03-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - अब तुम्हें नई दुनिया में चलना है, यह दु:ख के दिन पूरे हो रहे हैं, इसलिए पुरानी बीती हुई बातों को भूल जाओ''

प्रश्नः-

तुम कर्मयोगी बच्चों को कौन सा अभ्यास निरन्तर करना चाहिए?

उत्तर:-

अभी-अभी शरीर निर्वाह अर्थ देह में आये और अभी-अभी देही-अभिमानी।

देह की स्मृति बिगर कर्म तो हो नहीं सकता इसलिए अभ्यास करना है कि कर्म किया, देह-अभिमानी बनें फिर देही-अभिमानी बन जाओ, ऐसा अभ्यास तुम बच्चों के सिवाए दुनिया में कोई कर नहीं सकता।

गीत:- जाग सजनियां जाग...

 

गीत:- जाग सजनियां जाग...


  • ओम् शान्ति।
  • रूहानी बाप कहते हैं - मीठे-मीठे रूहों ने अथवा बच्चों ने यह गीत सुना।
    • इसको कहा जाता है ज्ञान का गीत।
    • यह गीत तो बहुत अच्छा है।
    • तुम आत्मायें अब जाग गई हो।
    • ड्रामा के राज़ को भी अभी तुम जान गये हो।
  • भक्ति मार्ग का तो कौतुक देख लिया है ना - जो कुछ बीता वह तुम्हारी बुद्धि में है।
    • तुम अपने बीते हुए 84 जन्मों की हिस्ट्री को जानते हो।
    • बाप ने 84 जन्मों की कहानी सुनाई है।
  • यह है नई दुनिया के लिए नई बातें।
    • बाप द्वारा तुम नई बातें सुनते हो।
    • बाप बच्चों को धीरज देते हैं।
    • बच्चे अब नई दुनिया में चलना है तो पुरानी बातों को भूल जाओ।
  • यह वेद शास्त्र जो भी भक्ति मार्ग की सामग्री है, यह सब खत्म होनी है।
    • वहाँ भक्ति मार्ग का चिन्ह भी नहीं रहता।
    • वहाँ तो भक्ति का फल मिल जाता है।
    • भक्तों को बाप आकर फल देते हैं।
  • बच्चों ने जाना बाप कैसे आकर भक्ति का फल देते हैं, जिसने सबसे जास्ती भक्ति की है, उनको जरूर जास्ती फल मिलेगा।
    • ज्ञान का पुरुषार्थ भी वह जास्ती करेगा।
    • तुम जानते हो हम आत्माओं ने जास्ती भक्ति की है।
    • जरूर ज्ञान में भी वह तीखे जायेंगे तब इन लक्ष्मी-नारायण जैसा ऊंच पद पायेंगे।
  • अब ज्ञान और योग के लिए तुम्हारा पुरुषार्थ है।
    • देही-अभिमानी हो रहना है फिर देहधारी भी होना है।
    • कर्म करते हुए बाप को याद करना है।
    • देह बिगर तो हम कर्म कर न सकें।
    • यह तो ठीक है - बाबा को याद करना है, परन्तु अपने को आत्मा समझें, देह को भुला देने से काम नहीं होगा, कर्म तो करना ही है।
  • बाप की याद में बहुत मजा है।
    • उठते-बैठते, चलते-फिरते बाप को याद करो परन्तु फिर भी पेट को भोजन तो चाहिए।
    • देही-अभिमानी हो रहना है।
    • देही-अभिमानी इस समय तुम बच्चों के सिवाए कोई भी नहीं।
    • भल अपने को आत्मा भी समझें परन्तु परमात्मा का परिचय नहीं।
    • भल समझें हम आत्मा अविनाशी हैं, यह शरीर विनाशी है परन्तु यह समझने से विकर्म विनाश नहीं होंगे।
    • कहते भी हैं पुण्य आत्मा, पतित आत्मा।
  • मैं आत्मा हूँ, मेरा यह शरीर है।
    • यह तो कॉमन बात है।
    • मूल बात बाप समझाते हैं कि मुझे याद करो।
    • शरीर निर्वाह अर्थ देह-अभिमान में तो आना है।
    • देह को खिलाना भी है, देह बिगर तो कुछ कर नहीं सकते।
    • हर जन्म में अपना शरीर निर्वाह करते आते हो, कर्म करते हुए भी अपने माशुक को याद रखना है।
    • उस माशूक का किसी को पूरा पता नहीं है।
    • उस माशूक अथवा बाप से हमको वर्सा मिलना है और उनकी याद से विकर्म विनाश होंगे, यह कोई नहीं समझाते हैं।
    • तुम बच्चे नई बातें सुनते हो।
  • तुम जानते हो घर जाने का हमको रास्ता मिला है।
    • अपने घर जाकर फिर राजधानी में आयेंगे।
    • बाबा नया मकान बनाते हैं तो जरूर दिल होगी ना कि उसमें जाकर बैठें।
    • अब तुमको रास्ता मिला है, जिसको और कोई नहीं जानते।
  • कितने भी यज्ञ तप आदि करते, माथा फोड़ते रहते हैं, सद्गति को पा नहीं सकते।
    • इस दुनिया से उस दुनिया में जा नहीं सकते।
    • यह भी समझना चाहिए।
    • शास्त्रों में लाखों वर्ष लिख दिया है इसलिए मनुष्यों की बुद्धि काम नहीं करती है।
  • तुम अच्छी रीति समझ सकते हो - कल की बात है।
    • भारत तो स्वर्ग था, हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे।
    • देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है।
    • भारत जैसा सुख कोई भी पा नहीं सकता।
    • स्वर्ग में तो और कोई धर्म वाला जा न सके।
  • तुम्हारे जैसा सुख और कोई को हो न सके।
    • कितना भी प्रयत्न करें!
    • धन खर्च करें फिर भी स्वर्ग में जो सुख है वह मिल न सके।
    • किसको हेल्थ होगी तो वेल्थ नहीं होगी।
    • किसको वेल्थ होगी तो हेल्थ नहीं होगी।
    • यह है ही दु:ख की दुनिया, तो अब बाप कहते हैं हे आत्मायें जागो... तुमको अब ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है।
    • कितनी जागृति आई है।
    • तुम सारी दुनिया की हिस्ट्री-जॉग्राफी जानते हो।
  • बाप जानी-जाननहार है ना।
    • इसका मतलब यह नहीं कि सबके दिलों को जानता है।
    • यह कौन है, कितना समझाते हैं।
    • यह कहाँ तक पवित्र रहते हैं, कहाँ तक बाबा को याद करते हैं।
    • मैं हर एक का यह ख्याल क्यों बैठ करूँ... हम तो रास्ता बताते हैं कि तुम आत्माओं को अपने परमपिता परमात्मा को याद करना है।
    • इस सृष्टि चक्र को बुद्धि में रखना है।
  • देही-अभिमानी तो जरूर बनना है।
    • देह-अभिमानी बनने के कारण तुम्हारी यह दुर्गति हुई है।
    • अब तुमको बाप को याद करना है।
    • गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।
  • स्वदर्शन चक्रधारी भी तुम हो, देवताओं को तो शंख आदि नहीं है।
    • यह ज्ञान शंख आदि तुम ब्राह्मणों को है।
    • सिक्ख लोग शंख बजाते हैं, बहुत बड़ा आवाज़ करते हैं।
    • तुम भी यह ज्ञान बैठ देते हो तो बड़ी सभा में लाउड-स्पीकर लगाते हो।
    • तुमको यहाँ लाउड स्पीकर लगाने की दरकार नहीं।
    • टीचर पढ़ायेंगे तो लाउड-स्पीकर लगायेंगे क्या?
    • यहाँ तो सिर्फ शिवबाबा को याद करना है तो विकर्म विनाश होंगे।
    • मैं सर्वशक्तिमान् हूँ ना।
    • तुम लाउड-स्पीकर लगाते हो कि आवाज दूर-दूर तक सुनने में आये।
    • वह भी आगे चल काम में आयेगा।
  • तुमको सुनाना यह है कि मौत सामने है।
    • अभी सबको वापिस जाना है।
    • महाभारत लड़ाई भी सामने खड़ी है।
    • गीता में भी लिखा हुआ है कि महाभारत लड़ाई लगी, विनाश हुआ।
    • अच्छा फिर क्या हुआ?
    • पाण्डव भी गल मरे।

  • बाप समझाते हैं - पहले अगर विनाश हो जाए फिर तो भारत खण्ड भी खाली हो जाए।
    • भारत तो अविनाशी खण्ड है, खाली तो होता नहीं।
    • तुम जानते हो प्रलय तो होती नहीं।
    • बाबा अविनाशी है तो उनका बर्थ प्लेस भी अविनाशी है।
  • बच्चों को खुशी रहनी चाहिए - बाबा सर्व का सद्गति दाता, सुख-शान्ति कर्ता है।
    • जो भी आते हैं, कहते हैं शान्ति चाहिए।
    • आत्मा को इतनी शान्ति क्यों याद आती है!
    • शान्तिधाम आत्माओं का घर है ना।
    • घर किसको याद नहीं रहेगा?
    • विलायत में कोई मरता है तो चाहते हैं इनको अपनी जन्म भूमि में ले जायें।
    • यह अगर सबको पता होता कि भारत सर्व के सद्गति दाता, दु:ख से मुक्ति दिलाने वाले शिवबाबा का बर्थ प्लेस है तो उनका बहुत मान होता।
    • एक ही शिव के ऊपर आकर फूल चढ़ाये।
    • अब तो कितनों के ऊपर फूल चढ़ाते रहते हैं।
    • जो सबको सुख-शान्ति देने वाला है, उनका नाम निशान ही गुम कर दिया है।
  • जो बाप को अच्छी रीति जानते हैं वही वर्सा लेने का पुरुषार्थ करते हैं।
    • मेरा नाम ही है दु:ख हर्ता सुख कर्ता।
    • दु:ख से लिबरेट करके क्या करेंगे!
    • तुम जानते हो शान्तिधाम में शान्त रहते हैं, सुखधाम में सुख है।
    • शान्तिधाम की जगह अलग, सुखधाम की जगह अलग, यह तो है ही दु:खधाम।
  • सबको इस समय दु:ख ही दु:ख है।
    • अभी तुम जानते हो हम ऐसे सुख में जाते हैं, जहाँ 21 जन्म कोई प्रकार का दु:ख नहीं रहेगा।
    • नाम ही है - सुखधाम।
    • कितना मीठा नाम है।
    • बाप कहते हैं - तुमको कोई तकलीफ नहीं देते हैं।
    • सिर्फ बाप को और वर्से को याद करना है।
    • अपने को आत्मा समझना है।
    • यह ज्ञान तुमको बाबा सिखला रहे हैं।
  • सतयुग में आत्मा का ज्ञान है, हम आत्मा यह शरीर छोड़ दूसरा जन्म लेंगे, इसको आत्म-अभिमानी कहा जाता है।
    • यह है रूहानी नॉलेज, जो और कोई दे न सके।
    • रूह को रूहानी बाप आकर नॉलेज देते हैं।
    • हर 5 हजार वर्ष बाद देते हैं।
    • मनुष्य तो बिल्कुल ही घोर अन्धियारे में हैं।
    • अब तुमको रोशनी मिली है, तुम अज्ञान नींद से जागे हो।
  • सभी सजनियों का साजन है - एक बाप।
    • बाप कहते हैं - मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, साजन भी हूँ, गुरूओं का गुरू भी हूँ।
    • सुप्रीम टीचर हूँ।
    • सर्व गुरूओं का सद्गति दाता एक ही सतगुरू है।
    • कहते हैं बच्चे मैं सर्व की सद्गति करता हूँ।
    • गति के बाद सद्गति होती है।
    • बाप ने समझाया है - हर एक की आत्मा को वापिस जाना है।
    • आत्मा ही सतोप्रधान, सतो-रजो-तमो बनती है।
  • कोई-कोई का बहुत थोड़ा पार्ट है।
    • आये और गये।
    • जैसे मच्छरों मुआफिक जन्मे और मरे।
    • ऐसे तो बाप से वर्सा नहीं लेते हैं।
    • बाप से वर्सा लिया जाता है पवित्रता, सुख-शान्ति का।
  • बाप तुम आत्माओं को समझाते हैं, बाप तो है निराकार।
    • वह भी इस मुख से आकर समझाते हैं।
    • शिवबाबा के मन्दिर भी बहुत ऊंच-ऊंच बनाते हैं।
    • कितना दूर-दूर जाते हैं, तीर्थों पर मेले पर।
    • ऊपर में कोई ज्ञान अमृत पीने का रखा है क्या!
    • कितना खर्चा करते हैं।
    • गवर्मेन्ट को भी उन्हों के लिए कितने प्रबन्ध आदि रखने पड़ते हैं।
    • तकलीफ होती है।
  • यहाँ तीर्थो पर छोटे बच्चों को कैसे ले जायेंगे।
    • बच्चों आदि को कोई न कोई को सम्भालने लिए दे जाते हैं।
    • साथ में नहीं ले जाते हैं।
    • दो तीन मास यात्रा करते हैं।
  • यहाँ तुम आते हो, तुमको बैठकर सुनना है, पढ़ना है।
    • छोटे बच्चे तो नहीं सुनेंगे।
    • यहाँ तुम आये ही हो - योग और ज्ञान सीखने।
    • बाप बैठ ज्ञान सुनाते हैं तो कोई आवाज आदि नहीं होना चाहिए।
    • नहीं तो अटेन्शन जाता है।
    • शान्ति से बैठकर अटेन्शन देकर सुनना है।
  • योग तो बहुत सहज है।
    • कुछ भी काम करते रहो, बुद्धि का योग वहाँ लगा रहे।
    • बाबा की याद रहने से कमाई बहुत जबरदस्त होती है।
    • तुम जानते हो हम एवरहेल्दी बनेंगे।
    • अपने साथ बातें करनी होती है।
  • बाबा की याद में रहकर भोजन भी अपने हाथ से बनाना है।
    • हाथों से काम भी करो, बाकी याद करो अपने बाप को।
    • तुम्हारा भी कल्याण होगा और याद में रहने से चीज़ भी अच्छी बनेगी।
  • तुमको विश्व की बादशाही मिलती है।
    • तुम यहाँ आते ही हो - लक्ष्मी-नारायण बनने।
    • सब कहते हैं हम सूर्यवंशी बनेंगे।
  • तुम जानते हो हमारे मम्मा-बाबा इस समय ब्रह्मा-सरस्वती हैं।
    • दूसरे जन्म में लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
    • भविष्य में कोई क्या बनेंगे, ऐसे किसके जन्म का पता नहीं है।
      • नेहरू क्या जाकर बना, क्या पता।
      • अच्छा कुछ दान किया होगा तो यहाँ अच्छे कुल में जन्म लेंगे।
      • अभी तुमको पूरा पता पड़ता है।
  • अभी इनका नाम है - आदि देव ब्रह्मा, आदि देवी सरस्वती।
    • वही फिर स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
    • अच्छा इनके बच्चे भी साथ हैं।
    • वह भी कहेंगे हम स्वर्ग के मालिक बनेंगे।
    • यह तो पक्का है।
    • सूक्ष्मवतन में भी तुम देखते हो - देवियों के मन्दिर में भी बहुत मेले लगते हैं।
    • अभी जगदम्बा तो है एक।
    • उनके फीचर्स भी एक ही होने चाहिए।
    • मम्मा को भी तुम देखते हो।
    • तुम बच्चों के फीचर्स हैं फिर नाम रख दिये हैं, कन्या-कुमारी, अधर-कुमारी।
    • तुम जानते हो यह हम ही बनते हैं।
    • हम सब हैं ब्रह्माकुमार-कुमारी।
    • युगल भी कहते हैं हम ब्रह्माकुमार-कुमारी हैं, एक बाप के बच्चे हैं।
    • तुम्हारा ही यादगार है।
    • बरोबर तुम बैठ यह नॉलेज देते हो, अर्थ सहित यह देलवाड़ा मन्दिर है।
    • परन्तु यह तुम ही समझा सकते हो।
    • तुम जानते हो हम स्थापना कर रहे हैं, राजयोग से श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बना रहे हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) ज्ञान और योग पर पूरा-पूरा अटेन्शन देना है।
    • सुनने समय बहुत शान्त, एकाग्रचित होकर बैठना है।
    • कर्मयोगी भी बनना है।
  • 2) बाप ने जो घर का रास्ता बताया है, वह सबको बताना है।
    • स्वदर्शन चक्रधारी बनने के साथ-साथ ज्ञान शंख भी बजाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • “एक बाप दूसरा न कोई'' इस पाठ की स्मृति से एकरस स्थिति बनाने वाली श्रेष्ठ आत्मा भव
  • “एक बाप दूसरा न कोई'' यह पाठ निरन्तर याद हो तो स्थिति एकरस बन जायेगी क्योंकि नॉलेज तो सब मिल गई है, अनेक प्वाइंट्स हैं, लेकिन प्वाइंट्स होते हुए प्वाइंट रूप में रहें - यह है उस समय की कमाल जिस समय कोई नीचे खींच रहा हो।
  • कभी बात नीचे खीचेंगी, कभी कोई व्यक्ति, कभी कोई चीज़, कभी वायुमण्डल.....यह तो होगा ही।
  • लेकिन सेकण्ड में यह सब विस्तार समाप्त हो एकरस स्थिति रहे - तब कहेंगे श्रेष्ठ आत्मा भव के वरदानी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • नॉलेज की शक्ति धारण कर लो तो विघ्न वार करने के बजाए हार खा लेंगे।