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ओम् शान्ति।
- बच्चे जानते हैं कि यह ओम् शान्ति किसने कहा?
- कौन से बच्चे?
- आत्मायें जानती हैं कि ओम् शान्ति किसकी आत्मा ने कहा?
- परमपिता परमात्मा ने
कहा।
- बच्चे जानते हैं मनुष्य की आत्मा ने नहीं कहा, यह परमपिता परमात्मा शिव ने
कहा।
- वह सभी का बाप ऊंचे ते ऊंचा है।
- अब गीत में सुना भारत पर बहुत माया का
परछाया पड़ा हुआ है।
- बहुत पतित बन गये हैं इसलिए पुकारते हैं कि हे पतित-पावन
फिर से आओ, पावन बनाने।
- आत्मा ही बुलाती है अपने बाप को, जिसको भगवान
कहते हैं।
- कहते हैं वही पतित-पावन है।
- एक की ही महिमा होती है।
- वह है सभी
आत्माओं का बेहद का बाप।
- यहाँ सब पतित बन गये हैं तब पुकारते हैं - हे परमपिता
परमात्मा।
- वही ज्ञान का सागर भी है, पतित-पावन भी है।
- वह पिता भी है तो शिक्षक
भी है क्योंकि ज्ञान सागर भी है, वर्ल्ड अथॉरिटी भी है।
- सभी वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों को
जानने वाला भी है।
- उनको कहते ही हैं नॉलेजफुल।
- तो इस समय सब पारलौकिक बाप
को पुकारते हैं क्योंकि सभी दु:खी हैं।
- कहते हैं - गॉड फादर।
- उनका नाम भी चाहिए
ना।
- उनका नाम गाया हुआ है शिवबाबा।
- वही ऊंच ते ऊंच ज्ञान का सागर, सुख का
सागर, शान्ति का सागर है।
- यह मनुष्य की आत्मा अपने बाप की महिमा करती है।
- ऊंच ते ऊंच आत्मा किसकी है?
- परमपिता परमात्मा की।
- वह है परम, पतित मनुष्य
उनको याद करते हैं।
- सतयुग में जब पावन भारत था, देवी-देवताओं का राज्य था तो
कोई पतित नहीं था।
- यह है तमोप्रधान दुनिया अर्थात् दुनिया में जो मनुष्य रहते हैं
सब पाप आत्मायें हैं।
- यही भारत पावन था, यही भारत पतित हो गया है।
- यहाँ
कलियुग में सब पतित हैं।
- तुम जानते हो ज्ञान का सागर, पतित-पावन परमपिता
परमात्मा परमधाम से आकर हमको ब्रह्मा द्वारा पढ़ाते हैं।
- जरूर उनको शरीर तो
चाहिए ना।
- यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
- ज्ञान का सागर जो अथॉरिटी है वही सब
कुछ जानते हैं।
- भारत में चित्र भी दिखाते हैं विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकला, उनको
हाथ में शास्त्र देते हैं।
- अभी विष्णु कोई सब शास्त्रों का सार नहीं सुनाते हैं।
- परमपिता
परमात्मा ज्ञान का सागर ब्रह्मा द्वारा सब शास्त्रों का सार समझाते हैं।
- ब्रह्मा, विष्णु,
शंकर का भी वह रचयिता है।
- ब्रह्मा को वा विष्णु को ज्ञान का सागर नहीं कहेंगे।
- शंकर की तो बात ही छोड़ दो।
- अभी ज्ञान का सागर कौन?
- निराकार ऊंच ते ऊंच
परमात्मा ही पतित-पावन है।
- यह महिमा है उस परमपिता परमात्मा की।
- यहाँ भी
आत्मा की ही महिमा होती है।
- आत्मा ही शरीर द्वारा कहती है - मैं प्रेजीडेंट हूँ, मैं
बैरिस्टर हूँ, मैं फलाना मिनिस्टर हूँ।
- आत्मा ही मर्तबा लेती है।
- शरीर द्वारा आत्मा
कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ।
- इस समय जब बाप आते हैं, कहते हैं बच्चे
आत्म-अभिमानी बनो।
- मैं तुम्हारा बाप आया हुआ हूँ - तुमको यही पाठ पढ़ाने।
- यह
पाठशाला है - मनुष्य से देवता, नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनने की।
- बाप को
सभी आत्मायें बुलाती हैं कि हे परमपिता परमात्मा... अब निराकारी दुनिया से साकारी
दुनिया में आओ।
- रूप बदलो।
- तुम निराकारी आत्मायें तो जब शरीर में आती हो तो
गर्भ में आती हो, पुनर्जन्म लेती हो।
- बाप समझाते हैं - तुमने 84 जन्म गर्भ से लिये
हैं।
- एक शरीर छोड़ फिर गर्भ में जाते हो, ऐसे 84 जन्म लेते हो।
- मैं तो गर्भ में नहीं
आता हूँ।
- भारतवासी असुल में देवी-देवता धर्म के थे।
- फिर सीढ़ी नीचे उतरते आये,
क्षत्रिय वर्ण में फिर वैश्य, शूद्र वर्ण में कलायें कम होती जाती हैं।
- भारत 16 कला
सम्पूर्ण था फिर 14 कला बना।
- भारतवासी अपने जन्मों को नहीं जानते।
- 84 जन्म
भारतवासी ही लेते हैं।
- और कोई धर्म वाले 84 जन्म नहीं लेते।
- तुम स्वदर्शन चक्रधारी
बने हो, यह ज्ञान की बात है।
- स्वदर्शन चक्रधारी बनने से तुम चक्रवर्ती महाराजा बनते
हो स्वर्ग का।
- तुम अच्छी रीति जानते हो हम यहाँ आये हैं पतित से पावन बनने।
- यह
है ही पतित दुनिया।
- पतित-पावन, सर्व का सद्गति दाता तो एक ही बाप है।
- सब
उनको ही पुकारते हैं।
- बाप को याद करते हैं, कृष्ण को नहीं।
- कृष्ण ने गीता नहीं
सुनाई।
- गीता है सर्व शास्त्रमई शिरोमणी।
- भारत की गीता किस धर्म का शास्त्र है?
- आदि सनातन देवी-देवता धर्म का।
- किसने गीता गाई?
- राजयोग किसने सिखाया?
- परमपिता परमात्मा पतित-पावन बाप ने।
- तो तुम्हारी आत्मा जो निराकार थी, उसने
अभी यह साकार शरीर धारण किया है।
- साकार मनुष्य को कभी भगवान नहीं कहेंगे।
- भल सतयुग में लक्ष्मी-नारायण हैं तो भी भगवान नहीं कहेंगे।
- यह तो करके उपाधि
(टाइटल) दी जाती है।
- कायदे अनुसार भगवान एक है।
- क्रियेटर इज़ वन।
- बाकी वह हैं
देवतायें।
- 5 हजार वर्ष की बात है।
- इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, इनको महाराजा
महारानी कहा जाता था।
- भगवान महाराजा नहीं बनते हैं।
- वह तो बाप ही है जो आकर
भारतवासियों को ऐसा देवी-देवता बनाते हैं।
- अभी तो देवी-देवता धर्म का कोई है नहीं।
- इनको कहा जाता है रावण सम्प्रदाय क्योंकि रावण राज्य है।
- रावण को वर्ष-वर्ष जलाते
रहते हैं क्योंकि यह पुराना दुश्मन है परन्तु इनको भारतवासी जानते नहीं।
- शास्त्रों में
भी वर्णन नहीं है कि रावण कौन है।
- रावण को 10 शीश क्यों दिखाये हैं।
- इन बातों को
अच्छी रीति समझना है।
- मनुष्य तो बिल्कुल पत्थरबुद्धि हैं।
- पारसबुद्धि इन
लक्ष्मी-नारायण आदि को कहेंगे।
- पारसनाथ, पारसनाथिनी का राज्य था।
- यथा राजा-रानी
तथा प्रजा।
- भारत जैसा सुखधाम और कोई खण्ड होता नहीं।
- जब भारत में स्वर्ग था तो
कोई बीमारी, दु:ख रोग नहीं था।
- सम्पूर्ण सुख था।
- गाया जाता है - ईश्वर की महिमा
अपरम-अपार है।
- वैसे भारत की भी महिमा अपरमअपार है।
- सारा मदार पवित्रता पर
है।
- पुकारते भी ऐसे हैं, सब पतित हैं।
- पीस नहीं है, प्रासपर्टी भी नहीं है।
- अभी तुमने
समझा है - हम भारतवासी सूर्यवंशी देवी-देवता थे फिर धीरे-धीरे पतित बने हैं।
- इनको
कहा जाता है मृत्युलोक।
- इसको आग लगनी है।
- यह है शिव ज्ञान यज्ञ, रूद्र ज्ञान यज्ञ
भी कहते हैं।
- मनुष्य नाम तो बहुत रख देते हैं।
- जहाँ भी शिव की मूर्ति देखते हैं, तो
अनेक भिन्न-भिन्न नाम रख देते हैं।
- एक के ही अनेक नाम से मन्दिर बनाते हैं।
- तो
बाप बैठ समझाते हैं - ज्ञान, भक्ति, वैराग्य।
- अभी भक्ति पूरी होती है, तुमको भक्ति
से वैराग्य आता है अर्थात् इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है।
- यह पुरानी दुनिया विनाश
होनी है।
- बच्चे पूछते हैं बाबा हम पतित से पावन कैसे बनें।
- कई नये आते हैं तो एलाउ नहीं
किया जाता है।
- जैसे कालेज में कोई नया जाकर बैठे तो कुछ भी समझ न सके और
किसको पता ही नहीं है, मनुष्य से देवता कैसे बन रहे हैं।
- मनुष्य जो पतित हैं वही
पावन बनते हैं।
- इस समय भारत भी बेगर है।
- सतयुग में भारत प्रिन्स था।
- श्रीकृष्ण
सतयुग का पहला नम्बर प्रिन्स था।
- उसमें सब गुण हैं।
- राज्य लक्ष्मी-नारायण का
कहेंगे।
- कृष्ण तो प्रिन्स था, राधे प्रिन्सेज थी।
- कृष्ण प्रिन्स की ही महिमा गाई जाती है
- सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण.....।
- उसने कोई गीता नहीं सुनाई।
- वह तो सतयुग
का प्रिन्स था।
- वह पतित मनुष्यों को पावन बनाने के लिए गीता पाठ सुनाये - यह हो
नहीं सकता।
- यह सब शास्त्र हैं भक्ति मार्ग के।
- कितनी शास्त्रों की महिमा है।
- सतयुग
में कोई शास्त्र, चित्र आदि भक्ति मार्ग के होते ही नहीं।
- वहाँ तो ज्ञान की प्रालब्ध होती
है - 21 जन्मों के लिए।
- फिर से सतयुग का राज्यभाग्य ले रहे हैं।
- भारतवासी सतयुग
में 5 हजार वर्ष पहले विश्व के मालिक थे और कोई भी पार्टीशन आदि नहीं था।
- 5
हजार वर्ष की बात है।
- अभी कलियुग का अन्त है ना।
- विनाश सामने खड़ा है।
- भगवान
ने यह ज्ञान यज्ञ रचा है।
- पतित कलियुग को पावन सतयुग बनाने, तो जरूर पतित
दुनिया का विनाश होगा।
- गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म
की स्थापना, सो अब शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा करा रहे हैं।
- तुम अभी मनुष्य से देवता
बन रहे हो।
- गाते भी हैं परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं।
- वह तो
हुआ प्रजापिता, उनकी सब औलाद हैं।
- बरोबर ब्रह्मा द्वारा ही स्वर्ग की स्थापना हुई
थी।
- आज से 5 हजार वर्ष पहले भी मैं संगम पर आया था - तुमको यह राजयोग
सिखाने।
- कृष्ण नहीं, मैं आया था।
- कृष्ण पतित दुनिया में आ नहीं सकता।
- बाप ही
आते हैं।
- वही सर्व का सद्गति दाता है।
- मनुष्य, मनुष्य को सद्गति दे नहीं सकते।
- याद भी सभी एक को ही करते हैं।
- परमपिता परमात्मा कहाँ रहते हैं?
- तुम बच्चे जानते
हो परमधाम में रहते हैं।
- वह है ब्रह्म महतत्व।
- वहाँ आत्मायें पवित्र, जैसे महात्मायें हैं।
- यहाँ भी महान आत्मा, पतित आत्मा कहते हैं ना।
- वास्तव में यहाँ महान आत्मा एक
भी नहीं है।
- आत्मा को ही पावन सतोप्रधान बनना है, ज्ञान और योग से न कि पानी
से।
- आत्मा ही पतित बनी है।
- आत्मा में ही खाद पड़ती है।
- आत्मा ही गोल्डन, सिल्वर,
कापर, आइरन बनती है।
- अभी आत्मायें जो पतित हैं उनको पावन कौन बनाये!
- सिवाए
परमपिता परमात्मा के और कोई बना न सके।
- बाप ही बैठ समझाते हैं - मामेकम् याद
करो तो तुम्हारे पाप भस्म हो जायेंगे।
- जितना याद करेंगे उतना पतित से पावन बनेंगे।
- मेहनत इसमें है।
- ज्ञान तो सारा बुद्धि में है।
- यह चक्र कैसे फिरता है, हम 84 जन्म
कैसे लेते हैं।
- सतयुग में कितना समय राज्य चलता है, फिर रावण कैसे आता है!
- रावण है कौन!
- यह भी किसको पता नहीं है।
- कब से रावण को जलाते आते हैं।
- यह भी
किसको पता नहीं।
- हर वर्ष जलाते हैं।
- सतयुग में तो नहीं जलायेंगे।
- अभी है ही रावण
राज्य।
- रामराज्य तो कोई स्थापन कर नहीं सकता।
- यह तो बाप का ही काम है।
- पतित
मनुष्य तो कर नहीं सकते।
- वह तो सब विनाश हो जायेंगे।
- पतित दुनिया ही विनाश
होनी है।
- सतयुग में एक भी ऐसे नहीं कहेंगे कि हे पतित-पावन आओ।
- वह तो पावन
दुनिया है ना।
- तुम अभी जानते हो कि इन लक्ष्मी-नारायण को ऐसा स्वर्ग का मालिक
किसने बनाया।
- फिर इन्होंने 84 जन्म कैसे लिये।
- आदि सनातन देवी-देवता धर्म वालों
ने ही 84 जन्म लिए हैं।
- वही इस समय शूद्र वंशी बने हैं।
- अब फिर ब्राह्मण वंशी
बनते हो।
- अभी तुम हो ब्राह्मण चोटी।
- यह है ऊंच ते ऊंच चोटी।
- ब्रह्मा मुख वंशावली
ब्राह्मण कुल भूषण।
- अभी तुम शिवबाबा के बच्चे भी हो।
- पोत्रे पोत्रियां भी हो।
- शिव
वंशी फिर ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो।
- वर्सा मिलता है दादे से।
- बाप कहते हैं - मुझे
निरन्तर याद करो।
- पावन बनो तो तुम मेरे पास मुक्तिधाम में आ जायेंगे।
- इन बातों
को समझेंगे वही जिन्होंने कल्प पहले समझा है।
- वह तो हजारों हैं।
- कोई पूछते हैं,
कितने बी.के. हैं?
- बोलो, हजारों की अन्दाज में हैं।
- इस दैवी झाड़ की वृद्धि होती जाती
है।
- अब फिर से सैपलिंग लग रहा है - आदि सनातन देवी-देवता धर्म का क्योंकि देवता
धर्म है नहीं।
- सब अपने को हिन्दू कहलाते रहते हैं।
- और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं।
- फिर सब निकल आयेंगे, आकर बाप से वर्सा लेंगे।
- तुम आये हो बेहद के बाप से बेहद
के सुख का वर्सा पाने अर्थात् मनुष्य से देवता बनने।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग।
रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) पतित से पावन बनने के लिए ज्ञान और योग में मजबूत होना है।
- आत्मा में जो
खाद पड़ी है उसे याद की मेहनत से निकालना है।
- 2) हम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण चोटी हैं इस नशे में रहना है।
- ब्राह्मण ही वर्से के
अधिकारी हैं क्योंकि शिवबाबा के पोत्रे हैं।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- अपने अनादि-आदि रीयल रूप को रियलाइज करने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
- आत्मा के अनादि और आदि दोनों काल का ओरीज्नल स्वरूप पवित्र है।
- अपवित्रता
आर्टीफिशल, शूद्रों की देन है।
- शूद्रों की चीज़ ब्राह्मण यूज़ नहीं कर सकते इसलिए सिर्फ
यही संकल्प करो कि अनादि-आदि रीयल रूप में मैं पवित्र आत्मा हूँ, किसी को भी
देखो तो उसके रीयल रूप को देखो, रीयल को रियलाइज करो, तो सम्पूर्ण पवित्र बन
फर्स्टक्लास वा एयरकन्डीशन की टिकेट के अधिकारी बन जायेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- परमात्म दुआओं से अपनी झोली भरपूर करो तो माया समीप नहीं आ सकती।
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