखो तो तुम नई दुनिया में ऊंच पद पायेंगे।

गीत:- तूने रात गँवाई...


  • ओम् शान्ति।
  • जैसे बच्चों को सभी शास्त्रों का सार समझाते हैं, वैसे इन गीतों का भी सार तुमको समझाते हैं।
    • वही सबका रूहानी बाप, रूहानी बच्चों को ब्रह्मा तन से बैठ समझा रहे हैं।
  • बाप समझाते हैं हे बच्चों - तुम जानते हो हमारा हीरे जैसा जन्म बन रहा है।
    • बाप के पास आते ही हो हीरे जैसा जन्म बनाने।
    • हीरे जैसा जन्म कहा जाता है स्वर्गवासियों का।
    • कौड़ी जैसा जन्म है नर्कवासियों का।
  • तुम संगमयुग को भी जान चुके हो।
    • हम अभी संगमयुगवासी हैं।
    • यह संगमयुग सबके लिए कल्याणकारी है।
    • इस संगमयुग में ही सर्व की गति सद्गति होती है।
    • कौन करते हैं?
    • परमधाम से आने वाला मुसाफिर।
  • वह मुसाफिर है ना।
    • तुम मुसाफिर नहीं हो, तुम आकर जाते नहीं हो।
    • बाप कहते हैं - मैं पुरानी दुनिया में आकर फिर लौट जाता हूँ।
    • बच्चे जानते हैं यह सेवा करने वाला सिर्फ एक मुसाफिर है, जो आकर हम बच्चों की बड़ी सेवा करते हैं।
    • ऐसी सेवा और कोई कर न सके।
  • सेवा के लिए ही पुकारते हैं कि आकर हम पतितों की सेवा करो।
    • बाप भी कहते हैं हम बच्चों की सेवा में आये हैं क्योंकि बच्चे बहुत दु:खी हैं।
    • पुकारते भी हैं हमारे दु:ख हरो और शान्ति दो।
  • दो चीज़ हमेशा याद रहती है - सुख और शान्ति।
    • यहाँ दु:ख और अशान्ति है, तब पुकारते हैं।
    • बाप ही आकर सारा राज़ सृष्टि चक्र का बच्चों को समझाते हैं।
  • बच्चे समझते हैं - अब भक्ति मार्ग खत्म होता है।
    • कलियुग का अन्त माना भक्ति नीचे उतरती आती है।
    • ज्ञान से तुम्हारी चढ़ती कला हो जाती है।
    • तुम ऊंच ते ऊंच पद पा लेते हो फिर वह प्रालब्ध का सुख कम होता जाता है।
    • भक्ति तो भारत में जितनी होती है उतनी और कहाँ नहीं।
    • आधाकल्प भक्ति चलती है।
    • जब से द्वापर शुरू होता है और दूसरे धर्म स्थापन होना शुरू होते हैं तब से भक्ति शुरू होती है।
    • भक्ति भी पहले बहुत अच्छी होती है।
    • जैसे स्वर्ग पहले बहुत अच्छा होता है फिर आहिस्ते-आहिस्ते कला कम होती जाती है।
    • भक्ति शुरू होती है तो पहले-पहले शिव के पुजारी बनते हैं।
    • आधाकल्प कोई पूजा होती नहीं है।
    • फिर भक्तिमार्ग शुरू होता है और दूसरे धर्म भी शुरू होते हैं।
    • इतनी भक्ति और कोई कर नहीं सकते, पूरा आधाकल्प भक्ति चलती है।
    • यह भी तुम बच्चे जानते हो कि बाप, जो सबको, खास भारत को सद्गति देते हैं, स्वर्ग का मालिक बनाते हैं वही दूरदेश का मुसाफिर आया हुआ है - हम बच्चों को फिर से स्वर्ग की बादशाही देने।
    • वर्सा भी कितना जबरदस्त है।
    • परन्तु एक भी बात किसकी बुद्धि में नहीं बैठती।
    • भारत में भक्ति कितनी करते हैं।
    • कितने मन्दिर हैं।
  • भारत खण्ड में तो ढेर मन्दिर हैं।
    • अभी तुम जानते हो यह किसके मन्दिर हैं।
    • पहले-पहले तो शिवबाबा का मन्दिर बनता है, फिर बनते हैं देवताओं के।
    • वह मन्दिर भी तुम्हारे सामने खड़े हैं।
  • एक तरफ शिवबाबा की पूजा करते रहते हैं, दूसरे तरफ शिवबाबा तुमको पूज्य बना रहे हैं।
    • तुम यहाँ आये हो पूज्य देवता बनने।
    • जो भी देवताओं के पुजारी हैं - वास्तव में वह भी आकर यहाँ ब्राह्मण बनेंगे।
    • धीरे-धीरे वृद्धि होती जायेगी।
    • सभी इकट्ठे तो पढ़ न सकें।
    • समय लगता है।
    • कल्प पहले भी जिन्होंने पढ़ा होगा वही फिर पढ़ेंगे।
    • एक दो को पढ़ाते रहना है।
    • सबको बाप और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज सुनाते हैं, जिससे मनुष्य स्वर्ग का मालिक बन सकते हैं।
    • सो आकर समझो।
  • तुम बच्चों की बुद्धि में है कि यह नाटक कैसे चक्र लगाता है।
    • कहानी कोई लाखों वर्ष की तो नहीं सुना सकते।
    • तुम जानते हो 5 हजार वर्ष पहले क्या था, किसका राज्य था!
  • भारत में हम पूज्य देवी-देवताओं का राज्य था।
    • याद आया ना - हम पूज्य थे, फिर पुजारी बनें।
    • आगे यह पता नहीं था - हम सो पूज्य देवता थे, फिर हमने 84 जन्म लिए।
    • 84 जन्मों की कहानी लक्ष्मी-नारायण की है।
    • तुम अपने 84 जन्मों की कहानी सुनाते हो।
    • उनको तो अपनी कहानी बैठ लिखने में बहुत समय लगता है।
    • तुम एक मिनट में 84 जन्मों की कहानी बता सकते हो।
    • वह तो एक जन्म की कहानी लिखते हैं।
    • छोटे पन में क्या-क्या किया।
    • यह भी अपनी कहानी बताते हैं।
    • हम 84 का चक्र कैसे लगाते हैं।
    • एक की तो बात नहीं, बहुत ब्राह्मण हैं।
  • तुम ही इस चक्र को जानते हो।
    • इस चक्र को जानने से तुम राजा रानी बनते हो और फिर औरों को बनाते भी हो।
  • भक्ति भी भारतवासियों जैसी कोई नहीं करते हैं।
    • और जो भी मठ पंथ धर्म आदि हैं, वह हमारे भक्ति के समय स्थापन होते हैं।
    • पहले-पहले हमारा कितना छोटा फूलों का झाड़ था, रूहानी गॉर्डन था।
    • तुम चैतन्य फूल थे।
  • इनको कहा जाता है फूलों का बगीचा।
    • फिर वही कांटों का बगीचा होता जाता है।
    • इस समय सब कांटे बन गये हैं।
    • फिर कांटों से फूल कैसे बनना है, सो बाप बैठ समझाते हैं।
    • एक दो को दु:ख देना कांटा लगाना है।
  • स्टूडेन्ट लाइफ इज दी बेस्ट कहा जाता है।
    • वह बहुत अच्छी होती है।
    • बच्चे बच्चियां बड़ी खुशी में पढ़ते रहते हैं।
    • शादी की और एक दो को कांटा लगाना शुरू किया।
    • सतयुग में कोई कांटा नहीं लगाते।
    • अभी तुम फिर फूल बनते हो।
  • तुम जानते हो भारत स्वर्ग था तो कितने अपार सुख थे।
    • सोने की खानियां थी।
    • अभी वह खाली हो गई है।
    • फिर तुमको सोना भरपूर मिलेगा।
    • भारत में ही सोने, हीरे, जवाहरात की खानियां थी।
    • उस समय अमेरिका आदि कुछ भी नहीं होता।
    • बाम्बे भी नहीं होती।
    • वन्डर है ना।
    • कलियुग के अन्त में कुछ भी सोना देखने में नहीं आता फिर सतयुग आदि में इतनी सोने की खानियां भरतू हो जाती हैं।
    • सोने के महल बन जाते हैं।
    • वन्डर है ना।
    • वहाँ खानियों से कितना ढेर सोना निकालते हैं।
    • जैसे यहाँ मिट्टी की ईटें बनती हैं, वैसे वहाँ सोने की ईटें बनती हैं।
  • माया मच्छन्दर का खेल दिखाते हैं ना।
    • ध्यान में देखा यहाँ तो सोना ही सोना है।
    • बरोबर सतयुग में सोना होगा।
    • यहाँ तो देखो मिट्टी की ईटें भी नहीं मिलती हैं।
    • जितनी यहाँ ईटें पैसे से मिलती हैं, उतनी वहाँ सोने की ईटें मुफ्त मिलती हैं।
    • रात-दिन का फर्क है।
  • तो क्यों नहीं पुरूषार्थ करना चाहिए - नई दुनिया में ऊंच पद पाने का!
    • यहाँ मोहजाल में क्यों फसें!
    • बाप कहते हैं पुराने सम्बन्धों में तुम कितना दु:ख उठाते हो!
    • बाबा ऐसे नहीं कहते कि इनको छोड़ दो।
    • सिर्फ बुद्धियोग एक बाप से लगाओ तो तुम विश्व के मालिक बन जायेंगे।
  • मनमनाभव का अर्थ ही है - मुझे याद करो और विष्णु चतुर्भुज को अर्थात् विष्णुपुरी को याद करो।
    • मूल है ही एक अक्षर।
    • भक्ति मार्ग में तो ढेर पंचायत है।
    • अभी तुम सब आत्मायें आशिक हो एक माशूक परमपिता परमात्मा के।
    • वह तुमको सुखधाम का मालिक बनाते हैं।
    • सब आत्मायें उनको याद करते हैं।
    • तुम रूहानी आशिक, रूहानी माशूक के एक ही बार बनते हो।
    • बाकी तो सब मनुष्य हैं जिस्मानी आशिक माशूक।
    • अभी बेहद के आशिकों को बेहद का माशूक आकर मिला है।
    • उनको कहते भी हैं - आओ आकर हमको पतित से पावन बनाओ।
    • एक को ही पुकारते हैं।
    • तुम जानते हो हमारी आत्मा पतित बनी है इसलिए पुकारते हैं पतित-पावन आओ।
  • कुम्भ का मेला लगता है, कितने जाकर गंगा स्नान करते हैं।
    • फायदा कुछ भी नहीं।
    • पावन कोई भी बनता नहीं।
  • अभी बाप आकर ज्ञान वर्षा करते हैं।
    • तुम्हारे ऊपर ज्ञान की वर्षा हो रही है, जिससे फिर कांटों का जंगल फूलों का बगीचा बन जायेगा।
    • तुम जानते हो - हमारा जब राज्य होगा तो वहाँ कोई पतित होगा ही नहीं।
    • सारे विश्व पर ज्ञान वर्षा हो जाती है।
    • सब कुछ हरा भरा हो जाता है।
    • खानियां भी हीरे जवाहरों की नई बन जाती हैं।
    • अब तुम बच्चों को कितना खुशी में रहना चाहिए।
  • सम्मुख देखते हो, बेहद का बाप बैठ समझाते हैं कि तुम मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
    • भल तुम कहाँ भी बैठो - स्नान करो, बुद्धि में बाप की याद रहे।
    • वहाँ तो याद करने की फुर्सत है।
    • बाप को जितना याद करेंगे उतनी कमाई है।
    • याद से ही कमाई है।
    • ऐसा कभी सुना कि याद से कमाई होती है!
    • कितनी बड़ी कमाई है, तुम विष्णुपुरी के मालिक बन जायेंगे।
    • तुम जानते हो हम आत्माओं का बाप निराकार है।
    • उसने इस शरीर का आधार लिया है।
    • भागीरथ का भी वर्णन है ना।
    • भाग्यशाली रथ, जिस रथ पर परमपिता की परम आत्मा सवार होती है।
    • आत्मा का रथ जब तैयार होता है तो झट आत्मा आकर प्रवेश करती है।
    • बाप को तो इस रथ में आकर सिर्फ नॉलेज देनी है।
    • इनके भी बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में जब वानप्रस्थ अवस्था होती है तब बाप कहते हैं - मैं आकर इनमें प्रवेश करता हूँ अथवा इस रथ में विराजमान होता हूँ।
    • बाकी कोई घोड़े गाड़ी के रथ की बात नहीं है।
    • अभी तुमको यह ज्ञान मिला है।
    • बाप बैठ सम्मुख तुम बच्चों को समझाते हैं।
    • तुमको तो बहुत खुशी होनी चाहिए।
  • आई.सी.एस. का इम्तहान पढ़ते हैं तो बड़ा नशा रहता है।
    • वह होता है सबसे ऊंच इम्तहान।
    • तुम्हारी भी यह पढ़ाई है।
  • यह भगवान की पाठशाला है।
    • अब प्रश्न उठता है भगवान कौन?
    • क्या श्रीकृष्ण या शिवबाबा?
    • सबका भगवान कौन है?
    • सिवाए एक निराकार के सब तो कृष्ण को मानेंगे नहीं।
    • सभी आत्माओं का बाप वह निराकार परमपिता परमात्मा है।
    • वह सदैव परमधाम में रहते हैं।
    • एक ही बार आते हैं - बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाने।
    • तुम जानते हो वही बाबा कल्प-कल्प आकर हमको रंक से राव बनाते हैं।
    • भारत अब रंक है ना।
    • फिर दूसरे जन्म में क्या बनना है, तुमको सब साक्षात्कार हुए हैं।
    • विनाश का भी साक्षात्कार किया है।
    • स्थापना का भी किया है।
  • भगवानुवाच मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
    • बहुत दान-पुण्य करने से कोई को अल्पकाल का सुख मिलता है।
    • राजाओं के पास जन्म ले फिर फट से मर जाते हैं।
    • कोई गर्भ में भी मर जाते हैं।
    • कोई लूले लंगड़े, काने बन जाते हैं।
    • जैसे कर्म करते हैं वैसा पद पाते हैं।
    • अब तुमको तो राजाओं का राजा बनाते हैं।
  • तुम कहते हो - बाबा हम बलिहार जायेंगे।
    • तो जरूर राजाई भी तुम पायेंगे।
    • भारत को महादानी खण्ड कहा जाता है।
    • यहाँ दान-पुण्य बहुत करते हैं।
    • वह फिर शुरू होता भक्ति मार्ग में।
    • अब बाप तुमको 21 जन्मों के लिए दान देते हैं।
    • अब तुम बाबा पर बलिहार जाते हो।
    • तन-मन-धन सब कुछ दे दिया।
    • अब बाप कहते हैं ट्रस्टी होकर रहो।
    • अपना घरबार सम्भालो।
    • सब शिवबाबा का है।
    • मैं आपका हूँ, आपको ही याद करता हूँ।
    • दिल से सरेन्डर करते हैं।
  • बाप कहते हैं भल महल में रहो, घूमो फिरो मौज मनाओ, सिर्फ मुझे याद करो तो तुम बहुत खुशी में रहेंगे।
    • तुम विश्व के मालिक थे।
    • अब फिर तुम पुरुषार्थ कर वह बनते हो।
    • बाप समझाते हैं - मीठे-मीठे बच्चों इस योगबल से ही तुम विकर्माजीत बनेंगे।
    • बाप की याद से तुम विश्व के मालिक बनते हो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) राजाई पद पाने के लिए बाप पर पूरा-पूरा बलिहार जाना है।
    • तन-मन-धन सब समर्पण कर ट्रस्टी होकर रहना है। विकर्माजीत बनने का पुरुषार्थ करना है।
  • 2) याद में ही कमाई है, इसलिए निरन्तर याद में रहने का पुरुषार्थ करना है।
    • ऐसा रूहानी फूल बनना है जो फूलों की दुनिया का अधिकारी बन जायें।
    • अन्दर में कोई भी कांटा न रहे।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित रह सदा अचल और साक्षी रहने वाले नम्बरवन तकदीरवान भव त्रिकालदर्शी स्थिति में स्थित होकर हर संकल्प, हर कर्म करो और हर बात को देखो, यह क्यों, यह क्या - यह क्वेश्चन मार्क न हो, सदा फुलस्टॉप।
  • नथिंगन्यु।
  • हर आत्मा के पार्ट को अच्छी तरह से जानकर पार्ट में आओ। आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते न्यारे और प्यारे पन की समानता रहे तो हलचल समाप्त हो जायेगी।
  • ऐसे सदा अचल और साक्षी रहना - यही है नम्बरवन तकदीरवान आत्मा की निशानी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • सहनशीलता के गुण को धारण करो तो कठोर संस्कार भी शीतल हो जायेंगे।