20-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
"बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - इस सभा में बाहरमुखी बनकर नहीं बैठना है, बाप की याद में रहना है, मित्र सम्बन्धी अथवा धन्धे आदि को याद करने से वायुमण्डल में विघ्न पड़ता है''
प्रश्नः-
तुम बच्चों के रूहानी ड्रिल की विशेषता क्या है, जिसे मनुष्य नहीं कर सकते?
उत्तर:-
तुम्हारी रूहानी ड्रिल बुद्धि की है, उसकी विशेषता यही है जो तुम आशिक बन अपने माशुक को याद करते हो।
इसका ही इशारा गीता में भी आया है - मनमनाभव।
परन्तु मनुष्य अपने माशुक परमात्मा को जानते ही नहीं तो ड्रिल कैसे कर सकेंगे।
वे तो एक दो को जिस्मानी ड्रिल सिखलाते हैं।
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ओम् शान्ति।
- बच्चे भी समझते हैं, बाप भी समझते हैं कि बच्चे (योग कराने वाले) यहाँ क्या कर रहे हैं!
- याद के यात्रा की ड्रिल करा रहे हैं।
- मुख से कुछ भी कहने का नहीं है।
- किसकी याद है?
- परमपिता परमात्मा शिवबाबा की।
- उनकी याद में रहने से हमारे जो भी विकर्म हैं, वह भस्म हो जायेंगे और विकर्माजीत बन जायेंगे, जितना जो याद की ड्रिल में रहेंगे।
- यह आत्मा की ड्रिल है, शरीर की नहीं।
- भारत में जो भी ड्रिल सिखाते हैं, वह सब हैं जिस्मानी, यह है रूहानी ड्रिल।
- इस रूहानी ड्रिल को तुम बच्चों के सिवाए कोई जानते ही नहीं।
- रूहानी ड्रिल का इशारा गीता में है जरूर।
- भगवानुवाच अथवा भगवान के बच्चों का भी वाच है।
- तुम अभी भगवान शिवबाबा के बच्चे बने हो ना।
- बच्चों को फरमान मिला है - मामेकम् याद करो।
- बाप भी ड्रिल सिखलाते हैं।
- बच्चे भी यही ड्रिल सिखलाते हैं।
- कल्प पहले भी बाप ने यही कहा था कि मुझ बाप को याद करो।
- इसमें घड़ी-घड़ी कहने की दरकार नहीं है, परन्तु कहना पड़ता है।
- यहाँ बैठे कोई अपने मित्र-सम्बन्धियों, धन्धे आदि को याद करते रहते हैं तो वायुमण्डल में विघ्न डालते हैं।
- बाप कहते हैं - जैसे यहाँ तुम याद में बैठे हो ऐसे ही चलते फिरते, कर्म करते हुए याद में रहना है।
- जैसे आशिक माशुक एक दो को याद करते हैं।
- उन्हों की याद है जिस्मानी।
- तुम्हारी है रूहानी याद।
- आत्मायें भक्ति मार्ग में भी आशिक होती हैं परमपिता परमात्मा माशुक की।
- परन्तु माशुक को जानते नहीं हैं, न अपनी आत्मा को जानते हैं।
- माशुक बाप आया हुआ है।
- भक्ति मार्ग से लेकर आत्मायें आशिक बनी हैं।
- यह है ही आत्माओं और परमात्मा की बात।
- बाप बच्चों को सम्मुख कहते हैं - तुम आशिक मुझ माशुक को याद करते हो कि बाबा आओ।
- हमको आकर दु:ख से लिबरेट करो और अपने साथ शान्तिधाम में ले चलो।
- तुम जानते हो अब इस दु:खधाम, मृत्युलोक का विनाश होना है।
- अमरलोक जिंदाबाद, मृत्युलोक मुर्दाबाद।
- तुम अभी ब्राह्मण बच्चे बने हो, तुम्हारे में भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार हैं।
- तुम बच्चों को पूरा निश्चय होना चाहिए कि हम अब नर्कवासी से स्वर्गवासी 21 जन्म लिए बनते हैं।
- कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्गवासी हुआ।
- परन्तु कितने समय के लिए स्वर्गवासी हुआ... यह कोई भी नहीं जानते हैं।
- अब तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - स्वर्गवासी बनने के लिए।
- यह कौन निश्चय कराते हैं!
- वह है गीता का भगवान।
- परन्तु वह तो एक ही निराकार होता है।
- मनुष्य समझते हैं - निराकार तो निराकार ही है।
- वह कैसे यहाँ आकर सिखायेंगे?
- बाप को न जानने के कारण ड्रामा अनुसार कृष्ण का नाम भूल से डाल दिया है।
- कृष्ण और शिव का सम्बन्ध इस समय नजदीक है।
- शिव जयन्ती होती है संगम पर।
- फिर कल होगी कृष्ण जयन्ती।
- शिव जयन्ती है रात में, कृष्ण जयन्ती है सवेरे, उसको प्रभात कहेंगे।
- जब शिवरात्रि पूरी होती है तब फिर कृष्ण जयन्ती होती है।
- यह बातें बच्चे ही समझ सकते हैं, कायदा है - यहाँ सभा में कोई बाहरमुखी न हो।
- बाप की याद में रहना है।
- मनुष्य पुकारते भी हैं हे पतित-पावन आओ, आकर पावन बनाओ।
- परन्तु ड्रामा अनुसार पत्थरबुद्धि कुछ भी समझते नहीं।
- अगर जानते होते तो बताते।
- उनको यह भी पता नहीं है कि अभी कलियुग का अन्त है फिर जब बाप आते हैं तब आदि होती है।
- मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं।
- लोग समझते हैं कलियुग में अजुन 40 हजार वर्ष पड़े हैं।
- बेहद का बाप समझाते हैं हद का बाप कब पतित-पावन हो न सकें।
- बापू नाम तो बहुतों के रख दिये हैं।
- बुजुर्ग को भी बापू अथवा पिताजी कहते हैं।
- यह रूहानी पिताश्री तो एक ही है जो पतित-पावन, ज्ञान का सागर है।
- बच्चों को पावन होने के लिए ज्ञान चाहिए।
- पानी में स्नान करने से कोई पावन थोड़ेही बनेंगे।
- तुम जानते हो शिवबाबा हमारे सामने इस तन में प्रत्यक्ष है।
- ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मणों को राजयोग सिखा रहे हैं।
- वह तो कह देते हैं भगवानुवाच अर्जुन प्रति।
- ब्राह्मणों का नाम निशान नहीं है।
- गाया जाता है ब्रह्मा द्वारा स्थापना, विष्णु द्वारा पालना।
- स्थापना तो ब्रह्मा द्वारा ही करेंगे, न कि विष्णु द्वारा, न शंकर द्वारा।
- तुम बच्चों को यह समझानी अब मिली है।
- बाप को यहाँ आना पड़ता है, वापिस तो कोई भी आत्मा जा नहीं सकती।
- जो भी आते हैं उनको सतो रजो तमो से पास करना ही है।
- कृष्ण भी पूरे 84 जन्म लेते हैं और पूरे 5 हजार वर्ष पार्ट बजाया।
- जब आत्मा पेट में है तो भी जन्म तो है।
- कृष्ण की आत्मा जब सतयुग में आती है, गर्भ में प्रवेश किया तब से लेकर 5 हजार वर्ष में 84 जन्मों का पार्ट बजाना है।
- जैसे शिवजयन्ती मनाते हैं तो इसमें बैठा है ना।
- कृष्ण की आत्मा भी गर्भ में आई चुरपुर हुई, उस समय से लेकर 5 हजार वर्ष का हिसाब शुरू होता है।
- अगर कम जास्ती हो तो फिर 5 हजार वर्ष में कम हो जाए।
- यह बड़ी सूक्ष्म समझने की बातें हैं।
- बच्चे जानते हैं कृष्ण की आत्मा फिर से यह ज्ञान ले रही है, फिर से श्रीकृष्ण बनने के लिए।
- तुम भी कंसपुरी से कृष्णपुरी में जाते हो।
- यह बातें बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।
- बाबा कहते हैं - माया बड़ी दुश्तर है।
- अच्छे-अच्छे महारथियों को भी हरा देती है।
- ज्ञान लेते-लेते कहाँ ग्रहचारी बैठ जाती है।
- आश्चर्यवत हमारा बनन्ती, कथन्ती... अहो माया फिर भी भागन्ती हो जाते हैं।
- कमाई में ग्रहचारी बैठ जाती है।
- राहू का ग्रहण सबको लगा हुआ है।
- अभी तुम्हारे पर ब्रहस्पति की दशा बैठी है फिर चलते-चलते कोई पर राहू का ग्रहण बैठ जाता है, तब कहते हैं महान कमबख्त इस दुनिया में देखना हो तो यहाँ देखो।
- तुम्हारी आत्मा कहती है - हम बाप से सदा सुख का वर्सा ले रहे हैं।
- बाबा आप से कल्प पहले भी यह वर्सा लिया था।
- फिर से अब बाप के पास आये हैं।
- बाप ने समझाया है - बाहर तुम्हारे सेन्टर्स पर बहुत आयेंगे समझने के लिए।
- यहाँ यह है इन्द्र सभा।
- इन्द्र शिवबाबा है ना, जो ज्ञान वर्षा बरसाते हैं।
- तो ऐसी सभा में पतित कोई आ नहीं सकता।
- सब्ज परी, पुखराज परी जो ब्राह्मणियां पण्डा बन आती हैं, उनको कहेंगे अपने साथ कोई भी विकार में जाने वाले को नहीं ला सकते हो।
- नहीं तो दोनों रेसपान्सिबुल हो जाते हैं।
- किसी विकारी को साथ ले आये तो उन पर बहुत दाग लग जाते हैं।
- फिर बहुत भारी सजा मिल जाती है।
- परियों के ऊपर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है।
- कहते हैं - मानसरोवर पर स्नान करने से परी बन जाते हैं।
- वास्तव में यह है ज्ञान मानसरोवर।
- बाबा मनुष्य तन में आकर ज्ञान वर्षा बरसाते हैं।
- ज्ञान सागर है ना।
- तुम नदी भी हो, सरोवर भी हो, ज्ञान सागर इसमें बैठ बच्चों को लायक बनाते हैं - स्वर्ग में जाने के लिए।
- स्वर्ग में है श्री लक्ष्मी-नारायण का राज्य।
- यह है प्रवृत्ति मार्ग का एम आब्जेक्ट।
- कहते हैं हम दोनों ज्ञान चिता पर बैठ लक्ष्मी-नारायण बनने वाले हैं।
- ऊंच पद पाना है ना।
- आधाकल्प आत्मायें तड़पती रहती हैं।
- बाबा आओ आकर हमको राजयोग सिखलाए पावन बनाओ।
- बाप इशारा देते हैं।
- भारतवासी जो देवी-देवताओं को मानने वाले हैं उन्होंने जरूर 84 जन्म भोगे हैं।
- जो देवी-देवताओं के भगत हैं, कोशिश कर उनको समझाओ।
- बाप कैसे आकर 3 धर्म स्थापन करते हैं।
- ब्राह्मण, सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, तीनों धर्म बाप स्थापन करते हैं।
- आधाकल्प फिर और कोई धर्म स्थापन नहीं होता है।
- फिर आधाकल्प में कितने मठ पंथ आदि धर्म ढेर के ढेर स्थापन होते हैं।
- कहाँ आधाकल्प में एक धर्म सो भी संगमयुग पर भविष्य के लिए राजधानी स्थापन करते हैं।
- वह सब पुरानी दुनिया में ही अपना धर्म स्थापन करते हैं।
- यहाँ बाप आधाकल्प के लिए एक धर्म की स्थापना करते हैं।
- कोई और में पावर नहीं।
- बाप तुमको अपना बनाकर, सूर्यवंशी चन्द्रवंशी घराना स्थापन कर बाकी सबका विनाश करा देते हैं।
- सभी आत्मायें शान्ति में चली जाती हैं।
- तुम सुख में आते हो, उस समय दु:ख कोई है नहीं, जो गॉड को याद करे।
- यह ज्ञान भी तुम्हारी बुद्धि में है।
- तुम जानते हो - बाप जो ज्ञान का सागर है, वह नॉलेज दे रहे हैं।
- सागर तो एक ही है।
- तुम अपने को सागर नहीं कहलायेंगे।
- तुम उनके मददगार बनते हो इसलिए तुम्हारा नाम है ज्ञान गंगायें।
- बाकी वह हैं पानी की नदियां।
- बाप कहते हैं - मुझ सागर के तुम बच्चे काम चिता पर बैठ जल मरे हो अर्थात् पतित बन पड़े हो।
- अब फिर मुझे याद करने से ही तुम पावन बनेंगे।
- यह सृष्टि का चक्र 5 हजार वर्ष का है।
- यह भी किसको पता नहीं है।
- सृष्टि का चक्र पूरे 4 भाग में है।
- 4 युग हैं ना।
- यह संगमयुग है कल्याणकारी।
- कुम्भ कहते हैं ना।
- कुम्भ कहा जाता है - मेले को।
- नदी आकर सागर से मिलती है।
- आत्मा आकर परमात्मा से मिलती है, इसको कुम्भ कहते हैं।
- आत्मा और परमात्मा का मेला भी तुम देखते हो।
- तुम आपस में मिलते हो, सेमीनार करते हो, इसको कुम्भ नहीं कहेंगे।
- सागर तो अपनी जगह पर बैठे हैं।
- इस तन में हैं ना।
- जहाँ इनका तन वहाँ ज्ञान का सागर है।
- बाकी तुम आपस में ज्ञान गंगायें मिलती हो।
- नदियां छोटी-बड़ी तो होती हैं ना।
- वहाँ स्नान करने जाते हैं।
- गंगा जमुना सरस्वती आदि तो हैं ही।
- देहली जमुना का कण्ठा है - स्वर्ग।
- कृष्णपुरी तो होती है।
- देहली के लिए कहते हैं-परिस्तान था।
- जब लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- ऐसे नहीं कि कृष्ण का राज्य था।
- राधे कृष्ण युगल हों तब राज्य कर सकें।
- अब तुम बच्चे कितने खुशी में हो।
- माया के तूफान तो बहुत आयेंगे।
- बेहद की बॉक्सिंग हैं।
- हर एक की 5 विकारों के साथ युद्ध चलती है।
- हम चाहते हैं बाबा को निरन्तर याद करें।
- माया हमारा योग उड़ा देती है।
- एक खेल भी दिखाते हैं - परमात्मा अपनी तरफ खींचते हैं, माया अपनी तरफ।
- ऐसा एक नाटक बनाया है।
- बाइसकोप का फैशन अभी निकला है।
- तुमको ड्रामा अनुसार बाइसकोप पर ही समझाना था।
- नाटक में तो बदली-सदली होती है।
- यह तो अनादि अविनाशी ड्रामा बना बनाया है।
- बनी बनाई बन रही...... फलाना मर गया इतना ही पार्ट था, हम चिंता क्यों करें।
- ड्रामा है ना।
- शरीर छोड़ दिया फिर थोड़ेही आ सकता।
- रोने से फायदा ही क्या?
- इसका नाम ही है दु:खधाम।
- सतयुग में मोहजीत राजायें होते हैं।
- इस पर कहानी भी है।
- सतयुग में मोह की बात होती नहीं।
- यहाँ तो मनुष्यों का कितना मोह है।
- किसको रोना न आये तो रोकर भी उनको रुला देंगे।
- तो समझें कि यह अफसोस करते हैं।
- नहीं तो ग्लानी हो जाए।
- भारत में ही यह सब रिवाज है।
- भारत में ही सुख, भारत में ही बहुत दु:ख होता है।
- भारत में गॉड गॉडेज राज्य करते थे।
- विदेशी लोग पुराने चित्र बड़ी खुशी से लेते हैं।
- पुरानी चीज़ का मान होता है।
- सबसे पुराना शिव तो यहाँ आया था ना, उनकी कितनी पूजा करते हैं।
- अब तो शिवबाबा आया है, तुम पूजा नही करेंगे।
- वह होकर गया है तो उनकी पूजा करते रहते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) ड्रामा के ज्ञान को बुद्धि में रख निश्चिंत बनना है।
- किसी भी प्रकार की चिंता नहीं करनी है क्योंकि जानते हैं बनी बनाई बन रही... निर्मोही बनना है।
- 2) बाप द्वारा जबकि ब्रहस्पति की दशा बैठी है तो सम्भाल करनी है, राहू का ग्रहण न लग जाए।
- कोई भी ग्रहचारी हो तो उसे ज्ञान दान से समाप्त करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सदा मनन द्वारा मगन अवस्था के सागर में समाने का अनुभव करने वाले अनुभवी मूर्त भव
- अनुभवों को बढ़ाने का आधार है मनन शक्ति।
- मनन वाला स्वत: मगन रहता है।
- मगन अवस्था में योग लगाना नहीं पड़ता लेकिन निरन्तर लगा रहता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती।
- मगन अर्थात् मुहब्बत के सागर में समाया हुआ, ऐसा समाया हुआ जो कोई अलग कर नहीं सकता।
- तो मेहनत से छूटो, सागर के बच्चे हो तो अनुभवों के तलाब में नहीं नहाओ लेकिन सागर में समा जाओ तब कहेंगे अनुभवी मूर्त।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- ज्ञान स्वरूप आत्मा वह है जिसका हर संकल्प, हर सेकण्ड समर्थ हो।
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