22-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - वृक्षपति बाप ने तुम बच्चों पर ब्रहस्पति की दशा बिठाई है, अभी तुम अविनाशी सुख की दुनिया में जा रहे हो''

प्रश्नः-

अविनाशी ब्रहस्पति की दशा किन बच्चों पर बैठती, उनकी निशानी क्या होगी?

उत्तर:-

जो बच्चे जीते जी देह के सब सम्बन्धों को त्याग अपने को आत्मा निश्चय करते, ऐसे निश्चय आत्मिक बुद्धि वाले बच्चों पर ब्रहस्पति की दशा बैठती है।

उनके ही सुख का गायन है कि अतीन्द्रिय सुख गोप गोपियों से पूछो।

उनकी खुशी कभी भी गुम नहीं हो सकती।

गीत:- ओम् नमो शिवाए...


  • ओम् शान्ति।
  • बच्चों ने बाप की महिमा सुनी।
  • आज के दिन को कहा ही जाता है वृक्षपति डे, जिसको मिलाकर कहा है ब्रहस्पति।
    • इनको ही गुरूवार भी कहा जाता है।
    • न सिर्फ गुरूवार परन्तु सतगुरूवार।
    • बंगाल में बहुत मानते हैं।
    • गाया जाता है मनुष्य सृष्टि का बीजरूप इसलिए वृक्षपति कहते हैं।
    • बीज ठहरा, तो पति भी ठहरा।
    • वृक्ष के बीज को बाप भी कहेंगे।
    • उनसे वृक्ष उत्पन्न होता है।
    • यह है मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़।
    • इनका बीज ऊपर में है।
    • तुम जानते हो हम बच्चों पर अब अविनाशी वृक्षपति की दशा है क्योंकि अविनाशी स्वराज्य मिल रहा है।

  • सतयुग को कहा ही जाता है अविनाशी सुखधाम।
    • कलियुग को कहा जाता है विनाशी दु:खधाम।
    • अभी दु:खधाम का विनाश होना है।
    • सुखधाम अविनाशी है, आधाकल्प चलता है जो अविनाशी वृक्षपति स्थापन कर रहे हैं।
  • बच्चों को सर्विस के लिए प्वाइंट्स नोट करनी है।
    • प्रदर्शनी में यह-यह प्वाइंट्स मुख्य समझाने की हैं क्योंकि मनुष्य तो कुछ भी जानते नहीं।
    • बरोबर यह है ज्ञान।
  • अब बाप यह ज्ञान देते ही हैं - नई और पुरानी दुनिया के बीच में, फिर यह प्राय:लोप हो जाता है।
    • देवताओं को यह ज्ञान नहीं होता है।
    • अगर यह चक्र का ज्ञान हो तो फिर राजाई में मजा ही न आये।
    • अभी भी तुमको ख्याल होता है ना।
    • क्या राज्य लेकर फिर हमारी यह हालत होगी।
    • परन्तु यह तो ड्रामा बना हुआ है।
    • चक्र को फिरना ही है।
  • वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट हो रही है।
    • कैसे रिपीट हो रही है - यह तुम बच्चे जानते हो।
    • यह है मनुष्य सृष्टि।
  • तुम्हारी बुद्धि में मूल-वतन का झाड़ भी है।

    • सेक्शन सबका अलग-अलग है।
    • यह बातें कोई की बुद्धि में कभी नहीं होगी।
    • कोई शास्त्रों में तो यह लिखी हुई नहीं हैं।
    • हम आत्मा असुल शान्तिधाम की रहवासी हैं, अविनाशी हैं।
    • कब विनाश को नहीं पाते।
    • वह समझते हैं बुदबुदा पानी से निकल फिर उसमें मिल जाता है।
    • तुम्हारी बुद्धि में सारा राज़ है।
    • आत्मा अविनाशी है, जिसमें सारा पार्ट नूँधा हुआ है।
  • यह चक्र का नॉलेज कोई शास्त्रों में नहीं है।
    • भल कहाँ-कहाँ स्वास्तिका भी दिखाते हैं।
    • चक्र की सिर्फ ऐसे-ऐसे लकीर लगा देते हैं, जिससे सिद्ध होता है अनेक धर्म थे।
  • बाप ने समझाया है मुख्य धर्म और शास्त्र हैं 4, सतयुग त्रेता में तो कोई धर्म स्थापन होता नहीं, न वहाँ कोई धर्मशास्त्र होता है।
    • यह सब द्वापर से शुरू होते हैं।
    • फिर देखो कितनी वृद्धि होती है।
    • अच्छा - गीता कब सुनाई गई?
  • बाप कहते हैं - मैं कल्प के संगमयुगे ही आता हूँ।
    • उन्होंने फिर कल्प अक्षर निकाल सिर्फ संगमयुगे-युगे लिख दिया है।
    • वास्तव में संगमयुगे और कोई धर्म स्थापन नहीं करते हैं।
    • ऐसे नहीं कि त्रेता के अन्त, द्वापर के आदि के संगम पर इस्लामी धर्म स्थापन हुआ।
    • नहीं, कहेंगे द्वापर में स्थापन हुआ।
  • यह संगम का सुहावना समय है, जिसको कुम्भ कहते हैं।
    • कुम्भ संगम को कहा जाता है।
    • यह है आत्मायें और परमात्मा के मिलन का संगम।
    • यह रूहानी मेला संगम पर ही होता है।
    • उन्होंने पानी की गंगा का नाम बाला कर दिया है।
    • ज्ञान सागर, पतित-पावन को जानते ही नहीं।
    • उसने कैसे पतित दुनिया को पावन बनाया, कोई शास्त्रों में है नहीं।
  • अब तुम बच्चों को बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो।

    • देह के सब धर्म त्यागो।
    • किसको कहते हैं?
    • आत्माओं को।
    • इसको कहा जाता है जीते जी मरना।
    • मनुष्य शरीर छोड़ते हैं तो देह के सब सम्बन्ध छूट जाते हैं।
    • बाप कहते हैं - जो भी देह के सम्बन्ध हैं वह सब छोड़ अपने को आत्मा निश्चय करो।
    • निश्चय आत्मिक बुद्धि बनो।
    • जितना जास्ती याद करेंगे तो ब्रहस्पति की दशा होगी।
    • जांच करो हम शिवबाबा को कितना याद करते हैं!
    • याद से ही कट निकलती जायेगी और तुमको खुशी होगी।
    • तुम महसूस कर सकते हो, हम आत्मा कितना बाप को याद करते हैं।
    • अगर कम याद करेंगे तो कट भी कम निकलेगी।
    • खुशी भी कम रहेगी।
    • पद भी कम पायेंगे।
    • आत्मा ही सतो रजो तमो बनती है।
  • इस समय का ही गायन है - गोप गोपियों के अतीन्द्रिय सुख का।

    • और कुछ भी याद नहीं पड़ता है सिवाए बाप के, तब ही खुशी का पारा चढ़ेगा।
    • हमारे ऊपर ब्रहस्पति की दशा अथवा सतगुरू की दशा है।
    • फिर कभी खुशी गुम हो जाती है तो कहते हैं ब्रहस्पति की दशा बदल राहू की बैठी है।
  • कोई बहुत साहूकार होते हैं, कोई सट्टा लगाया यह देवाला निकला।
    • भारत में ही जब ग्रहण लगता है तो कहते हैं दे दान तो छूटे ग्रहण।
    • तुम्हारा देवी-देवता धर्म भी 16 कला सम्पूर्ण था, उनको ग्रहण लगा हुआ है।
    • राहू की दशा बैठती है इसलिए देवताओं के आगे जाकर गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न... हम पापी, कपटी हैं।
    • अभी तुम समझते हो राहू का ग्रहण लगने से सब काले बन गये हैं।
    • चन्द्रमा की पिछाड़ी में लकीर जाकर रहती है।
  • बाप भी समझाते हैं तुम देवी-देवताओं के भी चित्र हैं।
    • गीता ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म का शास्त्र है।
    • परन्तु यह अपने धर्म को नहीं जानते हैं।
  • रिलीजस हेड्स की कान्फ्रेन्स करते हैं।
    • तुम वहाँ भी समझा सकते हो - ईश्वर सर्वव्यापी तो है नहीं।
    • वह तो बेहद का बाप है।
    • बच्चों को आकर वर्सा देते हैं।
    • साधू सन्त आदि को तो वर्सा मिलता नहीं तो मानेंगे कैसे!
    • तुम बच्चों को ही वर्सा मिलता है।
    • मुख्य बात है ही यह सिद्ध करने की कि ईश्वर सर्वव्यापी नहीं है।
  • शिव जयन्ती होती है।

    • शिव जयन्ती कहो अथवा रूद्र जयन्ती कहो - रूद्र यह ज्ञान यज्ञ रचते हैं।
    • है तो शिव।
    • वही गीता ज्ञान यज्ञ है, जिससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित हुई है।
    • प्रैक्टिकल में तुम देखते हो, कैसे निराकार बाबा ने रूद्र ज्ञान यज्ञ रचा है।
    • साकार तो कुछ कर न सके।
    • यह बेहद का यज्ञ है, इनमें सारी पुरानी दुनिया स्वाहा होनी है।
    • बाकी तो वह सब हैं जिस्मानी यज्ञ।
    • कितना रात-दिन का फ़र्क है।
    • बाप कहते हैं - यह रूद्र ज्ञान यज्ञ है, विनाश भी होना है।
    • तुम जब पास हो जायेंगे, पूरा योगी और ज्ञानी बन जायेंगे तो फिर तुम्हारे लिए नई दुनिया स्वर्ग चाहिए।
    • नर्क का जरूर विनाश चाहिए।
    • राजस्व अश्वमेध अक्षर भी ठीक है।
    • घोड़े को स्वाहा करते हैं।
    • वास्तव में है तुम्हारा यह रथ।
    • एक दक्ष प्रजापति का भी यज्ञ रचते हैं, उनकी भी कहानी है।
  • अब तुम बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए - हमको वृक्षपति बाप पढ़ा रहे हैं।
    • हमारे ऊपर अब ब्रहस्पति की दशा है, हमारी अवस्था बहुत अच्छी है।
    • फिर चलते-चलते लिखते हैं बाबा हम तो मूँझ गये हैं।
    • पहले हम बहुत खुशी में थे, अब पता नहीं क्या हुआ है।
  • यहाँ आकर बाप का बनना बड़ी यात्रा है।
    • वहाँ तीर्थ यात्राओं पर जाते हैं तो कितने पैसे खर्च करते हैं।
    • अब यहाँ तो दान करने की बात नहीं।
    • इनमें कुछ भी पैसा खर्च नहीं करना है।
    • वह है जिस्मानी यात्रायें, तुम्हारी है रूहानी यात्रा।
    • जिस्मानी यात्रा से फायदा कुछ भी नहीं।
    • गीत में भी है ना - चारों ओर लगाये फेरे फिर भी जन्म-जन्मान्तर दूर रहे।
    • अभी तुम समझते हो कितनी ढेर यात्रायें की होगी।
    • कहाँ न कहाँ मनुष्य जाते जरूर हैं।
    • हरि-द्वार में गंगाजी पर जरूर जाते हैं।
    • पतित-पावनी गंगा समझते हैं ना।
    • अब वास्तव में तुम हो सच्ची-सच्ची ज्ञान गंगायें।
    • तुम्हारे पास भी बहुत आकर ज्ञान स्नान करते हैं।
  • बाबा ने समझाया है - सतगुरू एक ही है।
    • सर्व का सद्गति दाता सिवाए एक सतगुरू के और कोई गुरू नहीं।
    • बाप कहते हैं - मैं तुमको कल्प-कल्प संगमयुग पर आकर सद्गति दे पुजारी से पूज्य बनाता हूँ।
    • फिर तुम पुजारी बन दु:खी बन जाते हो।
    • यह भी अभी पता पड़ा है।
  • बरोबर हमारा आधा-कल्प राज्य चलता है फिर द्वापर में हम सो देवी-देवता वाम मार्ग में चले जायेंगे।
    • जब रावण राज्य शुरू होता है तब से ही वाम मार्ग शुरू होता है।
    • उनकी भी निशानियां हैं।
    • जगन्नाथ के मन्दिर में जाओ तो अन्दर काली मूर्ति है।
    • बाहर में देवताओं के गन्दे चित्र हैं।
    • उस समय अपने को भी थोड़े ही समझ में आता था कि क्या है।
    • विकारी मनुष्य विकारी दृष्टि से देखेंगे।
    • तो समझते थे, देवतायें भी विकारी थे।
    • यह लिखा हुआ है देवतायें वाम मार्ग में जाते हैं।
    • ड्रेस भी देवताओं की दी है।
  • यहाँ भी देलवाड़ा मन्दिर में जाओ तो ऊपर में स्वर्ग लगा हुआ है।
    • नीचे तपस्या में बैठे हैं।
    • इन सब राज़ों को और कोई जानते नहीं हैं।
    • बाबा का तो अनुभवी रथ है ना।
    • तुम बच्चे अब समझ रहे हो - आत्मायें और परमात्मा अलग रहे बहुकाल... तुम जो पहले अलग हुए हो फिर तुम ही आकर पहले मिलते हो।
  • सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स है श्रीकृष्ण।

    • कृष्ण का बाप भी तो होगा ना।
    • कृष्ण के माँ बाप का इतना कुछ दिखाते नहीं हैं।
    • सिर्फ दिखाते हैं माथे पर रखकर नदी से उस पार ले गया।
    • राजाई आदि कुछ नहीं दिखाई है।
    • उनके बाप की महिमा क्यों नहीं है!
    • अभी तुम जानते हो इस समय कृष्ण की आत्मा ने अच्छी रीति पढ़ाई पढ़ी है।
    • जिस कारण माँ बाप से भी ऊंच पद पाया है।
  • तुम समझते हो हम श्रीकृष्ण की राजधानी में थे, स्वर्ग में तो थे ना।
    • फिर हम चन्द्रवंशी बने।
    • अब फिर सूर्यवंशी बनने के लिए श्रीमत पर चल पावन बन पावन दुनिया के मालिक बनेंगे।
    • हर एक अपनी अवस्था को देख सकते हो।
    • अगर हम इस समय शरीर छोड़ दें तो किस गति को पायेंगे।
    • हर एक समझ सकते हैं।
    • जितना बाप को याद करेंगे उतने विकर्म विनाश होंगे।
  • मनुष्य के ऊपर कोई आफतें वा दु:ख आता है वा देवाला निकालते हैं तो साधुओं का जाकर संग करते हैं।
    • फिर मनुष्य समझते यह तो भगत आदमी है।
    • ठगी थोड़ेही करेंगे।
    • ऐसे-ऐसे भी दो चार वर्ष में बहुत धनवान हो जाते हैं।
    • उन्हों के बहुत छिपे हुए पैसे होते हैं।
    • हर एक अपनी बुद्धि से समझ सकते हैं।
  • तुम्हारे में भी बहुत हैं जो बहुत कम याद करते हैं इसलिए बाबा कहते हैं अपना कल्याण चाहते हो तो अपने पास नोटबुक रखो।
    • चार्ट नोट करो।
    • हम सारे दिन में कितना समय याद में रहे।
    • मनुष्य तो सारी जीवन की भी हिस्ट्री लिखते हैं।
    • तुमको तो सिर्फ याद का चार्ट लिखना है, अपनी ही उन्नति है।
    • बाबा को याद नहीं करेंगे तो ऊंच पद पा नहीं सकेंगे।
  • विकर्म विनाश ही नहीं होंगे तो ऊंच पद कैसे पायेंगे।
    • फिर सजायें खानी पड़ेगी।
    • मोचरा जो नहीं खायेंगे तो पद अच्छा मिलेगा।
    • मोचरा खाकर फिर कुछ थोड़ा बहुत पद पाना वह क्या काम का।
    • धर्मराज का मोचरा न खायें, बेइज्जती न हो - यह पुरुषार्थ करना है।
    • तुम देखते हो शिवबाबा बैठा रहता है फिर धर्मराज भी है।
    • तुमको सब साक्षात्कार कराते हैं।
    • तुमने यह-यह किया था, याद है?
    • अब खाओ सजा।
    • फिर उसी समय सजायें उतनी ही खाते हैं, जितनी जन्म-जन्मान्तर खाते हैं।
    • पिछाड़ी में थोड़ा रोटी टुक्कड़ मिला, उससे क्या फायदा।
    • मोचरा तो नहीं खाना चाहिए।
    • अपनी अवस्था की जांच करनी है।
    • जैसे पोतामेल निकालते हैं।
    • कोई 6 मास का, कोई 12 मास का।
    • कोई तो रोज़ का भी निकालते हैं।
  • बाप कहते हैं - तुम भी व्यापारी हो।
    • कोई विरला व्यापारी बेहद के बाप से व्यापार करे।
    • धन नहीं तो तन-मन तो है ना।
    • उनको शर्राफ भी कहते हैं।
    • मट्टा सट्टा करते हैं ना।
    • तुम तन-मन-धन देते हो रिटर्न में 21 जन्म के लिए कितना वर्सा पाते हो।
    • बाबा हम आपका हूँ।
    • ऐसी युक्ति बताओ जो हमारी आत्मा और शरीर इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बन जाये।
  • बाबा कहते मैं तुमको कितना गोरा बनाता हूँ।
    • एकदम रूप ही बदल देता हूँ।
    • दूसरे जन्म में तुमको फर्स्टक्लास शरीर मिलेगा।
    • तुम वैकुण्ठ में भी देखते हो।
    • तुम जानते हो यह मम्मा बाबा फिर लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
    • एम आबजेक्ट भी दिखाते हैं।
    • अब जो जितना पुरुषार्थ करे।
    • अगर पुरुषार्थ पूरा नहीं करेंगे, धमपा मचायेंगे तो अपना पद ही भ्रष्ट करेंगे।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) अपनी अवस्था की जांच स्वयं ही करनी है।
    • अपने कल्याण के लिए डेली डायरी रखनी है, जिसमें याद का चार्ट नोट करना है।
  • 2) बेहद के बाप से सच्चा-सच्चा व्यापार करना है।
    • अपना तन-मन-धन बाप हवाले कर 21 जन्मों के लिए रिटर्न लेना है।
    • निश्चयबुद्धि बन अपना कल्याण करना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • पहली श्रीमत पर विशेष अटेन्शन दे फाउण्डेशन को मजबूत बनाने वाले सहजयोगी भव
  • बापदादा की नम्बरवन श्रीमत है कि अपने को आत्मा समझकर बाप को याद करो।
  • यदि आत्मा के बजाए अपने को साधारण शरीरधारी समझते हो तो याद टिक नहीं सकती।
  • वैसे भी कोई दो चीजों को जब जोड़ा जाता है तो पहले समान बनाते हैं, ऐसे ही आत्मा समझकर याद करो तो याद सहज हो जायेगी।
  • यह श्रीमत ही मुख्य फाउण्डेशन है।
  • इस बात पर बार-बार अटेन्शन दो तो सहजयोगी बन जायेंगे।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • कर्म आत्मा का दर्शन कराने वाला दर्पण है इसलिए कर्म द्वारा शक्ति स्वरूप को प्रत्यक्ष करो।