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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन सुनी।
- जगत अम्बा की महिमा सुनी।
- जगत अम्बा यहाँ भारत में ही गाई जाती है।
- जगत अम्बा है तो जगत पिता भी जरूर होगा।
- जगत अम्बा सरस्वती को ही कहते हैं।
- वास्तव में उनका नाम एक ही होना चाहिए।
- तुम्हारा भी नाम एक ही है ना।
- 2-3 तो नहीं हैं।
- अब जगत अम्बा को बरोबर साकार में दिखाते हैं, शरीरधारी है।
- जगतपिता भी है, जिसको प्रजापिता भी कहा जाता है।
- जैसे सारे जगत की अम्बा है, वैसे सारे जगत का पिता है।
- जरूर दोनों ही यहाँ होंगे।
- दोनों का नाम भी सुनाया।
- दोनों हैं प्रजापिता और प्रजा माता।
- अब दूसरा जगत पिता कहा जाता है निराकार शिवबाबा को।
- जोकि सबके पिता हैं, उनका नाम ही है परमपिता परम आत्मा शिव।
- सिर्फ ईश्वर वा परमात्मा नहीं कहना है।
- उनका नाम रूप भी है ना, उनको गॉड फादर कहा जाता है।
- एक है आत्माओं का बाप, दूसरा है साकारी मनुष्य आत्माओं का बाप और मम्मा।
- शिव है आत्माओं का पिता।
- आत्मा कहती है वह हमारा बाप है।
- फिर आत्मा को यह साकार शरीर मिलता है तो कहते हैं ब्रह्मा बाबा, तो दो बाप हो गये।
- एक शिवबाबा, दूसरा प्रजापिता ब्रह्मा।
- शिवबाबा का बच्चा है ब्रह्मा।
- एक निराकार पिता एक साकारी पिता।
- निराकार पिता को कहा जाता है पतित-पावन।
- ब्रह्मा वा सरस्वती को पतित-पावन नहीं कहा जाता।
- पतित-पावन तो एक है, यह दो हो गये।
- सब पुकारते हैं - पतित-पावन आओ तो दो बाप हो गये।
- शिवबाबा है रचयिता।
- नई दुनिया रचते हैं।
- तो पहले ब्रह्मा को जरूर रचना है।
- विष्णु और शंकर को कभी प्रजापिता नहीं कहते हैं।
- ब्रह्मा को ही प्रजापिता कहते हैं।
- तो शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं।
- कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं।
- शिवबाबा ने इसमें प्रवेश कर एडाप्ट किया है।
- वही आत्माओं को पावन बनाते हैं, आत्मा ही पतित बनी है।
- इस कारण शरीर भी पतित मिलता है।
- सोने में चांदी, ताम्बे, लोहे की खाद डालते हैं तो आत्मा में भी खाद पड़ती है।
- असुल में आत्मा पवित्र मुक्तिधाम में रहने वाली है, जहाँ शिवबाबा भी रहते हैं।
- अब शिवबाबा, प्रजापिता ब्रह्मा - एक को बाप, एक को दादा कहेंगे।
- यह तो तुम जानते हो सब मनुष्य-मात्र शिव की सन्तान हैं।
- शिववंशी फिर हैं ब्रह्माकुमार कुमारियां।
- शिवबाबा और दादा इकट्ठे हैं।
- शिवबाबा इसमें विराजमान हैं, हमको ब्राह्मण बनाए राजयोग सिखाते हैं, मनुष्य को देवता बनाने।
- देवतायें रहते हैं सतयुग में।
- देवताओं को पतित-पावन, ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता।
- उनको बाबा भी नहीं कहा जा सकता।
- अब तुम विष्णुपुरी के मालिक बन रहे हो।
- विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण हैं, यह मनुष्य नहीं जानते।
- जो भक्ति करते हैं उनको दो बाप जरूर हैं।
- सतयुग में एक बाप होता है।
- वहाँ ऐसे नहीं कहते कि हे परमपिता परमात्मा, दु:ख हर्ता सुख कर्ता आओ।
- वहाँ तो देवी-देवताओं का राज्य था।
- वे कभी हे गॉड फादर, लिबरेटर नहीं कहेंगे।
- वहाँ कोई पतित दु:खी होते ही नहीं, जो पतित-पावन को बुलायें।
- तुम जानते हो भारत में आज से 5 हजार वर्ष पहले देवी-देवताओं का राज्य था।
- पीछे फिर 1250 वर्ष बाद होता है राम सीता का राज्य।
- बाप सिद्ध कर बताते हैं - सतयुग त्रेता में तुमने 21 जन्म लिए।
- ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय... सब भारत में ही बनते हैं।
- बाप आकर पुरानी दुनिया को नया बनाते हैं।
- रिज्युवनेट करते हैं।
- काया-कल्पतरू बनाते हैं।
- अमर बनाते हैं।
- तुम बच्चों को बाप आकर अमरलोक का मालिक बनाते हैं।
- जब भारत अमर-लोक था तब देवताओं का राज्य था।
- सीढ़ी उतरते-उतरते मृत्युलोक के आकर मालिक बने हैं।
- कहते हैं ना - हमारा भारत, तो प्रजा भी मालिक हुई ना।
- तुम भी कहेंगे हमारा भारत।
- हम भारत के मालिक थे परन्तु नर्कवासी।
- देवतायें कहेंगे हम स्वर्गवासी हैं।
- तुम भी स्वर्गवासी थे फिर 84 जन्म भोग नर्कवासी बने हो।
- यहाँ भारत में ही शिवबाबा जन्म लेते हैं।
- शिवरात्रि और शिव जयन्ती गाई जाती है।
- कृष्ण जयन्ती भी मनाते हैं, उनकी तो वेला भी बताते हैं।
- फलाने समय माता के गर्भ से जन्म हुआ।
- सतयुग में जन्म तो जरूर माता के गर्भ से लिया होगा।
- कृष्ण जयन्ती होती है सतयुग नई दुनिया में, फिर पुनर्जन्म में आने लगा।
- बाबा सिर्फ एक की बात नहीं करते।
- कृष्णपुरी सो विष्णुपुरी।
- राजायें उतरते हैं तो सारी डिनायस्टी उतरती है।
- उसमें राजा-रानी प्रजा सब आ जाते हैं।
- जब चन्द्रवंशी का राज्य होता है तो सूर्यवंशी का राज्य पास्ट हो गया।
- ट्रांसफर होकर चन्द्रवंशियों को मिलता है फिर वैश्यवंशियों को मिलता है।
- अब तुम समझते हो - हम ब्राह्मण कुल के हैं चोटी।
- चोटी के ऊपर है बाप।
- हम पहले ब्राह्मण थे फिर शूद्र अथवा पैर बनें।
- पैर से एकदम चोटी बनते हैं।
- पहले शिवबाबा फिर है चोटी।
- बाबा ने तुमको ब्राह्मण बनाया है।
- अब तुम शिवबाबा को बाबा-बाबा कहते हो।
- इस हिसाब से पोत्रे-पोत्रियां हो गये।
- तुम जानते हो कि हम सब ब्रह्मा की सन्तान हैं - ब्राह्मण-ब्राह्मणियां।
- एक बाप के हम सब बच्चे हैं।
- भाई-बहिन कब क्रिमिनल एसाल्ट कर नहीं सकते।
- कितने ढेर बच्चे सब कहते हैं बाबा... तो इतने सब झूठे थोड़ेही हो सकते।
- सबका बाप तो वही निराकार शिव और साकार प्रजापिता ब्रह्मा है, बस।
- एक बाप के बच्चे भाई-बहिन ठहरे।
- तुमको पवित्र जरूर बनना है।
- स्त्री-पुरुष पवित्र कैसे बनें, इसलिए यह युक्ति ड्रामा में नूँधी हुई है।
- यहाँ सिर्फ ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं।
- कोई शूद्र कुमार-कुमारी है नहीं।
- वह है पतित, शूद्र, तुच्छ बुद्धि क्योंकि बाप को नहीं जानते हैं। कहते हैं ओ गॉड फादर।
- अच्छा, उनका आक्यूपेशन पता है?
- नाम, रूप, देश, काल बताओ।
- उनकी जीवन कहानी बताओ।
- अगर नहीं जानते हो तो नास्तिक ठहरे।
- रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को नहीं जानते।
- वह है ही पतित दुनिया।
- सतयुग पावन दुनिया, कलियुग को पतित दुनिया कहा जाता है।
- इस समय बिल्कुल तमोप्रधान हैं, इनको रौरव नर्क कहा जाता है।
- इनकी भी स्टेज़ेस होती हैं।
- द्वापर से नर्क बनना शुरू होता है फिर वृद्धि को पाता है।
- भक्ति भी पहले सतोप्रधान अव्यभिचारी थी फिर सतो रजो तमो होती है।
- तुमने देखा होगा जहाँ 3 रास्ते मिलते हैं उसको टिवाटा कहते हैं।
- उस पर तेल आदि चढ़ाते हैं, माथा झुकाते हैं।
- अब कहाँ शिवबाबा की पूजा कहाँ टिवाटे की।
- इसको कहा जाता है तमोप्रधान भक्ति।
- पानी की भी पूजा करते हैं, पतित-पावनी गंगा बहुत गाते हैं।
- अब पतित-पावन कौन?
- पानी की गंगा कैसे पतित-पावनी हो सकती है!
- वह तो पानी है ना।
- पतित-पावन तो बाप है।
- शिव जयन्ती भी भारत में होती है तो जरूर भारत में ही आता होगा - पतितों को पावन देवता बनाने।
- ब्रह्मा तन में आकर मनुष्यों को देवता बनाते हैं।
- यहाँ तुम आते ही हो पतित से पावन बनने।
- जैसे तुम्हारी दो भुजायें हैं वैसे उन्हों की भी दो भुजायें हैं।
- 4-8 भुजा वाला कोई मनुष्य होता नहीं।
- यह अलंकार दे दिये हैं।
- चतुर्भुज दिखाया है - प्रवृत्ति दिखाने के लिए।
- विष्णुपुरी, लक्ष्मी-नारायण की पुरी को कहा जाता है।
- वैष्णव अक्षर भी विष्णु से निकला है।
- देवतायें वैष्णव थे।
- वल्लभाचारी वैष्णव होते हैं वेजीटेरियन, वह कोई निर्विकारी नहीं होते हैं।
- उन्हों की बड़ी हवेलियां होती हैं।
- वैष्णव का अर्थ ही नहीं समझते हैं।
- विष्णुपुरी में रहने वालों को वैष्णव कहा जाता है।
- वैष्णव पवित्र को कहा जाता है।
- राधे-कृष्ण का अलग मन्दिर।
- लक्ष्मी-नारायण का अलग मन्दिर बना दिया है।
- भारतवासी जानते ही नहीं कि उन्हों में क्या फ़र्क है।
- राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं, यह किसको भी पता नहीं।
- वह है बचपन का रूप।
- वह है बड़े पन का रूप।
- लक्ष्मी-नारायण के छोटेपन के चित्र कोई हैं नहीं।
- लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में, राधे-कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं।
- अभी तुम रचयिता बाप और रचना के आदि-मध्य-अन्त को जान गये हो।
- बाबा झाड़ का भी राज़ समझाते हैं।
- ड्रामा का भी राज़ समझाते हैं।
- झाड़ को देखने से समझेंगे कि शंकराचार्य तो कलियुग में आते हैं।
- संन्यासियों की डिनायस्टी सतयुग में तो हो नहीं सकती।
- सब भगवान के बच्चे हैं तो स्वर्गवासी होने चाहिए।
- परन्तु स्वर्गवासी तो सब होते नहीं हैं, सिर्फ देवतायें ही होते हैं।
- अभी तुम ब्राह्मण वंशी बने हो फिर देवता बनेंगे।
- पवित्र जरूर बनना है।
- तुम जानते हो छोटे बड़े सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हैं।
- दोनों कहते हैं - बाबा हम आपके बच्चे हैं, ब्राह्मण हैं।
- यह है बापदादा - आदि देव ब्रह्मा और शिवबाबा।
- तुम जानते हो हम ब्रह्मा बाबा और शिवबाबा के सामने बैठे हैं।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो पतित से पावन बन जायेंगे।
- हम वर्सा शिवबाबा से लेते हैं।
- शिवबाबा हमारा बाप भी है, पतित-पावन भी है, गुरू भी है।
- अब यह है संगमयुग।
- पतित से पावन बनने का मेला।
- पतित-पावन द्वारा ही पावन बनते हैं।
- संगम पर नदियों और सागर का मेला है।
- नदियों का मेला तो होता नहीं।
- अब ज्ञान सागर और तुम आत्माओं (बच्चों) का मेला लगता है।
- तुम आये हो - ज्ञान सागर के पास।
- ज्ञान गंगायें तुम ज्ञान सागर से निकली हुई हो।
- तुम ज्ञान स्नान कराए पावन बनाते हो, योग सिखाते हो।
- सागर का परिचय दे तुम यहाँ ले आये हो मेले पर।
- इस समय तुम जब ब्राह्मण बनते हो तो तुमको 3 बाप हैं।
- लौकिक पिता भी है और प्रजापिता भी है फिर शिवबाबा भी है।
- भक्ति मार्ग में दो पिता होते हैं।
- सतयुग में एक पिता होगा।
- यह समझने की बातें हैं।
- अभी तुम्हारी आत्मा कहती है मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
- मित्र-सम्बन्धी आदि होते हुए भी कहते हैं मेरा तो एक शिवबाबा है।
- उनकी याद से ही पतित से पावन बनना है।
- आत्मा जानती है वह हमारा बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
- हमारी आत्मा को बाप लेने आये हैं।
- ब्रह्मा तन में प्रवेश कर पावन बनाते हैं।
- तुमको ले जाने के लिए बाप आये हैं।
- तुम सबको मौत देने आया हूँ।
- नर्कवासी से स्वर्गवासी बनने के लिए जरूर मरना पड़े ना।
- तुम्हारी इस देह को खत्म कराए बाकी आत्माओं को ले जाऊंगा।
- बाप कहते हैं - तुमको जीयदान देता हूँ।
- यह महाभारत लड़ाई है ना।
- सबका विनाश होगा।
- नहीं तो कैसे ले जाऊंगा।
- आत्माओं को पवित्र बनाए घर ले जाता हूँ।
- वह तो शान्तिधाम है।
- सतयुग आयेगा तो कलियुग जरूर विनाश होगा इसके लिए महाभारत लड़ाई मशहूर है।
- लगती भी यह संगम पर है जबकि तुम मनुष्य से देवता बनते हो।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) ज्ञान सागर में ज्ञान स्नान कर स्वयं को पावन बनाना है।
- मित्र-सम्बन्धियों के साथ रहते बुद्धि में रहे मेरा तो एक शिवबाबा दूसरा न कोई।
- 2) विष्णुपुरी में चलने के लिए पक्का वैष्णव अर्थात् पवित्र बनना है।
- नर्क से जीते जी मरकर बुद्धियोग स्वर्ग में लगाना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- धर्म और कर्म दोनों का ठीक बैलेन्स रखने वाले दिव्य वा श्रेष्ठ बुद्धिवान भव
- कर्म करते समय धर्म अर्थात् धारणा भी सम्पूर्ण हो तो धर्म और कर्म दोनों का बैलेन्स ठीक होने से प्रभाव बढ़ेगा।
- ऐसे नहीं जब कर्म समाप्त हो तब धारणा स्मृति में आये।
- बुद्धि में दोनों बातों का बैलेन्स ठीक हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा दिव्य बुद्धिवान।
- नहीं तो साधारण बुद्धि, कर्म भी साधारण, धारणायें भी साधारण होती हैं।
- तो साधारणता में समानता नहीं लानी है लेकिन श्रेष्ठता में समानता हो।
- जैसे कर्म श्रेष्ठ वैसे धारणा भी श्रेष्ठ हो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अपने मन-बुद्धि को अनुभव की सीट पर सेट कर दो तो कभी अपसेट नहीं होंगे।
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