28-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति

"बापदादा" मधुबन

“मीठे बच्चे - अपने को आत्मा समझ आत्मा से बात करो तो फूल में खुशबू आती जायेगी, देह-अभिमान की बदबू निकल जायेगी''

प्रश्नः-

अपनी खुशबू चारों ओर फैलाने वाले सच्चे फूल वा परवाने कौन हैं?

उत्तर:-

सच्चे फूल वह जो अनेकों को आप समान खुशबूदार फूल बनायें।

श्रीमत पर चल शमा पर जल मरने वाले अर्थात् पूरा-पूरा बलिहार जाने वाले, जीते जी मरने वाले सच्चे परवानों की वा ऐसे फूलों की खुशबू स्वत: ही चारों ओर फैलती है।

गीत:- महफिल में जल उठी शमा...

 

गीत:- महफिल में जल उठी शमा...


  • ओम् शान्ति।
  • जैसे परवानों ने गीत सुना।
    • परवाने कहो वा फूल कहो बात एक ही है।
    • बच्चे समझते हैं हम सचमुच परवाने बने हैं या सिर्फ फेरी पहन कर चले जाते हैं?
    • शमा को भूल जाते हैं।
  • हर एक को अपनी दिल से पूछना है कि हम कहाँ तक फूल बने हैं और ज्ञान की खुशबू फैलाते हैं?
    • अपने जैसा फूल किसको बनाया है?
    • यह तो बच्चे जानते हैं - ज्ञान का सागर बाप है, उनकी कितनी खुशबू है?
    • जो अच्छे फूल वा परवाने हैं उनकी जरूर अच्छी खुशबू आयेगी।
    • वह सदैव खुश रहेंगे औरों को भी आप समान फूल वा परवाने बनायेंगे।
    • फूल नहीं तो कली बनायेंगे।
  • पूरे परवाने वह हैं जो जीते जी मरते हैं।
    • बलि चढ़ते हैं अथवा ईश्वरीय औलाद बनते हैं।
    • कोई साहूकार, किसी गरीब के बच्चे को गोद में लेते हैं तो बच्चों को उस साहूकार की गोद में आने से फिर वही माँ-बाप याद आते रहते हैं और गरीब की याद भूल जायेगी।
    • जानते हैं कि हमारे माँ-बाप गरीब हैं परन्तु याद साहूकार माँ-बाप को करेंगे, जिससे धन मिलता है।
  • साधू-संन्यासी आदि हैं वह साधना करते हैं मुक्तिधाम में जायें।
    • सब मुक्ति के लिए ही पुरूषार्थ करते हैं परन्तु मुक्ति का अर्थ नहीं समझते।
    • कोई कहते हैं ज्योति ज्योत समायेंगे।
    • कोई समझते हैं पार निर्वाणधाम जाते हैं।
    • निर्वाण-धाम में जाने को ज्योति में समाना या मिल जाना नहीं कहा जाता।
    • तुम समझते हो - हम दूर देश के रहने वाले हैं।
    • इस गन्दी दुनिया में रहकर क्या करेंगे।
  • बच्चों को समझाया है जब कोई से मिलो तो यह समझाना पड़े कि यह बना बनाया ड्रामा है।
    • सतयुग त्रेता... फिर संगमयुग।
    • यह भी समझाया है सतयुग के बाद त्रेता का संगम होता है।
    • वह युग फिरता है और यह कल्प फिरता है।
    • बाप युगे-युगे नहीं आते हैं।
    • जैसे मनुष्य समझते हैं।
    • बाप कहते हैं - जब, सब तमोप्रधान बन जाते हैं, कलियुग का अन्त होता है, उस कल्प के संगम पर आता हूँ।
    • युग पूरा होता है तो कलायें कम होती हैं।
    • यह तो जब पूरा ग्रहण लग जाता है तब मैं आता हूँ।
    • मैं युगे-युगे नहीं आता हूँ।
  • यह बाप बैठ परवानों को समझाते हैं।
    • परवानों में भी नम्बरवार हैं।
    • कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहनकर चले जाते हैं।
    • श्रीमत पर तुम ही चल सकते हो।
    • अगर कहाँ भी श्रीमत पर न चले तो माया पिछाड़ती रहेगी।
    • श्रीमत का बहुत गायन है।
    • श्रीमत भगवत गीता कहा जाता है।
    • शास्त्र तो बाद में बैठ जिन्होंने बनाये तो उस समय बुद्धि रजो होने कारण समझा कि कृष्ण द्वापर में आया।
  • मैं आता ही तब हूँ जब आदि सनातन देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है।
    • बाकी सब धर्म रहते हैं।
    • ऐसे नहीं कि वह देवता धर्म वाले मनुष्य गुम हो जाते हैं परन्तु यह भूल जाते हैं कि हम देवी-देवता धर्म के थे।
    • अपना हिन्दू धर्म कह देते हैं, यह भी ड्रामा में नूँध है।
    • जब भूलें तब तो फिर मैं आकर देवी-देवता धर्म की स्थापना करूँ।
  • यह एक ही बाप है जो आकर दु:खधाम से सुखधाम का मालिक बनाते हैं।
    • तुम कहेंगे अभी हम नर्क के मालिक हैं।
    • दुनिया को तमोप्रधान तो बनना ही है।
    • सब पतित हैं तब तो पावन के आगे जाकर नमस्ते करते हैं।
  • अब बाप कहते हैं, श्रीमत पर चलो।
    • जन्म-जन्मान्तर का बोझा सिर पर बहुत है।
    • नहीं तो त्राहि-त्राहि करना पड़ेगा।
    • वह तो समझते हैं, आत्मा निर्लेप है परन्तु नहीं, आत्मा ही सुख-दु:ख देखती है।
    • यह कोई समझते नहीं।
  • बाबा बार-बार समझाते हैं - मंजिल बहुत भारी है।
    • इस समय तुम पुरूषार्थ करते हो जबकि दु:खी हो।
    • जानते हो, सतयुग में हम बहुत सुखी रहेंगे।
    • वहाँ यह पता नहीं रहेगा कि हमको फिर दु:खधाम में जाना है।
    • हम सुख में कैसे आये हैं, कितने जन्म लेंगे, कुछ भी नहीं जानते।
    • अभी तुम जानते हो तो ऊंच कौन ठहरे?
    • तुम ईश्वर की औलाद होने के कारण जैसे ईश्वर नॉलेजफुल है, ऐसे तुम भी नॉलेजफुल ठहरे।
    • अभी तुम ईश्वरीय औलाद हो परन्तु नम्बरवार।
    • कोई तो बड़े मस्त हैं, समझते हैं हम बाबा की मत पर चलते रहते हैं।
    • जितना मत पर चलेंगे उतना श्रेष्ठ बनेंगे।
  • बाप सम्मुख बैठ बच्चों को समझाते हैं।
    • बच्चे देह-अभिमान छोड़ दो, देही-अभिमानी बनो, निरन्तर याद करो।
    • बाप तो सदैव है ही सुखदाता।
    • ऐसे नहीं कि दु:ख भी बाप ही देते हैं।
    • बाप कभी बच्चों को दु:ख नहीं देंगे।
    • बच्चे अपनी उल्टी चलन से दु:ख पाते हैं।
    • बाप दु:ख नहीं दे सकते।
    • कहते हैं हे भगवान बच्चा दो तो कुल वृद्धि को पायेगा।
    • बच्चे को बहुत प्यार करते हैं।
    • बाकी दु:ख अपने कर्मो का ही पाते हैं।
    • अब बाप तुम बच्चों को बहुत सुखी बनाते हैं।
    • कहते हैं श्रीमत पर चलो।
    • आसुरी मत पर चलने से तुम दु:ख पाते हो।
    • बच्चे, बाप अथवा टीचर अथवा बड़ों की आज्ञा न मानने से दु:खी होते हैं।
    • दु:खदाई खुद बनते हैं, माया के बन पड़ते हैं।
  • ईश्वर की मत अब ही तुमको मिलती है।
    • ईश्वरीय मत की रिजल्ट 21 जन्म चलती है फिर आधाकल्प माया की मत पर चलते हैं।
    • ईश्वर एक ही बार आकर मत देते हैं।
    • माया तो आधाकल्प से मत देती ही रहती है।
    • बाप, एक ही बार मत देते हैं।
    • माया की मत पर चलते 100 परसेन्ट दुर्भाग्यशाली बन पड़ते हैं।
    • तो जो अच्छे-अच्छे फूल हैं वह उसी खुशी में सदैव मस्त रहेंगे।
    • नम्बरवार हैं ना।
    • परवाने कोई तो बाप के बन श्रीमत पर चल पड़ते हैं।
  • गरीब ही अपना पोतामेल लिखते हैं।
    • साहूकारों को डर लगता है कि यहाँ हमारे पैसे ले न लेवें।
    • साहूकारों के लिए बड़ा मुश्किल है।
    • बाप कहते हैं - मैं गरीब निवाज हूँ।
    • दान भी हमेशा गरीबों को ही दिया जाता है।
    • सुदामा की बात है ना - चावल चपटी ले उनको महल दे दिये।
    • तुम हो गरीब।
    • समझो कोई के पास 25-50 रूपये हैं, उनमें से 20-25 पैसे देता है।
    • साहूकार 50 हजार दे तो भी इक्वल हो जाता है इसलिए गरीब निवाज़ नाम गाया हुआ है।
    • साहूकार लोग भी कहते हैं, हमको फुर्सत नहीं मिलती क्योंकि पूरा निश्चय नहीं हैं।
    • तुम हो गरीब।
    • गरीबों को धन मिलने से खुशी होती है।
    • बाबा ने समझाया है यहाँ के गरीब वहाँ साहूकार बन जाते हैं और यहाँ के साहूकार वहाँ गरीब बन जाते हैं।
  • कई कहते हैं, हम यज्ञ का ख्याल रखें वा कुटुम्ब का ख्याल रखें?
    • बाबा कहते हैं तुम अपने कुटुम्ब की बहुत अच्छी सम्भाल करो।
    • अच्छा है जो तुम इस समय गरीब हो।
    • साहूकार होते तो बाप से पूरा वर्सा ले नहीं सकते।
    • संन्यासी ऐसे नहीं कहेंगे।
    • वह तो पैसे लेकर अपनी जागीर बनाते हैं।
    • शिवबाबा थोड़े ही बनायेंगे।
    • यह मकान आदि सब तुम बच्चों ने अपने लिए बनाये हैं।
    • यह किसकी जागीर नहीं, यह तो टैप्रेरी है क्योंकि अन्त समय बच्चों को यहाँ आकर रहना है।
    • हमारा यादगार भी यहाँ है।
    • तो पिछाड़ी में यहाँ आकर विश्राम लेंगे।
    • बाप के पास भागेंगे वह जो योगयुक्त होंगे।
    • उन्हों को मदद भी मिलेगी।
    • बाप की बहुत मदद मिलती है।
    • तुमको यहाँ बैठ विनाश देखना है।
    • जैसे शुरू में बाबा ने तुम बच्चों को बहलाया है फिर पिछाड़ी में बहलाने शुरू करेंगे।
    • बहुत प्यार करेंगे।
    • जैसे वैकुण्ठ में बैठे हैं, बहुत नजदीक होते जायेंगे।
    • यह तो समझते हैं कि हम यात्रा पर हैं।
    • थोड़े समय के बाद विनाश होगा।
    • तुम बहुत खुश हो जायेंगे।
    • बस हम जाकर प्रिन्स बनेंगे।
    • किसम-किसम के फूल हैं।
  • हर एक बच्चे को समझना चाहिए - मैं कितनी ज्ञान की खुशबू दे रहा हूँ!
    • किसको ज्ञान और योग की शिक्षा देता हूँ!
    • जो करते हैं वह अन्दर प्रफुल्लित रहते हैं।
    • बाबा जान जाते हैं कि यह किस अवस्था में रहते हैं।
    • इनकी अवस्था कहाँ तक गैलप करेगी!
    • गैलप उनकी करेगी जो परवाना बन चुका होगा।
    • बाप समझाते हैं - माया के तूफान तो बहुत आयेंगे, उनसे अपने को बचाना है।
    • अभी यह राजयोग परमपिता परमात्मा आकर सिखलाते हैं।
    • परमात्मा आकर आत्माओं को समझाते हैं।
    • आत्मा को ज्ञान है - मैं आत्मा अपने इस ब्रदर आत्मा को समझाती हूँ।
    • जैसे परमात्मा बाप हम आत्मा बच्चों को समझाते हैं।
    • हम भी आत्मा हैं।
    • बाबा हमको सिखलाते हैं, हम फिर इन आत्माओं को समझाता हूँ परन्तु यह आत्मा-पन का निश्चय न होने से अपने को मनुष्य समझ, मनुष्य को ही समझाते हैं।
    • मैं परम आत्मा तुम आत्माओं से बात करता हूँ।
  • तुम आत्मा को सुनाते हो।
    • ऐसे तुम देही-अभिमानी होकर किसको सुनायेंगे तो वह तीर झट लगेगा।
    • अगर खुद ही देही-अभिमानी नहीं रह सकते तो धारणा करा नहीं सकते।
    • यह बड़ी ऊंची मंजिल है।
    • बुद्धि में यह रहना चाहिए कि हम इन आरगन्स से सुनते हैं।
  • बाप कहते हैं - हम आत्माओं (बच्चों) से बात करते हैं।
    • बाबा का फरमान है अशरीरी (नंगे) बनो।
    • देह-अभिमान छोड़ो, मेरे को याद करो - यह बुद्धि में आना चाहिए।
    • हम आत्मा से बात करता हूँ, शरीर से नहीं।
    • भल फीमेल है, उनकी भी आत्मा से बात करते हैं।
    • तुम बच्चे समझते हो - हम बाबा के तो बन गये परन्तु नहीं, इसमें बड़ी सूक्ष्म बुद्धि चलती है।
    • मैं आत्मा हूँ, मैं इनकी आत्मा को समझाता हूँ।
    • यह हमारा भाई है, इनको रास्ता बताना है।
    • आत्मा समझ रही है।
    • ऐसे समझो तब आत्मा को तीर लगे।
    • देह को देखकर सुनाते हो तो आत्मा सुनती नहीं है।
    • पहले यह वारनिंग दो कि मैं आत्मा से बात करता हूँ।
    • आत्मा को न तो मेल, न फीमेल कहेंगे।
    • आत्मा तो न्यारी है।
    • मेल-फीमेल शरीर से नाम पड़ता है।
    • जैसे ब्रह्मा-सरस्वती को मेल-फीमेल कहेंगे।
    • शिवबाबा को न मेल, न फीमेल कहेंगे।
    • तो बाप आत्माओं को समझाते हैं।
    • बड़ी मंजिल है।
    • प्वाइंट बड़ी कड़ी है।
  • आत्मा को इन्जेक्शन लगाना है, तब देह-अभिमान टूटता है।
    • नहीं तो खुशबू नहीं आयेगी, ताकत नहीं रहेगी।
    • बात बहुत छोटी है।
    • हम आत्मा से बात कर रहे हैं।
    • बाप कहते हैं - तुमको वापिस जाना है इसलिए देही-अभिमानी बनो। मनमनाभव।
    • फिर आटोमेटिकली मध्याजी भव आ जाता है।
    • अभी बड़ी सूक्ष्म बुद्धि मिलती है।
  • सवेरे में बैठ विचार सागर मंथन करना है।
    • दिन में तो सर्विस करनी है क्योंकि कर्मयोगी हैं।
    • लिखा भी हुआ है नींद को जीतने वाले बनो।
    • रात को जागकर कमाई करो।
    • दिन में तो माया का बड़ा बखेरा है।
    • अमृतवेले वायुमण्डल अच्छा है।
    • बाबा को यह तो लिखते नहीं कि फलाने टाइम पर उठकर विचार सागर मंथन करते हैं।
    • बड़ी मेहनत है।
  • विश्व के तुम मालिक बनते हो।
    • यहाँ तो हद के मालिक हो।
    • पानी की हद पर भी कितना झगड़ा चलता रहता है।
    • दुश्मनी लगी पड़ी है।
    • आपस में एक दो को ब्रदर्स समझते नहीं।
    • सिर्फ ऐसे ही कह देते हैं कि हम सब एक हैं।
    • एक तो हो न सकें।
    • अनेक आत्मायें हैं, सबका अपना-अपना पार्ट है।
    • तुम यहाँ बैठे हो।
    • कल्प पहले भी बैठे होंगे।
    • पत्ता हिला ड्रामा अनुसार।
    • ऐसे नहीं पत्ते-पत्ते को परमात्मा हिलाते हैं।
    • ऐसी-ऐसी बातें समझकर फिर समझाओ।
  • हर एक समझ सकते हैं कि हम परवाना बने हैं!
    • हम बाबा की मत पर चलते रहते हैं!
    • फालतू बातें तो नहीं करते हैं!
    • कहाँ अपना पैसा पाप की तरफ तो नहीं लगा रहे हैं?
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) स्वयं को आत्मा समझ आत्मा से बात करनी है।
    • देही-अभिमानी बनकर सुनने-सुनाने से धारणा अच्छी होगी।
  • 2) नींद को जीतने वाला बनना है, रात को जागकर कमाई करनी है।
    • विचार सागर मंथन करना है।
    • किसी भी फालतू बातों में अपना समय नहीं गँवाना है।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • माया की नॉलेज से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट बनने वाले सम्पूर्ण पवित्र भव
  • जैसे सतयुगी आत्मायें विकारों की बातों की नॉलेज से इनोसेंट होती हैं, वही संस्कार स्पष्ट स्मृति में रहें तो माया की नॉलेज से इनोसेंट बन जायेंगे।
  • लेकिन भविष्य संस्कार स्मृति में स्पष्ट तभी रहेंगे जब आत्मिक स्वरूप की स्मृति सदाकाल और स्पष्ट होगी।
  • जैसे देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये तब कहेंगे माया से इनोसेंट और ज्ञान में सेंट अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • अन्दर की अशुद्धि ही सम्पूर्ण शुद्ध बनने में विघ्न डालती है।