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ओम् शान्ति।
- शान्तिधाम विश्रामपुरी है।
- इस दुनिया से सब थके हुए हैं।
- चाहते हैं कि हम अपने सुखधाम में जायें।
- यह दुनिया अच्छी नहीं लगती।
- स्वर्ग को देखते हैं तो नर्क से दिल कैसे लगे।
- कहते हैं बाबा जल्दी करो, इस दु:खधाम से ले चलो।
- बाप भी समझाते हैं - यह तो छी-छी दुनिया है, इनका नाम ही है डेविल वर्ल्ड, नर्क।
- यह कोई अच्छा अक्षर है क्या?
- कहाँ डीटी वर्ल्ड, कहाँ डेविल वर्ल्ड, इस डेविल वर्ल्ड में सब तंग हो गये हैं।
- परन्तु वापिस कोई जा नहीं सकते।
- तमोप्रधानता की खाद पड़ी हुई है।
- वह खाद आत्मा से निकले, उसके लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं।
- जो अच्छे पुरूषार्थी हैं, उनकी अवस्था पिछाड़ी में अच्छी हो जायेगी।
- यह पुरानी दुनिया खलास हो जायेगी, अब तो बाकी थोड़े रोज़ हैं।
- जब तक बाप आकर वापिस न ले जाये तब तक कोई वापिस जा नहीं सकते।
- दुनिया में दु:ख है ना।
- घर में भी कोई न कोई दु:ख रहता है।
- तुम बच्चों की दिल में है बाबा अब हमें दु:खों से छुड़ाने आये हैं।
- जो अच्छे निश्चयबुद्धि हैं वह बाप की याद को कभी भूलते नहीं।
- उनको कहा ही जाता है सर्व का दु:ख हर्ता।
- बच्चे ही पहचानते हैं।
- अगर सब पहचान लें तो फिर इतने सब मनुष्य कहाँ आकर बैठें, यह हो न सके इसलिए ड्रामा में युक्ति भी ऐसी रची हुई है।
- जो श्रीमत पर चलते हैं वही ऊंच पद पा सकते हैं, वह तो ठीक है।
- सजायें खाकर भी शान्तिधाम अथवा पावन दुनिया में जायेंगे।
- परन्तु ऊंच पद पाने के लिए तो पुरुषार्थ करना पड़े ना।
- दूसरा पावन बनने बिगर पावन दुनिया में कोई जा न सके।
- यह जो कहते हैं कि फलाना ज्योति ज्योत समाया, वापिस गया - यह हो नहीं सकता।
- जो पहले-पहले सृष्टि पर आये हैं, लक्ष्मी-नारायण, वह भी वापिस जा नहीं सकते तो और कोई कैसे जा सकते हैं।
- इनके भी अब 84 जन्म पूरे हुए।
- अब जाने के लिए तपस्या कर रहे हैं।
- सब पुकारते ही हैं एक बाप को।
- ओ गॉड फादर, ओ लिबरेटर, वह गॉड फादर है दु:ख हर्ता, सुख कर्ता।
- कृष्ण आदि और किसको थोड़ेही पुकारते हैं।
- क्रिश्चियन हो, मुसलमान हो, सब ओ गॉड फादर कह बुलाते हैं।
- आत्मा बुलाती है - अपने फादर को।
- फादर कहते तब हैं जब समझते हैं हम आत्मा हैं।
- आत्मा भी कोई चीज़ है ना।
- आत्मा कोई बड़ी चीज़ नहीं है, वह तो एक स्टार है और अति सूक्ष्म है।
- जैसे बाबा है वैसे ही आत्मा का स्वरूप है।
- अब तुम बाप की महिमा करते हो - वह सत-चित है, ज्ञान का सागर, आनंद का सागर है।
- तुम्हारी आत्मा भी उनके समान बनती है।
- तुम्हारी बुद्धि में अब सारे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान आ गया है, और कोई मनुष्य मात्र में यह ज्ञान नहीं है।
- सारा भारत, सारी विलायत ढूँढ़ लो, कोई को भी पता नहीं।
- आत्मा 84 जन्मों का पार्ट बजाती है।
- 84 लाख तो इम्पासिबुल है।
- 84 लाख जन्मों का तो कोई वर्णन ही न कर सके।
- बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, हम सुनाते हैं।
- वह सब सुनते हुए भी पत्थरबुद्धि समझते नहीं कि 84 लाख जन्म हो तो कोई सुना ही कैसे सकते।
- अभी तुम जानते हो हम ब्राह्मण हैं, हमने 84 जन्म लिए हैं।
- ब्रह्मा ने भी 84 जन्म लिए हैं, विष्णु ने भी 84 जन्म लिए हैं।
- ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
- लक्ष्मी-नारायण ही 84 जन्म ले फिर ब्रह्मा-सरस्वती बनते हैं।
- यह भी समझने की बात है ना।
- बाप कहते हैं हर 5 हजार वर्ष बाद आकर समझाता हूँ।
- अभी तुमने वर्णो का राज़ भी समझा है।
- हम सो का अर्थ भी समझा है, हम आत्मा सो देवता बनते हैं फिर हम सो क्षत्रिय, हम सो वैश्य शूद्र बनते हैं।
- इतने-इतने जन्म लेते हैं फिर हम सो ब्राह्मण बनते हैं।
- ब्राह्मणों का यह एक जन्म है।
- यह है ही तुम्हारा हीरे जैसा जन्म।
- बाप कहते हैं - यह तुम्हारा उत्तम शरीर है, इससे तुम स्वर्ग का वर्सा पा सकते हो इसलिए अब और कोई तरफ भटको मत।
- ज्ञान अमृत पियो।
- समझ में भी आता है बरोबर 84 जन्म लेते हैं।
- तुम पहले सतयुग में सतोप्रधान थे।
- फिर सतो बनें।
- फिर चांदी की खाद पड़ी, एकदम पूरा हिसाब बताते हैं।
- अब गवर्मेंन्ट भी कहती है सोने में खाद (अलाए) मिलाओ।
- 14 कैरेट सोना पहनो।
- सोने में खाद डालना - यह भारतवासी अपसुगन समझते हैं।
- शादी कराते हैं तो एकदम सच्चा सोना पहनते हैं।
- सोने पर भी भारतवासियों का बहुत प्यार है।
- क्यों?
- भारत की बात मत पूछो।
- सतयुग में तो सोने के महल थे, सोने की ईटें थी।
- जैसे यहाँ ईटों की ढेरी लगी रहती है।
- वहाँ सोने-चांदी की ढेरी रहती है।
- माया मच्छन्दर का खेल दिखाते हैं।
- उसने सोने की ईटें देखी, सोचा ले जाता हूँ।
- नीचे उतरा तो देखा तो कुछ भी नहीं है।
- कुछ न कुछ बात लगती है।
- बच्चियाँ समझती हैं, अभी हम फिर से स्वर्ग में जाते हैं फिर अगर पति आदि तंग करते हैं तो बिचारी अन्दर में रोती हैं।
- कब हम सुखधाम में जायेंगे?
- बाबा अब जल्दी करो।
- बाप कहते हैं - बच्चे जल्दी कैसे करूँ, पहले तुम योगबल से अपना किचड़ा तो निकालो।
- योग की यात्रा पर रहो।
- बाप धीरज देते हैं।
- पुकारते भी हो हे पतित-पावन आओ।
- गाते भी हैं - सर्व का सद्गति दाता एक।
- यहाँ की ही बात है।
- अकासुर बकासुर यह सब बातें इस संगम समय की हैं।
- यह है ही आसुरी दुनिया।
- तो बाप समझाते हैं, मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ, जब सारा झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है।
- तुम जानते हो, सतयुग में हर चीज़ सतोप्रधान होती है।
- यहाँ इतने पंछी जानवर आदि हैं, यह सब इतने वहाँ नहीं होंगे।
- बड़े आदमियों के पास अच्छी सफाई रहती है।
- उन्हों के रहने का स्थान, फर्नीचर आदि बहुत अच्छा होता है।
- तुम भी इतने ऊंच देवतायें बनते हो।
- वहाँ ऐसी कोई छी-छी चीज़ रह न सके।
- यहाँ तो मच्छर आदि अनेक प्रकार की बीमारियाँ, कितनी गन्दगी रहती है।
- गांवड़ों में इतना गन्द नही रहता।
- बड़े-बड़े शहरों में बहुत गन्दगी रहती है क्योंकि बहुत मनुष्य हो गये हैं।
- रहने की जगह नहीं है।
- तुम सारे विश्व के मालिक बनते हो।
- मनुष्य गाते हैं घट ही में ब्रह्मा, घट ही में विष्णु.....घट ही में 9 लख तारे।
- ब्रह्मा सो विष्णु बन जाते हैं।
- विष्णु के साथ सितारे भी हैं।
- सतयुग में यह देवता बनते हैं तो इतने थोड़ेही होते हैं, झाड़ पहले छोटा होता है फिर वृद्धि को पाता है।
- सतयुग में तो बहुत थोड़े होंगे।
- मीठी नदियों के ऊपर रहते होंगे।
- यहाँ नदियों से बहुत कैनाल्स निकालते हैं।
- वहाँ कैनाल्स आदि थोड़ेही होते हैं।
- मुट्ठी जितने तो मनुष्य होते हैं।
- इतने के लिए गंगा जमुना तो है ही।
- उन नदियों के ही आस-पास रहते हैं।
- 5 तत्व भी देवताओं के गुलाम बन जाते हैं।
- कभी भी बेकायदे बरसात नहीं पड़ती।
- कभी नदी उछल नहीं खाती।
- नाम ही है स्वर्ग तो फिर क्या?
- अब कहते हैं स्वर्ग की आयु इतने लाख वर्ष है।
- अच्छा भला वहाँ कौन राज्य करते थे, यह तो बताओ।
- कितने गपोड़े लगाते रहते हैं।
- तुम जानते हो, हम कल्प पहले मुआफिक ये पार्ट बजा रहे हैं।
- रूद्र ज्ञान यज्ञ में अनेक प्रकारों के असुरों के विघ्न पड़ेंगे फिर मनुष्य समझते हैं, असुर लोग ऊपर से गन्द, गोबर आदि डालते थे।
- परन्तु नहीं, तुम देखते हो - कितने विघ्न पड़ते हैं।
- अबलाओं पर अत्याचार होते हैं तब तो पाप का घड़ा भरेगा।
- बाप कहते हैं - थोड़ा सहन करना पड़ेगा।
- तुम अपने बाप और वर्से को याद करते रहो।
- मार खाने समय भी बुद्धि में याद करो - शिवबाबा।
- तुमको तो बुद्धि में ज्ञान है, किसको फाँसी पर चढ़ाते हैं तो पादरी लोग कहते हैं गॉड फादर को याद करो।
- ऐसे नहीं कहेंगे क्राइस्ट को याद करो।
- इशारा गॉड के लिए करते हैं।
- वह इतना लवली है, सब उनको पुकारते हैं।
- आत्मा ही पुकारती है।
- अब देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है।
- 63 जन्म तुम देह-अभिमान में रहे हो।
- अभी इस एक जन्म में वह आधाकल्प की आदत मिटानी है।
- तुम जानते हो, देही-अभिमानी बनने से हम स्वर्ग के मालिक बन जायेंगे।
- कितनी ऊंच प्राप्ति है।
- तो रात-दिन इसी कोशिश में रहना पड़े।
- मनुष्य धन्धे आदि के लिए भी मेहनत करते हैं।
- आमदनी में मनुष्य को कभी झुटका या उबासी नहीं आयेगी क्योंकि आमदनी है।
- पैसे की खुशी रहती है।
- थकने की बात ही नहीं रहती।
- बाबा भी अनुभवी है ना।
- रात को स्टीमर्स आते थे तो आकर माल खरीद करते थे।
- जब तक ग्राहक की जेब खाली न करें तब तक उनको छोड़े नहीं।
- बाबा ने रथ भी पूरा अनुभवी लिया है।
- इसने सब अनुभव किया है।
- गांवड़े का छोरा भी था।
- 10 आने मण अनाज बेचता था।
- अभी तो देखो विश्व का मालिक बनते हैं।
- एकदम गांवड़े का था।
- फिर चढ़ गया तो एकदम जवाहरात के धन्धे में लग गया।
- बस जवाहरात की बात।
- यह फिर हैं सच्चे जवाहरात।
- यह होता है रॉयल व्यापार।
- बाबा बहुत अनुभवी है।
- बाबा वाइसराय आदि के घर में ऐसे जाते थे जैसे अपना घर।
- इनको फिर कहा जाता है अविनाशी ज्ञान रत्न।
- जितना यह बुद्धि में धारण करेंगे, इससे तुम पदमपति बनेंगे।
- शिवबाबा को कहा जाता है सौदागर, रतनागर।
- उनकी महिमा भी गाते हैं फिर कह देते सर्वव्यापी।
- महिमा के साथ फिर इतनी ग्लानी।
- कैसी हालत हो गई है भक्ति मार्ग की।
- बाप कहते हैं - जब भक्ति पूरी होती है, तब भक्तों का रक्षक बाप आते हैं।
- बहुत भक्ति कौन करते हैं, यह भी सिद्ध हो जाता है।
- सबसे जास्ती भक्ति तुम करते हो।
- वही यहाँ आकर पहले-पहले ब्राह्मण बनते हैं और बाप से वर्सा लेते हैं फिर से पूज्य बनने का।
- रावण ने पुजारी बनाया है, बाप पूज्य बनाते हैं।
- यह है भगवानुवाच।
- भगवान एक है।
- 2-3 भगवान होते नहीं।
- गीता भगवान की गाई हुई है।
- शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण का नाम ठोक दिया है तो कितना फर्क हो गया है।
- ड्रामा अनुसार फिर भी गीता का नाम ऐसे बदलना ही है।
- फिर बुलाते हैं हे पतित-पावन आओ।
- बाप पावन बनाते हैं, रावण पतित बनाते हैं।
- तो समझने की कितनी बुद्धि चाहिए।
- श्रीमत, श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत है ही एक बाप की।
- यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक बाप की मत से ही बने हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) इस एक जन्म में 63 जन्मों के पुराने देह-अभिमान की आदत मिटाने की मेहनत करनी है।
- देही-अभिमानी बन स्वर्ग का मालिक बनना है।
- 2) इस हीरे तुल्य उत्तम जन्म में इस बुद्धि को भटकाना नहीं है, सतोप्रधान बनना है।
- अत्याचारों को सहन कर बाप से पूरा वर्सा लेना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सोचना, बोलना और करना तीनों को समान बनाने वाले सर्वोत्तम पुरूषार्थी भव
- सभी शिक्षाओं का सार है - कि कोई भी कर्म से देखने, उठने, बैठने-चलने सोने से फरिश्ता-पन दिखाई दे, हर कर्म में अलौकिकता हो।
- कोई भी लौकिकता कर्म वा संस्कारों में न हो।
- सोचना, करना, बोलना सब समान हो।
- ऐसे नहीं कि सोचते तो थे कि यह न करें लेकिन कर लिया।
- जब तीनों ही एक समान और बाप समान हो तब कहेंगे श्रेष्ठ वा सर्वोत्तम पुरूषार्थी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- जिम्मेवारी उठाना अर्थात् एकस्ट्रा दुआओं का अधिकारी बनना।
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