07-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम यहाँ आये हो अपने सहित सारी दुनिया की काया-कल्पतरू बनाने, याद से ही काया-कल्पतरू होगी''

प्रश्नः-

नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने की विधि कौन सी है? अभी तुम बच्चों को जीयदान मिलता है कैसे?

उत्तर:-

नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने के लिए जरूर मरना पड़े।

बाबा कहते मैं आया हूँ तुम सबको मौत देने।

तुम्हारी इस देह को खत्म कराए बाकी आत्माओं को ले जाऊंगा।

यही सच्चा जीयदान है।

इसके लिए यह महाभारत लड़ाई है, जिसमें सबका विनाश होगा।

फिर आत्मायें पावन बन वापस घर जायेंगी।

फिर स्वर्ग में आयेंगी।

गीत:- माता ओ माता......

 

गीत:- माता ओ माता......


  • ओम् शान्ति।
  • मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन सुनी।
    • जगत अम्बा की महिमा सुनी।
    • जगत अम्बा यहाँ भारत में ही गाई जाती है।
    • जगत अम्बा है तो जगत पिता भी जरूर होगा।
    • जगत अम्बा सरस्वती को ही कहते हैं।
    • वास्तव में उनका नाम एक ही होना चाहिए।
    • तुम्हारा भी नाम एक ही है ना।
    • 2-3 तो नहीं हैं।
    • अब जगत अम्बा को बरोबर साकार में दिखाते हैं, शरीरधारी है।
    • जगतपिता भी है, जिसको प्रजापिता भी कहा जाता है।
    • जैसे सारे जगत की अम्बा है, वैसे सारे जगत का पिता है।
    • जरूर दोनों ही यहाँ होंगे।
    • दोनों का नाम भी सुनाया।
    • दोनों हैं प्रजापिता और प्रजा माता।
  • अब दूसरा जगत पिता कहा जाता है निराकार शिवबाबा को।
    • जोकि सबके पिता हैं, उनका नाम ही है परमपिता परम आत्मा शिव।
    • सिर्फ ईश्वर वा परमात्मा नहीं कहना है।
    • उनका नाम रूप भी है ना, उनको गॉड फादर कहा जाता है।
    • एक है आत्माओं का बाप, दूसरा है साकारी मनुष्य आत्माओं का बाप और मम्मा।
    • शिव है आत्माओं का पिता।
    • आत्मा कहती है वह हमारा बाप है।
    • फिर आत्मा को यह साकार शरीर मिलता है तो कहते हैं ब्रह्मा बाबा, तो दो बाप हो गये।
  • एक शिवबाबा, दूसरा प्रजापिता ब्रह्मा।
    • शिवबाबा का बच्चा है ब्रह्मा।
    • एक निराकार पिता एक साकारी पिता।
    • निराकार पिता को कहा जाता है पतित-पावन।
    • ब्रह्मा वा सरस्वती को पतित-पावन नहीं कहा जाता।
    • पतित-पावन तो एक है, यह दो हो गये।
    • सब पुकारते हैं - पतित-पावन आओ तो दो बाप हो गये।
  • शिवबाबा है रचयिता।
    • नई दुनिया रचते हैं।
    • तो पहले ब्रह्मा को जरूर रचना है।
    • विष्णु और शंकर को कभी प्रजापिता नहीं कहते हैं।
    • ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहते हैं।
    • तो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं।
    • कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं।
    • शिवबाबा ने इसमें प्रवेश कर एडाप्ट किया है।
    • वही आत्माओं को पावन बनाते हैं, आत्मा ही पतित बनी है।
    • इस कारण शरीर भी पतित मिलता है।
    • सोने में चांदी, ताम्बे, लोहे की खाद डालते हैं तो आत्मा में भी खाद पड़ती है।
    • असुल में आत्मा पवित्र मुक्तिधाम में रहने वाली है, जहाँ शिवबाबा भी रहते हैं।
    • अब शिवबाबा, प्रजापिता ब्रह्मा - एक को बाप, एक को दादा कहेंगे।
    • यह तो तुम जानते हो सब मनुष्य-मात्र शिव की सन्तान हैं।
    • शिववंशी फिर हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां।
    • शिवबाबा और दादा इकट्ठे हैं।
    • शिवबाबा इसमें विराजमान हैं, हमको ब्राह्मण बनाए राजयोग सिखाते हैं, मनुष्य को देवता बनाने।
  • देवतायें रहते हैं सतयुग में।
    • देवताओं को पतित-पावन, ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता।
    • उनको बाबा भी नहीं कहा जा सकता।
    • अब तुम विष्णुपुरी के मालिक बन रहे हो।
    • विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं, यह मनुष्य नहीं जानते।
    • जो भक्ति करते हैं उनको दो बाप जरूर हैं।
    • सतयुग में एक बाप होता है।
    • वहाँ ऐसे नहीं कहते कि हे परमपिता परमात्मा, दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ।
    • वहाँ तो देवी-देवताओं का राज्य था।
    • वे कभी हे गॉड फादर, लिबरेटर नहीं कहेंगे।
    • वहाँ कोई पतित दु:खी होते ही नहीं, जो पतित-पावन को बुलायें।
    • तुम जानते हो भारत में आज से 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था।
    • पीछे फिर 1250 वर्ष बाद होता है राम सीता का राज्य।
    • बाप सिद्ध कर बताते हैं - सतयुग त्रेता में तुमने 21 जन्म लिए।
    • ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय... सब भारत में ही बनते हैं।
  • बाप आकर पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं।
    • रिज्युवनेट करते हैं।
    • काया-कल्पतरू बनाते हैं।
    • अमर बनाते हैं।
    • तुम बच्चों को बाप आकर अमरलोक का मालिक बनाते हैं।
    • जब भारत अमर-लोक था तब देवताओं का राज्य था।
    • सीढ़ी उतरते-उतरते मृत्युलोक के आकर मालिक बने हैं।
    • कहते हैं ना - हमारा भारत, तो प्रजा भी मालिक हुई ना।
    • तुम भी कहेंगे हमारा भारत।
    • हम भारत के मालिक थे परन्तु नर्कवासी।
    • देवतायें कहेंगे हम स्वर्गवासी हैं।
    • तुम भी स्वर्गवासी थे फिर 84 जन्म भोग नर्कवासी बने हो।
    • यहाँ भारत में ही शिवबाबा जन्म लेते हैं।
  • शिवरात्रि और शिव जयन्ती गाई जाती है।
    • कृष्ण जयन्ती भी मनाते हैं, उनकी तो वेला भी बताते हैं।
    • फलाने समय माता के गर्भ से जन्म हुआ।
    • सतयुग में जन्म तो जरूर माता के गर्भ से लिया होगा।
    • कृष्ण जयन्ती होती है सतयुग नई दुनिया में, फिर पुनर्जन्म में आने लगा।
    • बाबा सिर्फ एक की बात नहीं करते।
    • कृष्णपुरी सो विष्णुपुरी।
  • राजायें उतरते हैं तो सारी डिनायस्टी उतरती है।
    • उसमें राजा-रानी प्रजा सब आ जाते हैं।
    • जब चन्द्रवंशी का राज्य होता है तो सूर्यवंशी का राज्य पास्ट हो गया।
    • ट्रांसफर होकर चन्द्रवंशियों को मिलता है फिर वैश्यवंशियों को मिलता है।
    • अब तुम समझते हो - हम ब्राह्मण कुल के हैं चोटी।
    • चोटी के ऊपर है बाप।
    • हम पहले ब्राह्मण थे फिर शूद्र अथवा पैर बनें।
    • पैर से एकदम चोटी बनते हैं।
    • पहले शिवबाबा फिर है चोटी।
    • बाबा ने तुमको ब्राह्मण बनाया है।

  • अब तुम शिवबाबा को बाबा-बाबा कहते हो।
    • इस हिसाब से पोत्रे-पोत्रियां हो गये।
    • तुम जानते हो कि हम सब ब्रह्मा की सन्तान हैं - ब्राह्मण-ब्राह्मणियां।
    • एक बाप के हम सब बच्चे हैं।
    • भाई-बहिन कब क्रिमिनल एसाल्ट कर नहीं सकते।
    • कितने ढेर बच्चे सब कहते हैं बाबा... तो इतने सब झूठे थोड़ेही हो सकते।
    • सबका बाप तो वही निराकार शिव और साकार प्रजापिता ब्रह्मा है, बस।
    • एक बाप के बच्चे भाई-बहिन ठहरे।
    • तुमको पवित्र जरूर बनना है।
    • स्त्री-पुरुष पवित्र कैसे बनें, इसलिए यह युक्ति ड्रामा में नूँधी हुई है।
    • यहाँ सिर्फ ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं।
    • कोई शूद्र कुमार-कुमारी है नहीं।
    • वह है पतित, शूद्र, तुच्छ बुद्धि क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। कहते हैं ओ गॉड फादर।
    • अच्छा, उनका आक्यूपेशन पता है?
    • नाम, रूप, देश, काल बताओ।
    • उनकी जीवन कहानी बताओ।
    • अगर नहीं जानते हो तो नास्तिक ठहरे।
    • रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते।
    • वह है ही पतित दुनिया।
    • सतयुग पावन दुनिया, कलियुग को पतित दुनिया कहा जाता है।
  • इस समय बिल्कुल तमोप्रधान हैं, इनको रौरव नर्क कहा जाता है।
    • इनकी भी स्टेज़ेस होती हैं।
    • द्वापर से नर्क बनना शुरू होता है फिर वृद्धि को पाता है।
    • भक्ति भी पहले सतोप्रधान अव्यभिचारी थी फिर सतो रजो तमो होती है।
    • तुमने देखा होगा जहाँ 3 रास्ते मिलते हैं उसको टिवाटा कहते हैं।
    • उस पर तेल आदि चढ़ाते हैं, माथा झुकाते हैं।
    • अब कहाँ शिवबाबा की पूजा कहाँ टिवाटे की।
    • इसको कहा जाता है तमोप्रधान भक्ति।
    • पानी की भी पूजा करते हैं, पतित-पावनी गंगा बहुत गाते हैं।
    • अब पतित-पावन कौन?
    • पानी की गंगा कैसे पतित-पावनी हो सकती है!
    • वह तो पानी है ना।
    • पतित-पावन तो बाप है।
  • शिव जयन्ती भी भारत में होती है तो जरूर भारत में ही आता होगा - पतितों को पावन देवता बनाने।
    • ब्रह्मा तन में आकर मनुष्यों को देवता बनाते हैं।
    • यहाँ तुम आते ही हो पतित से पावन बनने।
    • जैसे तुम्हारी दो भुजायें हैं वैसे उन्हों की भी दो भुजायें हैं।
    • 4-8 भुजा वाला कोई मनुष्य होता नहीं।
    • यह अलंकार दे दिये हैं।
    • चतुर्भुज दिखाया है - प्रवृत्ति दिखाने के लिए।
    • विष्णुपुरी, लक्ष्मी-नारायण की पुरी को कहा जाता है।
  • वैष्णव अक्षर भी विष्णु से निकला है।
    • देवतायें वैष्णव थे।
    • वल्लभाचारी वैष्णव होते हैं वेजीटेरियन, वह कोई निर्विकारी नहीं होते हैं।
    • उन्हों की बड़ी हवेलियां होती हैं।
    • वैष्णव का अर्थ ही नहीं समझते हैं।
    • विष्णुपुरी में रहने वालों को वैष्णव कहा जाता है।
    • वैष्णव पवित्र को कहा जाता है।
    • राधे-कृष्ण का अलग मन्दिर।
    • लक्ष्मी-नारायण का अलग मन्दिर बना दिया है।
    • भारतवासी जानते ही नहीं कि उन्हों में क्या फ़र्क है।
  • राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, यह किसको भी पता नहीं।
    • वह है बचपन का रूप।
    • वह है बड़े पन का रूप।
    • लक्ष्मी-नारायण के छोटेपन के चित्र कोई हैं नहीं।
    • लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में, राधे-कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं।
    • अभी तुम रचयिता बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो।
  • बाबा झाड़ का भी राज़ समझाते हैं।
    • ड्रामा का भी राज़ समझाते हैं।
    • झाड़ को देखने से समझेंगे कि शंकराचार्य तो कलियुग में आते हैं।
    • संन्यासियों की डिनायस्टी सतयुग में तो हो नहीं सकती।
    • सब भगवान के बच्चे हैं तो स्वर्गवासी होने चाहिए।
    • परन्तु स्वर्गवासी तो सब होते नहीं हैं, सिर्फ देवतायें ही होते हैं।
    • अभी तुम ब्राह्मण वंशी बने हो फिर देवता बनेंगे।
    • पवित्र जरूर बनना है।
    • तुम जानते हो छोटे बड़े सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं।
    • दोनों कहते हैं - बाबा हम आपके बच्चे हैं, ब्राह्मण हैं।
    • यह है बापदादा - आदि देव ब्रह्मा और शिवबाबा।
    • तुम जानते हो हम ब्रह्मा बाबा और शिवबाबा के सामने बैठे हैं।
    • बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो पतित से पावन बन जायेंगे।
  • हम वर्सा शिवबाबा से लेते हैं।
    • शिवबाबा हमारा बाप भी है, पतित-पावन भी है, गुरू भी है।
    • अब यह है संगमयुग।
    • पतित से पावन बनने का मेला।
    • पतित-पावन द्वारा ही पावन बनते हैं।
  • संगम पर नदियों और सागर का मेला है।
    • नदियों का मेला तो होता नहीं।
    • अब ज्ञान सागर और तुम आत्माओं (बच्चों) का मेला लगता है।
    • तुम आये हो - ज्ञान सागर के पास।
    • ज्ञान गंगायें तुम ज्ञान सागर से निकली हुई हो।
    • तुम ज्ञान स्नान कराए पावन बनाते हो, योग सिखाते हो।
    • सागर का परिचय दे तुम यहाँ ले आये हो मेले पर।
  • इस समय तुम जब ब्राह्मण बनते हो तो तुमको 3 बाप हैं।
    • लौकिक पिता भी है और प्रजापिता भी है फिर शिवबाबा भी है।
    • भक्ति मार्ग में दो पिता होते हैं।
    • सतयुग में एक पिता होगा।
    • यह समझने की बातें हैं।
    • अभी तुम्हारी आत्मा कहती है मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
    • मित्र-सम्बन्धी आदि होते हुए भी कहते हैं मेरा तो एक शिवबाबा है।
    • उनकी याद से ही पतित से पावन बनना है।
    • आत्मा जानती है वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
    • हमारी आत्मा को बाप लेने आये हैं।
    • ब्रह्मा तन में प्रवेश कर पावन बनाते हैं।
  • तुमको ले जाने के लिए बाप आये हैं।
    • तुम सबको मौत देने आया हूँ।
    • नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने के लिए जरूर मरना पड़े ना।
    • तुम्हारी इस देह को खत्म कराए बाकी आत्माओं को ले जाऊंगा।
    • बाप कहते हैं - तुमको जीयदान देता हूँ।
  • यह महाभारत लड़ाई है ना।
    • सबका विनाश होगा।
    • नहीं तो कैसे ले जाऊंगा।
    • आत्माओं को पवित्र बनाए घर ले जाता हूँ।
    • वह तो शान्तिधाम है।
    • सतयुग आयेगा तो कलियुग जरूर विनाश होगा इसके लिए महाभारत लड़ाई मशहूर है।
    • लगती भी यह संगम पर है जबकि तुम मनुष्य से देवता बनते हो।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान कर स्वयं को पावन बनाना है।
    • मित्र-सम्बन्धियों के साथ रहते बुद्धि में रहे मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
  • 2) विष्णुपुरी में चलने के लिए पक्का वैष्णव अर्थात् पवित्र बनना है।
    • नर्क से जीते जी मरकर बुद्धियोग स्वर्ग में लगाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • धर्म और कर्म दोनों का ठीक बैलेन्स रखने वाले दिव्य वा श्रेष्ठ बुद्धिवान भव
  • कर्म करते समय धर्म अर्थात् धारणा भी सम्पूर्ण हो तो धर्म और कर्म दोनों का बैलेन्स ठीक होने से प्रभाव बढ़ेगा।
  • ऐसे नहीं जब कर्म समाप्त हो तब धारणा स्मृति में आये।
  • बुद्धि में दोनों बातों का बैलेन्स ठीक हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा दिव्य बुद्धिवान।
  • नहीं तो साधारण बुद्धि, कर्म भी साधारण, धारणायें भी साधारण होती हैं।
  • तो साधारणता में समानता नहीं लानी है लेकिन श्रेष्ठता में समानता हो।
  • जैसे कर्म श्रेष्ठ वैसे धारणा भी श्रेष्ठ हो।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अपने मन-बुद्धि को अनुभव की सीट पर सेट कर दो तो कभी अपसेट नहीं होंगे।